रविवार, 21 मई 2017

दिखावे की रस्म - धर्मेंन्द्र कुमार


आज घर में बड़ी चहल पहल थी  और हो भी क्यों न ! घर में मेहमान जो आने वाले थे, वो भी घर की बड़ी बेटी “तनु” को शादी के लिए दिखावे की रस्म अदायगी के लिए। साधारण परिवार में जन्मी तीन बच्चांे में सबसे बड़ी बेटी, एक कमरे का मकान जिसमे एक छोटा सा आँगन, पिता एक सामान्य सी नौकरी कर के घर का खर्च चलाते थे।
घर का माहौल खुशनुमा बना हुआ था। सब के मुख पर ताजगी देखते ही बनती थी। मम्मी खुश मगर सकुचाई जी नजर आती थी। पिता के चेहरे पर खुशी के मध्य में चिंता के भाव साफ नजर आते थे। उन सब के बीच कम बोलने और अपने संस्कारांे के प्रति सजग “तनु” के मन में रह रहकर हजारो सवाल उठ रहे थे। कुछ सूझ नही रहा था, मन बड़ा ही विचलित था ! तभी किसी ने बाहर से आकर खबर दी ३ मेहमान आ गए है ! छोटे से मकान में चहल कदमी बढ़ गई। सब इधर-उधर दौड़ने और व्यवस्था के सवारने में व्यस्त हो गए। जैसे ही मेहमानों ने घर के अंदर प्रवेश किया उनका जोरदार स्वागत किया गया !! बातचीत की रस्म अदायगी होने लगी।
कमरे के अंदर बैठी वो साधारण कन्या अभी भी खुद के सवालो में उलझी थी, मम्मी उसको समझा रही थी की मेहमानो के सामने कैसे व्यवहार करना चाहिए। जो जन्म से ही सुनती आ रही थी, मगर आज उससे मम्मी ने क्या-क्या कहा उसे कुछ मालूम नही था, वो तो खुद में ही उलझी थी।  अचानक दरवाजे से आवाज सुनाई दी ३..बेटी तनु३३३.!३. हाँ ,,,,, पापा सकुचाते हुए अचानक जबाब दिया ! तुम तैयार तो हो ना बेटी ! जी पापा ३..धीरे से बोली  पापा पास आकर बोले देखो बेटी  वो लोग आ गए है ! तुम्हे देखने और पसंद करने के लिए !!
मैंने अपनी तरफ से अच्छा धनी परिवार चुना हैै। लड़का सुशिक्षित और समझदार है। तेरा जीवन सदा खुशियांे से भरा हो। इससे ज्यादा और हमें क्या चाहिए, बाकि आखिरी फैसला अब तुम पर है जिसमें मेरा पूर्णतया समर्थन होगा .. कहते हुए पिता ने बेटी के सर पर दुलार से भरा हाथ फेरा .!!
पिता जी क्या मै कुछ पूछ सकती हूँ ?  सहसा तनु बोल पड़ी !
हाँ ३. हाँ बेटा पूछो सरल भाव से पिता ने जबाब दिया !
क्या धनवान लोग ही सुखी रह सकते है ! हम जैसे साधारण लोग सुखी जीवन नही जी सकते ! क्या धन दौलत का नाम ही खुशी है.?
पिता चुपचाप थे ! आज पहली बार बेटी ने उनसे खुलकर बात की थी .. वो अपनी बात कहते हुए बोलती जा रही थी !
ये देख दिखावे की रस्म का क्या अर्थ है ! क्या क्षण भर किसी को देख लेने से हम किसी के व्यक्तित्व को जान सकते है ?  मेरे कहने का तात्पर्य यह नही की मुझे इन लोगांे से या पैसे वालांे से शिकायत हैं मै तो बस यह कहना चाहती हूँ की मेरी खुशी धन दौलत में नहीं उन संस्कारो में है जो आज तक आप मुझे सिखाते आये हो ! मैंने आप ही से जाना हैं की व्यक्ति से ज्यादा अहम उसका व्यक्तित्व होता हैं।  अगर दो व्यक्तियों के विचारो में समानता हो तो इंसान हर हाल में खुश रह सकता है वरना अच्छा भला जीवन भी नरक की भेँट चढ़ जाता है।
पिता चुपचाप उसकी बातें सुन रहे थे। बातो में सच्चाई थी और हकीकत में जीवन का मूलमंत्र भी थी।
बेटी धारा प्रवाह बोलती जा रही थी  मानो उसके अंदर का सैलाब आज फूट पड़ा हो और वो उसमंे शब्दों के माध्यम से कतरा कतरा बह रही थी।
क्या दिखावे की रस्म का इतना बड़ा स्वांग रचकर ही हम एक दूजे के बारे में जान सकते है ! क्या इस तरह ही किसी के व्यक्तित्व, आचरण या जीवन शैली का आभास कर सकती हूँ ! मुझे स्वयं को लगता है, शायद नही !
आप यह न समझना की मेरे कहने का अर्थ इन सब का विरोध करना है, मै किसी भी सामाजिक क्रिया कलाप के विरोध में नही, और न ही मै प्रेम विवाह या, लिव-इन-रिलेशन में विश्वास रखती हूँ।
मेरे कहने का  आशय मात्र इतना है की किसी भी व्यवस्था को बदलने की नहीं उसमें समयानुसार परिवर्तन की आवश्यकता होती हैै।
जीवन कैसे जिया जाता है ये आपने मुझे अच्छे से सिखाया है। मै हर हाल में स्वंय को ढाल सकती हूँ। परिस्थिति सम हो या विषम दोनों से निपटना आपने अच्छे से सिखाया है।
इतना कहते हुए तनु रुंधे गले से अपने पिता से लिपट गयी। दोनों की आँखों में आंसुओ का सैलाब उमड़ पड़ा था। मम्मी मँुह पर हाथ रखे अपने स्वर को दबाये खड़ी थी, वो खुद को सँभालने में असहाय लग रही थी।
पिता ने रुआंसा होकर  बोले  बेटा आज मै कुछ नही कहूँगा !
मैं फैसला तुझ पर छोड़ता हूँ ! तेरी सहमति में हमारी सहमति है !
आँगन में बैठे मेहमान और परिवार गण शांत भाव से कान लगाकर उनकी बातंे सुन रहे थे। इतने में अचानक लड़का खड़ा होकर बोला ! माफ कीजियेगा  क्या मै कुछ बोल सकता हूँ ? इतना सुनकर सब सहम से गए  बेटी के पिता आवाज सुनकर बाहर आ गए और बोले  हाँ बेटा ! क्यों नहीं! कहिये आप क्या कहना चाहते है !
पिता जी! मुझे लड़की बिना देखे ही पसंद है ! अगर मै शादी करूँगा तो सिर्फ “तनु” से यदि वो अपनी सहमति प्रदान करेगी तब! वरना मैं आजीवन कुँवारा रहने की शपथ उठाता हूँ !! यह मेरा निजी फैसला हैं और मै समझता हूँ की इससे किसी को कोई आपत्ति नही होगी! यानि मेरे परिवार को भी मुझे इतनी आजादी देनी होगी!
लड़के का निर्भीक फैसला सुनकर सब अचंभित और अवाक थे। उसके माता पिता भी उसकी और ताकते रह गए ! किसी के भी तरकश में जैसे कोई शब्द बाण बचा ही नही था !
लड़के ने आगे बोला, मुझे जो देखना था वो देख लिया ..! मुझे धन दौलत या शारीरिक सुंदरता नही आत्मीय सुंदरता की आवश्यकता है। धन दौलत से तो मै बचपन से ही खेला हूँ, मगर जो सम्पत्ति आज मुझे तुन के विचारों से प्राप्त हुई है उस से मुझे आशा ही नही विश्वास हो उठा है की “एक तुम बदले दृ एक मै बदला” इसका मतलब “हम बदल गए” और जब हम बदले तो जग बदले या न बदले कम से कम अपनी आने वाली पीढ़ी को तो बदल ही सकते हैं! उसकी ये बाते सुनकर माहौल में हल्कापन आ गया !
अंदर ही अंदर कमरे में दीवार के सहारे खड़ी तनु ये सब सुनकर रोते-रोते मुस्कुरा रही थी ! और बाहर का शांत माहैेल फिर से खुशियांे की रफ्तार पकड़ चुका था !!


डरे नहीं, जब मां बनें


 सोसाईटी का एक बड़ा हिस्सा नैचुरल बर्थ के लिए जोर देता है लेकिन बहुत कम महिलाएं ही होती है  जोकि इसके लिए मानसिक और षारीरिक रूप से तैयार होती हैं।  बच्चे के जन्म के बारे में जानकारी की कमी होने के कारण भी महिलाएं नैचुरल बर्थ प्रक्रिया से डर जाती हैं।
गर्भवती महिलाएं अधिकतर बीमार महिला की तरह प्रतिक्रिया देती हैं जबकि गर्भवती होने का मतलब बीमार हो जाना नहीं हैं।  कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं जिसमें प्रसवपीडा के दौरान गर्भवती महिला की मौत हो जाती है। इस तरह की घटनाओं का असर गर्भवती महिला पर होता है और वह डर जाती हैं। इसलिए वह नैचुरल बर्थ प्रकिया के बजाय सी सेक्शन की ओर चली जाती हैं।  सी सेक्शन प्रक्रिया में बच्चे को जन्म के समय कष्ट होता है और महिलाएं भी पूरी जिंदगी इसके होने साईड इफेक्ट्स को झेलती रहती हैं।
चाईल्डबर्थ अवेयरनेस क्लासिस अटेंड करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।  ऐसी अवेयरनेस क्लासिस होने वाली मां के लिए जितनी जरूरी हैं उतनी ही होने वाले पिता के लिए भी जरूरी हैं।  आज के पुरूष भी इस प्रक्रिया में योगदान देना चाहते हैं।  वह अपनी पत्नी के  सपोर्ट सिस्टम बनने की पूरी कोशिश करते हैं।  उसको समय-समय पर डाक्टर के पास ले जाते हैं।  उनके दिमाग में भी ढेरों  सवाल हैंे और इनके जवाब आॅनलाईन ढ़ूंढ़ने की कोशिश भी करते हैंें। प्रीनेटल क्लासिस अटंेड करने के बाद आप अपनी पत्नी की जरूरतों को अच्छे से समझ पाएंगें और यह भी जान पाएंगें कि एक पिता होने पर आपको क्या जिम्मेदारी निभानी है।
यदि आप प्रीनेटेल क्लासिस लेने की सोच रहे हैं तो अंत समय का इंतजार मत कीजिए।  इसके लिए सही समय पांचवें महीने से ही शुरू हो जाता है।
इन क्लासिस में आपको चाइल्ड बर्थ के बारे में ए टू जेड जानकारी दी जाती है। मसलन बेसिक व्यायाम, पेन रीलिफ थैरिपी, ब्रेस्ट फीडिंग जैसी जानकारियां।
इससे आप जानंेगें कि आपकी पत्नी की शारीरिक और मानसिक स्थिति क्या है।
सही खानपान, व्यायाम और स्ट्रेचिंग उसकी दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए।
आप उसकी व्यायाम में और रिलेक्स करने में भी मदद कर पाएंगें।
इन क्लासिस को अटेंड करने से आप ज्यादा वक्त अपनी पत्नी के साथ गुजार पाऐंगें।
इससे आप दोनों की बांडिंग और गहरी होगी और वह अपने डर भी आपके साथ शेयर कर पाएगी।
आपको यह कैसे पता लगेगा कि आपकी पत्नी लेबर पेन में है। उसके दर्द को कम करने में कैसे मदद कर सकतेेेे हैं।  यहां आपको यह भी बताया जाएगा कि आप क्या न करें और न कहें जबकि आपकी पत्नी दर्द में हो।
जो स्त्री पहली बार मां बन रही होती है वह बहुत डरी हुई भी होती है कि वह दर्द को कैसे सह पाएगी।  उनके लिए यह सब बहुत डरावना अनुभव होता है। इस समय उसे अपने साथी की साथ की उसके हौंसले की बहुत जरूरत होती है।  लेबर पेन का समय लंबा और इंतजार कराने वाला होता है। ऐसे में अपनी पत्नी का दर्द से ध्यान हटाने के लिए उसको बिजी रखने की कोशिश करें।  उसे म्यूजिक और बातों में उसका ध्यान बटाएं।
यदि बच्चे के दूध फंस जाए तो क्या करना चाहिए। नैपी बदलने का सही तरीका, बच्चे को कैसे उठाना है,  बच्चों के बिहेवियर और उनसे जुड़ी बातों की जानकारी दी जाती है।
यह क्लासिस अटेंड करने से आपको यह भी फायदा होगा कि आप अपने जैसे अन्य होने वाले पिताओं से भी मिलेंगें।
सवाल पूछने से शरमाएं नहीं बल्कि इस बात पर गर्व महसूस करें कि आप अपनी पत्नी के सपोर्ट सिस्टम बन रहे हैं।
आप इसलिए भी इन क्लासिस को ज्वाॅइन कीजिए क्योंकि आपकी पत्नी यह चाहती हैं कि आप उसके साथ हर कदम पर रहें।





























शुक्रवार, 19 मई 2017

महादान है रक्तदान


 पूजा-पाठ के अवसर पर अक्सर हम कभी अन्नदान करते हैं तो कभी वस्त्रदान। मान्यता है दान करने से पुण्य मिलता है। ऐसा हे तो कभी रक्तदान कीजिए और महसूस कीजिए आत्मसंतुष्टि

कभी लंबी ड्राइव पर जाते समय सड़क किनारे आपको कई दुर्घटनाग्रास्त लोग मिलते हैं जो अनजान शहर में अपनों से दूर हैं और मदद मांग रहे हैं। ऐसे में अगर आप रक्तदान करते हैं तो वह जीवन भर आपको याद रखते हैं । रक्तदान से आपकी सेहत पर भी सकारात्मक असर पड़ता है और साथ ही यह एहसास भी होता है कि आप समाज के लिए कुछ कर रहे हैं।
थैलेसीमिया, कैंसर ,सड़क हादसे एवं बड़े ऑपरेशन जैसी कई परिस्थितियों में समय पर खून देकर मरीजों की जान बचायी जाती है।  डोनर के लिए  रक्तदान हृदयाघात और कैंसर समेत कई गंभीर बीमारियों से बचाव और साथ ही मोटापे से भी मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।
विशेषज्ञों के अनुसार देश में कुल रक्तदान का केवल 59 फीसदी स्वैच्छिक होता है। ऐसे में आवश्यकता यह है कि स्वेच्छा से खून देने वालों की संख्या बढ़े और यह तभी संभव है जब रक्तदान करने के संबंध में व्याप्त भ्रांतियों को दूर किया जाये।
कई लोग समय-समय पर रक्तदान करते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो  इच्छा होते हुए भी रक्तदान नहीं कर पाते। इसकी वजह उनके मन में पल रही गलतफहमियां हैं जो वास्तव में निराधार हैं। आइए जानते हैं रक्तदान से जुड़े कुछ भ्रम और कुछ अहम बातें।
रक्तदान को लेकर सबसे बड़ा भ्रम यह है कि  शरीर में खून की कमी हो जाएगी। लेकिन बता दें कि खून देने के 48 घंटे बाद ही रक्त की क्षतिपूर्ति हो जाती है। यदि आप स्वस्थ हैं तो तीन महीने में एक बार आराम से रक्तदान कर सकते हैं।
लोग सोचते हैं कि रक्तदान करने से कमजोरी आ जाती है और सेहत को नुकसान पहुंचता है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। सच्चाई यह है कि ये दिल की बीमारियों की संभावना कम करता है और शरीर में फालतू आयरन जमने से रोकता है
 कुछ लोग इस वजह से रक्तदान नहीं कर पाते क्योंकि वह सोचते हैं कि ऐसा करने से दर्द होगा। लेकिन इसमें बस सुई चुभने भर का एहसास होता है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।
बड़ी उम्र के लोग भी रक्तदान कर सकते हैं लेकिन इसके लिए डॉक्टर पहलेे कुछ मेडिकल टेस्ट करते हैं और रिपोर्ट सामान्य आने पर ही रक्तदान कर सकते हैैंं।
यदि आप रक्तदान करने जा रहे हैं तो कुछ बातों का ध्यान रखें जिससे कि आप सुरक्षित और आराम से रक्तदान कर सकें।
रक्तदान करने से पहले आयरन रिच हैल्दी फूड खाएं।
पूरी नींद लें।
खूब पानी पिएं।
रक्तदान से पहले  फ्राईड फूड और आइसक्रीम न खाएं।
रक्तदान के बाद दिन में खूब पानी पिएं। शराब तथा धूम्रपान से दूर रहें।  लॉन्ग ड्राइव और तेज धूप में न जाएं।
यदि आप प्लेटलेट डोनेट कर रहे हैं तो यह ध्यान रखें कि आपने रक्तदान से दो दिन पहले तक एस्प्रिन टेबलेट का सेवन न किया हो।
अपना डोनर कार्ड और आईडी प्रूफ भी साथ लेकर चलें।
रक्तदान करते समय रिलेक्स रहें, म्यूजिक सुनें, दूसरे डोनर से बातचीत करते रहें।
रक्तदान के बाद रिफरेशमेंट एरिया में स्नैक और ड्रिंक का आनंद लें।

रक्तदान कौन नहीं कर सकता:-

अगर कोई एड्स से ग्रस्त है तो उस व्यक्ति को रक्तदान नहीं करना चाहिए।
कैंसर के मरीजों को रक्तदान नहीं करना चाहिए।
अगर टैटू या कोई कॉस्मेटिक सर्जरी करवाई है तो रक्तदान करने के लिए कम से   कम चार महीने तक इंतजार करना होगा।
प्रेग्नेंट महिलाएं रक्तदान नहीं कर सकती हैं।
17 साल से कम उम्र के लोग रक्तदान नहीं कर सकते।
अगर पिछले 12 महीने में हेपेटाइटिस या पीलिया से ग्रस्त हुए हैं तो भी आप रक्तदान नहीं कर सकते।

डॉक्टर बेहद अनिवार्य परिस्थितियों में किसी मरीज में खून चढ़ाते हैं। खून संक्रमण से लड़ता है और जख्मों को भरने में मदद करता है। इसकी कमी से जान जा सकती है। ऐसे में रक्तदान एक तरफ जहां मरते हुए व्यक्ति के लिए “संजीवनी” है वहीं दानकर्ताओं के लिए सबसे बहुमूल्य वस्तु जिसे देकर वह कई जिंदगियां बचा कर आत्मसंतुष्टि के साथ -साथ बेहतर स्वास्थ्य का ‘हकदार’ बन सकता है।


अब तक कई लीटर खून दान करने वाले दक्षिण अफ्रीका के क्रेसविक और अमेरिका के फ्लोरिडा के मेनडेनहाल आज भी तंदुरुस्त हैं तथा उन्हें एक भी दवा की जरूरत नहीं है।
दक्षिण अफ्रीका के क्रेसविक 18 साल की उम्र में सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गये थे। किसी अजनबी के खून से नयी जिन्दगी पाने वाले क्रेसविक नेे कई जिंदगियों में खुशबू और रंग भरने का व्रत लिया।  क्रेसविक को नियमित रूप से सर्वाधिक खून देने वाले व्यक्ति के रूप में वर्ष 2010 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में शामिल किया गया। लंबे समय तक खुशमिजाज और स्वस्थ बने रहने का राज क्रेसविक इन शब्दों में व्यक्त करते हैं, “खून का कतरा-कतरा अहमियत रखता है।  मौके पर पहुंच कर मौत को मात देने वाले खून की यह खूबी मेरे स्वस्थ मन का राज है और धूम्रपान से दूरी मेरी सेहत का मंत्र।” 
कैंसर से पत्नी फ्रैनकी की मौत और अपने दो जवान बेटों को भी खोनेे के बाद भी मेनडेनहाल ने रक्तदान करने से मुंह नहीं मोड़ा।  उन्होंने तीन मौतों के गहरे सदमे से उबरने के लिए इस पुण्य काम को अपनी जीवन शैली में शामिल किया। वह प्लेटलेट्स के माध्यम से हर साल छह गैलन खून देकर कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों से जूझ रहे कई लोगों की मदद कर रहे हैं। मेनडेनहाल के शब्दों में “ईश्वर ने मुझे जो कुछ भी दिया है मैं उसका ऋणी हूं और खून दान देकर उसके प्रति अपना दायित्व निभाने का अदना-सा काम कर रहा हूं। 

गुरुवार, 18 मई 2017

तिल के रोल



सामग्री

सफेद तिल तीन चौथाई प्याला
  काजू चौथाई प्याला
  गुड तीन चौथाई प्याला
  पानी २ बड़े चम्मच
  घी डेढ़ छोटे चम्मच सजावट के लिए

 विधि 
कड़ाही को गरम करें। इसमें मध्यम आँच पर सफेद तिल को भूनें। भूनने से तिल चटकता है इसलिये ध्यान रखें कि चिटक कर तिल त्वचा पर न आ जाए। तिल भुनने में  लगभग ५ मिनट का समय लगता है।
काजू को भी मध्यम आँच पर हल्का सा भून लें।
तिल को मूसल सें कूट लें या फिर ग्राइंडर में मोटा पीस लें। ध्यान रखें कि हमें एकदम मोटा कुटा तिल चाहिए। एक चौथाई प्याला कुटा तिल अलग रख लें तिल रोल्स की रोलिंग के लिए।
काजू को भी मोटा-मोटा पीस लें।
एक नॉन-स्टिक कड़ाही में पानी और गुड़ को उबालें। जब गुड़ पानी में घुल जाए तब इसमें घी डालें और लगभग ३० सेकेंड के लिए और पकाएँ।
चाशनी में कुटा तिल और काजू डालें और अच्छी तरह मिलाएँ। आधे मिनट के लिए लगातार चलाते हुए और पकाएँ। फिर आँच बंद कर दें।
एक ट्रे थाली को कुछ बूँद घी तेल लगाकर चिकना करें। चाहें तो बटर पेपर का प्रयोग भी कर सकते हैं।
इस मिश्रण को चिकनी थाली ट्रे पर डालें। बेलन की मदद से एकसार फैलाएँ और ठंडा होने दें। जब फैलाया हुआ तिल मिश्रण ठंडा हो जाए तो इसे लगभग डेढ़ इंच के चौकोर टुकड़ों में काट लें और मनचाहे आकार में रोल करें।
इस तिल रोल को कुटे तिल में रोल करें। तिल रोल तैयार हैं। इसका भोग लगाएँ, दान करें, मित्रों में बाँटे या फिर घर पर परिवार के साथ खाएँ।
नोट - काजू के स्थान पर इच्छानुसार बादाम का प्रयोग भी किया जा सकता है।

जानिए तिल के  अनमोल फायदे  

1. प्रतिदिन थोड़ी मात्रा में इसके सेवन से  मानसिक समस्याओं से निजात पाई जा सकती हैं।
2. तिल के तेल का प्रयोग या प्रतिदिन थोड़ी मात्रा में तिल को खाने से, बालों का असमय पकना और झड़ना बंद हो जाता है।
3   तिल को दूध में भिगोकर उसका पेस्ट चेहरे पर लगाने से चेहरे पर प्राकृतिक चमक आती है, और रंग भी निखरता है।
4 तिल को कूटकर खाने से कब्ज की समस्या नहीं होती, साथ ही काले तिल को चबाकर खाने के बाद ठंडा पानी पीने से बवासीर में लाभ होता है।
5 त्वचा के जल जाने पर तिल को पीसकर घी और कपूर के साथ लगाने पर आराम मिलता है, और घाव भी जल्दी ठीक हो जाता है।  
6 सर्दियों में तिल का सेवन शरीर में उर्जा का संचार करता है, और इसके तेल की मालिश से दर्द में राहत मिलती है।
7 तिल का तेल गर्म करके उसमें सेंधा नमक और मोम मिलाकर लगाने से एड़ियां  ठीक होने के साथ ही नर्म व मुलायम हो जाती है।
8 मुंह में छाले होने पर तिल के तेल में सेंधा नमक मिलाकर लगाने पर छाले ठीक होने लगते हैं।  






बुधवार, 17 मई 2017

योग की युक्ति से पाएं दर्द से मुक्ति


 दिनभर घर का कामकाज करने के बाद एड़ी में आने वाली दरार और उसमें दर्द के कारण परेशानी बढ़ जाती है। इस समस्या से निपटने के लिए कुछ घरेलू उपाय आजमाएं।
एड़ी में दर्द 
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कसरत करें -  पैरो की उंगलियो को पॉइंट करने की कसरत में आपको केवल अपनी टांग उठानी है और अपने पैरों को तब तक घुमाना है जब तक इनकी उँगलियाँ नीचे की और पॉइंट नहीं करने लगे फिर आप थोड़ी देर का ब्रेक लेकर एक बार फिर दूसरे पैर के साथ इस क्रिया को दोहराएं। इस से आपके पैर की मसल्स में खिंचाव बनता है और एड़ी में दर्द  से  राहत मिलती है।
गेंद वाला व्यायाम -  इसके अलावा पै
र केे नीचे गेंद को घुमाकर भी व्यायाम कर सकते है। यह एक मसाज की तरह आपके लिए काम करता ह।ै आप किसी हलकी या टेनिस वाली गेंद लेकर इसे अपने पैर के नीचे तीन मिनट तक घुमाएँ और फिर अपने दूसरे पैर के साथ भी ऐसा ही करें। इस से आपको आपके पैर और एड़ी के दर्द  में बड़ी राहत मिलेगी।
शोर्ट फुलिंग करें - शोर्ट फुलिंग कसरत को  आप बड़ी आसानी से कर सकते है इसके लिए आपको केवल जूते खोलकर अपने पैरो की उँगलियों को नीचे की और खींचकर अपने पैर के ऑर्च को सिकोड़ना होता है इस से भी आपके पेरों की मसल्स को आराम मिलता है और आपके एड़ी में दर्द को इस से  आराम मिलता है।
एक्युप्रेशर की मदद लें - एक्युप्रेशर तकनीक का उपयोग करते हुए भी आप अपने पैरो में रक्तसंचार को सामान्य कर सकते है और एड़ी में दर्द  से आराम पा सकते है
गर्म पानी से सिकाई - गर्म पानी से अपने पैरों को सेंकने से भी राहत मिल सकती है।
 “काफ स्ट्रेचेज”  करें -  दीवार के सामने सीधे खड़े हो जाएँ और अपने हाथों को दीवार पर रखें और एडियो को फर्श पर रखें फिर धीरे धीरे आगे की ओर स्ट्रेच करें और फिर शुरुआती स्थिति में वापिस आ जाएँ।
आराम फरमाएं -किसी ऊँची जगह पर बैठकर आराम फरमाएं और कोई अपनी पसंद का गाना सुनते हुए अपने पैरो को लटका कर गोल गोल घुमाएँ और अपने पैरो की उंगलियो को अपनी तरफ खीचे और बाद में उसकी विपरीत दिशा में घुमाएँ।
चेहरे की चर्बी दूर करने और  डबल चिन से निजात के लिए आसान क्रियाएं
डा दीपिका शर्मा कहती हैं कुछ लोग चेहरे की चर्बी से बहुत परेशान रहते हैं। उनकी इस समस्या का निदान योगासनों से भी किया जा सकता है।  
लॉयन फेस एक्सरसाइज करने के लिए मुंह जितना खोल सकते हैं खोलें, सांस बाहर छोड़ें। आंखें जितनी खोल सकें खोलें। दो से तीन मिनट तक इसी अवस्था में रहें। इसके बाद सामान्य मुद्रा में आकर गहरी लंबी सांस लें। जीभ बाहर निकालें। गर्दन को नीचे झुकाते हुए जीभ को अपने सीने से लगाने की कोशिश करें।
च्वगिंम, लौंग, इलायची, सौंफ में से किसी भी एक चीज को मुंह में डालकर 5 से 10 मिनट तक चबाते रहें। यह बहुत अच्छा व्यायाम है।ऽ गर्दन को क्लॉकवाइज और फिर एंटी क्लॉकवाइज घुमाएं। इस एक्सरसाइज को करने से फैशियल फैट से छुटकारा मिलता है। इसे रोज 10 बार करें।
गहरी सांस लें और मुंह में इतनी हवा भरे, जैसे गुब्बारा फुलाने के लिए मुंह में हवा भरते हैं। पांच सेकंड तक इसी मुद्रा में रहें। अब पांच सेकंड तक दाएं गाल को दबाएं और फिर बाएं गाल को। फिर सामान्य मुद्रा में आ जाएं। इस प्रक्रिया को पांच से आठ बार दोहराएं।
अपने होठों को मछली के आकार का बनाते हुए दोनो दिशाओं पर अपने होठो को घुमायें और इस प्रक्रिया को 10 सेकेंड तक यूं ही रहने दें। इससे भी डबल चिन और चेहरे की चर्बी से निजात मिलती है।

बुधवार, 10 मई 2017

हर रिश्ते की नई कहानी

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 पति-पत्नी के बीच के रिश्ते सहमति और असहमति के बीच ही मजबूत होते हैं। लेकिन लड़ाई-झगड़ा, गृहक्लेश, मनमुटाव रिश्ते की नींव को कमजोर करता है।
हर रिश्ते की एक मर्यादा होती है। बात जब पति-पत्नी के रिश्ते की हो तो इस मर्यादा को जानना-समझना ज्यादा जरूरी है क्योंकि यह दोनों ही परिवार की धुरी है। इन दोनों की ट्यूनिंग जितनी अच्छी होगी परिवार की समस्याओं का हल भी उतनी ही जल्दी होगा। अगर आपकी सोच समझ मिलती हैं फिर आप कितनी भी कठनाईयों से क्यों न घिरे,ं बाहर जरूर निकल आएंगे। हम यहां कुछ ऐसे बिंदुओं को लेकर चर्चा कर रहे हैं जिसको लेकर आमतौर पर पति-पत्नी में झगड़ा या बहस होती है।
नहीं होगी लड़ाई
 बहुत से जोड़े यह कहते हैं कि हमारे बीच कभी लड़ाई नहीं होती। ऐसे जोड़ों से बातचीत करें या उनके परिवार के साथ समय बिताएं तब यह राज समझ में आता है कि आखिर इतना बढ़िया सामंजस्य कैसे संभव है। दरअसल ऐसे जोड़े अपने वैचारिक मतभेद को कभी इतना नहीं बढ़ाते कि वह झगड़े तक पहुंच जाए। अगर कोशिश समझने की और उस पर अमल करने की हो तो रिश्ते मजबूत भी होते हैं और परिवार में खुशहाली का माहौल भी बना रहता है। समय का अभाव- बहुत बार तकरार का मुख्य कारण ही होता है कि साथी एक दूसरे को समय नहीं देते। जब हम एक दूसरे के साथ समय ही नहीं बिताएंगे तो उसकी खुशी और उसकी तकलीफ को कैसे जान सकेंगे। समय बिताने का मतलब यह नहीं कि आप घंटों साथ रहें यह संभव भी नहीं है। लेकिन कुछ समय साथ अवश्य रहें। चाहे आपके वैवाहिक जीवन को कितना भी समय क्यों नहीं बीत गया है अपना साथ साह्चर्य हमेशा महसूस करें। यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना महत्वपूर्ण आपके लिए आफिस की मीटिंग। जैसे मीटिंग के समय आप फोन बंद कर देते हैं वैसे ही कुछ समय सिर्फ अपनी बातचीत के लिए निकालें। अन्यथा विवाद भी बढ़ेगा और दूरी भी।
रिश्तों को बराबर का सम्मान- रिश्तेदारी किसी भी पक्ष की हो उसे दोनों को निभाना है। लेन देन में एक निश्चित रकम तय हो जो सभी के लिए निभा पाना आसान हो। बहुत बार रिश्ते इसीलिए खराब हो जाते हैं क्योंकि या तो हम किसी से बहुत उम्मीद लगा लेते हैं या कभी दूसरा पक्ष हमसे बहुत उम्मीद लगा लेता है। लेन देन साथ साथ चलता है। अगर कोई हमें उपहार देता है तो हमें भी उसे उपहार देना चाहिए। उपहार देना एक शिष्टाचार है दिखावा नहीं। अधिक्तर रिश्ते दिखावे या उम्मीद के पूरा न हो पाने के कारण टूटते हैं। पति पत्नी में कलह का एक प्रमुख कारण यह भी होता है।
पैसा
शादी चाहे पारंपरिक हो या पसंद की कुछ ऐसे मुद्दे जरूर होते हैं जिसमें पति-पत्नी की राय अलग होती है। इसकी वजह यह है कि दोनों अलग अलग परिवेश से आते हैं और उनका पालनपोषण भी अलग ढंग से होता है।  यदि एक को पैसे की कमी रही हो और दूसरे ने कभी भी पैसे की कमी न देखी हो।  यदि ऐसे दो व्यक्ति एक साथ आते हैं  तो यह हो सकता है कि एक तो पैसे को सोच समझकर खर्च करे और दूसरा खुले हाथों से तो ऐसी स्थिति में दोनों का टकराव संभव है। ऐसे में समझदारी से काम लें। एक दूसरे को अपनी स्थिति समझाएं और मतभेद को आपसी बातचीत से सुलझाने का प्रयास करें।
मल्टी टासकिंग 
वह समय याद कीजिए जब आप दोनों ने बैठकर एक साथ वक्त गुजारा है। अधिकतर जब हम आपस में बैठकर बात करते हैं तो हमारा ध्यान कई चीजों में भटका रहता है। कभी टीवी, कभी मोबाईल तो कभी इंटरनेट।  हम बात करते हुए भी कभी फोन  देख रहे होते हैं तो कभी कुछ और काम कर रहे होते हैं।  यह बात करने का सही तरीका नहीं है। जब आप बात करें फोन का स्विच ऑफ करें और टीवी बंद करें। एक दूसरे की बात को ध्यान से सुनें तभी रास्ता निकलेंगा। चीजों को इग्नोर करने से समस्या बढ़ती है। अगर प्राब्लम है तो उसका सामना करें/हल निकालें।  अगर आप सर्फिंग करते करते बात करना चाहते हैं तो  इन सब बातों से आपका साथी खुद को उपे़िक्षत महसूस करता है।
यदि आपको भी  ऐसा ही महसूस होता है तो आप अपनी बात रख सकते हैं कि जब ऐसी को बात चल रही हो तो फोन या नेट को बंद रखा जाना चाहिए और यदि आपकी यह रिक्वेस्ट नहीं सुनी जा रही हो तो बेहतर है कि अपनी बात को किसी दूसरे वक्त के लिए टाल दिया जाए।
 सुख दुख, मान सम्मान, इच्छा अनिच्छा, लेन देन, आदर अनादर ये ऐसे शब्द हैं जिसमें आपकी जिंदगी छुपी है। इनको समझने की जरूरत है। अपने साथी से बहुत प्यार करें पर उसे स्पेस भी दें ताकि वह प्यार महसूस कर सकें। वह प्यार की गिरफ्त में न हो, प्यार में हो।

मंगलवार, 9 मई 2017

जानवर भी चाहते हैं मनपसंद खाना


 हम सोचते हैं जानवरों को कुछ भी खिला दिया जाए पर हकीकत यह है कि जानवरों की पसंद भी खाने-पीने को लेकर इंसान जैसी ही है।

आजकल बैलेंस्ड डाइट पर चर्चा इंसानो की तरह ही जानवरों को लेकर भी हो रही है। मार्किट में कई कंपनियं हैं जो सिर्फ जानवरों के लिए फूड प्रोडक्ट बेच रही हैं। यह कहा जाता है कि घर का खाना पालतू जानवरों के लिए बैलेंस्ड डाइट नहीं है इसलिए मार्किट में डिब्बाबंद फूड आइटम का ट्रेंड बन चुका है। ऐसा भोजन जानवरों के लिए कितना फायदेमंद होता है आइए जानते हैं -
पालतू जानवरों को घर में बना हुआ खाना या फिर जो बच जाता था वही दिया जाता था। डाक्टर कहते हैं कि कुत्ता मांसभक्षी होता है। जिन घरों  में मांसाहार नहीं बनता वहां के पालतू जानवर के खाने की रूचियां भी उसी परिवार के हिसाब से ढ़ल जाती हैं। इंसान की खाने-पीने की रूचियां अलग होती हैं।  कुत्तों को शाकाहारी डाइट पर रखना आसान है लेकिन बिल्लीयों के लिए यह सही नहीं है।  यदि बिल्लियों को शाकाहारी डाइट पर रखा जाए तो वह छः माह से ज्यादा जीवित नहीं रह पाएंगी।  डाक्टर कहते हैं कि घर में मिलने वाली कई चीजें कुत्तों के लिए अच्छी नहीं होती जैसेकि चॉकलेट, प्याज, लहसुन, अंगूर, किशमिश, दूध आदि।  लेकिन हम उनको यह खाने को देते हैं।
आज पेट्स के लिए कई तरह के ड्राई, वेट और ग्रेवी वाले फूड आइटम मार्किट में उपलब्ध हैं  उनमें आडनरी और प्रीमियम कैटेगरी है।  आर्डनरी फूड जानवरों के लिए खतरनाक है क्योंकि इसमें पॉलटरी वेस्ट मिला होता है जबकि प्रीमियम कैटेगरी में खाने वाली चीजों का इस्तेमाल होता है।  तीसरी कैटेगरी में थेरेपिटक फूड आइटम आते हैं जोकि लिवर, किडनी और त्वचा की बीमारियों के समय दी जाती हैं।  डाक्टर आगे बताते हैंे कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश में ऐसी कोई रेगुलेटरी बॉडी नहीं है जोकि जानवरों को दिए जाने वाले पैकिट फूड की जांच कर सके।
डाक्टर पेट पेरेंट्स को यह सलाह देते हैं कि यदि आप अपने पालतू जानवर को सिर्फ पैकेट वाला खाना ही देते हैं तो उसे साथ में खूब पानी पीने को भी जरूर दें।
पेट पेरेंट्स अपने पालतू जानवर के लिए अलग-अलग तरह के भोजन बनाने की विधि ऑनलाईन भी तलाश कर सकते हैं।

सोमवार, 8 मई 2017

करोड़ों लोगों के रोल मॉडल - निकोलस वुजिसिक

विश्वभर में कराेड़ाें अनुयायी

इंट्रो - हर इंसान कि जिंदगी में कठिनाइयां तो आती हैं और इंसान कमजोर पड़कर हार मान लेता है। ऐसे में यदि आप निकोलस वुजिसिक जैसी शख्सियत के बारे में पढ़ेंगें तो
आप जीवन से निराश होना छोड़ देंगे।
वुजसिक एक 34 वर्षीय सफल प्रेरक वक्ता हैं जिनके जन्म से ही हाथ-पैर नहीं हैं। कई डॉक्टर भी उनके इस विकार को सुधारने में असफल रहे। जन्म से ही ऐसा जीवन बिताना उनके लिए चुनौतियों भरा रहा। कई बार कुछ प्रश्न अक्सर उन्हें भी परेशान किया करते थे कि वे दूसरों से अलग क्यों हैं? क्या उनके जीवन का कोई उद्देश्य भी है या नहीं? लेकिन उन्होंने जीवन से हार नहीं मानी और हमेशा आम लोगों की तरह जिंदगी को जीने की कोशिश करते रहे।
19 साल की आयु में उन्होंने अपना पहला भाषण दिया। अब तक निक कई देशों की यात्रा कर चुके हैं और अपनी प्रेरणादायी बातों से लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। विश्वभर में आज निक के करोड़ों अनुयायी हैं, जो उन्हें देखकर प्रेरित होते हैं।
2007 में निक ने ऑस्ट्रेलिया से दक्षिण कैलिफोर्निया की लंबी यात्रा की, जहां वे इंटरनेशनल नॉन-प्रॉफिट मिनिस्ट्री, लाइफ विथआउट लिम्बस के अध्यक्ष बने। अपनी इस बहादुरी के लिए उन्होंने ऑस्ट्रेलियन यंग सिटीजन अवार्ड भी जीता।
आज वे एक लेखक, संगीतकार, कलाकार हैं और साथ ही फिशिंग, पेंटिंग और स्विमिंग का भी शौक रखते हैं। वे सामान्य व्यक्ति की ही तरह गोल्फ और फुटबॉल खेलते हैं, तैराकी और सर्फिंग करते हैं। लेकिन इससे भी ज्यादा प्रभावित करने वाली बात यह है कि उनका जीवन के प्रति नजरिया और खुशी दुनिया को जिंदगी जीने का तरीका सिखा रही है।
निक वुजिसिक जैसे लोग हर पल यह साबित करते रहते है कि असंभव कुछ भी नहीं है। जिंदगी द्वारा दी गई हर चीज को खुलेमन से स्वीकार करना चाहिए, चाहे वे मुश्किलें ही क्यों ना हों। मुश्किलें ही वो सीढ़ियां हैं जिन पर चढ़कर हमें जिंदगी में कामयाबी और खुशी मिलती है।



शनिवार, 29 अप्रैल 2017

जुड़वा बच्चे कभी जमाते हैं रंग, कभी करते हैं तंग


जुड़वा बच्चों में मां का प्यार बंट जाता है। वह पूरी तरह एक बच्चे को प्यार नहीं कर पाती यह बहुत परेषान करने वाली बात है जो हमेषा चुभती है।
 जुड़वा बच्चों को देखना बहुत अच्छा लगता है। एक जैसे कपड़े एक जैसा चेहरा अ©र एक जैसी शरारतें मन को मोह लेती हैं। लेकिन अगर उनकी मम्मी पापा से पूछें तो उनकी तकलीफों का पता चलता है। दो बच्चों को एक साथ संभालना आसान नहीं है। पत्रकार रश्मि उपाध्याय कहती हैं कि मैं दो जुड़वा बच्चों की मां हूं। मैंने महसूस किया है कि जुड़वा बच्चों में मां का प्यार बंट जाता है। वह पूरी तरह एक बच्चे को प्यार नहीं कर पाती यह बहुत परेशान करने वाली बात है जो हमेशा चुभती है। क्योंकि दोनों बच्चे जुड़वा है इसलिए उनक¢ साथ एक जैसा व्यवहार कर पाना कठिन होता है। ऐसे बच्चों में शेयर करने की भावना नहीं होती। जिससे प्राब्लम होती है। बच्चों को समझाना बहुत कठिन है। एक जैसा खाना पीना एक जैसे खिलौने..... सब कुछ एक जैसा कर पाना आसान नहीं क्योंकि मां तो एक है ना। बच्चे साथ साथ खेलते हैं साथ साथ बीमार भी पड़ते हैं।
बच्चों क¢ लिहाज से यह अच्छा होता है क्योंकि उनको अपना हम उम्र दोस्त तलाशना नहीं पड़ता। वह साथ साथ खेलते हैं, तो साथ साथ लड़ते हैं इस मौज मस्ती के बीच कुछ ऐसी बातें भी होती हैं जोकि दोनों में काॅमन भी होती हैं और अलग भी। ऐसे में इनको अपनी एकरूपता और अंतर को लेकर एक दूसरे के साथ तालमेल बैठाने में भी मुश्किल होती है। जुड़वा बच्चों में अगर लड़का लड़की की जोड़ी है तो एक उम्र क¢ बाद यह भी खुद को अक¢ला महसूस करते हैं।
जुड़वा साथी, दोस्ती भी तकरार भी
हमेशा दोनों के पास ही अपना एक साथी होता हैै।
हर दम दोनों साथ रहते हैं इससे वह सोशल होना सीख जाते हैं।
छोटी उम्र से ही वह चीजें शेयर करना सीख जाते हैं।
पेरेंट्स को अलग से वर्कआउट करने की जरूरत नहीं होती क्योंकि दो बच्चों को पालना में ही वर्कआउट हो जाता है।
जिन पेरेंट्स के जुडंवा बच्चे नहीं होते वह सोचते हैं कि आप सुपर हीरो है।
आप बच्चों की एक्सपर्ट एडवाइजर भी बन जाती हैं क्योंकि आपने दो दो बच्चे संभाले हैं वह भी एक ही उम्र के जोकि एक साथ पैदा तो हुए लेकिन हैं एक दूसरे से बिल्कुल अलग।
जब आपके जुडंवा बच्चे होते हैं तो आप इस बात को समझ सकते हैं कि व्यक्ति का हर समय परफेक्ट होना बिल्कुल असंभव है।  इससे आप स्ट्रेस को झेलना सीख जाते हैं।
यह हो सकता है कि आपके दोनों बच्चों की रूचियां भी एक जैसी हों तो वह एक दूसरे को मोटीवेट भी करते हैं।
यदि आपको दो बच्चे ही चाहिएं तो एक बार में ही काम हो जाता है। लेकिन यदि आपको इसके बाद एक और होता है तो आपको उसे हैंडिल करना आसान हो जाता है क्योंकि आप पहले ही दो को एक साथ हैंडिल कर चुके होते हैं।
थोड़ा बड़े होने पर बच्चे एक दूसरे के साथ ही खेलने लगते हैं तो वह आपको कम तंग करते हैं और आप अपने घर के काम निबटा सकती हैं।  उन दोनों को एक साथ खेलता और ब़ढ़ता देखने पर आपको बहुत खुशी मिलेगी।  हर दिन आपको एक नई चीज बच्चों के बारे में जानने को मिलेगी।
परेशानियां जुड़वा बच्चों की
अक्सर  जुड़वां बच्चों को पेरेंट्स एक जैसी पोशाक पहनाते हैं।  देखने वाले के लिए तो यह बहुत कूल है लेकिन इससे बहुत ही कन्फयूजन होता है और इनके लिए परेशान कर देने वाला।  ऐसे में इन दोनों को ही आइडेंडिटी क्राइसिस का सामना करना पड़ता है। एक को अधिकतर दूसरे के नाम से पुकारा जाता है।  इससे इन दोनों में एक दूसरे से लड़ाई भी हो सकती हैै।
दोनों बच्चे हमउम्र होते हैं साथ ही स्कूल में पढ़ने जाते हैं तो यदि दोनों में से एक पढ़ने में तेज है और एक कमजोर निकल जाता है तो कमजोर बच्चे का दूसरे जुंडवा से तुलना करने लगते हैं और उस पर दबाव डालते हैं कि वह भी दूसरे जुंडवा की तरह ही परर्फाम करे।
हर बच्चा अलग होता है, उसका अलग व्यक्तित्व होता है, रूचि और अरूचि अलग अलग होती है फिर चाहे बच्चे जुडंवा ही क्यांे न हों।  यदि दोनों में से एक बच्चा भी थोड़ा कमजोर हो तो दूसरे के साथ तुलनात्मक रवैया उसको परेशान कर देता है और समय के साथ साथ यह दूरी बढ़ती जाती है।
हालांकि दोनों जुड़वां एक जैसे दिखते है लेकिन दोनों जिंदगी में अलग अलग चीज ही चुनते हैं, इससे भी दोनों के बीच तुलना शुरू हो जाती है।
काॅम्पीटीशन उम्र के साथ खत्म होता जाता है लेकिन दोनों के बीच में बड़े होने पर ईगो क्लैश होने लगता है यदि एक दूसरे से ज्यादा सफल हो जाता है।  यह दोनों ही अंदरूनी क्लेश से गुजरते हैं जिसे कि सिर्फ वह ही समझ सकते हैं  जिसके कारण दो जुड़ंवा बच्चे जोकि छोटे होते एक अच्छे सिबलिंग का जोड़ा लगते थे वह ही एक दूसरे की तरफ मदद का हाथ भी नहीं  बढ़ाना चाहते।

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

पेंटिंग के नए अंदाज



 प्रकृति की खूबसूरती को दिखाने के लिए रंग और ब्रष के साथ-साथ अब जूट, मनके, पत्थर, सीपी, सूखे पत्तों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

कला अपने एक रंग और ढंग मंे नहीं रहती। हर बार उसे व्यक्त करने का अंदाज एकदम अलग होता है। कभी लैंडस्केप बनाने के लिए कलाकार प्रकृति के बीच में जाकर प्रकृति के रंग चुनता था।  अब रंगों के साथ-साथ वह जूट, फाइबर, खुशबू, पत्ती और पत्थर भी चुनता है।
मूलतः न्यूयार्क में रहने वाली आर्टिस्ट उरसूला क्लार्क अपने स्पेशल आर्टवर्क की प्रर्दशनी के लिए भारत आई हुई थीं।  उरसुला का काम लोगों को प्रकृति की खूबसूरती से रूबरू कराता है और साथ ही आश्चर्यचकित भी करता है।
उरसुला क्लार्क ने ‘दी पार्क नेचर इन बैलेंस‘ में प्रकृति की खूबसूरती का चित्रण अपने आसपास की चीजों और दृश्यों को इक्ट्ठा करके किया है।  साईट वर्क एक नवीन आर्टिस्टिक व्यू को दर्शाता है जिसमें किसी तरह का संकोच या दिखावा नहीं है।  यह कहना गलत होगा कि आर्ट सिर्फ म्यूजियम और गैलरी में ही प्रदर्शित किया सकता है। आज हम कला को म्यूजियम और गैलरी से बाहर निकालकर ओपन एरिया में ले आए हैं। इसे साईट आर्ट के नाम से जाना जाता है। साईट आर्ट  में  जिस जगह पर आर्ट को लगाना होता है उसको ध्यान में रखते हुए  आर्टिस्ट आर्टवर्क बनाता है।  इस आर्ट को बनाने में साधारण सी चीजों का जैसे कि जूट, नैचुरल फाइबर, ड्राईड मौसिस  और पत्थर का इस्तेमाल होता है।  यह सभी चीजें आॅरगेनिक भी होती हैं।  इसमें टेक्सचर, रंग और खुशबू का खास ख्याल रखा जाता हैं।  इस आर्ट में इसी बात का ध्यान रखा जाता है कि इसकी प्राकृतिक सुंदरता  बरकरार रहे।
पहली साईट स्पेसिफिक आर्ट एक्अीविटी कैंप में आंध्र यूनिवर्सिटी और विश्वभारती यूनिवर्सिटी के फाईन आर्ट्स के छात्रों ने हिस्सा लिया।
उरसुला क्लार्क का काम न्यूयार्क की कई गैलरीज में प्रदर्शित किया जा चुका है।   इसके अलावा उरसूला का आर्टवर्क ‘दी पार्क होटल‘ के चेसबोर्ड लाॅन एरिया में रखा गया है।  इसके अलावा आर्टिस्टिक डिस्प्ले के लिए होटल में ‘हस्ताकार‘ नाम से एक विशेष जगह बनाई गई है जहां पर कि नए आर्ट वर्क प्रदर्शित किए जाएंगंे।  सौम्या बेलुबी के अनुसार यहां पर कई  आर्टिस्ट का काम देखा जा सकता है जैसे कि रवि कट्टूकूरी, सिहांचलम डौलू, संध्या चैधरी, श्रीनिवास पदाकंदला, शर्माला कारी, तिरूपति राव, मोका सतीशकुमार, नरेश मोहंत।  हाल ही में सईदा अली का काम भी शामिल किया है जोकि रिवर्स पेंटिग करने में माहिर है।  इसके अलावा रश्मि दिवेदी के दो आर्ट वर्क, डी शंकर का ऐग शेल आर्टवर्क, रवि कट्टाकुरी के 10 वर्क लगाए गए हैं।

गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

केले से आएगी बालों में चमक


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 त्वचा और बालों में रूखापन आना आम समस्या है।  रूखेपन की वजह से डैंड्रफ, एग्जीमा आदि होने की संभावना होती है जिसकी वजह से बाल झड़ सकते हैं।  
जब सुंदरता की बात आती है तो निगाह चेहरे के साथ-साथ हमारे बालों की तरफ भी जाती है। हमारे बाल, हमारी त्वचा का भी महत्व है। यदि यह रूखे होते हैं तो हमारे बाल और हमारी त्वचा दोनों ही कांतिहीन हो जाते हैं। बालों की चमक को बनाए रखने के लिए हमें कुछ सावधानियों और कुछ उपाय अपनाने की जरूरत होती है।
बालों के लिए ब्लो ड्रायर  का इस्तेमाल कम से कम करें।
यदि ब्लो ड्रायर का इस्तेमाल करने वाले हों तो कंडीशनर या हीट प्रोटेक्टिंग प्रोडक्ट का पहले इस्तेमाल करें।
जिन चीजों में अल्कोहल का कंटेट ज्यादा हो उन चीजों का इस्तेमाल न करें।
डैंड्रफ से बचाव के लिए स्कैल्प पर शिया, कोकोनट, आॅलिव या जोजोबा आॅयल की कुछ बूंदे अपनी हथेलियों पर लेकर बालों में लगा लें।   इसके अलावा आप सप्ताह में एक बार एंटी डैंड्रफ शैंपू भी लगा सकते हैं।
सर्दियों में  डैंड्रफ से बचाव के लिए डीप कंडीशनिंग हेयर स्पा ट्रीटमेंट लें।
शैंपू से पहले हाॅट आॅयल मसाज  नियमित रूप से करें।
डैमेज हुए बालों को अच्छी स्थिति में लाने के लिए शिया बटर या आॅरगन आॅयल प्रभावशाली है ।  जिस शैंपू और कंडीशनर में शिया बटर और आॅरगन आॅयल हो उनका इस्तेमाल सर्दियांे में जरूर करें।
घरेलू नुस्खों में केेले के अंदर दो चम्मच हनी और कुछ बूंदे आॅरगन आॅयल की मिलाकर पेस्ट बना लें और मास्क  की तरह बालों में लगाकर छोड़ दें और 30-40 मिनट बाद बालों को धो लें इससे बालों में चमक  आ जाएगी।


                                       खूबसूरती के लिए आजमाएं केला

केले में विटामिन सी, ए, पोटैशियम, कैल्शियम, फास्फोरस व कार्बोहाइड्रेट भरपूर मात्रा में होता है जो त्वचा के लिए फायदेमंद होता है।
ल्गातार कलरिंग और केमिकल्स से खराब हुए बालों को केले से ठीक किया जा सकता है।
फटी एडियों की समस्या के लिए भी केला फायदेमंद है। केले और नारियल के तेल को मिलाकर पैक बनाकर लगा दें।
मस्से होने पर केले के छिलके को उस जगह पर रगड़ें और रात भर के लिए छोड़ दें। दुबारा उस जगह पर मस्सा नहीं होगा।
दांत चमकाने के लिए केले के छिलके का प्रयोग करें।  ब्रश करने के बाद केले के छिलके को हर दिन दांत में रगड़ने से चमक आ जाती है।




Special Post

मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...