मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018

इंटरनेट में जिंदगी नहीं, माैत खाेजते हैं किशाेर


साइबर बुलिंग इस समय युवाओं में आत्महत्या का प्रमुख कारण है। साइबर बुलिंग इंटरनेट, मैसेज, एप्स, सोशल मीडिया, फोरम्स और गेम्स आदि के सहारे की जाती है। इस तरह की बुलिंग में कुछ लोग फर्जी आईडी या एप्लिकेशन बनाकर लोगों को अपने जाल में फंसाते हैं और फिर उन्हें उनकी प्राइवेट सूचनाओं या फोटो-वीडियो के माध्यम से ब्लैक मेल करते हैं। युवा इन मामलों में जल्दी फंसते हैं क्योंकि उनमें विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है या कई बार उन्हें सबकुछ जल्दी पा लेने की चाहत होती है। इन बातों से बच्चों को दूर रखना जरूरी है और बच्चों के इंटरनेट इस्तेमाल, उनके मोबाइल में इंस्टॉल एप्स के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी रखना जरूरी। अगर ये मुमकिन नहीं है, तो कम से कम बच्चों के व्यवहार परिवर्तन पर तो नजर जरूर रखें
अश्लील तस्वीरें और वीडियोज
इंटरनेट जितनी तेजी से लोगों की खासकर युवाओं की जिंदगी का हिस्सा बना है, उतनी ही तेजी से ये उनकी जिंदगियां छीन भी रहा है। सोशल मीडिया, डेटिंग साइट्स, वेबसाइट्स और प्राइवेट ग्रुप्स में चैटिंग करते समय लोग कई बार इतने घुल-मिल जाते हैं कि अपनी निजी जानकारियां और तस्वीरें दूसरों को देने में संकोच नहीं करते हैं। ज्यादातर मामलों में ये तस्वीरें और वीडियोज किसी गलत तरीके से वायरल कर दी जाती हैं। इसके बाद बेइज्जती और बदनामी के डर से या डिप्रेशन के कारण युवा लड़के-लड़कियां आत्महत्या का रास्ता चुन लेते हैं। इसलिए बच्चों को शुरू से ही ये बात समझाएं कि वो इंटरनेट पर ऐसी कोई भी जानकारी किसी से न शेयर करें, जिससे उन्हें बाद में परेशानी हो।
बच्चों के साथ समय बिताना जरूरीटीनएज या उससे छोटे बच्चे आमतौर पर प्यार और सम्मान की चाहत रखते हैं। आजकल की बिजी लाइफ में जब उन्हें ये प्यार और सम्मान घर-परिवार या समाज से नहीं मिलता है, तो वो इंटरनेट पर इसे ढूंढने की कोशिश करते हैं। अपना खाली समय किसी क्रिएटिव काम की बजाय आजकल ज्यादातर टीन एज बच्चे इंटरनेट पर बेवजह की चीजें देखने-पढ़ने में बिताते हैं। इसलिए ये जरूरी है कि मां-बाप बच्चों को समय दें, उनसे बात करें और उनकी परेशानियों में उनके साथ खड़े रहें। अकेलापन बच्चों को धीरे-धीरे डिप्रेशन का शिकार बनाता है। बच्चे जब किसी से अपनी बात नहीं कह पाते हैं, तो आत्महत्या का रास्ता चुन लेते हैंरियल और वर्चुअल दुनिया में अंतर बताएंबच्चों के लिए छोटी उम्र में ये समझना कठिन होता है कि रियल और वर्चुअल वर्ल्ड में अंतर होता है। टीन एज बच्चे इंटरनेट पर सोशल मीडिया साइट्स और डेटिंग साइट्स पर दिखने वाले हर व्यक्ति को सच मान लेते हैं और उनपर विश्वास कर लेते हैं। इंटरनेट पर प्यार में धोखा और रिश्तों में दरार भी आजकल आत्महत्या का कारण बन रहा है। ऐसे में आप बच्चों को शुरुआत से ही ये बताएं कि उन्हें उन लोगों पर विश्वास करना चाहिए, जो उनके आस-पास हैं, न कि उन लोगों पर जिनको वे जानते नहीं हैं।
बच्चों के व्यवहार पर नजर रखेंआत्महत्या से पहले व्यक्ति के व्यवहार में कई तरह के परिवर्तन आते हैं। आमतौर पर डिप्रेशन, तनाव या परेशान होने पर किसी दूसरे व्यक्ति से अपने दिल की बात कह देने से तनाव कम होता है। इसलिए बेहतर होगा कि जब आप बच्चों के व्यवहार में थोड़ा परिवर्तन देखें, तो उनसे बात करें और उनकी परेशानी दूर करने की कोशिश करें। ऐसे समय में अगर बच्चे ने कोई बड़ी गल्ती भी की है, तो उसे मारें या डांटें नहीं, बल्कि प्यार से समझाएं और समस्या को सुलझाने की कोशिश करें।
साभार- आेनलीमाईहेल्थडॉटक़ॉम

सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

हर्ब्स फॉर हैल्थ-़डा.दीपिका शर्मा

भारत में हजाराें वर्षाें से स्वास्थ्य की रक्षा के लिए जड़ी बूटियाें का प्रयाेग हाेता रहा है। आयुर्वेद विश्व की सबसे पुरानी चिकित्सापद्धति है जिससे सिर्फ राेगाें का उपचार ही नहीं हाेता उनसे बचाव और दीर्घायु के लिए भी जडी बूटियाें का प्रयाेग किया जाता है। एलाेपेथी और हाेम्याेपेथी की बहुत सी दवाएं भी वनस्पतियाें से बनाई जाती है। तुलसी, अश्वगंधा, आंवला, अशाेक और मुलहठी एेसी ही जड़ी बूटियाें के नाम है।
तुलसी काे सर्वआेषधि माना जाता है।अल्सर और मुंह के अन्य संक्रमण में तुलसी की पत्तियां फायदेमंद साबित होती हैं। रोजाना तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है। दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है। नैचुरोपैथों द्वारा ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में तुलसी के पत्तों को सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है।
 सिर के दर्द में तुलसी एक बढि़या दवा के तौर पर काम करती है। तुलसी का काढ़ा पीने से सिर के दर्द में आराम मिलता है। आंखों की जलन में तुलसी का अर्क बहुत कारगर साबित होता है। रात में रोजाना श्यामा तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखों में डालना चाहिए।
श्वास संबंधी समस्याओं का उपचार करने में तुलसी खासी उपयोगी साबित होती है। शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है। नमक, लौंग और तुलसी के पत्तों से बनाया गया काढ़ा इंफ्लुएंजा (एक तरह का बुखार) में फौरन राहत देता है।
तुलसी गुर्दे को मजबूत बनाती है। यदि किसी के गुर्दे में पथरी हो गई हो तो उसे शहद में मिलाकर तुलसी के अर्क का नियमित सेवन करना चाहिए। छह महीने में फर्क दिखेगा।
तुलसी खून में कोलेस्ट्राल के स्तर को घटाती है। ऐसे में हृदय रोगियों के लिए यह खासी कारगर साबित होती है।
तुलसी की पत्तियों में तनाव काे कम करनेे के गुण भी पाए जाते हैं। हाल में हुए शोधों से पता चला है कि तुलसी तनाव से बचाती है।
अश्वगंधा- यह एक टानिक है जाे असमय बुढ़ापा नहीं आने देता है। बच्चाें के सूखा राेग में यह विशेष लाभदायक है। इसका पहला फायदा तो ज्यादातर लोग जानते हैं कि यह तनाव को कम करने में बेहद मददगार औषधि है। यह मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ाने में भी काफी मददगार है और दिमाग को ठंडा रखने में भी।
अगर आपको नींद न आने की समस्या है और आपकी रात सिर्फ करवटें बदलने में ही निकल जाती है, तो अश्वगंधा आपके लिए एक प्रभावशाली दवा की तरह काम करता है और आप चैन की नींद सो पाते हैं।
 अगर आप पित्त प्रकृति के व्यक्ति हैं और आपके बाल असमय सफेद होने के साथ ही झड़ने भी लगे हैं, तो आपको अश्वगंधा का सेवन जरूर करना चाहिए। इससे आपकी समस्या का जरूर समाधान हो जाएगा।
 यह बड़ी उम्र के हिसाब से भी बालों में पोषण का एक बेहतरीन जरिया है जो जड़ों तक पोषण देकर बालों को सफेद होने से बचाता है और उन्हें स्वस्थ बनाए रखता है।
 बालों की जड़ों व स्कैल्प संबंधी समस्याओं में भी यह काफी फायदेमंद है। जड़ों को मजबूती देने के साथ ही यह अन्य समस्याओं जैसे डैंड्रफ आदि से भी बचाता है।

आंवला-आंवले का उपयोग आंखाें की रोशनी को मजबूत करता है। आंखों में खुजली, व जलन से भी राहत देता है।
प्रतिदन एक या दो आंवलों चबाने से दांतों में कीडे लगने की संभावना कम हो जाती है , दांत मजबूत रहते हैं व दांतों का पीलापन भी काफी हद तक कम रहता है
आंवले में विटामिन सी व कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए आंवले के उपयोग से हड्डियां मजबूत रहती हैं।
आंवले के रस को मिश्री के साथ खाने से पाईल्स यानी बवासीर के रोग में लाभ मिलता है।
आंवले का रस पीने से शरीर की पाचन प्रणाली दुरुस्त रहती है। आंवले का रस कब्ज, बदहजमी व खट्टे डकार कम करने में भी अति लाभकारी है।
अशाेक- इसकी छाल रक्त प्रदर में, पेशाब रुकने में लाभ पहुंचाती है। गर्भाशय संबंधी सभी राेगाें में इसके सेवन से लाभ मिलता है। मासिक धर्म की अनियमितता, अतिरिक्त साव्र के लिए अशाेकारिष्ट एक श्रेष्ठ औषधि है। यह तनाव को कम करने में बेहद मददगार औषधि है। यह मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ाने में भी काफी मददगार है और दिमाग को ठंडा रखने में भी।
मुलहठी-आयुर्वेदिक औषधि गुणों से भरपूर मुलहठी का प्रयाेग बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता है। स्वाद में मीठी मुलेठी कैल्शियम, ग्लिसराइजिक एसिड, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटीबायोटिक, प्रोटीन और वसा के गुणों से भरपूर होती है। इसका इस्तेमाल श्वसन और पाचन क्रिया के रोग की आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा सर्दि में होने वाली समस्याएं जैसे सर्दी-खांसी, जुकाम, कफ, गले और यूरिन इंफैक्शन की प्रॉब्लम को भी यह जड़ से खत्म कर देता है। इसका सेवन कैंसर जैसी कई बीमारियों को भी दूर करने में मदद करता है। इसका सेवन कफ, सर्दी-खांसी और जुकाम समस्या को दूर करता है।
गले की सूजन, इंफैक्शन, खराश, मुंह में छाले और गला बैठने पर मुलेठी का एक टुकड़ा लेकर उसे चूसे। इससे आपकी सभी प्रॉब्लम दूर हो जाएगी।
यूरिन इंफैक्शन, जलन, और बार-बार यूरिन आने की समस्या  को दूर करने के लिए मुलेठी सबसे अच्छा उपाय है।
डा. दीपिका शर्मा अपाेलाे  फेमिली क्लीनिक नौएडा, उत्तरप्रदेश, सेक्टर 110 में  फेमिली फिजिशियन हैं।
 सेहत से जुड़े सवाल आप हमारे मैं अपराजिता के फेसबुक पेज में कर सकते हैं। अपनी सेहत संबंधी समस्या के लिए आप हमें मेल भी कर सकते हैं-
.mainaparajita@gmail.com

रविवार, 30 सितंबर 2018

लघुकथाएं- पवित्रा अग्रवाल



समर्थ

विपिन के लौटते ही माँ ने रवि से कहा --"रवि तू तो कह रहा था कि तेरा दोस्त विपिन बहुत पैसे वाले घर का लड़का है,उसने कितनी घिसी हुई जीन्स पहन रखी थी,उसमें छेद भी हो रहा था ।''
"हाँ माँ यह सच है वाकई वह बहुत पैसे वाले घर का लड़का है।उसके घर में दो एयर कंडीशन्ड कारें हैं,घर में ए.सी. लगे हैं।इस सब के बावजूद उसे रहीसी दिखाने का शौक नहीं है ,वह बहुत सिम्पिल लड़का है, घमंड तो उस में नाम मात्र को नहीं है।''
"तू भी कुछ सीख उस से ,तेरे तो कितने नखरे हैं।तेरी स्कूल यूनिर्फोम की पेंट कुछ ऊँची हो गई थी मैं ने इतनी मेहनत करके उसे खोल कर लम्बा किया फिर भी तूने उसे नहीं पहना और मुझे दूसरे खर्चो में कटौती कर के नई पेन्ट खरीदनी पड़ी ।''
"अरे माँ वह पैसे वाले घर का लड़का है,उसकी घिसी जीन्स को फैशन या उसकी सादगी कहा जाएगा और हम पहन लें तो उसे हमारी आर्थिक कमजोरी समझा जाएगा।''
'पर बेटा लोग कुछ भी सोचें .हम को अपनी हैसियत और जरुरत के हिसाब से खर्च करना चाहिये '



धमकी 


अस्पताल में कुछ लोगों द्वारा डाक्टर को पीटते देख कर मरीजों के रिश्तेदार परेशान हो गए---
एक व्यक्ति चिल्लाया --"अरे आप डाक्टर को क्यों मार रहे हैं ?'
"मारें नहीं तो क्या करें ..इनकी आरती उतारें ? जाने कहाँ कहाँ से आकर डाक्टर बन गए हैं ,इन्हों ने हमारे इकलौते बेटे की जान ले ली ।'
दूसरे व्यक्ति ने तर्क दिया --"अस्पताल में आने वाला हर मरीज ठीक हो कर ही तो घर नहीं जाता ?'
एक अन्य ने हॉ में हाँ मिलाई --"बिल्कुल,.. कुछ ठीक हो जाते हैं तो कुछ की मौत भी हो जाती है ।'
"आप का बेटा तो चला गया... आप इस तरह मार-पीट करेंगे तो दूसरे बहुत से मरीज बेमौत मारे जाएगे ।'
"वो कैसे ?'
"आप मारपीट और तोड़-फोड़ करेंगे तो सब डाक्टर्स हड़ताल पर चले जाएगे फिर दूसरे मरीजों का क्या होगा ?'
"आप लोग कौन हैं ?'
"हम यहाँ पर भर्ती मरीजों के रिश्तेदार हैं ..दूर हटिए हम आप को डाक्टर से मार-पीट नहीं करने देंगे.. ।'
"हाँ भैया यदि आपका बेटा डाक्टर की गल्ती से मरा है तो आप कम्पलेन्ट कीजिए।पर....
अपने को अकेला पड़ते देख कर वह झुंझला कर बोला ---- "आप मुझे जानते नहीं ,मैं एसे चुप नहीं बैठूँगा, अभी भैया जी को ले कर आता हूँ ।'
साभार लघुकथाब्लागस्पाॅटडाॅटकाॅम

शनिवार, 29 सितंबर 2018

23 साल बाद हुई मुलाकात-- डा. अनुजा भट्ट

शनिवार का दिन था. हम भाेर में ही उठ गए थे. सुबह सात बस से देहरादून जाना था। मेरे साथ मेरी बेटी और मेरे पति भी थे। रास्ते में कहीं कहीं बारिश हाे रही थी । बस ट्रेन या फिर बालकनी में खड़े हाेकर बारिश काे देखना बहुत प्रीतिकर हाेता है। एेसा लगता है बारिश में ही प्रकृति अपना श्रृंगार करती है। फूल ज्यादा स्थायी भाव से मुस्कुराते हैं। प्रकृति के नयनाभिराम रंग सम्माेहित करते हैं। सम्माेहन, प्यार, स्नेह और आत्मीयता जैसे शब्दाें के अर्थ भले ही अलग अलग हाे पर भाव एक ही है वह है अनुभूति.. जाे हम हर पल महसूस करते है। रास्ते में  मेरी बेटी माेबाइल के लिए जिद करती रही और  मैं समझाती रही  देखाे और महसूस कराे प्रकृति के रंगाें काे.देखाे हरा रंग ही कितनी विविधता के साथ है  माैजूद है। फूलाें की खुश्बू काे महसूस कराे।  पेड़ाें की आकृतियां देखाें उनका नर्तन देखाे और सुनाे कल कल बहती नदी का गान। पर्वताें के बीच नदी का अहसास , पहाड़ाें की बीच पानी की झलझल, चमकती रेत, कभी धूप कभी बारिश के बीच एक सधी हुई रेखा के साथ खड़े पेड़ ताे कहीं हवा में झूमते पेड़ कहीं गीत कहीं संगीत ताे कहीं अपनी गति लय और ताल से ंमंत्रमुग्ध करती प्रकृति।
कहीं कहीं रास्ता बहुत खराब था। बस उछल रही थी। टेड़े मेड़े रास्ते , खराब सड़क और बारिश के कारण एक डर भी था। लेकिन पूरे रास्ते भर मैंने एक चीज गाैर की की वह थी साफ सफाई। दिल्ली से लेकर देहरादून के रास्ते में मुझे गंदगी के ढेर नहीं दिखाई दिए। स्टेशन भी साफ सुथरे। सभी तरह की सुविधाआें से लबरेज।  बस अपनी धीमी गति से चल रही थी । पहाड़ाें में बस वैसे भी धीमी गति से ही चलती है। रास्ते में बस एक जगह थाेड़ी देर के लिए रुकी। अधिकांश लाेग अपने साथ ही भाेजन लेकर आए थे। उस रेस्तरां में काेई भी पहाड़ी खाना नहीं था। दक्षिण भारतीय खाना था।
 भारत की यही विविधता है कि जहां हम पारंपरिक भाेजन की तलाश करते हैं वहां हमें दक्षिण भारत, पंजाब या फिर चाइनीज खाना मिलता है। इसकी वजह यह भी है कि यह एक तरह से फास्ट फूड की तरह हाेता है। सवारी के पास इतना समय नहीं हाेता..
हम 3 बजे के आसपास देहरादून पहुंच गए। स्टेशन से पहले ही हम ग्राफिक ईरा यूनिवर्सटी के चाैक पर उतर गए। रास्ते में एक बच्ची ने हमें रास्ता बताने में मदद की। वह बेडमिंटन के टूर्नामेंट की तैयारी के लिए जा रही थी। हम लाेग शिल्पम विला खाेज रहे थे।  आसपास बहुत सारे हास्टिल थे। जाहिर है  बाहर गेट पर बच्चाें का जमावड़ा भी था। पूरी गली में बच्चे ही थे। कहीं चावमीन खाते हुए ताे कहीं यूं ही... तभी मेरी नजर  गेट पर लिखे शिल्पम विला पर पड़ी। बाहर खूबसूरत फूलाें लगे गमलाें ने बता दिया आप सही जगह पहुंचे है।
कालबेल बजायी ताे मैडम ही बाहर आईं। जी हां हमारी वार्डन उमा तिवारी पालनी मैडम। जी हां वह यहीं नाम लिखती हैं। इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह कितनी सशक्त महिला हैं। वह हमारे लिए चाय नाश्ते का प्रबंध करने लगी। लेकिन मेरी निगाहें ताे अपने अंकल काे देखने के लिए बेताब थी। हास्टिल में सब उनकाे सर कहते थे लेकिन मेरे लिए उनके लिए अंकल संबाेधन ही निकला.. मैंंने उनकाे हमेशा काम करते हुए ही देखा। वह पेड़पाैधाें में रचबस जाते है। एक एक पत्ते काे साफ करना, पौधाें की कटाई छटाई से लेकर उनका पालन पाेषण तक. नामचीन वैज्ञानिक डा. एल. एम. एस पालनी काे मैंने बहुत सहज और सरलता के साथ जीवन जीते देखा है। ईमानदारी की मिसाल नहीं। छाेटे और बड़े का काेई भेद नहीं। अपनी भाषा के प्रति दीवानगी। हिंदी और कुमाऊनी दाेनाें में सिद्धहस्त. बाेलने  में ही नहीं लिखने में भी,, संगीत प्रेमी... हमारी ह़ॉस्टिल पार्टी हमारे साथ डांस करते। दिसंबर में हास्टिल खाली हाे जाता ।रह जाते हम शाेध छात्राएं। तब हम सब कैंप फायर करते. उस कैंपफायर में पहाड़ी गीत सुनाते  अंकल।  जगजीत सिंह की गजलें गाती मैडम..     मैं यूं ही उनकी फैन नहीं हूं.. बहुत खास है यह परिवार मेरे लिए..
चाय नाश्ता करने के दाैरान मैडम ने बताया कैसे अचानक उनकाे स्ट्राेक पड़ा और उनके शरीर का एक हिस्से काे पक्षाधात हाे गया। दिमाग का 70 प्रतिशत हिस्सा  निष्क्रिय है। कुछ याद है कुछ भूल गए हैं। कभी सहज हैं कभी आक्रामक.. वह आपकाे स्वीकार भी सकते हैं और दुत्कार भी सकते हैं। मैडम ने यह बातें शायद इसलिए कहीं हाेगी कि अगर उन्हाेंने नजर अंदाज कर दिया ताे मुझे बुरा न लग जाए..
उनके कमरे से 60 के दशक के पुराने गानाें की आवाज आ रही है.. बहुत धीरे धीरे पर बहुत सुरीली..  प्रकृति के बीच उस खूबसूरत शिल्पम विला  में एक याेगी बिस्तर  में सिमटे हुए से लेटे हैं।  मैं मेरी बेटी और पति धीमें से जाते हैं। मैं  23 साल बाद उनके ठीक सामने खड़ी हूं वह  मुझे देख रहे हैं एकटक.  मैडम कहती हैं, पहचाना. उनकी आंखाें में चश्मा लगाया जाता है। वह कहते हैं यह ताे हमारी. फिर दुहराते हैं यह ताे हमारी. तीसरी बार कहते हैं यह ताे हमारी अनुजा है...
 भाव विह्वल हाे जाती हूं मैं और भावविभाेर भी।
जल्दी ठीक हाे जाइए अंकल अभी आपसे बहुत सारी बाते करनी हैं.. बहुत सारी..

शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

हेयर कलर करवाती हैं क्या....


युवाओं में बालों को रंगने का चलन तेजी से बढ़ा है, लेकिन कई बार आपका यह शौक चिंता का विषय भी बन सकता है। अमेरिका और यूरोप में बालों में कलर कराने वाले लोगों में कैंसर के लक्षण पाए गए, जिससे यह साफ हुआ कि बालों को रंगना कैंसर का कारण भी बन सकता है। हेयर डाई को कई रसायनों से मिलाकर तैयार किया जाता है, इन रसायनों के संपर्क में आने से कैंसर का खतरा बढ़ता है। एक अध्‍ययन से यह भी सामने आया कि जिन महिलाओं ने 1980 से पहले हेयर डाई का इस्‍तेमाल शुरू किया, उन्‍हें हेयर डाई न लगाने वाली महिलाओं के मुकाबले 30 फीसदी कैंसर होने का खतरा ज्‍यादा था।

कलर करने के लिए आपको यह पता होना चाहिए कि बालों में कैसा कलर करें, मसलन कौन सा रंग आप पर सूट करेगा या कौन सा रंग आपके बालों के लिए सही रहेगा आदि। इस लेख के जरिए हम आपको दे रहे हैं कुछ ऐसी जानकारी जिससे आप बालों में कलरिंग के नुकसान के बारे में जान सकते हैं।
बालों में कलरिंग के नुकसान
हेयर डाई से ल्‍युकेमिया या लिम्‍फोमा होने का खतरा बढ़ता है। साथ ही इसे मूत्राशय कैंसर के खतरे से जोड़ कर भी देखा गया है।
डॉक्‍टरों के मुताबिक गर्भवती महिलाओं का बिना चिकित्‍सीय सलाह के हेयर डाई का इस्‍तेमाल नहीं करना चाहिए। हेयर कलर आपकी सेहत के साथ ही नवजात को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
परमानेंट हेयर कलर कराने के बाद कई बार लोगों में त्‍वचा संबंधी परेशानियों को देखा गया है। इसलिए आप स्‍थायी हेयर कलर की बजाय टेम्‍परेरी कलर कराएं तो बेहतर होगा।
बालों को कलर कराते समय यह सुनिश्‍चित कर लें कि कौन सा कलर आपके बालों के लिए सही रहेगा, इस मामले में जरा सी लापरवाही आपके अच्छे बालों को नुकसान पहुंचा सकती है।
बालों को कलर करवाने से पहले आपको एलर्जी का भी ध्यान रखना चाहिए, कई बार कुछ कलर या डाई बालों को नुकसान पहुंचा सकती है। ऐसे में यदि आपको अमोनियायुक्‍त डाई सूट न करें तो आप प्रोटीन युक्‍त डाई का प्रयोग भी कर सकते हैं। इसके लिए आप हेयर एक्सपर्ट या ब्यूटी पार्लर में जाकर परामर्श भी ले सकते हैं।
हेयर कलर कराने वालों को कुछ समय बाद त्वचा संबंधी दिक्कतों जैसे बालों की कोमलता में कमी, बाल जल्दी सफेद होना आदि का भी साममा करना पड़ता है। हेयर कलर में मिला अधिक अमोनिया बालों के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इससे आपके सिर से सारे बाल भी गायब हो सकते हैं।
बालों को घर पर कलर करने के दौरान ब्रश और हाथों में दस्तानों का प्रयोग जरूर करें और अपनी आखों का खासतौर पर ध्यान रखें। यह आपकी आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए पहली बार किसी अनुभवी या
प्रोफेशनल व्यक्ति से कलर करवाना चाहिए।
बालों को कलर करने से पहले उन्हें धोकर सुखा लें और बालों को कंघी के एक सिरे से उठाते हुए कलर करें। इससे आपके बालों के टूटने का खतरा कम रहेगा।
यदि आपकी दिनचर्या व्यस्त हैं तो आपको हल्‍का हेयर कलर इस्तेमाल करना चाहिए। इससे आपके बालों को ज्‍यादा नुकसान नहीं होगा।
साभार- आेनली माई हेल्थ डॉटकाम

गुरुवार, 27 सितंबर 2018

मिलिए अपनी सेहत के रखवाले से- रेनु दत्त

आंवले के नियमित उपयोग से कई शारीरिक समस्याएं ठीक की जा सकती है। आंवले को कच्चा, सुखाकर या जूस निकाल कर इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें किसी तरह के केमिकल नहीं मिले होते है इसलिए स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। बात करते हैं इसके गुणों के बारे में।
तनाव या नींद नहीं आने की समस्या में इसका सेवन लाभदायक होता है।
आँखों की ज्योति के लिए और चश्मा हटाने में बहुत लाभदायक है।
हमारे शरीर में बहुत सारे हानिकारक तत्व इक्ट्ठे हो जाते हैंं और इसके सेवन से उन्हें बड़ी आसानी से बाहर किया जा सकता है।
लीवर और ब्लैडर को सही तरीके से काम करने में मदद करता है इसके लिए आप रोजाना सुबह खाली पेट आंवले के रस का उपयोग करें।
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इसके सेवन से मेटाबोलिज्म में सुधार आता है और मोटापे को भी कंट्रोल करने में मदद मिलती है।
इसका सेवन रोगप्रतिरोधक क्षमता को ब-सजय़ा देता है जिससे रोगों से बचाव की क्षमता में वृद्धि होती है।
इसका सेवन बालों के लिए वरदान हो सकता है।
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चुकंदर के सेहत के लाभ
चुकंदर के रूप में प्रकृति ने हमारे शरीर की जरुरत के अनुसार हर तरह के गुणों से भरपूर फल हमें दिया है। इसकी सबसे खास बात है कि इस फल को एनीमिया में सबसे अधिक गुणकारी माना जाता हैै।
इसके अंदर प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है इसलिए यह उर्जा का बेहतरीन स्त्रोत है। कार्बोहाइड्रेट हमारे शरीर के ऊर्जा के स्तर में इजाफा करता है जिसकी वजह से हमे थकान की समस्या नहीं होती है।
सफेद चुकंदर का इस्तेमाल फोड़े और जलन जैसी समस्या में भी किया जा सकता है। इसके बेतरीन स्वास्थ्य लाभ के लिए सफेद चुकंदर को पानी में उबालकर और छानकर अलग कर लें और उसका इस्तेमाल फोड़े और मुहांसे के लिए कर सकते हैं।
खसरा और बुखार की वजह से हो सकता है आपकी त्वचा खराब हो गयी हो तो चुकंदर के इस्तेमाल से आप उसे भी ठीक कर सकते है।
इस से हमारे पाचनतंत्र को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाले कारकां को उतेजना मिलती है जिसकी वजह से पाचनतंत्र भी बेहतर हो जाता है।
इसमें आयरन की भी प्रचुर मात्रा होती है इसको खाने से हमारे खून के अंदर पाए जाने वाली लाल रक्त
कोशिकाएं एक्टिव रहती हैं। एनिमिया होने पर डाक्टर भी इसका सेवन करने की सलाह देते हैं। रक्त की व्याधिओं के लिए यह सबसे उत्तम फल है। जिस से शरीर में नया खून बनने की क्रिया को बल मिलता है।
इसके सेवन से शरीर पर आई विभिन्न चोट और घाव भरने में भी मदद मिलती है और हमारी चोट जल्दी ठीक हो जाती है।
कब्ज जैसे रोगों में भी यह लाभदायक है।
रक्तचाप को नियमित करने में भी यह सहायक होता है।
चुकंदर का सेवन बवासीर में भी उतम होता है।
यह न केवल आपकी आंतरिक शक्ति को ब-सजय़ाता है साथ ही मांसपेशियों को भी मजबूत बनाता है। के लिए भी सही होता है।
इसमें प्रचुर मात्र में पोटेशियम, मैग्नेशियम, आयरन, विटामिन बी6 सी, फोलिक एसिड भी होता है । इसके अलावा इसमें प्रचुर मात्रा में शक्तिदायक एंटीआक्सीडेंट होते हैं जो आपके शरीर को विभिन्न रोगों से लड़ने में आपकी मदद करते है।
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बुधवार, 26 सितंबर 2018

फूल गोभी और पत्ता गोभी से बनाएं लजीज पकवान -नीरा कुमार

पत्ता गोभी, फूल गोभी और ब्रोकली बहुत पौष्टिक होते हैं। लेकिन आप ज्यादातर इनकी सब्जी ही बनाती होंगी। अगर आप चाहें तो इनसे कई तरह के स्वादिष्ट-चटपटे व्यंजन भी बना सकती हैं। इसीलिए इस बार हम आपके लिए लेकर आए हैं, पत्ता गोभी, फूल गोभी और ब्रोकली से बने कुछ डिफरेंट डिशेज की रेसिपी।
चटपटी पत्ता गोभी 
 सामग्रीबारीक कटी पत्ता गोभी: 3 कप
हरे मटर के दाने: 1 कप
बारीक कटा गाजर: 1/2 कप
काली मिर्च: 15 नग
चीनी: 1/2 टी स्पून
मस्टर्ड ऑयल: 2 टेबल स्पून
हल्दी पावडर: 1/2 टी स्पून
बारीक कटा अदरक-हरी मिर्च: 2 टी स्पून
मेथी दाना: 1 टी स्पून
नींबू का रस: 1 टी स्पून
नमक: स्वादानुसार
कटा हरा धनिया: 1 टेबल स्पून
विधिएक कड़ाही में तेल गर्म करें।
उसमें मेथीदाने का तड़का लगाएं, फिर कुटी काली मिर्च, अदरक, हरी मिर्च, हल्दी पावडर, मटर और गाजर डालकर तीन मिनट तक ढंक कर मंदी आंच पर पकाएं।
मटर और गाजर गलने पर कटी पत्ता गोभी डाल कर मिलाएं। अब नमक और चीनी डालें।
पांच मिनट तक मंदी आंच पर ढंक कर पकाएं। ध्यान रहे पत्ता गोभी थोड़ी क्रिस्पी रहनी चाहिए।
अच्छी तरह भूनने के बाद नीबू का रस डाल कर गैस बंद कर दें।
सर्विंग डिश में सब्जी पलटें और ऊपर से कटा हरा धनिया बुरक कर सर्व करें।
फूल गोभी कोरमा
 सामग्रीकद्दूकस की हुई फूल गोभी: 3 कप
बारीक कटी अदरक-हरी मिर्च: 2 टी स्पून
मेथी दाना: 1/2 टी स्पून
हल्दी पावडर: 1/4 टी स्पून
लाल मिर्च पावडर: 1/2 टी स्पून
धनिया पावडर: 1 टी स्पून
गर्म मसाला: 1/2 टी स्पून
दरदरी कुटी सौंफ: 1/2 टी स्पून
रिफाइंड ऑयल: 1 टेबल स्पून
नमक: स्वादानुसार
थोड़ा सा कटा हरा धनिया: सजाने के लिए
विधिकड़ाही में तेल गर्म करके मेथी दाने का तड़का लगाएं, फिर अदरक हरी मिर्च, फूल गोभी डालकर कुछ देर पकाएं।
हल्दी पावडर, धनिया पावडर, मिर्च पावडर और नमक डालकर एकसार करें।
गोभी गलने पर गर्म मसाला, दरदरी सौंफ और हरा धनिया डालकर अच्छी तरह मिक्स करें।
नान या परांठे के साथ फूल गोभी कोरमा सर्व करें।
नीरा कुमार जानी मानी कुकरी एक्सपर्ट हैं।

रविवार, 23 सितंबर 2018

चाय के साथ फैशन की जुगलबंदी- डा. अनुजा भट्ट

लोककलाओं का विशेष महत्व हैं। इस दौर में फैशन और फिल्म से जुड़े हर व्यक्ति की निगाहें लोककला को लेकर बेहद संजीदा है। और जब बात अपने देश की हो तो यह तो वैसे भी अपनी विविध संस्कृतियों के लिए जाना जाता है। अलग अलग पहनावा, आभूषण, खान पान, संगीत, भाषा का अद्भुत समागम हमें सबसे जोड़कर रखता है। समय समय पर बनने वाली क्षेत्रीय फिल्में, रंगमंच, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सिनेमा इसे फैशन के साथ जोड़कर पूरी दुनिया के लिए सहज सुलभ बना देते हैं। सिने तारिक प्रियंका चोपड़ा जब असम घूमने गई तो उन्होंने वहीं का परंपरागत परिधान मेखला-चादर पहना और वहीं के पारंपरिक आभूषण भी पहने। उनकी यह तस्वीर सोशल मीडिया पर छाई रही। यह देखकर यह जानना मुझे दिलचस्प लगा कि आखिरकार असम का फैशन ट्रेंड क्या है। किस तरह के परिधानों की मांग है और आभूषणों की क्या- क्या खास विशेषताएं हैं। वैसे तो असम अपनी संस्कृति , पारंपरिक नृत्य बिहू और अनेक कलाओं के लिए प्रसिद्ध है, परंतु इसकी अनोखी वस्त्र कला लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। असम का रेशमी कपड़ा तो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है जिसे मूंगा सिल्क के नाम से जाना जाता है।

जब से साड़ी पहनने के तोर तरीके में बदलाव आया है तब से यह युवाओं के आकर्षण का केंद्र भी बन गया है। आज साड़ी कई तरह के पहनी जा रही है। भारत में तो वैसे भी साड़ी कई तरह से पहनी जाती रही हैं पर अब इसे पहनने का अंदाज परंपरा से एकदम जुदा है। कहीं यह लैगिंग के साथ ते कहीं सलवार और जींस के साथ पहली जा रही रही है। साड़ी का हर अंदाज बहुत खूबसूरत है। यह एक ऐसा भारतीय वस्त्र है, जिसे हर कद-काठी की महिला बड़ी ही सहजता से पहन सकती है और ख़ूबसूरत लग सकती है।

असम की साड़ी पहनने का भी अंदाज अपने आप में अलग है। इसमें पल्लू अलग से होता है जिसे चादर कहते हैं। मेखला को साया यानी पेटीकोट के साथ पहना जाता है और साड़ी की ही तरह प्लेट्स यानी चुन्नटें डाली जाती हैं। पर इसके पल्लू को इसके साथ जेड़ना पड़ता है। आइए जानते हैं इस २-पीस साड़ी के विषय में कुछ विशेष तथ्य।

इस पारंपरिक साड़ी को विशेषकर रेशमी धागों से बुना जाता है, हालांकि कभी कभी हमे यह साड़ी कपास के धागों से बुनी हुई भी मिल सकती है, तो कभी कभी इसे कृत्रिम रेशों से भी बुना जाता है। इस साड़ी पर बनी हुई विशेष आकृतियाँ (डिज़ाइन्स) को केवल पारंपरिक तरीक़ों से ही बुना जाता है, तो कभी कभी मेखला और चादर के छोर पर सिला जाता है। इस पूरी साड़ी के तीन अलग अलग हिस्से होते हैं, ऊपरी हिस्से के पहनावे को चादर और निचले हिस्से के पहनावे को मेखला कहते हैं। “मेखला” को कमर के चारों ओर लपेटा जाता है। “चादर” की लंबाई पारंपरिक रोज़मर्रा में पहने जाने वाली साड़ी की तुलना में कम ही होती है। चादर साड़ी के पल्लू की तरह ही होती है, जिसे मेखला के अगल-बगल में लपेटा जाता है। इस २-पीस साड़ी को एक ब्लाउज़ के साथ पहना जाता है। एक विशेष तथ्य यह भी है, कि मेखला को कमर पर लपेटते वक़्त उसे बहुत से चुन्नटों(प्लीट्स) में सहेजा जाता है और कमर में खोंस लिया जाता है। परंतु, पारंपरिक साड़ी पहनने के तरीक़े के विपरीत, जिसमें चुन्नटों को बाएँ ओर सहेजा जाता है, मेखला की चुन्नटों को दायीं ओर सहेजा जाता है।

फैशन डिजाइनर नंदिनी बरूआ कहती हैं कि वैसे तो यह पारंपरिक २-पीस साड़ी आज भी आसाम के हर छोर में पहनी जाती है पर जब से यह फैशन वीक जैसे कार्यक्रमों का हिस्सा बनी इसकी मांग बढ़ गई है। अब इसमें विभन्न तरह के रंगों और रेशों का प्रयोग किया जा रहा है। सूती और सिल्क के कपड़े के अलावा अब और भी तरह के कपड़ों का प्रयोग हम कर रहे हैं। स्थानीय रेशमी धागों के अलावा बनारसी रेशम, कांजीवरम और शिफॉन के रेशों का भी प्रयोग भी आज कल होने लगा है। जोर्जेट,क्रेप, शिफॉन से बनी २- पीस साड़ियों के अत्यधिक चलन की वजह यह है कि यह पहनने में हल्के होते हैं साथ ही इनकी कीमत भी कम होती है।

सिर्फ साड़ी ही नहीं अब बुनकरों द्रारा तैयार किए गए परंपरागत कपड़ों से आधुनिक परिधान भी बनाए जा रहे हैं जिसमें स्कर्ट से लेकर गाउन, जैकेट, सलवार सूट, फ्राक शामिल है। अंतर इतना है कि इसके मोटिफ एकदम पारंपरिक है। यही इसकी अलग पहचान है।

परिधान हों और उसके साथ आभूषण न हों तो सारी सजधज का मजा किरकिरा हो जाता है इसलिए यदि आप असम के फैशन को अपना रहे हैं तो साथ में वहीं के परंपरागत लेकिन आधुनिक आभूषण पहनें।

असम में स्वर्ण आभूषणों की एक मनमोहक परंपरा रही है। असमी आभूषणों में वहां की प्रकृति, प्राणी और वन्य जीवन के अलावा सांगीतिक वाद्यों से भी प्रेरणा ग्रहण की जाती है। गमखारु एक प्रकार की चूडियां होती हैं जिनपर स्वर्ण का पॉलिश होता है और खूबसूरत फूलों के डिजाईन होते हैं। मोताबिरी एक ड्रम के आकार का नेकलेस होता है जिसे पहले पुरुषों द्वारा पहना जाता था लेकिन अब इसे स्त्रियां भी पहनती है। असम के उत्कृष्ट स्वर्ण आभूषणों की कारीगरी मुख्य रूप से जोरहाट जिले के करोंगा क्षेत्र में होती है, जहां प्राचीन खानदानों के कुशल कलाकार के वंशजों की दुकानें है. यह जानना रोचक है कि असम के आभूषण पूरी तरह हस्तनिर्मित होते हैं, भले ही वे स्वर्ण के हों या अन्य धातुओं के. यहाँ के पारंपरिक आभूषणों में डुगडुगी, बेना, जेठीपोटई, जापी, खिलिखा, धुल, और लोकापारो उल्लेखनीय हैं. ये आभूषण प्रायः 24 कैरट स्वर्ण से बनाए जाते है।
कंठहार – गले में पहनने वाले हार की विस्तृत श्रृंखला यहां मिलेगी जिसके अगल अलग नाम है। हर नाम की अपनी एक खास विशेषता है। हार को मोती की माला में पिरोया जाता है। यह महीन मोती काला, लाल, हरा, नीला,सफेद जैसे कई रंगां मे उपलब्ध है। बेना, बीरी मोणी, सत्सोरी, मुकुट मोणी, गजरा, सिलिखा मोणी, पोआलमोणी, और मगरदाना जैसे नाम कंठहार के लिए ही है।

अंगूठी-इसी तरह अंगूठी के भी कई नाम हैं। जैसे- होरिन्सकुआ, सेनपाता, जेठीनेजिया, बखारपाता, आदि।

कंगन- गमखारुस, मगरमुरिआ खारु, संचारुआ खारु, बाला, और गोटा खारु. शादी ब्याह में पहने जाने वाले खास वैवाहिक आभूषणों के नाम हैं

ठुरिया, मुठी-खारु, डूग-डोगी, लोका-पारो, करूमोणी, जोनबीरी, ढोलबीरी, गाम-खारु, करू, बाना, और गल-पाता।

असम का एक सबसे प्रचलित और उल्लेखनीय आभूषण है, कोपो फूल (कर्णफूल). इसकी बनावट ऑर्किड से मिलती-जुलती है, जबकि इसका बाहरी भाग दो संयुक्त छोटी जूतियों के आकार का होता है, जिसकी बनावट फूलों जैसी होती है। गामखारु, गोलपोटा और थुरिया सबसे मंहगे आभूषण माने जाते हैं।

संक्षेप में कहें तो असम के फैशन में अभी भी वहां की लोककला के गूंज सुनाई देती है। ढोलक और वीणा के स्वर के साथ तालमेल बिठाती आभूषण की खनक भी सुनाई देती है। कृषि के औजारों को आभूषण के डिजाइन में ढालना और संगीत से सुर में बांध देना यही है असम का फैशन...
मेरा यह लेख आज के जनसत्ता में प्रकाशित है
लिंक
http://epaper.jansatta.com/1827968/लखनऊ/23-September-2018#page/16/1


जीवन में लाएगा बदलाव यह दाे अक्षर का शब्द- दर्शना बांठिया

कहते है क्षमा मांगने वाले से बड़ा क्षमा करने वाला होता है।
क्षमा वाणी के दिन हम सब से क्षमा मांगते है ,पर वास्तव में क्षमा क्या है ......इससे ही व्यक्ति अनजान रहता है ।
क्षमा मेरे नजरिए से क्या है :-
क्या है क्षमा......?
किसी दूसरे की गलतियों की लगी धूल को अपने दिल की परत से साफ कर देना...।
या किसी पराये द्वारा भी की गयी भूल को हंस कर टाल देना और उसे भी अपना बना लेना
क्या है क्षमा .......?
अपने मन में किसी कारण वश भरे हुए गुबार को निकाल कर हल्के और आनंदित हो जाना।
या अपने अंदर पैदा हुयी अंहकार की आग को,विनम्रता रुपी जल से धो डालना।।
क्या है क्षमा........?
किसी बड़े द्वारा दिये हुये अपमान के घूंट को ये सोचकर जी जाना कि वो आपसे बडे़ है ,और किसी छोटे द्वारा की गयी उद्दण्डता को नजरअंदाज कर अपने बड़प्पन को साबित करना।।

कहने को तो सिर्फ दो अक्षर का ये शब्द है ,पर अगर इसे गहराई से समझ लिया जाये और जीवन में उतारने का प्रयास कर लिया जाये तो इंसान अपने मनोवैज्ञानिक स्तर को बहुत ऊपर उठा सकता है ,न जाने कितने अपराध होने से पहले ही रूक सकते है,न जाने कितने टूटे रिश्तें फिर से जुड़ सकते है।।
तो आइए इस बार हम सभी से हृदय से वास्तविक क्षमा याचना करते है।

शनिवार, 22 सितंबर 2018

स्मृति शेष- विष्णु खरे की दो कविताएं

हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि और हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष विष्णु खरे अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका निधन साहित्य जगत में एक अपूरणीय क्षति है। अपने विशद अध्ययन और विपुल साहित्य से हिंदी जगत को अनमोल संपदा देने वाले खरे की ये हैं 2 प्रमुुख कविताएं...

कहो तो डरो...
कहो तो डरो कि हाय यह क्यों कह दिया
न कहो तो डरो कि पूछेंगे चुप क्यों हो

सुनो तो डरो कि अपना कान क्यों दिया
न सुनो तो डरो कि सुनना लाजिमी तो नहीं था

देखो तो डरो कि एक दिन तुम पर भी यह न हो
न देखो तो डरो कि गवाही में बयान क्या दोगे

सोचो तो डरो कि वह चेहरे पर न झलक आया हो
न सोचो तो डरो कि सोचने को कुछ दे न दें

पढ़ो तो डरो कि पीछे से झाँकने वाला कौन है
न पढ़ो तो डरो कि तलाशेंगे क्या पढ़ते हो

लिखो तो डरो कि उसके कई मतलब लग सकते हैं
न लिखो तो डरो कि नई इबारत सिखाई जाएगी

डरो तो डरो कि कहेंगे डर किस बात का है
न डरो तो डरो कि हुक़्म होगा कि डर

अक्स.....

आईने में देखते हुए
इस तरह इतनी देर तक देखना
कि शीशा चकनाचूर हो जाये-
फिर भी इतना मुश्किल नहीं

वह शीशे में
यूँ और इतना देखना चाहता है
कि बिल्लौर में तिड़कन तक न आये
सिर्फ़ जो दिख रहा है वह पुर्जा-पुर्जा हो जाए
और जो देख रहा है वह भी
फिर भी एक अक्स बचा रहे
जिसका वह है उसे जाने कैसे देखता हुआ
अमर उजाला से साभार.

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

सुंदरता के राज दादी मां के पास - अनामिका अनूप तिवारी

खूबसूरत स्वस्थ त्वचा की चाह किसे नहीं होती, चाहे स्त्री हो पुरुष खूबसूरत दिखने की चाह सबके अंदर होती है, महिलाएं हज़ारों रूपये ब्यूटी पार्लर और महंगे ब्यूटी प्रॉडक्ट्स में खर्च कर देती है लेकिन फिर भी संतुष्ट नहीं होती, लेकिन कुछ घरेलू उपायों से आप की त्वचा मुलायम, चमकदार और स्वस्थ हो सकती है।
"उबटन" सौंदर्य निखारने की सबसे प्राचीनतम विधि हैं, जिसे घरेलु स्त्रियों से लेकर रानी महारानियाँ भी अपनी सौंदर्य को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करती थी।
"उबटन" का नाम सुनते ही दादी नानी के बनाये उबटन की याद आ जाती है, पहले शादी ब्याह में एक दो महीने पहले ही होने वाली दुल्हन को उबटन लगाया जाता था जिससे की विवाह वाले दिन दुल्हन चाँद का प्रतिरूप लगे।
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पीली सरसों या तिल का उबटन-सरसो का उबटन बहुत प्राचीन समय से चली आ रही है।

पीली सरसों या तिल को हलके आंच पर भून कर दूध के साथ पीस कर बारीक पेस्ट बना ले।

इस पेस्ट को चेहरे, हाथ एवं पैरों में लगायें सूखने पर हलके हाथों से छुड़ाये।
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सरसो या तिल का उबटन- शुष्क त्वचा पर चमत्कारिक रूप से असर करता है, चेहरे की नमी बनाए रखता है और त्वचा को चमकदार और मुलायम बनाये रखता है।
फूलों का उबटन- फूलों का उबटन प्राचीन समय में रानी महारानियोँ के लिए विशेष रूप से तैयार किये जाते थे।

इस उबटन को बनाने के लिए, गुलाब, गेंदे, लैवेंडर और पारिजात के फूलों को सुखा कर पाउडर बना लेते है।

इस मिश्रण को गुलाब जल, कच्चा दूध या दही के साथ पेस्ट बना कर चेहरे पर लगाये सूखने पर चेहरें को ठंडे पानी से धो ले।

फूलों का उबटन विशेषतः मिश्रित त्वचा के लिए ज्यादा लाभकारी है। ये खुशबुदार उबटन चेहरे पर निखार के साथ कसाव भी लाती है, चेहरे के दाग धब्बों को भी दूर करने में सहायक है।
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दही बेसन का उबटन- दही बेसन का उबटन भी दादी नानी के ज़माने से चली आ रही है।

दही, बेसन और हल्दी का गाढ़ा लेप बनाये उसमे 2/3 बुँदे तिल का तेल मिलाये और इस लेप को चेहरे और हाथ, पैरों पर लगाये सूखने पर उँगलियों की सहायता से मसल कर छुड़ा ले जिस से की त्वचा पूरी तरह से साफ़ हो जायें इसके बाद गुनगुने पानी से अच्छे से धो ले।

ये उबटन चेहरे को साफ, मुलायम और चमकदार बनाती है, चेहरे के दाग धब्बो को पूरी तरह से साफ़ कर त्वचा पर निखार लाती है।
संतरे और नींबू के छिलके का उबटन-यह उबटन हर प्रकार की त्वचा के लिए लाभकारी है।

ये उबटन चेहरे की झाई की समस्या, दाग, झुर्रियां और चेहरे पर आयी कालिमा को दूर करता है।

इसको बनाने के लिए संतरे और नींबू के छिलकों को धूप में सुखा ले, अच्छे से सुख जाने पर महीन पाउडर बना ले।

हर रोज़ इस मिश्रण को कच्चे दूध या गुलाब जल में पेस्ट बना कर चेहरे पर लगाये सूखने पर हलके गुनगुने पानी से चेहरे को धो ले।

इस उबटन को आप नियमित रूप से लगा सकती है, अगर त्वचा पर मुहांसे की समस्या है तो इस में नीम की पत्तियों को सुखा कर पावडर बनाये और फिर संतरे ,नींबू के मिश्रण में मिला कर लगाये।

उबटन स्नान करने से 1 घंटा पहले लगाये या फिर रात में सोने से पहले भी लगा सकते है।

उबटन का इस्तेमाल नियमित रूप से करने से त्वचा में निखार तो आता है त्वचा संबंधी समस्याओं से भी मुक्ति मिलती है।

साबुन की जगह उबटन को दे और बनाये खुद को खूबसूरत और स्वस्थ त्वचा की मालकिन।
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मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

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