उम्र है तो चेहरे पर झुर्रिया आना, हाथ पैरों का उस तरह न चल पाना, कंपकंपी होना, घबराहट होना, समय का तकाजा है। पर चाहे आपकी उम्र तेजी से अपनी सीढ़ियां चढ़ने लगे अौर आपको लगे कि अब बस पता नहीं कितने दिन शेष हैं तो बस इस उदासी को घर के बाहर ही छोड़ आइए अौर जिंदगी के हर पल का आनंद लीजिए। आज मैं आपको मिलवाती हूं एक ऐसे समूहों से जिसने सबसे पहले अपनी सोसायटी में अपनी उम्र के साथियों को खोजा अौर उसके बाद अपना एक समूह बनाया। मेट्रोपालियन सिटी में आजकल इस तरह क¢ समूह बहुत तेजी से बन रहा है। इसकी कई वजहें हैं- अकेले पड़ जाते हैं बुजुर्ग घर में सब सुबह सुबह अपने काम पर निकल जाते हैं बच्चे अपने स्कूल। घर में रह जाते हैं बुजुर्ग। आखिर कितना टीवी देखें। आंखे भी तो उतना काम नहीं करती। रिश्तेदारों का आना जाना नहीं के बराबर है। नौकरी के बाद यह अकलेलापन सालने लगता है। क्या किया जाए? फिर भी कुछ हिम्मती महिलाएं छोटा मोटा बिजनेस करने लगती हैं। घरेलू मेड की सहायता से अचार पापड़ जैसे काम वह सहजता से कर लेती है पर बिना सहायक के यह संभव नहीं। कुछ होम बिजनेस से जुड़ जाती हैं जिनको प्रोडक्ट का आर्डर करना होता है। जो लोग आडर देते हैं वह खुद सामान ले जाते हैं। पर यह सब काम वह इसलिए करती हैं ताकि अकेलेलापन न लगे। कभी सामान लेने के लिए ही सही कोई आएगा। दो चार पल बात हो पाएगी। किससे बात करें घर में उनकी बातें सुनने वाला कोई नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि बच्चे पेरेंट्स को इग्नोर करना चाहते हैं या उनका उनसे कोई लगाव नहीं है। वह भी अपने समय को पकड़ना चाहते हैं। हम सब जानते हैं कि समय की गति पहले से बहुत तेज हैं। अौर हर पीढ़ी को अपने समय के हिसाब से चलना पड़ता है। बनाया अपना समूह यह सब देखकर उन्होंने अपना समूह बनाया। हर महीने कुछ मामूली पैसे इक्ट्ठे किए ताकि गेट डब गेदर किया जा सकेंगे। सोसायटी के क्लब हाउस में एक टेबल अपने लिए रिजर्व की अौर की मन भर बातें। याद किया अपना समय। खाया पिया, अंताक्षरी की,गेम खेले एक दूसरे का हाल चाल जाना। सबने एक दूसरे से नंबर लिए अौर अपना वाट्सएप ग्रुप बनाया। अपने मन की बातें शेयर की, चुतकुले भेजे या फि कोई संदेश। इस तरह जिंदगी ने रफ्तार पकड़ ली। फिर बना पिकनिक का कार्यक्रम सब मिले तो फिर घूमने, फिल्म देखने, अपने मन का पहनने ओड़ने के दिन आ गए। बेवजह जो चिड़चिड़ाहट अौर झुझलाहट थी वह गायब हो गई। ब्लडप्रेशर नार्मल हो गया। कोई साथी बीमार है तो उसकी सब तीमारदारी में लग गए। सजग हुए तो सोसायटी में आया बदलाव सोसायटी में होने वाले कार्यक्रमों की बागडोर संभाली। बच्चों के साथ नानी दादी अौर दादा-दादी ने किया फैशन शो। उनके बीच तो गैप आया था वह दूर हुआ। बुजुर्गों के लिए सोसायटी में नि.शुल्क कैम्प लगने लगे। ट्रेवल एजेंट बुजुर्गों को अच्छा डिस्काउंट देने लगे। रस्तरां में स्नेक्स के साथ काफी फ्री मिलने लगी। जिसके अंदर जो हुनर उसने वह बांटा किसी ने अपना बनाया अचार खिलाया किसी ने पेंटिंग दिखाई किसी ने शेरो शायरी की किसी ने कहानी सुनाई किसी ने स्वेटर दिखाए। सबने अपने अपने अनुभव से अपने समूह को मजबूत बनाया। देश से लेकर विदेश तक के विषयों पर चर्चा की। सतसंग किया। अलग अलग धर्मों से जुड़े आडियो वीडियो देखे अौर फिर अपने विचार किया। जाति के बंधन टूटे इन समूहों में सबसे अच्छी बात जो हुई वह यह कि जातियों के बंधन टूटे अौर मानवीयता के तार जुड़े। अलग अलग धर्म के लोग जुड़े तो जैसे साझी विरासत का सपना एक हुआ। कभी समानता को देखकर मंत्रमुग्ध हुए तो कभी विचित्र रस्मों को देखकर कौतुहल जागा। परिवार में भी आया बदलाव अब रोज रोज की नोक झोंक बंद हो गई। घर से काम पर निकलने वाले बच्चे भी बेफिक्र हुए कि अब अकेले नहीं हैं मम्मी पापा। आखिर यह बुजुर्ग हैं तो हमारे ही घर के। इनको भी अधिकार है आजाद परिंदे की तरह रहने का।
The fashion of the whole world is contained within the folk art.
रविवार, 25 मार्च 2018
नहीं जाएंगे हम आेल्ड एज हाेम- डा. अनुजा भट्ट
उम्र है तो चेहरे पर झुर्रिया आना, हाथ पैरों का उस तरह न चल पाना, कंपकंपी होना, घबराहट होना, समय का तकाजा है। पर चाहे आपकी उम्र तेजी से अपनी सीढ़ियां चढ़ने लगे अौर आपको लगे कि अब बस पता नहीं कितने दिन शेष हैं तो बस इस उदासी को घर के बाहर ही छोड़ आइए अौर जिंदगी के हर पल का आनंद लीजिए। आज मैं आपको मिलवाती हूं एक ऐसे समूहों से जिसने सबसे पहले अपनी सोसायटी में अपनी उम्र के साथियों को खोजा अौर उसके बाद अपना एक समूह बनाया। मेट्रोपालियन सिटी में आजकल इस तरह क¢ समूह बहुत तेजी से बन रहा है। इसकी कई वजहें हैं- अकेले पड़ जाते हैं बुजुर्ग घर में सब सुबह सुबह अपने काम पर निकल जाते हैं बच्चे अपने स्कूल। घर में रह जाते हैं बुजुर्ग। आखिर कितना टीवी देखें। आंखे भी तो उतना काम नहीं करती। रिश्तेदारों का आना जाना नहीं के बराबर है। नौकरी के बाद यह अकलेलापन सालने लगता है। क्या किया जाए? फिर भी कुछ हिम्मती महिलाएं छोटा मोटा बिजनेस करने लगती हैं। घरेलू मेड की सहायता से अचार पापड़ जैसे काम वह सहजता से कर लेती है पर बिना सहायक के यह संभव नहीं। कुछ होम बिजनेस से जुड़ जाती हैं जिनको प्रोडक्ट का आर्डर करना होता है। जो लोग आडर देते हैं वह खुद सामान ले जाते हैं। पर यह सब काम वह इसलिए करती हैं ताकि अकेलेलापन न लगे। कभी सामान लेने के लिए ही सही कोई आएगा। दो चार पल बात हो पाएगी। किससे बात करें घर में उनकी बातें सुनने वाला कोई नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि बच्चे पेरेंट्स को इग्नोर करना चाहते हैं या उनका उनसे कोई लगाव नहीं है। वह भी अपने समय को पकड़ना चाहते हैं। हम सब जानते हैं कि समय की गति पहले से बहुत तेज हैं। अौर हर पीढ़ी को अपने समय के हिसाब से चलना पड़ता है। बनाया अपना समूह यह सब देखकर उन्होंने अपना समूह बनाया। हर महीने कुछ मामूली पैसे इक्ट्ठे किए ताकि गेट डब गेदर किया जा सकेंगे। सोसायटी के क्लब हाउस में एक टेबल अपने लिए रिजर्व की अौर की मन भर बातें। याद किया अपना समय। खाया पिया, अंताक्षरी की,गेम खेले एक दूसरे का हाल चाल जाना। सबने एक दूसरे से नंबर लिए अौर अपना वाट्सएप ग्रुप बनाया। अपने मन की बातें शेयर की, चुतकुले भेजे या फि कोई संदेश। इस तरह जिंदगी ने रफ्तार पकड़ ली। फिर बना पिकनिक का कार्यक्रम सब मिले तो फिर घूमने, फिल्म देखने, अपने मन का पहनने ओड़ने के दिन आ गए। बेवजह जो चिड़चिड़ाहट अौर झुझलाहट थी वह गायब हो गई। ब्लडप्रेशर नार्मल हो गया। कोई साथी बीमार है तो उसकी सब तीमारदारी में लग गए। सजग हुए तो सोसायटी में आया बदलाव सोसायटी में होने वाले कार्यक्रमों की बागडोर संभाली। बच्चों के साथ नानी दादी अौर दादा-दादी ने किया फैशन शो। उनके बीच तो गैप आया था वह दूर हुआ। बुजुर्गों के लिए सोसायटी में नि.शुल्क कैम्प लगने लगे। ट्रेवल एजेंट बुजुर्गों को अच्छा डिस्काउंट देने लगे। रस्तरां में स्नेक्स के साथ काफी फ्री मिलने लगी। जिसके अंदर जो हुनर उसने वह बांटा किसी ने अपना बनाया अचार खिलाया किसी ने पेंटिंग दिखाई किसी ने शेरो शायरी की किसी ने कहानी सुनाई किसी ने स्वेटर दिखाए। सबने अपने अपने अनुभव से अपने समूह को मजबूत बनाया। देश से लेकर विदेश तक के विषयों पर चर्चा की। सतसंग किया। अलग अलग धर्मों से जुड़े आडियो वीडियो देखे अौर फिर अपने विचार किया। जाति के बंधन टूटे इन समूहों में सबसे अच्छी बात जो हुई वह यह कि जातियों के बंधन टूटे अौर मानवीयता के तार जुड़े। अलग अलग धर्म के लोग जुड़े तो जैसे साझी विरासत का सपना एक हुआ। कभी समानता को देखकर मंत्रमुग्ध हुए तो कभी विचित्र रस्मों को देखकर कौतुहल जागा। परिवार में भी आया बदलाव अब रोज रोज की नोक झोंक बंद हो गई। घर से काम पर निकलने वाले बच्चे भी बेफिक्र हुए कि अब अकेले नहीं हैं मम्मी पापा। आखिर यह बुजुर्ग हैं तो हमारे ही घर के। इनको भी अधिकार है आजाद परिंदे की तरह रहने का।
शनिवार, 24 मार्च 2018
जीने दाे- पार्ट 1 श्रेया श्रीवास्तव
पड़ोस में कथा थी।लता ने बहुत दिनों के बाद एक साड़ी पहनी बाल बनाये बिंदी लगाई पर जैसे ही सिंदूर लगाने चली उसे 25 साल पहले की वो रात याद आ गई जब कमल से उसकी शादी हुई थी।लता एक सुशिक्षित परिवार की पढ़ी लिखी लड़की थी।देखने में साधारण थी कई बहनें थीं पिता के पास दहेज में देने के लिये अधिक कुछ था नहीं सो 22साल की आयु में मामूली प्राइवेट नौकरी करने वाले कमल से उसकी शादी कर दी गई।लता भी पिता की मज़बूरी समझती थी तो अपने कुछ छोटे छोटे सपने मन में ही दफ़न करके
ससुराल चली आई ।पहली रात ही पति ने जता दिया कि उसके लिये लता का होना न होना उसके लिये कोई मायने नहीं रखता था कमल के लिये उसके मा बाप ही सब कुछ थे।लता सुबह 5 बजे उठ जाती झाड़ू लगाती खाना बनाती बरतन कपड़े धोती।बरतन में ज़रा भी कालिख रह जाती तो सास आसमान सिर पर उठा लेती।मसाला सिल पर पीसा जाता जितना और जो कहा जाता लता उतना ही करती।न तो वो अपने मन का खा सकती थी न पहन सकती थी।कहीं बाहर जाना तो दूर छत पर भी नहीं जा। कती थी।ज़रा सा भी काम बिगड़ जाता तो लता के पुरखे तार दिये जाते।
पति श्रवण कुमार थे माँ एक बार बोलती तो वो चार बार मारते।इस बीच लता के कई मिसकैरिज हो गये।लता चुपचाप अपनी बेबसी पर रोती रहती बूढे माँ बाप को बता कर दुख नहीं देना चाहती थी। समय बीता अब कमल की दूसरे शहर में सरकारी नौकरी लग गई।कुछ दिनों बाद कमल के साथ लता को भी भेज दिया गया।नये शहर में लता को बहुत अपनापन मिला इस बीच लता एक बेटी और एक बेटे की माँ बन गई थी।पति का रवैया अभी भी वैसा ही था पर लता का समय बेटी बेटे की परवरिश में और खाली समय सहेलियों के साथ बीत जाता।लता ने भी मन को समझाया कि सब को सब कुछ नहीं मिलता। शादी के 25सालों के बाद एक दिन लता को पता चला कि कमल ने दूसरी शादी कर ली है।लता ने सारा जीवन दुख झेले थे।बेटे बेटी की पैदाइश पर भी पति ने गले न लगाया।करवाचौथ पर भी पानी पिलाने का रिवाज़ तक नहीं पूरा किया कभी।लता के माँ बाप भी चल बसे थे।इस खबर से तो मानो लता की कमर ही टूट गई।लता पति के आगे रोई गिड़गिड़ाई पैर भी छुएपर इससे पति का अहं और बढ़ गया उसे लगा कि इसकी औकात ही कितनी है।धीरे धीरे कमल ने घर के लिये राशन तक लाना बंद कर दिया।ये सब लता के लिये असहनीय हो गया था।फिर एक दिन साहस जुटा कर लता ने कमल का पुरजोर विरोध किया।उसने कमल को साफ़ बता दिया कि अब वो और नहीं सहेगी।लता का ये नया भेष देखकर कमल दंग रह गया।ऐसा तो उसने सोचा भी नहीं था उसे तो काँपती और रोती हुई लता को देखने की आदत थी।
लता ने जब देखा कि उसके सास ससुर भी बेटे का साथ दे रहे हैं तो उसे खुद साहस दिखाना पड़ा।लता कोई कानूनी लड़ाई तो नहीं लड़ सकती उसके पास न तो संसाधन हैं न ठोस सबूत पर उसने कुछ हद तक झुका तो दिया ही।लता के पास आय का कोई साधन नहीं है और उसके सामने बेटे बेटी की परवरिश का भी सवाल है।आज लता सबसे यही कहना चाहती है कि अधिक मौन जीवन मिटा देता है अतःमुखर बनें और अपने अधिकारों के लिये सजग रहें ताकि मेरी तरह किसी और को ऐसा दुखदायी और अपमानजनक जीवन न जीना पड़े।
लता ने जब देखा कि उसके सास ससुर भी बेटे का साथ दे रहे हैं तो उसे खुद साहस दिखाना पड़ा।लता कोई कानूनी लड़ाई तो नहीं लड़ सकती उसके पास न तो संसाधन हैं न ठोस सबूत पर उसने कुछ हद तक झुका तो दिया ही।लता के पास आय का कोई साधन नहीं है और उसके सामने बेटे बेटी की परवरिश का भी सवाल है।आज लता सबसे यही कहना चाहती है कि अधिक मौन जीवन मिटा देता है अतःमुखर बनें और अपने अधिकारों के लिये सजग रहें ताकि मेरी तरह किसी और को ऐसा दुखदायी और अपमानजनक जीवन न जीना पड़े।
गुरुवार, 22 मार्च 2018
छलिया है वो छलिया प्रीती कविता
"छलिया है वो छलिया "
छलिया है वो छलिया,
वो तो छलता जाता है,
मंद मंद मुस्कानो से,
अपना बनाता जाता है ।
सूरज जैसा तेज सदा,
उसके चेहरे पर गहराता है ।
मीठी मीठी बातों से वो,
मन को मोहता जाता है ।
बाँट सबका दुःख दर्द,
चेहरे पर खुशियाँ लाता है ।
मद मस्त पवन का झोंका,
शीतलता बरसाता है ।
इस धरती पर वो फरिश्ता,
ईश्वर का कहलाता है।
छलिया है वो छलिया,
वो तो छलता जाता है ।
मंद मंद मुस्कानो से,
अपना बनाता जाता है ।
छलिया है वो छलिया,
वो तो छलता जाता है,
मंद मंद मुस्कानो से,
अपना बनाता जाता है ।
सूरज जैसा तेज सदा,
उसके चेहरे पर गहराता है ।
मीठी मीठी बातों से वो,
मन को मोहता जाता है ।
बाँट सबका दुःख दर्द,
चेहरे पर खुशियाँ लाता है ।
मद मस्त पवन का झोंका,
शीतलता बरसाता है ।
इस धरती पर वो फरिश्ता,
ईश्वर का कहलाता है।
छलिया है वो छलिया,
वो तो छलता जाता है ।
मंद मंद मुस्कानो से,
अपना बनाता जाता है ।
सोमवार, 19 मार्च 2018
डांस के दीवाने दिल की मानें- डा. अनुजा भट्ट
की आराधना कर रहे हैं।
इसीलिए नृत्य को भगवान नटराज (शिवा) के साथ जोड़ा जाता है और पुरूषों द्वारा इसे पहले सिर्फ भगवान की आराधना की कला के रूप में अपनाया जाता था। मुख्य रूप से नृत्यांगनाएं महिलाएं ही हुआ करती थी और अघोषित रूप से यह उनके लिए व्यवसाय का जरिया भी बन गया था। हालांकि कुछ पुरूष नर्तक भी होते थे जोकि किसी बड़े घराने से ताल्लुक रखते थे और यक्षागणा/भागवता मेला कत्थकली और मयूरभंज जैसी नृत्य फार्म ही किया करते थे।
जब से ग्लोबिलाईजेशन हुआ है देश-विदेश के डांस फार्म भी पाॅपुलर हो रहे हैं तो इस क्षेत्र में भी कैरियर के आॅप्शन दिखाई दे रहे हैं। ज्यादा से ज्यादा लड़के अब डांस सीख रहे हैं। वह आत्मविश्वास के साथ नृत्य को एक व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं। इस नए ट्रेंड के साथ ही क्लासिकल और रीजनल डांस भी सेंटर स्टेज पर आ गए हैं। यह यंग आर्टिस्ट सिर्फ अपने रीजन में ही मशहूर नहीं हैं, यह विदेशों में जाकर भी परफाॅरमेंस देते हैं। इस ब्रिगेड में प्रमुख सत्यनारायण राजू कहते हैं, मेरे परिवार का आर्टस से कोई लेना देना नहीं हैं हम किसान परिवार से संबध रखते हैं। हमारे परिवार में कोई भी इस निर्णय से सहमत नहीं था कि मैं नृत्य को अपना व्यवसाय बनाऊं। सिर्फ मेरी मां ने ही मेरे इस निर्णय में मेरा साथ दिया। मैंने पढ़ाई छोड़ दी और फुल टाइम डांसर बनने का निर्णय लिया और इतने वर्षों की मेहनत के बाद आज मैं डांस टीचर भी बन गया हूं। मेरे लिए सबसे बड़ी दुखःद बात यह है कि मेरी मां जोकि मेरी सबसे बड़ी सपोर्ट थी वही मुझे इस मुकाम पर पहुंचा हुआ देखने के लिए जिंदा नहीं रही। दूसरी तरफ डा‐ एस‐ वासुदेवन अइनगर हैं जोकि बहुत सीनियर डांसर हैं। अपने परिवार की सर्पोट के साथ उन्होंने अपने पैशन नृत्य और गायन के सपने को पंख दिए। उनकी गुरू वैजंयतीमाला की शिक्षा से उनकी प्रस्तुति में क्लासिकल प्योरिटी और पूर्णतः रिदम का समावेश हुआ।
अनिल अईर और मिथुन श्याम ने अपने पैशन को बहुत ही सहजता और सजगता के साथ निभाया। मिथुन श्याम डांस में अपनी क्रियेटिविटी और इम्प्रोवाईजेशन के लिए जाने जाते हैं किस्सा सुनाते हुए वह कहते हैं कि वह अपनी बहन को डांस क्लास छोड़ने जाते थे उसी से उनके अंदर भी इसे सीखने की इच्छा जगी। मेरे पेरेंट्स ने भी इसका विरोध नहीं किया। मैं एक अमेरिकन कपंनी में नाईट शिफ्ट में नौकरी करता था ताकि दिन में मैं डांस कर सकूं। लेकिन अब मैं अपना पूरा समय डांस को ही देता हूं। मैंने अपनी सेविंग को और अपने डांस प्रोफेशन को ऐसा मैनेज किया है कि किसी भी समय पर मुझे पैसों की दिक्कत न हो। मैं डांस क्लासिस चलाता हूं और प्रोग्राम भी करता हूं। मैं एक एक्टिव परर्फामर हूं। मेरे डांस स्कूल में 25 लड़के डांस सीखते हैं।
अनिल अय्यर पेशे से एक साईकोलोजिस्ट है और पैशन से डांसर, अब उनकी सुनिए, उनके पिता ने उन्हें हर कदम पर प्रोत्साहित किया। वह खुद आर्टिस्ट नहीं है लेकिन वह म्यूजिक और डांस परर्फामेंस देखने के शौकीन थे और मैं उनके साथ बचपन से ही जाता था। इससे मेरे अंदर डांस सीखने की ललक जागना स्वाभाविक ही था। यह आजकल अपना डांस स्कूल चला रहे हैं साथ में अपनी प्राइवेट प्रेक्टिस भी कर रहे हैं। पाश्र्वनाथ उपाध्याय की मां ने उन्हें डांस सीखने इसलिए डाला क्योंकि उनको बेटी नहीं थी और वह उस कमी को पूरा करना चाहती थीं। उन्होंने यह कभी नहीं सोचा था कि वह डांस को अपना प्रोफेशन बनाएंगें। वह बताते हैं कि उन्होंने अपने वैल्यूज से कभी भी काम्प्रोमाईज नहीं किया। आज उनकी खुद की एक डांस कंपनी हैं जिसमें उनके साथ पांच मेल डांसर हैं जोकि मिलकर काम करते हैं।
तो इस तरह से हम कह सकते हैं कि दुनिया बदल रही है, लड़के हों या लड़कियंा उनकी रूचियां उनका पैशन और फिर टेलेंट बनकर स्टेज में दर्शकों की तालियां बटोर रहा है और एवज में उनकी अच्छी खासी कमाई भी हो रही है।
रविवार, 18 मार्च 2018
चाहने लगी हूं मैं-अनन्या सिंह

तुम सोचते तो होगे,
कि सोचती क्यों हूँ तुम्हे
शायद खुश भी होते होगे
मन ही मन।
कि सोचती क्यों हूँ तुम्हे
शायद खुश भी होते होगे
मन ही मन।
ये मन ही तो है जो
बेपरवाह सभी बातों से
बस लग जाता है यूँ ही किसी से
बिना सोचे समझे।।
बेपरवाह सभी बातों से
बस लग जाता है यूँ ही किसी से
बिना सोचे समझे।।
मुझे भी नहीं पता कि
तुम क्यों उतरते जा रहे हो
रगों में मेरी
धीरे धीरे बेतहाशा
तुम क्यों उतरते जा रहे हो
रगों में मेरी
धीरे धीरे बेतहाशा
मगर तुम्हारा ना होना
विचलित करता है
तुम्हारा जवाब ना देना भी
परेशां करता है
तुम्हारी बेरुखी बेचैन
और तुम्हारा ना समझ पाना,
निराश करता है
विचलित करता है
तुम्हारा जवाब ना देना भी
परेशां करता है
तुम्हारी बेरुखी बेचैन
और तुम्हारा ना समझ पाना,
निराश करता है
पर जब तुम बात कर ते हो
तो मेरे होंठ ही केवल नही मुस्कुराते
मुस्कुराता है मेरा अंतर्मन
तो मेरे होंठ ही केवल नही मुस्कुराते
मुस्कुराता है मेरा अंतर्मन
एक अरसे बाद कुछ गीत फिर गुनगुनाने लगी हूँ मैं
आईने में खुद को देख मुस्कुराने लगी हूँ मै
आईने में खुद को देख मुस्कुराने लगी हूँ मै
शायद बता दूं शब्दो मे तुम्हे किसी दिन
तुम्हारी प्रतिक्रिया से डरते रहूं कितने दिन
तुम्हारी प्रतिक्रिया से डरते रहूं कितने दिन
सच है कि तुम्हे चाहने लगी हूँ मैं।
शनिवार, 17 मार्च 2018
बीमारी, तीमारदारी, दुनियादारी सुशील सिद्धार्थ
शुक्रवार, 9 मार्च 2018
टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी अंतिम भाग डा. अनुजा भट्ट
सितंबर में उनकी डेथ हाे गई। बीमारी के इस दैर में ही अपनी छाेटी बहन की शादी करवाई। ताकि पापा काे शांति मिले। और वह सुकूम महसूस कर सकें। एक तऱफ शादी की तैयारी और दूसरी तरफ पापा की बीमारी। पापा हमेशा कहते तू कुछ छुपा रही है। डाक्टर क्या कह रहा है। सब कुछ इतनी जल्दी जल्दी क्याें कर रही है। मैं पापा काे क्या बताती। बहन की शादी धूमधाम से की। उसकी भी ताे खुशी देखनी थी।
जिंदगी एेसे ही चलती है दीदी। कुछ पूछना चाहेंगी.....
कहानी खत्म हुई।
बड़ी कशमक्श में हूं। क्या उसे अपने नए जीवन के बारे में साेचना चाहिए। जिन खुशियाें की वह भी हरदार है क्या उसे अपने कदम बढ़ाने चाहिए। क्या उसकी 9 साल की बेटी के साथ काेई पढ़ालिखा नाैजवान उसका हाथ थामने के लिए तैयार हाेगा। माफ करना उसे दया की जरूरत नहीं है। सच्चे मायने में एक हमसफर चाहिए जाे एक अच्छा पिता और पति बनने की क्वालिफिकेशन रखता हाे। आपने भी ताे पूरी कहानी पढ़ी है मेरे साथ....
बुधवार, 7 मार्च 2018
टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी- पार्ट 4 डा. अनुजा भट्ट
मौसम बदल रहा है। हाेली भी खत्म हाे गई थी। पेड़ाें में नई काेंपले आ गई ताे उधर पीले पत्ताें ने धरती पर अपना कालीन सा बिछा दिया है। पक्षी हर राेज की तरह धरती से आसमान में आवाजाही कर रहे हैं। काेयल की कूंक ताे यहां सुनाई नहीं देती पर हां कबूतर हर राेज अपनी जुगलबंदी से एक उल्लसित सा वातावरण तैयार कर देते हैं। वैसे यहां बहुत सारे लाेग हर राेज कबूतर काे दाना देते हैं। दाना देखते ही कबूतराें के झुंड के झुंड आ जाते हैं पर कभी इस मुडेर तक कभी दूसरी मुडेर पर। पर कबूतर हमेशा घराें में रहते हैं । वहीं बसेरा हाेता है इनका । पेड़ाें पर गाैरया की तरह सुंदर घाेंसला नहीं हाेता है । पर हां अपने बच्चाें के लिए तिनका - तिनका तिनका यह भी जाेड़ते हैं और तैयार करते हैं एक घर..
अपने नीड़ के लिए हर जीव न जाने कितने सपने बुनता है। इसी घर के लिए ताे पागल हाे गया था उसका देवर.. अपने बच्चे केसाथ खेलने की चाह उसकी भी थी। पर वह अपनी बीवी के लिए न मकान बना सकता था न जमीन खरीद सकता था। उस समय किसी के पास कुछ भी नहीं था। जाे कुछ था सास ससुर का था। जेवर और पैसे चुराकर उसने अपना विश्वास ही खाे दिया था। जाे हमारी सबसे बड़ी पूंजी हाेती है। विश्वास गया ताे सब गया। एकदम ठीक कहा आपने मैम ...यही हुआ उसकी बात पर किसी काे भराेसा नहीं था। इसलिए उसकी बीवी ने सुलहनामा नहीं लिखा ताे नहीं लिखा। आगे सुनिए..
कथा का सूत्र अब उसने अपने हाथ में ले लिया था। मेरे देवर ने खुद काे गाेली मार ली थी । बताया था ना आपकाे । पर वह मरा नहीं। बच गया लेकिन किस्मत देखिए । उसके ऊपर एक और केस चला ।आर्मी में। साेसाइड करने का। उसे मेंटल हास्पिटल भेज दिया गया। एक बार फिर उसके सीआे ने काेशिश की कि उसका घर बस जाए नाैकरी पर बहाली हाे जाए पर उसकी बीवी ने कुछ भी लिखने से इंकार कर दिया। मैंने उसी बात काे राेकते हुए कहा कि तुमने अपनी ननद के बारे में नहीं बताया.. कैसा है तुम्हारे प्रति उसका व्यवहार।वह बहुत अच्छी है मैम। मैंने कहा था ना कि मुझे उससे प्रेरणा मिलती है। वह बहुत सुंदर भी है ।एकदम पहाड़ी ब्यूटी कह सकती हैं। पर वह बाेल और सुन नहीं सकती। इसके बावजूद भी उसने अपने ही तरह के स्कूल से पढ़ाई और और बहुत अच्छे नंबर भी लाई । इस समय वह सरकारी नाैकरी में हैं। मैंने कहा ना मुझे उससे प्रेरणी मिलती थी और उसके सामने अपनी कठिनाई ताे बहुत मामूली सी लगती थी। शादी के बाद मुझे पता चला कि वह बाेलऔर सुन नहीं सकती। घर में उसके प्रति बड़ा उपेक्षित व्यवहार था। पर मेरे साससुर ने एक बात अच्छी करी कि उसे पढ़ाया । उसरी फीस नहीं जाती थी। अपने बेटाें से पहले उसकी पढ़ाई लिखाई की व्यवस्था की। उसने मेरी बहुत मदद की । वह और मैं चिट गेम खेलते थे। चिट के माध्यम से वह मुझे हर बात बताती थी और मैं भी उसकी हर बात बहुत गाैर से सुनती थी। िफर उसकी शादी हाे गई। उसी के तरह के साथी से। किस्मत का खेल देखाे वह आदमी उससे सिर्फ इसिलए शादी की वह नाैकरी करती थी । घर को लाेग कहते है वह ठीक आदमी नहीं था। इस बीच मेरे ससुर भी मर गए अब मेरी सास और ननद रहते हैं वही उनका ख्याल रखती है। मुझसे मिलने आती है। हां जब वह मेरी बेटी काे प्यार करती थी ताे वह डर जाती थी। उसके हावभाव से वह राेने लगती थी। वह उसे चूमती बहुत प्यार करती कभी ताली बजाती लेकिन अपनी ताली की आवाज उसे सुनाई नहीं देती थी। वह जाेर जाेर से बजाती और बच्ची डर जाती। इससे वह घबरा जाती और राेने लगती। मेरी सास उसकाेे वहां से भगा देती । क्याेंकि मैंने बताया था ना कि उनकाे आवाज से गुस्सा आता था। वह टुकर टुकर देखा करती। फिर मैं उसे लिख कर समझाती ताे वह समझ जाती। जब मेरे ससुर शराब पीकर आते ताे वह मेरे पास एक चिट छाे़ड जाती जिस पर लिखा हाेता एलर्ट गुड नाइट.. डू नाट आेपन द डाेर.
वह गुड़िया के लिए तब खुद दूध गरम करके दे जाती थी। मेरा उससे बहुत लगाव है लेकिन सास साेचती है िक अगर इसे घर में आने दिया ताे इसकी बच्ची की जिम्मेदारी लेनी हाेगी िफर मेरा देवर भी ताे है। मूक और बधिर का दुःख कैसा हाेता है यह मैंने बहुत पास से देखा है। उनकीइच्छाएं समाज समझ नहीं पाता उनका प्यार दुलार देख नहीं पाता ।
आंखे भर आई हैं मेरी . टाइप करना मुश्किल हाे रहा है। बेटी भी कह रही है लिख रही हाे या राे रही हाे। वह बार बार पूछ रही हाे क्या लिख रही हीे मम्मी.. साे जाते हैं आज काेई कहानी सुनाआे ना।... क्या सुनाऊं उसे। आप ही सजेस्ट कीजिए..
मैं साेचती हूं िक अगर मेरी ननद काे काेई जूडाे कराटे सिखा दे ताे फिर वह कुछ ताे सुरक्षित रह सकेगी। उसकी चिट में कई तरह की बातें मैंने पढ़ी है। सचमुच संसार में इंसान और जानवर दाेनाें हैं। बड़ा डर लगता है। इसलिए ही ताे मम्मी के घर के पास रहती हूं ।
उसकी भी क्या किस्मत है.. एक भाई था जाे रहा नहीं एक भाई है जाे पागल है एक मां हैं जाे सिर्फ दुःखी है। और दुःख में इतना डूब गई है कि उसे कुछसमझ नहीं आता । वह काेई निर्णयकभी ले नहीं पाई। कभी हमें दुतकार कर भगाती थी कभी वापस आने की जिद करती थी िफर भगा देती थी। भूखा नहीं ऱखती थी पर मनभर खाने भी नहीं देती था। बात बात में कहती है बाप की कमाई खाते शरम नहीं आती। कब तक बाप की कमाई खाते रहाेगे।
जीवन है ताे जीना है जैसा लिखा है वाे ही हाेना है। इसलिए मेरे लिए यह काेई अनाैखी चीज नहीं। आप बताइए।
सच ही ताे है। जैसा लिखा है वैसा ही हाेता है बस कर्म करते जाना चाहिए।
कर्म से ही रास्ता बनता है तुमने अगर रास्ते नहीं तलाशे हाेते ताे क्या आज यह सब कुछ कर पाती। इतना साहस भर पाती...कहानी अभी बाकी है दाेस्ताें. कल तक के लिए विदा लेते हैं। इस कहानी के ५ पार्ट के साथ हम िफर मिलेंगे। एक नई कहानी के साथ दर्द और साहस की एक नई दास्तान के साथ..
मंगलवार, 6 मार्च 2018
टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी पार्ट 3 डा.अनुजा भट्ट
इस कहानी में कितने तरह के माेड़ आते हैं और हर माेड़ पर आकर कहानी ठहरी हुई सी लगती है पर एेसा हाेता नहीं। फिर कुछ एेसा घटनाक्रम बनता है कि कहानी की पूरी धारा ही एकदम बदल जाती है। अब मेरे लिए हर राेज मैसेंजर पर लिंक रहना जरूरी सा हाे गया। वह सचमुच एक नदी की धारा की तरह ही थी। पर एकदम शांत और खुद के भीतर सब कुछ समा लेने का अजीब सा जज्बा लिए। उसे अपनी जिंदगी की हर तारीख महीना याद था। मैंने एकदिन पूछा सब कुछ याद है तुम्हें। छाेटीछाेटी सी बातें... छाेड़िए ना.. आप ही हैं जाे मेरी तारीफ कर रही है.. क्या आज आप मेरे बारे में जानना नहीं चाहेंगी। या बाेर हाे गई। मैंने कहा नहीं बाेर नहीं हुई है यह साेचसाेचकर हैरान जरूर हूं कि तुम यह सब सह कैसे लेती हाे... उधर से जवाब आया कि काश मैं कविता लिख पाती अपना दर्द कह पाती.. पांच साल ही की ताे थी मैं जब मेरी मां मर गई और मेरी बहन ३ साल की। एक एक दिन कैसे कटता गया मुझे सब याद है। मां के रहने तक ही बचपन और बचपना था मेरा। ५ साल की उम्र में ही मां बहन और पापा की जिम्मेदारी देकर हमेशा के लिए चली गई। उस दिन के बाद मुझे हर दिन और तारीख याद हैं।
हां वहीं ताे इतने फटाफट टाइप करती हाे... बताने लगी है वह अब....
पता है मैंम जब हम घर से आए ताे मैं बहुत खुश थी । हम दाेनाे लूडाे खेलते थे । बस वही अच्छे दिन थे मेरी शादी के। उसके बाद डिलीवरी का टाइम आया जाे नवंबर में हाेनी थी । मैंने डिलीवरी के लिए भी पैसे जमा करके रखे थे कि कहीं आपरेशन की जरूरत न पड़ जाए अगर एेसा हुआ ताे क्या करेंगे क्याेंकि इनके घरवालाें से ताे काेई उम्मीद थी नहीं और मैं अपने घर से लेना नहीं चाहती थी क्याेंकि मम्मी जितनी हैल्प नहीं करती थी उतना लाेगाें में बाेल देती थी कि एेसा किया , वैसा किया और पापा काे बाेल देती थी सब कुछ मैंने किया । मैं ही सब कुछ देती हूं। मुझे अच्छा नहीं लगता था। फिर डिलीवरी ताे नार्मल हाे गई और मेरे सास ससुर आए भी, हास्पिटल में मुझे देखने।पर वहां भी मेरी सास ने तमाशा कर दिया। मुझे आकर बाेलने लगी कि दर्द हुआ ताे बता नहीं सकती थी। जबकि मैंने इनकाे बाेल दिया था कि तुम ना सबसे पहले अपनी मम्मी काे बता दाे। इन्हाेने बताया ही नहीं ताे मेरी क्या गलती। और मेरे दर्द हाे रहा हाे ताे उस समय मैं अपनी सास काे फाेन कैसे करती। और फिर पता है जब मेरी बेटी हुई ताे उसके एक पैर में प्राब्लम थी। मेरे साससुर चाहते थे कि हास्पिटल से हम सीधे घर जाएं। पर मेरे हस्बैंड ने बाेला किअगर हम घर गए ताे तुझे ही सारा काम करना पड़ेगा एेसा करते हैं पहले रूम में ही जाते हैं फिर तू थाेड़ा ठीक हाे जाएगी तब घर जाएंगे। ताे फिर हम लाेग 10 वें दिन गए और 11वें दिन में नामकरण था। मुझे लगा थाेड़ा सुधर गए हाेंगे घरवाले । पर नहीं वहां वहीं ड्रामा था। मेरे ससुर जी जब ड्रिंक करते थे ताे उनकाे काेई हाेश नहीं रहता था बिस्तर पर ही सब कुछ। फिर हाेती थी लड़ाई। बाप बेटे की मार पिटाई.. बस फिर आ गए वापस। फिर जब दुबारा आए ताे यह सुबह ही चले जाते थे। मेरे साथ एक बेटी . उसके पैर में प्राब्लम थी उसकाे प्लास्टर चढ़ा था फिर उसके शूज हाेते थे जाे दाेनाे पैराें काे ज्वाइंट करते थे। अरे मैम मैं ताे उसकाे पैजामा भी नहीं पहना पाती थी ठीक से। पाटी करने में भी दिक्कत थी। घर का काम ट्यूशन... मुझे इतनी टेंशन थी िक मुझे भूख ही नहीं लगती थी और बच्ची काे फीड कराना हाेता था। फिर मैं बहुत बीमार हाे गई। मेरा वजन 39 किलाे रह गया.. टीबी हाे गई थी मुझे.. इस बात काे सात साल हाे गए। तब मेरी बेटी कुछ महीने की थी। फिर जब मेरी बेटी 1 साल की हुई ताे मेरी सास फिर आई। मुझे उनपर दया आ गई फिर लगा मेरी बेटी के पास सब कुछ ताे है दादा दादी हैं बुआ है चाचा है मैं क्यूं दूर रखूं उसकाे। इन सबसे फिर लगा कि बच्ची काे देखकर सुधर जाएंगे। ताे मैंने इन्हें बाेला। इन्हाेंने मना कर दिया। मैंने बाेला मैं ताे जा रही। फिर मैं गई ताे अपनेआप ये भी आ गए।
आज बहुत थकी हूं मैम कल फिर बताऊंगी.. काेई बात नहीं अब तुम्हारी बेटी ठीक है ना और तुम भी स्वस्थ हाे ना। हां मैडम मेरी बेटी अब एकदम ठीक है और मैं भी ठीक हूं। तुम्हारी ननद का व्यवहार कैसा है तुम्हारे प्रति। वह बहुत अच्छी है मेरे लिए। और वह बहुत मेहनती भी है उसी से ताे मुझे हिम्मत मिलती है। यह सब कर सकती है ताे मैं क्याें नहीं । उसके बारे में कल बताऊंगी क्याें मिलती है मुझे उससे प्रेरणा... मेरी बेटी उसे खिलाैना क्यूं लगती थी....
वह अाफ लाइन हाे गई है । फिर से कई सवाल और कई दर्द काे पीछे छाेड़कर.... मुझे लगता है शायद उसकी ननद ही एक मात्र एेसी सदस्य हाेगी जाे उसका साथ देती हाेगी और उसकी बच्ची काे बहुत प्यार करती हाेगी। छाेटे बच्चे ताे वैसे भी बहुत प्यारे हाेते है। इसलिए वह उससे खेलती हाेगी। जैसे बच्चे खेलते हैं खिलाैनाें से। चलाे कहीं ताे सुःखांत है इसके जीवन में। तकलीफ भरे रास्ते में छायादार वृक्ष का हाेना उतना ही जरूरी है जितना तपिश में पानी की बूंद का टपक जाना। ताे दाेस्ताें कल फिर मिलते हैं इस कहानी के ४ िहस्से क साथ..
टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी पार्ट 2- डा. अनुजा भट्ट
यहां समय ठीक रात्रि के 10 बजे हैं। आपको कहानी पोस्ट करके अब अपने वायदे के मुताबिक पार्ट 2 लिख रही हूं। मौसम अच्छा और खुशगवार है। सोचा उसके हाल चाल तो ले लूं। इस समय उसके शहर में बारिश हो रही हैं। पहा़ड़ी इलाके में लोग जल्दी सो जाते हैं पर उसकी आंखों में नींद नहीं है। उसके सिर में दर्द है और भले ही वह कहे या न कहे बेचैनी तो होगी ही। बारिश सहसा तेज हो गई है और वह निडर लड़की बाहर निकलकर बारामदे में लगे कपड़े उठा रही है। उसमें उसके नहीं मकानमालकिन के कपड़े हैं जो इस समय गहरी नींद में है। पर इसे तो जागना है क्योंकि कल अगल अलग क्लास के बच्चों का टेस्ट लेना है तो प्रश्नपत्र बनाना है। दोस्तो मैंसेंजर में आ गई है वह अब अपनी कहानी लेकर चलिए मैं आप सब उसकी कहानी पढ़ें। गजब के इमोजी लगाती है लड़की. उदास चेहरे नहीं है आज. पर एक बच्चा एक हाथ से फूल दे रहा है तो तुरंत वापस ले रहा है... क्या कहना चाहती है यह लड़की। मुझे लगा कि शादी के बाद अच्छा घर मिलेगा। शांति और प्यार मिलेगा। पर शादी के बाद भी कुछ ठीक नहीं रहा क्याेंकि वहां का एडमासफियर तो और भी खराब था। वहां मेरे ससुर ड्रिंक करते थे और सास तो इतनी खतरनाक थी कि क्या बताऊं। उनकी मर्जी के बिना वहां पत्ता भी नहीं हिल सकता था। उनकी अपने बच्चों में ही मार पिटाई होती थी। इतने जवान बच्चे मां बाप को मारते थे, हाथ उठाते थे और वह भी बच्चों को मारते थे। आप सोचो घर कैसा होगा जहां मां बाप को बच्चे मारते हों। मैंने तो अपने घर में मां के रोज रोज के क्लेश से शादी के लिए हां कर दी थी पर मेरी किस्मत में तो क्लेश ही क्लेश लिखा था। मेरे हसबैंड थोड़ा ठाक थे। पर बचपन में जिसने मां बाप में इतना क्लेश देखा हो उनपर भी असर तो होगा ही। डन्होंने भी मुझे झूठ बोला कि मैं ग्रेजुएट हूं। बट शादी के बाद पता चला कि वह 10वीं किए हुए थे। पर मैंने अपने दुःख को ताकत बनाया। मेरे पापा बहुत प्राउड फील करते थे मेरे लिए। फिर पता है मैम मेरे हसबैंड का भी कोई ठीकठाक काम नहीं था। पर मैने उनको नोटिस किया कि वह बहुत इंटेलीजेंट और स्मार्ट थे। पर उनको ऐसा एडमासफियर ही नहीं मिला। और मेरी सास शादी के वन मंथ बाद ही घर से निकलने के लिए बोलने लगी। बोलती थी बाप की कमाई खा रहे हो निकलो यहां से। ये लोग दो भाई थे दोनों की शादी एक ही दिन हुई थी। वो आर्मी में था। वह भी पागल ही निकला। अपनी वाइफ को अपने साथ लेकर गया और ले जाकर मारा और उसकी ज्वैलरी भी बेच दी। फिर 4 महीने बाद घर आया उसको लेकर और फिर घर से पैसे चोरी कर लिए । बहुत क्लेश हुआ। बहुत मारपिटाई हुई सब की आपस में। मेरी सास ने अंतिम एलान किया निकलो घर से और हमारा सामान फैंक दिया। बस क्या था निकल गए.... और पता है वहां सुबह 5 बजे उठ जाना होता था और सीधे नहां कर पूजा करके अंधेरे में सब काम निपटाना होता था और अगर लेट हो गए तो सास बातचीत बंद कर देती। फिर तो और महाभारत होता क्योंकि वेजीटेबल में कितना ओनियन डालना है ये भी पूछना होता था। आप ये सोचो कि हम दोनों नई नवेली बहुएं पाजेब और चूड़ी नहीं पहन सकती थी क्योंकि उनसे आवाज होती थी और मेरी सास को आवाज पसंद नहीं थी। किचन में खाना बनाते हुए बर्तनों की आवाज नहीं होनी चाहिए। एकतरफ इतना सन्नाटा और दूसरी तरफ रोज का हाहाकार... उसदिन की लड़ाई के बाद जब घर से बाहर निकले तो बहुत खुश थी सच में। आज सोचती हूं अक्ल ही नहीं हुई और ऊपर से मैं प्रेग्नेंट थी। पिंजरे से बाहर निकल आए। यह 2008 की बात है। केवल 3000 में गृहस्थी की शुरूवात की। मेरे देवर और देवरानी ने भी उसी दिन घर छोड़ दिया। मेरी देवरानी अपने मायके चली गई और उसी के पास कमरा लेकर रहने लगी। वह भी उस वक्त प्रेगनेंट थी. उसके पेरेंट्स यह बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने देवर को सबक सिखाने के लिए उसकी लिखित शिकायत उसके आफिस में कर दी। आर्मी में अगर परिवार की तरफ से शिकायच जाती है तो तुरंत एक्शन होता है। उसका कोर्टमार्शल हुआ और नौकरी छूट गई। पर उसका सीईओ भला आदमी था। उसने कहा अगर तुम्हारी पत्नी लिखित में सुलहनाम दे सकती है तो तुम्हारी नौकरी फिर से बहाल हो जाएगी। पर उसकी बीबी नहीं मानी। उसने दो शर्त रखी पहली तो मेरे लिए घर का प्रबंध करो और मेरे लिए जमीन लो। यह उस समय संभव नहीं था। ऐसा न होने पर उसने सुलहनामा लिखने से मना कर दिया। मेरे देवर ने गोली मार ली...
हमने जहां घर लिया वहीं मकानमालकिन के बच्चों को मैं ट्यूशन पढ़ाने लगी। उनके दो बेटे थे और दोनों ने रिर्जट बहुत अच्छा किया। फिर तो मेरे पास बहुत सारे बच्चे आने लगे। इन्होंने भी 1985 माडल की एक गाड़ी खरीद ली और उसे स्कूल में लगा दिया। यह स्कूल के बच्चों को लाने ले जाने लगे। उस समय मेरे ससुर जी ने थोड़ी मदद कर दी। ट्यूशन के साथ मैंने सिलाई का काम करना भी शुरू किया। मेरी नई मां ने ही मुझे सिलाई सिखाई। ताकि घर में कुछ अतिरिक्त आमदनी हो सके। आखिर पहली मां से हम दो बहनें थी। हमारी परवरशि का भी खर्च था। जब मेरी सिए कपड़े लोग पसंद करते तो बड़े गर्व से कहती कि मैंने कहा था सिलाई सीख। इससे मुझे फायदा यह हुआ कि घर का खर्च चलाना आसान हो गया। घर से जब हम बाहर निकले तो वह समय मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत ख्वाब था। हमारे पास पैसे तो थे नहीं पर हमारे पास सपने बेशुमार थे.... मैंम आप बोर हो गई ना... क्या करेंगी जानकर सुनकर। पर मेरे लिए तो आप... क्या कहूं मैंम। हद करती हो तुम... इस तरह क्यों सोचती हो। मैंने कहा था ना दुःख को बादलों की तरह होना चाहिए। समय समय पर बरसेंगे नहीं .तो प्रलय । मुक्तिकामी भी बादल ही तो हैं और हमारी आंखें जिनसे हम देखते हैं सारी दुनिया और शाश्वत शिव की तरह पी लेते हैं जिंदगी के कई गरल कई सरल। किसी के कंधे पर लुड़क जाती है तो कभी बारिश में समा जाती है यह बूंदे ही ताे है। पर मंथन तो जरूरी है... अमृत जरूर निकलेगा.. मैसेंजर ने फिर से टमटमाया और एक ना ना करता चलता फिरता इमोजी कहने लगा नो नो नो फिर शब्द तैर आए जैसे तैर आते हैं बादल..अभी तो बहुत कुछ जानना है आपने। अमृत इतनी आसानी से नहीं मिलता मुझ जैसों को। यह तो आप भी मानती है ना। सो जाइए अब। अपना दुःख कहकर मैंने आपको बेवजह ही परेशान कर दिया। कल फिर मिलेंगे अगर आप परेशान न हाें ताे। देखिए बारिश कितनी तेज हो रही है। आपकाे कैसे पता चलेगा वहां....और अब एक छाता के साथ इमोजी मुस्कुरा कर कह रहा था. गुड नाइट कहानी बाकी है अभी जैसा मैसेंजर ने बताया...
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