बुधवार, 7 मार्च 2018

टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी- पार्ट 4 डा. अनुजा भट्ट


मौसम बदल रहा है। हाेली भी खत्म हाे गई थी। पेड़ाें में नई काेंपले आ गई ताे उधर पीले पत्ताें ने धरती पर अपना कालीन सा बिछा दिया है। पक्षी हर राेज की तरह धरती से आसमान में आवाजाही कर रहे हैं। काेयल की कूंक ताे यहां सुनाई नहीं देती पर हां कबूतर हर राेज अपनी जुगलबंदी से एक उल्लसित सा वातावरण तैयार कर देते हैं। वैसे यहां बहुत सारे लाेग हर राेज कबूतर काे दाना देते हैं। दाना देखते ही कबूतराें के झुंड के झुंड आ जाते हैं पर कभी इस मुडेर तक कभी दूसरी मुडेर पर। पर कबूतर हमेशा घराें में रहते हैं । वहीं बसेरा हाेता है इनका । पेड़ाें पर गाैरया की तरह सुंदर घाेंसला नहीं हाेता है । पर हां अपने बच्चाें के लिए तिनका - तिनका तिनका यह भी जाेड़ते हैं और तैयार करते हैं एक घर..

अपने नीड़ के लिए हर जीव न जाने कितने सपने बुनता है। इसी घर के लिए ताे पागल हाे गया था उसका देवर.. अपने बच्चे केसाथ खेलने की चाह उसकी भी थी। पर वह अपनी बीवी के लिए न मकान बना सकता था न जमीन खरीद सकता था। उस समय किसी के पास कुछ भी नहीं था। जाे कुछ था सास ससुर का था। जेवर और पैसे चुराकर उसने अपना विश्वास ही खाे दिया था। जाे हमारी सबसे बड़ी पूंजी हाेती है। विश्वास गया ताे सब गया। एकदम ठीक कहा आपने मैम ...यही हुआ उसकी बात पर किसी काे भराेसा नहीं था। इसलिए उसकी बीवी ने सुलहनामा नहीं लिखा ताे नहीं लिखा। आगे सुनिए..

कथा का सूत्र अब उसने अपने हाथ में ले लिया था। मेरे देवर ने खुद काे गाेली मार ली थी । बताया था ना आपकाे । पर वह मरा नहीं। बच गया लेकिन किस्मत देखिए । उसके ऊपर एक और केस चला ।आर्मी में। साेसाइड करने का। उसे मेंटल हास्पिटल भेज दिया गया। एक बार फिर उसके सीआे ने काेशिश की कि उसका घर बस जाए नाैकरी पर बहाली हाे जाए पर उसकी बीवी ने कुछ भी लिखने से इंकार कर दिया। मैंने उसी बात काे राेकते हुए कहा कि तुमने अपनी ननद के बारे में नहीं बताया.. कैसा है तुम्हारे प्रति उसका व्यवहार।वह बहुत अच्छी है मैम। मैंने कहा था ना कि मुझे उससे प्रेरणा मिलती है। वह बहुत सुंदर भी है ।एकदम पहाड़ी ब्यूटी कह सकती हैं। पर वह बाेल और सुन नहीं सकती। इसके बावजूद भी उसने अपने ही तरह के स्कूल से पढ़ाई और और बहुत अच्छे नंबर भी लाई । इस समय वह सरकारी नाैकरी में हैं। मैंने कहा ना मुझे उससे प्रेरणी मिलती थी और उसके सामने अपनी कठिनाई ताे बहुत मामूली सी लगती थी। शादी के बाद मुझे पता चला कि वह बाेलऔर सुन नहीं सकती। घर में उसके प्रति बड़ा उपेक्षित व्यवहार था। पर मेरे साससुर ने एक बात अच्छी करी कि उसे पढ़ाया । उसरी फीस नहीं जाती थी। अपने बेटाें से पहले उसकी पढ़ाई लिखाई की व्यवस्था की। उसने मेरी बहुत मदद की । वह और मैं चिट गेम खेलते थे। चिट के माध्यम से वह मुझे हर बात बताती थी और मैं भी उसकी हर बात बहुत गाैर से सुनती थी। िफर उसकी शादी हाे गई। उसी के तरह के साथी से। किस्मत का खेल देखाे वह आदमी उससे सिर्फ इसिलए शादी की वह नाैकरी करती थी । घर को लाेग कहते है वह ठीक आदमी नहीं था। इस बीच मेरे ससुर भी मर गए अब मेरी सास और ननद रहते हैं वही उनका ख्याल रखती है। मुझसे मिलने आती है। हां जब वह मेरी बेटी काे प्यार करती थी ताे वह डर जाती थी। उसके हावभाव से वह राेने लगती थी। वह उसे चूमती बहुत प्यार करती कभी ताली बजाती लेकिन अपनी ताली की आवाज उसे सुनाई नहीं देती थी। वह जाेर जाेर से बजाती और बच्ची डर जाती। इससे वह घबरा जाती और राेने लगती। मेरी सास उसकाेे वहां से भगा देती । क्याेंकि मैंने बताया था ना कि उनकाे आवाज से गुस्सा आता था। वह टुकर टुकर देखा करती। फिर मैं उसे लिख कर समझाती ताे वह समझ जाती। जब मेरे ससुर शराब पीकर आते ताे वह मेरे पास एक चिट छाे़ड जाती जिस पर लिखा हाेता एलर्ट गुड नाइट.. डू नाट आेपन द डाेर.

वह गुड़िया के लिए तब खुद दूध गरम करके दे जाती थी। मेरा उससे बहुत लगाव है लेकिन सास साेचती है िक अगर इसे घर में आने दिया ताे इसकी बच्ची की जिम्मेदारी लेनी हाेगी िफर मेरा देवर भी ताे है। मूक और बधिर का दुःख कैसा हाेता है यह मैंने बहुत पास से देखा है। उनकीइच्छाएं समाज समझ नहीं पाता उनका प्यार दुलार देख नहीं पाता ।

आंखे भर आई हैं मेरी . टाइप करना मुश्किल हाे रहा है। बेटी भी कह रही है लिख रही हाे या राे रही हाे। वह बार बार पूछ रही हाे क्या लिख रही हीे मम्मी.. साे जाते हैं आज काेई कहानी सुनाआे ना।... क्या सुनाऊं उसे। आप ही सजेस्ट कीजिए..

मैं साेचती हूं िक अगर मेरी ननद काे काेई जूडाे कराटे सिखा दे ताे फिर वह कुछ ताे सुरक्षित रह सकेगी। उसकी चिट में कई तरह की बातें मैंने पढ़ी है। सचमुच संसार में इंसान और जानवर दाेनाें हैं। बड़ा डर लगता है। इसलिए ही ताे मम्मी के घर के पास रहती हूं ।

उसकी भी क्या किस्मत है.. एक भाई था जाे रहा नहीं एक भाई है जाे पागल है एक मां हैं जाे सिर्फ दुःखी है। और दुःख में इतना डूब गई है कि उसे कुछसमझ नहीं आता । वह काेई निर्णयकभी ले नहीं पाई। कभी हमें दुतकार कर भगाती थी कभी वापस आने की जिद करती थी िफर भगा देती थी। भूखा नहीं ऱखती थी पर मनभर खाने भी नहीं देती था। बात बात में कहती है बाप की कमाई खाते शरम नहीं आती। कब तक बाप की कमाई खाते रहाेगे।

जीवन है ताे जीना है जैसा लिखा है वाे ही हाेना है। इसलिए मेरे लिए यह काेई अनाैखी चीज नहीं। आप बताइए।

सच ही ताे है। जैसा लिखा है वैसा ही हाेता है बस कर्म करते जाना चाहिए।











कर्म से ही रास्ता बनता है तुमने अगर रास्ते नहीं तलाशे हाेते ताे क्या आज यह सब कुछ कर पाती। इतना साहस भर पाती...कहानी अभी बाकी है दाेस्ताें. कल तक के लिए विदा लेते हैं। इस कहानी के ५ पार्ट के साथ हम िफर मिलेंगे। एक नई कहानी के साथ दर्द और साहस की एक नई दास्तान के साथ..

special post

कुमाऊंनी भाषा के कबीर रहीम की जोड़ी डा. अनुजा भट्ट

   हल्द्वानी जो मेरे बाबुल का घर है जिसकी खिड़की पर खड़े होकर मैंने जिंदगी को सामने से गुजरते देखा है, जिसकी दीवारों पर मैंने भी कभी एबीसी़डी ...