शनिवार, 17 मार्च 2018

बीमारी, तीमारदारी, दुनियादारी सुशील सिद्धार्थ

सुशील सिद्धार्थ
व्यंग्य संग्रह : प्रीति न करियो कोय, मो सम कौन, नारद की चिंता, मालिश महापुराण काे क्या काेई भूल सकता है। कभी नहीं। इनके रचनाकार आज अचानक हमरा साथ छाेड़कर चले गए। पर हम कभी इनकाे भुला ना पाएंगे। शत शत नमन..



बीमारियाँ जीवन दर्शन के वृक्ष की शाखाएँ हैं। किसी भी शाखा में लटक जाइए किसी न किसी ज्ञान में अटक जाएँगे। बीमार शब्द ही अद्भुत है। अस्वस्थ कहने से हाय हाय के कैनवास पर मुर्दनी, बदहाली, तबाही का वैसा चित्र नहीं खिंचता जैसा बीमार कहते ही लपक उठता है। इसलिए बीमार आदमी कुछ खास होता है। कई बार खास दिखने के लिए कुछ समझदार लोग खुशी खुशी बीमार से बने रहते हैं। उर्दू कविता का तो आधा काम बीमारी से ही चलता है। बीमारेमुहब्बत की हाय हाय न हो शायरी में सन्नाटा खिंच जाए। दर्द मरीज आह दवा मसीहा इलाज बिस्तर कमजोरी मौत कफन कब्र जैसे लफ्ज न हों तो शायरी लगभग गूँगी हो जाए। एक जमाने में लखनऊ की नफासत का साज बीमारी के दम से ही बजता था। जब कोई पूछता था कि हुजूर के दुश्मनों की तबीयत नासाज तो नहीं है। खैर। ऐसे ही किसी बीमारियाना मूड में मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा था कि पड़िए गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार। ग़ालिब का क्या है। वे तो कुछ भी कह देते थे। वे कह सकते थे कि मेरे मरने के बाद मेरे घर से जाने कैसी तस्वीरें और चंद हसीनों के खत निकले। हम और आप यह खतरा उठा सकते हैं क्या। मोबाइल से एक शाकाहारी मैसेज निकल आए तो घर से निकलने की आदर्श स्थिति आ जाएगी। लेकिन इतने बड़े शायर ने कहा है तो कुछ वजन होगा जरूर। बीमार और तीमारदार का चोली दामन का साथ वे भी मानते हैं जो चोली की चेतना और दामन की दयालुता से अब तक नावाकिफ हैं।  यह गौरतलब है कि ग़ालिब ने तीमारदार से तौबा क्यों की थी। उनका तो वे जाने मगर कुछ तजुर्बेकार लोगों से बातचीत कर मैंने जो ज्ञान हासिल किया वह प्रस्तुत है।
आदमी तीमारदारी से तब तौबा करता है जब तीमारदारी खुद एक बीमारी बन जाती है। आदमी दुनियादार है तो बीमारी का आनंद और ज्यादा। तीन चीजें आपके सुकून को जुनून में बदल सकती हैं, बीमारी तीमारदारी दुनियादारी। दुनिया वालों का प्यार सबसे ज्यादा तब उमड़ता है जब आप बिस्तर की चौहद्दी में सीमित हों। तब देखिए लोगों का सामान्य ज्ञान, मेडिकल साइंस पर उनकी पकड़, हरिओम से लेकर अनुलोम विलोम तक उनकी पहुँच, भाँति भाँति की पैथियों पर उनके शोध प्रबंध, संयम और परहेज पर उनका आध्यात्मिक अनुसंधान। जो साधारण सा जुकाम हो जाने पर रूमाल से नाक तक नहीं पोछ पाते वे आपकी रिपोर्टों को ऐसी गंभीरता से पढ़ते हैं कि एम्स वाले चरण चूमने लगें। ऐसी लंबी साँस भरेंगे निकालेंगे कि बच्चे वसीयत के लिए वकील को फोन करने लगें। फिर तमाम मनन के बाद एक बहुत महत्वपूर्ण बात कहेंगे कि भाई साहब हम क्या कहें। जो डॉक्टर कहे वही करिएगा। जैसे बीमार तय किए बैठा है कि जब तक ये नहीं कहेंगे तब तक डॉक्टर की बात नहीं माननी। जो आठ बजे सुबह उठकर किसी तरह दाँत माँजकर दफ्तर भाग लेते हैं वे अनुशासन की मूर्ति बन जाएँगे। ऐसा है सुबह पाँच बजे बिस्तर छोड़ दिया करिए। एक गिलास पानी पिया और निकल गए टहलने। भाभी जी रोज यह कहती होंगी मगर आप सुनते नहीं। भाभी जी की बात माना करिए। मैंने आपसे कई बार कहा है। इसके बाद आनेवाली चाय के साथ समोसा या पकौड़ी न आए तो भाभीजी की महानता कैसे प्रमाणित हो। वे समोसा खा रहे, आप लार घूँट रहे हैं और उनकी भाभी यानी आपकी पत्नी के प्रवचन उमड़ रहे। क्या कहूँ भाई साब, मान ही लेते तो आज यह हालत क्यों होती। मैं इतनी केयर करती हूँ कि...। उसके बाद जाने कैसे कैसे संस्मरण। भावुकता की चाय में डुबो कर उपदेश के बिस्कुट खाते रहिए।
कोई बहुत गंभीर मामला न हो तो बुखार आदि मामलों में गिरफ्तार पति को देखकर पत्नी उत्साह से भर उठती है। ऐसा है, अपना यह मोबाईल मुझे दो। कुछ दिन अपना माइंड फ्री रखो। तुमने बहुत नरक काट रखा है। दिन्न भर। ये न्यूज, वो मैसेज, ये फोन वो चैट। ये बधाई वो वाहवा। कित्ती फुरसत है लोगों को। अभी बीमार हो इसलिए कुछ नहीं कह रही। मुझे सब मालूम है वहाँ क्या होता है। कहीं उल्टा सीधा चैट हो गया तो। अभी बीमार हो इसलिए...। मुझसे बात करने की फुरसत नहीं। और? नहीं आज मटर पनीर नहीं बनेगा। डॉक्टर ने मना किया है। किसी बात पर तुम्हारा कंट्रोल नहीं। अभी बीमार हो इसलिए...। तीमारदारी में लगी पत्नी से अगर कह दिया कि उन्ने शांति रखने के लिए भी कहा है तो फिर भुगतिए। देखभाल अच्छी लगती है मगर इतनी हो कि देखने भालने पर पाबंदी लग जाए तो रूह फना होने लगती है।
तीमारदारी में आशंकाओं की खासी भूमिका है। वैसे समकालीन चिकित्सा जगत का बहुत सारा चमत्कार आशंका नामक गुफा में छिपा है। वैधानिक चेतावनी यह है कि अलीबाबा और चालीस चोर की कहानी से इस गुफा का कोई संबंध नहीं है। यह जाँचों की गुफा है। खुल जा जाँच जाँच। आप, तीमारदार और डॉक्टर। कुछ क्षणों में डॉक्टर आपको कब्जे में ले लेगा। आपके तीमारदार से कुछ कहेगा। कहने के समय आपको चेंबर से बाहर बिठाया जा सकता है। फिर तीमारदारी और दुनियादारी की सलाहें शुरू। ऐसा है, डॉक्टर कोई उल्लू तो है नहीं। जितनी जाँचें कही हैं उतनी करा लो। ठीक है हल्की खाँसी है मगर फेफड़ों की लीवर की पूरी जाँच करा लीजिए। दिल भी जँचा डालिए। अरे अरे। चच्च चच्च। ऐसा न कहिए। डॉक्टर कोई उल्लू तो है नहीं। खाँसी का दिल से क्या घुटने से भी ताल्लुक है। हमारे पड़ोस के तिरवेदी जी खाँसते थे तो घुटने काँपने लगते थे। घुटने बदलवाए तब खाँसी में आराम आया। डॉक्टर कोई...। चंचल भाई के दाँतों में दर्द उठता था तो छींकें आने लगती थीं। दाँतों का नया सेट लगवा लिया बस नाक सही हो गई। शरीर का हर पुर्जा एक दूसरे से कनेक्ट है कि नहीं। डॉक्टर कोई...।
जब इस तरह कोई घिर जाता है तब उसका सोया दार्शनिक अँगड़ाई ले उठता है। तब वह बीमारी की डाल पर झूला झूलने लगता है। डॉक्टर पींगे बढ़ाने लगते हैं। कई बार कुछ लोग बीमारी को लोकगीत उपन्यास महाकाव्य की तरह लिखने लगते हैं। हर मिलने जुलने वाले को व्याधिदान (बतर्ज गोदान) नामक महाकाव्य या उपन्यास के अंश सुनाने लगते हैं। कोई भूल से कह भर दे कि अब नाखून का दर्द कैसा है। प्रेरणा मिल गई। रचना पाठ शुरू। किसी भी किस्सागो से बड़े किस्सागो। बीच में टोका कि नाराज, यार या तो कोई बात पूछो मती या फिर पूरी बात सुनो। मैं तो मर मर के किसी तरह बता रहा हूँ और तुम कानून छाँट रहे हो। मतलब, वियोगी होगा पहला कवि अंतिम सत्य नहीं है। हो सकता है कोई बीमार आदमी ही पहला कवि हो गया हो। आजकल की बहुतेरी कविताओं को देखकर बीमारी और कविता के रिश्ते पर बड़ी बहस निकाली जा सकती है। खैर, धीरे धीरे यह रचना हर परिचित को कंठस्थ हो जाती है। इस तरह बीमारी के कई संस्करण और पाठ तैयार हो जाते हैं।
दर्शन का दूसरा चरण है पीड़ा से प्यार। कुछ लोग बीमारी को महबूबा बना लेते हैं। आप सब कुछ कहिए उनकी प्यारी बीमारी को कुछ न कहिए। कह के तो देखिए, कि साब यह कौन सी बीमारी है। एहतियात रखें तो जल्द दूर हो जाएगी। वे नाराज हो जाएँगे। जानते भी हैं कुछ कि जो मुँह में आया कह गए। इस बीमारी की महिमा शास्त्र में गाई गई है। क्या बात करते हैं आप भी। उनका बस चले तो प्रसिद्ध श्लोक का रूपांतरण इस तरह कर डालें। यदा यदा हि बुखारस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम  जुकामस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्। यानी यह बीमारी महान। इससे बीमार मैं महान।
दर्शन का तीसरा चरण दुनियादारी से जुड़ा है। लोग गणित लगाकर डायरी मेंटेन करते हैं। अरे जाइए साब। इनको क्या। जब मैं भर्ती था तब देखने आनेवालों की लाइन लगी रहे। डॉक्टर ससुर एक दूसरे से फुसफुसाएँ कि बेट्टा, यह है बीमारी। इसे कहते हैं बीमार होना। कुछ आनेवाले तो तैयार कि साहब हमारा भी एक बेड बाबूजी के पास लगा दो। डॉक्टर जाने कैसे हाथ पाँव जोड़ कर सबको मना करें। बात करते हो। हमारे सामने उड़ा न करो।
इसलिए साहिब, बीमारी तीमारदारी और दुनियादारी का महान दर्शन आसान नहीं। इसे कोई बीमार मनीषी ही समझ सकता है। 

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कुमाऊंनी भाषा के कबीर रहीम की जोड़ी डा. अनुजा भट्ट

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