गुरुवार, 16 मई 2013

सपनों की उड़ान 1

3- 4 साल की उम्र में ही वह पक्षाघात के शिकार हो गए थे और उनका एक पैर बिलकुल टेढ़़ा हो गया। उस उम्र में जब उनके साथी बाहर मैदान में खेला करते आपस में झगड़ा करते मारते पीटते वह बस उनको देखता रहता और अचानक से उसका ध्यान अपने पैर पर जाता। वह अपनी अम्मा पूछता कि क्या मेरे पैदा होते समय से ही मेरा पैर ऐसा है। वह कहता मेरा पैर टेढ़ा क्यों है? देखो ना अम्मा अन्नपूर्णा
कितना इठला इठलाकर डांस कर रही हैं, कितनी सुंदर लग रही है और मुन्नी अपनी सहेलियों के साथ दौड़ती भागती रहती है। इनका पैर तो टेढ़ा नहीं है फिर मेरा क्यों है। अपनी ही संतान द्रारा पूछे गए मासूम सवालों का मां क्या उत्तर दे। पास ही खड़े पिता ने उत्तर दिया एक शिक्षक होने के नाते वह महसूस करते थे कि बच्चो के हर सवाल का उत्तर दिया जाए।
तुमको पक्षाघात हुआ है श्रीधर। यह किसी को भी हो सकता है और जरूरी नहीं कि हर किसी को हो। यह क्यों होता है यह मुझे मालूम नहीं है। बस तुम यह जान लो कि शायद तुम्हारी किस्मत में खेलना -कूदना नहीं है। पर तुम पढ़ाई कर सकते हो और अपने भाई- बहन में सबसे ज्यादा आगे निकल सकते हो। तुमको सिर्फ पढऩे का ही काम है वैसे भी घर के किसी काम में तुम मदद नहीं कर सकते इसलिए अपना ध्यान पढ़ाई- लिखाई में लगाओ। रामरक्षा याद करो। हो सकता है रामरक्षा पढक़र तुम्हारे पांव भी सीधे हो जाए। ऐसे चमत्कार हुए हैं। यह देवीय प्रकोप भी हो सकता है जिसे पूजा- पाठ से ही ठीक किया सकता है। कल से रामरक्षा याद करना शुरू कर दो।
एक तरफ रामरक्षा उसके सबक और दूसरी तरफ वह नन्हा बालक। बचपन से ही उसे इस कर्मकांड से चिड़ हो गई और वह दर्शन की तरफ मुड़ गया । ईश्वर में विश्वास था पर कर्मकांड में नहीं।
मेरे नाना ने उनको सख्त अनुशासन में रखा और खुद भी उस अनुशासन में बंधे। परिवार में सभी को अनुशासन में रहना होता था इसे मजबूरी भी कह सकते है। इस कठोर अनुशासन की एक वजह यह भी थी कि उन्होंने भविष्य को देख लिया था और वर्तमान उनके सामने था। वह नहीं चाहते थे कि कोई उनके बच्चे को बेचारा कहे। वह हमेशा दूसरों पर निर्भर रहे। मेरी नानी मेरे नाना के इस कठोर व्यवहार से दु:खी रहती। जब कभी वह उनको गोदी में पकड़़ दुलार के समुंदर में ले जाना चाहती। सामने खड़े नाना को देखकर वह रूक जाती। पूरे जीवन भर गोदी में उठाकर नहीं रख पाएगी। नीचे छोड़ दे और चलना सीखने दे। यह दृश्य बच्चा अपनी आंखों से ओझल नहीं कर पाया और अपनी मां के और करीब होता गया साथ ही पिता के साथ एक दूरी बनती गई। यह दूरी विचारों की भी थी।
एक मां के लिए इससे अनमोल दौलत क्या होगी कि जब उसके बच्चे को कोई प्यार करे उसके लिए उसकी आंखों में आँसू हो। अपने पति द्रारा अपने बेटे की उपेक्षा भला किस मां को पसंद आएगी। पर एक पिता होने के नाते मेरे नाना जानते थे कि अगर इसे हर समय इसी तरह गोदी में रखा जाएगा तो कभी यह चल नहीं पाएगा। और फिर हमारे न रहने पर इसका क्या होगा। यह सोचकर उनकी रुह कांप जाती। आसपास के लोगों की बेचारगी भरी बातें उनके दर्द को कम करने के बजाए और ज्यादा बढ़ा देती पर वह यह सब नानी से नहीं कहते क्योंकि नानी को तो वह सब लोग बहुत भले लगते । सपनों की उड़ान यहीं से शु रू होती है..
सपनों की उड़ान- ऐसे विक्लांगों की कहानियां जिन्होंने सफलता का शिखर छुआ

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