बुधवार, 15 मई 2013

सपनों की उड़ान


गर्मियों की छुट्टियां बहुत बार ननिहल में गुजारी। यूं तो ननिहाल पिथौरागढ़ के एक छोटे से गांव पभ्या में हुआ पर हमारे लिए हमारा ननिहाल पीलीभीत था क्योंकि नाना वहीं संस्कृत के अध्यापक थे। ममरे भाई-बहनों के साथ बचपन की वह यादें अभी भी कई बार हँसाती हैं या फिर मेरी किरस्सागोई का हिस्सा बन मेरी बेटी के लिए एक तिलिस्म रचती हैं। तब हम सब तितलियों को पकडऩे के लिए न जाने कितनी दूर तक दौड़ जाते थे। पत्थर के ढेले से आम गिराने के लिए तब हम न धूप देखते थे और न कुछ और। गिरे आम को खोजने के लिए हम अपनी पूरी ऊर्जा खर्च कर देते। ऐसे होते थे हमारे समरकैंप। इन समर कैप में एक प्रिसिंपल भी छुट्टियों में घर आते थे और वह थे हमारे मामा। उनकी छड़ी उनके सिहराने रहती। बाहर बरामदे में जिसमें चिक लगी होती थी उनकी एकमात्र जगह थी। वहीं वह पढ़ते और आराम करते। हम में से सबसे छोटा भाई बहन नीचे लेटकर देखता कि उनका चश्मा क्या र ्रखा हुआ है? यदि हां तो फिर हम धीरे धीर सरक सरक कर निकल जाते। चश्मा नहींं होने का मतलब था कि वह पढ़ रहे हैं और हम सब उनकी गिरफ्त में आ सकते हैं। हम सब बच्चों को उनका डर था।
जबकि कभी वह हमें मारते नहीं थे पर एक अजीब सा डर सभी बच्चों के भीतर तारी था। एक बार मां ने कहा था उनका सारा गुस्सा छड़ी में है, जान लो। अगर बदमाशी करी और दादा को गुस्सा आया तो फिर दीदी जैसी पिटाई होगी। मालूम है। पाठकों, दीदी वाली बात आपको बतानी पड़ेगी क्योंकि तभी आप उस डर को जस्टीफाई कर पाएंगे। एक बारा मामा और मौसी घर आए। तब आजकल की तरह फ्रिज तो नहीं थे कि घर पर ही आइसक्रीम जमाने का जमाने का आइडिया क्लिक किया जाए। इसीलिए आइसक्रीम या तो लोग ठेले पर खाते या फिर रेस्तरां में जाकर। मेरे मामा सडक़ पर खा नहीं सकते थे लिहाजा मामा और मौसी के साथ मेरे दीदी कुल्फी खाने गई। खाकर घर लौटेने लगे तो रास्ते में एक बर्फ कि सिल्ली ले जाता ठेला दिखाई दिया। उसके कोमल मन ने सोचा कि बर्फ खाकर देखी जाए। आखिर बर्फ से ही तो कुल्फी बनी दी। वह जिद करने लगी मामा बर्फ खिलाओ। मामा ने समझाया पर वह तो अड़ गई। फिर मामा को गुस्सा आया और उन्होमे उसी छड़ी से उसकी पिटाई कर दी। मौसी तो रोने लगी ..
मामा की वह मार ऐसी पड़ी कि दीदी ने जिद करना तो छोड़ ही दिया इसके साथ ही अपने मन की बात कहना भी हमेशा के लिए छोड़ दिया। उसकी क्या इच्छा है, वह क्या चाहती है या नहीं चाहती है, यह किसी को पता नहीं। ंसिर्फ उसके मन के। मामा के हाथों दीदी की पिटाई वाली यह बात इतनी बार दुहराई गई कि मन में यह विश्वास पैदा हो गया कि उनका गुस्सा उनकी छड़ी में रहता है। फिर उस उम्र में हम बेताल कहानियां और पंचत्रंत की कहानी भी खूब पढ़ते थे? चमत्कार या रहस्य तो घर में भी हो सकते हैं।
आखिर मामा ने छडी से क्यों पीटा? थप्पड़ क्यों नहीं मारा? और ऐसा क्या कारण था कि वह सडक़ पर ठेले में मिलने वाली आइसक्रीम या कुल्फी नहीं खा सकते थे। इसके लिए उनको हल्दानी शहर में बसे भोटिया पड़ाव से शहर के दूसरे छोर में बने नानक स्वीट हाउस जाना पड़ा।
मैं बताती हूं
सपनों की उड़ान यहीं से शु रू होती है..
सपनों की उड़ान- ऐसे विक्लांगों की कहानियां जिन्होंने सफलता का शिखर छुआ

special post

कुमाऊंनी भाषा के कबीर रहीम की जोड़ी डा. अनुजा भट्ट

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