गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024

विदा - कविता- डा. अनुजा भट्ट



विदा

मैं , मैं नहीं एक शब्द है

हुंकार है

प्रतिकार है



मैं का मैं में विलय है

इस समय खेल पर कोई बात नहीं

फिर भी...

सच में मुझे क्रिक्रेट में कोई रूचि नहीं

फिर भी

मैं सचिन तंडेलुकर की गेंद की तरह उछलना चाहती हूं

टप्पे पर टप्पे मार कर हवा के उस अंतिम छोर पर पहुंचकर

धरती में गिर जाना चाहती हूं

अनगिनत गेंदों से नहीं असंख्य शब्दों से खेलती और जीती उन क्षणों को

खुद और पूरी कायनात के साथ

मैं लेना चाहती हूं अब विदा

न्यूटन का सिद्धांत मुझे प्रिय है

हालांकि मैं विज्ञान के बारे में ज्यादा जानती नहीं

पर शोध से हर रोज गुजरती हूं

फिर भी

अपनी मुट्ठी में भींचकर कोई रूमाल

सर्द रात और कंपकंपाती ठंड में

पसीने से तरबतर हो

ऐसा है मेरा ख्वाब

मैं उस ख्वाब को अपनी उंगुलियों में

महसूस करते हुए

मुट्ठी में भर लेना चाहती हूं

निचोड़ कर रख देना चाहती हूं रूमाल

रूमाल जिसके चार कोने हैं

चार दिशाएं हैं

और चारों दिशाओं की साझेदार एक पोटली है

पोटली जिसमें सिक्के जमाते हैं कुछ

पोटली जिसमें सुदामा ने जमाए तंडुल

सिक्के जमाने वाले और तंडुल जमाने वाले सुदामा में मेरी कोई रूचि नहीं

मुझे न विपन्नता के गीत पसंद हैं

और न संपन्नता के किस्से

मुझे बस सचिन की तरह

अपने मानिंद एक गेंद चाहिए

जिसके हर टप्पे पर टप्पे पर टप्पे पर टप्पे पर

घूमते हुए वह हवा के साथ उछले

उसी को लपकने के लिए उठे हाथ

पर वह गिरे धरती पर

धरती पर

धरती पर

सचिन ने गेंद चूमी कई कई बार

मैं चूमना चाहती हूं

शब्द कई कई बार

सचिन को गेंद को स्पर्श करते दुलराते कई कई बार देखा मैंने

मैं शब्दों को दुलराना चाहती हूं

ओम ही ओम हैं

जिसे जन्मा था प्रकृति ने

प्रकृति की कोख में पहला नाद ओम है

स्त्री की कोख में पहला नाद मां

उस पहली बार सुने शब्द को

मैं अपनी आत्मा के किसी सूक्ष्म से सूक्ष्म कण में

अपनी ही प्राणवायु से खींचकर गर्भ में पुनःस्थापित कर

मैं विदा लेना चाहती हूं

बाकि उसके बाद के सब निरर्थक संवेदनहीन शब्दों को

मैं पोटली में सिक्के और तंडुल की तरह

खुद से अलग कर देना चाहती हूं

हवा में गूंजते इन शब्दों में

अब आक्सीजन नहीं रही

जो प्राणवायु की उम्मीद दे सके

उम्मीद ही तो आपको कमजोर बनाती है

मैं उम्मीद की उस विपरीत धारा में

नाउम्मीद का शपथपत्र भरना चाहती हूं

मैं विदा लेना चाहती हूं।

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2024

नवरात्रि - नाै व्यंजन, भक्ति शक्ति और जायका



साबूदाना वड़ा






सामग्री
साबूदाना- 1/2 कप
उबला आलू- 1
भूनी हुई मूंगफली- 1/3 कप
जीरा- 1/2 चम्मच
कद्दूकस किया अदरक- 1 चम्मच
बारीक कटी हरी मिर्च- 1 चम्मच
बारीक कटी धनिया पत्ती- 2 चम्मच
नीबू का रस- 1 चम्मच
तेल- तलने के लिए

विधिसाबूदाना को धो लें और लगभग एक 1/3 कप पानी में चार से पांच घंटे तक डुबोकर रखें। जब साबूदाना सारा पानी सोख ले तो उसमें तेल के अलावा अन्य सभी सामग्री डालकर मिलाएं। मिश्रण को आठ हिस्सों में बांटें और उसे गोल आकार दें। कड़ाही में तेल गर्म करें और वड़ा को सुनहरा होने तक पकाएं। टिश्यू पेपर पर रखें ताकि अतिरिक्त तेल निकल जाए। हरी चटनी के साथ गर्मागर्म सर्व करें।

नवरात्रि आलू



सामग्रीआलू- 4
तेल- तलने के लिए
ऑरिगेनो- 1 चम्मच
नीबू का रस- 1 चम्मच
सेंधा नमक- स्वादानुसार
लाल मिर्च पाउडर- 1/2 चम्मच
(काली मिर्च पाउडर भी डाल सकते हैं)

विधिआलू को धो लें और आधे इंच लंबे और आधे इंच चौड़े टुकडे़ में काट लें। आलू के इन टुकड़ों को बर्फ वाले पानी में आधे घंटे के लिए डुबोकर रखें। जब आलू को तलना हो, उससे ठीक पहले उन्हें पानी से निकालें और टिश्यू पेपर की मदद से पानी को पूरी तरह से सुखा लें। कड़ाही में तेल गर्म करें और आलू के टुकड़ों को सुनहरा होने तक तलें। आलू के टुकड़ों को लगातार पलटती रहें। आलू को कड़ाही से निकालें और उन्हें टिश्यू पेपर पर रखें ताकि अतिरिक्त तेल निकल जाएं। तले हुए आलू पर ऑरिगेनो, लाल मिर्च पाउडर, नमक और नीबू का रस छिड़कें। सर्व करें।

मोतिया पुलाव



सामग्रीसामक के चावल- 2 कप
टमाटर- 1
हरी मिर्च- 2
कटी हुई धनिया पत्ती- 2 चम्मच
पनीर- 1 कप
खोया- 1/2 कप
सिंघाड़े का आटा- 2 चम्मच
घी- 4 चम्मच
सेंधा नमक- स्वादानुसार

विधिसामक के चावल को धोकर कुछ देर के लिए किसी अखबार पर फैला दें ताकि अतिरिक्त पानी हट जाए। अब एक चम्मच घी गर्म करें और सामक के चावल को हल्का सुनहरा होने तक भूनें। सेंधा नमक और दो कप पानी डालें। पानी में एक उबाल आने के बाद आंच कम करें और चावल पकाएं। गैस ऑफ करें और चावल को 10 से 12 मिनट तक ढककर रखें। टमाटर के बीज निकालें और उसे काट लें। हरी मिर्च भी काट लें। खोया को मैश करें और उसमें एक चम्मच सिंघाड़े का आटा और पनीर डालकर आटे की तरह गूंदें। आटे की बहुत ही छोटी-छोटी लोई बनाएं और उस पर सिंघाड़े का आटा लगाएं। बचे हुए घी को कड़ाही में गर्म करें और उसमें पनीर और खोया बॉल्स को सुनहरा होने तक तलें। पनीर बॉल्स, कटे टमाटर, हरी मिर्च और धनिया पत्ती को तैयार पुलाव में डालकर मिलाएं और खीरे के रायते के साथ सर्व करें।

मखाने की खीर



सामग्रीदूध- 5 कप
मखाना- 1 कप
चीनी-1 चम्मच
जायफल पाउडर- 1/4 चम्मच
केसर- चुटकी भर
घी- 1 चम्मच
कटा हुआ पिस्ता- गार्निशिंग के लिए

विधिपैन में घी गर्म करें और उसमें मखाना डालकर उसे दो से तीन मिनट तक भूनें। गैस ऑफ करें और मखाने को दरदरा पीस लें। नॉनस्टिक पैन में दूध डालें और जब उसमें एक उबाल आ जाए तो मखाना उसमें डालें और दो से तीन मिनट तक पकाएं। चीनी, जायफल पाउडर और केसर डालकर अच्छी तरह से मिलाएं। गैस ऑफ करें। पिस्ता से गार्निश करें और सर्व करें।

फलाहारी पनीर



सामग्री
छोटे टुकड़ों में कटे पनीर- 250 ग्राम
कटी हुई धनिया पत्ती- 4 चम्मच
अदरक- एक गांठ
हरी मिर्च- स्वादानुसार
मलाई- 1 कप
दूध- आधा कप
सेंधा नमक- स्वादानुसार
घी- 1 चम्मच

विधिटमाटर को हल्का-सा उबाल कर छिलका उतार लें और टमाटर, अदरक और मिर्च का पेस्ट तैयार कर लें। मलाई और दूध को एक बर्तन में डालकर अच्छी तरह से फेंट लें। कड़ाही में घी गर्म करें और धीमी आंच पर टमाटर वाले पेस्ट को सुनहरा होने तक भूनें। स्वादानुसार नमक भी मिला दें। अब कड़ाही में फेंटी हुई मलाई को डालें। मलाई का रंग बदलने तक उसे चलाती रहें। जब मलाई और मसाला अच्छी तरह से फ्राई हो जाए, तो उसमें पनीर के टुकड़े डाल दें। अच्छी तरह मिक्स करके गैस ऑफ कर दें। धनिया पत्ती से गार्निश कर सर्व करें।

केले का चिप्स



सामग्रीतेल- तलने के लिए
काली मिर्च पाउडर- 1/2 चम्मच
सेंधा नमक- स्वादानुसार
कच्चा केला- 6

विधिकेले का छिलका उतारें। बर्फ वाले ठंडे पानी में नमक डालें और केले को उसमें 10 मिनट के लिए रखें। केले को पतले-पतले स्लाइस में काटकर पानी में ही डालें। कटे हुए केले को पानी में 10 मिनट और रहने दें। कड़ाही में तेल गर्म करें। केले के टुकड़ों को पानी से निकालकर किसी कपड़े पर रखें ताकि केले से सारा पानी हट जाए। तेज गर्म तेल में केले के टुकड़ों को डालें और तल लें। ऊपर से सेंधा नमक और काली मिर्च पाउडर डाल कर पेश करें।



लौकी की खीर



सामग्रीकद्दूकस किया घीया- 1 कप
दूध- 1 लीटर
चीनी- 1 कप
इलायची पाउडर- 1/2 चम्मच
मेवे- 2 चम्मच

विधिदूध को लगभग 20 मिनट तक धीमी आंच पर बीच-बीच में चलाते हुए उबालें। कद्दूकस किया हुआ घीया डालें और दूध के गाढ़ा होने तक पकाएं। चीनी डालकर मिलाएं और पांच मिनट और पकाएं। इलायची पाउडर और मेवे डालकर मिलाएं। गैस ऑफ करें और सर्व करें।



नारियल बर्फी



सामग्रीघी- 1 चम्मच

कद्दूकस किया नारियल- 3/4 कप

बूरा- 5 चम्मच

खोया- 2 चम्मच

केसर- चुटकी भर

पीला फूड कलर- कुछ बूंद

विधिघी और नारियल को माइक्रोवेव सेफ बर्तन में डालकर माइक्रोवेव में एक मिनट तक पकाएं। बूरा (चीनी का पाउडर) डालकर मिलाएं और माइक्रोवेव में सबसे ऊंचे तापमान पर दो मिनट पकाएं। खोया, दूध, केसर और फूड कलर डालकर मिलाएं और माइक्रोवेव में दो मिनट और पकाएं। मिश्रण को चिकनाई लगी किसी प्लेट में डालें और चम्मच के पीछे वाली साइड की मदद से फैलाएं। जब बर्फी थोड़ी ठंडी हो जाए तो उसे फ्रिज में कम-से-कम एक घंटे के लिए रखें। बर्फी के आकार में काटें और सर्व करें।

कुट्टू के दही बड़े



सामग्री
कुट्टू का आटा- 1 कटोरी
दही- 1 किलो
घी या तेल- आवश्यकतानुसार

हरी चटनी की सामग्री
धनिया पत्ती, हरी मिर्च और सेंधा नमक

मीठी सोंठ की सामग्री
इमली, चीनी, सेंधा नमक, काली या लाल मिर्च

विधिकुट्टू के आटे को एक बर्तन में डालकर उसका घोल तैयार करें और उसे10 मिनट तक छोड़ दें। 10 मिनट बाद उसमें दही डालकर अच्छी तरह से फेंट लें। घोल को उतना ही पतला रखें, जितना दाल के बड़े बनाते वक्त रखते हैं। कड़ाही में घी या तेल गर्म करें और बड़े तैयार करें। सारे बड़े तैयार करने के बाद उन्हें तेज गर्म पानी में डालें। इससे बड़े से अतिरिक्त तेल निकल जाएगा। बाकी आधा किलो दही को एक बर्तन में डालकर अच्छी तरह से फेंट लें और उसमें नमक और मिर्च पाउडर मिला दें। धनिया पत्ती को धोकर उसकी चटनी तैयार करें और उसमें सेंधा नमक और नीबू डालें। हरी चटनी तैयार है। इमली को दो-तीन घंटे पहले पानी में भिगो दें। अब उसको हाथ से मसलकर बीज को निकाल दें। इमली के गूदे को एक पैन में डालकर उसे चीनी, नमक और मिर्च के साथ पकाएं। अब बड़ों को पानी से निकालें। फेंटा हुआ दही उसके ऊपर डालें। उसके ऊपर हरी चटनी और मीठी सोंठ डालकर सर्व करें।

साभार- दैनिक हिंदुस्तान

नवरात्रि का आरंभ जीवन में लयताल का प्रारंभ

शारदीय नवरात्र 3 अक्टूबर दिन गुरुवार से शुरू हो रहे हैं। इस बार नवरात्र 3 से लेकर 11 अक्टूबर तक है और 12 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार शरद नवरात्रि अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होते हैं और विजयादशमी के पहले नवमी तक चलते हैं। इन नौ दिनों तक मां दुर्गे के नौ अलग- अलग रूपों - मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और मां सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है।

इस बार नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना नीचे दीए गई इन तिथियों और दिन को होगी-

किस दिन किसकी पूजा
3 अक्टूबर को प्रतिपदा पर माता शैलपुत्री
4 अक्टूबर को द्वितीया पर ब्रह्मचारिणी
5 अक्टूबर को तृतीया पर चंद्रघंटा का पूजन
6 व 7 अक्टूबर को चतुर्थी पर माता कुष्मांडा का पूजन
8 अक्टूबर को पंचमी तिथि पर स्कंदमाता का पूजन
9 अक्टूबर को षष्ठी तिथि पर मां कात्यायनी का पूजन
10 अक्टूबर को सप्तमी तिथि पर माता कालरात्रि का पूजन
11 अक्टूबर को अष्टमी और नवमी दोनों पर माता महागौरी व सिद्धिदात्री का पूजन किया जाएगा
नवरात्रि का महत्व-
हिन्दू धर्म में किसी शुभ कार्य को शुरू करने और पूजा उपासना के दृष्टि से नवरात्रि का बहुत महत्व है। एक वर्ष में कुल चार नवरात्र आते हैं। चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्र काफी लोकप्रिय हैं और इन्हीं को मनाया जाता है। इसके अलावा आषाढ़ और माघ महीने में गुप्त नवरात्रि आते हैं जो कि तंत्र साधना करने वाले लोग मनाते हैं। लेकिन सिद्धि साधना के लिए शारदीय नवरात्रि विशेष उपयुक्त माना जाता है। इन नौ दिनों में बहुत से लोग गृह प्रवेश करते हैं, नई गाड़ी खरीदते हैं साथ ही विवाह आदि के लिए भी लोग प्रयास करते हैं। क्योंकि मान्यता है कि नवरात्रि के दिन इतने शुभ होते हैं इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने के लिए लग्न व मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती।

शनिवार, 28 सितंबर 2024

मध्यप्रदेश का शहर चंदेरी चंदेरी साड़ी अथ श्री कथा महाभारत- डा. अनुजा भट्ट


महाभारत में शिशुपाल की कथा आपने पढ़ी होगी। मेरी यह कथा श्रीकृष्ण और शिशुपाल वध के प्रसंग बिना अधूरी है. शिशुपाल चेदि राज्य के राजा थे एवम उनकी राजधानी चन्देरी, सुक्तिमती में थी। आज की केन नदी को प्राचीन समय में कर्णावत, श्वेनी, कैनास और शुक्तिमति नाम से जाना जाता था। केन नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के कटनी ज़िले में विंध्याचल की कैमूर पर्वतमाला में होता है, फिर पन्ना में इससे कई धारायें आ जुड़ती हैं और अंत में इसका यमुना से संगम उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले में होता है। शिशुपाल की राजधानी चंदेरी आज भी भारत के मानचित्र में है और इस शहर को आज भी दुनियाभर में जाना जाता है। फैशन और पर्यटन दोनो ही तरह से इसकी ख्याति है। पर मेरा मन तो शिशुपाल पर अटक सा गया है आप भी मेरे साथ शिशुपाल की कथा सुनिए।

शिशुपाल भगवान श्रीकृष्ण की बुआ का पुत्र था और रिश्ते में कौरवों तथा पांडवों का भाई था। शिशुपाल वासुदेव की बहन और छेदी के राजा दमघोष का पुत्र था। शिशुपाल का जन्म जब हुआ तो वह विचित्र था. जन्म के समय शिशुपाल की तीन आंख और चार हाथ थे. शिशुपाल के इस रूप को देखकर माता पिता चिंता में पड़ गए और शिशुपाल को त्यागने का फैसला किया. लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि बच्चे का त्याग न करें, जब सही समय आएगा तो इस बच्चे की अतिरिक्त आंख और हाथ गायब हो जाएंगे. लेकिन इसके साथ ही यह भी आकाशवाणी हुई कि जिस व्यक्ति की गोद में बैठने के बाद इस बच्चे की आंख और हाथ गायब होंगे वही व्यक्ति इसका काल बनेगा.

एक दिन भगवान श्रीकृष्ण अपनी बुआ के घर आए. वहां शिशुपाल भी खेल रहा था. श्रीकृष्ण के मन शिशुपाल को देखकर स्नेह जागा तो उन्होंने उसे गोद में उठा लिया. गोद में उठाते ही शिशुपाल की अतिरिक्त आंख और हाथ गायब हो गए. यह देख शिशुपाल के माता पिता को आकाशवाणी याद आ गयी और वे बहुत भयभीत हो गए. तब श्रीकृष्ण की बुआ ने एक वचन लिया. भगवान अपनी बुआ को दुख नहीं देना चाहते थे, लेकिन विधि के विधान को वे टाल भी नहीं सकते थे. इसलिए उन्होंने अपनी बुआ से कहा कि वे शिशुपाल की 100 गलतियों को माफ कर देंगे लेकिन 101 वीं गलती पर उसे दंड देना ही पड़ेगा.

शिशुपाल रुक्मिणी से विवाह करना चाहता था. लेकिन रुक्मिणी भगवान श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं और उनसे ही विवाह करना चाहती थीं. लेकिन रुक्मणी के भाई राजकुमार रुक्मी को रिश्ता मंजूर नहीं था. तब भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी को महल से लेकर आ गए थे. इसी बात से शिशुपाल भगवान श्रीकृष्ण को शत्रु मानने लगा था. इसी शत्रुता के कारण जब युधिष्ठिर को युवराज घोषित किया और राजसूय यज्ञ का आयोजन किया गया तो सभी रिश्तेदारों और प्रतापी राजाओं को भी बुलाया गया. इस मौके पर वासुदेव, श्रीकृष्ण और शिशुपाल को भी आमंत्रित किए गया था.

यहीं पर शिशुपाल का सामना भगवान श्रीकृष्ण से हो जाता है. भगवान श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर आदर सत्कार करते हैं. यह बात शिशुपाल को पसंद नहीं आई और सभी के सामने भगवान श्रीकृष्ण को बुरा भला कहने लगा. भगवान श्रीकृष्ण शांत मन से आयोजन को देखने लगे लेकिन शिशुपाल लगातार अपमान करने लगा, उन्हें अपशब्द बोलने लगा. श्रीकृष्ण वचन से बंधे थे इसलिए वे शिशुपाल की गलतियों को सहन करते रहे. लेकिन जैसे ही शिशुपाल ने सौ अपशब्द पूर्ण किये और 101 वां अपशब्द कहा, श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र को आदेश दिया. एक पल में ही शिशुपाल की गर्दन धड़ से अलग हो गई।

आज का यह चंदेरी शहर बेतवा नदी के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में चारों ओर पहाड़ियों से घिरा है। यह नदी प्राचीन काल में वेत्रवती (Vetravati) नाम की नदी थी । भारत के मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों में बहने वाली यह नदी यमुना नदी की उपनदी है। यह मध्य प्रदेश में रायसेन ज़िले के कुम्हारागाँव से निकलकर उत्तर-पूर्वी दिशा में बहती हुई भोपाल, विदिशा, झाँसी, ललितपुर आदि ज़िलों से होकर बहती है। बेतवा नदी के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में चारों ओर पहाड़ियों से घिरा चंदेरी शहर मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले की तहसील है। यह शहर हथकरघा से बनी साड़ियों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। साड़ियों का नाम भी शहर के नाम से जुड़ गया है यह साड़ियां चंदेरी साड़ियों के नाम से बिकती हैं।

पर्यटक यहां के घरों में साड़ियों को बुनते देख सकते हैं और अपनी पसंद की साड़ियों की खरीदारी कर सकते हैं। चंदेरी की साड़ी रानी लक्ष्मीबाई भी पहनती थी। उस समय मध्य भारत में ( मालवा, इंदौर, ग्वालियर, बांदा, गढा कोटा, बानपुर , चरखारी,चंदेरी, शाहगढ़ ,रायगढ़)काशी की बनारसी साड़ी का चलन बहुत कम था। ग्वालियर औऱ इंदौर की आभिजात्य महिलाएं चंदेरी की साड़ी पहनती थी। आपको जानकर हैरानी होगी छत्रपति शाहूजी महाराज, ग्वालियर के महाराजा सिंधिया, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और वडोदरा के राजा सहित दक्षिण भारत एवं महाराष्ट्र के तमाम छोटी-बड़ी रियासतों के राजा महाराजाओं के लिए पगड़ी चंदेरी में बनाई जाती थी। राजाओं का विशेष दस्ता उनकी पगड़ी लेने के लिए आता था और बड़े ही गोपनीय तरीके से सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था के बीच पगड़ी चंदेरी से संबंधित राजा के महल तक पहुंचाई जाती थी। जिस प्रकार चंदेरी की साड़ी दुनिया भर में प्रसिद्ध है उसी प्रकार चंदेरी की पगड़ी भी 800 सालों से भारत के तमाम राज्य परिवारों में आकर्षण का केंद्र रही है। सबसे अहम बात यह कि वीरागंना लक्ष्मीबाई अपनी एक सहेली को चंदेरी भेजकर शाही पगड़ी मंगाती थीं। जब उन्होंने अंग्रेजों से युद्ध लड़ा और जब वो शहीद हुईं तब भी उनके सिर पर चंदेरी की ही पगड़ी थी जो वीरांगना लक्ष्मीबाई के मस्तक को सुशोभित कर रही थी।

वैसे तो चंदेरी का इतिहास महाभारत काल में राजा शिशुपाल की नगरी के नाम से मिलता है, लेकिन इतिहास के पन्नों में चंदेरी पर गुप्त, प्रतिहार, गुलाम, तुगलक, खिलजी, अफगान, गौरी, राजपूत और सिंधिया वंश के शासन के प्रमाण मिले हैं। यहां पर राजा मेदनी राय की पत्नी मणीमाला के साथ 1600 वीर क्षत्राणियों ने बाबर के चंदेरी फतेह करने पर एक साथ जौहर किया था, जो आज भी यहां के किले में बने कुंड के पत्थरों के रंग से देखा जा सकता है। यहां करीब 70 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना किला पर्यटकों को लुभाता है। इसके अलावा कौशक महल, परमेश्वर तालाब, बूढ़ी चंदेरी, शहजादी का किला, जामा मस्जिद, रामनगर महल, सिंहपुर महल के अलावा यहां का म्यूजियम, बत्तीसी बावड़ी आदि कई धरोहरें प्रमुख आकर्षण के केंद्र बिंदु हैं।

चंदेरी से महज 22 किमी दूरी पर ही 26 जैन मंदिरों का वैभव समेटे हुए 12 वीं शताब्दी में निर्मित अतिशय तीर्थ क्षेत्र थूबोन जी है। इस पवित्र तीर्थ का निर्माण पाड़ाशाह ने करवाया था, जिन्होंने बजरंगगढ़, सिरोंजी, देवगढ़ के मंदिरों का भी निर्माण कराते हुए भगवान की मूर्तियों को प्रतिष्ठित कराया था। यहां पर विभिन्न मंदिरों में सभी तीर्थंकरों की मूर्तियां विराजित हैं, जिनमें भगवान आदिनाथ से लेकर भगवान महावीर तक की मूर्तियां हैं।

चंदेरी की खूबसूरती बालीवुड को भी लुभा रही है। यहां अब तक स्त्री, सुई धागा सहित अन्य फिल्मों की शूटिंग हो चुकी हैं और वेब सीरीज भी बन चुकी हैं।

कहां से कितनी दूरी

मालवा और बुंदेलखण्ड की सीमा पर स्थित चंदेरी तक पहुंचना चारों तरफ से सुगम हैं। यहां से ग्वालियर की दूरी करीब 220 किमी है तो यहां की सीमाएं उत्तरप्रदेश को जोड़ती हैं। उत्तरप्रदेश का प्रमुख व्यापारिक शहर ललितपुर रेलवे स्टेशन चंदेरी के किले से महज 37 किमी दूर है, जबकि राजधानी भोपाल की दूरी यहां से 210 किमी है। पर्यटक नईदिल्ली- भोपाल रेलवे लाइन पर स्थित ललितपुर तक ट्रेन से आने के बाद आसानी से चंदेरी पहुंच सकते हैं।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

रानी अहिल्याबाई की कल्पना से बुनी गई महेश्वरी साड़ी-डा. अनुजा भट्ट


महेश्वर मध्यप्रदेश के जिला खरगौन का यह सबसे चर्चित शहर है। खरगौन से इसकी दूरी मात्र 56 किलोमीटर है। नर्मदा नदी के किनारे बसा यह शहर अपने बहुत ही सुंदर व भव्य घाट तथा महेश्वरी साड़ियों के लिये प्रसिद्ध है। घाट पर अत्यंत कलात्मक मंदिर हैं जिनमे से राजराजेश्वर मंदिर प्रमुख है। आदिगुरु शंकराचार्य तथा पंडित मण्डन मिश्र का प्रसिद्ध शास्त्रार्य यहीं हुआ था।

पुराणों के अनुसार यह शहर हैहयवंशी राजा सहस्रार्जुन की राजधानी रहा है। सहस्रार्जुन का नाम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने रावण को पराजित किया था और खुद सहस्रार्जुन का वध भगवान परशुराम ने किया था। उनके वध के पीछे कारण यह था कि वह ऋषि जमदग्नि को प्रताड़ित करते थे। कालांतर में यह शहर महान देवी अहिल्याबाई होल्कर की भी राजधानी रहा है। होल्कर वंश की महान् शासक देवी अहिल्याबाई होल्कर का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है। इसी के साथ उनकी कलात्मक सोच माहेश्वर साड़ी के रूप में हम सभी के दिल में। इन साड़ियों के पीछे दिलचस्प किंवदंती रानी अहिल्याबाई होल्कर की है, जिन्होंने मालवा और सूरत के विभिन्न शिल्पकारों और कारीगरों को 9 गज की एक विशेष साड़ी बनाने का आदेश दिया, जिसे उन्होंने ही डिजाइन किया था। बाद में इस तरह की साड़ी माहेश्वरी साड़ी के रूप में जानी जाने लगी। ये साड़ियाँ महल में आने वाले शाही रिश्तेदारों और मेहमानों के लिए एक विशेष उपहार मानी जाती थीं। बाद में सन 1767 के आसपास रानी ने कुटीर उद्योग के रूप में इस साड़ी का विस्तार किया।


प्रेरणा के स्रोत

मध्य प्रदेश के किलों की भव्यता और उनके डिज़ाइन ने महेश्वरी साड़ी पर तकनीक, बुनाई और रूपांकनों को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । इनमें से कुछ लोकप्रिय डिज़ाइनों में मैट पैटर्न शामिल है, जिसे 'चट्टाई' पैटर्न के रूप में भी जाना जाता है, साथ ही 'चमेली का फूल' भी शामिल है जो चमेली फूल से प्रेरित है। कोई 'ईंट' पैटर्न भी देख सकता है जो मूल रूप से एक ईंट है और 'हीरा' है, जो एक वास्तविक हीरा है।

माहेश्वरी साड़ी फैब्रिक

माहेश्वरी साड़ी की खूबी यह है कि इस शैली के अंतर्गत प्रत्येक प्रकार की साड़ी का अपना एक नाम या एक शब्द होता है, जो इसकी विशिष्टता को दर्शाता है। साड़ियाँ या तो बीच में सादी होती हैं और उत्कृष्ट रूप से डिज़ाइन किए गए बॉर्डर वाली होती हैं, या विभिन्न विविधताओं में चेक और धारियाँ होती हैं। इसकी 5 प्रमुख श्रेणियां हैं, जिनके नाम हैं 'चंद्रकला, बैंगनी चंद्रकला, चंद्रतारा, बेली और पारबी। चंद्रकला और बैंगनी चंद्रकला सादे प्रकार की हैं, जबकि चंद्रतारा, बेली और पारबी धारीदार या चेक वाली तकनीक के अंतर्गत आती हैं।

प्रारंभ में, महेश्वरी साड़ी को डिज़ाइन करने के लिए रंगों की एक सीमित श्रृंखला का उपयोग किया जाता था, जो मुख्य रूप से लाल, मैरून, काले, हरे और बैंगनी रंग के होते थे। हालाँकि, भारतीय फैशन में आधुनिकीकरण और प्रयोग के साथ, सोने और चांदी के धागों के उपयोग के साथ-साथ हल्के रंगों को भी महत्व दिया जा रहा है। चूँकि माहेश्वरी साड़ी सिल्क और कॉटन दोनों में उपलब्ध है, इसलिए इसे कैज़ुअल और फॉर्मल दोनों तरह के आयोजनों में पहना जा सकता है। यह साड़ी वजन में काफी हल्की होने के कारण हर मौसम के लिए उपयुक्त है।

इसके रखरखाव के लिए पहली बार ड्राई क्लीनिंग के लिए भेजना सबसे अच्छा है, जिसके बाद इसे या तो हाथ से धोया जा सकता है या हल्के डिटर्जेंट के साथ मशीन में धोया जा सकता है। याद रहे, इन साड़ियों को धोने के लिए हमेशा ठंडे पानी का उपयोग करना चाहिए। महेश्वरी साड़ी का बॉर्डर रिवर्सेबल होता है इसलिए इसे दोनों तरफ से पहना जा सकता है।

तो कैसी लगी महेश्वरी साड़ी की कहानी....

शनिवार, 7 सितंबर 2024

गजानन के मस्तक पर विराजमान है गजासुर- डा. अनुजा भट्ट

कौन है गजासुर

आपने पिता पुत्र के बहुत से संवाद सुने होंगे। पर आज मैं आपको शिव और गणेश की बातचीत बता रही हूं ।

पिता पुत्र संवाद

भीतर कौन जा रहा है

बाहर कौन खड़ा है

मैं गणेश हूं पार्वती का पुत्र

मैं महादेव हूं पार्वती का पति मुझे जाने दो

मेरी मां स्नान कर रही हैं और भीतर किसी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं है आपको प्रतीक्षा करनी होगी

समय मेरी प्रतीक्षा करता है मैं किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।

परंतु आप तब तक भीतर नहीं जा सकते जब तक मैं यहां खड़ा हूं

यदि तुम पार्वती के पुत्र हो तो मैं तुम्हारा पिता हूं। तुम आज्ञा का अर्थ नहीं जानते

मैं आपका मार्ग रोककर अपनी मां का आज्ञा का पालन कर रहा हूं

मेरा त्रिशूल तुमको मार सकता है

मेरा दंड आपको चोट पहुंचा सकता है

संवाद लंबा है इसलिए मूल कहानी पर चलते हैं

शिव त्रिशूल से वार कर देते है. दंड अपना असर नहीं दिखा पाता। गणेश का मस्तक धड़ से अलग हो जाता है।

पार्वती चीख पड़ी।

मौत का सन्नाटा पसर गया।

पार्वती यानी प्रकृति का क्रोध चरम पर था। वह हिंसक हो उठी थीं। महादेव आपने गणेश को नहीं मुझे मार डाला है। अब मैं खुद को मार दूंगी

महादेव ने समझाया तुम ऐसा नहीं कर सकती

हुंकार उठी पार्वती क्यों नहीं।

या तो गणेश को जीवन दीजिए या फिर विनाश देखिए

महादेव के गणों ने कहा दक्ष की तरह ही समाधान निकाला जाए।

उत्तर दिशा में मिलने वाले पहले पशु का सिर

उसी से गणेश को जीवनदान मिलेगा पर वह इसके लिए तैयार होना चाहिए

तब विष्णु भगवान बोले वह तैयार हो जाएगा। आपने गजासुर को वरदान दिया था।

आपने गजासुर को वरदान दिया था उसके मस्तक ही हमेशा पूजा की जाएगी। वह सिर गणपति की शोभा बनेगा। जैसे ही गजासुर का मस्तक गणेश के धड़ से लगाया गया अपनी सूड़ से उसने पार्वती के प्रणाम किया।

पछतावा महादेव के चेहरे से दिख रहा था । उन्होंने घोषणा की अब ये गणेश अग्र देवता होंगे और सबसे पहले इनकी पूजा की जाएगी। इनका एक नाम गजानन होगा और दूसरा विनायक....
 कौन है गजासुर
 गजासुर महिषासुर का पुत्र था  जिसका वध मां  दुर्गा  ने किया था। गजासुर भी अपने पिता की तरह अत्याचारी  था। अपने पिता के वध के बदला लेने के लिए उसने घनघोर तपस्या की।  उसे वरदान मिला उसके मस्तक की हमेशा पूजा की जाएगी।




बुधवार, 4 सितंबर 2024

उनके टाइम पास से बनते हैं एंटीकपीस.. आपका टाइमपास क्या है दोस्त.. डा अनुजा भट्ट


क्या पैसा कमाना आपकी चाहत है। इस चाहत को अपने हुनर के जरिए हकीकत में बदला जा सकता है। अगर आप समय की नब्ज टटोल पाएं और अपने मन में यह विचार जमा लें कि कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता हमारी सोच छोटी बड़ी हो सकती है, तो आपको पैसा कमाने से कोई नहीं रोक सकता। मैं हर रोज अलग अलग तरह की महिलाओं से मिलती हूं। उनसे खूब बातें करती हूं। खूब सीखती भी हूं और जीवन में आशावादी रहती हूं।

आज मुझे कुछ गुजराती महिलाएं मिली। जिन्होंने सड़क किनारे पटरी पर अपनी दुकान सजायी हुई थी। वह मुझे आवाज दे रही थी मैडम जी ले लो। मैंने कहा अभी लेना नहीं है, तो एक महिला बोली मत लीजिए पर देख तो लीजिए। मुझे भी टाइम पास करना था तो मैं भी बैठ गई उनके साथ। गजब के आत्मविश्वास के साथ वह अपनी कहानी सुनाने लगी। उनमें से कोई भी गरीब नहीं थी। उनका मूल मंत्र था टाइम मेनेजमेंट.. जब खेती का काम नहीं तब कसीदाकारी और फिर खुद ही बनाए सामान को बेचने की जिम्मेदारी भी। उनके साथ मैंने बिना चीनी की चाय और खास गुजराती नमकीन खाई। और इसी के साथ शुरू हुआ गप गल्प का किस्सा.. जब मैंने कहा, मैं तो आज टाइम पास कर रही हूं आपका टाइमपास क्या है तो एक महिला ने हँसते हुए कहा जो आपके घर को सुंदर बनाता है।

हम सब महिलाएं अपनी संस्कृति और रीतिरिवाज के बारे में जितना जानती हैं उनको क्राफ्ट के रूप में पेश करती हैं। फिर चाहे वह दीवार पर लटकाने वाली वस्तुएँ, रजाई, शादी के कपड़े, स्कर्ट और ब्लाउज़ (घाघरा चोली), बच्चों के कपड़े, अपने पतियों द्वारा पहने जाने वाले शर्ट (कुर्ते), स्कार्फ़...कुछ भी हो । कुछ हस्तनिर्मित वस्तुओं को पूरा करने में महीनों लग जाते हैं क्योंकि हमें घर के काम और खेती भी करनी होती है। हम सब गुजरात के कच्छ इलाके से हैं। यहां सब एक साथ ही रहते हैं। आपको बताऊं मोटे तौर पर कच्छ में 7 तरह की कढ़ाई की जाती है - जाट, सूफ, खारेक, रबारी, अहीर, पक्को।

पक्को का काम गुजरात, उत्तर-पश्चिम भारत के कच्छ क्षेत्र में सोढ़ा, राजपूत और मेघवाल समुदाय की महिलाएं करती हैं ।रूपांकन में आम तौर पर ज्यामितीय और पुष्प होते हैं, कभी-कभी शैलीबद्ध आकृतियां भी बनाई जाती हैं । रूपांकनों को पारंपरिक रूप से पहले चाक से खींचा जाता है, और फिर मैरून या लाल, गहरे हरे, सफेद या पीले रंग से बनाया जाता है। अक्सर बटनहोल सिलाई के साथ काम किया जाता है। चेन स्टिच का उपयोग करके काले, सफेद या पीले रंग में आउटलाइनिंग की जाती है।

इसी तरह मुतवा कसीदाकारी मुतवा जाति की महिलाओं द्वारा की जाने वाली कढ़ाई है। मुतवा एक मुस्लिम जाति है जो सिंध-पाकिस्तान के क्षेत्र से आकर कच्छ के रेगिस्तानी क्षेत्र "बन्नी" में बस गई। उनके एक संप्रदाय को मालधारी भी कहते हैं।
इसी तरह जाट कढ़ाई भी जाट समुदाय की महिलाएं करती हैं। यह एक चरवाहा समुदाय है जो सदियों पहले पश्चिमी एशिया से भारत में आकर बसा था। जाट महिलाएँ आम तौर पर पूरे कपड़े को पूर्व-नियोजित ज्यामितीय डिज़ाइन में कवर करने के लिए क्रॉस स्टिच कढ़ाई का उपयोग करती हैं। वे अपने काम में बड़े पैमाने पर दर्पण का भी उपयोग करती हैं। सूफ़ कढ़ाई कच्छ के सोधा, राजपूत और मेघवाल समुदायों द्वारा की जाती है। उनके द्वारा डिज़ाइन कपड़े के पीछे की तरफ साटन सिलाई का उपयोग करके विकसित किए गए बड़े पैमाने पर ज्यामितीय पैटर्न हैं। सूफ़ काम करने के लिए गहरी नज़र, गणित और ज्यामिति का ज्ञान होना ज़रूरी है। सूफ़ रूपांकनों में मोर, मंडला आदि जैसे कारीगरों के जीवन से लयबद्ध पैटर्न शामिल हैं और इनका उपयोग परिधान, बेडस्प्रेड, वॉल हैंगिंग, रजाई, तोरण और कुशन कवर जैसी चीज़ें बनाने के लिए किया जाता है।

खरेक कढ़ाई सोधा, राजपूत और मेघवाल समुदायों द्वारा की जाती है। कारीगर कपड़े पर ज्यामितीय पैटर्न की रूपरेखा बनाते हैं और फिर साटन सिलाई के बैंड के साथ रिक्त स्थान भरते हैं जो सामने से ताने और बाने के साथ काम किए जाते हैं।

रबारी कढ़ाई कच्छ के रबारी समुदायों द्वारा की जाती है जो मुख्य रूप से पशुपालक खानाबदोश समुदाय हैं जो मवेशी पालते हैं। उनके द्वारा निर्मित डिजाइन बोल्ड हैं और आमतौर पर पौराणिक कथाओं और दैनिक जीवन से प्राप्त होते हैं। कपड़े पर आउटलाइन चेन स्टिच में बनाई जाती है और फिर बटनहोल सिंगल चेन, हेरिंगबोन टांके का उपयोग करके बारीकी से भरी जाती है। आमतौर पर रबारी कढ़ाई के लिए काले रंग का आधार उपयोग किया जाता है। अहीर कढ़ाई एक कपड़े पर चौकोर चेन स्टिच का उपयोग करके फ्रीहैंड डिज़ाइनों की रूपरेखा बनाकर और फिर बंद हेरिंगबोन सिलाई का उपयोग करके भरकर की जाती है। कढ़ाई के इस रूप में दर्पण का भी बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।

उनसे बातचीत कर लगा सचमुच कितनी बातें हैं जो हम नहीं जानते। समाज जाति धर्म और कर्म हमारी कला को कितना जीवंत बनाता है यह सब इस बात का प्रमाण हैं। वास्तव में, कला संस्कृतियों और जीवन के रंगों का सार दर्शाती हैं। एक सम्मोहन पैदा करती हैं। जैसा आज इन महिलाओं ने किया। धन्यवाद मुकुंदनी सुकुंदनी....अब तुम कब और किस मोड़ पर मिलोगी पता नहीं पर तुम्हारी हँसी चाय पीने का खास अंदाज और नमकीन का चटपटापन याद रहेगा।

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