तख्तियां कविता- डॉ. अनुजा भट्ट


किसी को कम करके मत आंको

 जहां आप ऊंचाई पर है वहां वह शून्य

 जहां आप शून्य वहां वह ऊंचाई

 जहां दोनो समतल हैं

 जीवन में भी समरस है।

 पर यह कठिन है।

 इतना समय व्यर्थ न गवाओं

 नकारात्मक शक्तियों को झाड़ दो धूल की तरह

 और खोजो उसमें रोज नई खूबी।

 कुछ विलक्षण बातें।

 आसमान में तारे जैसी।

 ढूंढों चमक पानी में किरणों जैसी।

 कोशिश करो, हो सके तो एक खेल की तरह खेलो।

तुम उसकी खूबियों की लिस्ट बनाओ

 अपनी बुराईयों का एसाइनमेंट उसे दे दो।

 फिर बैठो समतल भूमि पर

 सी-सा वाले झूले पर

 किसी भी झूले पर

 न मिले झूला तो बैठ जाना किसी शाख पर

 पक्षियों और पत्तियों की

 गूंज और सरसराहट में

 तुम अपनी बुराईयां सुनना जी भरकर

 दिल खोलकर करना स्वागत

 हर बुराई पर ठहाके लगाना

 जोर से हँसना

 और अपने भीतर के तनाव अवसाद स्ट्रेस डिपरेशन

 सबको बाहर निकाल देना

पेट में भरी गैस की तरह

मालूम है बहुत बदबुदार होगा

 होना ही है

पर उसके बाद के चैन पर

 गॉड ब्लैस यूं जैसा भी नहीं बनता

जिस जगह पर हम हैं वहां छींक के लिए कोई गुंजाइश नहीं।

कुछ अंतराल के बाद लेना प्राणवायु

 यह इतना सहज नहीं जितना कहना

लिख दिया मैंने जिस तरलता से उतना सहज नहीं है नीलकंठ बनना

 निंदक नीयरे राखिए से लेकर आग का दरिया तक न जाने कितनी उक्तियां है

 उतनी ही तख्तियां हैं

 और उन तख्तियों पर लिखे हुए अनाम शब्द।

 

कोई टिप्पणी नहीं:

Special Post

गजानन के मस्तक पर विराजमान है गजासुर- डा. अनुजा भट्ट

आपने पिता पुत्र के बहुत से संवाद सुने होंगे। पर आज मैं आपको शिव और गणेश की बातचीत बता रही हूं । पिता पुत्र संवाद भीतर कौन जा रहा है बाहर क...