आपने पिता पुत्र के बहुत से संवाद सुने होंगे। पर आज मैं आपको शिव और गणेश की बातचीत बता रही हूं ।
पिता पुत्र संवाद
भीतर कौन जा रहा है
बाहर कौन खड़ा है
मैं गणेश हूं पार्वती का पुत्र
मैं महादेव हूं पार्वती का पति मुझे जाने दो
मेरी मां स्नान कर रही हैं और भीतर किसी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं है आपको प्रतीक्षा करनी होगी
समय मेरी प्रतीक्षा करता है मैं किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।
परंतु आप तब तक भीतर नहीं जा सकते जब तक मैं यहां खड़ा हूं
यदि तुम पार्वती के पुत्र हो तो मैं तुम्हारा पिता हूं। तुम आज्ञा का अर्थ नहीं जानते
मैं आपका मार्ग रोककर अपनी मां का आज्ञा का पालन कर रहा हूं
मेरा त्रिशूल तुमको मार सकता है
मेरा दंड आपको चोट पहुंचा सकता है
संवाद लंबा है इसलिए मूल कहानी पर चलते हैं
शिव त्रिशूल से वार कर देते है. दंड अपना असर नहीं दिखा पाता। गणेश का मस्तक धड़ से अलग हो जाता है।
पार्वती चीख पड़ी।
मौत का सन्नाटा पसर गया।
पार्वती यानी प्रकृति का क्रोध चरम पर था। वह हिंसक हो उठी थीं। महादेव आपने गणेश को नहीं मुझे मार डाला है। अब मैं खुद को मार दूंगी
महादेव ने समझाया तुम ऐसा नहीं कर सकती
हुंकार उठी पार्वती क्यों नहीं।
या तो गणेश को जीवन दीजिए या फिर विनाश देखिए
महादेव के गणों ने कहा दक्ष की तरह ही समाधान निकाला जाए।
उत्तर दिशा में मिलने वाले पहले पशु का सिर
उसी से गणेश को जीवनदान मिलेगा पर वह इसके लिए तैयार होना चाहिए
तब विष्णु भगवान बोले वह तैयार हो जाएगा। आपने गजासुर को वरदान दिया था।
आपने गजासुर को वरदान दिया था उसके मस्तक ही हमेशा पूजा की जाएगी। वह सिर गणपति की शोभा बनेगा। जैसे ही गजासुर का मस्तक गणेश के धड़ से लगाया गया अपनी सूड़ से उसने पार्वती के प्रणाम किया।
पछतावा महादेव के चेहरे से दिख रहा था । उन्होंने घोषणा की अब ये गणेश अग्र देवता होंगे और सबसे पहले इनकी पूजा की जाएगी। इनका एक नाम गजानन होगा और दूसरा विनायक....
कौन है गजासुर
भीतर कौन जा रहा है
बाहर कौन खड़ा है
मैं गणेश हूं पार्वती का पुत्र
मैं महादेव हूं पार्वती का पति मुझे जाने दो
मेरी मां स्नान कर रही हैं और भीतर किसी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं है आपको प्रतीक्षा करनी होगी
समय मेरी प्रतीक्षा करता है मैं किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।
परंतु आप तब तक भीतर नहीं जा सकते जब तक मैं यहां खड़ा हूं
यदि तुम पार्वती के पुत्र हो तो मैं तुम्हारा पिता हूं। तुम आज्ञा का अर्थ नहीं जानते
मैं आपका मार्ग रोककर अपनी मां का आज्ञा का पालन कर रहा हूं
मेरा त्रिशूल तुमको मार सकता है
मेरा दंड आपको चोट पहुंचा सकता है
संवाद लंबा है इसलिए मूल कहानी पर चलते हैं
शिव त्रिशूल से वार कर देते है. दंड अपना असर नहीं दिखा पाता। गणेश का मस्तक धड़ से अलग हो जाता है।
पार्वती चीख पड़ी।
मौत का सन्नाटा पसर गया।
पार्वती यानी प्रकृति का क्रोध चरम पर था। वह हिंसक हो उठी थीं। महादेव आपने गणेश को नहीं मुझे मार डाला है। अब मैं खुद को मार दूंगी
महादेव ने समझाया तुम ऐसा नहीं कर सकती
हुंकार उठी पार्वती क्यों नहीं।
या तो गणेश को जीवन दीजिए या फिर विनाश देखिए
महादेव के गणों ने कहा दक्ष की तरह ही समाधान निकाला जाए।
उत्तर दिशा में मिलने वाले पहले पशु का सिर
उसी से गणेश को जीवनदान मिलेगा पर वह इसके लिए तैयार होना चाहिए
तब विष्णु भगवान बोले वह तैयार हो जाएगा। आपने गजासुर को वरदान दिया था।
आपने गजासुर को वरदान दिया था उसके मस्तक ही हमेशा पूजा की जाएगी। वह सिर गणपति की शोभा बनेगा। जैसे ही गजासुर का मस्तक गणेश के धड़ से लगाया गया अपनी सूड़ से उसने पार्वती के प्रणाम किया।
पछतावा महादेव के चेहरे से दिख रहा था । उन्होंने घोषणा की अब ये गणेश अग्र देवता होंगे और सबसे पहले इनकी पूजा की जाएगी। इनका एक नाम गजानन होगा और दूसरा विनायक....
कौन है गजासुर
गजासुर महिषासुर का पुत्र था जिसका वध मां दुर्गा ने किया था। गजासुर भी अपने पिता की तरह अत्याचारी था। अपने पिता के वध के बदला लेने के लिए उसने घनघोर तपस्या की। उसे वरदान मिला उसके मस्तक की हमेशा पूजा की जाएगी।
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