शुक्रवार, 18 मई 2018

तुलसी में है दवा भी दुआ भी- रेनु दत्त


तुलसी को हरिप्रिया भी कहते हैं अर्थात वह जगत के पालन पोषण करने वाले भगवान विष्णु की प्रिय हैं। भारतीय परंपरा में घर-आंगन में तुलसी का होना सुख एवं कल्याण के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। सिर्फ हिंदु धर्म ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों में भी इसके महत्व और गुणवत्ता को महत्व दिया गया है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। इसकी जड़, तना, पत्तियां तथा बीज सभी उपयोगी होते हैं। इसमें कीटाणुनाशक अपार शक्ति हैं। इसको छू कर आने वाली वायु स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक होती है। तुलसी दो रंगों में होती है यह दो रंग है हरा और कत्थई। दोनों का ही सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
तुलसी के  उपयोग
स्वास्थ्यवर्धक तुलसी
पानी में तुलसी के पत्ते डा
लकर रखने से यह पानी टॉनिक का काम करता है।
खाँसी अथवा गला बैठने पर तुलसी की जड़ सुपारी की तरह चूसें।
तुलसी की हरी पत्तियों को आग पर सेंक कर नमक के साथ खाने से खांसी तथा गला ठीक हो जाता है।
खांसी-जुकाम में तुलसी के पत्ते, अदरक और काली मिर्च से तैयार की हुई चाय पीने से तुरंत लाभ पहुंचता है।
फेफड़ों में खरखराहट की आवाज आने व खाँसी होने पर तुलसी की सूखी पत्तियाँ 4 ग्राम मिश्री के साथ लें।    तुलसी के पत्तों का रस, शहद, प्याज का रस और अदरक का रस चम्मच भर लेकर मिला लें। इसे आवश्यकतानुसार दिन में तीन-चार बार लें। इससे बलगम बाहर निकल जाता हैै।
श्वांस रोगों में तुलसी के पत्ते काले नमक के साथ सुपारी की तरह मुँह में रखने से आराम मिलता है।
शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है।
तुलसी के पत्ते का रस 1-2 ग्राम रोज पिएं, बुखार नहीं होगा।
यदि मासिक धर्म ठीक से नहीं आता तो एक ग्लास पानी में तुलसी बीज को उबाले, आधा रह जाए तो इस काढ़े को पी जाएं, मासिक धर्म खुलकर होगा। मासिक धर्म के दौरान यदि कमर में दर्द भी हो रहा हो तो एक चम्मच तुलसी का रस लें।
तुलसी का रस शरीर पर मलकर सोयें, मच्छरों से छुटकारा मिलेगा।
प्रातःकाल खाली पेट 2-3 चम्मच तुलसी के रस का सेवन करें तो शारीरिक बल एवं स्मरण शक्ति में वृद्धि के साथ-साथ आपका व्यक्तित्व भी प्रभावशाली होगा।
तुलसी भोजन को शुद्ध करती है, इसी कारण ग्रहण लगने के पहले भोजन में डाल देते हैं जिससे सूर्य या चंद्र की विकृत किरणों का प्रभाव भोजन पर नहीं पड़ता।
खाना बनाते समय सब्जी पुलाव आदि में तुलसी के रस का छींटा देने से खाने की पौष्टिकता व महक दस गुना बढ़ जाती है।
तुलसी के नियमित सेवन से हीमोग्लोबीन तेजी से बढ़ता है, स्फूर्ति बनी रहती है।
तुलसी की सेवा अपने हाथों से करें, कभी चर्म रोग नहीं होगा।
सौंदर्यवर्धक तुलसी
तुलसी की पत्तियों का रस निकाल कर बराबर मात्रा में नीबू का रस मिलायें और रात को चेहरे पर लगाये तो झाइयां नहीं रहती, फुंसियां ठीक होती है और चेहरे की रंगत में निखार आता है।
तुलसी पत्रों को पीसकर चेहरे पर उबटन करने से चेहरे की आभा बढ़ती है।
दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है।
चेहरे के मुँहांसे दूर करने के लिए तुलसी पत्र एवं संतरे का रस मिलाकर रात्रि को चेहरा धोकर अच्छी तरह
से लेप लगाएं, आराम मिलेगा।
तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है।
उपयोग में सावधानियाँ
तुलसी की प्रकृति गर्म है, इसलिए गर्मी निकालने के लिये इसे दही या छाछ के साथ लें।    तुलसी के सेवन के बाद दूध भूलकर भी ना पियें, चर्म रोग हो सकता है।
तुलसी रस को अगर गर्म करना हो तो शहद साथ में ना लें। कारण गर्म वस्तु के साथ शहद विष तुल्य हो जाता है।
तुलसी के साथ दूध, मूली, नमक, प्याज, लहसुन, मांसाहार, खट्टे फल ये सभी का सेवन करना हानिकारक है।
तुलसी के पत्ते दांतो से चबाकर ना खायें, अगर खायें हैं तो तुरंत कुल्ला कर लें। कारण इसका अम्ल दांतों के एनेमल को खराब कर देता है।
तुलसी का पौधा जहां लगा हो वहा आसपास सांप बिच्छू जैसे जहरीले जीव नहीं आते।
तुलसी के पत्तों को रात्रि में नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि अंधेरे में इसकी विद्युत लहरें प्रखर हो जाती है।
तुलसी का पौधा दिन रात आक्सीजन देता है, प्रदूषण दूर करता है।

तुलसी का सान्निध्य सात्विकता और पुण्यभाव के साथ आरोग्य की शक्ति को भी बढ़ाता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण तुलसी की माला कंठी आदि शरीर में धारण करने का विधान है। प्रत्येक घर में एक तुलसी का पौधा जरूर होना चाहिए। समाजसेवा का इससे अच्छा, सुलभ, सुगम और निशुल्क उपलब्ध होने वाला और क्या उपाय हो सकता है।



गुरुवार, 17 मई 2018

मोटापे से परेशान हैं तो जरूर खाएं लहसुन

सदियों पहले से लोग लहसुन का उपयोग चिकित्सा हेतु किया करते थे। इसके स्वाद के तीखेपन में भी बहुत सारे फायदे छुपे हैं। लहसुन में मैग्नीज, विटामिन बी6, विटामिन सी, सेलेनियम, फाइबर, काॅपर, पोटेशियम, फास्फोरस, आयरन और विटामिन बी1 पाया जाता है
लहसुन  के फायदे
शरीर में कमजोरी दूर करता है और  यह लाल रक्त कोशिकाओं के लिए बहुत फायदेमंद होता है
शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और मौसमी बीमारियों से आपकी रक्षा करता है।
एंटीआॅक्सिडेंट ,एंटीबायोटिक होने के कारण इसका नियमित सेवन आपको कई तरह की असाध्य बीमारियों से सुरक्षित रख सकता है जिसमे दिल की बीमारीए उच्च रक्तचाप और कोलेस्ट्रोल के स्तर को नियमित करना शामिल है
डायरिया जैसे रोग से भी यह आपको बचाता है और नाश्ते में इसका सेवन आपकी सेहत के लिए फायदेमंद होता है।
ऽ         इसके नियमित सेवन से पाचन क्षमता में सुधार आता है और भूख भी बढ़ती है। यह आपकी पाचन शक्ति को मजबूत बनाता है।
उच्च रक्तचाप की समस्या को भी नियंत्रण में रखता है।
इसका सेवन ।स्रीमपउमत  और क्मउमदजपं जैसी बीमरियों से भी बचाता है।
एथलीट के खाने में सामान्य तौर पर यह शामिल होता है क्योंकि इससे ेजंउपदं और पाचन शक्ति बढ़ती हैै।
इसमें पोषक तत्व ज्यादा होते है और केलोरिज कम होती है  जिसकी वजह से मोटापे से ग्रस्त लोग  इसका इस्तेमाल अपनी फिटनेस के लिए कर सकते है ।







बुधवार, 16 मई 2018

कुछ इस तरह मिले दाेस्त- अनुजा भट्ट


मेरी अपने बिछड़े दाेस्ताें से मुलाकात बहुत अलग अलग  तरीके से हुई। कभी काेई रेलवेस्टेशन में मिला ताे कभी काेई बाजार में।  किसी ने अखबार या मैग्जीन में मेरे लेख पढ़कर मुझे खाेजा। कुछ मिले ताे कुछ फिर से खाे गए क्याेंकि उनका नंबर कभी खाे गया ताे कभी पता। लेकिन यादाें में वह हमेशा दस्तक देते रहे। इसी तरह कुछ दाेस्ताें काे मैं हमेशा याद रही। शुक्रिया.. फेसबुक ने ताे कमाल किया। नर्सरी के दाेस्ताें से भी मिलवा दिया।
  हर दाेस्त मेरे साथ अपने जीवन के कई तरह के पन्ने लेकर खड़ा था। हर पन्ने में एक अलग तरह की दास्तान थी। दुःख थे ताे सुख भी थे।  सभी ने अपने लिए रास्ते बनाए। इन सब दाेस्ताें में जिसके जीवन संघर्ष नें मुझे सबसे ज्यादा प्रेरित किया है उनमें एक नाम नूतन शर्मा का भी है।
 बात स्कूली दिनाें की है। हम सब सरकारी स्कूल में पढ़ते। राजकीय बालिका इंटर कालेज। आसमानी कुर्ता और सफेद सलवार कुर्ता हमारी ड्रेस थी। जूनियर सेक्शन में हम फ्राक पहनते थे। हमारी एक शिक्षका थी देवयानी जाेशी। वह अंग्रेजी पढ़ाती थीं।  अपने विषय की वह विद्वान महिला थी। कायदे से उनकाे किसी विश्व विद्यालय में प्राेफेसर  हाेना चाहिए था। वह इसकी एकदम उपयुक्त पात्र थीं।  हमारे शहर में हाई स्कूल तक ही कांवेंट स्कूल था। उसके बाद वहां के विद्यार्थी सरकारी स्कूल में आ जाते थे। एक तरफ हम सरकारी स्कूल के बच्चे जाे हिंदी हमारी माता है के साथ  बढ़े हाे रहे थे और दूसरी तरफ अचानक से आए ये विद्यार्थी। इनकी फाेज से हमारी अध्यापिका बहुत प्रभावित थी और उनकाे पढ़ाने में मजा आ रहा था। उनके सवाल पर आधे बच्चे दाएं बाएं देखते और आधे बच्चे अपने लंबे लंबे हाथ खड़े करते। आधे बच्चे  डरे और सहमें रहते ।  अंग्रेजी की कापी एकदम लाल रहती। 33 नंबर लाना भी  बड़ी बात। सरकारी बच्चे 45 से ज्यादा ला ही नहीं पाते... हर बच्चा सिर्फ अंग्रे जी पढ़ता। कभी सीढ़ियाें पर कभी मैदान पर। हर समय हर वक्त। पास जाे हाेना था। कुछ ने ताे अंग्रेजी विषय ही नहीं लिया। अंग्रेजी विषय ही छाे़ड़ दिया।
 अब बात करू नूतन की। नूतन का परिवार लड़कियाें काे पढ़ाने का हिमायती नहीं था। फिर भी नूतन काे पढ़ने की ललक थी। क्लास 6 से जहां अंग्रेजी पढ़ाई जाती हाे वहां 11 वीं शेक्सपियर का मर्चेंट आफ वेनिस दिमाग में साय साय करता था।  भरत काे पढ़ते हुए भी... हमारे भीतर अंग्रेजी साहित्य के प्रति एक खाैंफ था।  नूतन उससे लगातार जूझ रही थी। वह पढ़ना चाहती थी। पर अंग्रेजी में मेहनत करके भी वह 32 नंबर पाई। और फेल हाे गई। देवयानी मैडम ने उसका 1 नंबर नहीं बढ़ाया। बस इसी के साथ उसकी पढ़ाई भी बंद हाे गई। उसने स्कूल  आना बंद कर दिया।
 नूतन ने मुझे फेसबुक से खाेजा.. और उसके बाद की कहानी सुनाई।  स्कूल छाेड़नेके बाद ही उसकी शादी हाे गई। 18 साल में। उसके पति काे पढ़ने लिखने का शाैक  है। उसने भी अपने मन  की बात साझा की और हिचकी हिचकी भर राेई। उसके पति ने कहा काेई बात नहीं अब पढ़ाे। और उसकी पढ़ाई-लिखाई और टीचर्स ट्रेनिंग की व्यवस्था की। वह हास्टिल में रहकर पढ़ी। बहुत मेहनत की और आज अंग्रेजी की ही टीचर है।  सरकार द्वारा उसे बेस्ट शिक्षक का अवार्ड भी मिला है।
 भरे गले से उसने कहा मेरे पास अभी भी अपनी वह मार्कशीट है। जिसमें मैं फेल हाे गई थी। इस बार मैं अपनी उन टीचर से मिलने जा रही हूं अपनी मार्कशीट के साथ। जीं हा देवयानी जाेशी बहनजी से..इन छुट्टियाें में..

मंगलवार, 15 मई 2018

TUESDAY PARENTING - सुपर माँम बनने जा रही हैं ताे..... अनुजा भट्ट

भारत की स्थिति तो विदेशों से भी ज्यादा खराब है। महिलाएं घर परिवार और कामकाज के दबाव में बहुत तरह की दिक्कतों को झेल रही हैं। उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वह हर जगह एकदम फिट हो। मानसिक तनाव को दूर करने के लिए उनके पास कोई सटीक रास्ता नहीं है। तनाव को कम करने के लिए सिर्फ एक रास्ता है सच्ची खुशी। पर खुशी क्या होती है इसका अहसास वह खो चुकी हैं। खुलकर हँसे भी कई दिन बीत गए। पति और परिवार के साथ मिलकर अपने मन की बात कहने का वक्त नहीं। परिवार चलाने के लिए पैसे कमाने का दवाब भी है तो बच्चों की सही परवरिश का जिम्मा भी। सबकुछ संभलने के चक्कर में वह खुद को खो रही है और इसलिए वह फ्रस्टेशन में है। भावनात्मक अनुभूति को महसूस करने की शक्ति उसके भीतर से विलुप्त होती जा रही है। वह इससे छुटकारा पाने के लिए नशे की तरफ अपने कदम बढ़ा रही है। भारत में भी महिलाआं द्रारा नशा करने की प्रवृत्ति जोर पकड़ती जा रही है।
 ब्रिटेन की ज्यादात्तर नई माँएं इस कदर दबाव महसूस कर रही हैं कि उन्होंने खूब शराब पीना शुरू कर दिया है। यही नहीं उनके पार्टनर भी खूब पीने लगे हैं यानी सुपर डैड भी। हालत यह हो गई है कि ज्यादातर बच्चे ऐसे मां-बाप के साथ रहने पर मजबूर हैं जो खतरनाक स्तर तक शराब के आदी हो चुके हैं। जहां शराब उनके लिए तनाव से निजात दिलाने वाला माध्यम बन रही है वहीं इससे उनके बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है। जाहिर है कि भविष्य में इस तरह के परिवारों का समाज पर बहुत बुरा असर पड़ने जा रहा है। यह किसी भी समाज के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता। ऐसा होने का एक कारण एकल परिवारों का बढ़ते चले जाना है। पहले बुजुर्गों के साथ रहने से परिवार का माहौल खासा आत्मीय और सुकूनदेह हुआ करता था लेकिन जब से परिवार में उनके लिए जगह नहीं रही तब से मॉम सीधे-सीधे बच्चों की डिमांड के निशाने पर आ गई। इसके अलावा एफएमसीजी की आक्रामक मार्केटिंग टीवी और पब्लिक स्कूलों का माहौल बच्चों का इस तरह से ब्रेनवाश कर रहा है कि वे साधारण मम्मी-डैडी से संतुष्ट ही नहीं हैं उन्हें सुपर मॉम-डैड ही चाहिए। इन हालात में मॉम पर दबाव और बढ़ जाता है। वे चाह कर भी सहज नहीं रह पातीं और थोड़ी शांति के लिए नशे की शरण में चली जाती हैं। इसका संबंध महिला के कामकाजी होने-नहीं होने से नहीं है।
 संभलिए अभी वक्त है
 भारत में भी पिछले कुछ दशकों में परिवार का आकार छोटा होता गया है। एकल परिवारों की कामकाजी महिलाओं की अपनी परेशानियां हैं। उन पर भी दोहरी जिम्मेदारी है। बड़े शहरों में यह और अधिक है। ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि परिवार में पारिवारिकता के भाव को नजरंदाज न किया जाए। इसके लिए सबसे जरूरी चीज है आत्मीय संवाद। जब यह कम होने लगता है तब तनाव की शुरुआत होती है। यह फिर धीरे-धीरे हमें डिप्रेशन की तरफ ले जाता है। एक-दूसरे को उसकी जिम्मेदारियों और सीमाओं के साथ समझने वाला संवाद परिवार को बचा सकता है।

TUESDAY PERENTING बेस्ट मॉम के सुझाव


बेहतर प्रफेशनल हों और करियर में चाहे जिस भी मुकाम पर हों , अपने बच्चे को बेस्ट मॉम बनकर उसे हर खुशी देने की चाहत आपके लिए किसी चैलेंज से कम नहीं। घर और ऑफिस की जद्दोजहद के बीच मां बनते ही वर्किंग वुमन की प्रायॉरिटीज अचानक बदल जाती हैं।
हमेशा खुश रहने की कोशिश करती

चंद्रा निगम एडवोकेट होने के साथ - साथ पांच साल की बेटी की मां भी हैं। मां बनने के साथ ही वर्किंग वुमन की प्रायॉरिटी बदल सी जाती है। आपको चाहे ऑफिस और क्लाइंट्स की जितनी भी टेंशन हो , घर पहुंचने से पहले मूड ठीक करना ही होता है। बल्कि सच कहूं तो नन्ही बिटिया को देखते ही टेंशन काफूर हो जाती है। कोशिश होती है कि घर पर काम न ले जाऊं , पर मेरा प्रफेशन ऐसा है कि स्टडी के लिए फाइलें घर लानी ही पड़ती हैं। लेकिन , बच्ची के सो जाने पर ही मैं अपना काम करती हूं।
अक्सर मन होता कि जॉबछोड़ दूं
कमर्शल टैक्स डिपार्टमेंट में काम करने वाली गीता बिष्ट अपने पहले चाइल्ड बर्थ को याद करते हुए बताती हैं , वह सिर्फ पैरंटहुड की नहीं , मेरे करियर की भी शुरुआत थी। बच्चे से जुड़ी छोटी - छोटी बातें भी तब परेशान कर जाती थीं। घर से ऑफिस और ऑफिस से घर आते - जाते वक्त हमेशा जल्दी रहती कि कब और कैसे उसके पास पहुंचूं। वैसे तो मैंने कभी साइकल छुई तक नहीं थी , लेकिन सिर्फ अपने लाडले को ज्यादा वक्त देने की खातिर स्कूटी चलानी सीखी। उसके बीमार होने पर ऑफिस में मन नहीं लगता था। यह बात मन को सालती रहती कि जॉब न होती , तो बच्चे को शायद ज्यादा प्यार और बेहतर परवरिश दे पाती। उसकी बेस्ट मॉम बनने की चाहत में अक्सर मनहोता कि जॉब छोड़ दूं। पर जॉब छोड़ना हथियार डालने जैसा होता।अपने हर संघर्ष को मैंने डायरी में नोट किया है। उम्मीद करती हूं कि बड़ा होकर बेटा इसे पढ़कर समझेगा।
जरूरी था उन्हें वक्त देना
हायर एजुकेशन ले रहे दो बच्चों की मां संगीता बताती हैं कि बेहतर टाइम मैनेजमेंट मां के लिए बड़ा चैलेंज है। ग्रैजुएशन खत्म होने से पहले ही मेरी शादी हो गई थी ,इसलिए मां बनने के बाद पढ़ाई और फिर करियर को आगे बढ़ाना भी एक चैलेंज था। मैंने प्राइमरी टीचर बनकर काम शुरू किया। कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई भी साथ - साथ चलती रही। नन्हे बच्चे को धूप में बाहर लाना अच्छा नहीं लगता था , पर स्कूल से लौटते वक्त उसे क्रेच से घर लाना पड़ता था। बड़े होते बच्चों के साथ जिम्मेदारियां भी बढ़ीं। शाम को कभी बेटे को स्केटिंग या स्वमिंग क्लास ले जाना होता था , तो कभी बेटी को डांस क्लास। उनकी पढ़ाई और होमवर्क की जिम्मेदारी थी , सो अलग।
उसकी छुट्टियां बनीं मेरी भी छुट्टियां
कमर्शल मैनेजर चंचल बनर्जी ने बेटी को ज्यादा से ज्यादा समय देने के लिए फुल टाइम जॉब छोड़कर पार्ट टाइमजॉब कर ली। वह कहती हैं कि बेटी जब 9 साल की थी , तो अक्सर पूछती कि आप ऑफिस क्यों जाते हो , घर पर ही क्यों नहीं रहते। तब मैंने उसे वक्त और परिवार की जरूरत समझाई। धीरे - धीरे जब वह अपनी पढ़ाई और करियर को लेकर सीरियस होने लगी, तो उसने ही मुझे पार्ट टाइम से फुल टाइम जॉब लेने का प्रेशर बनाया। यहां तक कि अब एक मां की तरह मेरी केयर करती है। मैं उसके लिए सारे साल छुट्टियां नहीं लेती। जब उसके समर वकेशन पड़ते हैं , उन्हीं दिनों मैं भी 15-20 दिन की छुट्टियां लेती हूं और उसे पूरा वक्त देती हूं।

सोमवार, 14 मई 2018

MONDAY HEALTH शुगर को रखें कंट्रोल में - डा. दीपिका शर्मा


मोटापे को बहुत बार हम आनुवांशिक मान बैठते हैं जबकि एक्सपर्ट मानते हैं कि मोटापा बढ़ने का कारण हम सबकी बदलती लाइफस्टाइल है।

डायबिटीज है क्या -  इंसुलिन एक हारमोन है जोकि हमारे ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करता है। डायबिटीज में हमारा शरीर न तो इंसुलिन बना पाता है और न ही उसका पूरा इस्तेमाल कर पाता है।  यदि यह बीमारी कंट्रोल नहीं हो पाती तो कई तरह की बीमारी लगने का खतरा रहता है जैसे कि दिल की बीमारी, स्ट्रोक, नर्वस की बीमारी या किडनी की बीमारी।
डायबिटीज किडनी को डैमेज कर सकती है।  किडनी हमारे शरीर मंे फिल्टर की तरह काम करती है। जब हमारी बाॅडी प्रोटीन डायजेस्ट करती है तो उस समय वह वेस्ट को निकाल देती है। यह वेस्ट प्रोडक्ट हमारा यूरीन बनाता है। प्रोटीन और रेड ब्लड सेल्स किडनी फिल्टर में से नहीं निकल पाते और ब्लड में ही रह जाते हैं।  डायबिटीज किडनी के इस सिस्टम को डैमेज कर सकता है।  जब यह बहुत ज्यादा काम करती है तो यह लीक करने लगती है और हमारे शरीर के लिए जरूरी प्रोटीन भी निकल जाते हैं।  किडनी हमारे खून को सही तरीके से साफ नहीं कर पाती।  हमारे शरीर में ज्यादा नमक और पानी रह जाता है जिससे कि हमारा वजन बढ़ने लगता है और टखनों में सूजन आने लगती है।  पेशाब में प्रोटीन आने लगता है और शरीर में वेस्ट मैटीरियल जमा होने लगता है।  ब्लैडर से प्रेशर किडनी की तरफ वापिस जाकर आपकी किडनी को भी नुकसान पहुंचा सकता है और यदि पेशाब ज्यादा देर तक ब्लैडर में रह गया तो उससे बैक्टीरिया हो सकता है जोकि इन्फेक्शन पैदा कर सकता है।
किडनी की बीमारी के लक्षण जल्दी से सामने नहीं आते जब तक कि उसके सारे फंक्शन समाप्त नहीं हो जाते।  किडनी अपनी तरफ से बहुत कठिन परिश्रम करके समस्या को दूर करने का प्रयास करती है।
किडनी की बीमारी के लक्षण

  • अनिंद्रा
  • भूख कम लगना, पेट खराब होना
  • ध्यान में कमी
  • वजन बढ़ना
  • रात में बार बार पेशाब के लिए उठना
  • यूरीन में प्रोटीन
  • उच्च रक्तचाप
  • एंकल और लेग में सूजन, टांगों में क्रैम्पस
  • क्रेटनीन लेवल का बढ़ना
  • इंसुलिन या एंटीबाॅयटिक की जरूरत कम लगना
  • मौरनिंग सिकनेस, उल्टी होना
  • कमजोरी, पीलापन या एनीमिया
  • खारिश होना
  1.  डायबिटीज के पेशेंट को किडनी की बीमारी हो यह जरूरी नहीं है।  यदि इस  बीमारी को शुरूआती दौर में ही पकड़ लिया जाए तो इसको आगे बढ़ने से रोका जा सकता है।
  2. किडनी डैमेज  होने की स्थिति में सबसे पहले तो डाक्टर जांच करके यह पता लगाने की कोशिश करेंगें कि आपकी किडनी डायबटीज की वजह से डैमेज हुई है या नहीं।  क्या आपकी किडनी सही तरीके से काम करेंगी यदि डायबिटीज पर कंट्रोल कर लें।
  3. हाई ब्लड प्रेशर को ठीक करने के लिए ली गई दवा भी किडनी को नुकसान पहुंचा सकती है इसलिए हाई बीपी कंट्रोल कर लें।
  4. यदि  यूरिन इन्फेक्शन है तो उसका इलाज करवा लें।
  5. यदि कोई अन्य समस्या नहीं मिलती है तो डाक्टर आपकी किडनी को ज्यादा से ज्यादा देर तक काम करने की कोशिश कर सकता है।
  6. डाक्टर आपके ट्रीटमेंट में ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने के लिए दवा देंगें और आपकी डाइट प्लान करके आपके शरीर में प्रोटीन को कम करेंगें।
  7. यदि आपकी किडनी आपके शरीर को सपोर्ट करना बंद कर दे तो डायलिसिस या ट्रांसप्लांट  की नौबत आ जाती है। ऐसी स्थिति में आपकी किडनी 10 या 15 प्रतिशत ही काम कर रही होती है।
  8. डायबिटीज के पेशेंट की किडनी फेलियर ट्रीटमेंट तीन तरीके से किया जाता है किडनी ट्रांसप्लांट, हीमोडायलिसिस और पेरिटोनियल डायलिसिस।
  9. डायबिटीज के पेशेंट को किडनी ट्रांसप्लांट के बाद इंसुलिन की हाईर डोज दी जाती है।  इससे भूख बढ़ती हैं क्योंकि नई किडनी इंसुलिन को सही तरीके से तोड़ पाती है बजाय खराब किडनी के।  पेशेंट को स्टीरायड पिल्स पर रखा जाता है ताकि शरीर कहीं नई किडनी को रिजेक्ट न कर दे।
  10. डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए  उपाय:-
  11. अपने ब्लड ग्लूकोज लेवल की लगातार जांच करें।
  12. ब्लड प्रेशर कंट्रोल करें।
  13. जो भी आप खाएं सोच समंझ कर, हाई फाइबर युक्त भोजन लें जिसमें होलग्रेन हो, पूरा प्रोटीन मिले। तीन बार हेवी मील खाने के बजाय थोड़ा-थोड़ा पांच बार खा लंेे।
  14. एक्सरसाइज करके अपना वजन कम करें। कम से कम 30 मिनट प्रतिदिन वाॅक करें।
  15. ज्यादा देर एक जगह न बैठेंे।
  16. तनाव से भी ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है।  इसलिए इसको कम करने के लिए डीप ब्रीदिंग, मेडिटेशन जैसी विधियां अपनाएं।
  17. कम से कम 6 घंटे की पूरी नींद लें।  इससे कम नींद लेने पर आपके शरीर में ब्लड शुगर लेवल बढ़ने की संभावना 3 गुना बढ़ जाती है।
  18. स्मोकिंग न करंे ।
  19. यदि आप शराब पीते हैं तो उसकी मात्रा का भी ध्यान रखें क्योंकि इससे भी शुगर होने की संभावना होती है।
  20. वर्ष में एक बार अपना फुल बाॅडी चेकअप जरूर कराएं।

रविवार, 13 मई 2018

माँ - सविता शुक्ला



माँ ,तुम प्यार का सागर हो ,
ममता की अप्रतिम गागर हो ,
तुम त्याग की प्रतिमूर्ति हो ,
सद्भाव की जीवंत कृति हो ,
कभी कोमल हो तुम, कभी ज्वाला
बच्चों की हो तुम प्रथम पाठशाला
भावुक दिल और नाजुक हाथों से
बच्चों का भविष्य संवारती हो,
कठिन परिश्रम करवाकर
तुम शूरवीर उन्हें बनाती हो,
खुद संघर्ष करके भी
बच्चों का किस्मत चमकाती हो,
अपना वजूद भूला कर
सर्वस्व उनपर  लूटाती हो,
तुम जननी हो,तुम धात्रृ हो,
ईश्वर का प्रतिरुप माँ,तुम सबसे प्यारी हो.

sunday story time अनजानी पहचान गूंथ लो- उर्मिल सत्यभूषण


फेसबुक पर निनाद की टिप्पणी थी - लोग तस्वीरों में ढ़ल गये हैं। दीवारों पर टंग गये। घर है या मकान या मसाज!! ---
देवी ने पढ़ा तो विहृल हो गई। दिल हुआ निनाद से बात करे। संदल को फोन किया --- संदल कैसे हो बेटा? क्या मुझे निनाद का मोबाइल एस एम एस कर दोगे? ‘‘जरूर -  देवी जी - अभी करता हूं : आप ठीक हैं?‘‘ संदल बोला मैं तो ठीक हूं पर निनाद?
हां - देवी जी - आजकल उसके हालात ----
‘आप लोग शेयर करा करो। आओ आओ। बाहर निकालो उसेः
देवी दीदी, मैं तो बातचीत करता रहता हूं पर शायद उसे ही अच्छा न लगे, हमारा ज्यादा दखल देना।
‘‘क्या हुआ है?
‘‘आपको पता हैः निनाद पत्रिका के मामले में काफी व्यस्त रहता है। मां और पत्नी साथ रहती थीं ---- घर को, उसको संभालती थीं। अच्छा मैं फोन नम्बर एस एम एस कर रहा हूं।
ःदेवी निनाद का मोबाइल जानकर आश्वस्त हुई
लगाया :- काफी घंटी बजने के बाद उठायाः
‘‘कौन?
‘‘मैं देवी चौधरी, शायद आप मुझे नहीं जानते? मैं आपको जानती हूं निनाद जीः
‘‘नहीं, मैं भी आपको जानता हूं : आप को कौन नहीं जानता?
‘‘तो फिर मिले क्यों नहीं अब तक? मुझे आपकी पत्रिका को भी प्राप्त करना है। बहुत तारीफ हो रही है। क्या कमाल के होते हैं आपके संपादकीय।
‘जी‘ उधर से मंद स्वर बुझा बुझा सा
‘‘निनाद, आप रहते कहां हो, मैं मिलना चाहती हूं।
‘‘जी, -- मरा मरा सा स्वर --
‘‘बेटे, तुमने अभी तक खाना नहीं खाया, क्यां?
अच्छी बात है क्या? सुबह से भूखे हो?
‘‘आपको कैसे पता मैं भूखा हूं। बताइए कैसे पता‘ स्वर में विहृलता और थोड़ी चंचलता आ गई।
‘बेटे हम औरतें जानीजान हैं। स्वरों को पहचानती हैं।
फूट पड़ा निनाद - ‘‘ मेरी अम्मा चली गईं, छः महीने पहले बीवी चली गई! मैं भी भूतहा मकान में भूत हो गया हूं‘‘।
पर आपको कैसे पता चला मैं भूखा हूं। मुझे बताइए न प्लीज‘‘
देवी बोली :- मैं भी तुम्हारी अम्मा हूं। इसलिए जान गई कि बेटा भूखा है। अम्मा की बात मानों उठो मुंह हाथ धोवो आर पहले खाना खाओ। खाना बना हुआ है क्या ?
‘‘है खाना बना है। मेड आकर बना जाती है। पर खाया नहीं जाता।
मुझे पता है खाया नहीं जाता, पर अब देवी मां रोज आपसे इसरार करेगी - बेटा उठो खाना खा लो - तो खाओगे न ।
‘‘हां‘‘ और वह फूट फूट कर रो उठा।
देवी बोली - बेटा महसूस करो मेरा कंधा, रो लो रो लो खुलकर रो लो -- पांच मिनट उसने रोने दिया फिर फोन पर ही बोली - बेटा मैं दर्द की जुबां समझती हूं। उठो तुम्हें अभी बहुत से काम करने हैं। यह दर्द ही तुम्हारी दवा बन जायेगा। अभी भी कसम दिला रही हूं खाना खाने की। गर्म करो खाना और अपनी पत्नी का नाम लो, अम्मा का नाम लो - एक एक कौर उनका निकाल कर खुद ही खा लो। आंसु बहते हैं तो बहने दो पर शरीर की मट्टी में इंधन डालो जरूर --- मैं एक घंटे बाद फिर फोन करूंगी, ठीक है ठीक उत्तर मिला और फोन बंद हो गया।
ठीक एक घंटे बाद देवी ने फोन किया तो निनाद मुखर लगा ! उसने निनाद से अम्मा का उसकी पत्नी का नाम पूछा : फिर बोली देख निनादः तुम अपनी पत्नी और अम्मा को रोज एक पत्र लिखो जो महसूस करते हो बोलो। तुम्हारी कविता ही तुम्हारा त्राण है, दवाई है, रोशनी है। मेरा पता नोट करो। एस एम एस करूंगीः मुझसे मिलना पड़ेगा, मिलोगे न! जी अम्मा! आपका बहुत बहुत शुक्रियाः
अम्मा का शुक्रिया नहीं किया जाता। अच्छा बाय! उसने मोबाइल पर संदेश दियाः-   
माना जिदगी की राह बीहड़ पर केवल तुम ही हो क्या। अनजानी पहचाने गूंथ लो, पंच सरल बन जायेगा। चट्टानों से टकराये जो राह उसके अनुकूल रही।

शनिवार, 12 मई 2018

SATURDAY RELATIONSHIP पचास पार जब टूटे जीवनसाथी से तार-अनुजा भट्ट


आप सप्तसदी के साथ फेरे लें, निकाहनामा पढ़ें या फिर कोर्ट में हलफनामा पेश करें लेकिन इस बात की गारंटी नहीं है कि जीवनसाथी के साथ आपके रिश्ते की डोर पूरी उम्र मजबूत ही रहेगी।
  रिश्तों की मजबूती के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।  आज पचास साल की परिपक्व उम्र में तलाक के मामले सामने आ रहे हैं और बीते 20 वर्षों में यह आंकड़ें लगभग दोगुने से भी ज्यादा हो गए हैं। अग्रेंजी में इसके लिए ग्रे डायवोर्स शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।
तलाक की स्थिति किसी के लिए भी खुशी देने वाली नहीं होती।  क्या आपकी शादी भी ऐसे किसी दोराहे पर खड़ी है? शायद आपके जीवन-साथी ने आपके भरोसे को तोड़ा हो या फिर बार-बार होने वाले झगड़ों की वजह से आपके रिश्ते में पहले जैसी मिठास नहीं रही।  आपके मन में यह भी खयाल आता होगा, ‘शायद हमें तलाक ले लेना चाहिए।’
तलाक का फैसला जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए। पहले इस बारे में अच्छी तरह सोच-विचार कर लीजिए। यह जरूरी नहीं कि तलाक लेने से आपकी जिंदगी में छाए परेशानी के काले बादल छँट जाएँगे। तलाक से एक समस्या तो हल हो जाती है, लेकिन उसकी जगह एक नयी समस्या खड़ी हो जाती है।
1 पैसे की समस्या
माया को अपनी शादी के 25 साल बाद पता चला की उसके पति का ऑफिस में साथ काम करनेवाली किसी महिला के साथ नाजायज संबंध है। वह कहती है, “जब मुझे यह बात पता चली तो कुछ समय अलग रहने के बाद, माया ने आखिरकार तलाक लेने का फैसला किया। जैसे ही हम एक-दूसरे से अलग हुए, मेरी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गयी। शादी टूटने पर अक्सर पत्नी को भयंकर आर्थिक समस्या से जूझना पड़ता है। कुछ महिलाओं के लिए यह वाकई मुश्किल होता है, क्योंकि उन्हें बच्चों की देखभाल करनी होती है, नौकरी ढूँढ़नी होती है, साथ ही तलाक की वजह से मानसिक तनाव से भी गुजरना होता है।
2 माता-पिता की जिम्मेदारी
नीलू कहती हंै, “जब मुझे पता चला कि मेरे पति का किसी के साथ संबध हैं तो उसने अपने पति को तलाक दे दिया। वह यह नहीं कहती कि उसने गलत फैसला लिया, मगर वह कबूल करती है, “अपने बच्चों के लिए माँ-बाप दोनों की भूमिका निभाना मेरे लिए सबसे बड़ी मुश्किल थी। “कोर्ट ने मुझे अपने 16 साल के बेटे को अपने साथ रखने की इजाजत दी। मगर जब एक बच्चा जवानी की दहलीज पर कदम रखता है तो वह बड़ा मुश्किल समय होता है और मेरे लिए अकेले अपने बेटे की परवरिश करना बहुत मुश्किल था। मुझे अकेले ही सारे फैसले लेने पड़ते थे।
जो तलाकशुदा माता-पिता अलग-अलग रहते हैं, लेकिन बारी-बारी से अपने बच्चों की परवरिश करते हैं, तो  उन्हें अपने पूर्व पति या पत्नी के साथ मिलकर कुछ नाजुक मामलों पर फैसला करना होता है। अपने पूर्व पति के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाए रखना आसान नहीं होता।
3 तलाक का असर आप पर
जीवन को जब पता चला कि उसकी पत्नी उसे धोखा दे  रही है तो उसे ऐसा लगा कि दुनिया उजड़ गयी हो। वह कहता है, “पहले-पहल तो मुझे इस बात पर बिलकुल यकीन नहीं हुआ। मैं वाकई अपनी जिंदगी का हर दिन अपनी पत्नी और बच्चों के साथ बिताना चाहता था।”  मगर पत्नी की बेवफाई की वजह से मैं ऐसी उलझन में पड़ गया।  जीवन कहता है “जब लोग उसके बारे में उल्टी-सीधी बातें करते हैं तो उन्हें लगता है कि इससे मेरे दिल को सुकून मिलेगा। पर ऐसा बिलकुल नहीं होता। प्यार इतनी जल्दी नहीं मिटता।”
तलाक के बाद एक इंसान कई तरह की भावनाओं से गुजरता है। अगर आपका तलाक हो चुका है, तो आप भी जरूर इस दौर से गुजरे होंगे। जो हसीन पल आपने साथ बिताए थे वे आपको रह-रहकर याद आते हैं और आप सोचते हैं ‘वह मुझसे कहता था कि वह मेरे बगैर नहीं जी सकता। क्या वह मुझसे हमेशा झूठ बोलता था? आखिर यह सब क्यों हुआ?’”
4 तलाक का असर बच्चों पर
 रितेश एक तलाकशुदा पिता है। वह कहता हैै, “जिस घड़ी मुझे पता चला कि मेरी पत्नी का संबंध मेरी बहन के पति के साथ है, तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गयी। मैं बस मरना चाहता था।” मैंने देखा कि मेरे दोनों लड़कें जिनकी उम्र दो और चार साल की थी, उन पर भी उनकी माँ की इस हरकत का असर हो रहा था। वह कहता है, “वे कुछ समझ नहीं पा रहे थे और न ही वे इस हालात का सामना कर पा रहे थे।
लोग तलाक तो ले लेते हैं, पर अक्सर यह नहीं सोचते कि इसका बच्चों पर क्या असर होगा। यह बात सच है कि अक्सर बच्चों को पता होता है कि उनके मम्मी-पापा के बीच झगड़ा चल रहा है और इसका बच्चों के कोमल दिल और दिमाग पर बुरा असर हो सकता है। मगर यह सोचना कि तलाक लेना बच्चों के लिए अच्छा रहेगा बिल्कुल गलत है। अगर आप तलाक लेने की सोच रहे हैं, तो इस लेख में दिए चार मुद्दों पर जरूर गौर कीजिएगा। आखिर फैसला आप ही को करना है। चाहे आप कोई भी रास्ता अपनाएँ, आपको उसके अंजामों के बारे में पता होना चाहिए। आपको यह भी पता होना चाहिए कि कौन-सी परेशानियाँ खड़ी हो सकती हैं और उनका सामना करने के लिए तैयार रहिए।
इस मामले पर अच्छी तरह सोचने के बाद शायद आपको लगे कि इससे बेहतर होगा आप अपनी शादीशुदा जिंदगी को सुधारें। मगर क्या यह वाकई मुमकिन है?

शुक्रवार, 11 मई 2018

HAPPY BIRTHDAY नृत्य नाटक और संगीत की देवी -मृणालिनी साराभाई

आज मृणालिनी साराभाई का 100 वां जन्मदिन  है। उनका जन्म 11 मई, 1918, केरल  में हुआ। 21 जनवरी, 2016, अहमदाबाद, गुजरात) में उन्हाेंने अंतिम सांस ली। वह भारत की प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना थीं। उन्हें 'अम्मा' के तौर पर जाना जाता था। शास्त्रीय नृत्य में उनके योगदान तथा उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया था।
  • अपने बचपन का अधिकांश समय मृणालिनी साराभाई ने स्विट्जरलैंड में बिताया। यहां 'डेलक्रूज स्‍कूल' से उन्‍होंने पश्चिमी तकनीक से नृत्‍य कलाएं सीखीं। उन्‍होंने शांति निकेतन से भी शिक्षा प्राप्‍त की थी।[1]
  • मृणालिनी साराभाई ने भारत लौटकर जानी-मानी नृत्‍यांगना मीनाक्षी सुंदरम पिल्लई से भरतनाट्यम का प्रशिक्षण लिया था और फिर दक्षिण भारतीय शास्त्रीय नृत्य और पौराणिक गुरु थाकाज़ी कुंचू कुरुप से कथकली के शास्त्रीय नृत्य-नाटक में प्रशिक्षण लिया।
  • उनके पति विक्रम साराभाई देश के सुप्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक थे। उनकी बेटी मल्लिका साराभाई भी प्रसिद्ध नृत्यांगना और समाजसेवी हैं।
  • मृणालिनी की बड़ी बहन लक्ष्मी सहगल स्वतंत्रता सेनानी थीं। वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज की महिला सेना झांसी रेजीमेंट की कमांडर इन चीफ़ थीं।
  • भारत सरकार की ओर से मृणालिनी साराभाई को देश के प्रसिद्ध नागरिक सम्मान 'पद्मभूषण' और 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था। 'यूनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्ट एंगलिया', नॉविच यूके ने भी उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि दी थी। 'इंटरनेशनल डांस काउंसिल पेरिस' की ओर से उन्हें एग्जीक्यूटिव कमेटी के लिए भी नामित किया गया था।
  • प्रसिद्ध 'दर्पणा एकेडमी' की स्थापना मृणालिनी साराभाई ने की थी।

#मैंअपराजिताकहानीप्रतियाेगिता-कमलेश आहूजा

बचपन से पेंटर (चित्रकार ) बनने का सपना था. पर सबका मानना था कि,पेंटिंग हॉबी तक ठीक  है पर कैरियर के लिए नहीं.मन मार कर एम बीए कर लिया.फिर नौकरी की उसके बाद शादी हो गयी.फिर वही घर-गृहस्थी की जिम्मेवारियाँ.अपने मन के करने का कभी मौका ही नहीं मिला.धीरे धीरे मन से कुछ करने की इच्छा ही समाप्त हो गयी.लगता ही नहीं,कि मैंने कभी पेंटिंग प्रतियोगिताओं में इतने पुरुस्कार जीते थे.कैसे रंगों से कैनवास पर खेलती थी.जब चाहे जो भी रंग  भर देती थी..अपने ही द्वारा बनायी तस्वीर में. पेंटिंग कहीं सीखी नहीं थी बस अपनी कल्पनाओं से ही उन्हें साकार किया.
अब तो कुछ पेंटिग करने का सोचती तो लगता, कि ब्रश भी  ठीक से पकड़ना आयेगा या नही.?, रंगों का चयन व संयोजन सही तरीके से कर पाऊँगी या नहीं.?अपने ऊपर विश्वास तो जैसे रहा ही नहीं था.
अंधेरे में छोटे छोटे जुगनुओं को टिमटिमाते हुए देखा तो लगा,कि गहन अंधकार को दूर करने के लिए ये कैसे सतत प्रयत्नशील हैं अर्थात चमक रहें हैं.फिर मैंने क्यों हार मान ली.? मैं भी फिर से प्रयास करूँ तो अपने पेंटर बनने के सपने को पूरा कर सकती हूँ.जिम्मेवारियों का क्या.! वो तो मरते दम तक भी पूरी नहीं होती.
बस इसी सोच के साथ फिर से पेंटिंगस बनाना शुरू कर दिया.समय समय पर प्रतीक की मदद भी ली.रिया (विधायक) की मदद से शहर में होने वाली पेंटिग एक्सिबिशनस में मेरी पेंटिग्स को भी स्थान मिलने लगा.पेंटिग्स को लोग पसंद करने लगे और बड़े बड़े पुरुस्कार मिलने लगे.लोग मेरी बनायी हुई पेंटिंग्स को खरीदने लगे.धीरे- धीरे मेरी पेंटिग्स की माँग बड़ने लगी और मैं भी लोगों के बीच लोकप्रिय होने लगी.
आज मीना,रिया,संज्ञान व प्रतीक सभी मित्र घर आये.बातों ही बातों में मीना मुझसे कहने लगी- "अब तो तुम जानी मानी पेंटर बन गयी हो,मैं एक  कहानी तुम पर भी लिखना चाहती हूँ ".मैंने कहा- "हां क्यो नहीं..? जरूर लिखो और उसका शीर्षक रखना-"जुगनुओं सी चमक".क्योंकि जुगनुओं की इसी चमक ने मुझे फिर से अपने जीवन में रंग भरने की प्रेरणा दी.वरना मैंने तो अपनी ज़िंदगी बेरंग बना रखी थी.इसी चमक को देखकर मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः लौट आया और मैं अपने पेंटर बनने के सपने को पूरा कर सकी.
इस मौके पर शायर संज्ञान कहाँ खामोश रहने वाले थे,एक शायरी उन्होंनें भी सुना ही दी...
       टूटने लगे हौंसला,तो ये याद रखना,
       बिना मेहनत के तख्तो-ताज नहीं मिलते.
       ढूंढ लेते हैं अंधेरों में मंज़िल अपनी,
       क्योंकि जुगनू कभी रोशनी के मोहताज                नही होते..!!

Special Post

मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...