मेरी अपने बिछड़े दाेस्ताें से मुलाकात बहुत अलग अलग तरीके से हुई। कभी काेई रेलवेस्टेशन में मिला ताे कभी काेई बाजार में। किसी ने अखबार या मैग्जीन में मेरे लेख पढ़कर मुझे खाेजा। कुछ मिले ताे कुछ फिर से खाे गए क्याेंकि उनका नंबर कभी खाे गया ताे कभी पता। लेकिन यादाें में वह हमेशा दस्तक देते रहे। इसी तरह कुछ दाेस्ताें काे मैं हमेशा याद रही। शुक्रिया.. फेसबुक ने ताे कमाल किया। नर्सरी के दाेस्ताें से भी मिलवा दिया।
हर दाेस्त मेरे साथ अपने जीवन के कई तरह के पन्ने लेकर खड़ा था। हर पन्ने में एक अलग तरह की दास्तान थी। दुःख थे ताे सुख भी थे। सभी ने अपने लिए रास्ते बनाए। इन सब दाेस्ताें में जिसके जीवन संघर्ष नें मुझे सबसे ज्यादा प्रेरित किया है उनमें एक नाम नूतन शर्मा का भी है।
बात स्कूली दिनाें की है। हम सब सरकारी स्कूल में पढ़ते। राजकीय बालिका इंटर कालेज। आसमानी कुर्ता और सफेद सलवार कुर्ता हमारी ड्रेस थी। जूनियर सेक्शन में हम फ्राक पहनते थे। हमारी एक शिक्षका थी देवयानी जाेशी। वह अंग्रेजी पढ़ाती थीं। अपने विषय की वह विद्वान महिला थी। कायदे से उनकाे किसी विश्व विद्यालय में प्राेफेसर हाेना चाहिए था। वह इसकी एकदम उपयुक्त पात्र थीं। हमारे शहर में हाई स्कूल तक ही कांवेंट स्कूल था। उसके बाद वहां के विद्यार्थी सरकारी स्कूल में आ जाते थे। एक तरफ हम सरकारी स्कूल के बच्चे जाे हिंदी हमारी माता है के साथ बढ़े हाे रहे थे और दूसरी तरफ अचानक से आए ये विद्यार्थी। इनकी फाेज से हमारी अध्यापिका बहुत प्रभावित थी और उनकाे पढ़ाने में मजा आ रहा था। उनके सवाल पर आधे बच्चे दाएं बाएं देखते और आधे बच्चे अपने लंबे लंबे हाथ खड़े करते। आधे बच्चे डरे और सहमें रहते । अंग्रेजी की कापी एकदम लाल रहती। 33 नंबर लाना भी बड़ी बात। सरकारी बच्चे 45 से ज्यादा ला ही नहीं पाते... हर बच्चा सिर्फ अंग्रे जी पढ़ता। कभी सीढ़ियाें पर कभी मैदान पर। हर समय हर वक्त। पास जाे हाेना था। कुछ ने ताे अंग्रेजी विषय ही नहीं लिया। अंग्रेजी विषय ही छाे़ड़ दिया।
अब बात करू नूतन की। नूतन का परिवार लड़कियाें काे पढ़ाने का हिमायती नहीं था। फिर भी नूतन काे पढ़ने की ललक थी। क्लास 6 से जहां अंग्रेजी पढ़ाई जाती हाे वहां 11 वीं शेक्सपियर का मर्चेंट आफ वेनिस दिमाग में साय साय करता था। भरत काे पढ़ते हुए भी... हमारे भीतर अंग्रेजी साहित्य के प्रति एक खाैंफ था। नूतन उससे लगातार जूझ रही थी। वह पढ़ना चाहती थी। पर अंग्रेजी में मेहनत करके भी वह 32 नंबर पाई। और फेल हाे गई। देवयानी मैडम ने उसका 1 नंबर नहीं बढ़ाया। बस इसी के साथ उसकी पढ़ाई भी बंद हाे गई। उसने स्कूल आना बंद कर दिया।
नूतन ने मुझे फेसबुक से खाेजा.. और उसके बाद की कहानी सुनाई। स्कूल छाेड़नेके बाद ही उसकी शादी हाे गई। 18 साल में। उसके पति काे पढ़ने लिखने का शाैक है। उसने भी अपने मन की बात साझा की और हिचकी हिचकी भर राेई। उसके पति ने कहा काेई बात नहीं अब पढ़ाे। और उसकी पढ़ाई-लिखाई और टीचर्स ट्रेनिंग की व्यवस्था की। वह हास्टिल में रहकर पढ़ी। बहुत मेहनत की और आज अंग्रेजी की ही टीचर है। सरकार द्वारा उसे बेस्ट शिक्षक का अवार्ड भी मिला है।
भरे गले से उसने कहा मेरे पास अभी भी अपनी वह मार्कशीट है। जिसमें मैं फेल हाे गई थी। इस बार मैं अपनी उन टीचर से मिलने जा रही हूं अपनी मार्कशीट के साथ। जीं हा देवयानी जाेशी बहनजी से..इन छुट्टियाें में..
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