शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

तुलसी में है दवा भी दुआ भी-डा. अनुजा भट्ट



तुलसी को हरिप्रिया भी कहते हैं अर्थात वह जगत के पालन पोषण करने वाले भगवान विष्णु की प्रिय हैं। भारतीय परंपरा में घर-आंगन में तुलसी का होना सुख एवं कल्याण के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। सिर्फ हिंदु धर्म ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों में भी इसके महत्व और गुणवत्ता को महत्व दिया गया है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। इसकी जड़, तना, पत्तियां तथा बीज सभी उपयोगी होते हैं। इसमें कीटाणुनाशक अपार शक्ति हैं। इसको छू कर आने वाली वायु स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक होती है। तुलसी दो रंगों में होती है यह दो रंग है हरा और कत्थई। दोनों का ही सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
तुलसी के  उपयोग
स्वास्थ्यवर्धक तुलसी
पानी में तुलसी के पत्ते डालकर रखने से यह पानी टॉनिक का काम करता है।
खाँसी अथवा गला बैठने पर तुलसी की जड़ सुपारी की तरह चूसें।
तुलसी की हरी पत्तियों को आग पर सेंक कर नमक के साथ खाने से खांसी तथा गला ठीक हो जाता है।
खांसी-जुकाम में तुलसी के पत्ते, अदरक और काली मिर्च से तैयार की हुई चाय पीने से तुरंत लाभ पहुंचता है।
फेफड़ों में खरखराहट की आवाज आने व खाँसी होने पर तुलसी की सूखी पत्तियाँ 4 ग्राम मिश्री के साथ लें।
तुलसी के पत्तों का रस, शहद, प्याज का रस और अदरक का रस चम्मच भर लेकर मिला लें। इसे आवश्यकतानुसार दिन में तीन-चार बार लें। इससे बलगम बाहर निकल जाता हैै।
श्वांस रोगों में तुलसी के पत्ते काले नमक के साथ सुपारी की तरह मुँह में रखने से आराम मिलता है।
शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है।
तुलसी के पत्ते का रस 1-2 ग्राम रोज पिएं, बुखार नहीं होगा।
यदि मासिक धर्म ठीक से नहीं आता तो एक ग्लास पानी में तुलसी बीज को उबाले, आधा रह जाए तो इस काढ़े को पी जाएं, मासिक धर्म खुलकर होगा। मासिक धर्म के दौरान यदि कमर में दर्द भी हो रहा हो तो एक चम्मच तुलसी का रस लें।
तुलसी का रस शरीर पर मलकर सोयें, मच्छरों से छुटकारा मिलेगा।
प्रातःकाल खाली पेट 2-3 चम्मच तुलसी के रस का सेवन करें तो शारीरिक बल एवं स्मरण शक्ति में वृद्धि के साथ-साथ आपका व्यक्तित्व भी प्रभावशाली होगा।
तुलसी भोजन को शुद्ध करती है, इसी कारण ग्रहण लगने के पहले भोजन में डाल देते हैं जिससे सूर्य या चंद्र की विकृत किरणों का प्रभाव भोजन पर नहीं पड़ता।
खाना बनाते समय सब्जी पुलाव आदि में तुलसी के रस का छींटा देने से खाने की पौष्टिकता व महक दस गुना बढ़ जाती है।
तुलसी के नियमित सेवन से हीमोग्लोबीन तेजी से बढ़ता है, स्फूर्ति बनी रहती है।
तुलसी की सेवा अपने हाथों से करें, कभी चर्म रोग नहीं होगा।
सौंदर्यवर्धक तुलसी
तुलसी की पत्तियों का रस निकाल कर बराबर मात्रा में नीबू का रस मिलायें और रात को चेहरे पर लगाये तो झाइयां नहीं रहती, फुंसियां ठीक होती है और चेहरे की रंगत में निखार आता है।
तुलसी पत्रों को पीसकर चेहरे पर उबटन करने से चेहरे की आभा बढ़ती है।
दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है।
चेहरे के मुँहांसे दूर करने के लिए तुलसी पत्र एवं संतरे का रस मिलाकर रात्रि को चेहरा धोकर अच्छी तरह से लेप लगाएं, आराम मिलेगा।
तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है।
उपयोग में सावधानियाँ
तुलसी की प्रकृति गर्म है, इसलिए गर्मी निकालने के लिये इसे दही या छाछ के साथ लें।    तुलसी के सेवन के बाद दूध भूलकर भी ना पियें, चर्म रोग हो सकता है।
तुलसी रस को अगर गर्म करना हो तो शहद साथ में ना लें। कारण गर्म वस्तु के साथ शहद विष तुल्य हो जाता है।
तुलसी के साथ दूध, मूली, नमक, प्याज, लहसुन, मांसाहार, खट्टे फल ये सभी का सेवन करना हानिकारक है।
तुलसी के पत्ते दांतो से चबाकर ना खायें, अगर खायें हैं तो तुरंत कुल्ला कर लें। कारण इसका अम्ल दांतों के एनेमल को खराब कर देता है।
तुलसी का पौधा जहां लगा हो वहा आसपास सांप बिच्छू जैसे जहरीले जीव नहीं आते।
तुलसी के पत्तों को रात्रि में नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि अंधेरे में इसकी विद्युत लहरें प्रखर हो जाती है।
तुलसी का पौधा दिन रात आक्सीजन देता है, प्रदूषण दूर करता है।

तुलसी का सान्निध्य सात्विकता और पुण्यभाव के साथ आरोग्य की शक्ति को भी बढ़ाता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण तुलसी की माला कंठी आदि शरीर में धारण करने का विधान है। प्रत्येक घर में एक तुलसी का पौधा जरूर होना चाहिए। समाजसेवा का इससे अच्छा, सुलभ, सुगम और निशुल्क उपलब्ध होने वाला और क्या उपाय हो सकता है।



रविवार, 2 अप्रैल 2017

जिंदगी के रास्ते पर चलना जरा संभलकर- डा. अनुजा भट्ट


यदि हमें कोई समस्या होती है तो हमारा शरीर कुछ संकेत अवश्य देता हैै।  लेकिन हम छोटी-छोटी समस्याओं की ओर ध्यान नहीं देते और समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है।  आइए बात करते हैं ऐसे ही कुछ संकेतों और समस्याओं के बारे में।

कई बार ऐसा देखने में आता है कि पेशेंट का टूथ इनेमिल एकाएक खत्म हो गया । जांच के बाद उन्हें बड़ी हैरानी होती है कि ऐसा  ऐसिड रिफल्क्स के कारण हुआ है जबकि उन्हें कभी भी हार्टबर्न और रिफल्क्स की समस्या नहीं होती।  रिफल्क्स का यदि ट्रीटमेंट न किया जाए तो आपके दांत खराब हो सकते हैं साथ ही आपको गले का कैंसर भी हो सकता है।  रिफल्क्स की अन्य निशानियों हैं गले में खराश, खांसी, जोर-जोर से सांस लेना।
 एग्जीमा की बीमारी के रूप में देखा जाता है लेकिन इसका एक और गंभीर कारण हो सकता है वह है कोलिक डीसिज। यह ऐसी बीमारी है जिसमें यदि थोड़ी सी ग्लूटन भी खाने की चीजों में ले लिया जाए (जैसे की गेहूं, राई, बारले) तो आपकी बाॅडी खुद ही अपनी आंतों को नुकसान पहुंचाने लगती हैै।  इसलिए यदि आपको  कोई भी समस्या हो तो उसे इग्नोर न करें।
 बीमारी का पहला लक्षण है कंपकंपी।  लेकिन इसका पहला लक्षण होता है कि हैंडराइटिंग छोटी हो जाती है और शब्द बहुत ज्यादा बतवूकमक दिखतेेे हैं।  तकनीकी तौर पर इस बीमारी को माइक्रोग्राफिया कहा जाता है।  पार्किन्सन बीमारी में दिमाग के अंदर के सेल खराब या मरने लगते हैं।  उनसे डोपामाइन कम बनता होता है और हमारी मूवमेंट प्रभावित होती है जिससे हाथों एंव उंगलियों में अकड़ाहट आ जाती है और हैंडराइटिंग बतंउचमक दिखती है।  इसके अलावा बोलने में दिक्कत और सही से नींद न आना अन्य लक्षण हैं।  चूंकि यह बीमारी बुर्जुगों को ज्यादा होती है इसलिए इसके लक्षण जल्दी नहीं पता लग पाते क्योंकि बुजुर्ग होने पर अधिकतर लोगों को यह समस्याएं हो जाती है।  इसके शुरूआती लक्षण होते हैं धीमे बोलना और या हल्का हकला कर बोलना।
डिप्रेशन के आधे से ज्यादा पेशेंट में चिड़चिड़ापन या गुस्सा जैसे लक्षण होते हैं।  महिलाओं में डिप्रेशन पुरूषों से ज्यादा होता है लेकिन चिड़चिड़ापन और गुस्से के लक्षण पुरूषों में ज्यादा दिखाई देते हैं।  यदि आप अपने साथी पर छोटी छोटी बात पर गुस्सा करने लगते हो तो इसका कारण डिप्रेशन हो सकता है।  इसके लिए थैरिपी करवाएं और यदि जरूरी हो तो डाक्टरी सलाह पर एंटी डिप्रेसेन्ट्स भी लें।
यदि आपको छोटी छोटी बातों को याद रखने में, अपने रोजमर्रा के फाइनेंस को मैनेज करने में दिक्कत हो रही हो तो इसे हल्के में न लें।  यह अलजाइमर की शुरूआत हो सकती है।
 खर्राटे आपकी कारोटिड आरटरी को खराब कर सकते हैं जिससे कि ब्लड की सप्लाई ब्रेन को होती है। ं जिसकी वजह से हार्ट फेल या स्ट्रोक होने की संभावना होती है।  इसलिए खर्राटे को हल्की परेशानी में न लें।
कई पुरूषों को  45 वर्ष की उम्र केे करीब पहुंच कर  मतमबजपसम कलेनिदबजपवद की समस्या हो जाती है लेकिन दिल की बीमारी की कोई चिन्ह नहीं होते ।  यह समस्या जिनको होती है उनमें से करीब 60 प्रतिशत पुरूषों को दिल की बीमारी हो सकती है।  इसलिए यदि यह समस्या लग रही हो वह डाक्टर से दिल का चेकअप जरूर कराएं।
जो बैक्टीरिया गम डीसीज करता है वही दिल की बीमारी का भी कारण बन सकता है।  इसलिए तीन या छः महीने के अंदर एक बार अपने दांतों की क्लीनिंग जरूर करा लें।
यदि आपको बार बार पेशाब के लिए जाना पड़ता हैै तो आपको टाइप 2 की डायबटीज हो सकती है।  उसके लिए डाक्टर की सलाह पर टेस्ट कराएं और अपना इलाज भी करवाएं।  यदि आपको पेशाब जाने में कमी या अधिकता हो गई है तो ब्लैडर या प्रोस्टेट कैंसर वजह हो सकती है।
यदि आप स्ट्रेस या थकान की वजह से लोगों के नाम जल्दी भूल जाते हैं तो ऐसा होना स्वाभाविक है।  इसके अलावा चीजों को भूल जाने का एक कारण हाइपोथायराइड या थायराइड हारमोन की कमी भी हो सकती है।  यदि आप पूरी रात की नींद के बाद भी थकान महसूस कर रहे हैं,  ठंड, रूखी त्वचा, टूटे नाखून महसूस कर रहे हैं तो इन लक्षणों को इग्नोर न करें और थायराइड के लिए अपना इलाज करवाएं।
यदि आप बिना किसी व्यायाम या डाइट प्लान के भी 4 सें 5 किलो वजन घटा लेते हो तो अपना चेकअप जरूर कराएं।  इसकी वजह पेनक्रियेटिक, स्टोमेक, भोजन की नली का या फिर लंग कैंसर भी हो सकती है।
यदि किसी भी कारण से आपको ब्लीडिंग होती है चाहे वह खांसी करने पर आए, वैजीना से, यूरीन में, स्टूल में या ब्रेस्ट से तो इसके लिए डाक्टरी सलाह अवश्य लें।
डाइट की वजह से अपच, डायरिया गैस या ब्लोटिंग हो सकती है लेकिन यदि यह समस्या एक सप्ताह से ज्यादा हो रही है तो अपने डाक्टर से सलाह लें।
यदि आपको जल्दी जल्दी बुखार आता है या इन्फेक्शन हो रहा है, दर्द होता है या फ्लू जैसे लक्षण है तो यह ल्यूकिमिया हो सकता है।







शनिवार, 1 अप्रैल 2017

सिर्फ गप मारती हैं महिलाएं- डा. अनुजा भट्ट


अक्सर लोग यह कहते हैं महिलाओं से सीक्रेट बात शेयर नहीं करनी चाहिए क्योंकि इनके पेट में वो टिकती नहीं या यूं कहें पचती नहीं हैैं। लेकिन क्या पुरुष ऐसा नहीं करते ? क्या पुरुष के पेट में सारी बातें पचती है। 

महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया बहुत तंज भरा है। उनकी तरक्की को लेकर शायद ही मुहावरा गड़ा गया होगा, लेकिन उनकी मजाक उड़ाते हुए बहुत सारी उक्तियां आज के दौर में भी प्रचलित हैं जबकि हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी तरक्की से अपने साहस और हुनर का परिचय दिया है। पेश है महिलाओं के प्रति समाज की सोच और उस सोच पर अपराजिता की प्रतिक्रिया ‐‐‐‐‐
इनके पेट में बात नहीं टिकती 
माॅम डे केयर की मनीषा कहती हैं कि मान्यता के अनुसार युधिष्ठर द्वारा द्रौपदी को दिए गए श्राप के अनुसार ही महिलाएं अपनी बात पचा नहीं पाती। यह सब जानते ही हैं कि द्रौपदी अपने पांचों पति के प्रति समभाव से रहती थी और किसी की कोई बात साझा नहीं करती थी जबकि वह साझा पत्नी थी। एक बार युधिष्ठर ने कुछ जानना चाहा तो द्रौपदी ने मना कर दिया तब क्रोध में युधिष्ठर ने श्राप दिया कि महिलाएं आज के बाद से कोई भी बात छुपा नहीं पाएंगी। हंसते हुए मनीषा कहती हैं कि इस युग में तो महिलाएं टेक्नोसेवी हैं इसलिए वह अपनी उम्र और बहुत सारे रहस्य छुपा लेती हैं।
इनकी तो बातें ही खत्म नहीं होती 
 जरा अपने दिल पर हाथ रख कर सोचिये कि क्या गॉसिप सिर्फ महिलाएं ही करती हैंे? आपने दोपहर के समय किसी पेड़ के नीचेे बैठे हुक्के पीते, चाय की ठेली या पान के खोखे के पास खडे हुए पुरूषों को इधर-उधर की बातें करते हुए नहीं देखा। फिर यह कहना कि केवल महिलाएं ही गॉसिप करती है कहां तक ठीक है।

तैयार होने में देर लगाती है 
ऐसा कहते हैं कि महिलाएं तैयार होने में समय लेती है लेकिन आप यह तो मानेंगे कि महिलाओं के ऊपर घर-परिवार की भी जिम्मेदारी होती है जिन्हें निभाते निभाते उन्हें थोड़ा समय लग जाता है। आप कहते है मुझे तो तैयार होने में इतना समय नहीं लगता है क्योंकि आप को सिर्फ खुद को तैयार करना है लेकिन उन्हें घर भी देखना है, बच्चों को भी तैयार करना है और खुद भी तैयार होना है।  आप ये बताएं क्या आप उनकी जगह होकर उनकी तरह जिम्मेदारियां निभा सकते है । जब आप अपने जीवनसाथी का चुनाव करते के समय उनके सववो और पहनावे को बवदेपकमत करते हैं तो उनके तैयार होने के समय में भी धैर्य रखना सीखना होगा।
गाड़ी अच्छे से नहीं चला सकती 
रश्मि आनंद कहती हैं कि यह आरोप निराधार है। गाड़ी चलाने के लिए आपको नियमित अभ्यास और आत्मविश्वास की जरूरत होती है और यह दोनो गुण महिलाओं में जन्मजात होते हैं। इसलिए ऐसा कहना कि महिलाएं गाड़ी नहीं चला सकती उनके महत्व को कम करता है। होता यह है कि रोजाना के ंबबपकमदज के पीछे की वजह जानना हम लोग पसंद नहीं करते या उन पर चर्चा भी नहीं करते।  अगर  कोई महिला या कोई लड़की कितनी भी ठीक से गाड़ी चलाना जानती हो और ‘खुदा न खास्ता‘ किसी छोटी मोटी दुर्घटना का शिकार हो जाये तो आप उसे एक बहस का विषय बना लेते है कि महिलाओं को गाड़ी ड्राइव नहीं करनी चाहिए उन्हें तो ठीक से वअमतजंाम करना भी नहीं आता। ,जबकि सच्चाई ये है महिलाएं पुरुषों की तुलना में कंही अधिक संयम से गाड़ी को ड्राइव करती है और कम जल्दबाजी दिखाती है। अक्सर वो भीड़-भाड़ वाले इलाके की अपेक्षा जंहा से ड्राइव कर गाड़ी ले जाना आसान हो वंहा से जाना पसंद करती है चाहे वो रास्ता उनके लिए कुछ लम्बा ही क्यों न हो।
घर को समय नहीं देती 
 महिलाएं घर सँभालने के लिए बनी है ऐसे में जॉब के साथ-साथ वो घर को अच्छे से नहीं संभाल सकती है यह आम धारणा है। ऐसे सवाल करने वालों से डा तुलिका कहती हैं कि समाज का यह रवैया गुस्सा दिलाने वाला है।  हम अलग-अलग में ऊँचे पदों पर काम कर रही महिलाओं को पढके सुनके उनके बारे में अच्छी-अच्छी बातें बोलते है और महिला सशक्तिकरण मुद्दे के लिए उनके उदाहरण भी देते हैं लेकिन जब घर परिवार की बात आती है तो महिलाआें के प्रतिं इतने क्रूर क्यों हो जाते हैं । कोई भी महिला करियर या परिवार की जिम्मेदारी में पहले परिवार को चुनती है। परिवार की जिम्मेदारी निभाने के लिए लाखों के पैकेज वाला जॉब छोड़ने का फैसला ले सकती है भले ही कितनी जीनियस क्यों न हो। क्या कोई पुरूष ऐसा कर सकता है?
वो पुरुषों पर नियंत्रण रखती है 
उमा गुप्ता जी कहती हैं आखिर हम महिलाएं अपने पति को क्यों नियंत्रण में रखेंगी लेकिन यदि पति गलत रास्ते पर जा रहा है, परिवार की उपेक्षा कर रहा है तो उसे सही रास्ते पर लाने के लिए यदि कठोर निर्णय लिए जाएं तो फिर अप्रिय संवाद क्यों हो। अगर मां अपने बेटों को सही संस्कार देकर बड़ा करे उसे महिलाओं का सम्मान करना सिखाए तो क्या  किसी महिला के साथ यौन शोषण जैसी घटना हो, कोई महिला दहेज के लिए प्रताड़ित हो? क्या किसी भी महिला के साथ जोर जबरदस्ती होगी ? पुरूषों को चाहे वह बेटे हों, पति हों, दोस्त हों कंट्रोल में रखना जरूरी है पर उसे डोमिनेट करना एकदम गलत। महिलाएं अपने पति को दबाव में रखती हैं यह कहना तर्कहीन है।
वैसे तो महिला उत्थान की बातें की जाती हैं,  लम्बे चाैड़े भाषण दिए जाते हैं,  ज्ञान बांटा जाता है और उसके बाद भी किसी महिला के आचरण पहनावे रहन सहन जैसी बातों का हम मजाक बनाते हैं तो यह कितना सही है।  कृप्या  अपनी सोच बदलिए और एक आदर्श माहौल बनाऐं जिसमें कि उनके लिए भी वही सम्मान और समान स्तर हो जिसकी आप बातें करते हैं।

बुधवार, 29 मार्च 2017

चिड़ियों के डिजाइनर घर

प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा यह है कि बहुत सारे पक्षी अब विलुप्त होते जा रहे हैं। सुबह उठते ही चिड़ियों की चहचहाहट हमें ऊर्जा से भर देती है। पर्यावरण संरक्षक चिड़ियों की वापसी के लिए नेस्ट बाॅक्स लेकर स्वागत में खड़े हैं।

चिड़िया की चहचहाहट ने फिर से वापसी की है पर्यावरण संरक्षक नेस्ट बाॅक्स को नए-नए तरीके से डिजाईन कर रहे हैं। चिड़ियों का इनकी तरफ आकर्षित होना और इनको अपना घर स्वीकार करना पर्यावरण संरक्षकों को अधिक उत्साह के साथ और भी नए डिजाईन के नेस्ट बाॅक्स बनाने के लिए प्ररित कर रहा है।
चिड़िया ज्यादातर अपना घोंसला इंसानों द्वारा बनाए हुए घरों में, दीवारों, मीटरों के पीछे में ही बनाया करती हैं।  हम सभी इनकी चहचहाहट सुनकर ही बड़े हुए हैं।  लेकिन पिछले कुछ दशकों में मकान बनाने के लिए शीशे की दीवारें, स्टील का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके साथ ही कम होते पानी के óोत भी कम हुए हैं जिसकी वजह से कीड़े मकौड़े भी कम हो गए हैं और यही कीड़े मकौड़े चिड़ियों का आहार है। 
जवाहर नगर जयपुर के रहने वाले रविंद्र पाल सूद ने दो साल पहले नोटिस किया कि उनके आसपास चिड़ियों की चहचहाहट कम हो गई है।  उन्हें लगा चिडियांें की संख्या में कमी आई है और वह गायब होती जा रही हैं।  सूद भारतीय बर्ड फेयर में कुछ पर्यावरणविदों से मिले और उन्होंने उन्हें एक नेस्ट बाॅक्स और एक फीड बाॅक्स दिया जिसे कि उन्होंने दीवार पर टंगा दिया।  जब उन्होंने देखा कि चिड़िया बाॅक्स को बहुत अच्छे से ले रही है। तो वह और नेस्ट बाॅक्स खरीद लाए।  जिसमें बहुत सी चिडिया आकर रहने लगीं और उसे अपना घर बना लिया।  इसके बाद तो उनका बागीचा चिड़ियों की चहचहाहट से गूंज उठा।
इसी तरह आगरा के रहने वाले राकेश खत्री पहले सड़क पर बिखरे हरे नारियलों को इकट्ठा कर, उनके चारों ओर कूलर की घास लपेटकर घोंसला बनाते थे लेकिन इस तरह के घोंसलें ज्यादा दिन नहीं चलते थें फिर उन्होंने नारियल जटा, जूट की रस्सी और बांस के टुकड़ों से घोंसला बनाना शुरू कर दिया।  उन्होंने अपने इस अभियान में स्कूलों के बच्चों को भी जोड़ा।  वह उन्हें घोंसला बनाना सिखाते हैं साथ ही विभिन्न पक्षियों के बारे में जानकारी भी देते हैं।  राकेश जी ने गौरैया पर दो छोटी-छोटी किताबें भी लिखी हैं ताकि बच्चों को जानकारी दी जा सके और जल्द ही वह गौरया संरक्षण के बारे में वेबसाइट भी शुरू करने जा रहे हैं।
हमें भी नेस्ट बाॅक्स बनाने के आइडिया पर ध्यान देना चाहिए।  एक छोटा सा वुडन बाॅक्स और फीडर एक प्रजाति को फिर से बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।  बर्ड फेयर के कार्यकर्ताओं द्वारा अभी तक कुल 1200 बक्से जयपुर भेज दिए है और इस मुहिम के द्वारा तकरीबन 8000 चिड़िया हमारे पर्यावरण में नई आ गई हैं, जोकि वाकई खुशी और गर्व की बात भी है।  हमें इस मुहिम को पूरे देश में ले जाना है।
कहने का अभिप्राय यह है कि इस जीवन को सुंदर बनाने के लिए हमें प्रकृति के साथ चलना होगा और उसके खूबसूरत तोहफों चाहे वह नदी, पर्वत, पहाड़ हों या पशु-पक्षी, फूल और वृक्ष सबको  सहेजना होगा।

मंगलवार, 28 मार्च 2017

एथनिक स्टाइल में आपका घर-डा. अनुजा भट्ट

 
एथेनिक स्टाइलमें आपका घर विलक्षण और चमकदार आभा लिए दिखाई देगा। इस स्टाइल में घुमावदार फर्नीचर को शामिल करें। बाजार में इस तरह के फर्नीचर के कई डिजाइन मौजद हैं। एथेनिक स्टाइल में कई संस्कृतियों का समावेश है।

एथेनिक प्रिंट चूज करने के लिए आप ईस्ट से लेकर वेस्ट तक के पैटर्न्स ट्राय कर सकती हैं एथेनिक स्टाइलमें कमरे; एकांत का पर्याय लगते हैं। जहां अपने लिए दो पल गुजारे जा सकें। चमकीले रंगों का प्रयोग इसकी खासियत है। इस तरह के;स्टाइल में; रत्नों का भी प्रयोग किया जाता है। यहां पर कुछ ऐसीबातें बताई जा रही हैं जिनका; प्रयोग करके आप अपने घर को एथेनिकस्टाइल में बदल सकते हैं

एथेनिक स्टाइल फर्नीचर- 

कर्व स्टाइल इसकी विशेषता है। अपने ड्राइंगरूम के लिए जोसोफा लें वह बिना हत्थे वाला होना चाहिए।; रंगों में वाइन रेडकलर का प्रयोग करें  किचन में गहरे रंग की लकड़ी का प्रयोगकरे। खासकर केबिनेट बनवाने; के लिए।; गाढ़े रंगों को महत्वदें। फेब्रिक, वॉल हैंगिग, परदे सभी में यही पैटर्न चलेगा। कसीदाकारीइस थीम की विशेषचा होती है। कुशन कवर, बेड कवर और टेबल कवर के रुप मेंइसका प्रयोग करें। ये सभी चीजें कमरे को एथेनिक लुक देतीहैंबेड की ऊंचाई कम होनीचाहिए। मच्छरदानी लगाने वाले खूबसूरत; सेटेंड भी एथेनिक लुक देतेहैं। कमरे के दोनो तरफ टेबल लगी हो। बाथ रुम में रॉट आयरन या ब्रासवेयर का टॉवल रेल्स लगाएं। कपड़े टांगने के लिए जो हुक लगाएं वह हीएथेनिक स्टाइल के होने चाहिए।

एथेनिक स्टाइल का फर्श-

 टेरोकोटा स्टाइल और स्टोन का प्रयोग करें। यह आपके घर कोभव्यता प्रदान करेंगे और आपका घर एथेनिक लुक में नजर आने लगेगा।;हर कमरे में रग्स का प्रयोग करें। बेडरूम में मोसका फ्लोरिंग करें।फर्श पर बिछाने के लिए कारपेट की जगह ब्राइट कलर के रग्स का इस्तेमालकरें। यह आपके कमरे को एथेनिक लुक देगा।एथेनिक स्टाइल के ही फेब्रिक का प्रयोग करें। जो रंग सबसे ज्यादा चलते हैं वह हैं चमकदार गहरे और कसीदारी किए गए। यह अधिक्तर परदे, कुशन और बेडसीट में प्रयोग में लाए जाते हैं। मोरक्कन टच के लिए हैवी वैलवेट का प्रयोग करें। भारतीय शैली को दिखाने के लिए कसीदारी पर जोर दें। गोल्ड ,सिल्वर धागों से की गई कसीदाकारी भारतीय एथेनिक लुक को दर्शाती है।

कलर स्कीम- 

गोल्ड, टरमिनिक, रेड, ब्राउनकोबेल्ट; ब्लू, लाइम ग्रीन, हॉट पिंक, पिकॉक शेड्स। पिस्ता,वाइन, मरून, गोल्ड और आइवरी शेड्स।एक्सेसरीज में भी इन रंगों का प्रयोग करें।
 पर्दे- एथेनिक स्टाइल पर्दे में सीसे का प्रयोग अच्छालगता है। साडिय़ों का प्रयोग भी एथेनिक लुक. देता है। कुशन में बीड्सका प्रयोग करें। 

 वॉल पेंटिंग -

 एथेनिक स्टाइल की वाल पेटिंज का प्रयोग करें। यहां भी वहीं कलर का; प्रयोग करें इस तरह के कमरों में; रहने पर घनिष्ठता का अहसास होता है। नजदीकियां बढ़ती वॉल हैंगिग, कारपेट्स, लैंटर्स, वॉल स्कान्स का प्रयोग करें।

चमकदार रोशनी के प्रयोग से बचें।

शनिवार, 25 मार्च 2017

ममता की डोर थामें सजाएं बच्चों का कमरा

डा. अनुजा भट्ट
 हमेशा बदलावों और नए नए ट्रेंड पर जोर देता है। टेंड भी ऐसे होने चाहिए जिसेस्वीकार करने में ज्यादा दिक्कतों का सामना न करना पड़े । माता-पिताके अलावा डिजाइनरों ने भी यह मान लिया है कि बच्चों के कमरे का अर्थ कार्टून वाले पर्दे या बेबी पोस्टर से सजे कमरे से नहीं है। अब यहकमरा खास कमरा है। बाजार में किड्सफर्नीचर अलावा बैड, पर्दे,कुशन सभी कुछ बच्चों को ध्यान में रखकर बनाए जा रहे है। कमरे को सजानेके लिए एक्सेसरीज हैं, जिसमें पपेट के अलावा छोटी छोटी घंटियों की  मांग ज्यादा है।;इंटीरियरडिजाइनर मेहर दिवानिया कहती हैं, कि बच्चों के लिए अब पिंक और ब्लूबोरिंग हो गए हैं बंक बेड्स और क्यूट एक्सेसरीज भी अब फैशन में नहींहैं। लेकिन 0 से 6 साल के बच्चों का कमरा सजाने के लिए आपके पास बहुतसारे विकल्प हैं इसीलिए बच्चों का कमरा सजना सबसे ज्यादा आसान है। इसउम्र में बच्चों की अभिरुचियां स्पष्ट नहीं होती। वाल माउंटेन गेम्स,सॉउ्ट बोड्र्स, स्लाइड्स के अलावा बंक बेड्स, ट्रंडल बेड्स भी कमरे कीजरूरत हो सकते हैं। लेकिन सबसे पहले यह गौर करना है कि उपयुक्तफर्नीचर और स्टोरेज कैसे हासिल किया जाए।इतनी कम उम्रके बच्चे ऐसी जगह तलाश करते हैं जो परीकथा जैसी हो। इसीलिए सुंदर औरव्यवहारिक फर्नीचर खरीदें। सपाइडरमैन, क्रिकेट बॉबी डॉल जैसी चीजेंवॉलपेपर के रूप में लगाएं।; वालपेपर का प्रयोग थीम के साथ कियाजा सकता है।मार्केट में बेबी बायकी अपेक्षाकृत बेबी गर्ल के लिए ज्यादा च्वाइस है। उनके कमरे ज्यादाइनोवेटिव है। थीम के तौर पर कभी उनका कमरा गुडिय़ों से सजा होता है तोकभी पूरा का पूरा कमरा किसी खास रंग से। वैसे बेबी गर्ल को पिंक कलरज्यादा पसंद है और इसके लिए बैड कवर से लेकर, तौलिया, लैंप शेड सभीपिंकी पिंकी नजर आते हैं यहां तक कि उनकी गुडिय़ा के कपड़े,जूते, हेयर बैंड, फ्लावर पोट भी गुलाबी।अगर आप किसी दुविधामें हैं कि कैसे मैं उसके कमरे को सजाऊं तो अपनी बच्ची के मन पसंद रंगऔर उनकी पसंद के कपड़ों पर गौर कीजिए। बाजार में उनके लिए जो परिधानबन रहे है उनकी डिजाइन पर गौर करे आपको वहीं से कोई आइडिया क्लिक करजाएगा, क्योंकि ट्रेंड यहीं से शुरू होता है। आपको जानकर आश्चर्य होगाजब प्यारी प्यारी बच्चियां खूब घेरदार फ्राक पहनकर नाचती है तो वहअपनी खुशी प्रकट करती है इसीलिए उनके कमरे में झालर का प्रयोग करनाचाहिए यह झालरचद्दरों से लेकर पर्दो और बैडकवर तक में दिखाई देसकती है। इसी तरह उनको चौखनी प्रिंट वाले या फिर सीधी धारियों वालेफेब्रिक पसंद आते हैं। इसकी वजह है स्कूल की ड्रेस।क्या आपने अपनीनन्हीं बिटिया की ड्राइंगबुक देखी है वह किसी एक रंग का प्रयोग नहींकरती बल्कि उसे गाढ़े रंग पसंद आते है एकदम चटक। सफेद को तो वह रंगमानती ही नहीं। वह तरह तरह के गोले बनाती है और उनमें रंग भरती है।इसीलिए अगर आप पोलका डाट प्रिंट वाले पिलो उसके लिए चुनेंगी तो उसेपसंद आएंगे। अपनी बेटी की जो तस्वीरे आपको पसंद हैं और जिन्हें देखकरउसका बचपन याद आता है तो उसे फोटो फ्रेम में बंद न करें अब यह फैशनपुराना पड़ गया है। आप चाहें तो उन फोटो को तौलिए, चादर, टी शर्ट याफिरकाकरी में संजो सकती हैं यह ट्रेंड एकदम नया है। अगर आप काबच्चा आड़ी तिरछी रेखाएं खींच रहा है तो खींचने दीजिए और उसे ्िकसीपेंटिंग थीम में बदल दीजिए। किड्स पेंटिंग इन दिनों एकदम नए टेंड केतौर परउभर रही है। गुडिय़ों की जगह कठपुतलियों ने ले ली है।आर्ट क्राफ्ट काप्रयोग इंटीरियर के साथ किया जा रहाहै।पर अगर बच्चोंकमरे को पेंट करने की बात करें तो बच्चों को काला, स्टील और ग्रे कलरपसंद है लेकिन इसके बाद वह लाल कलर पर ही फोकस करते हैं।उनकेऔर पसंदीदा कलर हैं- इंडिगो ब्लू, यलो, आरेंज, ब्राइट पिंक औररस्ट। आजकल कई तरह केप्रिंट वाले वालपेपर बाजार में मौजूद है। फ्लोरल प्रिंट के अलावाएनिमल प्रिंट पर ज्यादा जोर है। वाल पेपर के साथ साथ बार्डर भी मौजूदहै। पर्दे ,बार्डर और वाल पेपर के संयोजन से बहुत बदलाव लाया जा सकताहै।इसके अलावा वास्तुशास्त्र और फैंगशुई जैसी तमाम देशी विदेशी पद्धितियों पर भी लोगों की नजर है । माना जाता है कि ये पद्धतियां सकारात्मक ऊर्जा पैदा करती है।अपने बच्चों के कमरे में कभी भी झाडफ़ानूस न लगाएं। बड़े हो जाने के बाद
फैंसियर,इनडायरेक्ट लाइट लगा सकते हैं। अगर आप अपनी बच्ची का कमरासजाने जा रही है तो मल्टीपरपज फर्नीचर की तैयारी करें जो बाद में भी काम आ सके।

रविवार, 19 फ़रवरी 2017

युवा भी हो रहे हैं हाइपरटेंशन के शिकार- डा. अनुजा भट्ट



य‌‌दि आप 20 साल से ऊपर के हैं, और आप का वजन ज्याद‌ है, आप परेशान रहते हैं, चिडचिड़ा स्वभाव हो गया है और जीवनशैली शारीरिक गतिविधियों से खाली है तो इस बात का जोखिम है कि आप को हाइपरटेंशन हो सकता है. शोर्धकत्ताओं ने पता लगाया है कि उच्च रक्त चाप का संबंधकेवल उम्र दराज लोगों से नहीं है, बल्कि युवा पीढ़ी विशेषकर तरूण भी इसका तेजी से शिकार बन रहे है.10 साल तक निरंतर हुए एक अध्ययन से पता चला है कि तरूणों में चिंताजनक स्तर तक रक्तचाप की समस्या बढ़ी है. पुराने वक्त में अब जीवन की गतिआज से कहीं कम थी तब इस समस्या का कहीं आता पाता नहीं था. इंसान कीबढ़ती तरक्की ने यह समस्या भी बढ़ाई है. विशेषज्ञों के अनुसार समस्यामानसिक व पर्यावरणीय कारणों और नये जमाने के जीने के तौर तरीकों सेबढ़ी है. यह भी पाया गया है की हाइपरटशेंन से और भी कई बीमारियां होतीहैं जैसे ह्रदय रोग जिनमें शामिल हैं इस्केमिया हार्ट डिसीज, पेरिफेरलवैस्कुलर डिसीज, ए.एम.आई आघात एवं मोतियाबिंद.भारत में समस्या गंभीर है. स्कूली बच्चों में ग्लूकोज स्तर का तीनवर्षों तक अध्ययन किया गया. इन बच्चों की उम्र 13 से 18 साल के बीच थीऔर ये सभी दिल्ली के अच्छे खाते पीते परिवारों के थे. परिणाम यह निकलाकी तीन में से एक बच्चा हाइपरटेंसिव होने की ओर बढ़ रहा था.दिल्ली हार्ट एंड लंग इंस्टीटयूट के प्रो.डा. के के सेठी का कहना है,आज की पीढ़ी काम के तनाव, खानपान व नींद लेने की अनियमित आदतों,शारीरिक और मनोरंजक गतिविधियों की कमी का शिकार है और वंशानुगत तौर परभारतीयों को ह्रदय रोगों का अधिक खतरा रहता है.1990में ह्रदय रोगों से भारत में 23 लाख मौतें हुई. अनुमान है कि साल2020 में ह्रदय आघात से होने वाली 57 प्रतिशत मौतों और ह्रदय धमनी केरोगों से होने वाली 24 प्रतिशत मौतों के लिए हाइपरटेंशन सीधे तौर परजिम्मेदार हैं. इन अध्ययनों से प्राप्त आंकड़ों से मालूम चलता है किशहरों में 25 प्रतिशत और गांवों में 10 प्रतिशत लोग हाइपरटेंशन सेग्रस्त हैं. गांवों में करीब 3 करोड़ 15 लाख और शहरों में 3 करोड़ 40लाख हाइपरटेंसिव लोग मौजूद हैं.भारतीय संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संघ के दिशानिर्देश प्रोसेस्डखाद्य पदार्थ, अचार, परांठे, चिप्स, पापड़, चटनी से परहेज करने कोकहते हैं. इनके अनुसार घी का प्रयोग कम करना चाहिए और योग-ध्यान कोअपनाना चाहिए.डा. सेठी के मुताबिक, आजकल बच्चे चीज टपकाते जंक फूड बहुत खाते हैं जबकि इनमें मौजूद चीजें बड़ी मारक होती हैं. यह समस्या इस लिए भी बढ़जाती है कि हाइपरटेंशन कोई लक्षण प्रकट नहीं करती. इस लिए समय से इसकापता लगा कर उपचार करना संभव नहीं हो पाता.यह भी सलाह दी जाती है कि ऊपर बताए गए खाद्य पदार्थों के परहेज केसाथ-साथ साबुत अनाज और फोर्टिफाइड सीरियल जैसे ओट्स खाने चाहिए औरजीवन शैली में बदलाव करके हाइपरटेंशन जैसी बीमारी को दूर रखा जा सकताहै.हाइपरटेंशन से ग्रस्त लोगों को अपनी बीमारी का पता नहीं चलता. उनकीसामाजिक व पेशेवर जिंदगी अप्रभावित रहती है, पर तब तक, जब तक की वेअपनी छाती में बेहद पीड़ा महसूस नहीं करते या फिर गिर नहीं पड़ते.हालांकि डॉक्टर कहते हैं कि हाइपरटेंशन के कोई खास लक्षण नहीं होतेकिंतु कुछ सामान्य लक्षण जैसे-सिरदर्द, सर व आंखों में भारीपन, आलस्य,चिड़चिड़ापन, सामान्य कमजोरी, चक्कर आना, स्पंदन, नकसरी, पेशाब मेंखून आना छाती में दर्द. लेकिन चूंकि इन लक्षणों को किसी और मर्ज कालक्षण भी समझा जा सकता है इस लिए हाई बीपी पता करने का सबसे सरलमाध्यम है नियमित जांच. जीवन शैली में परिवर्तन करने के साथ नियमितजांच से ही आप दवाओं की भारी खुराक से बच सकते हैं. यदि यह बीमारीबिना इलाज के रह गई तो यह आप के दिमाग, दिल व गुर्दों को भी क्षतिपहुंचा सकती है.यह बहुत गंभीर स्थिति है. बच्चों के रक्तचाप में बढ़ोत्तरी अशुभ संकेतहै. इसका संबंध बच्चों में बढ़ती मोटापे की समस्या से है. तो यदि अगलीबार आपके बच्चे के सिर में दर्द हो या दम फूलने लगे, धड़कनें बढ़नेलगें तो इस स्थिति को नजर अंदाज न करें, ऐसे में एक गोली दे देना हीकाफी नहीं है, बल्कि उसे डॉक्टर के पास ले जाएं और उसके रक्त चाप कीजांच कराएं.

फिट रहने के उपाय- 
  • भोजन पकाने के तरीके बदलें. नमक खाना खाते वक्तमिलाएं.डब्बा बंद उत्पाद प्रयोग करते समय खारे पानी को फेंक दें और ताजीपानी से धोएं।
  • उबला मांस, प्रोसेस्ड मांस व मछली को पहले कुछ देर पानी में रखें और फिर पानी फेंक दें. इन उत्पादों का फालतू सोडियम निकलजाएगा
  • .इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार एक सामान्य व्यक्ति कोएक दिन में 2 से 4 ग्राम ही नमक खान चाहिए, इससे ज्यादा नहीं.
  • हाइपरटेंशन के मरीज के लिए तो यह 2 ग्राम से अधिक होना ही नहीं चाहिए.कुछ मात्रा में वजन घटा कर भी बीपी कम किया जा सकता है. इस लिए हर रोज सुबह शाम सैर करें या कोई अन्य व्यायाम करें.शरीर में पानी की क⧭मी न होने दें. पर्याप्त पानी पीएं. इसके साथ100 प्रतिशत शुध्द फलों का जूस पीना भी अच्छा विकल्प है.
  • हमेशा शांत रहें और जीवन के तनाव से निजात पाने के उपाय करें।


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मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...