रविवार, 8 जुलाई 2012

जन समुदाय में राजनैतिक चेतना का स्वरूप / अशोक गुप्ता




जन समुदाय में राजनैतिक चेतना की ज़रूरत पर बात, करना बार बार जाने सुने और कहे गये को दोहराने जैसा ही होगा. जिस देश में लोकतंत्र हो, यानि, जिसमें राजनैतिक सत्ता की स्थापना जन समुदाय ही करता हो, उसमें नागरिकों का राजनैतिक चेतना से संपन्न होना तो अनिवार्य है. ऐसे में इसकी ज़रूरत पर बात करना स्वतः सिद्ध को सिद्ध करने जैसा निरर्थक है. लेकिन छाप तिलक से लैस होना, मंदिर मस्जिद गुरद्वारे या चर्च जाना भर सही अर्थ में ईश्वर के प्रति आस्थावान होना नहीं कहा जा सकता. हम जानते ही हैं कि आदि काल से अब तक यह प्रसंग विचार के केंद्र में है कि आस्तिक होना, ईश्वर के सानिध्य में होना क्या है, और इसके विवेक की फिर फिर व्याख्या का क्रम जारी है. ऐसे में इस प्रश्न का भी फिर फिर संधान ज़रूरी है कि जन समुदाय में सार्थक राजनैतिक चेतना होने के लक्षण क्या हैं और उस चेतना का स्वरूप क्या होना चाहिए.
लोकतंत्र में समूचे जन समुदाय की तीन परतें हैं. एक तो वह, जो राजनैतिक व्यवस्था की परिधि में भीतर उतर कर भागीदारी करती है. विभिन्न राजनैतिक दलों का समुदाय इसी श्रेणी में आता है. एक परत वह है जिसे शासकीय नौकरशाह कहा जाता है. यह वर्ग सैद्धांतिक रूप से संविधान द्वारा संचालित होता है और व्यावहारिक रूप से इसकी लगाम राजनीतिक व्यवस्था की परिधि के भीतर होती है. ऐसे में यह स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि यह दोनों परतें कमोबेश सत्ता नियंत्रित हैं. इस वर्ग में राजनैतिक चेतना का होना वैकल्पिक नहीं है बल्कि एक अनिवार्यता है और इस की राजनैतिक चेतना सत्ता पर काबिज होने या बने रहने के मंसूबे से गढ़ी जाती है. इसके लिये चेतना का अर्थ जन हित हो यह अनिवार्य नहीं है. वस्तुतः है भी नहीं, यह हम इन साठ वर्षों में देख चुके हैं.  
जन समुदाय की तीसरी पर्त में जनहैं. जिनका हित देखना ,जिनके नागरिक अधिकारों की रक्षा करना  यह दायित्व उपरोक्त दोनों घटकों के हाथ में है. एक घटक सत्ता है दूसरा प्रशासन. इस, जन कहे जाने वाले घटक के हाथ में मतपत्रके अलावा और कुछ नहीं है. वह जनादेश देता है, उसके परिणाम स्वरूप अपनी उमीद बांधता है, और रोता झींकता और किंचित भविष्य के सपने देखता टाइम पास करता जाता है. ऐसे में, इस वर्ग की राजनैतिक चेतना का मतलब क्या है... ?
मतलब है. पहला तो यह कि वह वर्ग अपने हित को अपनी दृष्टि से, अपने विवेक से देख समझ सके. उसे अपने संवैधानिक और प्रशासन प्रदत्त अधिकारों की जानकारी हो. और उसमें यह समझ हो कि राजनैतिक परिधि के भीतर विभिन्न राजनैतिक दलों के प्रत्याशियों की रणनीति क्या है. उसे यह भान हो कि इनकी घोषित और अन्तर्निहित चालों का समीकरण क्या है, और यह पता हो कि इन दर्जनों राजनैतिक दलों के भीतर जुड़ाव और विखंडन की क्या गहमा गहमी चल रही हो. यह सब पता चलना इस वर्ग के लिये आसान नहीं है, लेकिन मीडिया इसे आसान बनाता है. प्रिंट मीडिया यानि मुख्यतः अखबार और इलेक्ट्रौनिक मीडिया यानि मुख्यतः टेलीवीज़न इस जानकारी के वाहक हैं. यह, जन कहे जाने वाला वर्ग स्वतंत्र है कि वह मीडिया के विभिन्न वाहकों की चारित्रिकता को परखे और उस पर विवेक पूर्वक विश्वास-अविश्वास करे. यह सारा क्रिया कलाप जन से निभे और उसे अपनी ताकत के इस्तेमाल के एकमात्र दिन यानि चुनाव के दिन तक अपनी भूमिका के प्रति स्पष्ट दिखे, यही उसकी राजनैतिक चेतना का अर्थ है.
अब देखिये, क्या जन के अतिरिक्त, उपरोक्त बताये गये दोनो घटक, इस बात में अपना हित समझेंगे कि नागरिकों की मानसिकता में स्वतंत्र विवेक और चयन की समझ का विकास हो..? कतई नहीं. सारे राजनैतिक दलों का तो यही मंसूबा होगा कि जन मानस के सोच के ऊपर उनके तिलस्म का जादू रहे, जनता अपने अनुभवों और अपनी स्मृतियों के संकेत से बाहर आकर, बस उनके मसूबों का मोहरा बन जाए. ऐसा करनें में, बिना जन समुदाय के विवेक को कुंद  किये, वह  कैसे सफल हो सकते है ? लेकिन वह सफल हो तो रहे हैं.
कैसे...?
ऐसे, कि वह जन समुदाय की राजनैतिक चेतना का स्वरूप खुद तय कर रहे हैं. उन्होंने जन समुदाय के बीच यह छद्म उपजा दिया है कि राजनैतिक चेतना का अर्थ है किसी न किसी राजनैतिक दल का पक्षधर हो जाना. इस तरीके से जन समूह का सोच, राजनैतिक लोगों की रचित परिधि की यथास्थिति बाहर जाएगा ही नहीं. जन समुदाय का स्वतंत्र विवेक और विश्लेषण तंत्र काम करना बंद कर देगा और जन समुदाय को इस बात का भ्रामक गर्व भी रहेगा कि वह राजनैतिक चेतना से संपन्न नागरिक है. उस दशा में जन की सक्रियता अपने वांछित राजनैतिक दल की प्रस्तुत अच्छाइयों को खूब याद रक्खेगी और उसका गायन करेगी, लेकिन उस दल की काली करतूतों पर पर्दा डालने में पीछे नहीं रहेगी  . इस तरह सत्ता, राजनैतिक दलों की ही तरह जन समुदाय को भी बांटने में सफल रहेगी.
यहाँ संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि जब तक समूचा जन समुदाय देश के बंटवारे की चूक को, 1975   के आपातकाल को, 1984 के प्रायोजित दंगों को, गुजरात के मोदी रचित नर संहार को, बावरी मस्जिद गिराए जाने को, सिंगूर नंदीग्राम कांड को और किसी भी दौर में हुए भ्रष्टाचार को एक नज़र से देख कर इनके प्रति अपना विरोध जाहिर करना नहीं सीखेगी, तब तक उसकी यह तथाकथित राजनैतिक चेतना, निरर्थक ही होगी. अभी तो नरेंद्र मोदी के हत्या कांड को उचित ठहराने वाला जन समुदाय भी है, और चौरासी के प्रायोजित दंगों को भी बस यही माना जाता रहेगा कि जब कोई बड़ा पेड़ उखाड़ता है तो धरती हिलती ही है... और तो और, एक दल के अत्याचार के खुलासे से दूसरे दल की पक्षधर जनता खुश ही होती है कि चलो उनके दल के बचाव के लिये कोई मुद्दा हाथ आया. लेकिन यह तो राजनैतिक चेतना का प्रतिफल नहीं हुआ.
तो, जन समुदाय की राजनैतिक चेतना केवल तब अपनी सही भूमिका पाएगी जब वह अपने हितों और अपने अधिकारों के पक्ष में जन विवेक से पैदा होगी. उस से राजनैतिक दलों की करतूतों पर भी अंकुश लगेगा और नौकरशाही को भी जन पक्षधर होने में मदद मिलेगी.
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सदन में शहीदे आजम- असगर वजाहत



 हमारे लोकतंत्र पर चारों तरफ से हमले हो रहे हैं। लेकिन हमारे प्रतिनिधि इन हमलों को नाकाम कर देते हैं। हो सकता है कि हमारे प्रतिनिधि अपनी सज्जनता और भोलेपन के कारण पहले हमलों को न समझ पाते हों लेकिन जब समझ जाते हैं तो जान पर खेल कर लोकतंत्र को बचा लेते हैं। दु:ख और चिंता की बात यह है कि उनके जान पर खेलकर लोकतंत्र बचाने के प्रयासों की सराहना उनको खुद ही करनी पड़ती है। जबकियह काम जनता का है लेकिन जनता आजकल क्रिकेट मैच, भोंडे टेलीविजन कार्यक्रम, शेयर मार्केट का उतार चढ़ाव, सोने का बाजार, प्रापर्टी की कीमती हेरफेर, बिना किए करोड़पति हो जाने के सपने ही देखती है। खैर हमारे जन प्रतिनिधि किसी बात का बुरा नहीं मानते। वे मानते हैं कि जनता को न बदला जा सकता है न वे किसी दूसरे देश में जाकर जनप्रतिनिधि बन सकते हैं।
 हमारे लोकतंत्र पर ताजा हमला एक बदबू ने कर दिया है। हमारे कर्मठ, प्रतिभावान, समर्पित प्रतिनिधि चाहते हैं कि सदन की कार्यवाही साल में कम से कम दो सौ दिन तो चले पर व्यवधान डालने वाले इस कार्यवाही को समेट कर सौ से भी कम आकड़ें पर खड़ा कर देते हैं। इन दिनों सदन की कार्यवाही बहुत सुंदरता से चल रही थी कि अचानक सदन पर बदबू ने हमला कर दिया। यदि हमला करने वाला कोई ओर होता तो हमारे प्रतिनिधि सीना तानकर खड़े हो जाते। चूंकि हमलावर अदृश्य था। इसीलिए हमारे प्रतिनिधि विवश हो गए। पर यह बहस  चलने लगी कि यह दुर्गंध कैसी है। कुछ ने कहा कि यह गैस की बदबू है। इस पर  पूछा गया कि किस कंपनी की गैस की बदबू है। थोड़ा  खुलकर कंपनी का नाम बताया जाए। बदबू से कंपनी का नाम बता देना सरल था लेकिन सदन खामोश रहा। बहस यह होने लगी कि दुर्गंध कहां से आ रही है। एक सदस्य ने कहा कि वह जब से जनप्रतिनिधि चुनकर आया है तब से उसे यह दुर्गंध आ रही है। इस पर पूछा गया कि इससे पहले दुर्गंध की शिकायत क्यों नहीं की ? प्रतिनिधि ने बताया कि वह तो दो साल पहले ही चुनकर आया है। उसे लगा था कि शायद जिसे वह दुर्गंध समझ रहा है वह दुर्गंध नहीं सुगंध है जिसे सदन में बड़े प्रयासों से फैलाया गया है। नए सदस्य के इस वक्तव्य पर कुछ दूसरे सदस्य  नाराज हो गए और उन्होंने नए सदस्य पर जातिवादी होने का आरोप लगाया। अब बहस जातीय आधार पर बंट गई और जाति- विशेष की तरफ इशारे होने लगे। बहस को लाइन में लाते हुए एक अनुभवी सदस्य ने कहा कि पिछले पच्चीस साल से वह यह दुर्गंध महसूस कर रहा है। बात पीछे खिसकते खिसकते यहां तक पहुंची कि अंग्रेज जब हमारे देस को आजाद करके गए थे तब से यह दुर्गंध सदन में है। यह अंग्रेजों द्रारा छोड़ी गई दुर्गंध है। इस मत का पूरे सदन ने समर्थन किया और कहा गया कि विदेश मंत्रालय इस पर सख्त कार्यवाही करे और ब्रितानी सरकार से कड़े शब्दों में पूछा जाए कि यह मामला क्या है। कुछ सदस्य बदबू के ब्रितानी षड्यंत्र होने वाले बिंदु से इतना उत्तेजित हो गए कि उन्होंने कहा कि अंग्रेज तो जो भी छोड़ गए सब से बदबू  आती है। रेल की पटरियां गंधाती है, गेट वे ऑफ इंडिया से लेकर इंडिया गेट तक बदबू ही बदबू है। नौकर-शाही से दुर्गंध आती है। आई.पी. सी से सड़ी गंद आती है। शिक्षा- व्यवस्था की हालत तो गंदे नाले जैसी है। सदन के जिम्मेदार सदस्यों ने जब बहस को यह मोड़ लेता देखा तो बोले यह सब छोडि़ए, यहां इस सदन में इस गंध के लिए जो जिम्मेदार है उससे जवाब तलब किया जाना चाहिए। इस पर मेजे बजने लगीं।
 सदन के कुछ प्रभावशाली यह बहस होने से पहले सदन की कैण्टीन में सस्ते दरों मे मिलने वाली बिरयानी खाने चले गए थे। वे वापस आए तो  उन्होंने यह बहस होते देखी। वे बहुत नाराज हो गए। एक सीनियर सदस्य ने कहा- आप लोगों को शर्म नहीं आती?
 आप इसे बदबू कह रहे हैं?
फिर यह क्या है?    
 यह तो लोकतंत्र की सुगंध है।
 ये कैसे?
 अरे आप को शर्म नहीं आ रही? यह तो डूब मरने की जगह है। आपको मालूम है कि हमने लोकतंत्र कितने बलिदान देकर हासिल किया है? कितने शहीदों का खून बहा है। कितने घर उजड़े हैं। कितनों ने काला पानी काटा है। कितने फांसी के फंदे पर झूले हैं। कितनी बहनों का सुहाग उजड़ा है। कितनी माओं की गोदें सूनी हुई हैं। तब हमें लोकतंत्र मिला है।  आप लोगों की इन ओछी हरकतों से आज स्वर्ग में राष्ट्र्पिता पर क्या गुजर रही होगा। सुभाषचंद्र बोस कितना दु:खी होंगे और शहीदे आजम का कलेजा टुकड़े- टुकड़े हो गया होगा . . . . अगर उनके सामने .. .. ..अगर उनके सामने
 अचानक सभी सदस्यों की आंखें एक तरफ को उठ गईं। धीरे धीरे  नपे तुले कदमों से एक नवयुवक सदन में दाखिल हो  रहा था। उसका तेजवान लंबोत्तर चेहरा था। बड़ी बड़ी संवेदना और विचार में डूबी आंखों से वह सबको देख रहा था। उसने फ्लैट हैट लगाई हुई थी। चेहरे पर शानदार मूछें फब रही थी। नौजवान धीरे धीरे आगे बढ़ता रहा। उसने अपने हाथ में कुछ लिया हुआ था। नौजवान के रोबदाब के आगे सबकी घिग्गी बंध गयी थी। बड़ी हिम्मत करके एक सीनियर सदस्य ने पूछा- आप कौन हैं?
  नौजवान ने जोर का ठहाका लगाया। उसकी आवाज देर तक सदन में गूंजती रही। कुछ क्षण बाद वह बोला- क्य यह बताने की जरूरत है कि मैं कौन हूं।
 एक सदस्य ने पूछा- चलिए यही बता दीजिए कि आप किस चुनाव क्षेत्र से चुनाव जीतकर आए हैं.?
 अब की नौजवान ने फिर जोर का ठहाका लगाय। लेकिन यह डरावना ठहाक था। चुने हुए प्रतिनिधि कांप गए। सदन की दीवारें  थर्रा गईं। नौजवान ने आग उगलती आंखों से आंखें मिलाने की हिम्मत किसी में न थी। कुछ ठहरकर एक सदस्य ने पूछा- आप का धर्म? आपकी जाति। नौजवान ने नफरत से का- मेरा कोई धर्म नहीं है। मेरी कोई जाति नहीं है।
 तीसरे प्रतिनिधि ने कहा- तब तो श्रीमान जी आज की तारीख में आपको किसी चुनाव क्षेत्र से हजार वोट भी न मिलेंगे।
 मैं यहां  वोट लेने नहीं आया हूं। वह आत्मविश्वास के साथ बोला।
 फिर श्रीमान जी यह तो लोकतंत्र का मंदिर है .. . यहां ..?
 एक सीनियर सदस्य बात काटकर बोला- मैं इन्हें पहचान गया हूं यह शहीदेआजम हैं।
 अरे बाप रे बाप। पूरे सदन में यह वाक्य गूंज गया। सभी सदस्य हैरान परेशान हो गए।
 ये आपके हाथ में क्या है शहीदेआजम?
 ये बम है।
 बम?
 हां बम?
 इसे यहां क्यों लाए हैं?
 इसे यहां फेंकने लाया हूं।
 यहां फेंकने?
क्यों शहीदेआजम?
 यहां बदबू आती हैं ना?
 हां आती है।
 बदबू का यही इलाज है।
 लेकिन ये बम
 सदन एक जोरदार धमाके की आवाज से थर्रा गया। चारों तरफ धुआं ही धुआं हो गया। जन प्रतिनिधि मेजों से नीचे छिप गए। जब धुआं छटा तो उनमें से कुछ ने मेज के नीचे से सिर निकाले।
 एक बोला क्या चले गए शहीदेआजम?
 तुम देखो।
 नहीं तुम देखो।
 चले तो गए हैं पर जाने कब चले आएं।
 हां यार ये तो है।
 तो मेज के नीचे ही रहें।
 सदन की कार्यवाही?
 चलती ही रहेगी क्योंकि सभी मेजों के नीचे हैं।
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शनिवार, 7 जुलाई 2012

यात्रा पर कैसे करें बच्चों को कंट्रोल- वागीशा कंटेट कंपनी



 यात्रा के दौरान बच्चे हमेशा कुछ रोमांचक करने के मूड में होते हैं और इससे हमेशा डर बना रहता है कि कहीं उनको चोट न लग जाएं । यह ध्यान रखना माता-पिता के लिए बहुत चुनोतीपूर्ण होता है। हर माता -पिता अपने बच्चों के साथ यात्रा करने में इसीलिए डरते हैं। पर यदि वह  यात्रा के दौरान कुछ गेम्स या खिलौने रख लें तो आपकी यह सिरदर्दी कुछ हद तक कम हो सकती है। आजकल कई तरह के गेम्स और खिलौने हैं जो बच्चों के मानसिक विकास में भी कारगर सिद्ध हो रहे हैं। ट्रेवल किड्स के नाम से बाजार में उपलब्ध ये खिलौने विशेषज्ञों द्रारा बनाए जाते हैं।  इस तरह के खिलौनों को बनाने के लिए  खुद बच्चों और उनके माता-पिता और शिक्षा विद् की भी राय ली जाती है।  यात्रा का समय एक ऐसा समय है जब आपके पास कोई काम नहीं होता है। आप सारा समय अपने परिवार के साथ बातचीत में लगा देते हैं।
 यह खिलौने कई तरह के होते हैं जिसमें इलेक्ट्रानिक और मैजिक सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं।  यह खिलौने बच्चों के भीतर की कार्यक्षमता को बढ़ाते हैं उनके भीतर के फाइन मोटर स्किल को विकसित करते हैं। उनके भीतर कई तरह की जिझासा जगाते हैं। कल्पनाशक्ति का विस्तार करते हैं, सीखने की प्रवृत्ति को विकसित करते हैं। इससे आपके ग्रहण करने की क्षमता का विकास होता है। छोटे छोटे गुत्थी सुलझाने वाले खिलौने दिमाग को तेज करते हैं।  मनोरंजन के ये नए खिलौने बच्चों के विकास  में सहायक हो सकते हैं । ट्रेवल किडी नाम से बिकने वाले यह खिलाने आप किसी भी किड्स स्टोर से खरीद सकते हैं। फन टाइम में यह खिलौने फन जोन का काम करेंगे।  चाहें तो आप भी शामिल हो सकते हैं।  
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रविवार, 8 अप्रैल 2012

कला पर पड़ता समाज के मूवमेंट का असर


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 नए हस्ताक्षर- अपार कौर

कभी- कभी कुछ संयोग बड़े विरल होते हैं। मैंने मशहूर चित्रकार अपर्णा कौर का नंबर मांगा था। पर मुझे मिला अपार कौर का नंबर। दोनो चित्रकार है।  एक कला की दुनिया का चमकता सितारा दूसरा उभरता हुआ सितारा। जैसा कि अपार कहती हैंअक्सर लोग  मुझसे अपर्णा कौर करके बात करते हैं। मेरा साक्षात्कार भी इसी नाम से लिया जा चुका है। 250 रु. पारिश्रमिक भी आया और पाठकों के पत्र भी। पर मैं तो अपार कौर  हूं। किसी से पूछा तो पता चला यह एक मशहूर चित्रकार हैं।
 अच्छा हुआ मैं उनसे मिलने चली गई। अन्यथा मैं भी यह गलती कर सकती थी। फोनेटिक इन्टव्र्यू में अक्सर ऐसी चूकें हो जाती हैं।  पर इस बहाने मैं  ऐसी  महिला से मिली जिसने  नौकरी की क्योंकि यह उसकी जरूरत थी पर अपने पैशन को कम नहीं होने दिया। सेवानिवृत्ति के बाद उसने कला को  नए रंग दिए और आज एक उभरता हुआ नाम हैं। 
कला के बारे में अपार कौर के विचार
 नित नूतन प्रयोग की सबसे ज्यादा छूट तो कलाकार के पास ही होती है। कभी वह प्रकृति के रंगों से सम्मोहित होता है तो कभी यथार्थ के धरातल पर आ रहे बदलावों को देखकर उसका मन दु:खी होता है। सुख और दु:ख दोनों ही भाव कलाकार कला के माध्यम से व्यक्त करता है। कला में भी बदलाव आ रहे हैं। आज कला एक व्यवसाय के रूप में भी दिखाई दे रही है। जहां खरीददार के मन के मुताबिक कला का सृजन हो रहा है। पर यहां कला का विकास भी हो मुझे थोड़ा संदेह हाता है क्योंकि मेरा मानना है कि कलाकार अपनी रचना में  अपने मन के रंग भरता है। जैसा कलाकार का मन है या जैसी मन:स्थिति में वह रचनाकर्म कर रहा है उसका प्रभाव रचना पर पड़ता है। कभी-कभी खाली कैनवास में सिर्फ एक बिंदु बहुत कुछ कह जाता है। जरूरी नहीं कि जिस वजह से कलाकार को अपनी रचना प्रिय हो उसी तरह उसे खरीदने वाले भी महसूस करें। हर व्यक्ति अलग अलग तरीके से रचना को पसंद करता है कोई रंगों से प्रभावित होता है तो कोई रेखाओं से।
 जैसे जैसे समाज में चेंज आ रहे हैं, मूवमेंट बदल रहे हैं ठीक उसी के अनुरूप कला के तौर तरीकों में भी बदलाव आया है। पॉप, कान्टेंम्पेरी, डिजिटल और फोटो पेंटिंग का दौर है यह। समय के साथ सब बदल जाता है। एक्सप्रेशन, थॉट और लाइकिंग बदल जाती है। दीवारों पर सजने वाली पेंटिंग अब कार्डकुशन कवर, सूट, साड़ी और चादरों में दिखाई देती है। आज के नए कलाकार किसी खास फ्रेम या कास किस्म के आर्ट वर्क में भी खुद को बांधे नहीं रखना चाहते। जिससे उनकी पहचान हो। वह उन्मुक्त होकर काम करना चाहते हैं।  फ्यूजन के वह आग्रही है क्योंकि यहां भी नए प्रयोग की गुंजाइश है। विभिन्न कलाओं का समागम एक नई रचना को जन्म देता है। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि यग इस दौर के रंग हैं। हमेशा से ही हलके और चटख रंगों का प्रयोग होता रहा है। यह कलाकार पर निर्भर करता है कि वह किस थीम को चुने।
 अपने बारे में- कला के प्रति चाहत मुझे यहां तक ले आई। बचपन से ही कला के प्रति रुझान था। पर विधिवत शिक्षा नहीं ली। रिश्ते की मौसी शीला सबरवाल से प्रभावित हुई जो उच्चकोटि की चित्रकार हैं। वह ही मेरी पहली गुरू है। आज देश विदेश में प्रदर्शनी लगती हैं।  मैं अपने इस सफर से बहुत खुश हूं।
 दिल्ली की हूं, दिल्ली में ही पैदा हुई, यहीं पढ़ाई की। लेडीश्रीराम से बी.ए किया।
 पेशा और पैशन दोनो अलग अलग रहे। पेशे से इंडियन आयल कारपोरेशन में मैनेजर रही।
 रिटायरमेंट के बाद अपने शौक पूरे कर रही हूं। श्यामक डावर से डांस भी सीख रही हूं।
 निलादि पॉल, हुसैन, सतीश गुजराल की पेटिंग पसंद हैं। पर मंजीत सिंह की कला ने मुझे उनकी कला का फैन बना दिया।

शनिवार, 7 अप्रैल 2012

सेक्सी या ब्यूटीफुल क्या सुनना पसंद करेंगी?/ डॉ. अनुजा भट्ट


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 सेक्सी और ब्यूटीफुल ये दो अलग- अलग अभिव्यंजना वाले शब्द क्या आज के दौर में समानार्थी हो गए हैं? ऐसे और भी बहुत से शब्द हैं जिसे सुनकर अब शर्म से आंखें नहीं झुकती बल्कि ऐसे  शब्द आज के दौर में हमें व्यवहारिक होने और आधुनिक होने का अहसास कराते से प्रतीत हो रहे हैं।  लड़कियों को खुद को सैक्सी कहे जाने में कोई आपत्ति नहीं हैं। ऐसी बहुत सी गालियां भी हैं जो अब आम बोलचाल में चल पड़ी हैं। अंग्रेजी बोलचाल में ी को उद्बोधन करती ऐसी गालियों की भरमार है और हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं में भी  ऐसी गालियां आम हैं। आम होने की वजह यह है कि वह स्वीकार्य है। उनको बोलने वाला कौन है इसका उत्तर हम सभी जानते हैं? भाषा का संस्कार क्या ी के लिए ही है? बॉलीवुड अभिनेत्री नेहा कहती हैं कि किसी को सेक्सी पुकारे जाने में कोई भी गलत नहीं है।  बशर्ते इस संबोधन का इस्तेमाल वाजिब संदर्भ में किया गया हो। अगर मुझे कोई सेक्सी, कूल या हॉट कहता है तो इसमें क्या गलत है? अगर इस संबोधन का जुड़ाव मेरे किसी सिनेमाई किरदार से है तब मुझे यह बुरा नहीं लगता। नेहा की ही तरह विद्या बालन की राय मे भी सेक्सी शब्द को परिभाषित नहीं किया जा सकता। वह कहती हैं वास्तव में यह सौंदर्य का प्रतीक है।  आज के जमाने में जिस तरह लड़कियां अपनी जिंदगी, अपनी सेक्सुएलिटी को अपने तरीके से जी रही हैं, वह वाकई काबिलेगौर है। क्यों कोई लडक़ी इसके लिए सारी पील करे कि वह अपनी जिंदगी को उस ढंग से जी रही हैं, जैसा वह चाहती हैं। यही सही मायने में असल आजादी है।  पाकिस्तानी पोर्न फिल्म अभिनेत्री वीना मलिक कहती हैं, अगर किसी लडक़ी या महिला को सेक्सी कहता है, तो उसे पाजिटिव लेना चाहिए और उसे खुद पर बिलीव करना चाहिए कि वह हाट और सेक्सी है। बेहतर होगा कि लेजी इसे निगेटिव न ले। सच तो यह है कि सेक्सी बहुत ही ब्यूटीफुल शब्द है। मुझको अगर कोई सेक्सी कहता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है।
तो क्या यह माना जाए कि ब्यूटीफुल की जगह सेक्सी ने ले ली है
 राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा भी सेक्सी का अर्थ सुंदर और आकर्षक से मानती है।

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

गर्भवती महिला से बोलें संभलकर /वागीशा कटेंट कंपनी


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हम बहुत बार हंसी -मजाक में कुछ ही बोल देते हैं और हमारे दोस्त इसका बुरा भी नहीं मानते। लेकिन यदि आपकी दोस्त गर्भवती है तो उससे बात करते समय सावधान रहें। ऐसा न हो कि आपके द्रारा की गई मजाक उसके लिए असहनीय हो जाए। यहां हम ऐसी बातें बता रहे हैं जो अक्सर हम कहते हैं -
बयान  :  ऐसा लग रहा कि बस फटने ही वाली हो
मतलब : तुम बेहद मोटी लग रही हो
किसी भी गर्भवती महिला से ऐसा न कहें चाहे वह आपकी कितनी भी अंतरंग क्यों न हो। क्या आप किसी ऐसी मोटी महिला से यह कहने का साहस कर पाते हैं जो गर्भवती न हो।
 बयान : जुड़वां बच्चे ? आपके तो दोनों हाथ में लड्डू होंगे।
मतलब : आपके बच्चे आपका जीना हराम कर देंगे। जुड़वां बच्चे जब एक साथ चीखेंगे-चिल्लाएंगे या बीमार पड़ेंगे तब पता चलेगा।
लोग हमेशा जुड़वां बच्चों के पालन-पोषण से जुड़े नकारात्मक पक्षों की ओर इशारा करते हैं। पता नहीं क्यों? लकिन जुड़वां बच्चों के पालन पोषण से जुड़ी दोहरी खुशियों की कोई कीमत नहीं होती। इन दोहरी खुशियों की तुलना में पालन-पोषण की जुड़ी दिक्कतें कुछ भी नहीं हैं।
 बयान : जितना चाहे सो लो अब आगे मौका नहीं मिलेगा।
मतलब : झेलने के लिए तैयार हो जाओ।
मम्मियों को पता होता है आने वाले दिन कैसे होंगे। उन्हें यह याद दिलाकर बार-बार डराने की जरूरत नहीं है। अपनी संतान के लिए जागने में माताओं को दिक्कत हो सकती है लेकिन शायद ही उन्हें अपनी नींद गवंाने पर अफसोस होता हो। अगर आपके बच्चे नहीं है और या बड़े हो चुके हैं तो आपको किसी गर्भवती महिला को यह कहने को कोई हक नहीं होना चाहिए।

4.  बयान : जितने मजे करने हैं कर लो। बाद में मौका नहीं मिलने वाला।
मतलब : आपकी जिंदगी के अच्छे दिन खत्म हो गए। अब दिक्कतें उठाने को तैयार रहो।
बच्चे होने का मतलब यह नहीं है कि आपके एंजॉयमेंट के दिन खत्म हो गए। मैंने कई ऐसे पेरेंट्स देखें हैं जो बच्चे पालने के साथ-साथ फिल्म देखने, किताबें पढऩे, टीवी देखने या बाहर रेस्तरां में डिनर का आनंद लेने का समय निकाल लेते हैं। बस आपको बेहतर टाइम मैनेजमेंट का प्रैक्टिशनर होना पड़ता है और थोड़ा धैर्य से काम लेना होता  है। हां, जीवन में परिवर्तन होता है। आप पहले की तरह तुरत-फुरत तैयार होकर नहीं निकल सकते। आपका एक्सरसाइज शेड्यूल परिवर्तन मांग सकता है या फिर पहले की तरह रात को पति के साथ टहलने के लिए निकलने के लिए आपको प्लानिंग करना पड़े। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पहले की लाइफस्टाइल की खुशियां खत्म हो जाएंगी।
बयान : अब तो आपको बच्चे को अपना दूध पिलाना पड़ेगा।
मतलब : अगर आप बच्चे को स्तनपान नहीं कराते तो आप दुनिया की सबसे खराब मां हैं।
यह एक बेहद निजी सवाल है और आपको इस निजता का सम्मान करना चाहिए। ऐसे में आपके आसपास की हर महिला आपको सलाह देती नजर आएगी। लेकिन आपको इन पर ज्यादा ध्यान देने की जरू रत नहीं है। अपने बच्चे की जरूरत एक मां से अच्छी तरह से कोई नहीं समझ सकता। इसलिए इस बारे में सलाह पर गंभीरता से सोचने की कोई जरूरत नहीं् है।
5. बयान : पहले जैसी सूरत नहीं रहेगी।
मतलब : चेहरों पर झांइयों और दूसरी और शारीरिक परिवर्तन झेलने होंगे।

बच्चे के जन्म के बाद कुछ बदलाव स्वाभाविक हैं। जैसे झांइयां पडऩे, थोड़ी चर्बी जमना या पेट का बढऩा। लेकिन क्या मां बनने के आनंद की तुलना में इनकी क्या अहमियत है। इसलिए किसी महिला से यह कहना कि अब आपका शरीर पहले जैसा नहीं रह गया एक भारी भूल है। ऐसी महिलाओं से यह कहिये कि आप पहले जैसी ही खूबसूरत हैं।
6. बयान  : पक्का। तुम इतना खा लोगी?
मतलब : एक गर्भवती महिला हमेशा भूखी होती है। इसलिए किसी से यह कहना ठीक नहीं है कि इतना तो ख्रा ही लोगी। गर्भवती महिलाओं को 300 कैलोरी अतिरिक्त लेना पड़ता है। इसलिए गर्भवती महिलाएं ज्यादा खाएं तो आश्चर्य न जताएं।
7. दो जुड़वां लडक़े? एक लडक़ा और एक लडक़ी होती तो अच्छा होता?
मतलब : आप जुड़वां लडक़ा या लडक़ी पैदा करने में नाकाम रहे। अगर लडक़ा है तो यह कहने की कोशिश की जाती है तो एक लडक़ी पैदा करन की कोशिश करो ताकि फैमिली पूरी हो जाए। यानी मां-बाप एक लडक़ा और एक लडक़ी। लेकिन यह आपके हाथ में नहीं होता और लोग इस पर जबरदस्ती इस पर जोर डालते हैं।
8. बयान : क्या आपके यहां जुड़वां की परंपरा रही है।
मतलब : क्या आप फर्टिलिटी सेंटर के जरिये जुड़वां बच्चे पैदा कर  रहे हैं।
इस तरह के बयानों से लोग थाह पाने की जुगाड़ में लगे रहते हैं। उनका इशारा यह होता है कि शायद आप कृत्रिम गर्भाधान से जुड़वां बच्चे पाना चाहते हैं।
  
9. बयान : ओह दो बच्चे। मेरी तो छह महीने का बच्ची है। मैं तो हिल जाता हूं।
मतलब : आपको अपनी दिक्कतों से रूबरू कराना।
इस तरह का बयान आपका आत्मविश्वास की थाह लेने की एक कोशिश भर है। या फिर लोग यह भी देखना चाहते हैं कि मैंने तो कष्ट झेला अब आप भी झेलो। लेकिन वह नहीं जानते कि संतान पाने का सुख कुछ और ही होता।

शनिवार, 10 मार्च 2012

आप भी बनें अपराजिता


अपराजिता संस्कृत का एक स्त्रीलिंग शब्द है। पराजिता शब्द में अ उपसर्ग लगाकर अपराजिता शब्द का निर्माण हुआ है। पराजिता शब्द भी पराजय शब्द से बना है जिसका अर्थ है हारना । अत: पराजिता शब्द का अर्थ है हारा हुआ। पराजिता शब्द में अ उपसर्ग लगाकर बने शब्द अपराजिता का अर्थ है जिसे हराया न जा सके। सामान्य रूप से इस शब्द का प्रयोग संज्ञा के रूप में होता है। जीवन में आने वाली सारी बाधाओं को पार कर जो अपने लक्ष्य पा लेती है, अपराजिता कहलाती है। हम चाहते हैं कि यह पत्रिका आपको अपने लक्ष्यों तक पहुंचा सके। आप भी बनें अपराजिता ।


इस पत्रिका का हर दिन एक खास अंक होगा। सातों दिन विविध विषयों से सजे लेख होंगे। आपकी जीवन-शैली के जितने भी आयाम है उनको ध्यान में रखते हुए इस पत्रिका की रूपरेखा तैयार की गई है। स्वास्थ्य से लेकर साजसज्जा, सौंदर्य से लेकर साहित्य, मनोरंजन से लेकर स्वाद, सलाह से लेकर सरोकार, करियर से लेकर अनुभव के साथ- साथ हम आपको पेरेंटिंग के बारे में भी बताएंगे। आपके बच्चों के लिए अच्छा साहित्य उपलब्ध कराएंगे। खाने-पीने, घूमने फिरने की भी बातें होंगी, गपशप होगी। देखते हैं किस दिन होगा क्या खास-

सोमवार स्वास्थ्य से जुड़े मसले पर बात होगी। जिसमें फिटनेस, योगा, पोषण पर भी ध्यान दिया जाएगा। मानसिक बीमारियों पर भी चर्चा होगी। रिश्ते नाते सुधारने में हमारे विशेषज्ञ मदद करेंगे।

मंगलवार के दिन साज-सज्जा के विविध रूप देखने को मिलेंगे जिसमें घर की सजावट के अलावा क्राफ्ट के बारे में भी जानकारी होगी। सिलाई- कढ़ाई , बुनाई के पैटर्न बताए जाएंगे।

बुद्धवार के दिन समाज-सरोकार से लेकर कारोबार तक की बातें होंगी। नए गैजेट्स,आटो मोबाइल के साथ नए ट्रेंड्स पर भी चर्चा होगी।

गुरुवार का दिन बच्चों पर केंद्रित होगा। उनके द्रारा बनाई गई पेंटिंग , उनके चित्र उनके लिए खास कविताएं, कहानियां और उनकी गपशप हम सबको गुदगुदाएगी।

शुक्रवार के दिन व्यक्तित्व-विकास पर चर्चा होगी। बाल विकास, संस्कृति, शिक्षा और सलाह जैसे विषयों पर प्रकाश डाला जाएगा।

शनिवार के लिए सजने- संवरने, घूमने- फिरने, मौज-मस्ती, खान-पान,फिल्म-सीरियल, फैशन के जलवे खास रहेंगे। देश दुनिया के खान-पान से लेकर फैशन के नए ट्रेंन्ड्स बताए जाएंगे। यात्रा-डायरी के जरिए आप अपने मनपसंद जगह के बारे में जानकारी ले सकेंगे।
रविवार किताबों के बारे में जानने का दिन है। नए हस्ताक्षरों से लेकर लोकप्रिय लेखकों की रचनाएं यहां पढ़ी जा सकेंगी। साक्षात्कार, उपन्यास- अंश के अलावा सप्ताह की विशेष रिपोर्ट भी प्रस्तुत की जाएगी। और भी होगा बहुत कुछ। बस आपका साथ चाहिए।


हमारी इस पत्रिका के लेखकों में देश-विदेश के कई विशिष्ट लेखक शामिल हैं। इस पत्रिका के कंटेंट के लिए वागीशा कंटेंट प्रोवाइडर कंपनी, नोएडा सहयोग कर रही है। बहुत जल्दी ही हम इसे प्रिंट मैंग्जीन के रूप में भी आपके सामने लाने का प्रयास कर रहे हैं। यह मासिक पत्रिका के रूप में होगी।


मंगलवार, 6 मार्च 2012

सजावट की एंटीक थीम




 डॉ. अनुजा भट्ट

होली का त्योहार रंगों और मस्ती के साथ अब सब तरफ  छाने लगा है। ऐसे में घर में मेहमानों की रौनक न हो ऐसा कैसे हो सकता है। गले मिलकर दावत के लिए निमंत्रण देना इस मौके पर ही होता है। ऐसे में आपका घर एंटीक से सजा हो तो फिर बात ही निराली है। जी हां यही मौका है कुछ अलग कर दिखाने का। इसीलिए पेश हैं आपके लिए कुछ आइडिया। 
एडवांस लाइफस्टाइल में स्लीक और कॉम्पेक्ट फर्नीचर की बजाय एंटीक लुक का फर्नीचर बाजार में अपनी जगह बना चुका है। आप भी कुछ डिजाइनर और नक्काशीदार वस्तुओं से ड्रॉइंगरूम सजा-संवार सकते हैं। एंटीक थीम पर सजावट के लिए सबसे अच्छा यह रहेगा कि कोई कलर थीम चुन लें और फिर उसी के अनुसार डेकोरेशन करें।
मसलन, अगर आप वुडन थीम के आधार पर अपना ड्राइंग रूम सजाना चाहते हैं, तो ड्राइंगरूम के पर्दे, सोफे के कवर, कुशन कवर, आर्टिफिकेट्स, वॉल कलर, हैंगिंग लैंप, फोटो फ्रेम आदि इस तरह लगाएंए जो अगर वुडन कलर के न भी हों, तो इससे मैचिंग जरूर रखते हों।
घर में मेहमान आएं, तो ऐसे में मेहमानों के सामने ट्रेंडी और राजसी लुक दिखाने के लिए नक्काशीदार चीजें काफी चलती हैं। नक्काशीदार सेंटर टेबल, कुर्सियां, सोफे और मिरर बाजार में काफी आसानी से मिल जाएंगे। इनके डिजाइन भी काफी मिल जाएंगे। आप अपने ड्राइंगरूम के साइज और कलर कॉम्बिनेशन के मुताबिक फर्नीचर का चयन कर सकते हैं।
उसे आप अपने घर में उकेर सकते हैं। मसलन, राजस्थान का कलरफुल अंदाज हो, गुजरात की नक्काशी या फिर उड़ीसा का चिकन डिजाइन, सब कुछ आप पसंद के मुताबिक कर सकते हैं। अगर आप राज्य के आधार पर डेकोरेटिव थीम चाहते हैं, यही नहीं, आपने आजकल देखा होगा कि ड्राइंगरूम की मेज टॉप मिरर की बनी होती है। ऐसे में आप मिरर से झांकता हुआ अपना कोई भी ट्रेडिशनल आर्टिफिकेट मेज पर रख सकते हैं। इसके बाद आपको मेज पर किसी भी प्रकार के टेबल क्लॉथ बिछाने की जरूरत नहीं रहेगी, क्योंकि हर आने वाला व्यक्ति इस एंटीक अंदाज पर फिदा हो जाएगा।
इसके अलावा, ड्राइंगरूम के कोनों में भी एंटीक आइटम्स को सजा सकते हैं। इसके लिए बाजार में नक्काशीदार कॉर्नर से लेकर, हाथी, घोड़े, वॉर वैरियर और टेलिफोन स्टैंड तक बाजार में आसानी से मिल जाते हैं। घर में एंटीक टेलिफोन से भी राजसी लुक दे सकते हैं। ये आज भी मार्केट में उपलब्ध हैं।
इंटीरियर डिजाइनर कहते हैं, अब तो पुराने नक्काशीदार बर्तन भी आसानी से मिल जाते हैं। आप इन बर्तनों से मेहमानों को खाने-पीने का सामान सर्व कर सकते हैं। वैसे, लुक के हिसाब से आप इसे लॉबी में सजावटी सामान के तौर पर भी रख सकते हैं।
इसके अलावा घर की पुरानी बेकार डिजाइनदार चादरों की कटिंग करके आप उन्हें फ्रेम करा सकते हैं। इससे आपकी दीवारों को एंटीक टच मिलेगा। इसी तरह अपने पूर्वजों की फोटो को फ्रेम करवाकर लगवा सकते हैं। ड्राइंगरूम के डेकोरेटिव लुक में पुरानी तस्वीरों से डिफरेंट गेटअप भी मिल सकेगा।

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

होम ऑफिस इंटीरियर



डॉ. अनुजा भट्ट
  जब घर पर ऑफिस बनाने की बात आती है तो सबसे पहले हम घर में एक ऐसी जगह की तलाश करते हैं जहां एकांत हो और आराम से बैठकर काम किया जा सके। पर इतना ही काफी नहीं है। हमको होम आफिस के इंटीरियर पर भी ध्यान देना होगा ताकि वह देखने में भी सुंदर लगे। और हमको ऑफिस का जैसा अहसास  हो।
इस कमरे में  पर्दे की जगह पर हम वुडन ब्लाइंड्स लगा  सकते है। अगर रोशनी कम लगे तो इसको खींचकर ऊपर किया जा सकता है। आमतौर पर यह आफिस में  प्रयोग में लाई जाती है। इसके अलावा कुछ  इनडोर प्लांट्स भी लगाएं।  ताकि हरियाली  भी दिखाई दे।
 दीवारों पर  पेटिंग लगाएं। जिस कमरे में आफिस हो  वहां  बैठने की भी व्यवस्था हो और साथ ही एक काफी टेबल हो जिस पर फूलदान रखा हो । इसमें नियमित ताजे फूल लगाए जाएं।  ताजे फूल रचनात्मकता का प्रतीक होते है। हर दिन नया रचने का संदेश  भी देते है सबसे बड़ी बात मन को सुकून देते है। यह ऑफिस ऐसा हो जिसमें आप अपने क्लाइंट से मुलाकात भी कर सकें। खूबसूरत फर्नीचर, मजबूत और आरामदेह कुर्सियां, कंप्यूटर टेबल, प्रिंटर, फैक्स, फोन रखने की जगह सुविधाजनक हो। ताकि काम करने के दौरान तकलीफ न हो। याद रखिए यहां सारी व्यवस्था आपको करनी है  क्योंकि आफिस भी तो आपका है।
 आजकल बाजार में मीडिया हाउस भी ऐसी क्राकरी, स्टेशनरी  बनवा रहे है जिसमें  आफिस का टच रहता है। विश्व पुस्तक मेले में एनबीटी ने  ऐसे मग  प्रदर्शनी के लिए रखे है जिसमें आई लव बुक्स जैसे स्लोगन लिखे हैं। इसी तरह पढ़ाई-लिखाई और किताब पढऩे के लिए प्रेरित करने वाली  टी-शर्ट भी पेश की गई हैं। हमारे रोजमर्रा की जरूरतों के साथ यदि पढ़ाई लिखाई की जरूरत को भी अहं मान लिया जाए और उसका प्रचार किया जाए तो इसका असर पड़ेगा। जो चीज निगाह में सबसे पहले आती है बार- बार आती है हम उसके प्रति प्रेरित होते हैं  विज्ञापन का यही असर है। और यदि ऐसे मग,  पेंसिल, रबड़, कॉपी  आपके ऑफिस में हों तो फिर रचनात्मक असर तो होगा ही। आपकी टेबल के सामने भी रचनात्मक स्लोगन होने चाहिए । यह स्लोगन आपको इंटरनेट से मिल सकते है या खुद आप अपने लिए स्लोगन लिख भी सकते हैं। ये स्लोगन आपके टारगेट को पूरा करने  में आपकी मदद करेंगे।  कारपेट, रग,  घड़ी  इनको खरीदते समय भी रचनात्मकता  का ध्यान दें।  घड़ी आपकी टेबल के सामने होनी चाहिए।  मोबाइल स्टेंड चार्जर भी जरूरी है ताकि घंटी बजने पर इसे खोजने में  समय न लगे।

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

लकी बैम्बू से घर में आएगी बहार

  लकी बैम्बू का पौधा फेंगशुई में एक खास पौधे के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि यह घर में सुख समृद्धि लाता है इसीलिए इसका नाम लकी प्लांट भी है। कहते हैं, इसे घर में रखने से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। इसके अलावा आपके घर को सजाने और ताज़गी भरा अहसास बरकरार रखने में भी ये अहम हो सकता है। ज़्यादा दिनों तक इस पौधे को हरा-भरा बनाए रखने के लिए इसकी सही देखभाल ज़रूरी होगी, जैसे-
बाजार में मिलने वाले बैम्बू के पौधे एक विशेष तरह की जैली में रखे होते हैं, जो इनकी तली को अधिक देर तक नम बनाए रखने में मददगार होती है। लेकिन बहुत ज्यादा दिनों तक यदि पौधे को एक ही जैली में रखा जाए, तो यह सड़ जाते हैं। इसलिए घर लाने के बाद पौधे को जैली से अलग करें, फिर जड़ों को अच्छी तरह धोने के बाद बैम्बू को पानी से भरे बोल में डाल दें।


प्रकाश और पानी की उचित मात्रा पौधे को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी है। कम से कम आठ घंटे मद्धम रोशनी  इसके लिए ज़रूरी है। इसके अलावा यदि बैम्बू छोटा है, तो एक इंच तक पानी काफी होगा। वहीं पौधे के बड़ा होने पर 3-4 इंच तक पानी डालें।
पौधे को हरा-भरा रखने के लिए साधारण के बजाय फिल्टर पानी का इस्तेमाल करें। साधारण पानी में मौजूद सॉल्ट (लवण) इसकी जड़ों में जम जाता है और धीरे-धीरे पौधे को नुकसान पहुंचाने लगता है।
हफ्ते में कम से कम दो बार ध्यान से बैम्बू के पौधे का पानी बदलते रहें। कभी भी बैम्बू ट्री को ऊपर या नीचे से न काटें। इससे भी बैम्बू पीला पड़ जाता है।
तो देर मत कीजिए, बैम्बू स्टिक से अपना घर सजाइएँ और फेंगशुई से होने वाले फायदों का लाभ उठाइएँ। आजकल अधिकांश लोग अपने कमरों में फूल के पौधे या किसी और सजावटी पेड़ों को लगाने के बजाए बैम्बू स्टिक को लगाना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। यह तीन तरह के साइज में मिल रहा है। छोटे वाले बैम्बू स्टिक पॉट की कीमत 50 रुपए, मीडियम साइज वाला 70से 150 रुपए और बड़े 500 से 700 रुपए में मिलता है।

वागीशा कंटेंट प्रोवाइडर कंपनी, नोएडा, उत्तरप्रदेश।

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

आभार


प्रिय मित्रों,
 आप सभी का आभार। आज वागीशा ने अपने पाठकों की संख्या 10,000  पार कर ली। यह सब आप सभी के सहयोग के बिना संभव नहीं था।   मात्र 3 माह में  यह आंकड़ा दर्शाता है कि आप वागीशा के प्रति कितने संजीदा है। वागीशा के हर कदम में आपने सहयोग किया। फिर चाहे वह समाज सरोकार का बात हो, लालनपालन की बात हो, साजसज्जा की बात हो, बाल साहित्य हो या खानपान की दुनिया हो या फिर  कुछ और।  हम बहुत जल्दी ही इसका विस्तार एक वेब मेग्जीन के रूप में करने जा रहे हैं जिसका नाम है अपराजिता।
 एक बार फिर से आप सभी का आभार
 आपकी अनुजा

Special Post

मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...