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नए हस्ताक्षर- अपार कौर
कभी- कभी कुछ संयोग बड़े विरल होते हैं। मैंने मशहूर चित्रकार अपर्णा कौर का नंबर
मांगा था। पर मुझे मिला अपार कौर का नंबर। दोनो चित्रकार है। एक कला की दुनिया का चमकता सितारा दूसरा उभरता हुआ
सितारा। जैसा कि अपार कहती हैं, अक्सर लोग मुझसे अपर्णा कौर करके बात करते हैं। मेरा साक्षात्कार
भी इसी नाम से लिया जा चुका है। 250 रु. पारिश्रमिक भी आया और पाठकों के पत्र भी। पर मैं तो अपार कौर हूं। किसी से पूछा तो पता चला यह एक मशहूर चित्रकार
हैं।
अच्छा हुआ मैं उनसे मिलने चली गई। अन्यथा
मैं भी यह गलती कर सकती थी। फोनेटिक इन्टव्र्यू में अक्सर ऐसी चूकें हो जाती हैं। पर इस बहाने मैं ऐसी महिला
से मिली जिसने नौकरी की क्योंकि यह उसकी जरूरत
थी पर अपने पैशन को कम नहीं होने दिया। सेवानिवृत्ति के बाद उसने कला को नए रंग दिए और आज एक उभरता हुआ नाम हैं।
कला के बारे में अपार कौर के विचार
नित नूतन प्रयोग की सबसे ज्यादा छूट तो
कलाकार के पास ही होती है। कभी वह प्रकृति के रंगों से सम्मोहित होता है तो कभी यथार्थ
के धरातल पर आ रहे बदलावों को देखकर उसका मन दु:खी होता है। सुख और दु:ख दोनों ही भाव
कलाकार कला के माध्यम से व्यक्त करता है। कला में भी बदलाव आ रहे हैं। आज कला एक व्यवसाय
के रूप में भी दिखाई दे रही है। जहां खरीददार के मन के मुताबिक कला का सृजन हो रहा
है। पर यहां कला का विकास भी हो मुझे थोड़ा संदेह हाता है क्योंकि मेरा मानना है कि
कलाकार अपनी रचना में अपने मन के रंग भरता
है। जैसा कलाकार का मन है या जैसी मन:स्थिति में वह रचनाकर्म कर रहा है उसका प्रभाव
रचना पर पड़ता है। कभी-कभी खाली कैनवास में सिर्फ एक बिंदु बहुत कुछ कह जाता है। जरूरी
नहीं कि जिस वजह से कलाकार को अपनी रचना प्रिय हो उसी तरह उसे खरीदने वाले भी महसूस
करें। हर व्यक्ति अलग अलग तरीके से रचना को पसंद करता है कोई रंगों से प्रभावित होता
है तो कोई रेखाओं से।
जैसे जैसे समाज में चेंज आ रहे हैं, मूवमेंट बदल रहे हैं ठीक उसी
के अनुरूप कला के तौर तरीकों में भी बदलाव आया है। पॉप, कान्टेंम्पेरी, डिजिटल और फोटो पेंटिंग का दौर
है यह। समय के साथ सब बदल जाता है। एक्सप्रेशन, थॉट और लाइकिंग बदल जाती है। दीवारों पर सजने वाली पेंटिंग अब
कार्ड, कुशन कवर, सूट, साड़ी और चादरों में दिखाई देती
है। आज के नए कलाकार किसी खास फ्रेम या कास किस्म के आर्ट वर्क में भी खुद को बांधे
नहीं रखना चाहते। जिससे उनकी पहचान हो। वह उन्मुक्त होकर काम करना चाहते हैं। फ्यूजन के वह आग्रही है क्योंकि यहां भी नए प्रयोग
की गुंजाइश है। विभिन्न कलाओं का समागम एक नई रचना को जन्म देता है। ऐसा नहीं कहा जा
सकता कि यग इस दौर के रंग हैं। हमेशा से ही हलके और चटख रंगों का प्रयोग होता रहा है।
यह कलाकार पर निर्भर करता है कि वह किस थीम को चुने।
अपने बारे में- कला के प्रति चाहत मुझे
यहां तक ले आई। बचपन से ही कला के प्रति रुझान था। पर विधिवत शिक्षा नहीं ली। रिश्ते
की मौसी शीला सबरवाल से प्रभावित हुई जो उच्चकोटि की चित्रकार हैं। वह ही मेरी पहली
गुरू है। आज देश विदेश में प्रदर्शनी लगती हैं।
मैं अपने इस सफर से बहुत खुश हूं।
दिल्ली की हूं, दिल्ली में ही पैदा हुई, यहीं पढ़ाई की। लेडीश्रीराम
से बी.ए किया।
पेशा और पैशन दोनो अलग अलग रहे। पेशे से
इंडियन आयल कारपोरेशन में मैनेजर रही।
रिटायरमेंट के बाद अपने शौक पूरे कर रही
हूं। श्यामक डावर से डांस भी सीख रही हूं।
निलादि पॉल, हुसैन, सतीश गुजराल की पेटिंग पसंद
हैं। पर मंजीत सिंह की कला ने मुझे उनकी कला का फैन बना दिया।
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