गुरुवार, 8 अगस्त 2024

वारली कला में जीवन और फैशन साथ साथ हैं- डॉ अनुजा भट्ट


लाल गेरू रंग की दीवारों पर सफेद रंग से चित्रित साधारण वारली आकृतियाँ अप्रशिक्षित आँखों को कुछ खास नहीं लग सकती हैं। लेकिन करीब से देखने पर आपको पता चलेगा कि वारली में आँखों से दिखने वाली चीज़ों से कहीं अधिक है। यह केवल एक कला रूप नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र और गुजरात की सीमाओं के आसपास के पहाड़ों और तटीय क्षेत्रों से वारली (वरली) जनजातियों के लिए जीवन का एक तरीका है। लगभग 3000 ईसा पूर्व उत्पन्न इस कला रूप में एक रहस्यमय आकर्षण है। अन्य रोजमर्रा की गतिविधियों के जटिल ज्यामितीय पैटर्न फैशन डिजाइनरों और घरेलू सजावट ब्रांडों के बीच काफी लोकप्रिय हैं जिसमें तरह तरह के फूल, शादी की रस्में, शिकार के दृश्य शामिल हैं। गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों के लोगों के मन में निश्चित रूप से इस कला के प्रति भावनात्मक लगाव है । उन्हाेंने इसे आघुनिक जीवन शैली के उत्पादों पर लोकप्रिय होने से बहुत पहले ही ग्रामीण स्कूलों और घरों की दीवारों सजाना शुरू कर दिया था। सरल, फिर भी खूबसूरती से नाजुक पैटर्न आधुनिक कला का आधार बने।

बेहद खूबसूरत

यह जनजाति पेंटिंग के लिए चावल के पेस्ट, पानी और गोंद जैसे बुनियादी सामग्रियों का इस्तेमाल करती रही है, जो सफेद रंग के लिए इस्तेमाल की जाती है । बांस की एक लकड़ी को रेशेदार बनाकर ब्रश के रूप में प्रयाेग किया जाता है। यह सरल आकर्षण ही है जिसने अनीता डोंगरे और जेम्स फेरेरा जैसे डिजाइनरों को अपने संग्रह में इन चित्रों का उपयोग करने के लिए आकर्षित किया है। सेल फोन, स्माइली और इमोटिकॉन्स के युग से बहुत पहले आविष्कार की गई, वारली पेंटिंग न केवल अपने देहाती आकर्षण के कारण आपके दिल को छूती हैं, बल्कि वे एक ज्वलंत कहानी भी बताती हैं। इस प्राचीन कला का आकर्षण ऐसा है कि आज यह कई होटलों की लॉबी और कमरों को भी गर्व से सजाती है। इन चित्रों में कुछ ऐसा है जो हमें कला के पीछे के समय और भावना में वापस ले जाता है - चाहे वह अंतिम संस्कार का दृश्य हो या आदिवासी देवताओं की पूजा करने का कार्य। आज, वारली कला न केवल बैंगलोर, चेन्नई और दिल्ली जैसे महानगरों में लोकप्रिय है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोकप्रिय है।

रोज़मर्रा की ज़िंदगी में वारली

कला प्रेमी जब अपनी जड़ों की ओर वापसी करते हैं तो जीवन के हर हिस्से में गर्व के साथ वारली रूपांकनों का प्रदर्शन करते हैं। परंपरागत रूप से, यह पेंटिंग लाल गेरू की पृष्ठभूमि पर सफ़ेद रंग से की जाती है और ये दो ही रंग इस्तेमाल किए जाते हैं। लेकिन, आजकल, कपड़ों, घर की सजावट या अन्य कलात्मक रूपों पर इन कलात्मक रूपांकनों को दोहराने के लिए कई तरह के रंगों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

इस कला से प्रेरणा लेने वाले सभी लोगों की जीवनशैली में यह इस कदर छायी हुई है कि हम सब इसकी समृद्धि से मोहित है। चमकीले रंग के छाते से लेकर कॉफी मग और चाय के कप, देहाती दीवार घड़ियाँ, दीवारों के लिए सजावट और स्टेशनरी तक - वारली लगभग हर जगह है और यह यहीं नहीं रुकता। वारली की कला हर भारतीय फैशन डिजाइनर की नई पसंदीदा है। रंग-बिरंगे स्कार्फ और कुर्तियों के बॉर्डर को सजाने से लेकर शानदार जूट और रेशम की साड़ियों को सजाने तक, वारली ने रैंप पर हमेशा के लिए अपना दबदबा बना लिया है।

सिर्फ़ कला ही नहीं

वारली कला कुछ हद तक हमें पर्यावरण के प्रति जागरूक होने और जीवन की सरल चीज़ों में आनंद खोजने के बारे में सोचने पर मजबूर करती है। वारली लोग काफ़ी सरल जीवन जीते हैं। पहले, वे प्रकृति की पूजा करते थे और भोजन और रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए प्रकृति पर निर्भर रहते थे। वे प्रकृति को नुकसान पहुँचाने या ज़रूरत से ज़्यादा लेने में विश्वास नहीं करते थे। वारली लोग प्रकृति और मनुष्य के बीच सामंजस्य में विश्वास करते हैं और ये विश्वास अक्सर उनकी पेंटिंग में झलकता है।

यह विचारधारा आज हमारे जीवन के लिए भी सही है। बहुत से शहरी लोग अब जहाँ तक संभव हो तकनीक से दूर रहकर, स्वच्छ भोजन करके, हथकरघा अपनाकर और प्राचीन रीति-रिवाजों और परंपराओं के पीछे के विज्ञान को करीब से देखकर एक न्यूनतम जीवन शैली अपना रहे हैं। इसलिए, यह बहुत आश्चर्य की बात नहीं है कि वारली जैसी पारंपरिक कलाएँ हमारे समाज में वापस आ रही हैं और हमें जीवन के सरल सुखों की याद दिला रही हैं। जनजातियों ने ज्ञान प्रदान करने के लिए वारली चित्रकला का भी उपयोग किया है। आज, यह चित्रकला के अन्य रूपों के बीच ऊँचा स्थान रखती है, जिसमें जिव्या माशे और उनके बेटे बालू और सदाशिव जैसे महाराष्ट्रीयन कलाकार इस कला रूप को जीवित रखने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। वास्तव में, माशे को इस कला रूप को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने के लिए 2011 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
हालांकि लोकप्रिय रूप से स्टिक फिगर के रूप में जाना जाता है, यह ध्यान रखना दिलचस्प होगा कि वारली पेंटिंग में कोई सीधी रेखा का उपयोग नहीं किया जाता है। वे आम तौर पर टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ, बिंदु, वृत्त और त्रिकोण होते हैं। मानव और पशु शरीर को दो त्रिभुजों द्वारा दर्शाया जाता है जो सिरे पर जुड़े होते हैं। उनका अनिश्चित संतुलन ब्रह्मांड के संतुलन का प्रतीक है, अनिवार्य रूप से अनुष्ठानिक, वारली पेंटिंग आमतौर पर विवाहित महिलाओं द्वारा शादी का जश्न मनाने के लिए बनाई जाती थीं। हालाँकि इनमें से बहुत सी पेंटिंग प्रजनन और समृद्धि से जुड़े अनुष्ठानों पर आधारित हैं, लेकिन उनमें हमेशा यथार्थवाद का स्पर्श होता है। चित्रों का उपयोग वारली जनजातियों की झोपड़ियों को सजाने के लिए भी किया जाता था, जो आमतौर पर गाय के गोबर और लाल मिट्टी के मिश्रण से बनाई जाती थीं।

दिलचस्प बात यह है कि इन चित्रों का केंद्रीय रूपांकन शिकार, मछली पकड़ने और खेती, त्योहारों और नृत्यों, पेड़ों और जानवरों के दृश्यों को चित्रित करता है। अनुष्ठानिक चित्रों के अलावा, अन्य वारली चित्र गांव के लोगों की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को चित्रित करते हैं। अधिकांश वारली चित्रों के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक "तरपा नृत्य" है - तारपा एक तुरही जैसा वाद्य यंत्र है, जिसे अलग-अलग पुरुषों द्वारा बारी-बारी से बजाया जाता है। जब संगीत बजता है, तो पुरुष और महिलाएं अपने हाथ मिलाते हैं और तारपा वादकों के चारों ओर घेरा बनाकर घूमते हैं। नर्तकियों का यह चक्र जीवन चक्र का भी प्रतीक है। हममें से कई लोग सोच सकते हैं कि एक कला रूप को लेकर इतना हंगामा क्यों है जो खुद को दो रंगों तक सीमित रखता है। लेकिन यह क्लासिक सादगी ही है जो इस कला को अव्यवस्था से अलग करती है।

कला को जीवित रखना

जबकि इस डिजिटल युग में इस तरह की कलाओं का अस्तित्व बचा पाना मुश्किल हो रहा है, कुछ विचारशील लोग परंपरा को जीवित रखने के लिए अपना योगदान दे रहे हैं। ऐसा ही एक प्रेरक स्थल ठाणे जिले का गोवर्धन इको विलेज है जो वारली कलाकारों को अपनी कला प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न मंच प्रदान करके इस कला को जीवित रखने का प्रयास करता है।

फरवरी 2016 में, जापानी कलाकारों के एक समूह ने कला को जीवित रखने के प्रयास में पालघर जिले के गंजद गाँव को गोद लिया। जापान के सामाजिक कलाकारों का यह समूह दीवारों पर पेंटिंग को बढ़ावा देने के लिए गाय के गोबर, मिट्टी और बांस की छड़ियों से झोपड़ियाँ भी बना रहा है। दहानू एक और गाँव है जो वारली कला को जीवित रखने में कामयाब रहा है। अतिशयता की दुनिया में, सादगी एक दुर्लभ वस्तु है और यह कला रूप उस विश्वास को जीवित रखता है।

कला से जुडे प्रोडक्ट देखने और खरीदने के लिए आप इस समूह से जुड़िए.

https://www.facebook.com/groups/CLUBV/


मंगलवार, 6 अगस्त 2024

कन्हाई की लीला से सजी साड़ियां – डा. अनुजा भट्ट

पिछवाई साड़ी और कन्हाई की कहानी


भारत का एक मशहूर राज्य है राजस्थान। मैं यहां से कई तरह के संग्रह आपके लिए लाती हूं। इसी तरह भारत के हर राज्य की कला और कलाकार से जुड़ने का अवसर भी मुझे मिलता है। यह सारा काम काफी श्रमसाध्य है पर मुझे आनंद आता है। मुझे यहां कई कहानियां और किवदंतियां मिलती है। जैसे जैसे राह चलती हूं ईश्वर और फैशन की गलियां पुकारने लगती हैं। आप जब कभी राजस्थान गए होंगे तब आपने नाथद्वारा में श्रीनाथ मंदिर अवश्य देखा होगा। राजस्थान के नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथ जी का मंदिर काफी लोकप्रिय जो है ।

श्रीनाथ जी मंदिर राजस्थान के राजसमंद जिले के नाथद्वारा शहर में स्थित है। यह उदयपुर से 50 किमी. और डबोक एयरपोर्ट से 58 किमी. दूरी पर स्थित है।

किंवदंती और इतिहास

श्रीनाथजी के स्वरूप या दिव्य रूप को स्वयं प्रकट कहा गया है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण की मूर्ति पत्थर से स्वयं प्रकट हैं और गोवर्धन पहाड़ियों से निकली हैं। ऐतिहासिक रूप से, श्रीनाथजी की मूर्ति की पूजा सबसे पहले मथुरा के पास गोवर्धन पहाड़ी पर की गई थी। मूर्ति को शुरू में मथुरा से यमुना नदी के किनारे 1672 ईस्वी में स्थानांतरित कर दिया गया था और लगभग छह महीने तक आगरा में रखा गया था, ताकि इसे सुरक्षित रखा जा सके। इसके बाद, मूर्ति को मुगल शासक औरंगजेब द्वारा किए गए बर्बर विनाश से बचाने के लिए रथ पर दक्षिण की ओर एक सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया। जब मूर्ति गांव सिहाद या सिंहद में पहुंची, तो बैलगाड़ी के पहिये जिसमें मूर्ति को ले जाया जा रहा था, मिट्टी में धंस गए और आगे नहीं ले जाया जा सका। पुजारियों ने महसूस किया कि यही विशेष स्थान भगवान का चुना हुआ स्थान है और तदनुसार, मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा राज सिंह के शासन और संरक्षण में एक मंदिर बनाया गया था। श्रीनाथजी मंदिर को 'श्रीनाथजी की हवेली' (हवेली) के रूप में भी जाना जाता है। मंदिर का निर्माण गोस्वामी दामोदर दास बैरागी ने 1672 में करवाया था।

मंदिर की मराठों द्वारा लूट

1802 में, मराठों ने नाथद्वारा पर चढ़ाई की और श्रीनाथजी मंदिर पर हमला किया। मराठा प्रमुख होल्कर ने मंदिर की संपत्ति के 3 लाख रुपये लूट लिए और पैसे वसूलने के लिए उसने मंदिर के कई पुजारियों को गिरफ्तार किया। मुख्य पुजारी (गोसाईं) दामोदर दास बैरागी ने मराठों के बुरे इरादे को महसूस करते हुए महाराणा को एक संदेश भेजा। श्रीनाथजी को मराठों से बचाने और देवता को मंदिर से बाहर निकालने के लिए महाराणा ने अपने कुछ खास लोगों को भेजा। वे श्रीनाथजी को अरावली की पहाड़ियों में मराठों से सुरक्षित स्थान घसियार ले गए। कोठारिया प्रमुख विजय सिंह चौहान को श्रीनाथजी की मूर्ति को बचाने के लिए मराठों से लड़ते हुए अपने आदमियों के साथ अपना जीवन देना पड़ा।

यह जानकारी कितनी रोमांचक है कि पिछवाई कला का विकास भी राजस्थान राज्य के औरंगाबाद गांव और नाथद्वारा में बनास नदी के तट पर अरावली पहाड़ियों में हुई । कलात्मक संदेश के जरिए पिछवाई का उद्देश्य अनपढ़ लोगों को कृष्ण की कहानियाँ सुनाना है। पिछवाई ' शब्द संस्कृत के शब्द ' पिच ' अर्थात पीछे और 'वाई' अर्थात लटकने से उत्पन्न हुआ है। ऐसा माना जाता है कि पिचवाई चित्रकला की उत्पत्ति लगभग 400 वर्ष पहले हुई थी। पिछवाई पेंटिंग प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके सूती कपड़े पर बनाई गई बड़ी आकार की पेंटिंग हैं और भगवान श्रीनाथ जी की मूर्ति के पीछे उनकी लीलाओं को दर्शाने के लिए लटकाई जाती हैं। भगवान कृष्ण के जीवन के दृश्यों, विशेष रूप से उनके बचपन की शरारतों को दर्शाती हैं।

पिछवाई साड़ी एक प्रकार की पारंपरिक भारतीय साड़ी है जिसमें पिछवाई पेंटिंग से प्रेरित डिज़ाइन होते हैं। पिचवाई साड़ियाँ अपने जीवंत रंगों, विस्तृत कलाकृति और भगवान कृष्ण और हिंदू पौराणिक कथाओं से संबंधित विषयों के लिए जानी जाती हैं। ये साड़ियाँ अक्सर समृद्ध रेशम या सूती कपड़ों से बनाई जाती हैं और इन्हें हाथ से पेंट किए गए या हाथ से कढ़ाई किए गए बेहतरीन डिज़ाइनों से सजाया जाता है जो पिचवाई कला के सार को दर्शाते हैं। वे अपने सांस्कृतिक महत्व और दृश्य के कारण विशेष अवसरों, त्योहारों और शादियों के लिए लोकप्रिय हैं।

पिचवाई साड़ियाँ कला और फैशन का एक सुंदर मिश्रण हैं, जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करती हैं। वे अपनी जटिल शिल्प कौशल के लिए जानी जाती हैं। पिचवाई पेंटिंग साड़ियों को उनकी सौंदर्य सुंदरता और सांस्कृतिक महत्व के लिए अत्यधिक माना जाता है। जो पिचवाई पेंटिंग में पाई जाने वाली जटिल और विस्तृत कलात्मकता से मिलते जुलते हैं। इन डिज़ाइनों में अक्सर भगवान कृष्ण, राधा और अन्य संबंधित आकृतियों के चित्रण के साथ-साथ मोर, गाय, कमल के फूल और हरे-भरे परिदृश्य जैसे तत्व शामिल होते हैं, जो सभी पिचवाई कला की विशेषता हैं। यह साड़ियां व उन लोगों द्वारा पसंद की जाती हैं जो पारंपरिक भारतीय कला रूपों और फैशन दोनों की सराहना करते हैं।

अगर आप कला प्रेमी है और इस तरह की साड़ी खरीदना चाहते हैं तो मुझसे संपर्क कर सकते हैं। 8826016792
https://www.facebook.com/groups/CLUBV/




शुक्रवार, 2 अगस्त 2024

शिवरात्रि शिवजी और उनकी सवारी की कहानी- डॉ अनुजा भट्ट

नंदी की कहानी

शिव के एक गण का नाम है नंदी। जिस तरह गायों में कामधेनु श्रेष्ठ है उसी तरह बैलों में नंदी श्रेष्ठ है। आमतौर पर खामोश रहने वाले बैल का चरित्र उत्तम और समर्पण भाव वाला बताया गया है। इसके अलावा वह बल और शक्ति का भी प्रतीक है। बैल को मोह-माया और भौतिक इच्छाओं से परे रहने वाला प्राणी भी माना जाता है। यह सीधा-साधा प्राणी जब क्रोधित होता है तो सिंह से भी भिड़ लेता है। यही सभी कारण रहे हैं जिसके कारण भगवान शिव ने बैल को अपना वाहन बनाया।

पौराणिक कथा अनुसार शिलाद ऋषि ने शिव की तपस्या के बाद नंदी को पुत्र रूप में पाया था। नंदी को उन्हों वेदादि ज्ञान सहित अन्य ज्ञान भी प्रदान किया। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नाम के दो दिव्य संत पधारे और नंदी ने पिता की आज्ञा से उनकी खूब सेवा की। जब वे जाने लगे तो उन्होंने ऋषि को तो लंबी उम्र और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया लेकिन नंदी को नहीं। तब शिलाद ऋषि ने उनसे पूछा कि उन्होंने नंदी को आशीर्वाद क्यों नहीं दिया?

तब संतों ने कहा कि नंदी अल्पायु है। यह सुनकर शिलाद ऋषि चिंतित हो गए। पिता की चिंता को नंदी ने भांप कर पूछा क्या बात है तो पिता ने कहा कि तुम्हारी अल्पायु के बारे में संत कह गए हैं इसीलिए चिंतित हूं। यह सुनकर नंदी हंसने लगा और कहने लगा कि आपने मुझे भगवान शिव की कृपा से पाया है तो मेरी उम्र की रक्षा भी वहीं करेंगे आप क्यों नाहक चिंता करते हैं। इतना कहते ही नंदी भुवन नदी के किनारे शिव की तपस्या करने के लिए चले गए। कठोर तप के बाद शिवजी प्रकट हुए और कहा वरदान मांगों वत्स। तब नंदी के कहा कि मैं ताउम्र आपके सानिध्य में रहना चाहता हूं।

नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया। भगवान शिव के हर मदिर में नंदी जी विराजमान हैं। ऐसा कहा जाता है कि जहां नंदी नहीं होते हैं वहां शिव जी का निवास भी नहीं होता है। वहीं, जब भी हम दर्शन करने के लिए शिवालय जाते हैं तो नंदी की प्रतिमा के कान में अपनी मनोकामना जरूर कहते हैं। यह सदियों से चली आ रही मान्यता भी है और साथ ही, भगवान शिव द्वारा दिया गया नंदी जी को एक वरदान भी, लेकिन क्या आपको पता है कि नंदी के कौन से कान में कहनी चाहिए अपनी इच्छा। भगवान शिव ने नंदी जी को जो वरदान दिया था उसके अनुसार, अगर शिव पूजन करने के बाद मौन रखते हुए नंदी के पास जाकर उनके बाएं कान में जो व्यक्ति अपनी इच्छा कहेगा वह अवश्य पूरी होगी।

चूंकि पवित्र बैल भगवान शिव का वाहन और द्वारपाल है, इसलिए उन्हें उनके मंदिरों में एक मूर्ति के रूप में रखा जाता है। आमतौर पर, आप उन्हें अपने अंगों को मोड़कर बैठे हुए देखेंगे।नंदी ने धर्म रुपी दाहिने पैर को बाहर रखा है। अर्थात धर्म के महत्व को दर्शाता है। जबकि काम और मोक्ष रूपी पैर को अंदर रखते हुए यह संदेश दिया है कि धर्म का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होना चाहिए।  वह घंटी के साथ एक हार पहनता है और रंग में या तो काला या सफेद होता है।  मुकुट और मालाएं उनके सुंदर परिधान और गहनों को सुशोभित करती हैं। 

देवी पार्वती ने नंदी को श्राप दिया था, लेकिन क्यों?
 एक बार, भगवान शिव और देवी पार्वती कैलाश पर्वत पर पासा का खेल खेल रहे थे। अनुमान लगाइए कि अंपायर कौन था? कोई और नहीं बल्कि नंदी। भले ही देवी ने खेल जीत लिया, लेकिन उन्होंने भगवान शिव को विजेता घोषित कर दिया। इससे देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने उसे श्राप दे दिया। नंदी ने अनुरोध किया कि श्राप हटा लिया जाए, यह दावा करते हुए कि उसके कार्य भगवान के प्रति उसके प्रेम से प्रेरित थे। फिर उसने कहा कि नंदी श्राप से मुक्त हो सकता है यदि वह अपने पुत्र, भगवान गणेश की उनके जन्मदिन पर पूजा करे। पवित्र हिंदू महीने भाद्रपद की चतुर्दशी को नंदी ने भगवान गणेश की पूजा की और प्रायश्चित के रूप में उन्हें हरी दूब भेंट की। तब से,अधिकांश भक्त हर साल गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश को हरी दूब का प्रसाद चढ़ाते हैं।
आप अपने घर पर छोटे शिवलिंग के साथ नन्हा नंदी भी रख सकते हैं उनकी पूजा कर सकते हैं।
 आपको यह कहानी कैसी लगी ....

  






मंगलवार, 30 जुलाई 2024

कविता-दहलीज पर कदमों का क्रास-डॉ अनुजा भट्ट



दहलीज पर कदमाें का क्रास
एक पांव दहलीज के बाहर जा रहा है
सपनाें की उड़ान और कशमकश के बीच
आसमान में उड़ती पतंग काे देख रही 
हाथ में डोर लिए एक।
 युवा और किशाेराें के बीच स्वतंत्रता दिवस की परेड
खुद काे रील बनते देख बेबस है
उधर माझा और पतंग
चीन और भारत
उम्मीद और हादसा में बदल रहा है। 
 इस बीच यह कविता लिखी जा रही है।
 दूसरा  पांव दहलीज के भीतर आ रहा है
अपने भीतक दर्द और बेबसी के छींटे लिए 
 अपनी जिद और शर्ताें के बीच
समन्वयविहीन रिक्त स्थान की तलाश में
 वक्त कहता है 
 अब इस रिक्तता काे
 मन के कोने में
 मंदिर के दिये में
 ईश्वर को अर्पित पुष्प में
गरीब की झोली में
 आंखों में काजल की जगह बसा लाे।
दाेनाे पांव आपस में टकरा रहे हैं
दाेनाे पांव अपनी यात्रा में डगमग हैं
दाेनाें की साेच में जमीन आसमान का अंतर है
एक के लिए मुखर हाेना
 असंसदीय और अमानवीय भाषा है
दूसरे के लिए विश्वधरती पर सृजित 
एक नई स्त्री का आगमन है।
एक कदम और दूसरा कदम
कदमताल मिलाती पंद्रह अगस्त की उस झांकी से
 जा मिला है जहां यह दाेनाें की  निर्थक हैं।
रील में तो हैं रियल में नहीं।


सोमवार, 29 जुलाई 2024

घर के सजाने के मेरे 5 मंत्र – डॉ. अनुजा भट्ट

घर सजाने के 5 मेरे मंत्र

मैं चाहती हूं मेरा घर मुझे हमेशा जीवंतता का अहसास कराएं। मैं खुद को प्रकृति के नजदीक रखना पसंद करती हूं। बहुत बार ये कर पाती हूं और बहुत बार असफल भी हो जाती हूं। पौधें सूख जाते हैं तो अच्छा नहीं लगता। इस बार इतनी गर्मी पड़ी कि मेरे लगाए पौधें सूख गए। फिर मैंने कुछ और प्रयोग किए।

आज जब ट्रेंड सेटर्स कहते हैं कि घर के अंदरूनी हिस्सों में फूलों की सजावट की वापसी हो रही है, तब मुझे हंसी आती है। मैं मानती हूं कि फूलों की सजावट कभी खत्म नहीं हुई या इसका आकर्षण कभी खत्म नहीं हुआ। समय-समय पर, फूलों ने घर की जगहों को जीवंत करने और उनमें नई जान डालने का मार्ग प्रशस्त किया है। चाहे वह एकल फूलों के गुच्छे हों, या अलग अलग फूलों के गुच्छे आपके घर को ताज़गी और नए रूप से सजाने के लिए उनके साथ बहुत कुछ कर सकते हैं।

अगर आपके पास ताजे फूल नहीं हैं ते आप घर की सजावट के लिए फ्लोरल प्रिंट और पैटर्न का इस्तेमाल कर सकती हैं। विंटेज फ्लोरल का आकर्षण अभी भी एक क्लासिक है और उन लोगों के बीच पसंदीदा है जो मिनिमलिस्टिक सजावट पसंद करते हैं। नए जमाने के, समकालीन फ्लोरल डेकोर में प्रिंट, मिक्स-मैच पैटर्न, शामिल है। मैं आपको यहाँ अपने रूचि और व्यक्तिगत शैली के अनुसार फ्लोरल प्रिंट से सजाने के पाँच शानदार तरीके बता रही हूं, ताकि आप अपने इंटीरियर को नए फ्लोरल मोटिफ, असंख्य रंगों और लुभावने प्रकृति-प्रेरित पैटर्न से सजा सकें।

1. फ्लोरल वॉलपेपर और वॉल आर्ट- फ्लोरल प्रिंट से किसी भी दीवार को नया रूप दिया जा सकता है। अगर आप विंटेज लुक की तलाश में हैं, तो आप अपनी दीवार के फ्लोरल प्रिंट वॉलपेपर का विकल्प चुन सकते हैं। आपके बिस्तर की पिछली दीवार फ्लोरल वॉलपेपर या फ्लोरल वॉल आर्ट के लिए आदर्श है। और, लिविंग स्पेस के लिए, आप अपनी पसंद और मूड के अनुसार कोने की दीवार या बीच की दीवार चुन सकते हैं। हालाँकि, जब आप फ्लोरल वॉलपेपर या वॉल आर्ट के लिए जा रहे हों, तो आपके द्वारा चुने गए रंग और पैटर्न आपके घर की सजावट और व्यक्तिगत पसंद के अनुरूप होने चाहिए। इसलिए, अगर आप गहरे रंग पसंद करने वाले व्यक्ति हैं, तो आप गहरे रंगों में बोल्ड फ्लोरल प्रिंट चुन सकते हैं। लेकिन, अगर आप मिनिमलिज्म में ज़्यादा रुचि रखते हैं, तो पेस्टल शेड्स ज़्यादा उपयुक्त रहेंगे।

2. फ्लोरल फर्निशिंग- फ्लोरल डेकोरेशन आइडियाज़ में, सबसे आसान और सुपर-किफ़ायती तरीका है फर्निशिंग। अगर आप फ्लोरल बेडरूम डेकोर के लिए जा रहे हैं, तो हैंड ब्लॉक प्रिंटेड फ्लोरल बेडशीट क्लासिक हैं जिन्हें आप बिल्कुल भी मिस नहीं कर सकते। आप रजाई, दोहर और दूसरे फ्लोरल लिनेन के साथ फ्लोरल टच को बढ़ा सकते हैं। लिविंग रूम और दूसरी जगहों के लिए, आप फ्लोरल कुशन कवर, टेबल रनर और मैट के साथ प्रयोग कर सकते हैं और यहां तक ​​कि अपने सोफ़ा सिटिंग एरिया में फ्लोरल रग का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। याद रहे फ्लोरल प्रिंट के प्रकार और आकार का चयन करते समय अपनी व्यक्तिगत पसंद न भूलें।

3. फ्लोरल फिक्सचर- अगर आप फ्लोरल प्रिंट और पैटर्न के साथ अपने घर की सजावट चाहते हैं, तो अपने अपहोल्स्ट्री, पर्दों और ब्लाइंड्स में फूलों की खूबसूरती को शामिल करने के कुछ तरीके बताती हूं। समकालीन आधुनिक फ्लोरल प्रिंट और पैटर्न के साथ, फ्लोरल सोफा सेट, डाइनिंग टेबल चेयर और पर्दों में बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं। हालाँकि, यह फ्लोरल में एक स्थायी और दीर्घकालिक निवेश है, इसलिए आपको कुछ महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना चाहिए जैसे कि आप किस तरह के फ्लोरल प्रिंट का उपयोग करना चाहते हैं, कपड़े की स्थायित्व और अनुभव, रंग संयोजन आदि के बारे में गंभीरता से विचार करें।

4. फ्लोरल एक्सेसरीज़- छोटे-छोटे डेकोरेशन जिसमें फ्लोरल प्रिंट हो उनसे भी आप सजावट कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, दीवार पर कुछ फूलों की पेंटिंग लगाने से फूलों को महसूस कर सकते हैं, लेकिन यह नियम हर जगह फिट नहीं होता। फूलों की लाइटिंग एक और एक्सेसरी है जो आपके घर की सजावट में एक नाजुक स्पर्श जोड़ देगी और आपके स्थान को जीवंत बना देगी। फूलों की टेबल एक्सेसरीज, मेटल आर्ट आइटम, मिरर, आदि, आपके लिविंग स्पेस में विंटेज फ्लोरल या कंटेम्पररी फ्लोरल एलिगेंस की सही मात्रा जोड़ सकते हैं।

5. कुछ असली फूलों को शामिल करें। अब, फूलों के साथ काम करने का सबसे आसान और ताज़ा तरीका है प्राकृतिक तरीके से काम करना। मेरा कहना है कि आपको केवल फूलों के प्रिंट और पैटर्न की आवश्यकता क्यों है, जब आप उन्हें असली में पा सकते हैं। है न? अपने घर की सजावट में अधिक पौधे शामिल करें और देखें कि यह आपके माहौल को जीवंत बनाने में कितना कमाल करते हैं। यह न केवल आपके घर को ताज़गी प्रदान करते हैं बल्कि इनडोर पौधे हवा को शुद्ध करने, मूड को आराम देने और तनाव को दूर करने का काम भी कर सकते हैं। कुछ इनडोर पौधों के अलावा, आप अपनी बालकनी, बगीचे या छत के बगीचे में कई तरह के फूल खिलने वाले पौधे भी लगा सकती हैं। मेरा विश्वास करें, वे आपके घर की शैली और आपके माहौल को और भी बेहतर बना देंगें। जीवन में निरंतर प्रयोग करें। मेरी आपको सलाह है घर की सजावट में चाहे वह फ्लोरल हो या कुछ और भी, नई चीजों को आजमाने से न डरें। आपको मेरा ब्लाद कैसा लगा यह जरूर बताइएगा। हमारे प्रोडक्ट के लिए हमारे फेसबुक समूह से भी जुड़िए। वहां ढेरों विकल्प आपका इंतजार कर रहे हैं।

https://www.facebook.com/groups/CLUBV/



रविवार, 28 जुलाई 2024

नील छवि एक रिश्ता दर्द भरा- महाश्वेता देवी- समीक्षा डॉ अनुजा भट्ट

सुप्रसिद्ध लेखिका महाश्वेता देवी जी की पुण्य तिथि पर                                  जी पुण्यतिथि

महाश्वेता देवी का उपन्यास नील छवि आज के समाज की विसंगति को दर्शाता है । इस विसंगति की मुख्य वजह है ऐसी महत्वाकांक्षा जिसे बिना पैसे के हासिल किया जा सके और उसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहा जाए। ऐसी महत्वाकांक्षी लोग फिर न रिश्तों को देखते हैं और न ही व्यक्ति की संवेदना को। सिर्फ पैसों की खनक सुनाई देती है और जब यह पैसों की खनक न सुनाई दे तो सारे रिश्ते खतम हो जाते है। नील छवि में ऐसी दो विचारधाराएं हैं। एक के लिए रिश्तों का अर्थ है और वह उनको बनाए रखने के लिए कुछ भी कर सकता है और दूसरी विचारधारा में पैसे के लिए किसी से भी कभी भी रिश्ता जोड़ा या तोड़ा जा सकता है। महत्वाकांक्षा के लिए स्त्री किसी भी हद तक जाती है तो अपनी पहचान को बनाने के लिए जोखिम भरे काम को करने वाला पुरुष भी है। इन दोनों के बीच में संतान है जिसका किसी भी तरह का कोई भी संस्कार विकसित नहीं हो पाता और वह दिशाविहीन जीवन की ओर कदम बढ़ाते बढ़ाते लडख़ड़ाने लगती है और एक दिन गायब हो जाती है। तब जाकर स्त्री पुरूष यानी उसके माता पिता को अहसास होता है।
पुरूष स्वाबलंबी है पर महत्वाकांक्षी नहीं पर समाज के लोग उसे महच्वाकांक्षी बनाने पर तुले है और उसके बहाने कई तरह के व्यापार कर रहे हैं। लेकिन वह हमेशा हाशिए में खड़े लोगों की मदद करता है चाहे वह कोई भी क्यों न हों। उसका स्वभाव खोजी है और वह हर रोज कुछ नया खोजने के लिए कई तरह की सुरंगों से गुजरता है। पर जब खोजी पत्रकारिता के जरिए वह अपनी बेटी को ढूंढ रहा होता है जो ब्लू फिल्म बनाने वाले गिरोह में फंस गई है तब वह सवाल करता है कि हम सब अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए या अपने सपनों को पूरा करने की जिद में अपने बच्चों से कितने दूर हो गए है हमारे पास उनके लिए समय नहीं है और वह भटक रहे हैं। हम उनको पैसा दे रहे हैं उनके मंहगे शौक पूरे कर रहे हैं, उनको पूरी आजादी दे रहे हैं पर क्या परवरिश का यह तरीका ठीक है?
कहानी के ताने बाने इतने सघन है कि पढ़ते हुए लगता है जैसे आप कोई फिल्म देख रहे हैं। कहीं भी लोच नहीं एकदम कसी हुई कहानी।
यर्थाथवादी और भावुकतावादी दो व्यक्तित्व जब मिलते हैं तो किस तरह का जीवन होता है यह इस उपन्यास को पढक़र जाना जा सकता है जहां एक व्यक्ति रिश्तों को असहमति के बाद भी महसूस करता है और दूसरा व्यक्ति रिश्ते का अर्थ समझ ही नहीं पाता और जब समझ आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। संतान के लिए माता पिता दोनो के कर्तव्य हैं पर कानून संतान को मां के हवाले करता है और पिता संतान से दूर हो जाती है। रह जाती है सिर्फ मां । ऐसे में पिता अपनी भावनात्मक मजबूती को कैसे बनाए यह सवाल भी बड़ी शिद्दत के साथ उठाया गया है। क्या पिता का अपनी संतान पर कोई हक नहीं कि वह उसकी परवरिश के बारे में सोचे। इस उपन्यास में पिता अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करता है और अपनी जान को जोखिम में डालकर अपनी बेटी को उस गिरोह से निकाल लाता है। वह अपनी बेटी की सुरक्षा, उसकी भावनाओं के लिए इतना ज्यादा संवेदनशील है कि वह वहां से सारी सीडी भी लेकर आता है जिसमें उसकी बेटी है। वह अपनी पत्नी से किसी से भी इन बातों का जिक्र करने से मना करता है। घर के मान, बेटी की इज्जत की उसको परवाह है। वह उसे मुख्यधारा में लाने की कोशिश करता है उसका इलाज करवाता है। उससे मुक्त नहीं होना चाहता। वह अपनी बेटी से नाराज नहीं बल्कि उसे ग्लानि है कि उसके कदम अगर बहके तो उसके लिए यह समाज जिम्मेदार है जो भौतिकतावादी रहन सहन को महत्व देता है जहां भावनाओं का नहीं पैसे का असर है। इसकी वजह से उसकी पत्नी प्रभावित हुई और उसे लगा कि पैसा ही सबकुछ है। इसके लिए उसने अपने पति को छोड़ दिया। जिन लोगों का साथ उसने चुना उन्हीं लोगों ने उसकी बेटी को अपना निशाना बनाया। वह यह सब समझ नहीं पाई क्योंकि उसे बस पैसे कमाने थे। उसने बहुत पैसे कमाएं। बेटी को उसने बहुत सारे पैसे दिए पर समय नहीं। इच्छाएं उसके मन में भरी पर प्रेम नहीं। इसी प्रेम की तलाश में उसकी संतान भटक गई।
यह उपन्यास वस्तुतः हमारे आधुनिक नगरीय समाज की खोखली होती नैतिक मान्यताओं और बीभत्स स्थितियों का बड़ा ही मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है। ‘ड्रग्स’ और ‘ब्लू फ़िल्म’ किस तरह हमारे आधुनिक समाज की जड़ों को खोखला कर रहे हैं, इसका बेहद तीखा और यथार्थपरक चित्रण इस रचना में किया गया है। इसके अलावा पत्रकारिता, कला-जगत, और तथाकथित उच्चवर्गीय जीवन की विषमताओं और विडम्बनाओं का साक्षात्कार है ।
कथा में उत्तेजना, जिज्ञासा और आतंक का वातावरण अन्तिम पृष्ठ तक व्याप्त रहता है। एक अत्यन्त पठनीय, रोचक तथा विचारोत्तेजक कृति। आपको मौका लगे तो इस उपन्यास को जरूर पढ़ें।
नील छवि
महाश्वेता देवी राधाकृष्ण प्रकाशन

शनिवार, 27 जुलाई 2024

बारिश के माैसम में बात करेंगे फैशन की - डा. अनुजा भट्ट

पीच शेड पीच एक ऐसा कलर है जो डार्क और लाइट हर तरह के टोन के साथ मैच करता है

रिमझिम फुहार हाे और पार्टी करने का मन हाे  खाने पीने का सब बंदोबस्त हाे ताे बस एक सवाल परेशान कर देता है । आज पहने क्या। ताे दाेस्ताें जब माैसम में इतनी ताजगी हाे और हरियाली बिखरी हो तो ग्रीन कलर फ्रेशनेस का प्रतीक मान लेने में हर्ज ही क्या है। यह वैसे भी मॉनसून के लिए परफेक्ट माना जाता है। साथ ही हर तरह के कॉप्लेक्शन पर यह कलर सूट करता है। अगर आपको वॉर्म टोन वाले कलर्स ज्यादा पसंद हैं तो आप मस्टर्ड ग्रीन, खाकी और डार्क ग्रीन के शेड्स पहन सकती हैं और अगर कूल टोन वाले कलर्स पसंद हैं तो ब्राइट ग्रीन या पैरट ग्रीन कलर के ऑप्शन्स पर जाएं। वाइट या येलो जैसे ब्राइट कलर्स के साथ भी आप ग्रीन को मिलाकर पहन सकती हैं।
पीच शेड पीच एक ऐसा कलर है जो डार्क और लाइट हर तरह के टोन के साथ मैच करता है और मॉनसून के लिहाज से एक क्लासिक शेड है। वैसे तो इस कलर को हर तरह के स्टाइल वाले कपड़ों में पहन सकती हैं लेकिन चूंकि इन दिनों बेल स्लीव्स का फैशन जोरों पर है लिहाजा आप पीच कलर का बेल स्लीव टॉप या शॉर्ट ड्रेस ट्राई कर सकती हैं। साथ ही अपनी ही ड्रेस को हाइलाइट करने के लिए इसे अच्छी तरह से अक्सेसराइज करना न भूलें।
चॉकलेट ब्राउन की बात करूं तो एक वक्त था जब चॉकलेट ब्राउन को सिर्फ ट्रेंच कोट या बूट्स के कलर के तौर पर ही देखा जाता था लेकिन आज के समय में यह कलर यूथ को काफी पसंद आ रहा है। खासकर अगर आप मॉनसून के सीजन में किसी पार्टी में जा रही हैं तो चॉकलेट ब्राउन कलर की मैक्सी पार्टी ड्रेस आपके लिए क्लासी ऑप्शन है।
मॉनसून के दौरान मरून कलर की मैक्सी ड्रेस, जंपसूट, ऑफ शोल्डर टॉप, रफल्स टॉप, कोल्ड शोल्डर टॉप और ड्रेसेज के साथ शॉर्ट ड्रेसेज की भी मांग बढ़ गई है। चूंकि आजकल लोग फैशन में एक्सपेरिमेंट करना ज्यादा पसंद करते हैं लिहाजा आप भी चाहें तो अपने कंफर्ट के हिसाब से चेंज कर सकती हैं।
 तो आपकी क्या राय है।  इस तरह के ढ़ेर सारे आप्शंस के लिए आप हमारे फेसबुक ग्रुप में क्लिक कर सकते हैं।   
https://www.facebook.com/groups/CLUBV/

शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

साड़ी का भी ख्याल रखिए- डा. अनुजा भट्ट


बहुत बार हम मंहगी साड़ी खरीद लेते हैं पर उसके रखरखाव के बारे में नहीं जानते इस कारण साड़ी खराब भी हाे जाती है और उससे ज्यादा हमारी भावनाएं आहत हाेती है। साड़ी के साथ महिलाओं का गहरा लगाव हाेता है। इसलिए मैंने साेचा कि आपसे इस बारे में थाेड़ी बातचीत की जाए। हमारे पास ऐसे प्राेडक्ट है जाे आपकी उलझन सुलझा सकते हैं।
साड़ी की गुणवत्ता बनाए रखना उसकी लंबी इम्र सुनिश्चित करने और जटिल डिज़ाइन को संरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
1. साड़ी को हाथ से धोएं:साड़ियों को हल्के डिटर्जेंट और ठंडे पानी का उपयोग करके हाथ से धोना चाहिए। गर्म पानी या कठोर डिटर्जेंट का उपयोग करने से बचें क्योंकि वे कपड़े और डिज़ाइन को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

2. साड़ी को बहुत अधिक देर तक भिगोकर न रखें क्योंकि इससे उसका रंग उड़ सकता है और वह फीकी पड़ सकती है।

3. सीधी धूप से बचाएं: साड़ियों को छाया में सुखाना चाहिए और सीधी धूप से दूर रखना चाहिए क्योंकि धूप के संपर्क में आने से रंग फीका पड़ सकता है।

4. कम तापमान पर इस्त्री करें: साड़ी को कम तापमान पर इस्त्री करें ताकि कपड़े और डिज़ाइन को नुकसान न पहुंचे। डिज़ाइन पर सीधे इस्त्री करने से बचें क्योंकि इससे वे फट सकते हैं या छिल सकते हैं।

5. साड़ी को सही तरीके से स्टोर करें: साड़ी को ठंडी, सूखी जगह पर सीधी धूप से दूर रखें। साड़ी को प्लास्टिक की थैलियों में रखने से बचें क्योंकि वे कपड़े को सांस लेने नहीं देती हैं। इसके बजाय, साड़ी को सूती या मलमल के बैग में रखें।

6. साड़ी को सावधानी से संभालें: कलमकारी साड़ियों को सावधानी से संभालना चाहिए क्योंकि डिज़ाइन नाज़ुक होते हैं और आसानी से खराब हो सकते हैं। साड़ी पहनते समय उसे खींचने या खींचने से बचें।

हमारे पास आर्गनाइजर हैं आप खरीद सकते हैं। विवरण इस प्रकार है-
CM में आयाम: - लंबाई (45) x चौड़ाई (35) x ऊंचाई (18) CM | इंच में आयाम: लंबाई (17.71) x चौड़ाई (13.77) x ऊंचाई (7.08) इंच
पैकेज में शामिल: 4 बड़े साड़ी कवर; मटीरियल: कॉटन हवा पार होने योग्य फ़ैब्रिक.
क्लियर विजिबिलिटी और इंस्टेंट लुक के लिए पारदर्शी फ्रंट विंडो.
लंबे जीवन उच्च गुणवत्ता वाली साड़ी कवर बैग आपकी महंगी और पसंदीदा साड़ियों को व्यवस्थित करने में मदद करता है।
धूल, नमी और पतंगों से अपनी पसंदीदा सिल्क/कॉटन साड़ी को रोकें।
कॉटन साड़ी कवर: सोल साड़ी कवर / बैग उच्च गुणवत्ता वाले 250 GSM टिकाऊ कॉटन मटीरियल से बना है. यह कपड़े का है ताकि आप गंदे होने पर धोने के बाद इसका उपयोग कर सकें। कपास सामग्री प्लास्टिक और भंडारण उद्देश्य के लिए गैर बुना जैसी अन्य सामग्री पर अत्यधिक बेहतर है। मटीरियल सॉफ्ट है और यह आपकी कीमती साड़ी, ड्रेस, लहंगा और अन्य ऑउटफिट की सुरक्षा करता है।
क्लोज़र और स्टिचिंग: ये साड़ी कवर मेटल रनर के साथ ज़िप क्लोज़र के साथ आता है। बैग की सिलाई प्रशिक्षित महिलाओं के साथ की जाती है।
साइज़ और मात्रा: बैग 16 X 14 इंच का है और पैकेज में कुल 12 यूनिट कवर है।
देखभाल: साड़ी बैग धोने योग्य और पुन: प्रयोज्य हैं इसलिए नियमित भंडारण उपयोग के लिए आपको कुछ समय बाद कवर धोने की आवश्यकता होती है। हल्के डिटर्जेंट का उपयोग करें और गर्म पानी का उपयोग न करें। धोने के बाद कृपया बैग को आयरन करें ताकि यह फ्रेश लुक में आए।


कृपया हमसे जुड़े
https://www.facebook.com/groups/CLUBV/

गुरुवार, 25 जुलाई 2024

निर्मला सीतारमन को पंसद है बनारसी साड़ी

 

देश की पहली महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट के साथ ही अपने देश की संस्कृति और कला का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। कला कारीगरी और फैशन के रूझान पर भी उनकी नजर उतनी ही सक्रिय है जितनी बजट पर।  निर्मला सीतारमण का वित्त मंत्री के रूप में ये लगातार सातवां बजट रहा है. हर बार उनकी साड़ी आकर्षण का केंद्र बनती है। इस बार उन्होंने बनारसी सिल्क  की ऑफ व्हाइट कलर की साड़ी पहनी जिसके साथ डार्क पर्पल कलर का ब्लाउज पहना है. जिसपर गोल्डन जरी का काम  है।

 दरअसल सीतारमन काे काशी और कांची दोनों जगह बहुत पसंद है। कार्यक्रम में शिरकत करते समय अधिक्तर वह साड़ी में ही नजर आती हैं। साड़ी पहनने का तरीका उनका एक जैसा ही रहता है।   बेहतरीन डिजाइन के कारण  बनारसी साड़ी उनकी पसंदीदा साड़ी है। साथ ही गर्मियों में बहुत कंफर्टेबल रहती है. इसकी पहचान इसके मुलायम और चमकदार सिल्क धागों से होती है. साड़ी के पल्लु के किनारों को छुने से इसकी पहचान आसानी से की जा सकती है।
बनारसी सिल्क साड़ी में क्या है खास?
बनारसी सिल्क साड़ी अट्रैक्टिव लुक देती है. साथ ही ये साड़ी तपती गर्मी के दौरान आराम भी देती है. बनारसी सिल्क साड़ी उत्तर-प्रदेश के बनारस, चंदौली, आजमगढ़, जौनपुर, मिर्जापुर और संत रविदास नगर जिले में बनाई जाती हैं. इसे बनाने के लिए कच्चा माल बनारस से आता है. कई साड़ियों को बनाने के लिए शुद्ध सोने की जरी का उपयोग किया जाता है. जिसके कारण उसकी कीमत बहुत बढ़ जाती है. लेकिन आजकल बाजार में नकली चमकदार जरी का काम की हुई साड़ी भी मिल जाती है.
बनारसी साड़ियों की एक और खासियत है कि ये भारतीय संस्कृति की पहचान और शान का प्रतीक मानी जाती है. बनारसी सिल्क साड़ियों का निर्माण उच्च गुणवत्ता और मजबूत कपड़े से होता है. इसे कारीगरों द्वारा हाथ से बनाया जाता है. इसमें कई तरह के माेटिफ और पैटर्न हाेते हैं। बूटी, बूटा, बेल, जाल, जंगला और कोनिया शामिल हैं.
बनारसी सिल्क साड़ी के प्रकार
बनारसी सिल्क बहुत तरह की होती है. जिसमें कॉटन बनारसी साड़ी, बनारसी सिल्क साड़ी, तुस्सर बनारसी साड़ी, काटन बनारसी साड़ी और ऑरंगजा बनारसी साड़ी शामिल है. हर एक साड़ी भी अपनी विशेषता होती है. कृपया हमारे फेसबुक समूह से जुड़े। खरीददारी करें।
  https://www.facebook.com/groups/CLUBV/

कलमकारी साड़ी और आपका स्टाइल- डॉ अनुजा भट्ट


जब भी हम साड़ी या कोई ड्रेस पहनते हैं ताे सबसे पहले यह सवाल जरूर आता है कि इसके साथ क्या अच्छा लगेगा। खासकर अगर आप काेई कलात्मक साड़ी पहन रही हाें ताे। आज मैं आपकाे कलमकारी साड़ी के साथ आप पर कौन सा स्टाइल जचेंगा इस पर बात करूंगी। सच कहूं तो कलमकारी साड़ी को स्टाइल करना एक मज़ेदार और रचनात्मक प्रक्रिया हो सकती है, क्योंकि ये साड़ियाँ एक्सेसरीज़ के लिए बहुत सारे विकल्प प्रदान करती हैं ।


 आभूषण: कलमकारी साड़ियाँ अक्सर काफी रंगीन और इसके डिजाइन बहुत सघन हाेते हैं इसलिए हलके आभूषण पहनें । आप लुक को पूरा करने के लिए छोटे झुमके या स्टड, एक साधारण हार और एक कंगन या चूड़ी पहन सकती हैं। वैकल्पिक रूप से, आप अपने पहनावे में झुमके या पारंपरिक दक्षिण भारतीय आभूषण भी पहन सकते हैं।

फुटवियर: कलमकारी साड़ी के साथ आप कई तरह के फुटवियर पहन सकती हैं। आजकल डिजाइनर जूतियां बहुत पसंद की जा रही हैं। इसमें राजस्थानी से लेकर पंजाबी तक के कई डिजाइन मिल जाते हैं। इसे माेजरी भी कहते हैं। इसके अलावा स्लाइडर में भी ट्रेंड में है। ज्यादातर फ्लैट-हील, बैकलेस और ओपने टो होते हैं. इस तरह की चप्पल पहनने में बेहद हल्की और दिखने में काफी अट्रैक्टिव होती हैं. स्लाइडर कैजुअल और अट्रैक्टिव लूक देने में मदद करते हैं. हील्स साड़ी काे खास बना देती है। हाई-हील होने के कारण इस तरह के फुटवियर आपको लंबा दिखाने में मदद करते हैं. हालांकि हील्स पहनने में उतने आरामदायक नहीं होते पर पहने जाने पर ये आपके आउटफिट को काफी खूबसूरत बना सकते हैं.

 मेकअप- आप ब्लश, न्यूट्रल लिप कलर और हलका आई मेकअप कर सकती हैं। मेकअप से पहले अपने चेहरे पर मॉइश्चराइजर जरूर लगाएं। इससे आपके चेहरे पर मेकअप का पर्फेक्ट लुक आता है। मॉइश्चराइजर से आपकी त्वचा सॉफ्ट और चमकदार भी बनती है। मॉइश्चराइजर लगाने से पहले चेहरे को पहले अच्छे से साफ जरूर करें। इसके बाद ही मेकअप के आगे के स्टेप्स अपनाएं।
दूसरे स्टेप में सही बेस का प्रयोग करना जरूरी है। इसके लिए आप लाइट फाउन्डेशन, सीसी या बीबीसी क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं। आजकल मार्किट में इस तरह की कई क्रीम मौजूद है, जिसे लगाने पर एकदम नेचुरल लुक आता है। इसे अपने चेहरे पर ब्यूटी ब्लेंडर की मदद से लगा सकते हैं। ध्यान रहे कि अगर आप किसी गर्म या नमी वाली जगह पर रहती हैं तो हेवी फाउंडेशन का यूज करने से बचें। चेहरे पर हो रहे डार्क सर्कल्स, दाग-धब्बे या पिंपल्स को प्राइमर और कंसीलर लगाकर छुपाया जा सकता है। कंसीलर और प्राइमर को अपने स्किन के टोन से हल्का लाइटर लें। अगर आप किसी ऐसी जगह जा रहे हैं जहां आपको काफी लंबे समय तक रहना है तो इन दोनों का इस्तेमाल करना काफी अच्छा रहेगा।
लाइट मेकअप के लिए फेस टोन का कॉम्पैक्ट लगाना भी जरूरी है। इसके इस्तेमाल से आपका चेहरा नेचुरल लुक का लगता है। इसके अलावा अगर आप ब्लश लगाना पसंद करती हैं तो ज्यादा चमकदार या डार्क रंग का ब्लश का इस्तेमाल न करें। हल्के रंग के ब्लश से लाइट मेकअप लगता है। ध्यान रहे कि ब्लश को सिर्फ चेहरे के एक चीकबोन्स से दूसरे तरफ के चीकबोन्स तक लगाना है। इसके अलावा गर्दन, माथे और नाक के नथुने पर भी आप इसे हल्का सा लगा सकती हैं।
मेकअप में सबसे अहम स्टेप आई मेकअप माना जाता है। आईशैडो, आइ लाइनर और काजल लगाने से आंखों की सुंदरता और बढ़ती है। हालांकि, जब आप लाइट मेकअप कर रही हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि आईशैडो के कलर हल्के या न्यूड हो। आजकल बाजारों या ऑनलाइन में आपको आसानी से न्यूड कलर के शैड्स मिल सकते हैं. वहीं, आई लाइनर थोड़ा पतला लगाएं। इससे आपकी आंखे काफी आकर्षक लगेंगी। इसके बाद आंखों पर भी पतला काजल लगाएं. मस्कारा का इस्तेमाल न करें, इससे लाइट की बजाए हैवी लुक लगेगा।
लाइट मेकअप के दौरान डार्क कलर की लिपिस्टिक लगाने की बजाए लाइट शैड या न्यूड शैड की लिपिस्टिक का इस्तेमाल करें। इससे आपका चेहरा काफी अच्छा निखरेगा। अगर आप लिपिस्टिक लगाना पसंद नहीं करती हैं तो लिप ग्लॉस भी लगा सकती हैं, इससे आपके होंठ नेचुरल लगेंगे।
 हेयरस्टाइल: अपनी व्यक्तिगत पसंद और अवसर के आधार पर, आप अपने बालों को कई तरह से स्टाइल कर सकते हैं। एक साधारण लो बन या साइड ब्रेड आपके लुक में एक खूबसूरत टच जोड़ सकता है। आप अपने बालों को ढीले कर्ल या लहरों में भी खुला छोड़ सकती हैं ताकि अधिक कैज़ुअल लुक मिल सके।
ब्लाउज़: आप अपनी कलमकारी साड़ी के साथ जो ब्लाउज़ पहनती हैं, वह प्लेन और डिजाइनर दाेनाे हाे सकते हैं।

हमारे सभी उत्पादों को देखने के लिए हमारे फेसबुक पेज और फेसबुक ग्रुप से जुड़िए।
https://www.facebook.com/groups/CLUBV/
https://www.facebook.com/vageeshaclub?__tn__=-UC

मंगलवार, 23 जुलाई 2024

बायस्कोप से लेकर जादोपटिया की कहानी तक - डा. अनुजा भट्ट

 


अपने बचपन की हल्की सी स्मृतियों में मुझे बायस्कोप की याद है। एक बड़ा सा डिब्बा नुमा यंत्र जो हाथ से चलता था और उसमें कई तरह के रंगीन कागज का प्रयोग होता था। ये रंगीन कागज चमकीले होते थे। उस यंत्र में एक गोलाकार छेद होता था। यह छेद उतना ही बड़ा होता था जिसमें आप अपना चेहरा टिका सकें। उस बक्से के अंदर चित्रों का एक रोल लगा होता था। बक्से के बाहर एक हैंडल होता था। यह हैंडल उसी तरह का था जैसा जूस वाले अंकल के जूसर का था। अंकल जिस तरह जूस निकालकर देते उसी तरह बायस्कोप वाले अंकल भी हमारे चेहरे को फंसाकर बाहर से उसी तरह घुमाते औऱ अंदर चित्र घूमने लगते। इस तरह से चित्र देखने का यह मेरा पहला अनुभव था। तब क्या पता था कि स्क्राल शब्द हमारी जिंदगी में इतना घुलमिल जाएगा कि हमारी उंगलियां सुबह से शाम स्क्राल ही करती रहेंगी।

 मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि किस तरह चीजें एक जगह से दूसरी जगह जाकर बदलती तो जरूर है पर स्थायी ढांचा एक ही होता है। जादोपटिया की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। मैं आपको जादोपटिया की कहानी सुनाऊं इससे पहले कुछ बातें करना भी जरूरी है। 'जादोपटिया' शब्द का अर्थ है जादूई चित्रकार। जादोपटिया कला को संथाल समाज का पुश्तैनी पेशा कहा जा सकता है। हरियाणा के सुरजकुंड मेले में जब झारखंड को थीम स्टेट बनाया गया था, वहां जादोपटिया को प्रदर्शित किया गया था। झारक्राफ्ट के माध्यम से इसे बेचा भी जा रहा है।

दरअसल, जादो संथाल में चित्रकार को कहा जाता है. इन्हें पुरोहित भी कहते हैं. ये कपड़े या कागज को जोड़कर एक पट्ट बनाते हैं फिर प्राकृतिक रंगों से उसमें चित्र उकेरते हैं. जादो द्वारा कपड़े या कागज के छोटे–छोटे टुकड़ों को जोड़कर तैयार पट्टों को जोड़ने के लिए बेल की गोंद का प्रयोग किया जाता है। प्राकृतिक रंगों की चमक बनाए रखने के लिए बबूल के गोंद भी मिलाया जाता है। चित्र को उकेरने के लिए लाल, पीला, हरा, काला, नीला आदि रंगों का प्रयोग किया जाता है। खास बात यह कि ये रंग प्राकृतिक होते हैं हरे रंग के लिए सेम के पत्ते, काले रंग के लिए कोयले की राख, पीले रंग के लिए हल्दी, सफेद रंग के लिए पिसा हुआ चावल आदि का प्रयोग किया जाता है. रंगों को भरने के लिए बकरी के बाल से बनी कूची या फिर चिडि़या के पंखों का प्रयोग करने की परंपरा है।  प्रकृति से प्राप्त जल-आधारित रंग जादोपटिया कारीगरों द्वारा अपने स्क्रॉल को चित्रित करने के लिए उपयोग किया जाने वाला माध्यम था। लाल रंग आमतौर पर धार्मिक और पौराणिक चित्रों में प्रयोग किया जाता है। सफेद रंग उपयोग करने के बजाय यह उसे "खाली" के रूप में छोड़ देते हैं।

  आज हम पट्टा पेंटिंग को जादोपतिया पेंटिंग की विविधता के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं। लंबी स्क्रॉल पेंटिंग को पट्टा पेंटिंग या पटचित्र के नाम से जाना जाता है। झारखंड से पैटकर पेंटिंग, पश्चिम बंगाल औऱ उड़ीसा से पट्टचित्र इसी तरह की पेंटिंग का विकास है। पश्चिम बंगाल में, पटचित्र-चित्रकारी समुदायों को पटुआ के नाम से जाना जाता है। इन्हें झारखंड में पाटीदार, पाटेकर या पैटकर के नाम से भी जानते हैं। पद्य, पटचित्र का स्रोत है। पद्य या पद दो पंक्तियों की छंदबद्ध कविता है। पैतकर पेंटिंग की कथात्मक स्क्रॉल शैली पांडुलिपि से ली गई है, जिसका उपयोग राजाओं द्वारा अन्य राजाओं को संदेश देने के लिए किया जाता था।

  चित्रों के जरिए इस कहानी में मिथक, साथ ही आदिवासी जीवन, अनुष्ठान की बातें बतायी जाती हैं। चित्रित विषय की प्रस्तुति कथा या गीत के रूप में लयबद्ध कर की जाती है । चित्रकारी के लिए बनाया जानेवाला यह पट्ट पांच से बीस फीट तक लंबा और डेढ़-दो फीट चौड़ा होता है। इसमें कई चित्रों का संयोजन होता है। चित्रों में बॉर्डर का भी प्रयोग होता है। चित्रकला का विषय सिद्धू-कान्हू, तिलका मांझी, बिरसा मुंडा जैसे शहीदों की शौर्य गाथा के अलावा रामायण, महाभारत, कृष्ण लीला भी होती है।

मृत्यु का शोक औऱ उम्मीद की कहानी है यह

जादोपतिया चित्रकार उन घरों में जाते थे जहाँ पहले किसी की मृत्यु हो गई थी। सभी लोग एक बैठक में जमा हे जाते हैं। गांव समुदाय और बिरादरी के लोग इसमें शामिल होते हैं।  सब लोगो के आसन ग्रहण करने के बाद जादोपतिया चित्रकार अपना आसन ग्रहण करते हैं। उसके बाद एक जादोपतिया चित्रों का एक रोल लेकर उसे घुमाता जाता है एक के बाद एक चित्र आता रहता है और दूसरा कथावाचक कहानी सुनाता है। यह कहानी, एक मृत व्यक्ति की है जिसकी आंखों में पुतली को नहीं चित्रित किया है।  कथावाचक परिवार को उसकी पीड़ा के बारे में बताया है और उसकी मुक्ति के लिए  पुतली (चक्षु दान) दान का अनुरोध करता है। कहानी सुनने के बाद सब उसे दान देते हैं और आत्मा की मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। इसके बाद जादोपतिया अपनी एड़ी पर बैठ जाता है और अपने स्क्रॉल खोलता है। वह बताता है कि  मृत व्यक्ति स्वर्ग में खुश है। यह जानकर परिवार संतुष्ट हो जाता है।  इस कथा का या इस तरह  की रीतिनीति का मूलतत्व यह है कि ऐसा करने से शोक मनाने वालों को उनके दुख से उबरने में मदद मिल सके। इस उपाय का जब अच्छा प्रभाव पड़ा तो इन चित्रकारों का नाम जादोपटिया पड़ गया। संथाल मृतक के जले हुए अवशेषों को पवित्र दामोदर नदी में बहाते हैं।  अस्थि चुनने के लिए संथाल जादोपटिया को दामोदर की यात्रा करने के लिए आमंत्रित करते हैं।

 

 

Special Post

मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...