शिवरात्रि शिवजी और उनकी सवारी की कहानी- डॉ अनुजा भट्ट

नंदी की कहानी

शिव के एक गण का नाम है नंदी। जिस तरह गायों में कामधेनु श्रेष्ठ है उसी तरह बैलों में नंदी श्रेष्ठ है। आमतौर पर खामोश रहने वाले बैल का चरित्र उत्तम और समर्पण भाव वाला बताया गया है। इसके अलावा वह बल और शक्ति का भी प्रतीक है। बैल को मोह-माया और भौतिक इच्छाओं से परे रहने वाला प्राणी भी माना जाता है। यह सीधा-साधा प्राणी जब क्रोधित होता है तो सिंह से भी भिड़ लेता है। यही सभी कारण रहे हैं जिसके कारण भगवान शिव ने बैल को अपना वाहन बनाया।

पौराणिक कथा अनुसार शिलाद ऋषि ने शिव की तपस्या के बाद नंदी को पुत्र रूप में पाया था। नंदी को उन्हों वेदादि ज्ञान सहित अन्य ज्ञान भी प्रदान किया। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नाम के दो दिव्य संत पधारे और नंदी ने पिता की आज्ञा से उनकी खूब सेवा की। जब वे जाने लगे तो उन्होंने ऋषि को तो लंबी उम्र और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया लेकिन नंदी को नहीं। तब शिलाद ऋषि ने उनसे पूछा कि उन्होंने नंदी को आशीर्वाद क्यों नहीं दिया?

तब संतों ने कहा कि नंदी अल्पायु है। यह सुनकर शिलाद ऋषि चिंतित हो गए। पिता की चिंता को नंदी ने भांप कर पूछा क्या बात है तो पिता ने कहा कि तुम्हारी अल्पायु के बारे में संत कह गए हैं इसीलिए चिंतित हूं। यह सुनकर नंदी हंसने लगा और कहने लगा कि आपने मुझे भगवान शिव की कृपा से पाया है तो मेरी उम्र की रक्षा भी वहीं करेंगे आप क्यों नाहक चिंता करते हैं। इतना कहते ही नंदी भुवन नदी के किनारे शिव की तपस्या करने के लिए चले गए। कठोर तप के बाद शिवजी प्रकट हुए और कहा वरदान मांगों वत्स। तब नंदी के कहा कि मैं ताउम्र आपके सानिध्य में रहना चाहता हूं।

नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया। भगवान शिव के हर मदिर में नंदी जी विराजमान हैं। ऐसा कहा जाता है कि जहां नंदी नहीं होते हैं वहां शिव जी का निवास भी नहीं होता है। वहीं, जब भी हम दर्शन करने के लिए शिवालय जाते हैं तो नंदी की प्रतिमा के कान में अपनी मनोकामना जरूर कहते हैं। यह सदियों से चली आ रही मान्यता भी है और साथ ही, भगवान शिव द्वारा दिया गया नंदी जी को एक वरदान भी, लेकिन क्या आपको पता है कि नंदी के कौन से कान में कहनी चाहिए अपनी इच्छा। भगवान शिव ने नंदी जी को जो वरदान दिया था उसके अनुसार, अगर शिव पूजन करने के बाद मौन रखते हुए नंदी के पास जाकर उनके बाएं कान में जो व्यक्ति अपनी इच्छा कहेगा वह अवश्य पूरी होगी।

चूंकि पवित्र बैल भगवान शिव का वाहन और द्वारपाल है, इसलिए उन्हें उनके मंदिरों में एक मूर्ति के रूप में रखा जाता है। आमतौर पर, आप उन्हें अपने अंगों को मोड़कर बैठे हुए देखेंगे।नंदी ने धर्म रुपी दाहिने पैर को बाहर रखा है। अर्थात धर्म के महत्व को दर्शाता है। जबकि काम और मोक्ष रूपी पैर को अंदर रखते हुए यह संदेश दिया है कि धर्म का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होना चाहिए।  वह घंटी के साथ एक हार पहनता है और रंग में या तो काला या सफेद होता है।  मुकुट और मालाएं उनके सुंदर परिधान और गहनों को सुशोभित करती हैं। 

देवी पार्वती ने नंदी को श्राप दिया था, लेकिन क्यों?
 एक बार, भगवान शिव और देवी पार्वती कैलाश पर्वत पर पासा का खेल खेल रहे थे। अनुमान लगाइए कि अंपायर कौन था? कोई और नहीं बल्कि नंदी। भले ही देवी ने खेल जीत लिया, लेकिन उन्होंने भगवान शिव को विजेता घोषित कर दिया। इससे देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने उसे श्राप दे दिया। नंदी ने अनुरोध किया कि श्राप हटा लिया जाए, यह दावा करते हुए कि उसके कार्य भगवान के प्रति उसके प्रेम से प्रेरित थे। फिर उसने कहा कि नंदी श्राप से मुक्त हो सकता है यदि वह अपने पुत्र, भगवान गणेश की उनके जन्मदिन पर पूजा करे। पवित्र हिंदू महीने भाद्रपद की चतुर्दशी को नंदी ने भगवान गणेश की पूजा की और प्रायश्चित के रूप में उन्हें हरी दूब भेंट की। तब से,अधिकांश भक्त हर साल गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश को हरी दूब का प्रसाद चढ़ाते हैं।
आप अपने घर पर छोटे शिवलिंग के साथ नन्हा नंदी भी रख सकते हैं उनकी पूजा कर सकते हैं।
 आपको यह कहानी कैसी लगी ....

  






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