शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

जानें क्या है.. पेंसिल वाला नेट आर्ट .. प्रिया कालरा, नेल आर्ट विशेषज्ञ


सोशल मीडिया के प्रभाव में ब्यूटी ट्रेंड्स तेजी से बदल रहे हैं। एक ट्रेंड के प्रति दीवानगी बढ़ती है तो दूसरा शुरू हो जाता है। दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ते ही और अनूठे ट्रेंड की खोज शुरू हो जाती है। इसी तरह से अब एक से बढ़कर एक ट्रेंड सोशल मीडिया वॉल को घेरे रहते हैं। इन दिनों नेल आर्ट में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। रेनबो व जेल नेल आर्ट को छोड़कर युवतियां पेंसिल कलर नेल आर्ट को लेकर क्रेज दिखा रही हैं। इस तरह का नेल आर्ट कलरफुल टच देता है। ऐसे में माना जा रहा है कि फेस्टिव सीजन में यह नेल आर्ट काफी पसंद किया जाएगा।
 है क्या पेंसिल कलर नेल आर्ट
यह नेल आर्ट इस तरह से किया जाता है कि नाखून हूबहू पेंसिल कलर की तरह नजर आते हैं। नाखूनों पर इसी आकार में जेैल¨लग की जाती है और पेंसिल कलर से अलग अलग रंगों से इन्हें बाकायदा नोक देकर सजाया जाता है। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि इस तरह के नेल आर्ट में कामकाज में असुविधा होती है लेकिन ट्रेंड परस्त लोग इसे खुशी खुशी अपना रहे हैं।
सोशल मीडिया से आया ट्रेंड इंस्टाग्राम पर आने वाला हर ट्रेंड कुछ ही पलों में लोगों को अपनी ओर आकर्षण में बांध लेता है। इस नेल आर्ट  ट्रेंड के साथ भी यही हुआ। रूस से आए इस ट्रेंड को लोगों ने हाथों हाथ लिया है। यहां पर भी इस तरह के नेल आर्ट की मांग बढ़ गई,  जिसके बाद नेल आर्ट आर्टिस्ट इसे सीख रहे हैं।
खूबसूरत नेल आ‌र्ट्स के साथ साथ अब अनूठे नेल आर्ट को भी उतनी ही तवज्जो मिल रही है। उनके मुताबिक अब युवतियां इस तरह के नेल आर्ट की मांग कर रही हैं। पेंसिल कलर नेल आर्ट हो या फिर ज्वेलरी नेल आर्ट। हर तरह के डिजाइंस इंस्टाग्राम व सोशल मीडिया से आ रहे हैं।
लोग इस तरह के डिजाइंस का डिमांड कर रहे हैं, क्योंकि युवा पूरी तरह से सोशल मीडिया के प्रभाव में जी रहे हैं और वहीं के डिजाइंस व ट्रेंड्स को पिक करते हैं। नेल आर्ट में भी लोग अनूठेपन की तलाश कर रहे हैं जिसको हम लोग पूरा करने की कोशिश भी कर रहे हैं।
मार्केट में सिंपल से लेकर, 4डी, 5डी हर तरह का नेल आर्ट है। इस साल ब्राइडल्स को नेल आर्ट अधिक पसंद रहा है। नेल एक्सटेंशन में एक्रेलिक जेल दो तरह से किए जाते हैं। इसे रेगुलर कराएं, ताकि नेचुरल नेल्स सही रहे। नेल एक्सटेंशन में एक्रेलिक की बजाए जेल को प्रेफर करें, क्योंकि इसे नेचुरल नेल्स को नुकसान नहीं होता।
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गुरुवार, 13 सितंबर 2018

कसरत के पहले भी खाए और बाद में भी- चयनिका शर्मा

पानी ही है असली दवा
सिर्फ कसरत करना सेहत को दुरुस्त रखने के लिए पर्याप्त नहीं है। कसरत करने से पहले और बाद में शरीर को स्वस्थ रखने वाली चीजें खाना भी जरूरी है। डायटीशियन चयनिका शर्मा कहती हैं कि व्यायाम के बेहतर नतीजे पाने के लिए उससे पहले और बाद में लिए जाने वाले आहार की जानकारी होनी बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि शरीर को छरहरा और त्वचा को मुलायम रखने के लिए व्यायाम से पहले कार्बोहाइड्रेट लेना सबसे अच्छा है। जबकि व्यायाम के बाद ताजी सब्जियों का रस पीना लाभदायक हो सकता है।
व्यायाम से पहले खाएं कुछ ऐसा, जिससे बनी रहे ऊर्जा
साबुत अनाज कामप्लैक्स कार्वाेहाइड्रेट संतुलित मात्रा में खाएं इसकी जगह केला या मेवे भी ले सकते हैं।  व्यायाम से  पहले  भरपूर मात्रा में पानी पीना बहुत जरूरी है।
धावकों को व्यायाम के एक बार15 मिनट के अंदर हलकी लस्सी या छाछ लेनी चाहिए। 30 मिनट के बाद  नारीयल पानी पीने की सलाह दी जाती है। उसके बाद ताजा फल और सब्जियाें से बने जूस आपकी सेहत के लिए बहुत जरूरी है यह आपके शरीर से विषैले तत्वाें  काे बाहर निकालने में मदद करता है और आपकाे स्वस्थ रखता है।
 लेकिन याद रहे यह फल और सब्जियाें का चुनाव आप अपनी बॉडी टाइप काे देखकर ही करें। सभी काे यह फायदेमंद नहीं हाेता। बिना किसी की सलाह के जूस का सेवन आपके लिए नुकसानदायक हाे सकता है।
व्यायाम के बाद वो खाएं, जिनसे हो मांसपेशियों की मरम्मत
व्यायाम करने के 30 मिनट बाद ही खाने की तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए। ऐसी चीजें खानी चाहिए, जो आपकी मांसपेशियों की मरम्मत में मदद करें। अखरोट, फल, रसभरी और बादाम के साथ दही, जड़ वाली सब्जियां जैसे गाजर, चुकंदर, शकरकंद या उबले अंडे व्यायाम के बाद लिए जा सकते हैं। अगर आप वजन कम करने के लिए काेई याेजना बना रहे हैं ताे सबसे पहले डायटीशियन से राय अवश्य लें।
दौड़ने के बाद थोड़ा पानी या नारियल पानी और इसके बाद एक घंटे के भीतर प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट युक्त चीजें खानी चाहिए।
पूरे दिन भरपूर मात्रा में पानी और फल बहुत जरूरी है यह आपके मेटाबॉलिज्म काे सही रखते हैं साथ ही दूसरे दिन वर्कआउट के लिए भी तैयार करते हैं।

बुधवार, 12 सितंबर 2018

शुरू हाे गई गणेश उत्सव की तैयारी

 पेंटिंग- रिया राठाैड़
भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को शिवा कहते हैं. इस दिन किसी तीर्थ स्थान पर स्नान दान व्रत जप आदि सत्कर्म करना चाहिए, जो व्यक्ति ऐसा करता है उसको गणपति जी का सौ गुना अभीष्ट फल प्राप्त होता है ऐसा भविष्य पुराण में दिया गया है. इस दिन गणेश जी के साथ शिव जी और पार्वती जी का भी पूजन करना चाहिए. भारत में कुछ त्यौहार धार्मिक पहचान के साथ-साथ क्षेत्र विशेष की संस्कृति के परिचायक भी हैं. इन त्यौहारों में किसी न किसी रूप में प्रत्येक धर्म के लोग शामिल रहते हैं. जिस तरह पश्चिम बंगाल की दूर्गा पूजा आज पूरे देश में प्रचलित हो चुकी है उसी प्रकार महाराष्ट्र में धूमधाम से मनाई जाने वाली गणेश चतुर्थी का उत्सव भी पूरे देश में मनाया जाता है. गणेश चतुर्थी का यह उत्सव लगभग दस दिनों तक चलता है जिस कारण इसे गणेशोत्सव भी कहा जाता है.

भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश का इसी दिन जन्म हुआ था. भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को सोमवार के दिन मध्याह्न काल में, स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में हुआ था. इसलिए मध्याह्न काल में ही भगवान गणेश की पूजा की जाती है, इसे बेहद शुभ समय माना जाता है. भाद्रपद मास की गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी या सिद्धीविनायक चतुर्थी भी कहा जाता है. कुछ जगहों पर इसे पत्तर चौथ और कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन चंद्र दर्शन नहीं किया जाता. मान्यता है कि चंद्र दर्शन करने से इस दिन कलंक लगता है.

गणेश चतुर्थी मुहूर्त: गणेश जी का दिन बुधवार को माना गया है. इसलिए बुधवार के दिन घर में गणेश जी की प्रतिमा लाना अत्यंत शुभ माना गया है.





चतुर्थी तिथि प्रारम्भ: दिनांक 12 सितंबर दिन बुधवार को शाम 4:07 से चतुर्थी तिथि समाप्त: दिनांक 13 सितंबर दिन गुरूवार को दोपहर 2:51 बजे तक गणेश पूजन के लिए मुहूर्त: दिनांक 13 सितंबर दिन गुरूवार को सुबह 11:02 से 13:31तक गणेश जी की मूर्ति लाने का मुहूर्त: 1. दिनांक 12 सितम्बर दिन बुधवार को मध्याह्न 3:30 से सांयकाल 6:30 तक 2. दिनांक 13 सितम्बर दिन गुरुवार प्रातः 6:15- 8:05 तक तथा 10:50-11:30 तक

इस माह की चतुर्थी को गुड़, लवण (नमक) और घी का दान करना चाहिए. यह शुभ मान गया है और गुड़ के मालपुआ से ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. इस दिन जो स्त्री अपने सास और ससुर को गुड़ के पूए खिलाती है वह गणेश जी के अनुग्रह से सौभाग्यवती होती है. पति की कामना करने वाली कन्या इस दिन विशेष रूप से व्रत करे और गणेश जी का पूजन करे. ऐसा शिवा चतुर्थी का विधान है.

शास्त्रों में भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करने का विधान बताया गया है. जो व्यक्ति हर माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करता उसको विशेष लाभ और साथ ही धन लाभ भी होता है. जो हर चतुर्थी नहीं कर सकता वह इस दिन करे तो उसको उसी के बराबर फल की प्राप्ति होती. इस दिन आप शुद्ध जल में सुगन्धित द्रव्य या इत्र मिला करके श्रीगणेश का अभिषेक करें. साथ में गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी करें. बाद में लड्डुओं का भोग लगाएं.

शिव- पार्वती का मंगलगान है हरितालिका तीज

शिवपार्वती-पेंटिंग अंजलि लांबा
साल में चार बड़ी तीज आती हैं, जिनमें से हरियाली, कजली और हरतालिका तीज का काफी महत्व है। लेकिन इन तीनों में भी हरतालिका तीज को सबसे बड़ी माना जाता है। यह सभी तीज मुख्य रूप से सावन और भादो के महीने में आती हैं। इन दिन शादीशुदा महिलाएं अपने सुहाग के सौभाग्य और कुंवारी लड़कियां मनचाहे वर के लिए कठिन व्रत रखती हैं।
हरतालिका तीज का महत्वःपंडित हरदेव के मुताबिक हरतालिका तीज को सभी तीजों में सबसे महत्वपूर्ण और लाभदायक माना जाता है। यह तीज भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। हरतालिका तीज को बड़ी तीज व्रत भी कहा जाता है। इसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, राजस्थान और बिहार के क्षेत्रों में बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। यह व्रत एक सूर्योदय से लेकर दूसरे सूर्योदय तक चलता है और रात में महिलाएं जागकर गौरी माता के गीत गाती हैं।

तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा
तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विशेष महत्व है। वास्तव में यह दिन माता पार्वती को समर्पित है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने तृतीया तिथि को ही भगवान शिव को पुनः प्राप्त किया था। मां पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लेकर माता सती ने घोर तपस्या के बाद भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था। इसलिए शादीशुदा महिलाएं इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करके पति की लंबी उम्र और सौभाग्य का वरदान मांगती हैं और कुंवारी लड़कियां मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए ये व्रत रखती हैं।

कुल्थी परांठा-गायित्री वर्धन

उत्तराखंड में एक पहाड़ी दाल काफी इस्तेमाल की जाती है जिसका नाम है गैथ या कुल्थी. इस दाल के भरवां पराठे भी बनाए जाते हैं जो खाने में बड़े ही स्वादिष्ट और पौष्टिक भी होते हैं. इस दाल को लेकर एक गढ़वाली कहावत है : "पुटगी पीठ म लग जैली" याने इस दाल को खाने वाले का पेट पीठ में लग जाएगा ( चर्बी नहीं चढ़ेगी ) कुल्थी की दाल के और भी नाम हैं जैसे - कुरथी, कुलथी, खरथी, गैथ या गराहट. अंग्रेजी में इसे हॉर्स ग्राम कहते हैं और इसका वानस्पतिक नाम है Macrotyloma Uniflorum. ज्यादातर पथरीली जमीन पर पैदा होने के कारण कुल्थी के पौधे का एक नाम पत्थरचट्टा भी है. संस्कृत में इस दाल का नाम कुलत्थिक है. दाल के दाने देखने में गोल और चपटे हैं और हलके भूरे चितकबरे रंग में हैं. हाथ लगाने से दाने चिकने से महसूस होते हैं

परांठा बनाने की विधि : चार परांठे बनाने के लिए 250 ग्राम गैथ साफ़ कर के रात को भिगो दें. सुबह उसी पानी में उबाल लें. दाल को ठंडा होने के बाद छाननी में निकाल लें. पानी निथरने के बाद दाल को मसल लें. इसमें बारीक कटा प्याज, हरी मिर्च, हरा धनिया और थोडा सा अदरक कद्दूकस कर के मिला लें. नमक स्वाद अनुसार डाल कर अच्छी तरह से मिला लें. तैयार पीठी से भरवां परांठा बना लें और देसी घी से सेक लें. गरम परांठे को चटनी और घी या मक्खन के साथ सर्व करेंभिगोई दाल के बचे हुए पानी में निम्बू निचोड़ कर सूप बना लें. सूप टेस्टी भी होता है और फायदेमंद भी. इस दाल के साथ राजमा भी मिला कर बनाई जा सकती है.

कुल्थी के गुण : इस दाल में खनिजों के अलावा प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट प्रचुर मात्रा में होता है. इस दाल को पथरी- तोड़ माना जाता है. दाल का पानी लगातार सेवन करने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी घुल कर निकलने लग जाती है. इस का एक सरल सा उपाय है की 15-20 ग्राम दाल को एक पाव पानी में रात को भिगो दिया जाए और सुबह खाली पेट पानी पी लिया जाए. उसी दाल में फिर पानी डाल दिया जाए और दोपहर को और फिर रात को पी लिया जाए. ये दाल इसी तरह दो दिन इस्तेमाल की जा सकती है. अन्यथा भी यह किसी और दाल की तरह पकाई जा सकती है. चूँकि ये गलने में समय लेती है इसलिए रात को भिगो कर रख देना अच्छा रहेगा. कुल्थी की दाल का पानी पीलिया के रोगी के लिए भी अच्छा माना गया है. ये दाल उत्तराखंड के अलावा दक्षिण भारत और आस पास के देशों में भी पाई जाती है
साभार-हर्षवर्धन जाेग

मैं अपराजिता-कुकरी

मंगलवार, 11 सितंबर 2018

बच्चाें के दाेस्ताें पर भी रखें नजर- डॉ. अनुजा भट्ट


कई बार बच्चा मारपीटकर घर आता है
, तो उस पर भी अभिभावक गुस्सा करते हैं। 
हर पैरेंट्स चाहते हैं कि उनके बच्चे को अच्छी परवरिश मिले, वह कामयाब हों, लेकिन आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में ये सब किसी चुनौती से कम नहीं है।  अगर उनके व्यवहार मं कुछ गलत दिखाई दे रहा है ताे सावधान हाे जाएं। बच्चे घर से ही नहीं बाहर से भी बहुत कुछ सीखते हैं। यह अच्छा कम हाेता है बुरा ज्यादा हाेता है। देखने में आता है कि पैरेंट्स काम में बिजी रहते हैं, इस वजह से वह बच्चे को समय नहीं दे पाते। ऐसे में बच्चा काफी कुछ गलत करने लगता है। इससे मां-बाप बाद में परेशान होते हैं। बच्चे को सुधारने के लिए गुस्सा भी करते हैं, लेकिन ये सही नहीं है। गुस्से से आपका बच्चा सुधरने की जगह औऱ बिगड़ भी सकता है। आपके गुस्से का आपके बच्चे पर गलत असर भी पड़ सकता है। इसलिए अगर आप भी बच्चे पर गुस्सा करते हैं, तो इसे फौरन बंद कर दें। बच्चे को कई और तरीकों से भी समझाया जा सकता है।

इस तरह बच्चे को करें कंट्रोल

अगर बच्चा गलत व्यवहार कर रहा है, गलत बोल रहा है या गुस्सा कर रहा है, तो आप गुस्सा होने की जगह उससे प्यार से बात करें और उससे इन सबका कारण जानें। उसके परेशान होने का कारण जानने के बाद उस समस्या को दूर करने की कोशिश करें।
दिन भर की थकान के बाद पैरेंट्स खुद मानसिक रूप से इतने थक जाते हैं कि छोटी-छोटी बातों पर भी बच्चों पर गुस्सा करने लगते हैं। ये गलत है। आपको ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे जो देखते हैं, वहीं सीखते हैं। ऐसे में आपके गुस्से करने से बच्चे के दिमाग पर गलत असर पड़ेगा और वह भी गुस्सा करने लगेगा।
बच्चे को नजरअंदाज न करें, वह जो भी कहे उसकी हर बात सुनें ताकि वह आपसे हर बात शेयर करे और जिद न करे। बच्चे को ज्यादा से ज्यादा खेलकूद और बाहरी गतिविधियों में बिजी रखें। बच्चे को डांस व आर्ट क्लास में भेज सकते हैं। समय-समय पर उसे आउटडोर गेम्स खेलने के लिए बाहर भी भेज सकते हैं। इससे बच्चे की अतिरिक्त शारीरिक ऊर्जा व्यय होगी और आत्म अभिव्यक्ति व समाजिक व्यवहार की समझ भी आएगी।
गुस्से में बच्चों पर हाथ उठाने से भी बचें। बच्चे के साथ सहानुभूति रखिए। प्यार से बैठकर समझाइए। इसके अलावा हमेशा उसे डराना भी गलत है।
कई बार बच्चा मारपीटकर घर आता है, तो उस पर भी अभिभावक गुस्सा करते हैं। आप गुस्से की जगह बच्चे को बिठाकर समझाएं कि अगर मारपीट करोगे तो कोई भी आपसे दोस्ती व बात नहीं करेगा।
अक्सर ये भी देखने को मिलता है कि बच्चे के महंगी चीज मांगने पर पैरेंट्स गुस्सा हो जाते हैं और उसे डांट देते हैं। ये स्थिति भी ठीक नहीं है। आप बच्चे को पास में बैठाकर प्यार से बताएं कि आपके पास कितना पैसा है और उसे कहां खर्च करना है। इससे उसे आपकी इनकम का आइडिया रहेगा और बेकार की जिद नहीं करेगा।
इसके अलावा बच्चे के झूठ बोलने की स्थिति में भी उस पर गुस्सा न करें। उसे उदाहरण देकर झूठ बोलने के निगेटिव पक्ष बताएं। उसे सही-गलत के बारे में बताएं।

सोमवार, 10 सितंबर 2018

बुढ़ापे में बढ़ जाता है इन 5 बीमारियों का खतरा-साेनिया नारंग



हालांकि उम्र-संबंधी इन बदलाव और परेशानियों से बचना मुश्किल लग सकता है, लेकिन कुछ चीजों का ध्यान रखकर और कुछ स्टेप्स फॉलो कर उम्र संबंधी बीमारियों से दूरी बनाई जा सकती है. शारीरिक रूप से सक्रियता, स्वस्थ आहार और स्मार्ट जीवनशैली अपनाकर उम्र संबंधी स्वास्थ्य जोखिमों से बचा जा सकता है.

हम यहां ऐसी ही कुछ बीमारियों और उससे बचने के उपायों के बारे में बता रहे हैं, जिनका खतरा उम्र बढ़ने के साथ और बढ़ जाता है.
1. मोटापा
भारत में मोटापा स्वास्थ्य संबंधी एक गंभीर परेशानी है, जो लगातार बढ़ रही है. मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति मेटाबॉलिक सिंड्रोम, उच्च रक्तचाप, एथेरोस्क्लेरोसिस, हृदय रोग, डायबिटीज, उच्च रक्त कोलेस्ट्रॉल, कैंसर और नींद विकार जैसी समस्याओं से परेशान रहते हैं.
कैसे बचें?
एक स्वस्थ जीवनशैली हृदय रोगों के जोखिम को 80 प्रतिशत तक कम कर सकती है.
इसलिए, सुनिश्चित करें कि आप प्रतिदिन एक्सरसाइज करें, कम वसा वाले खाद्य पदार्थ खाएं और नमक का सेवन सीमित करें ताकि शरीर के वजन को संतुलित रखा जा सके. साथ ही जई, मसूर और फ्लैक्ससीड जैसे फाइबर समृद्ध खाद्य पदार्थों का सेवन पर्याप्त मात्रा में करें.
फलिया फाइबर के अच्छे स्रोत हैं
दिल को स्वस्थ रखने के लिये प्रतिदिन ड्राईफ्रूट्स जैसे (पांच बादाम, एक अखरोट और एक अंजीर) खाएं, वेजीटेबल जूस, जामुन और मछली को अपनी डाइट में शामिल करें.
अगर आपको एल्कोहल और स्मोकिंग की आदत है, तो पहले इसके सेवन में कटौती करें और धीरे-धीरे पूरी तरह से छोड़ने की कोशिश करें.
आपके शरीर में ऑक्सीजन को प्रभावी ढंग से पंप करने की आपके शरीर की क्षमता उम्र बढ़ने के साथ घट जाती है. इसलिए, नियमित रूप से एक्सरसाइज करना महत्वपूर्ण है. यह रक्तचाप, तनाव और वजन को मैनेज करने में मदद करता है.
2. गठिया
हमारे देश में बुजुर्गों की लगभग आधी आबादी इस बीमारी से प्रभावित है. इस बीमारी की वजह से जोड़ों और हड्डियों में दर्द रहता है. ऑस्टियोअर्थ्राइटिस गठिया का सबसे आम प्रकार है जो जोड़ों, आमतौर पर हाथ, घुटने, कूल्हों और रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है.
कैसे बचें?
सही तरह के इलाज और जीवनशैली में बदलाव करके इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है. गठिया को रोकने का सबसे अच्छा तरीका नियमित रूप से एक्सरसाइज करना है. संतुलित स्वास्थ्य के लिए वजन पर नजर रखना भी आवश्यक है.
फ्रेमिंगहम ऑस्टियोअर्थ्राइटिस अध्ययन के अनुसार, केवल 5 किलोग्राम वजन घटाने से घुटनों में ऑस्टियोअर्थ्राइटिस का खतरा 50 प्रतिशत तक कम हो सकता है.
3. ऑस्टियोपोरोसिस
ऑस्टियोपोरोसिस को 'साइलंट बीमारी' के तौर पर जाना जाता है. ऑस्टियोपोरोसिस 50 वर्ष और उससे ज्यादा उम्र के लगभग 4 करोड़ 40 लाख भारतीयों को प्रभावित करता है, जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं. ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित व्यक्तियों में गिरने पर हड्डी टूटने की संभावना ज्यादा होती है.
कैसे बचें?
हड्डियों के लिए विटामिन डी बेहद महत्वपूर्ण है
ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने के लिये कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा का सेवन करना होगा, उच्च अम्लीय कंटेंट वाले खाद्य पदार्थों के सेवन को सीमित करना होगा और वाष्पित पेय से बचना होगा क्योंकि वे रक्त प्रवाह में पेट से कैल्शियम के अवशोषण को कम करते हैं.
विटामिन डी, हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है, विटामिन डी प्राप्त करने के लिय सूर्य की रोशनी (धूप) एक बेहतरीन सोर्स है. सुनिश्चित करें कि आप कम वसा वाले डेयरी उत्पादों का पर्याप्त मात्रा में सेवन करें या इसकी जगह कोई सप्लीमेंट लें.
अपनी हड्डियों को स्वस्थ रखने के लिए वजन घटाने वाले एक्सरसाइज का अभ्यास करना शुरू करें.
4. कैंसर
उम्र बढ़ने के साथ-साथ कैंसर होने का खतरा बढ़ता है. 50 साल की उम्र के बाद ये खतरा और बढ़ जाता है. राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के अनुसार, कैंसर के नये मरीजों में एक-चौथाई हिस्सा ऐसे लोगों का हैं, जिनकी उम्र 65 से 70 वर्ष है.
कैसे बचें?
कैंसर से बचाव के लिए लाइफस्टाइल पर ध्यान दें
कैंसर से बचने के लिए, महिलाओं को नियमित रूप से स्त्री रोग संबंधी जांच करवानी चाहिए और प्रोस्टेट कैंसर को रोकने के लिए पुरुषों को डिजिटल रेक्टल जांच पर विचार करना चाहिए.
फेफड़ों के कैंसर को रोकने के लिए स्मोकिंग छोड़ना आवश्यक है. डाइट में, ऑर्गेनिक खाद्य पदार्थों को शामिल करें, फल और हरी सब्जियों को अपने दैनिक आहार का हिस्सा बनाएं, फाइबर युक्त भोजन की मात्रा बढ़ाएं, अधिक मछली खाएं, पर्याप्त विटामिन डी प्राप्त करें, अपने भोजन में हल्दी का इस्तेमाल करें, लाल मांस खाने से बचें, शराब के सेवन को सीमित करें और ट्रांस फैट से दूर रहें.
5. डायबिटीज
सैचुरेटेड फैट और कम शुगर से युक्त स्वस्थ डाइट अपनाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है.
देश में टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोगों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी गंभीर चिंता का विषय है. इस बीमारी से पीड़ित लोगों में युवा और बुजुर्ग दोनों समान रूप से शामिल हैं.
कैसे बचें?
सैचुरेटेड फैट और कम शुगर से युक्त स्वस्थ डाइट अपनाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है.
सप्ताह में कम से कम 5 दिन 30 मिनट के लिए कार्डियो अभ्यास करने की आदत बनाएं. टहलना, तैराकी और साइकलिंग जैसी एक्सरसाइज ग्लूकोज स्तर को नियंत्रित, वजन को संतुलित और शरीर को मजबूती देने में खासा मददगार हैं.
ऊपर दिये गये सभी तरीके उम्र बढ़ने के दौरान होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से बचने के लिए कारगर उपाय हैं. इन टिप्स को फॉलो कर आप स्वस्थ जीवन का सफर लंबे समय तक तय कर सकते हैं.
(सोनिया नारंग ओरिफ्लेम इंडिया में वेलनेस एक्सपर्ट हैं. )
 साभार.

रविवार, 9 सितंबर 2018

कोरा कागज से कलाकार तक का सफर- शकीला शेख


शकीला शेख कोलकाता से 30 किलोमीटर दूरी पर 24 परगना जिले के सूरजपुर गांव में रहती हैं। वह अपना एक प्राइवेट स्टूडियो चलाती हैं जहां वे अपनी कलाकारी करती रहती हैं। अपने कॉलाज आर्ट के लिए दुनियाभर में प्रसिद्धि हासिल कर चुकीं शकीला एक गृहिणी भी हैं। उनकी कला को भारत के अलावा अमेरिका, यूरोप, नॉर्वे, फ्रांस में सराहा जा चुका है। एक सब्जी बेचने वाली मां की बेटी शकीला ने 1990 में अपना पहला एग्जिबिशन लगाया था जिसमें उन्हें 90,000 रुपये मिले थे।

शकीला का बचपन अभावों और मुश्किल हालात में बीता। अपने 6 भाई बहनों में वह सबसे छोटी थीं। जब वे महज एक साल की थीं तो उनके पिता उन्हें छोड़कर घर से चले गए। इसके बाद घर चलाने की जिम्मेदारी उनकी मां जेहरान बीबी पर आ गई। जेहरान हर रोज मोगराघाट से 40 किलोमीटर दूर तालताला मार्केट सब्जी बेचने जाती थीं। अपने बचपन को याद करते हुए शकीला ने #मैंअपराजिता को बताया कि वह काफी छोटी थीं इसलिए उनकी मां उन्हें काम नहीं करवाती थीं। हालांकि वह उन्हें घुमाने के लिए शहर जरूर ले जाती थीं।
वह बताती हैं, 'जब मेरी मां मुझे घुमाने ले जाती थीं तो सड़कों पर चल रहीं ट्रॉम और बस देखकर मुझे काफी खुशी होती थी। जब मेरी मां सब्जी बेच रही होतीं तो मैं उनके बगल में ही सो जाती।' कला के क्षेत्र में आने के बारे में वह कहती हैं कि यह शहर में ही रहने वाले बलदेव राज पनेसर की बदौलत संभव हो पाया जो कि एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी और एक कलाकार भी हैं। वे सब्जी लेने के लिए शकीला की मां की दुकान पर आया करते थे और खाली समय मिलने पर आसपास के बच्चों को खाने पीने की चीजें बांटा करते थे। सारे बच्चे उन्हें डिंबाबू कहकर बुलाते थे।

शकीला कहती हैं, 'बाबा मुझसे काफी प्रभावित हुए उन्होंने मेरा नाम स्कूल में लिखवाया। मैं तोलता में कक्षा 3 तक पढ़ी लेकिन इसके लिए मुझे काफी दूर का सफर करना पड़ता था। इतनी दूर का सफर करना उस वक्त किसी लड़की के लिए सुरक्षित नहीं था इसलिए बाबा ने मुझे गांव में ही पढ़ाने का फैसला किया।' हालांकि शकीला की मां हमेशा चिंता में रहती थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि उनकी बेटी के साथ कहीं कुछ गलत न हो जाए।

12 वर्ष की उम्र में उनकी शादी करवा दी गई। उनके पति का नाम अकबर शेख है। शकीला की हालत खराब हो चली थी इसलिए उन्होंने फिर से बाबा से संपर्क किया। उन्होंने शकीला को कागज के थैले बनाने का आइडिया दिया। शकीला बलदेव राज की कलाकारी से काफी प्रभावित थीं और ऐसे ही उन्होंने अपना पहला कोलाज बनाया, जिसमें सब्जियां और फलों का प्रतिरूपण था। इसे काफी सराहना मिली और फिर 1991 में उन्होंने अपना पहला कोलाज एग्जिबिशन लगाया।

शकीला को इससे 70,000 रुपये मिले जो कि उस वक्त के हिसाब से काफी बड़ी रकम थी। इससे शकीला के घर की हालत तो सुधरी ही साथ ही उन्होंने आर्ट पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया। उन्हें बीआर पनेसर से काफी मदद मिली। पनेसर ने शकीला को सेंटर ऑफ इंटरनेशनल मॉडर्न आर्ट से रूबरू करवाया। यह आर्ट गैलरी अब शकीला के काम को मैनेज करती है और उनकी कलाकृतियों को विदेशों में बेचने का काम भी करती है। शकीला को ललित कला अकादमी, पश्चिम बंगाल आर्ट अकादमी समेत कई सारे अवॉर्ड मिल चुके हैं।
mainaparajita@gmail.com

शनिवार, 8 सितंबर 2018

कहानी -लिहाफ- इस्मत जुगताई

जब मैं जाड़ों में लिहाफ ओढ़ती हूँ तो पास की दीवार पर उसकी परछाई हाथी की तरह झूमती हुई मालूम होती है। और एकदम से मेरा दिमाग बीती हुई दुनिया के पर्दों में दौडने-भागने लगता है। न जाने क्या कुछ याद आने लगता है।
माफ कीजियेगा, मैं आपको खुद अपने लिहाफ़ का रूमानअंगेज़ ज़िक्र बताने नहीं जा रही हूँ, न लिहाफ़ से किसी किस्म का रूमान जोड़ा ही जा सकता है। मेरे ख़याल में कम्बल कम आरामदेह सही, मगर उसकी परछाई इतनी भयानक नहीं होती जितनी, जब लिहाफ़ की परछाई दीवार पर डगमगा रही हो।
यह जब का जिक्र है, जब मैं छोटी-सी थी और दिन-भर भाइयों और उनके दोस्तों के साथ मार-कुटाई में गुज़ार दिया करती थी। कभी-कभी मुझे ख़याल आता कि मैं कमबख्त इतनी लड़ाका क्यों थी? उस उम्र में जबकि मेरी और बहनें आशिक जमा कर रही थीं, मैं अपने-पराये हर लड़के और लड़की से जूतम-पैजार में मशगूल थी।
यही वजह थी कि अम्माँ जब आगरा जाने लगीं तो हफ्ता-भर के लिए मुझे अपनी एक मुँहबोली बहन के पास छोड़ गईं। उनके यहाँ, अम्माँ खूब जानती थी कि चूहे का बच्चा भी नहीं और मैं किसी से भी लड़-भिड़ न सकूँगी। सज़ा तो खूब थी मेरी! हाँ, तो अम्माँ मुझे बेगम जान के पास छोड़ गईं।
वही बेगम जान जिनका लिहाफ़ अब तक मेरे ज़हन में गर्म लोहे के दाग की तरह महफूज है। ये वो बेगम जान थीं जिनके गरीब माँ-बाप ने नवाब साहब को इसलिए दामाद बना लिया कि वह पकी उम्र के थे मगर निहायत नेक। कभी कोई रण्डी या बाज़ारी औरत उनके यहाँ नज़र न आई। ख़ुद हाजी थे और बहुतों को हज करा चुके थे।
मगर उन्हें एक निहायत अजीबो-गरीब शौक था। लोगों को कबूतर पालने का जुनून होता है, बटेरें लड़ाते हैं, मुर्गबाज़ी करते हैं, इस किस्म के वाहियात खेलों से नवाब साहब को नफ़रत थी। उनके यहाँ तो बस तालिब इल्म रहते थे। नौजवान, गोरे-गोरे, पतली कमरों के लड़के, जिनका खर्च वे खुद बर्दाश्त करते थे।
मगर बेगम जान से शादी करके तो वे उन्हें कुल साज़ो-सामान के साथ ही घर में रखकर भूल गए। और वह बेचारी दुबली-पतली नाज़ुक-सी बेगम तन्हाई के गम में घुलने लगीं। न जाने उनकी ज़िन्दगी कहाँ से शुरू होती है? वहाँ से जब वह पैदा होने की गलती कर चुकी थीं, या वहाँ से जब एक नवाब की बेगम बनकर आयीं और छपरखट पर ज़िन्दगी गुजारने लगीं, या जब से नवाब साहब के यहाँ लड़कों का जोर बँधा। उनके लिए मुरग्गन हलवे और लज़ीज़ खाने जाने लगे और बेगम जान दीवानखाने की दरारों में से उनकी लचकती कमरोंवाले लड़कों की चुस्त पिण्डलियाँ और मोअत्तर बारीक शबनम के कुर्ते देख-देखकर अंगारों पर लोटने लगीं।
या जब से वह मन्नतों-मुरादों से हार गईं, चिल्ले बँधे और टोटके और रातों की वज़ीफाख्व़ानी भी चित हो गई। कहीं पत्थर में जोंक लगती है! नवाब साहब अपनी जगह से टस-से-मस न हुए। फिर बेगम जान का दिल टूट गया और वह इल्म की तरफ मोतवज्जो हुई। लेकिन यहाँ भी उन्हें कुछ न मिला। इश्किया नावेल और जज़्बाती अशआर पढ़कर और भी पस्ती छा गई। रात की नींद भी हाथ से गई और बेगम जान जी-जान छोड़कर बिल्कुल ही यासो-हसरत की पोट बन गईं।
चूल्हे में डाला था ऐसा कपड़ा-लत्ता। कपड़ा पहना जाता है किसी पर रोब गाँठने के लिए। अब न तो नवाब साहब को फुर्सत कि शबनमी कुर्तों को छोड़कर ज़रा इधर तवज्जो करें और न वे उन्हें कहीं आने-जाने देते। जब से बेगम जान ब्याहकर आई थीं, रिश्तेदार आकर महीनों रहते और चले जाते, मगर वह बेचारी कैद की कैद रहतीं।
उन रिश्तेदारों को देखकर और भी उनका खून जलता था कि सबके-सब मज़े से माल उड़ाने, उम्दा घी निगलने, जाड़े का साज़ो-सामान बनवाने आन मरते और वह बावजूद नई रूई के लिहाफ के, पड़ी सर्दी में अकड़ा करतीं। हर करवट पर लिहाफ़ नईं-नईं सूरतें बनाकर दीवार पर साया डालता। मगर कोई भी साया ऐसा न था जो उन्हें ज़िन्दा रखने लिए काफी हो। मगर क्यों जिये फिर कोई? ज़िन्दगी! बेगम जान की ज़िन्दगी जो थी! जीना बंदा था नसीबों में, वह फिर जीने लगीं और खूब जीं।
रब्बो ने उन्हें नीचे गिरते-गिरते सँभाल लिया। चटपट देखते-देखते उनका सूखा जिस्म भरना शुरू हुआ। गाल चमक उठे और हुस्न फूट निकला। एक अजीबो-गरीब तेल की मालिश से बेगम जान में ज़िन्दगी की झलक आई। माफ़ कीजिएगा, उस तेल का नुस्खा़ आपको बेहतरीन-से-बेहतरीन रिसाले में भी न मिलेगा।
जब मैंने बेगम जान को देखा तो वह चालीस-बयालीस की होंगी। ओफ्फोह! किस शान से वह मसनद पर नीमदराज़ थीं और रब्बो उनकी पीठ से लगी बैठी कमर दबा रही थी। एक ऊदे रंग का दुशाला उनके पैरों पर पड़ा था और वह महारानी की तरह शानदार मालूम हो रही थीं। मुझे उनकी शक्ल बेइन्तहा पसन्द थी। मेरा जी चाहता था, घण्टों बिल्कुल पास से उनकी सूरत देखा करूँ। उनकी रंगत बिल्कुल सफेद थी। नाम को सुर्खी का ज़िक्र नहीं। और बाल स्याह और तेल में डूबे रहते थे। मैंने आज तक उनकी माँग ही बिगड़ी न देखी। क्या मजाल जो एक बाल इधर-उधर हो जाए। उनकी आँखें काली थीं और अबरू पर के ज़ायद बाल अलहदा कर देने से कमानें-सीं खिंची होती थीं। आँखें ज़रा तनी हुई रहती थीं। भारी-भारी फूले हुए पपोटे, मोटी-मोटी पलकें। सबसे ज़ियाद जो उनके चेहरे पर हैरतअंगेज़ जाज़िबे-नज़र चीज़ थी, वह उनके होंठ थे। अमूमन वह सुर्खी से रंगे रहते थे। ऊपर के होंठ पर हल्की-हल्की मूँछें-सी थीं और कनपटियों पर लम्बे-लम्बे बाल। कभी-कभी उनका चेहरा देखते-देखते अजीब-सा लगने लगता था, कम उम्र लड़कों जैसा।

उनके जिस्म की जिल्द भी सफेद और चिकनी थी। मालूम होता था किसी ने कसकर टाँके लगा दिए हों। अमूमन वह अपनी पिण्डलियाँ खुजाने के लिए किसोलतीं तो मैं चुपके-चुपके उनकी चमक देखा करती। उनका कद बहुत लम्बा था और फिर गोश्त होने की वजह से वह बहुत ही लम्बी-चौड़ी मालूम होतीं थीं। लेकिन बहुत मुतनासिब और ढला हुआ जिस्म था। बड़े-बड़े चिकने और सफेद हाथ और सुडौल कमर तो रब्बो उनकी पीठ खुजाया करती थी। यानी घण्टों उनकी पीठ खुजाती, पीठ खुजाना भी ज़िन्दगी की ज़रूरियात में से था, बल्कि शायद ज़रूरियाते-ज़िन्दगी से भी ज्यादा।

रब्बो को घर का और कोई काम न था। बस वह सारे वक्त उनके छपरखट पर चढ़ी कभी पैर, कभी सिर और कभी जिस्म के और दूसरे हिस्से को दबाया करती थी। कभी तो मेरा दिल बोल उठता था, जब देखो रब्बो कुछ-न-कुछ दबा रही है या मालिश कर रही है।

कोई दूसरा होता तो न जाने क्या होता? मैं अपना कहती हूँ, कोई इतना करे तो मेरा जिस्म तो सड़-गल के खत्म हो जाय। और फिर यह रोज़-रोज़ की मालिश काफी नहीं थीं। जिस रोज़ बेगम जान नहातीं, या अल्लाह! बस दो घण्टा पहले से तेल और खुशबुदार उबटनों की मालिश शुरू हो जाती। और इतनी होती कि मेरा तो तख़य्युल से ही दिल लोट जाता। कमरे के दरवाज़े बन्द करके अँगीठियाँ सुलगती और चलता मालिश का दौर। अमूमन सिर्फ़ रब्बो ही रही। बाकी की नौकरानियाँ बड़बड़ातीं दरवाज़े पर से ही, जरूरियात की चीज़ें देती जातीं।

बात यह थी कि बेगम जान को खुजली का मर्ज़ था। बिचारी को ऐसी खुजली होती थी कि हज़ारों तेल और उबटने मले जाते थे, मगर खुजली थी कि कायम। डाक्टर,हकीम कहते, ''कुछ भी नहीं, जिस्म साफ़ चट पड़ा है। हाँ, कोई जिल्द के अन्दर बीमारी हो तो खैर।'' 'नहीं भी, ये डाक्टर तो मुये हैं पागल! कोई आपके दुश्मनों को मर्ज़ है? अल्लाह रखे, खून में गर्मी है! रब्बो मुस्कराकर कहती, महीन-महीन नज़रों से बेगम जान को घूरती! ओह यह रब्बो! जितनी यह बेगम जान गोरी थीं उतनी ही यह काली। जितनी बेगम जान सफेद थीं, उतनी ही यह सुर्ख। बस जैसे तपाया हुआ लोहा। हल्के-हल्के चेचक के दाग। गठा हुआ ठोस जिस्म। फुर्तीले छोटे-छोटे हाथ। कसी हुई छोटी-सी तोंद। बड़े-बड़े फूले हुए होंठ, जो हमेशा नमी में डूबे रहते और जिस्म में से अजीब घबरानेवाली बू के शरारे निकलते रहते थे। और ये नन्हें-नन्हें फूले हुए हाथ किस कदर फूर्तीले थे! अभी कमर पर, तो वह लीजिए फिसलकर गए कूल्हों पर! वहाँ से रपटे रानों पर और फिर दौड़े टखनों की तरफ! मैं तो जब कभी बेगम जान के पास बैठती, यही देखती कि अब उसके हाथ कहाँ हैं और क्या कर रहें हैं?

गर्मी-जाड़े बेगम जान हैदराबादी जाली कारगे के कुर्ते पहनतीं। गहरे रंग के पाजामे और सफेद झाग-से कुर्ते। और पंखा भी चलता हो, फिर भी वह हल्की दुलाई ज़रूर जिस्म पर ढके रहती थीं। उन्हें जाड़ा बहुत पसन्द था। जाड़े में मुझे उनके यहाँ अच्छा मालूम होता। वह हिलती-डुलती बहुत कम थीं। कालीन पर लेटी हैं, पीठ खुज रही हैं, खुश्क मेवे चबा रही हैं और बस! रब्बो से दूसरी सारी नौकरियाँ खार खाती थीं। चुड़ैल बेगम जान के साथ खाती, साथ उठती-बैठती और माशा अल्लाह! साथ ही सोती थी! रब्बो और बेगम जान आम जलसों और मजमूओं की दिलचस्प गुफ्तगू का मौजूँ थीं। जहाँ उन दोनों का ज़िक्र आया और कहकहे उठे। लोग न जाने क्या-क्या चुटकुले गरीब पर उड़ाते, मगर वह दुनिया में किसी से मिलती ही न थी। वहाँ तो बस वह थीं और उनकी खुजली!

मैंने कहा कि उस वक्त मैं काफ़ी छोटी थी और बेगम जान पर फिदा। वह भी मुझे बहुत प्यार करती थीं। इत्तेफाक से अम्माँ आगरे गईं। उन्हें मालूम था कि अकेले घर में भाइयों से मार-कुटाई होगी, मारी-मारी फिरूँगी, इसलिए वह हफ्ता-भर के लिए बेगम जान के पास छोड़ गईं। मैं भी खुश और बेगम जान भी खुश। आखिर को अम्माँ की भाभी बनी हुई थीं।

सवाल यह उठा कि मैं सोऊँ कहाँ? कुदरती तौर पर बेगम जान के कमरे में। लिहाज़ा मेरे लिए भी उनके छपरखट से लगाकर छोटी-सी पलँगड़ी डाल दी गई। दस-ग्यारह बजे तक तो बातें करते रहे। मैं और बेगम जान चांस खेलते रहे और फिर मैं सोने के लिए अपने पलंग पर चली गई। और जब मैं सोयी तो रब्बो वैसी ही बैठी उनकी पीठ खुजा रही थी। 'भंगन कहीं की!' मैंने सोचा। रात को मेरी एकदम से आँख खुली तो मुझे अजीब तरह का डर लगने लगा। कमरे में घुप अँधेरा। और उस अँधेरे में बेगम जान का लिहाफ ऐसे हिल रहा था, जैसे उसमें हाथी बन्द हो!
''बेगम जान!'' मैंने डरी हुई आवाज़ निकाली। हाथी हिलना बन्द हो गया। लिहाफ नीचे दब गया।
''क्या है? सो जाओ।''
बेगम जान ने कहीं से आवाज़ दी।
''डर लग रहा है।''
मैंने चूहे की-सी आवाज़ से कहा।
''सो जाओ। डर की क्या बात है? आयतलकुर्सी पढ़ लो।''
''अच्छा।''
मैंने जल्दी-जल्दी आयतलकुर्सी पढ़ी। मगर 'यालमू मा बीन' पर हर दफा आकर अटक गई। हालाँकि मुझे वक्त पूरी आयत याद है।


'तुम्हारे पास आ जाऊँ बेगम जान?''
''नहीं बेटी, सो रहो।'' ज़रा सख्ती से कहा।
और फिर दो आदमियों के घुसुर-फुसुर करने की आवाज़ सुनायी देने लगी। हाय रे! यह दूसरा कौन? मैं और भी डरी।
''बेगम जान, चोर-वोर तो नहीं?''
''सो जाओ बेटा, कैसा चोर?''
रब्बो की आवाज़ आई। मैं जल्दी से लिहाफ में मुँह डालकर सो गई।

सुबह मेरे जहन में रात के खौफनाक नज़्ज़ारे का खयाल भी न रहा। मैं हमेशा की वहमी हूँ। रात को डरना, उठ-उठकर भागना और बड़बड़ाना तो बचपन में रोज़ ही होता था। सब तो कहते थे, मुझ पर भूतों का साया हो गया है। लिहाज़ा मुझे खयाल भी न रहा। सुबह को लिहाफ बिल्कुल मासूम नज़र आ रहा था।
मगर दूसरी रात मेरी आँख खुली तो रब्बो और बेगम जान में कुछ झगड़ा बड़ी खामोशी से छपरखट पर ही तय हो रहा था। और मेरी खाक समझ में न आया कि क्या फैसला हुआ? रब्बो हिचकियाँ लेकर रोयी, फिर बिल्ली की तरह सपड़-सपड़ रकाबी चाटने-जैसी आवाज़ें आने लगीं, ऊँह! मैं तो घबराकर सो गई।

आज रब्बो अपने बेटे से मिलने गई हुई थी। वह बड़ा झगड़ालू था। बहुत कुछ बेगम जान ने किया, उसे दुकान करायी, गाँव में लगाया, मगर वह किसी तरह मानता ही नहीं था। नवाब साहब के यहाँ कुछ दिन रहा, खूब जोड़े-बागे भी बने, पर न जाने क्यों ऐसा भागा कि रब्बो से मिलने भी न आता। लिहाज़ा रब्बो ही अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ उससे मिलने गई थीं। बेगम जान न जाने देतीं, मगर रब्बो भी मजबूर हो गई। सारा दिन बेगम जान परेशान रहीं। उनका जोड़-जोड़ टूटता रहा। किसी का छूना भी उन्हें न भाता था। उन्होंने खाना भी न खाया और सारा दिन उदास पड़ी रहीं।
''मैं खुजा दूँ बेगम जान?''
मैंने बड़े शौक से ताश के पत्ते बाँटते हुए कहा। बेगम जान मुझे गौर से देखने लगीं।
''मैं खुजा दूँ? सच कहती हूँ!''
मैंने ताश रख दिए।
मैं थोड़ी देर तक खुजाती रही और बेगम जान चुपकी लेटी रहीं। दूसरे दिन रब्बो को आना था, मगर वह आज भी गायब थी। बेगम जान का मिज़ाज चिड़चिड़ा होता गया। चाय पी-पीकर उन्होंने सिर में दर्द कर लिया। मैं फिर खुजाने लगी उनकी पीठ-चिकनी मेज़ की तख्ती-जैसी पीठ। मैं हौले-हौले खुजाती रही। उनका काम करके कैसी खुशी होती थी!
''जरा ज़ोर से खुजाओ। बन्द खोल दो।'' बेगम जान बोलीं, ''इधर ऐ है, ज़रा शाने से नीचे हाँ वाह भइ वाह! हा!हा!'' वह सुरूर में ठण्डी-ठण्डी साँसें लेकर इत्मीनान ज़ाहिर करने लगीं।

''और इधर...'' हालाँकि बेगम जान का हाथ खूब जा सकता था, मगर वह मुझसे ही खुजवा रही थीं और मुझे उल्टा फख्र हो रहा था। ''यहाँ ओई! तुम तो गुदगुदी करती हो वाह!'' वह हँसी। मैं बातें भी कर रही थी और खुजा भी रही थी।
''तुम्हें कल बाज़ार भेजूँगी। क्या लोगी? वही सोती-जागती गुड़िया?''
''नहीं बेगम जान, मैं तो गुड़िया नहीं लेती। क्या बच्चा हूँ अब मैं?''
''बच्चा नहीं तो क्या बूढ़ी हो गई?'' वह हँसी ''गुड़िया नहीं तो बनवा लेना कपड़े, पहनना खुद। मैं दूँगी तुम्हें बहुत-से कपड़े। सुना?'' उन्होंने करवट ली।
''अच्छा।'' मैंने जवाब दिया।
''इधर...'' उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर जहाँ खुजली हो रही थी, रख दिया। जहाँ उन्हें खुजली मालूम होती, वहाँ मेरा हाथ रख देतीं। और मैं बेखयाली में, बबुए के ध्यान में डूबी मशीन की तरह खुजाती रही और वह मुतवातिर बातें करती रहीं।
''सुनो तो तुम्हारी फ्राकें कम हो गई हैं। कल दर्जी को दे दूँगी, कि नई-सी लाए। तुम्हारी अम्माँ कपड़ा दे गई हैं।''
''वह लाल कपड़े की नहीं बनवाऊँगी। चमारों-जैसा है!'' मैं बकवास कर रही थी और हाथ न जाने कहाँ-से-कहाँ पहुँचा। बातों-बातों में मुझे मालूम भी न हुआ।
बेगम जान तो चुप लेटी थीं। ''अरे!'' मैंने जल्दी से हाथ खींच लिया।

''ओई लड़की! देखकर नहीं खुजाती! मेरी पसलियाँ नोचे डालती है!''
बेगम जान शरारत से मुस्करायीं और मैं झेंप गई।
''इधर आकर मेरे पास लेट जा।''
''उन्होंने मुझे बाजू पर सिर रखकर लिटा लिया।
''अब है, कितनी सूख रही है। पसलियाँ निकल रही हैं।'' उन्होंने मेरी पसलियाँ गिनना शुरू कीं।
''ऊँ!'' मैं भुनभुनायी।
''ओइ! तो क्या मैं खा जाऊँगी? कैसा तंग स्वेटर बना है! गरम बनियान भी नहीं पहना तुमने!''
मैं कुलबुलाने लगी।
''कितनी पसलियाँ होती हैं?'' उन्होंने बात बदली।
''एक तरफ नौ और दूसरी तरफ दस।''
मैंने स्कूल में याद की हुई हाइजिन की मदद ली। वह भी ऊटपटाँग।
''हटाओ तो हाथ हाँ, एक दो तीन...''
मेरा दिल चाहा किसी तरह भागूँ और उन्होंने जोर से भींचा।
''ऊँ!'' मैं मचल गई।
बेगम जान जोर-जोर से हँसने लगीं।

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

जैसा हाे आंखाें का रंग वैसा चुनें आईलाइनर- प्रत्यूषा नंदिनी

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 आप हमेशा काले रंग के आई लाइनर का ही इस्तेमाल करती हैं? अगर हां, तो यह सही नहीं है, आप अपने आंखों के रंग के हिसाब से अलग-अलग आई लाइनरों का भी इस्तेमाल कर सकती हैं।
1 हेजल कलर की आंखों के लिए
अगर आपकी आंखें हेजल हैं, तो ऐसे में आप आंखों को सुंदर बनाने के लिए इन पर ब्लैक कलर के आईलाइनर का इस्तेमाल कर सकती हैं। आप चाहें तो मैटेलिक गोल्ड आईलाइनर का इस्तेमाल भी कर सकती हैं। लेकिन अगर आपको किसी पार्टी में जाना है तो ऐसे में आप गोल्डन कलर के आईलाइनर का इस्तेमाल कर सकती हैं, यह आपके लुक को और बेहतर बनाने में मदद करेगा।
2 ब्राउन कलर की आंखों के लिए
ब्राउन आइज पर आप ब्लू कलर के आईलाइनर  का इस्तेमाल कर अपने लुक को आकर्षित बना सकती हैं। लेकिन अगर आप किसी ऑफिशल मीटिंग में जा रहीं हैं तो ऐसे में आप नैवी ब्लू कलर के आईलाइनर का इस्तेमाल कर सकती हैं।
3 ग्रीन कलर की आंखों के लिए
अगर आपकी आंखों का रंग हरा है तो ऐसे में आपकी आंखें दुनिया में सबसे अलग है क्योंकि दुनिया में कम ही लोग ऐसे हैं जिनकी आंखों का हरा रंग होता है। अपनी ग्रीन आंखों पर पर्पल कलर के आईलाइनर  का इस्तेमाल कर सकती हैं।
4 ग्रे कलर की आंखों के लिए
अगर आपकी आंखों का रंग ग्रे है तो ऐसे में आप इस बात को जान लें कि आपकी आंखों का रंग सबसे अलग और सबसे सुंदर है। ऐसे में आप चाहे तो रेडिश ब्राउन आईलाइनर का इस्तेमाल कर सकती हैं। यह आईलाइनर आपकी आंखों को एक अलग लुक देगा।

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

फास्ट नहीं स्लाे हाे रहे हैं आप जानिए क्याें

वडा पाव, समोसा, पिज्‍जा,बर्गर, रोल, चौमिन,चिली, फैंच फ्राइ और कोलड्रिंक आदि ने लोगों की खानपान पर कब्जा कर लिया है। आज लोग पौष्टिक आहार को कम फास्ट फूड या जंक फूड को ज्यादा तवज्जों देने लगे हैं। लेकिन जंक फूड हमारी जिंदगी को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं आपको अंदाजा नहीं है। एक शोध की माने तो जंक फूड खाने से दिमाग में गड़बड़ी पैदा होने लगती है।

1. निरंतर फास्ट फूड के सेवन से आप शिथिल होते जाओगे। आप खुद को थका हुआ महसूस करोगे। आवश्‍यक पोषक तत्‍व जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट की कमी की वजह से फास्ट फूड आपकी उर्जा के स्तर को कम कर देता है।

2. जंक फूड का लगातार सेवन टीनेजर्स में डिप्रेशन का कारण बन सकता है। बढती उम्र में बच्‍चों कई तर‍ह के बायोलॉजिकल बदलाव आने लगते हैं। जंक फूड जैसे चौमिन, पिज्जां,बर्गर, रोल खाना बढते बच्चों के लिए एक समस्या बन सकता है और वह डिप्रेशन में भी जा सकता है।

3.मैदे और तेल से बने ये जंक फूड आपकी पाचन क्रिया को भी प्रभावित करता है। इससे कब्ज की समस्‍या उत्‍पन्‍न हो सकती है। इन खानों में फाइबर्स की कमी होने की वजह से भी ये खाद्य पदार्थ पचने में दिक्‍कत करते हैं।
4. ज्यादा से ज्यादा फास्ट फूड का सेवन करने वाले लोगों में 80 फीसदी दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। इस तरह के आहार में ज्यादा फैट होता है जो कोलेस्ट्रॉल के उच्च स्तर में भी योगदान देता है।

5. वसा से भरपूर खाद्य पदार्थ हृदय, रक्त वाहिकाओं, जिगर जैसे कई बीमारियों का कारण हैं। इससे तनाव भी बढ़ता है। कैफीन युक्त खाद्य पदार्थ (कॉफी, चाय, कोला और चॉकलेट), सफेद आटा, नमक, संतृप्त वसा, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ ये कुछ ऐसी चीजें है जो तनाव को बढ़ाने में मदद करती है।

6. फास्ट फूड या जंक फूड के नुकसान के नुकसान में एक नुकसान यह है कि फास्ट फूड से मिलने वाली अतिरिक्त कैलोरी वजन बढ़ाने का कारण बन सकती है। यह आपको मोटापे की ओर ले जा सकती है।

7. जंक फूड और फास्ट फूड के अवयव आपके प्रजनन क्षमता पर असर डाल सकता है। एक अध्ययन में पाया गया कि प्रोसेस्ड फूड में फथालेट्स शामिल हैं। फथालेट्स रसायन हैं जो आपके शरीर में हार्मोन कैसे कार्य करता है बाधित कर सकता है। इन रसायनों के उच्च स्तर के एक्सपोजर से जन्म दोष सहित प्रजनन संबंधी मुद्दों का कारण बन सकता है।

8. फास्ट फूड या जंक फूड के नुकसान में एक हानि यह है कि फास्ट फूड अल्पावधि में भूख को संतुष्ट कर सकता है, लेकिन दीर्घकालिक परिणाम कम सकारात्मक हैं। जो लोग फास्ट फूड और प्रोसेस्ड फूड खाते हैं, वे उन लोगों की तुलना में अवसाद विकसित करने की 51 प्रतिशत अधिक संभावना रखते हैं जो उन खाद्य पदार्थों को नहीं खाते हैं या बहुत कम खाते हैं।

9. फास्ट फूड और प्रोसेस्ड फूड में कार्ब और शुगर आपके मुंह में एसिड बढ़ा सकती है। ये एसिड टूथ एनामेल नष्ट कर सकती है। चूंकि टूथ एनामेल न होने की वजह से बैक्टीरिया दांतों पर अटैक करी और कैविटी का निर्माण करती है।
- सेहत ज्ञान डाटकाम 

Special Post

मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...