बुधवार, 12 सितंबर 2018

कुल्थी परांठा-गायित्री वर्धन

उत्तराखंड में एक पहाड़ी दाल काफी इस्तेमाल की जाती है जिसका नाम है गैथ या कुल्थी. इस दाल के भरवां पराठे भी बनाए जाते हैं जो खाने में बड़े ही स्वादिष्ट और पौष्टिक भी होते हैं. इस दाल को लेकर एक गढ़वाली कहावत है : "पुटगी पीठ म लग जैली" याने इस दाल को खाने वाले का पेट पीठ में लग जाएगा ( चर्बी नहीं चढ़ेगी ) कुल्थी की दाल के और भी नाम हैं जैसे - कुरथी, कुलथी, खरथी, गैथ या गराहट. अंग्रेजी में इसे हॉर्स ग्राम कहते हैं और इसका वानस्पतिक नाम है Macrotyloma Uniflorum. ज्यादातर पथरीली जमीन पर पैदा होने के कारण कुल्थी के पौधे का एक नाम पत्थरचट्टा भी है. संस्कृत में इस दाल का नाम कुलत्थिक है. दाल के दाने देखने में गोल और चपटे हैं और हलके भूरे चितकबरे रंग में हैं. हाथ लगाने से दाने चिकने से महसूस होते हैं

परांठा बनाने की विधि : चार परांठे बनाने के लिए 250 ग्राम गैथ साफ़ कर के रात को भिगो दें. सुबह उसी पानी में उबाल लें. दाल को ठंडा होने के बाद छाननी में निकाल लें. पानी निथरने के बाद दाल को मसल लें. इसमें बारीक कटा प्याज, हरी मिर्च, हरा धनिया और थोडा सा अदरक कद्दूकस कर के मिला लें. नमक स्वाद अनुसार डाल कर अच्छी तरह से मिला लें. तैयार पीठी से भरवां परांठा बना लें और देसी घी से सेक लें. गरम परांठे को चटनी और घी या मक्खन के साथ सर्व करेंभिगोई दाल के बचे हुए पानी में निम्बू निचोड़ कर सूप बना लें. सूप टेस्टी भी होता है और फायदेमंद भी. इस दाल के साथ राजमा भी मिला कर बनाई जा सकती है.

कुल्थी के गुण : इस दाल में खनिजों के अलावा प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट प्रचुर मात्रा में होता है. इस दाल को पथरी- तोड़ माना जाता है. दाल का पानी लगातार सेवन करने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी घुल कर निकलने लग जाती है. इस का एक सरल सा उपाय है की 15-20 ग्राम दाल को एक पाव पानी में रात को भिगो दिया जाए और सुबह खाली पेट पानी पी लिया जाए. उसी दाल में फिर पानी डाल दिया जाए और दोपहर को और फिर रात को पी लिया जाए. ये दाल इसी तरह दो दिन इस्तेमाल की जा सकती है. अन्यथा भी यह किसी और दाल की तरह पकाई जा सकती है. चूँकि ये गलने में समय लेती है इसलिए रात को भिगो कर रख देना अच्छा रहेगा. कुल्थी की दाल का पानी पीलिया के रोगी के लिए भी अच्छा माना गया है. ये दाल उत्तराखंड के अलावा दक्षिण भारत और आस पास के देशों में भी पाई जाती है
साभार-हर्षवर्धन जाेग

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