सोमवार, 19 मार्च 2018

डांस के दीवाने दिल की मानें- डा. अनुजा भट्ट


नृत्य एक आध्यात्मिक कला है जोकि हमारे अंर्तमन को जाग्रत करती है और साथ ही हमें पूर्णता देती है जिससे हमें यह एहसास होता है कि हम ईश्वर
की आराधना कर रहे हैं।
इसीलिए नृत्य को भगवान नटराज (शिवा) के साथ जोड़ा जाता है और पुरूषों द्वारा इसे पहले सिर्फ भगवान की आराधना की कला के रूप में अपनाया जाता था।  मुख्य रूप से नृत्यांगनाएं महिलाएं ही हुआ करती थी और अघोषित रूप से यह उनके लिए व्यवसाय का जरिया भी बन गया था।  हालांकि कुछ पुरूष नर्तक भी होते थे जोकि किसी बड़े घराने से ताल्लुक रखते थे और यक्षागणा/भागवता मेला कत्थकली और मयूरभंज जैसी नृत्य फार्म ही किया करते थे।
जब से ग्लोबिलाईजेशन हुआ है देश-विदेश के डांस फार्म भी पाॅपुलर हो रहे हैं तो इस क्षेत्र में भी कैरियर के आॅप्शन दिखाई दे रहे हैं।  ज्यादा से ज्यादा लड़के अब डांस सीख रहे हैं।  वह आत्मविश्वास के साथ नृत्य  को एक व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं।  इस नए ट्रेंड के साथ ही क्लासिकल और रीजनल डांस भी सेंटर स्टेज पर आ गए हैं। यह यंग आर्टिस्ट सिर्फ अपने रीजन में ही मशहूर नहीं हैं, यह विदेशों में जाकर भी परफाॅरमेंस देते हैं। इस ब्रिगेड में प्रमुख सत्यनारायण राजू कहते हैं, मेरे परिवार का आर्टस से कोई लेना देना नहीं हैं हम किसान परिवार से संबध रखते हैं। हमारे परिवार में कोई भी इस निर्णय से सहमत नहीं था कि मैं नृत्य को अपना व्यवसाय बनाऊं।  सिर्फ मेरी मां ने ही मेरे इस निर्णय में मेरा साथ दिया।  मैंने पढ़ाई छोड़ दी और फुल टाइम डांसर बनने का निर्णय लिया और इतने वर्षों की मेहनत के बाद आज मैं डांस टीचर भी बन गया हूं।  मेरे लिए सबसे बड़ी दुखःद बात यह है कि मेरी मां जोकि मेरी सबसे बड़ी सपोर्ट थी वही मुझे इस मुकाम पर पहुंचा हुआ देखने के लिए जिंदा नहीं रही।  दूसरी तरफ डा‐ एस‐ वासुदेवन अइनगर हैं जोकि बहुत सीनियर डांसर हैं। अपने परिवार की सर्पोट के साथ उन्होंने अपने पैशन नृत्य और गायन के सपने को पंख दिए।  उनकी गुरू वैजंयतीमाला की शिक्षा से उनकी प्रस्तुति में क्लासिकल प्योरिटी और पूर्णतः रिदम का समावेश हुआ।
अनिल अईर और मिथुन श्याम ने अपने पैशन को बहुत ही सहजता और सजगता के साथ निभाया।  मिथुन श्याम डांस में अपनी क्रियेटिविटी और इम्प्रोवाईजेशन के लिए जाने जाते हैं किस्सा सुनाते हुए वह कहते हैं कि वह अपनी बहन को डांस क्लास छोड़ने जाते थे उसी से उनके अंदर भी इसे सीखने की इच्छा जगी।  मेरे पेरेंट्स ने भी इसका विरोध नहीं किया।  मैं एक अमेरिकन कपंनी में नाईट शिफ्ट में नौकरी करता था ताकि दिन में मैं डांस कर सकूं।  लेकिन अब मैं अपना पूरा समय डांस को ही देता हूं।  मैंने अपनी सेविंग को और अपने डांस प्रोफेशन को ऐसा मैनेज किया है कि किसी भी समय पर मुझे पैसों की दिक्कत न हो।  मैं डांस क्लासिस चलाता हूं और प्रोग्राम भी करता हूं।  मैं एक एक्टिव परर्फामर हूं। मेरे डांस स्कूल में 25 लड़के डांस सीखते हैं।
अनिल अय्यर पेशे से एक साईकोलोजिस्ट है और पैशन से डांसर, अब उनकी सुनिए, उनके पिता ने उन्हें हर कदम पर प्रोत्साहित किया।  वह खुद आर्टिस्ट नहीं है लेकिन वह म्यूजिक और डांस परर्फामेंस देखने के शौकीन थे और मैं उनके साथ बचपन से ही जाता था।  इससे मेरे अंदर डांस सीखने की ललक जागना स्वाभाविक ही था।  यह आजकल अपना डांस स्कूल चला रहे हैं साथ में अपनी प्राइवेट प्रेक्टिस भी कर रहे हैं।  पाश्र्वनाथ उपाध्याय की मां ने उन्हें डांस सीखने इसलिए डाला क्योंकि उनको बेटी नहीं थी और वह उस कमी को पूरा करना चाहती थीं। उन्होंने यह कभी नहीं सोचा था कि वह डांस को अपना प्रोफेशन बनाएंगें।  वह बताते हैं कि उन्होंने अपने वैल्यूज से कभी भी काम्प्रोमाईज नहीं किया। आज उनकी खुद की एक डांस कंपनी हैं जिसमें उनके साथ पांच मेल डांसर हैं जोकि मिलकर काम करते हैं।
तो इस तरह से हम कह सकते हैं कि दुनिया बदल रही है, लड़के हों या लड़कियंा उनकी रूचियां उनका पैशन और फिर टेलेंट बनकर स्टेज में दर्शकों की तालियां बटोर रहा है और एवज में उनकी अच्छी खासी कमाई भी हो रही है।






रविवार, 18 मार्च 2018

चाहने लगी हूं मैं-अनन्या सिंह


तुम सोचते तो होगे,
कि सोचती क्यों हूँ तुम्हे
शायद खुश भी होते होगे
मन ही मन।
ये मन ही तो है जो
बेपरवाह सभी बातों से
बस लग जाता है यूँ ही किसी से
बिना सोचे समझे।।
मुझे भी नहीं पता कि
तुम क्यों उतरते जा रहे हो
रगों में मेरी
धीरे धीरे बेतहाशा
मगर तुम्हारा ना होना
विचलित करता है
तुम्हारा जवाब ना देना भी
परेशां करता है
तुम्हारी बेरुखी बेचैन
और तुम्हारा ना समझ पाना,
निराश करता है
पर जब तुम बात कर ते हो
तो मेरे होंठ ही केवल नही मुस्कुराते
मुस्कुराता है मेरा अंतर्मन
एक अरसे बाद कुछ गीत फिर गुनगुनाने लगी हूँ मैं
आईने में खुद को देख मुस्कुराने लगी हूँ मै
शायद बता दूं शब्दो मे तुम्हे किसी दिन
तुम्हारी प्रतिक्रिया से डरते रहूं कितने दिन
सच है कि तुम्हे चाहने लगी हूँ मैं।

शनिवार, 17 मार्च 2018

बीमारी, तीमारदारी, दुनियादारी सुशील सिद्धार्थ

सुशील सिद्धार्थ
व्यंग्य संग्रह : प्रीति न करियो कोय, मो सम कौन, नारद की चिंता, मालिश महापुराण काे क्या काेई भूल सकता है। कभी नहीं। इनके रचनाकार आज अचानक हमरा साथ छाेड़कर चले गए। पर हम कभी इनकाे भुला ना पाएंगे। शत शत नमन..



बीमारियाँ जीवन दर्शन के वृक्ष की शाखाएँ हैं। किसी भी शाखा में लटक जाइए किसी न किसी ज्ञान में अटक जाएँगे। बीमार शब्द ही अद्भुत है। अस्वस्थ कहने से हाय हाय के कैनवास पर मुर्दनी, बदहाली, तबाही का वैसा चित्र नहीं खिंचता जैसा बीमार कहते ही लपक उठता है। इसलिए बीमार आदमी कुछ खास होता है। कई बार खास दिखने के लिए कुछ समझदार लोग खुशी खुशी बीमार से बने रहते हैं। उर्दू कविता का तो आधा काम बीमारी से ही चलता है। बीमारेमुहब्बत की हाय हाय न हो शायरी में सन्नाटा खिंच जाए। दर्द मरीज आह दवा मसीहा इलाज बिस्तर कमजोरी मौत कफन कब्र जैसे लफ्ज न हों तो शायरी लगभग गूँगी हो जाए। एक जमाने में लखनऊ की नफासत का साज बीमारी के दम से ही बजता था। जब कोई पूछता था कि हुजूर के दुश्मनों की तबीयत नासाज तो नहीं है। खैर। ऐसे ही किसी बीमारियाना मूड में मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा था कि पड़िए गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार। ग़ालिब का क्या है। वे तो कुछ भी कह देते थे। वे कह सकते थे कि मेरे मरने के बाद मेरे घर से जाने कैसी तस्वीरें और चंद हसीनों के खत निकले। हम और आप यह खतरा उठा सकते हैं क्या। मोबाइल से एक शाकाहारी मैसेज निकल आए तो घर से निकलने की आदर्श स्थिति आ जाएगी। लेकिन इतने बड़े शायर ने कहा है तो कुछ वजन होगा जरूर। बीमार और तीमारदार का चोली दामन का साथ वे भी मानते हैं जो चोली की चेतना और दामन की दयालुता से अब तक नावाकिफ हैं।  यह गौरतलब है कि ग़ालिब ने तीमारदार से तौबा क्यों की थी। उनका तो वे जाने मगर कुछ तजुर्बेकार लोगों से बातचीत कर मैंने जो ज्ञान हासिल किया वह प्रस्तुत है।
आदमी तीमारदारी से तब तौबा करता है जब तीमारदारी खुद एक बीमारी बन जाती है। आदमी दुनियादार है तो बीमारी का आनंद और ज्यादा। तीन चीजें आपके सुकून को जुनून में बदल सकती हैं, बीमारी तीमारदारी दुनियादारी। दुनिया वालों का प्यार सबसे ज्यादा तब उमड़ता है जब आप बिस्तर की चौहद्दी में सीमित हों। तब देखिए लोगों का सामान्य ज्ञान, मेडिकल साइंस पर उनकी पकड़, हरिओम से लेकर अनुलोम विलोम तक उनकी पहुँच, भाँति भाँति की पैथियों पर उनके शोध प्रबंध, संयम और परहेज पर उनका आध्यात्मिक अनुसंधान। जो साधारण सा जुकाम हो जाने पर रूमाल से नाक तक नहीं पोछ पाते वे आपकी रिपोर्टों को ऐसी गंभीरता से पढ़ते हैं कि एम्स वाले चरण चूमने लगें। ऐसी लंबी साँस भरेंगे निकालेंगे कि बच्चे वसीयत के लिए वकील को फोन करने लगें। फिर तमाम मनन के बाद एक बहुत महत्वपूर्ण बात कहेंगे कि भाई साहब हम क्या कहें। जो डॉक्टर कहे वही करिएगा। जैसे बीमार तय किए बैठा है कि जब तक ये नहीं कहेंगे तब तक डॉक्टर की बात नहीं माननी। जो आठ बजे सुबह उठकर किसी तरह दाँत माँजकर दफ्तर भाग लेते हैं वे अनुशासन की मूर्ति बन जाएँगे। ऐसा है सुबह पाँच बजे बिस्तर छोड़ दिया करिए। एक गिलास पानी पिया और निकल गए टहलने। भाभी जी रोज यह कहती होंगी मगर आप सुनते नहीं। भाभी जी की बात माना करिए। मैंने आपसे कई बार कहा है। इसके बाद आनेवाली चाय के साथ समोसा या पकौड़ी न आए तो भाभीजी की महानता कैसे प्रमाणित हो। वे समोसा खा रहे, आप लार घूँट रहे हैं और उनकी भाभी यानी आपकी पत्नी के प्रवचन उमड़ रहे। क्या कहूँ भाई साब, मान ही लेते तो आज यह हालत क्यों होती। मैं इतनी केयर करती हूँ कि...। उसके बाद जाने कैसे कैसे संस्मरण। भावुकता की चाय में डुबो कर उपदेश के बिस्कुट खाते रहिए।
कोई बहुत गंभीर मामला न हो तो बुखार आदि मामलों में गिरफ्तार पति को देखकर पत्नी उत्साह से भर उठती है। ऐसा है, अपना यह मोबाईल मुझे दो। कुछ दिन अपना माइंड फ्री रखो। तुमने बहुत नरक काट रखा है। दिन्न भर। ये न्यूज, वो मैसेज, ये फोन वो चैट। ये बधाई वो वाहवा। कित्ती फुरसत है लोगों को। अभी बीमार हो इसलिए कुछ नहीं कह रही। मुझे सब मालूम है वहाँ क्या होता है। कहीं उल्टा सीधा चैट हो गया तो। अभी बीमार हो इसलिए...। मुझसे बात करने की फुरसत नहीं। और? नहीं आज मटर पनीर नहीं बनेगा। डॉक्टर ने मना किया है। किसी बात पर तुम्हारा कंट्रोल नहीं। अभी बीमार हो इसलिए...। तीमारदारी में लगी पत्नी से अगर कह दिया कि उन्ने शांति रखने के लिए भी कहा है तो फिर भुगतिए। देखभाल अच्छी लगती है मगर इतनी हो कि देखने भालने पर पाबंदी लग जाए तो रूह फना होने लगती है।
तीमारदारी में आशंकाओं की खासी भूमिका है। वैसे समकालीन चिकित्सा जगत का बहुत सारा चमत्कार आशंका नामक गुफा में छिपा है। वैधानिक चेतावनी यह है कि अलीबाबा और चालीस चोर की कहानी से इस गुफा का कोई संबंध नहीं है। यह जाँचों की गुफा है। खुल जा जाँच जाँच। आप, तीमारदार और डॉक्टर। कुछ क्षणों में डॉक्टर आपको कब्जे में ले लेगा। आपके तीमारदार से कुछ कहेगा। कहने के समय आपको चेंबर से बाहर बिठाया जा सकता है। फिर तीमारदारी और दुनियादारी की सलाहें शुरू। ऐसा है, डॉक्टर कोई उल्लू तो है नहीं। जितनी जाँचें कही हैं उतनी करा लो। ठीक है हल्की खाँसी है मगर फेफड़ों की लीवर की पूरी जाँच करा लीजिए। दिल भी जँचा डालिए। अरे अरे। चच्च चच्च। ऐसा न कहिए। डॉक्टर कोई उल्लू तो है नहीं। खाँसी का दिल से क्या घुटने से भी ताल्लुक है। हमारे पड़ोस के तिरवेदी जी खाँसते थे तो घुटने काँपने लगते थे। घुटने बदलवाए तब खाँसी में आराम आया। डॉक्टर कोई...। चंचल भाई के दाँतों में दर्द उठता था तो छींकें आने लगती थीं। दाँतों का नया सेट लगवा लिया बस नाक सही हो गई। शरीर का हर पुर्जा एक दूसरे से कनेक्ट है कि नहीं। डॉक्टर कोई...।
जब इस तरह कोई घिर जाता है तब उसका सोया दार्शनिक अँगड़ाई ले उठता है। तब वह बीमारी की डाल पर झूला झूलने लगता है। डॉक्टर पींगे बढ़ाने लगते हैं। कई बार कुछ लोग बीमारी को लोकगीत उपन्यास महाकाव्य की तरह लिखने लगते हैं। हर मिलने जुलने वाले को व्याधिदान (बतर्ज गोदान) नामक महाकाव्य या उपन्यास के अंश सुनाने लगते हैं। कोई भूल से कह भर दे कि अब नाखून का दर्द कैसा है। प्रेरणा मिल गई। रचना पाठ शुरू। किसी भी किस्सागो से बड़े किस्सागो। बीच में टोका कि नाराज, यार या तो कोई बात पूछो मती या फिर पूरी बात सुनो। मैं तो मर मर के किसी तरह बता रहा हूँ और तुम कानून छाँट रहे हो। मतलब, वियोगी होगा पहला कवि अंतिम सत्य नहीं है। हो सकता है कोई बीमार आदमी ही पहला कवि हो गया हो। आजकल की बहुतेरी कविताओं को देखकर बीमारी और कविता के रिश्ते पर बड़ी बहस निकाली जा सकती है। खैर, धीरे धीरे यह रचना हर परिचित को कंठस्थ हो जाती है। इस तरह बीमारी के कई संस्करण और पाठ तैयार हो जाते हैं।
दर्शन का दूसरा चरण है पीड़ा से प्यार। कुछ लोग बीमारी को महबूबा बना लेते हैं। आप सब कुछ कहिए उनकी प्यारी बीमारी को कुछ न कहिए। कह के तो देखिए, कि साब यह कौन सी बीमारी है। एहतियात रखें तो जल्द दूर हो जाएगी। वे नाराज हो जाएँगे। जानते भी हैं कुछ कि जो मुँह में आया कह गए। इस बीमारी की महिमा शास्त्र में गाई गई है। क्या बात करते हैं आप भी। उनका बस चले तो प्रसिद्ध श्लोक का रूपांतरण इस तरह कर डालें। यदा यदा हि बुखारस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम  जुकामस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्। यानी यह बीमारी महान। इससे बीमार मैं महान।
दर्शन का तीसरा चरण दुनियादारी से जुड़ा है। लोग गणित लगाकर डायरी मेंटेन करते हैं। अरे जाइए साब। इनको क्या। जब मैं भर्ती था तब देखने आनेवालों की लाइन लगी रहे। डॉक्टर ससुर एक दूसरे से फुसफुसाएँ कि बेट्टा, यह है बीमारी। इसे कहते हैं बीमार होना। कुछ आनेवाले तो तैयार कि साहब हमारा भी एक बेड बाबूजी के पास लगा दो। डॉक्टर जाने कैसे हाथ पाँव जोड़ कर सबको मना करें। बात करते हो। हमारे सामने उड़ा न करो।
इसलिए साहिब, बीमारी तीमारदारी और दुनियादारी का महान दर्शन आसान नहीं। इसे कोई बीमार मनीषी ही समझ सकता है। 

शुक्रवार, 9 मार्च 2018

टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी अंतिम भाग डा. अनुजा भट्ट




आज उसका फाेन आया ताे अच्छा लगा। सबसे पहले उसने कहा अगर  मैं आपकाे दीदी कहूं ताे। मैंने भी कहा कह सकती हाे पर रिश्ते निभाना आसान नहीं हाेता। उसने कहा मैं आपकाे निराश नहीं करूंगी। पता नहीं क्याें आपके लिए दीदी ही निकलता है। और  फिर मैं अपनी दीदी से अपनी समस्या भी ताे कह सकती हूं। अपनी परेशानी किससे साझा करूं। यह ताे वह सब सुना जाे बीत गया। आगे भी जीवन है और मुझे राह दिखाने के लिए आपसे अच्छा काैन मिल सकता है। वैसे आप पर यह दबाव नहीं दे रही हूं।  हाे सकता है आप यह सब पसंद न करें।
 तभी मैंने कहा एेसा कुछ नहीं है। तुम अपनी समस्या कह सकती हाे। कभी भी। बेहिचक.. पर  यह बातें मैंसेजर में ही कहाे ताे ज्यादा अच्छा है। तुम्हारी प्राइवेसी के लिहाज से भी।  ताे चलिए  मिलते हैं मैसेंजर में।  इतनी सारी बातें हुई पर मैंने ताे आपकाे बताया ही नहीं कि मेरे हसबैंड की डैथ कैसे हुई थी।
  एक्सीडेंट से 5 मिनट पहले ही मैंने उनकाे मिस काल किया था क्याेंकि  मेरे फाेन में 5 रूपये ही बैलेंस था। एेसा लगता है अगर मैंने मिस काल न करके सीधे फाेन  किया हाेता ताे वह मेरा फाेन सुनने के लिए कहीं रुक जाते और यह महाकाल रुक जाता।
  एक  दिन क्लासीफाइड में टीचर्स की वैकेंसी आई थी। स्कूल राजस्थान में था। मैंने इनकाे मना कर  दिया। पर यह नाराज हाे गए बाेले िक तुझे अच्छे स्कूल का एक्सपीरिएंस हाे जाएगा। अागे बढने का चाह क्याें नहीं है तुझमें। चल मैं चलता हूं तेरे साथ. इंटरव्यू देकर आ जा। वहां मेरा सलेक्शन हाे गया। देहरादून से एक और टीचर का सलेक्शन हुआ। 
   हम दाेनाे टीचर और मेरी बेटी राजस्थान चले गए। इन्हाेेने कहा तुम जब अच्छे से सैटल हाे जाआेगी ताे मैं भी वहीं कुछकाम धंधा देख लूंगा। यह  दिसंबर 2011 की बात है। बस फिर हम वहां चले गए। और जब ये हमकाे वहां छाेड़कर आए काे बहुत राेए। बेटी काे गले लगाकर एेसे राेए जैसे दुबारा मिलेंगे ही नहीं। पर उस स्कूल का मैनेजमेंट इतना खराब कि हमें राताेंरात भागना पड़ा।हम दाेनाे लेडीज भाग गई सचमुच। फिर अपने हसबैंड काे फाेन किया।  मैं इनकाे लंबी ड्येराइव के लिए मना करती थी पर यह इतने जिददी थे कि फाेन सुनते ही बाइक से राजस्थान के लिए  निकल गए।  वह भी जनवरी की ठंड में। पूरे रास्ते मैं बाेलती रही िक बाइक से मत आआे। देहरादून से हम बड़ी शान से गए थे  कि हमारा सलेक्शन राजस्थान हाे गया है। लाेगाें ने बधाई भी दी। अब  किस मुँह से वापस आएं। क्या कहेंगे लाेग. बड़ी टेंशन थी। पर साथ में जाे मैम थी  उनकी पहचान थी।धामपुर की प्रिसिंपल से। हमने उनकाे सारी बात बताई ताे उन्हाेंने कहा िक आप दाेनाे यहां आ जाएं।  और हम  राजस्थान से उत्तरप्रदेश के धामपुर में आ गए। वहां हमारी सारी व्यवस्था देखकर यह देहरादून के लिए  निकल गए। देहरादून आइएसबीटी के पास इनका एक्सीडेंट हाे गया। पर इन्हाेंने िकसी काे बताया नहीं। पर उस दिन हाथ में चाेट आई थी। सबकाे कहा िक अगर तुमने  उसे बताया ताे ठीक नहीं। वह वहां वैसे ही परेशान हाे रही हाेगी। दूसरे  दिन चाेट में ही गाड़ी चलाकर काम पर जाने लगे। सभी ने मना किया कि चाेट लगी है मत जा पर उनकाे ताे काल ने बुलावा भेजा था। और िफर से एक्सीडेंट हाे गया। और आन द स्पाट इनकी डेथ हाे गई। िफर जिस दिन मेरे हसबैंड की तेरहवीं हुई मेरी सास ने तमाशा  किया और  मैं अपनी छाेटी बच्ची के साथ अक्ली रह गई। 4 महीने मम्मी पापा के साथ रही। देहरादून में नाैकरी खाेजी और  नाैकरी  मिलते ही मैं मम्मी पापा के पड़ाैस में कमरा लेकर रहने लगी। बेटी काे प्ले स्कूल में डाला और बीएड  किया।  बुरा समय मेरे साथ था। 2013 में मेरे पापा काे यह सब संभालते संभालते हार्ट अटैक आ गया। पर वह बच गए।  2013 में वह  सेना से रिटायर हाे गए।  खैर  भगवान ने मेरा साथ  दिया और मेरी नाैकरी लग गई। पर मैंने एक नियम बना लिया था  कि अगर एक रूपया कमाऊंगी ताे 25 पैसा जमा करूंगी हर हाल में। नाैकरी में 15000 मिलने लगे और ट्यूशन से भी 10,000 के आसपास पैसा आने लगा। इस तरह मैंने पहला काम  किया कि कुछ जमीन खरीदी। 2013 में ही। बेटी की फीस नहीं जाती।
 2013 में पापा  िरटायर हाेकर घर आ गए। लेकिन और ज्यादा वयस्त हाेने के लिए। व्यस्तता भी कैसी.. पापा काे कैंसर हाे गया।नाैएडा के धर्मशिला हास्पिटल में उनका इलाज चला। क्याेंकि पापा ताे आर्मी वाले थे ताे उनका ट्रीटमेंट ताे आर आर से हाेना था  लेकिन उन्हाेंने पापा काे बाहर रैफर कर  दिया। आर आर और बेस हास्पिटल के मैने बहुत चक्कर काटे। डाक्यूमेंटेशन के लिए।


 सितंबर में उनकी डेथ हाे गई।  बीमारी के इस दैर में ही अपनी छाेटी बहन की शादी करवाई। ताकि पापा काे शांति मिले। और वह सुकूम महसूस कर सकें। एक तऱफ शादी की तैयारी और दूसरी तरफ पापा की बीमारी।  पापा  हमेशा कहते तू कुछ छुपा रही है। डाक्टर क्या कह रहा है। सब कुछ इतनी जल्दी जल्दी क्याें कर रही है। मैं पापा काे क्या बताती।  बहन की शादी धूमधाम से की।  उसकी भी ताे खुशी देखनी थी। 
 जिंदगी एेसे ही चलती है दीदी। कुछ पूछना चाहेंगी.....
  कहानी खत्म हुई।
  बड़ी कशमक्श में हूं। क्या उसे अपने नए जीवन के बारे में साेचना चाहिए। जिन खुशियाें की वह भी हरदार है क्या उसे अपने कदम बढ़ाने चाहिए। क्या उसकी 9 साल की बेटी के साथ  काेई पढ़ालिखा नाैजवान उसका हाथ थामने के लिए तैयार हाेगा।  माफ करना उसे दया की जरूरत नहीं है। सच्चे मायने में एक हमसफर चाहिए जाे एक अच्छा पिता और पति बनने की क्वालिफिकेशन रखता हाे। आपने भी ताे पूरी कहानी पढ़ी है मेरे साथ.... 

बुधवार, 7 मार्च 2018

टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी- पार्ट 4 डा. अनुजा भट्ट


मौसम बदल रहा है। हाेली भी खत्म हाे गई थी। पेड़ाें में नई काेंपले आ गई ताे उधर पीले पत्ताें ने धरती पर अपना कालीन सा बिछा दिया है। पक्षी हर राेज की तरह धरती से आसमान में आवाजाही कर रहे हैं। काेयल की कूंक ताे यहां सुनाई नहीं देती पर हां कबूतर हर राेज अपनी जुगलबंदी से एक उल्लसित सा वातावरण तैयार कर देते हैं। वैसे यहां बहुत सारे लाेग हर राेज कबूतर काे दाना देते हैं। दाना देखते ही कबूतराें के झुंड के झुंड आ जाते हैं पर कभी इस मुडेर तक कभी दूसरी मुडेर पर। पर कबूतर हमेशा घराें में रहते हैं । वहीं बसेरा हाेता है इनका । पेड़ाें पर गाैरया की तरह सुंदर घाेंसला नहीं हाेता है । पर हां अपने बच्चाें के लिए तिनका - तिनका तिनका यह भी जाेड़ते हैं और तैयार करते हैं एक घर..

अपने नीड़ के लिए हर जीव न जाने कितने सपने बुनता है। इसी घर के लिए ताे पागल हाे गया था उसका देवर.. अपने बच्चे केसाथ खेलने की चाह उसकी भी थी। पर वह अपनी बीवी के लिए न मकान बना सकता था न जमीन खरीद सकता था। उस समय किसी के पास कुछ भी नहीं था। जाे कुछ था सास ससुर का था। जेवर और पैसे चुराकर उसने अपना विश्वास ही खाे दिया था। जाे हमारी सबसे बड़ी पूंजी हाेती है। विश्वास गया ताे सब गया। एकदम ठीक कहा आपने मैम ...यही हुआ उसकी बात पर किसी काे भराेसा नहीं था। इसलिए उसकी बीवी ने सुलहनामा नहीं लिखा ताे नहीं लिखा। आगे सुनिए..

कथा का सूत्र अब उसने अपने हाथ में ले लिया था। मेरे देवर ने खुद काे गाेली मार ली थी । बताया था ना आपकाे । पर वह मरा नहीं। बच गया लेकिन किस्मत देखिए । उसके ऊपर एक और केस चला ।आर्मी में। साेसाइड करने का। उसे मेंटल हास्पिटल भेज दिया गया। एक बार फिर उसके सीआे ने काेशिश की कि उसका घर बस जाए नाैकरी पर बहाली हाे जाए पर उसकी बीवी ने कुछ भी लिखने से इंकार कर दिया। मैंने उसी बात काे राेकते हुए कहा कि तुमने अपनी ननद के बारे में नहीं बताया.. कैसा है तुम्हारे प्रति उसका व्यवहार।वह बहुत अच्छी है मैम। मैंने कहा था ना कि मुझे उससे प्रेरणा मिलती है। वह बहुत सुंदर भी है ।एकदम पहाड़ी ब्यूटी कह सकती हैं। पर वह बाेल और सुन नहीं सकती। इसके बावजूद भी उसने अपने ही तरह के स्कूल से पढ़ाई और और बहुत अच्छे नंबर भी लाई । इस समय वह सरकारी नाैकरी में हैं। मैंने कहा ना मुझे उससे प्रेरणी मिलती थी और उसके सामने अपनी कठिनाई ताे बहुत मामूली सी लगती थी। शादी के बाद मुझे पता चला कि वह बाेलऔर सुन नहीं सकती। घर में उसके प्रति बड़ा उपेक्षित व्यवहार था। पर मेरे साससुर ने एक बात अच्छी करी कि उसे पढ़ाया । उसरी फीस नहीं जाती थी। अपने बेटाें से पहले उसकी पढ़ाई लिखाई की व्यवस्था की। उसने मेरी बहुत मदद की । वह और मैं चिट गेम खेलते थे। चिट के माध्यम से वह मुझे हर बात बताती थी और मैं भी उसकी हर बात बहुत गाैर से सुनती थी। िफर उसकी शादी हाे गई। उसी के तरह के साथी से। किस्मत का खेल देखाे वह आदमी उससे सिर्फ इसिलए शादी की वह नाैकरी करती थी । घर को लाेग कहते है वह ठीक आदमी नहीं था। इस बीच मेरे ससुर भी मर गए अब मेरी सास और ननद रहते हैं वही उनका ख्याल रखती है। मुझसे मिलने आती है। हां जब वह मेरी बेटी काे प्यार करती थी ताे वह डर जाती थी। उसके हावभाव से वह राेने लगती थी। वह उसे चूमती बहुत प्यार करती कभी ताली बजाती लेकिन अपनी ताली की आवाज उसे सुनाई नहीं देती थी। वह जाेर जाेर से बजाती और बच्ची डर जाती। इससे वह घबरा जाती और राेने लगती। मेरी सास उसकाेे वहां से भगा देती । क्याेंकि मैंने बताया था ना कि उनकाे आवाज से गुस्सा आता था। वह टुकर टुकर देखा करती। फिर मैं उसे लिख कर समझाती ताे वह समझ जाती। जब मेरे ससुर शराब पीकर आते ताे वह मेरे पास एक चिट छाे़ड जाती जिस पर लिखा हाेता एलर्ट गुड नाइट.. डू नाट आेपन द डाेर.

वह गुड़िया के लिए तब खुद दूध गरम करके दे जाती थी। मेरा उससे बहुत लगाव है लेकिन सास साेचती है िक अगर इसे घर में आने दिया ताे इसकी बच्ची की जिम्मेदारी लेनी हाेगी िफर मेरा देवर भी ताे है। मूक और बधिर का दुःख कैसा हाेता है यह मैंने बहुत पास से देखा है। उनकीइच्छाएं समाज समझ नहीं पाता उनका प्यार दुलार देख नहीं पाता ।

आंखे भर आई हैं मेरी . टाइप करना मुश्किल हाे रहा है। बेटी भी कह रही है लिख रही हाे या राे रही हाे। वह बार बार पूछ रही हाे क्या लिख रही हीे मम्मी.. साे जाते हैं आज काेई कहानी सुनाआे ना।... क्या सुनाऊं उसे। आप ही सजेस्ट कीजिए..

मैं साेचती हूं िक अगर मेरी ननद काे काेई जूडाे कराटे सिखा दे ताे फिर वह कुछ ताे सुरक्षित रह सकेगी। उसकी चिट में कई तरह की बातें मैंने पढ़ी है। सचमुच संसार में इंसान और जानवर दाेनाें हैं। बड़ा डर लगता है। इसलिए ही ताे मम्मी के घर के पास रहती हूं ।

उसकी भी क्या किस्मत है.. एक भाई था जाे रहा नहीं एक भाई है जाे पागल है एक मां हैं जाे सिर्फ दुःखी है। और दुःख में इतना डूब गई है कि उसे कुछसमझ नहीं आता । वह काेई निर्णयकभी ले नहीं पाई। कभी हमें दुतकार कर भगाती थी कभी वापस आने की जिद करती थी िफर भगा देती थी। भूखा नहीं ऱखती थी पर मनभर खाने भी नहीं देती था। बात बात में कहती है बाप की कमाई खाते शरम नहीं आती। कब तक बाप की कमाई खाते रहाेगे।

जीवन है ताे जीना है जैसा लिखा है वाे ही हाेना है। इसलिए मेरे लिए यह काेई अनाैखी चीज नहीं। आप बताइए।

सच ही ताे है। जैसा लिखा है वैसा ही हाेता है बस कर्म करते जाना चाहिए।











कर्म से ही रास्ता बनता है तुमने अगर रास्ते नहीं तलाशे हाेते ताे क्या आज यह सब कुछ कर पाती। इतना साहस भर पाती...कहानी अभी बाकी है दाेस्ताें. कल तक के लिए विदा लेते हैं। इस कहानी के ५ पार्ट के साथ हम िफर मिलेंगे। एक नई कहानी के साथ दर्द और साहस की एक नई दास्तान के साथ..

मंगलवार, 6 मार्च 2018

टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी पार्ट 3 डा.अनुजा भट्ट



इस कहानी में कितने तरह के माेड़ आते हैं और हर माेड़ पर आकर कहानी ठहरी हुई सी लगती है पर एेसा हाेता नहीं। फिर कुछ एेसा घटनाक्रम बनता है कि कहानी की पूरी धारा ही एकदम बदल जाती है। अब मेरे लिए हर राेज मैसेंजर पर लिंक रहना जरूरी सा हाे गया। वह सचमुच एक नदी की धारा की तरह ही थी। पर एकदम शांत और खुद के भीतर सब कुछ समा लेने का अजीब सा जज्बा लिए। उसे अपनी जिंदगी की हर तारीख महीना याद था। मैंने एकदिन पूछा सब कुछ याद है तुम्हें। छाेटीछाेटी सी बातें... छाेड़िए ना.. आप ही हैं जाे मेरी तारीफ कर रही है.. क्या आज आप मेरे बारे में जानना नहीं चाहेंगी। या बाेर हाे गई। मैंने कहा नहीं बाेर नहीं हुई है यह साेचसाेचकर हैरान जरूर हूं कि तुम यह सब सह कैसे लेती हाे... उधर से जवाब आया कि काश मैं कविता लिख पाती अपना दर्द कह पाती.. पांच साल ही की ताे थी मैं जब मेरी मां मर गई और मेरी बहन ३ साल की। एक एक दिन कैसे कटता गया मुझे सब याद है। मां के रहने तक ही बचपन और बचपना था मेरा। ५ साल की उम्र में ही मां बहन और पापा की जिम्मेदारी देकर हमेशा के लिए चली गई। उस दिन के बाद मुझे हर दिन और तारीख याद हैं।

हां वहीं ताे इतने फटाफट टाइप करती हाे... बताने लगी है वह अब....

पता है मैंम जब हम घर से आए ताे मैं बहुत खुश थी । हम दाेनाे लूडाे खेलते थे । बस वही अच्छे दिन थे मेरी शादी के। उसके बाद डिलीवरी का टाइम आया जाे नवंबर में हाेनी थी । मैंने डिलीवरी के लिए भी पैसे जमा करके रखे थे कि कहीं आपरेशन की जरूरत न पड़ जाए अगर एेसा हुआ ताे क्या करेंगे क्याेंकि इनके घरवालाें से ताे काेई उम्मीद थी नहीं और मैं अपने घर से लेना नहीं चाहती थी क्याेंकि मम्मी जितनी हैल्प नहीं करती थी उतना लाेगाें में बाेल देती थी कि एेसा किया , वैसा किया और पापा काे बाेल देती थी सब कुछ मैंने किया । मैं ही सब कुछ देती हूं। मुझे अच्छा नहीं लगता था। फिर डिलीवरी ताे नार्मल हाे गई और मेरे सास ससुर आए भी, हास्पिटल में मुझे देखने।पर वहां भी मेरी सास ने तमाशा कर दिया। मुझे आकर बाेलने लगी कि दर्द हुआ ताे बता नहीं सकती थी। जबकि मैंने इनकाे बाेल दिया था कि तुम ना सबसे पहले अपनी मम्मी काे बता दाे। इन्हाेने बताया ही नहीं ताे मेरी क्या गलती। और मेरे दर्द हाे रहा हाे ताे उस समय मैं अपनी सास काे फाेन कैसे करती। और फिर पता है जब मेरी बेटी हुई ताे उसके एक पैर में प्राब्लम थी। मेरे साससुर चाहते थे कि हास्पिटल से हम सीधे घर जाएं। पर मेरे हस्बैंड ने बाेला किअगर हम घर गए ताे तुझे ही सारा काम करना पड़ेगा एेसा करते हैं पहले रूम में ही जाते हैं फिर तू थाेड़ा ठीक हाे जाएगी तब घर जाएंगे। ताे फिर हम लाेग 10 वें दिन गए और 11वें दिन में नामकरण था। मुझे लगा थाेड़ा सुधर गए हाेंगे घरवाले । पर नहीं वहां वहीं ड्रामा था। मेरे ससुर जी जब ड्रिंक करते थे ताे उनकाे काेई हाेश नहीं रहता था बिस्तर पर ही सब कुछ। फिर हाेती थी लड़ाई। बाप बेटे की मार पिटाई.. बस फिर आ गए वापस। फिर जब दुबारा आए ताे यह सुबह ही चले जाते थे। मेरे साथ एक बेटी . उसके पैर में प्राब्लम थी उसकाे प्लास्टर चढ़ा था फिर उसके शूज हाेते थे जाे दाेनाे पैराें काे ज्वाइंट करते थे। अरे मैम मैं ताे उसकाे पैजामा भी नहीं पहना पाती थी ठीक से। पाटी करने में भी दिक्कत थी। घर का काम ट्यूशन... मुझे इतनी टेंशन थी िक मुझे भूख ही नहीं लगती थी और बच्ची काे फीड कराना हाेता था। फिर मैं बहुत बीमार हाे गई। मेरा वजन 39 किलाे रह गया.. टीबी हाे गई थी मुझे.. इस बात काे सात साल हाे गए। तब मेरी बेटी कुछ महीने की थी। फिर जब मेरी बेटी 1 साल की हुई ताे मेरी सास फिर आई। मुझे उनपर दया आ गई फिर लगा मेरी बेटी के पास सब कुछ ताे है दादा दादी हैं बुआ है चाचा है मैं क्यूं दूर रखूं उसकाे। इन सबसे फिर लगा कि बच्ची काे देखकर सुधर जाएंगे। ताे मैंने इन्हें बाेला। इन्हाेंने मना कर दिया। मैंने बाेला मैं ताे जा रही। फिर मैं गई ताे अपनेआप ये भी आ गए।

आज बहुत थकी हूं मैम कल फिर बताऊंगी.. काेई बात नहीं अब तुम्हारी बेटी ठीक है ना और तुम भी स्वस्थ हाे ना। हां मैडम मेरी बेटी अब एकदम ठीक है और मैं भी ठीक हूं। तुम्हारी ननद का व्यवहार कैसा है तुम्हारे प्रति। वह बहुत अच्छी है मेरे लिए। और वह बहुत मेहनती भी है उसी से ताे मुझे हिम्मत मिलती है। यह सब कर सकती है ताे मैं क्याें नहीं । उसके बारे में कल बताऊंगी क्याें मिलती है मुझे उससे प्रेरणा... मेरी बेटी उसे खिलाैना क्यूं लगती थी....

वह अाफ लाइन हाे गई है । फिर से कई सवाल और कई दर्द काे पीछे छाेड़कर.... मुझे लगता है शायद उसकी ननद ही एक मात्र एेसी सदस्य हाेगी जाे उसका साथ देती हाेगी और उसकी बच्ची काे बहुत प्यार करती हाेगी। छाेटे बच्चे ताे वैसे भी बहुत प्यारे हाेते है। इसलिए वह उससे खेलती हाेगी। जैसे बच्चे खेलते हैं खिलाैनाें से। चलाे कहीं ताे सुःखांत है इसके जीवन में। तकलीफ भरे रास्ते में छायादार वृक्ष का हाेना उतना ही जरूरी है जितना तपिश में पानी की बूंद का टपक जाना। ताे दाेस्ताें कल फिर मिलते हैं इस कहानी के ४ िहस्से क साथ..


टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी पार्ट 2- डा. अनुजा भट्ट



यहां समय ठीक रात्रि के 10 बजे हैं। आपको कहानी पोस्ट करके अब अपने वायदे के मुताबिक पार्ट 2 लिख रही हूं। मौसम अच्छा और खुशगवार है। सोचा उसके हाल चाल तो ले लूं। इस समय उसके शहर में बारिश हो रही हैं। पहा़ड़ी इलाके में लोग जल्दी सो जाते हैं पर उसकी आंखों में नींद नहीं है। उसके सिर में दर्द है और भले ही वह कहे या न कहे बेचैनी तो होगी ही। बारिश सहसा तेज हो गई है और वह निडर लड़की बाहर निकलकर बारामदे में लगे कपड़े उठा रही है। उसमें उसके नहीं मकानमालकिन के कपड़े हैं जो इस समय गहरी नींद में है। पर इसे तो जागना है क्योंकि कल अगल अलग क्लास के बच्चों का टेस्ट लेना है तो प्रश्नपत्र बनाना है। दोस्तो मैंसेंजर में आ गई है वह अब अपनी कहानी लेकर चलिए मैं आप सब उसकी कहानी पढ़ें। गजब के इमोजी लगाती है लड़की. उदास चेहरे नहीं है आज. पर एक बच्चा एक हाथ से फूल दे रहा है तो तुरंत वापस ले रहा है... क्या कहना चाहती है यह लड़की। मुझे लगा कि शादी के बाद अच्छा घर मिलेगा। शांति और प्यार मिलेगा। पर शादी के बाद भी कुछ ठीक नहीं रहा क्याेंकि वहां का एडमासफियर तो और भी खराब था। वहां मेरे ससुर ड्रिंक करते थे और सास तो इतनी खतरनाक थी कि क्या बताऊं। उनकी मर्जी के बिना वहां पत्ता भी नहीं हिल सकता था। उनकी अपने बच्चों में ही मार पिटाई होती थी। इतने जवान बच्चे मां बाप को मारते थे, हाथ उठाते थे और वह भी बच्चों को मारते थे। आप सोचो घर कैसा होगा जहां मां बाप को बच्चे मारते हों। मैंने तो अपने घर में मां के रोज रोज के क्लेश से शादी के लिए हां कर दी थी पर मेरी किस्मत में तो क्लेश ही क्लेश लिखा था। मेरे हसबैंड थोड़ा ठाक थे। पर बचपन में जिसने मां बाप में इतना क्लेश देखा हो उनपर भी असर तो होगा ही। डन्होंने भी मुझे झूठ बोला कि मैं ग्रेजुएट हूं। बट शादी के बाद पता चला कि वह 10वीं किए हुए थे। पर मैंने अपने दुःख को ताकत बनाया। मेरे पापा बहुत प्राउड फील करते थे मेरे लिए। फिर पता है मैम मेरे हसबैंड का भी कोई ठीकठाक काम नहीं था। पर मैने उनको नोटिस किया कि वह बहुत इंटेलीजेंट और स्मार्ट थे। पर उनको ऐसा एडमासफियर ही नहीं मिला। और मेरी सास शादी के वन मंथ बाद ही घर से निकलने के लिए बोलने लगी। बोलती थी बाप की कमाई खा रहे हो निकलो यहां से। ये लोग दो भाई थे दोनों की शादी एक ही दिन हुई थी। वो आर्मी में था। वह भी पागल ही निकला। अपनी वाइफ को अपने साथ लेकर गया और ले जाकर मारा और उसकी ज्वैलरी भी बेच दी। फिर 4 महीने बाद घर आया उसको लेकर और फिर घर से पैसे चोरी कर लिए । बहुत क्लेश हुआ। बहुत मारपिटाई हुई सब की आपस में। मेरी सास ने अंतिम एलान किया निकलो घर से और हमारा सामान फैंक दिया। बस क्या था निकल गए.... और पता है वहां सुबह 5 बजे उठ जाना होता था और सीधे नहां कर पूजा करके अंधेरे में सब काम निपटाना होता था और अगर लेट हो गए तो सास बातचीत बंद कर देती। फिर तो और महाभारत होता क्योंकि वेजीटेबल में कितना ओनियन डालना है ये भी पूछना होता था। आप ये सोचो कि हम दोनों नई नवेली बहुएं पाजेब और चूड़ी नहीं पहन सकती थी क्योंकि उनसे आवाज होती थी और मेरी सास को आवाज पसंद नहीं थी। किचन में खाना बनाते हुए बर्तनों की आवाज नहीं होनी चाहिए। एकतरफ इतना सन्नाटा और दूसरी तरफ रोज का हाहाकार... उसदिन की लड़ाई के बाद जब घर से बाहर निकले तो बहुत खुश थी सच में। आज सोचती हूं अक्ल ही नहीं हुई और ऊपर से मैं प्रेग्नेंट थी। पिंजरे से बाहर निकल आए। यह 2008 की बात है। केवल 3000 में गृहस्थी की शुरूवात की। मेरे देवर और देवरानी ने भी उसी दिन घर छोड़ दिया। मेरी देवरानी अपने मायके चली गई और उसी के पास कमरा लेकर रहने लगी। वह भी उस वक्त प्रेगनेंट थी. उसके पेरेंट्स यह बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने देवर को सबक सिखाने के लिए उसकी लिखित शिकायत उसके आफिस में कर दी। आर्मी में अगर परिवार की तरफ से शिकायच जाती है तो तुरंत एक्शन होता है। उसका कोर्टमार्शल हुआ और नौकरी छूट गई। पर उसका सीईओ भला आदमी था। उसने कहा अगर तुम्हारी पत्नी लिखित में सुलहनाम दे सकती है तो तुम्हारी नौकरी फिर से बहाल हो जाएगी। पर उसकी बीबी नहीं मानी। उसने दो शर्त रखी पहली तो मेरे लिए घर का प्रबंध करो और मेरे लिए जमीन लो। यह उस समय संभव नहीं था। ऐसा न होने पर उसने सुलहनामा लिखने से मना कर दिया। मेरे देवर ने गोली मार ली...



हमने जहां घर लिया वहीं मकानमालकिन के बच्चों को मैं ट्यूशन पढ़ाने लगी। उनके दो बेटे थे और दोनों ने रिर्जट बहुत अच्छा किया। फिर तो मेरे पास बहुत सारे बच्चे आने लगे। इन्होंने भी 1985 माडल की एक गाड़ी खरीद ली और उसे स्कूल में लगा दिया। यह स्कूल के बच्चों को लाने ले जाने लगे। उस समय मेरे ससुर जी ने थोड़ी मदद कर दी। ट्यूशन के साथ मैंने सिलाई का काम करना भी शुरू किया। मेरी नई मां ने ही मुझे सिलाई सिखाई। ताकि घर में कुछ अतिरिक्त आमदनी हो सके। आखिर पहली मां से हम दो बहनें थी। हमारी परवरशि का भी खर्च था। जब मेरी सिए कपड़े लोग पसंद करते तो बड़े गर्व से कहती कि मैंने कहा था सिलाई सीख। इससे मुझे फायदा यह हुआ कि घर का खर्च चलाना आसान हो गया। घर से जब हम बाहर निकले तो वह समय मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत ख्वाब था। हमारे पास पैसे तो थे नहीं पर हमारे पास सपने बेशुमार थे.... मैंम आप बोर हो गई ना... क्या करेंगी जानकर सुनकर। पर मेरे लिए तो आप... क्या कहूं मैंम। हद करती हो तुम... इस तरह क्यों सोचती हो। मैंने कहा था ना दुःख को बादलों की तरह होना चाहिए। समय समय पर बरसेंगे नहीं .तो प्रलय । मुक्तिकामी भी बादल ही तो हैं और हमारी आंखें जिनसे हम देखते हैं सारी दुनिया और शाश्वत शिव की तरह पी लेते हैं जिंदगी के कई गरल कई सरल। किसी के कंधे पर लुड़क जाती है तो कभी बारिश में समा जाती है यह बूंदे ही ताे है। पर मंथन तो जरूरी है... अमृत जरूर निकलेगा.. मैसेंजर ने फिर से टमटमाया और एक ना ना करता चलता फिरता इमोजी कहने लगा नो नो नो फिर शब्द तैर आए जैसे तैर आते हैं बादल..अभी तो बहुत कुछ जानना है आपने। अमृत इतनी आसानी से नहीं मिलता मुझ जैसों को। यह तो आप भी मानती है ना। सो जाइए अब। अपना दुःख कहकर मैंने आपको बेवजह ही परेशान कर दिया। कल फिर मिलेंगे अगर आप परेशान न हाें ताे। देखिए बारिश कितनी तेज हो रही है। आपकाे कैसे पता चलेगा वहां....और अब एक छाता के साथ इमोजी मुस्कुरा कर कह रहा था. गुड नाइट कहानी बाकी है अभी जैसा मैसेंजर ने बताया...

टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी- डा. अनुजा भट्ट पहला भाग



मोबाइल के मैंसेंजर से लगातार रिंग टोन बज रही थी.... सवाल थे कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। हर रोज मैं 10 बजने का इंतजार करने लगी थी। मैंसेंजर पर हमारी दोस्ती एक सवाल के साथ ही शुरू हुई थी और आज लगता है जैसे कई नदियों पहाड़ों को पार कर कोई सुरीली तान न जाने कब से मुझे खोज रही थी। एक ऐसी नदी जो उफान पर थी पर फिर भी बहुत शांत। पहला सवाल शुरू हुआ कि मैडम आप कहां से हो क्या उत्तराखंड से.... सवाल पढ़कर मुझे पता नहीं क्यों लगा इस सवाल में कहीं न कहीं कोई बैचैनी है यह सवाल सिर्फ सवाल भर नहीं है इसमें जिझासा है कौतुहल है और साथ में हैं प्यार की खुश्बू। आप सोचेंगे खुश्बू तो फूल से आती है पर कभी कभी कोई शब्द भी फूल सा महकने लग जाता है और उसकी गंध आपको उसके पास ले जाने के लिए उसके सवाल के जवाब में लिखती है हां। मैंसेजर पर फिर से घंटी बजती हैं कैसी हैं आप?... जवाब पहले जैसा ही अपनी सुनाओ, मैं ठीक हूं। मैंसेजर में टाइप होने का संदेश उभर रहा है और मैं बेचैन सी हूं। तभी एक कुछ लिखा सा आता है..आप बहुत अच्छा लिखती हैं मैंने कल आपकी एफबी पर सारी पोस्ट पढ़ी थी... मैंने भी टाइप किया ओह और साथ में एक इमोजी भी लगा दी मुस्कुराते हुए। दूसरे दिन नियत समय पर फिर से मैंसेजर में लाइट चमकी इस बार एक हाथ हिलाता हुआ था। माने हेलो.... मैंने कहा कैसी हो तुम उधर से जवाब आया.. मजे में आप नौएडा में रहती है ना... मैंने फिर लिखा हां. कुछ काम हो तो बताओ... मैंसेजर ने एक उदास चेहरा भेज दिया... मैंने हड़बड़ाते हुए लिखा सब ठीक ना... मैसेंजर में संदेश था. अब कोई काम नहीं है बताने के लिए। काश आप पहले मिल जाती। तो जरूर मेरे पापा शायद...इसके बाद मैसेज आना बंद हो गया और मोबाइल का चार्ज भी... अब. कुछ हो नहीं सकता कल रात 10 बजे तक इंतजार करने के। हो सकता है वह मैंसेजर पर आए हो सकता है नहीं आए... वह मुझे जानती ही कितना है। न कभी मुलाकात हुई और न कभी बात हुई। मैंने बस लिखा उसने पढ़ा और सहज जिझासा से पूछ लिया। फिर मैं ही इतनी भावुक और परेशान क्यों हूं। आखिर वह मुझे क्यों अपने बारे में बताएं या मैं ही क्यां सुनूं। न जाने कितने है जो अपनी फेंक आईडी से फेसबुक पर सक्रिय है। मेरी दोस्तों के बच्चे जो अभी 12 साल के भी नहीं हैं फेसबुक पर हैं। शौकिया तौर पर अपनी फोटो अपलोड करते रहते हैं। तभी याद आया उसने कहा था कि मैंने फेसबुक से आपके बारे में जाना तो क्यों ना मैं भी उसे खोज लूं। इतने मंथन के बीच मोबाइल थोड़ा सा चार्ज हो गया। पर घड़ी की सुई बहुत आगे थी। उसने भी मोबाइल डाटा आफ कर दिया होगा... खुद को झटका मैंने ।. तभी नींद ने अपने आगोश में ले लिया। यह सोचते सोचते कि उसके पापा को आखिर क्या हुआ होगा और वह मुझसे कैसी मदद मांगती। दूसरे दिन जब मैंने फिर से फेसबुक खोला तो देखा वह मुझे फालोअप कर रही थी। मेरी बहुत सारी पोस्ट पर उसने अंग्रेजी में अपने कमेंट लिख थे। हिंदी भी रोमन में लिखी थी। एक जगह उसने लिखा था जब हारने को कुछ न हो तभी असली हिम्मत आती है। जब तक आपके पास कुछ भी रहता है आप जोखिम नहीं ले पाते। मैंने भी अब उसके कमेंट्स पर ध्यान देना शुरू कर दिया था..... मैंने दो बार पढ़ा फिर पढ़ा उसने लिखा था सिंगल पेरेंटिंग पर भी लिखा जाना चाहिए.. उनकी भी दिक्कते हैं। रात का 10 बज चुका था। मैं मैंसेंजर पर रिंग बजने का इंतजार कर रही थी आज मेरे पास भी उसके बारे में जानकारियां थी। सवाल थे। तभी चमकती हुई लाइट दिखी...हेलो मैम आप सोई नहीं अभी.. नहीं, तुम्हारे मैसेज का इंतजार कर रही थी। माफ करना कल मोबाइल डस्चिर्ज हो गया। तुम सोच रही होगी मैंने तुम्हारी बात बीच में रोक दी। आज तुम लिखती जाओ मैं पढ़ रही हूं। मैम मैंने नौएडा और दिल्ली के बहुत चक्कर काटे हैं। मैं अपने पापा को इलाज के लिए लाती थी। उनको कैंसर था औ्र उनका इलाज नौएडा के धर्मशिला कैंसर हास्पिटल में चल रहा था। 1 1/2 साल इलाज चला उनका। सितंबर में उनकी डैथ हो गई। वह आर्मी पर्सन थे। आपको पढकर अच्छा लगा। मुझे लगा कि औरत किसी से कमतर नहीं है वह सबकुछ कर सकती है। बीकाज आई एम ए सिंगल पेरेंट आँफ माई डाटर। माई हस्बैंड इज नो मोर... मैंसेजर में शब्द आकार ले रहे थे। दुःख और पीड़ा, स्मृति और छाया पेड़ और उनका आदमियों की आकृतियों में बदल जाने के अहसार पिरोए एक पेंटिंग जैसे कई वृत्त चित्र मेरे मन के घेरे में बनने शुरू हो गए थे। यकायक जैसे आंसू की धार बहने लग जाती है किसी का दुःख सुनकर आज कलेजा कांपा तो मैसेंजर ने टाइप किया कैसे हुआ यह सब और वह तो उधर प्रतीक्षा में थी मेरे लखिए को पढने के लिए। लाइट जगमगाई और शब्द में दर्द आया मैं उनका इक्सीडेंट हुआ था और आन द स्पाट डेथ हो गई थी तब ेरी बेटी 3 साल की थी और आज 9 साल की है। कहां रहती हो तुम ससुराल में या मायके में। मैम ससुराल में कौन रखता है वह भी बेटी की मां को.... बेटे से ही सरोकार होता है.... मैं मम्मी के घर के पास ही रहती हूं किराए का घर लेकर।

प्रतिप्रश्न था नौकरी करती हो। हां मैंम एमएससी बीएड हूं। मैथ्स पढ़ाती हूं। भाई बहन हैं हां ंमैम हम 3 भाई बहन हैं बहनों की शादी हो गई और भाई छोटा है। घर में मैं सबसे बड़ी हूं। बस बेटी से आशा है मैं चाहती हूं वह एक नेकदिल इंसान बने। पैसा तो हर कोई कमा लेता है पर हर इंसान अच्छा हो यह जरूरी नहीं है। दर्द पूरे सैलाब में था। मैं लिखा जैसे ओस लिखती है पत्ते के ऊपर तुमसे बात कर मन भीगा भीगा हो गया। अब कुछ लिख न पाऊंगी कल बात करेंगे। हां मैं मैंने आपको अपने बारे में सब बता दिया। मैं खुद ही सोच रही हूं कि आखिर मैंने आपसे अपना दुःख क्योंकर कहा। पर आपको पढ़कर लगा कि आप ही हो जिससे मैं अपना सबकुछ कह सकती हूं भले ही मैं आपसे मिली नहीं कभी। बस अब और कुछ न कहो कह दिया ना । दुःख को बादलों के टुकड़ोंकी तरह सहेज कर रखना चाहिए। सुःख और दुःख दोनो संपत्ति होते हैं आपकी एकदम निजी.... हां मैम सही बोला आपने अब कल ही बात करेंगे।


x

रविवार, 12 नवंबर 2017

कैसी हो,आपकी बहू। कैसा हो,आपका दामाद।--कविता नागर




जीवन पथ अनवरत है।हम जीवनयात्री नये पढ़ावों से गुजरते है।फिर हमारे बच्चों की बारी आती है।हम चाहते है,कभी कभी कुछ पीड़ाएँ अगर हमने झेली हो..तो वे हमारे बच्चें न झेलें।ये हमारे जीवन के हर पड़ाव अलग अलग मौसम की तरह ही होते है।
: शीत,बसंत, पतझड़, गर्मी सब तरह के मौसम देखते है..हमारे जीवन में भी।

शैशवावस्था से लेकर वयोवृद्ध अवस्था तक हम अलग अलग अनुभव प्राप्त करते है।अपने बच्चों को लेकर भी काफी सपने संजोए जाते है,उन्हें क्या पढ़ना है, क्या बनना है,किससे शादी करनी है,कब उनके बच्चों को गोद में खिलाना है।कितने ही सपने संजोए जाते है,भावी बहू या दामाद को लेकर।जैसे शैशवावस्था में हम अपने शिशु को फूंक फूंक कर खाना खिलाते है,कि उनका मुंह ना जल जाए।वैसे ही चाहते है,कि जिंदगी के फैसले भी फूंक फूंक कर लिए जाए।अतिरिक्त सतर्कता बरती जाती है,कि कहीं किसी फैसले पर पछताना ना पड़े।

अगर हमारी बेटी है,तो हम चाहेंगे कि दामाद सुशील, मिलनसार, सुस्थापित व्यवसाय या एक सुनिश्चित आय वाला हो।पारिवारिक पृष्ठभूमि अच्छी रही हो।वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जहाँ कहीं कही परिवारों मे एकलौती संतान पुत्री होती है,वे चाहते है कि दामाद बेटे की तरह उनका साथ निभाएं।बेटी को कामकाजी होने से ना रोके।

अगर बहू की तलाश कर रहे है,तो अपेक्षाएं सामान्यतः और ज्यादा रहती है,क्योंकि अधिकांश परिवार बहू को अपने परिवेश के अनुसार ढालना चाहते है।कार्यकुशलता आज भी क ई घरों की प्राथमिक आवश्यकता है। फिर भी वक्त के साथ साथ मानसिकता में बदलाव भी आया है,संस्कारी ,सुशिक्षित, कामकाजी बहू अधिकांशतः हर घर की प्राथमिकता बन गई है,पहले के मापदंड कुछ बदल गए है।

पहले के समय में लोग अधिक मर्यादा में रह लेते थे,जो कि आजकल असंभव है,आजकल बच्चे थोड़ी स्वच्छंदता चाहते है।कभी कभी मां बाप को बच्चों की पसंद को स्वीकारना पड़ता है,तब उनके मापदंड भी अमान्य हो जाते है।ऐसे में परिस्थिति के अनुसार खुद को ढालने के लिए भी तैयार रहना पड़ता है।

देखा जाए तो वर्तमान समय में ज्यादा अपेक्षाएं रखना सही नहीं है,उपेक्षित होने पर आप निराश हो जाते है।
माता पिता को अपने कर्तव्य का निर्वहन उचित तरीके से करना चाहिए, बच्चों को उचित संस्कार दे,ताकि वे जीवनमूल्यों की महत्ता समझे,व अपने जीवनसाथी में भी वही योग्यता खोजें।संवेदनशीलता का पाठ जरूर पढ़ाए,ये बहुत आवश्यक है।ऐसा होगा तो आने वाली बहू या दामाद भी आपकी अपेक्षाओं के अनुरूप ही होगा।
   .         धन्यवाद।https://www.facebook.com/anujabhat/videos/10203837925305512/

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

बिपाशा बसु- जिंदगी का खूबसूरत सफर

स्वास्थ्यवर्धक खाना और व्यायाम जिंदगी को खूबसूरत बनाने का मूलमंत्र है। यही वह रहस्य है जिससे जिंदगी को खूबसूरत बनाया जा सकता है। मैं खूब पानी पीतीहूं। घर पर तैयार की गई रेसिपी ही मेरी चमकती त्वचा का राज है। जो लुक मुझे सबसे ज्यादा पसंद है वह है सेक्सी स्मोकी आंखें और बिना लिपिस्टक लगे होंठ।अरे हां मेरे बाल मेरी सुंदरता के सबसे बड़े राजदार हैं। और इसके लिए मैं हमेशा अच्छे कंडीशनर का प्रयोग करती हूं।ताकि मेरे बॉल सुंदर और स्वस्थ रह सकें। मैं हमेशा आइल;मसाज करवाती हूं ताकि मेरे बाल चमकदार बने रहें। मेरे बाल प्राकृतिक रूप से काले और घने हैं फिर भी मैं कलर का प्रयोगकरती हूं। कलर से मैं अपने बालों का हायलाइट करती हूं।
मेरी चाहत है कि मैं हमेशा सुंदर दिखूं, मेरी त्वचा चमकती रहे इसके लिए मैं हमेशा क्लीजिंग, टोनिंग और माश्चराइजिंग पर यकीन करती हूं। सोने से पहले मैं इनका प्रयोग करती हूं। मैं बिना सनस्क्रीन लगाए घर से बाहर नहींनिकलती। हैवी मेकअप करने से मैं हमेशा बचती हूं। जहां तक बात आंखों की है मैं आइलाइनर हमेशा लगाती हूं। मुझको एम.ए.सी के प्रोडक्ट पसंद हैं। लिक्वड आई लाइनर, लिपग्लास मेरी पहली पसंद हैंखासकर उसके कोरल और पिंक शेड्स। जैसा कि मैंने पहलेकहा स्वास्थयवर्धक खाना और व्यायाम जिंदगी को खूबसूरत बनाने कामूलमंत्र है। इसीलिए मैं हर चीज खाती हूं सिवाय रेडमीट और चावल के।हरी सब्जियां, चिकन, दाल रोटी मेरा नियमित आहार है। चमकदार त्वचा केलिए मैं नट्स, सीड्स, स्प्राउट, योगर्ट और फ्रूट्स लेती हूं। फिश और नट्स में ओमेगा 3 फेटी एसिड होता है जिससे त्वचा चमकदारबनी रहती है

सोमवार, 7 अगस्त 2017

बच्चों की पढ़ाई में संगीत नदारद क्यूं


 डा. अनुजा भट्ट
 क्या आप किसी आठवीं क्लास में पढऩे वाले विद्यार्थी से ये उम्मीद कर सकते हैं कि वह तबला वादन में अपनी प्रस्तुति से सबको चौंका दे। क्या छठी क्लास में पढऩे वाला बच्चा रवि वर्मा या अमृता शेरगिल की पेंटिंग में अंतर कर सकता है? क्या ये बच्चे कत्थक और भरतनाट्यम जैसे नृत्य के भेद को बता सकते हैं? इसकी वजह यह है कि बच्चे गणित ,विज्ञान, भूगोल  इतिहास, कंप्यूटर जैसे विषयों  में ही हर समय घिरे रहते हैं। स्कूली शिक्षा में फाइन आर्ट का विशेष महत्व नहीं है। शाीय गायिका शुभा मुद्लग इस विषय को बहुत गंभीरता से उठाती है कि आखिर क्यों कला के प्रति स्कूल बहुत गंभीरता से नहीं लेते और उसको पाठ्यक्रम में शामिल नहीं करते।  वह सिके प्रति गंभीर क्यों नहीं है?  यह विचार एकदम सरल है। बच्चों को नर्सरी क्लास से ही कला की शिक्षा दी जाए  अन्य विषयों की तरह कला का भी मूल्यांकन किया जाए।  इस विषय को जबरदस्ती उन पर थोपा न जाए बल्कि उनकी रुचि विषय पर केंद्रित किया जाए। यह  भी उतने ही महत्व से पढ़ाया जाए जितना गणित और विज्ञान विषय पढ़ाए जाते हैं।   कला के अंतर्गत संगीत, नृत्य, पेंटिंग, रंगमंच, वाद्य यंत्र शामिल हो।  इस अध्य्यन के बाद हमारे सामने अच्छे कलाकार होगें।
 अभी तक कला की शिक्षा लेने वाले बच्च व्यक्गित स्तर पर ही सीखते हैं । फिर चाहे वह  नृत्य हो संगीत हो या फिर वाद्य यंत्र।  उनसे पूछने पर वह अपने स्कूल टीचर का नाम नहीं लेते यह आश्चर्य की बात है कि उनके आर्ट टीचर के रीप में स्कूल के आर्ट टीतर का नाम नहीं है। अधिकांश माता- पिता को भी कला की  विधिवत शिक्षा के बारे में जानकारी नहीं है।  जबकि भारत में कला की परंपरागत शिक्षा का महत्व है लेकिन जबचक बच्चे खुद को एक कलाकार के रूप में नहीं देखना चाहेंगे तब तक वह गुरू परंपरा के बारे में जानने को क्यों उत्सुक होंगे? कला की कक्षा में बारी बारी से हर कला की हर विधा के शिक्षक को पढाने का अवसर मिले। फिर ताहे वह संगीत हो, कला हो रंगमंच हो या  कुछ और? शिक्षकों को प्रशिक्षण देते समय भी यह घ्यान में रखा जाए और कला शिक्षकों को भी प्रशिक्षण के लिए भेजा जबच्चों की पढ़ाई में संगीत नदारद क्यूं

Special Post

मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...