मंगलवार, 6 मार्च 2018

टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी- डा. अनुजा भट्ट पहला भाग



मोबाइल के मैंसेंजर से लगातार रिंग टोन बज रही थी.... सवाल थे कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। हर रोज मैं 10 बजने का इंतजार करने लगी थी। मैंसेंजर पर हमारी दोस्ती एक सवाल के साथ ही शुरू हुई थी और आज लगता है जैसे कई नदियों पहाड़ों को पार कर कोई सुरीली तान न जाने कब से मुझे खोज रही थी। एक ऐसी नदी जो उफान पर थी पर फिर भी बहुत शांत। पहला सवाल शुरू हुआ कि मैडम आप कहां से हो क्या उत्तराखंड से.... सवाल पढ़कर मुझे पता नहीं क्यों लगा इस सवाल में कहीं न कहीं कोई बैचैनी है यह सवाल सिर्फ सवाल भर नहीं है इसमें जिझासा है कौतुहल है और साथ में हैं प्यार की खुश्बू। आप सोचेंगे खुश्बू तो फूल से आती है पर कभी कभी कोई शब्द भी फूल सा महकने लग जाता है और उसकी गंध आपको उसके पास ले जाने के लिए उसके सवाल के जवाब में लिखती है हां। मैंसेजर पर फिर से घंटी बजती हैं कैसी हैं आप?... जवाब पहले जैसा ही अपनी सुनाओ, मैं ठीक हूं। मैंसेजर में टाइप होने का संदेश उभर रहा है और मैं बेचैन सी हूं। तभी एक कुछ लिखा सा आता है..आप बहुत अच्छा लिखती हैं मैंने कल आपकी एफबी पर सारी पोस्ट पढ़ी थी... मैंने भी टाइप किया ओह और साथ में एक इमोजी भी लगा दी मुस्कुराते हुए। दूसरे दिन नियत समय पर फिर से मैंसेजर में लाइट चमकी इस बार एक हाथ हिलाता हुआ था। माने हेलो.... मैंने कहा कैसी हो तुम उधर से जवाब आया.. मजे में आप नौएडा में रहती है ना... मैंने फिर लिखा हां. कुछ काम हो तो बताओ... मैंसेजर ने एक उदास चेहरा भेज दिया... मैंने हड़बड़ाते हुए लिखा सब ठीक ना... मैसेंजर में संदेश था. अब कोई काम नहीं है बताने के लिए। काश आप पहले मिल जाती। तो जरूर मेरे पापा शायद...इसके बाद मैसेज आना बंद हो गया और मोबाइल का चार्ज भी... अब. कुछ हो नहीं सकता कल रात 10 बजे तक इंतजार करने के। हो सकता है वह मैंसेजर पर आए हो सकता है नहीं आए... वह मुझे जानती ही कितना है। न कभी मुलाकात हुई और न कभी बात हुई। मैंने बस लिखा उसने पढ़ा और सहज जिझासा से पूछ लिया। फिर मैं ही इतनी भावुक और परेशान क्यों हूं। आखिर वह मुझे क्यों अपने बारे में बताएं या मैं ही क्यां सुनूं। न जाने कितने है जो अपनी फेंक आईडी से फेसबुक पर सक्रिय है। मेरी दोस्तों के बच्चे जो अभी 12 साल के भी नहीं हैं फेसबुक पर हैं। शौकिया तौर पर अपनी फोटो अपलोड करते रहते हैं। तभी याद आया उसने कहा था कि मैंने फेसबुक से आपके बारे में जाना तो क्यों ना मैं भी उसे खोज लूं। इतने मंथन के बीच मोबाइल थोड़ा सा चार्ज हो गया। पर घड़ी की सुई बहुत आगे थी। उसने भी मोबाइल डाटा आफ कर दिया होगा... खुद को झटका मैंने ।. तभी नींद ने अपने आगोश में ले लिया। यह सोचते सोचते कि उसके पापा को आखिर क्या हुआ होगा और वह मुझसे कैसी मदद मांगती। दूसरे दिन जब मैंने फिर से फेसबुक खोला तो देखा वह मुझे फालोअप कर रही थी। मेरी बहुत सारी पोस्ट पर उसने अंग्रेजी में अपने कमेंट लिख थे। हिंदी भी रोमन में लिखी थी। एक जगह उसने लिखा था जब हारने को कुछ न हो तभी असली हिम्मत आती है। जब तक आपके पास कुछ भी रहता है आप जोखिम नहीं ले पाते। मैंने भी अब उसके कमेंट्स पर ध्यान देना शुरू कर दिया था..... मैंने दो बार पढ़ा फिर पढ़ा उसने लिखा था सिंगल पेरेंटिंग पर भी लिखा जाना चाहिए.. उनकी भी दिक्कते हैं। रात का 10 बज चुका था। मैं मैंसेंजर पर रिंग बजने का इंतजार कर रही थी आज मेरे पास भी उसके बारे में जानकारियां थी। सवाल थे। तभी चमकती हुई लाइट दिखी...हेलो मैम आप सोई नहीं अभी.. नहीं, तुम्हारे मैसेज का इंतजार कर रही थी। माफ करना कल मोबाइल डस्चिर्ज हो गया। तुम सोच रही होगी मैंने तुम्हारी बात बीच में रोक दी। आज तुम लिखती जाओ मैं पढ़ रही हूं। मैम मैंने नौएडा और दिल्ली के बहुत चक्कर काटे हैं। मैं अपने पापा को इलाज के लिए लाती थी। उनको कैंसर था औ्र उनका इलाज नौएडा के धर्मशिला कैंसर हास्पिटल में चल रहा था। 1 1/2 साल इलाज चला उनका। सितंबर में उनकी डैथ हो गई। वह आर्मी पर्सन थे। आपको पढकर अच्छा लगा। मुझे लगा कि औरत किसी से कमतर नहीं है वह सबकुछ कर सकती है। बीकाज आई एम ए सिंगल पेरेंट आँफ माई डाटर। माई हस्बैंड इज नो मोर... मैंसेजर में शब्द आकार ले रहे थे। दुःख और पीड़ा, स्मृति और छाया पेड़ और उनका आदमियों की आकृतियों में बदल जाने के अहसार पिरोए एक पेंटिंग जैसे कई वृत्त चित्र मेरे मन के घेरे में बनने शुरू हो गए थे। यकायक जैसे आंसू की धार बहने लग जाती है किसी का दुःख सुनकर आज कलेजा कांपा तो मैसेंजर ने टाइप किया कैसे हुआ यह सब और वह तो उधर प्रतीक्षा में थी मेरे लखिए को पढने के लिए। लाइट जगमगाई और शब्द में दर्द आया मैं उनका इक्सीडेंट हुआ था और आन द स्पाट डेथ हो गई थी तब ेरी बेटी 3 साल की थी और आज 9 साल की है। कहां रहती हो तुम ससुराल में या मायके में। मैम ससुराल में कौन रखता है वह भी बेटी की मां को.... बेटे से ही सरोकार होता है.... मैं मम्मी के घर के पास ही रहती हूं किराए का घर लेकर।

प्रतिप्रश्न था नौकरी करती हो। हां मैंम एमएससी बीएड हूं। मैथ्स पढ़ाती हूं। भाई बहन हैं हां ंमैम हम 3 भाई बहन हैं बहनों की शादी हो गई और भाई छोटा है। घर में मैं सबसे बड़ी हूं। बस बेटी से आशा है मैं चाहती हूं वह एक नेकदिल इंसान बने। पैसा तो हर कोई कमा लेता है पर हर इंसान अच्छा हो यह जरूरी नहीं है। दर्द पूरे सैलाब में था। मैं लिखा जैसे ओस लिखती है पत्ते के ऊपर तुमसे बात कर मन भीगा भीगा हो गया। अब कुछ लिख न पाऊंगी कल बात करेंगे। हां मैं मैंने आपको अपने बारे में सब बता दिया। मैं खुद ही सोच रही हूं कि आखिर मैंने आपसे अपना दुःख क्योंकर कहा। पर आपको पढ़कर लगा कि आप ही हो जिससे मैं अपना सबकुछ कह सकती हूं भले ही मैं आपसे मिली नहीं कभी। बस अब और कुछ न कहो कह दिया ना । दुःख को बादलों के टुकड़ोंकी तरह सहेज कर रखना चाहिए। सुःख और दुःख दोनो संपत्ति होते हैं आपकी एकदम निजी.... हां मैम सही बोला आपने अब कल ही बात करेंगे।


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कुमाऊंनी भाषा के कबीर रहीम की जोड़ी डा. अनुजा भट्ट

   हल्द्वानी जो मेरे बाबुल का घर है जिसकी खिड़की पर खड़े होकर मैंने जिंदगी को सामने से गुजरते देखा है, जिसकी दीवारों पर मैंने भी कभी एबीसी़डी ...