मंगलवार, 6 मार्च 2018

टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी- डा. अनुजा भट्ट पहला भाग



मोबाइल के मैंसेंजर से लगातार रिंग टोन बज रही थी.... सवाल थे कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। हर रोज मैं 10 बजने का इंतजार करने लगी थी। मैंसेंजर पर हमारी दोस्ती एक सवाल के साथ ही शुरू हुई थी और आज लगता है जैसे कई नदियों पहाड़ों को पार कर कोई सुरीली तान न जाने कब से मुझे खोज रही थी। एक ऐसी नदी जो उफान पर थी पर फिर भी बहुत शांत। पहला सवाल शुरू हुआ कि मैडम आप कहां से हो क्या उत्तराखंड से.... सवाल पढ़कर मुझे पता नहीं क्यों लगा इस सवाल में कहीं न कहीं कोई बैचैनी है यह सवाल सिर्फ सवाल भर नहीं है इसमें जिझासा है कौतुहल है और साथ में हैं प्यार की खुश्बू। आप सोचेंगे खुश्बू तो फूल से आती है पर कभी कभी कोई शब्द भी फूल सा महकने लग जाता है और उसकी गंध आपको उसके पास ले जाने के लिए उसके सवाल के जवाब में लिखती है हां। मैंसेजर पर फिर से घंटी बजती हैं कैसी हैं आप?... जवाब पहले जैसा ही अपनी सुनाओ, मैं ठीक हूं। मैंसेजर में टाइप होने का संदेश उभर रहा है और मैं बेचैन सी हूं। तभी एक कुछ लिखा सा आता है..आप बहुत अच्छा लिखती हैं मैंने कल आपकी एफबी पर सारी पोस्ट पढ़ी थी... मैंने भी टाइप किया ओह और साथ में एक इमोजी भी लगा दी मुस्कुराते हुए। दूसरे दिन नियत समय पर फिर से मैंसेजर में लाइट चमकी इस बार एक हाथ हिलाता हुआ था। माने हेलो.... मैंने कहा कैसी हो तुम उधर से जवाब आया.. मजे में आप नौएडा में रहती है ना... मैंने फिर लिखा हां. कुछ काम हो तो बताओ... मैंसेजर ने एक उदास चेहरा भेज दिया... मैंने हड़बड़ाते हुए लिखा सब ठीक ना... मैसेंजर में संदेश था. अब कोई काम नहीं है बताने के लिए। काश आप पहले मिल जाती। तो जरूर मेरे पापा शायद...इसके बाद मैसेज आना बंद हो गया और मोबाइल का चार्ज भी... अब. कुछ हो नहीं सकता कल रात 10 बजे तक इंतजार करने के। हो सकता है वह मैंसेजर पर आए हो सकता है नहीं आए... वह मुझे जानती ही कितना है। न कभी मुलाकात हुई और न कभी बात हुई। मैंने बस लिखा उसने पढ़ा और सहज जिझासा से पूछ लिया। फिर मैं ही इतनी भावुक और परेशान क्यों हूं। आखिर वह मुझे क्यों अपने बारे में बताएं या मैं ही क्यां सुनूं। न जाने कितने है जो अपनी फेंक आईडी से फेसबुक पर सक्रिय है। मेरी दोस्तों के बच्चे जो अभी 12 साल के भी नहीं हैं फेसबुक पर हैं। शौकिया तौर पर अपनी फोटो अपलोड करते रहते हैं। तभी याद आया उसने कहा था कि मैंने फेसबुक से आपके बारे में जाना तो क्यों ना मैं भी उसे खोज लूं। इतने मंथन के बीच मोबाइल थोड़ा सा चार्ज हो गया। पर घड़ी की सुई बहुत आगे थी। उसने भी मोबाइल डाटा आफ कर दिया होगा... खुद को झटका मैंने ।. तभी नींद ने अपने आगोश में ले लिया। यह सोचते सोचते कि उसके पापा को आखिर क्या हुआ होगा और वह मुझसे कैसी मदद मांगती। दूसरे दिन जब मैंने फिर से फेसबुक खोला तो देखा वह मुझे फालोअप कर रही थी। मेरी बहुत सारी पोस्ट पर उसने अंग्रेजी में अपने कमेंट लिख थे। हिंदी भी रोमन में लिखी थी। एक जगह उसने लिखा था जब हारने को कुछ न हो तभी असली हिम्मत आती है। जब तक आपके पास कुछ भी रहता है आप जोखिम नहीं ले पाते। मैंने भी अब उसके कमेंट्स पर ध्यान देना शुरू कर दिया था..... मैंने दो बार पढ़ा फिर पढ़ा उसने लिखा था सिंगल पेरेंटिंग पर भी लिखा जाना चाहिए.. उनकी भी दिक्कते हैं। रात का 10 बज चुका था। मैं मैंसेंजर पर रिंग बजने का इंतजार कर रही थी आज मेरे पास भी उसके बारे में जानकारियां थी। सवाल थे। तभी चमकती हुई लाइट दिखी...हेलो मैम आप सोई नहीं अभी.. नहीं, तुम्हारे मैसेज का इंतजार कर रही थी। माफ करना कल मोबाइल डस्चिर्ज हो गया। तुम सोच रही होगी मैंने तुम्हारी बात बीच में रोक दी। आज तुम लिखती जाओ मैं पढ़ रही हूं। मैम मैंने नौएडा और दिल्ली के बहुत चक्कर काटे हैं। मैं अपने पापा को इलाज के लिए लाती थी। उनको कैंसर था औ्र उनका इलाज नौएडा के धर्मशिला कैंसर हास्पिटल में चल रहा था। 1 1/2 साल इलाज चला उनका। सितंबर में उनकी डैथ हो गई। वह आर्मी पर्सन थे। आपको पढकर अच्छा लगा। मुझे लगा कि औरत किसी से कमतर नहीं है वह सबकुछ कर सकती है। बीकाज आई एम ए सिंगल पेरेंट आँफ माई डाटर। माई हस्बैंड इज नो मोर... मैंसेजर में शब्द आकार ले रहे थे। दुःख और पीड़ा, स्मृति और छाया पेड़ और उनका आदमियों की आकृतियों में बदल जाने के अहसार पिरोए एक पेंटिंग जैसे कई वृत्त चित्र मेरे मन के घेरे में बनने शुरू हो गए थे। यकायक जैसे आंसू की धार बहने लग जाती है किसी का दुःख सुनकर आज कलेजा कांपा तो मैसेंजर ने टाइप किया कैसे हुआ यह सब और वह तो उधर प्रतीक्षा में थी मेरे लखिए को पढने के लिए। लाइट जगमगाई और शब्द में दर्द आया मैं उनका इक्सीडेंट हुआ था और आन द स्पाट डेथ हो गई थी तब ेरी बेटी 3 साल की थी और आज 9 साल की है। कहां रहती हो तुम ससुराल में या मायके में। मैम ससुराल में कौन रखता है वह भी बेटी की मां को.... बेटे से ही सरोकार होता है.... मैं मम्मी के घर के पास ही रहती हूं किराए का घर लेकर।

प्रतिप्रश्न था नौकरी करती हो। हां मैंम एमएससी बीएड हूं। मैथ्स पढ़ाती हूं। भाई बहन हैं हां ंमैम हम 3 भाई बहन हैं बहनों की शादी हो गई और भाई छोटा है। घर में मैं सबसे बड़ी हूं। बस बेटी से आशा है मैं चाहती हूं वह एक नेकदिल इंसान बने। पैसा तो हर कोई कमा लेता है पर हर इंसान अच्छा हो यह जरूरी नहीं है। दर्द पूरे सैलाब में था। मैं लिखा जैसे ओस लिखती है पत्ते के ऊपर तुमसे बात कर मन भीगा भीगा हो गया। अब कुछ लिख न पाऊंगी कल बात करेंगे। हां मैं मैंने आपको अपने बारे में सब बता दिया। मैं खुद ही सोच रही हूं कि आखिर मैंने आपसे अपना दुःख क्योंकर कहा। पर आपको पढ़कर लगा कि आप ही हो जिससे मैं अपना सबकुछ कह सकती हूं भले ही मैं आपसे मिली नहीं कभी। बस अब और कुछ न कहो कह दिया ना । दुःख को बादलों के टुकड़ोंकी तरह सहेज कर रखना चाहिए। सुःख और दुःख दोनो संपत्ति होते हैं आपकी एकदम निजी.... हां मैम सही बोला आपने अब कल ही बात करेंगे।


x

रविवार, 12 नवंबर 2017

कैसी हो,आपकी बहू। कैसा हो,आपका दामाद।--कविता नागर




जीवन पथ अनवरत है।हम जीवनयात्री नये पढ़ावों से गुजरते है।फिर हमारे बच्चों की बारी आती है।हम चाहते है,कभी कभी कुछ पीड़ाएँ अगर हमने झेली हो..तो वे हमारे बच्चें न झेलें।ये हमारे जीवन के हर पड़ाव अलग अलग मौसम की तरह ही होते है।
: शीत,बसंत, पतझड़, गर्मी सब तरह के मौसम देखते है..हमारे जीवन में भी।

शैशवावस्था से लेकर वयोवृद्ध अवस्था तक हम अलग अलग अनुभव प्राप्त करते है।अपने बच्चों को लेकर भी काफी सपने संजोए जाते है,उन्हें क्या पढ़ना है, क्या बनना है,किससे शादी करनी है,कब उनके बच्चों को गोद में खिलाना है।कितने ही सपने संजोए जाते है,भावी बहू या दामाद को लेकर।जैसे शैशवावस्था में हम अपने शिशु को फूंक फूंक कर खाना खिलाते है,कि उनका मुंह ना जल जाए।वैसे ही चाहते है,कि जिंदगी के फैसले भी फूंक फूंक कर लिए जाए।अतिरिक्त सतर्कता बरती जाती है,कि कहीं किसी फैसले पर पछताना ना पड़े।

अगर हमारी बेटी है,तो हम चाहेंगे कि दामाद सुशील, मिलनसार, सुस्थापित व्यवसाय या एक सुनिश्चित आय वाला हो।पारिवारिक पृष्ठभूमि अच्छी रही हो।वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जहाँ कहीं कही परिवारों मे एकलौती संतान पुत्री होती है,वे चाहते है कि दामाद बेटे की तरह उनका साथ निभाएं।बेटी को कामकाजी होने से ना रोके।

अगर बहू की तलाश कर रहे है,तो अपेक्षाएं सामान्यतः और ज्यादा रहती है,क्योंकि अधिकांश परिवार बहू को अपने परिवेश के अनुसार ढालना चाहते है।कार्यकुशलता आज भी क ई घरों की प्राथमिक आवश्यकता है। फिर भी वक्त के साथ साथ मानसिकता में बदलाव भी आया है,संस्कारी ,सुशिक्षित, कामकाजी बहू अधिकांशतः हर घर की प्राथमिकता बन गई है,पहले के मापदंड कुछ बदल गए है।

पहले के समय में लोग अधिक मर्यादा में रह लेते थे,जो कि आजकल असंभव है,आजकल बच्चे थोड़ी स्वच्छंदता चाहते है।कभी कभी मां बाप को बच्चों की पसंद को स्वीकारना पड़ता है,तब उनके मापदंड भी अमान्य हो जाते है।ऐसे में परिस्थिति के अनुसार खुद को ढालने के लिए भी तैयार रहना पड़ता है।

देखा जाए तो वर्तमान समय में ज्यादा अपेक्षाएं रखना सही नहीं है,उपेक्षित होने पर आप निराश हो जाते है।
माता पिता को अपने कर्तव्य का निर्वहन उचित तरीके से करना चाहिए, बच्चों को उचित संस्कार दे,ताकि वे जीवनमूल्यों की महत्ता समझे,व अपने जीवनसाथी में भी वही योग्यता खोजें।संवेदनशीलता का पाठ जरूर पढ़ाए,ये बहुत आवश्यक है।ऐसा होगा तो आने वाली बहू या दामाद भी आपकी अपेक्षाओं के अनुरूप ही होगा।
   .         धन्यवाद।https://www.facebook.com/anujabhat/videos/10203837925305512/

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

बिपाशा बसु- जिंदगी का खूबसूरत सफर

स्वास्थ्यवर्धक खाना और व्यायाम जिंदगी को खूबसूरत बनाने का मूलमंत्र है। यही वह रहस्य है जिससे जिंदगी को खूबसूरत बनाया जा सकता है। मैं खूब पानी पीतीहूं। घर पर तैयार की गई रेसिपी ही मेरी चमकती त्वचा का राज है। जो लुक मुझे सबसे ज्यादा पसंद है वह है सेक्सी स्मोकी आंखें और बिना लिपिस्टक लगे होंठ।अरे हां मेरे बाल मेरी सुंदरता के सबसे बड़े राजदार हैं। और इसके लिए मैं हमेशा अच्छे कंडीशनर का प्रयोग करती हूं।ताकि मेरे बॉल सुंदर और स्वस्थ रह सकें। मैं हमेशा आइल;मसाज करवाती हूं ताकि मेरे बाल चमकदार बने रहें। मेरे बाल प्राकृतिक रूप से काले और घने हैं फिर भी मैं कलर का प्रयोगकरती हूं। कलर से मैं अपने बालों का हायलाइट करती हूं।
मेरी चाहत है कि मैं हमेशा सुंदर दिखूं, मेरी त्वचा चमकती रहे इसके लिए मैं हमेशा क्लीजिंग, टोनिंग और माश्चराइजिंग पर यकीन करती हूं। सोने से पहले मैं इनका प्रयोग करती हूं। मैं बिना सनस्क्रीन लगाए घर से बाहर नहींनिकलती। हैवी मेकअप करने से मैं हमेशा बचती हूं। जहां तक बात आंखों की है मैं आइलाइनर हमेशा लगाती हूं। मुझको एम.ए.सी के प्रोडक्ट पसंद हैं। लिक्वड आई लाइनर, लिपग्लास मेरी पहली पसंद हैंखासकर उसके कोरल और पिंक शेड्स। जैसा कि मैंने पहलेकहा स्वास्थयवर्धक खाना और व्यायाम जिंदगी को खूबसूरत बनाने कामूलमंत्र है। इसीलिए मैं हर चीज खाती हूं सिवाय रेडमीट और चावल के।हरी सब्जियां, चिकन, दाल रोटी मेरा नियमित आहार है। चमकदार त्वचा केलिए मैं नट्स, सीड्स, स्प्राउट, योगर्ट और फ्रूट्स लेती हूं। फिश और नट्स में ओमेगा 3 फेटी एसिड होता है जिससे त्वचा चमकदारबनी रहती है

सोमवार, 7 अगस्त 2017

बच्चों की पढ़ाई में संगीत नदारद क्यूं


 डा. अनुजा भट्ट
 क्या आप किसी आठवीं क्लास में पढऩे वाले विद्यार्थी से ये उम्मीद कर सकते हैं कि वह तबला वादन में अपनी प्रस्तुति से सबको चौंका दे। क्या छठी क्लास में पढऩे वाला बच्चा रवि वर्मा या अमृता शेरगिल की पेंटिंग में अंतर कर सकता है? क्या ये बच्चे कत्थक और भरतनाट्यम जैसे नृत्य के भेद को बता सकते हैं? इसकी वजह यह है कि बच्चे गणित ,विज्ञान, भूगोल  इतिहास, कंप्यूटर जैसे विषयों  में ही हर समय घिरे रहते हैं। स्कूली शिक्षा में फाइन आर्ट का विशेष महत्व नहीं है। शाीय गायिका शुभा मुद्लग इस विषय को बहुत गंभीरता से उठाती है कि आखिर क्यों कला के प्रति स्कूल बहुत गंभीरता से नहीं लेते और उसको पाठ्यक्रम में शामिल नहीं करते।  वह सिके प्रति गंभीर क्यों नहीं है?  यह विचार एकदम सरल है। बच्चों को नर्सरी क्लास से ही कला की शिक्षा दी जाए  अन्य विषयों की तरह कला का भी मूल्यांकन किया जाए।  इस विषय को जबरदस्ती उन पर थोपा न जाए बल्कि उनकी रुचि विषय पर केंद्रित किया जाए। यह  भी उतने ही महत्व से पढ़ाया जाए जितना गणित और विज्ञान विषय पढ़ाए जाते हैं।   कला के अंतर्गत संगीत, नृत्य, पेंटिंग, रंगमंच, वाद्य यंत्र शामिल हो।  इस अध्य्यन के बाद हमारे सामने अच्छे कलाकार होगें।
 अभी तक कला की शिक्षा लेने वाले बच्च व्यक्गित स्तर पर ही सीखते हैं । फिर चाहे वह  नृत्य हो संगीत हो या फिर वाद्य यंत्र।  उनसे पूछने पर वह अपने स्कूल टीचर का नाम नहीं लेते यह आश्चर्य की बात है कि उनके आर्ट टीचर के रीप में स्कूल के आर्ट टीतर का नाम नहीं है। अधिकांश माता- पिता को भी कला की  विधिवत शिक्षा के बारे में जानकारी नहीं है।  जबकि भारत में कला की परंपरागत शिक्षा का महत्व है लेकिन जबचक बच्चे खुद को एक कलाकार के रूप में नहीं देखना चाहेंगे तब तक वह गुरू परंपरा के बारे में जानने को क्यों उत्सुक होंगे? कला की कक्षा में बारी बारी से हर कला की हर विधा के शिक्षक को पढाने का अवसर मिले। फिर ताहे वह संगीत हो, कला हो रंगमंच हो या  कुछ और? शिक्षकों को प्रशिक्षण देते समय भी यह घ्यान में रखा जाए और कला शिक्षकों को भी प्रशिक्षण के लिए भेजा जबच्चों की पढ़ाई में संगीत नदारद क्यूं

रविवार, 4 जून 2017

मां से दिया कला का संस्कार- तनुश्री वर्मा

mainaparajita@gmail.com
तनुश्री वर्मा पेशे से साफ्टवेयर   इंजीनियर हैं लेकिन उनको पेंटिंग और क्ले मॉडलिंग से गहरा लगाव है। वह ग्लास पेंटिंग और ऑयल पेंटिंग दोनो बहुत खूबसूरती के साथ करती हैं जानते हैं  अपने बारे में क्या कहती हैं तनुश्री-- मैं सृजनात्मक वातावरण में बड़ी हुई। मैं जब बच्ची थी तो मां को क्राफ्ट की शिक्षा देते हुए देखा। वह चूडिय़ां को रखने के लिएबॉक्स बनाना सिखाती या फिर आडियो टेप रखने के लिए बॉक्स बनवाती। इसीतरह फोटोफ्रेम लैंपशेड्स बनाना सिखाती। यह सारी चीजें ऐसी चीजों सेबनाई जाती जो बहुत साधारण सी होती मसलन आइसक्रीम की डंडिया। मेरे पिता एक अच्छे कलाकार हैं। वह भी अपनी हॉबी को पूरा करने के लिए पेंटिंग करते। इस तरह अपने आप ही मैंने पेंटिंग, स्केचिंग और क्ले मॉडलिंग सीखा। मैंने इन तीन अलग अलग विधाओं में कला का स्वाद चखा लेकिन इनतीनों को पेटिंग में उपयोग कर पाना संभव नहीं है। मैं जब गिफ्ट शॉपमें जाती तो वहां कई छोटी छोटी कलात्मक चीजें देखती जो बहुत मंहगी होती। मैंने सोचा क्यों  मैं खुद इनको बनाऊं। और इस तरह मैंनेकलाकृतियां बनाना शुरू किया। जब मैंने बनाना शुरू किया तो मैंने कोईक्लास नहीं कि हां किताबें पढ़ी। मैं इसकी टेक्नीक से परिचित नहीं थी।इसको बनाने वाले औजार कहां मिलते हैं यह भी पता नहीं था। मैंने इसकेबारे में जानने केे लिए इंटरनेट का भी सहारा लिया। पिछले 8 साल से मैं इस काम को कर रही हूं। व्यस्त समय में क्ले के साथ कलाकृतियां बनानामुझे सुखद अनुभूति देता है। यह मुझे तनाव से मुक्त करता है औरआत्मसंतोष देता है। एक साफ्टवेयर इंजीनियर के सप्ताहांत एक कलाकार के रूप में बदल जाते हैं। मेरी बनाई कलाकृतियां मेरे घर में सजी हुईहैं।
  
   

शनिवार, 3 जून 2017

मेरा घर क्लासिक बुक की तरह है- अनुराधा वर्मा


 कहते हैं घर आपके व्यक्तित्व को दर्शाता है। घर की साजसज्जा से रुचि का पता चलता है। अनुराधा वर्मा कहती हैं कि मेरा घर मेरे लिए एक मेरी पसंदीदा कलात्मक किताब की तरह से है जिसके हर पन्ने में कला के रंग हों और जो सबका मन मोह ले।  यह मेरे परिवार के सदस्यों में खुशी के भाव पैदा करे। मैं घूमने की शौकीन हूं। जहां-जहां जाती हूं वहां की खास चीजें ले आती हूं। मेरे घर में हर तरह का क्राफ्ट है। कलकत्ता  दिल्ली से खरीदी गई तांबे की मूर्तियां मैंने एक स्पेशल कार्नर में सजाई हैं जहां बैठकर मैं सुबह की चाय पीती हूं।
मेरे घर की साजसज्जा में ओरिएंटल थीम दिखाई दे सकती है। यह जो कुर्सियां हैं वह चीन की परंपरागत कुर्सियां हैं जिसमें दूल्हा- दुल्हन बैठते हैं। मुझको इसकी बनावट बहुत पसंद है क्योंकि यह सादगी भरा प्रभाव छोड़ती है। मेरे पास मुरानो ग्लास का संग्रह भी है जिसे मैंने इटली से खरीदा। मैक्सिको और स्पैन की पोटरी मेरी पसंदीदा  है।  भारतीय एथेनिक मोटिफ मुझको पसंद हैं जिनका मैंने प्रयोग किया है। गणेश मुझे पसंद हैं। मैं जब भी भारत जाती हूं गणेश अवश्य लेकर आती हूं। मेरे घर के प्रवेशद्रार पर गणेश विराजे हैं। मैं हमेशा सादगी की तलाश में रहती हूं। अपने नए नए विचारों को मैं कला के रूप में सजाती संवारती हूं। मुझे घर सजाना, घूमना और फोटोग्राफी का शौक है यह तीनों चीजें मेरी रचनात्मकता को बढ़ाती हैं।



शुक्रवार, 2 जून 2017

नमन डॉ.आराधना चतुर्वेदी


जिसने मुझे
उँगली पकड़कर
चलना नहीं सिखाया
कहा कि खुद चलो
गिरो तो खुद उठो,
जिसने राह नहीं दिखाई मुझे
कहा कि चलती रहो
राह बनती जायेगी,
जिसने नहीं डाँटा कभी
मेरी ग़लती पर
लेकिन किया मजबूर
सोचने के लिये
कि मैंने ग़लत किया,
जिसने कभी नहीं फेरा
मेरे सिर पर हाथ
दुलार से
पर उसकी छाँव को मैंने
प्रतिपल महसूस किया,
जिसने खर्च कर दी
अपनी पूरी उम्र
और जमापूँजी सारी
मुझे पढ़ाने में
दहेज के लिये
कुछ भी नहीं बचाया,
आज नमन करता है मन
उस पिता को
जिसने मुझे
स्त्री या पुरुष नहीं
इन्सान बनकर
जीना सिखाया.



रविवार, 21 मई 2017

दिखावे की रस्म - धर्मेंन्द्र कुमार


आज घर में बड़ी चहल पहल थी  और हो भी क्यों न ! घर में मेहमान जो आने वाले थे, वो भी घर की बड़ी बेटी “तनु” को शादी के लिए दिखावे की रस्म अदायगी के लिए। साधारण परिवार में जन्मी तीन बच्चांे में सबसे बड़ी बेटी, एक कमरे का मकान जिसमे एक छोटा सा आँगन, पिता एक सामान्य सी नौकरी कर के घर का खर्च चलाते थे।
घर का माहौल खुशनुमा बना हुआ था। सब के मुख पर ताजगी देखते ही बनती थी। मम्मी खुश मगर सकुचाई जी नजर आती थी। पिता के चेहरे पर खुशी के मध्य में चिंता के भाव साफ नजर आते थे। उन सब के बीच कम बोलने और अपने संस्कारांे के प्रति सजग “तनु” के मन में रह रहकर हजारो सवाल उठ रहे थे। कुछ सूझ नही रहा था, मन बड़ा ही विचलित था ! तभी किसी ने बाहर से आकर खबर दी ३ मेहमान आ गए है ! छोटे से मकान में चहल कदमी बढ़ गई। सब इधर-उधर दौड़ने और व्यवस्था के सवारने में व्यस्त हो गए। जैसे ही मेहमानों ने घर के अंदर प्रवेश किया उनका जोरदार स्वागत किया गया !! बातचीत की रस्म अदायगी होने लगी।
कमरे के अंदर बैठी वो साधारण कन्या अभी भी खुद के सवालो में उलझी थी, मम्मी उसको समझा रही थी की मेहमानो के सामने कैसे व्यवहार करना चाहिए। जो जन्म से ही सुनती आ रही थी, मगर आज उससे मम्मी ने क्या-क्या कहा उसे कुछ मालूम नही था, वो तो खुद में ही उलझी थी।  अचानक दरवाजे से आवाज सुनाई दी ३..बेटी तनु३३३.!३. हाँ ,,,,, पापा सकुचाते हुए अचानक जबाब दिया ! तुम तैयार तो हो ना बेटी ! जी पापा ३..धीरे से बोली  पापा पास आकर बोले देखो बेटी  वो लोग आ गए है ! तुम्हे देखने और पसंद करने के लिए !!
मैंने अपनी तरफ से अच्छा धनी परिवार चुना हैै। लड़का सुशिक्षित और समझदार है। तेरा जीवन सदा खुशियांे से भरा हो। इससे ज्यादा और हमें क्या चाहिए, बाकि आखिरी फैसला अब तुम पर है जिसमें मेरा पूर्णतया समर्थन होगा .. कहते हुए पिता ने बेटी के सर पर दुलार से भरा हाथ फेरा .!!
पिता जी क्या मै कुछ पूछ सकती हूँ ?  सहसा तनु बोल पड़ी !
हाँ ३. हाँ बेटा पूछो सरल भाव से पिता ने जबाब दिया !
क्या धनवान लोग ही सुखी रह सकते है ! हम जैसे साधारण लोग सुखी जीवन नही जी सकते ! क्या धन दौलत का नाम ही खुशी है.?
पिता चुपचाप थे ! आज पहली बार बेटी ने उनसे खुलकर बात की थी .. वो अपनी बात कहते हुए बोलती जा रही थी !
ये देख दिखावे की रस्म का क्या अर्थ है ! क्या क्षण भर किसी को देख लेने से हम किसी के व्यक्तित्व को जान सकते है ?  मेरे कहने का तात्पर्य यह नही की मुझे इन लोगांे से या पैसे वालांे से शिकायत हैं मै तो बस यह कहना चाहती हूँ की मेरी खुशी धन दौलत में नहीं उन संस्कारो में है जो आज तक आप मुझे सिखाते आये हो ! मैंने आप ही से जाना हैं की व्यक्ति से ज्यादा अहम उसका व्यक्तित्व होता हैं।  अगर दो व्यक्तियों के विचारो में समानता हो तो इंसान हर हाल में खुश रह सकता है वरना अच्छा भला जीवन भी नरक की भेँट चढ़ जाता है।
पिता चुपचाप उसकी बातें सुन रहे थे। बातो में सच्चाई थी और हकीकत में जीवन का मूलमंत्र भी थी।
बेटी धारा प्रवाह बोलती जा रही थी  मानो उसके अंदर का सैलाब आज फूट पड़ा हो और वो उसमंे शब्दों के माध्यम से कतरा कतरा बह रही थी।
क्या दिखावे की रस्म का इतना बड़ा स्वांग रचकर ही हम एक दूजे के बारे में जान सकते है ! क्या इस तरह ही किसी के व्यक्तित्व, आचरण या जीवन शैली का आभास कर सकती हूँ ! मुझे स्वयं को लगता है, शायद नही !
आप यह न समझना की मेरे कहने का अर्थ इन सब का विरोध करना है, मै किसी भी सामाजिक क्रिया कलाप के विरोध में नही, और न ही मै प्रेम विवाह या, लिव-इन-रिलेशन में विश्वास रखती हूँ।
मेरे कहने का  आशय मात्र इतना है की किसी भी व्यवस्था को बदलने की नहीं उसमें समयानुसार परिवर्तन की आवश्यकता होती हैै।
जीवन कैसे जिया जाता है ये आपने मुझे अच्छे से सिखाया है। मै हर हाल में स्वंय को ढाल सकती हूँ। परिस्थिति सम हो या विषम दोनों से निपटना आपने अच्छे से सिखाया है।
इतना कहते हुए तनु रुंधे गले से अपने पिता से लिपट गयी। दोनों की आँखों में आंसुओ का सैलाब उमड़ पड़ा था। मम्मी मँुह पर हाथ रखे अपने स्वर को दबाये खड़ी थी, वो खुद को सँभालने में असहाय लग रही थी।
पिता ने रुआंसा होकर  बोले  बेटा आज मै कुछ नही कहूँगा !
मैं फैसला तुझ पर छोड़ता हूँ ! तेरी सहमति में हमारी सहमति है !
आँगन में बैठे मेहमान और परिवार गण शांत भाव से कान लगाकर उनकी बातंे सुन रहे थे। इतने में अचानक लड़का खड़ा होकर बोला ! माफ कीजियेगा  क्या मै कुछ बोल सकता हूँ ? इतना सुनकर सब सहम से गए  बेटी के पिता आवाज सुनकर बाहर आ गए और बोले  हाँ बेटा ! क्यों नहीं! कहिये आप क्या कहना चाहते है !
पिता जी! मुझे लड़की बिना देखे ही पसंद है ! अगर मै शादी करूँगा तो सिर्फ “तनु” से यदि वो अपनी सहमति प्रदान करेगी तब! वरना मैं आजीवन कुँवारा रहने की शपथ उठाता हूँ !! यह मेरा निजी फैसला हैं और मै समझता हूँ की इससे किसी को कोई आपत्ति नही होगी! यानि मेरे परिवार को भी मुझे इतनी आजादी देनी होगी!
लड़के का निर्भीक फैसला सुनकर सब अचंभित और अवाक थे। उसके माता पिता भी उसकी और ताकते रह गए ! किसी के भी तरकश में जैसे कोई शब्द बाण बचा ही नही था !
लड़के ने आगे बोला, मुझे जो देखना था वो देख लिया ..! मुझे धन दौलत या शारीरिक सुंदरता नही आत्मीय सुंदरता की आवश्यकता है। धन दौलत से तो मै बचपन से ही खेला हूँ, मगर जो सम्पत्ति आज मुझे तुन के विचारों से प्राप्त हुई है उस से मुझे आशा ही नही विश्वास हो उठा है की “एक तुम बदले दृ एक मै बदला” इसका मतलब “हम बदल गए” और जब हम बदले तो जग बदले या न बदले कम से कम अपनी आने वाली पीढ़ी को तो बदल ही सकते हैं! उसकी ये बाते सुनकर माहौल में हल्कापन आ गया !
अंदर ही अंदर कमरे में दीवार के सहारे खड़ी तनु ये सब सुनकर रोते-रोते मुस्कुरा रही थी ! और बाहर का शांत माहैेल फिर से खुशियांे की रफ्तार पकड़ चुका था !!


डरे नहीं, जब मां बनें


 सोसाईटी का एक बड़ा हिस्सा नैचुरल बर्थ के लिए जोर देता है लेकिन बहुत कम महिलाएं ही होती है  जोकि इसके लिए मानसिक और षारीरिक रूप से तैयार होती हैं।  बच्चे के जन्म के बारे में जानकारी की कमी होने के कारण भी महिलाएं नैचुरल बर्थ प्रक्रिया से डर जाती हैं।
गर्भवती महिलाएं अधिकतर बीमार महिला की तरह प्रतिक्रिया देती हैं जबकि गर्भवती होने का मतलब बीमार हो जाना नहीं हैं।  कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं जिसमें प्रसवपीडा के दौरान गर्भवती महिला की मौत हो जाती है। इस तरह की घटनाओं का असर गर्भवती महिला पर होता है और वह डर जाती हैं। इसलिए वह नैचुरल बर्थ प्रकिया के बजाय सी सेक्शन की ओर चली जाती हैं।  सी सेक्शन प्रक्रिया में बच्चे को जन्म के समय कष्ट होता है और महिलाएं भी पूरी जिंदगी इसके होने साईड इफेक्ट्स को झेलती रहती हैं।
चाईल्डबर्थ अवेयरनेस क्लासिस अटेंड करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।  ऐसी अवेयरनेस क्लासिस होने वाली मां के लिए जितनी जरूरी हैं उतनी ही होने वाले पिता के लिए भी जरूरी हैं।  आज के पुरूष भी इस प्रक्रिया में योगदान देना चाहते हैं।  वह अपनी पत्नी के  सपोर्ट सिस्टम बनने की पूरी कोशिश करते हैं।  उसको समय-समय पर डाक्टर के पास ले जाते हैं।  उनके दिमाग में भी ढेरों  सवाल हैंे और इनके जवाब आॅनलाईन ढ़ूंढ़ने की कोशिश भी करते हैंें। प्रीनेटल क्लासिस अटंेड करने के बाद आप अपनी पत्नी की जरूरतों को अच्छे से समझ पाएंगें और यह भी जान पाएंगें कि एक पिता होने पर आपको क्या जिम्मेदारी निभानी है।
यदि आप प्रीनेटेल क्लासिस लेने की सोच रहे हैं तो अंत समय का इंतजार मत कीजिए।  इसके लिए सही समय पांचवें महीने से ही शुरू हो जाता है।
इन क्लासिस में आपको चाइल्ड बर्थ के बारे में ए टू जेड जानकारी दी जाती है। मसलन बेसिक व्यायाम, पेन रीलिफ थैरिपी, ब्रेस्ट फीडिंग जैसी जानकारियां।
इससे आप जानंेगें कि आपकी पत्नी की शारीरिक और मानसिक स्थिति क्या है।
सही खानपान, व्यायाम और स्ट्रेचिंग उसकी दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए।
आप उसकी व्यायाम में और रिलेक्स करने में भी मदद कर पाएंगें।
इन क्लासिस को अटेंड करने से आप ज्यादा वक्त अपनी पत्नी के साथ गुजार पाऐंगें।
इससे आप दोनों की बांडिंग और गहरी होगी और वह अपने डर भी आपके साथ शेयर कर पाएगी।
आपको यह कैसे पता लगेगा कि आपकी पत्नी लेबर पेन में है। उसके दर्द को कम करने में कैसे मदद कर सकतेेेे हैं।  यहां आपको यह भी बताया जाएगा कि आप क्या न करें और न कहें जबकि आपकी पत्नी दर्द में हो।
जो स्त्री पहली बार मां बन रही होती है वह बहुत डरी हुई भी होती है कि वह दर्द को कैसे सह पाएगी।  उनके लिए यह सब बहुत डरावना अनुभव होता है। इस समय उसे अपने साथी की साथ की उसके हौंसले की बहुत जरूरत होती है।  लेबर पेन का समय लंबा और इंतजार कराने वाला होता है। ऐसे में अपनी पत्नी का दर्द से ध्यान हटाने के लिए उसको बिजी रखने की कोशिश करें।  उसे म्यूजिक और बातों में उसका ध्यान बटाएं।
यदि बच्चे के दूध फंस जाए तो क्या करना चाहिए। नैपी बदलने का सही तरीका, बच्चे को कैसे उठाना है,  बच्चों के बिहेवियर और उनसे जुड़ी बातों की जानकारी दी जाती है।
यह क्लासिस अटेंड करने से आपको यह भी फायदा होगा कि आप अपने जैसे अन्य होने वाले पिताओं से भी मिलेंगें।
सवाल पूछने से शरमाएं नहीं बल्कि इस बात पर गर्व महसूस करें कि आप अपनी पत्नी के सपोर्ट सिस्टम बन रहे हैं।
आप इसलिए भी इन क्लासिस को ज्वाॅइन कीजिए क्योंकि आपकी पत्नी यह चाहती हैं कि आप उसके साथ हर कदम पर रहें।





























Special Post

मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...