13 का अंक और मां विपदतारिणी का संग..... क्या है यह रहस्य-डा. अनुजा भट्ट


मेरा संबंध मां दुर्गा से बहुत गहरा है। जहां से मैं हूं वह दुर्गा का मायका है। अब आप यह पता करें मां पार्वती मां दुर्गा का मायका कहां है। मेरे मायके में भी देवी की पूजा होती है पर बलि नहीं होती। इसलिए मेरा संस्कार शाकाहारी है। शादी के बाद मैं बंगाली परिवार की बड़ी बहू बन गई और तीज त्यौहार की पारंपरिक जिम्मेदारी भी मेरे हिस्से आ गई।
यहां परंपरा और रीति नीति के रंग बिलकुल अलग थे। इसलिए स्वाभाविक था कि बहुत ज्यादा असमंजस थी। मैं हर चीज को जानना चाहती थी, समझना चाहती थी पर कई सवाल मन में थे। अपनी सासु मां के कहने पर मैंने भी विपद तारणी का उपवास रखना शुरू किया पर मुझे उसकी कथा कहानी मालूम नहीं थी। मेरे पास उसकी कोई किताब भी नहीं थी। परिवार में पूछा तो पता चला यह पूजा सभी महिलाएं सामूहिक रूप से मंदिर में करती हैं जहां ठाकुर जी पूजा करवाते हैं। सभी अपनी पूजा की सभी सामग्री के साथ वहां जाती हैं और कथा सुनती हैं। विवाहित महिलाएं ही इसे करती हैं।
अपने मायके में भी मैंने सामूहिक पूजा होते देखा है। आठू सातू का उपवास मां करती है। वहां की कथा कहानी के बारे जानती हूं। उस कहानी में मां अपने मायके आती है। यह लगभग उसी तरह है जैसे दुर्गा पूजा में मां अपने परिवार के साथ अपने मायके आती है। लेकिन आज जिस पूजा के बारे में बात कर रही हूं उसे जानने समझने के लिए तब न मुझे बांग्ला समझ आती थी न बोलनी आती थी और न पढ़नी। इसलिए न मैं समझ पाई न पढ़ पाई। किताब भी नहीं मिल पाई। मैं बस जैसा बताया गया वैसे करती रही। हमारी सोसायटी के मंदिर में यह पूजा नहीं होती। इसका कारण यह है कि यहां बंगाली परिवार बहुत कम है जाे हैं भी वह काली बाड़ी चले जाते हैं।
मैं हर पर्व में मां दुर्गा को याद करती थी और पूजा के बाद क्षमा प्रार्थना कर लेती। इस पूजा में जो सबसे अलग बात है वह है 13 का विधान। हर चीज 13 ही चढ़ती है चाहे फल हो मिठाई हो या फिर दूर्वा। प्रसाद में जो भी भोग लगाया जाता है वह 13 के अंक में ही होता है। मेरे मन में यह सवाल आता था कि 13 ही क्यों . इस बारे में बहुत लोगों से जानने की कोशिश की पर उत्तर नहीं मिला।
फिर सोचा दुर्गा सप्तशती में भी 13 ही अध्याय हैं। हो सकता है कथा के अनुसार जब रानी ने मां के याद क्या होगा तो दुर्गा सप्तशती का पाठ किया हो। 13 नंबर के अमूमन अशुभ माना जाता है पर यहां 13 शुभ है। अयोध्या के राम मंदिर में मूर्ति की प्राण- प्रतिष्ठा 22-01-2024 को की गई है। अगर हम अंक ज्योतिष की बात मानें तो प्राण-प्रतिष्ठा के दिन के सभी अंकों का योग 13 है। 22 जनवरी, 2024 को श्री राम मूर्ति के अभिषेक से एक दिलचस्प संख्यात्मक योग प्राप्त हुआ 2 + 2 + 1 + 2 + 0 + 2 + 4 = 13 प्राप्त हुआ है।
अंकज्योतिष में 13 अंक के कई अर्थ हैं। कुछ लोगों द्वारा इसे 'पवित्र अंक' माना जाता है और अंकशास्त्र में इसे एक बहुत ही कर्म कारक अंक माना जाता है। यह संख्या 13 परमात्मा से जुड़ी मानी जाती है और कहा जाता है कि जो लोग इसे अपनाते हैं उनके लिए यह सौभाग्य और समृद्धि लाता है। कई लोगों का मानना है कि संख्या 13 में बदलाव लाने की क्षमता है जो सकारात्मक दृष्टिकोण की ओर ले जा सकती है।मृत्यु के बाद भी 13 दिन का विधान है जहां आत्मा पवित्र हाेकर अपने स्थान चली जाती है। शोक शांति में बदल जाता है।
कुछ संस्कृतियों में इसे 'एंजेल नंबर' के रूप में भी जाना जाता है, यह प्रेम और करुणा के साथ नेतृत्व करने का प्रतीक है। इसका अर्थ नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलना है। सकारात्मक बनाए रखना है।
माता विपद तारिणी देवी दुर्गा के 108 रूपों में से एक हैं। देवी चार भुजाओं वाली हैं, सिंह पर सवार हैं और शंख, चक्र, खड्ग और शूल धारण करती हैं। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष द्वितिया से दशमी के बीच मंगलवार और शनिवार को उनकी पूजा की जाती है। यह पूजा गुप्त नवरात्रि में हाेती है। पूर्वी भारत में पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, बिहार, झारखंड, त्रिपुरा और बांग्लादेश के हिंदू समुदायों में यह पूजा की जाती है। ठीक इसी समय उड़ीसा में रथ यात्रा भी हाेती है।
तैयारी-व्रत पर 13 विभिन्न प्रकार के फलों, फूलों और मिठाइयों के प्रसाद से पूजा की जाती है। उन्हें 13 पान, 13 सुपारी और 13 धागा भी चढ़ाया जाता है। धागे में 13 गांठ 13 दूर्वा के साथ लगाई जाती हैं। पूजा के बाद प्रसाद खाया जाता है उपवास की महिलाएं मीठा भोजन ही करती हैं।
कथा- पूजा के अंत में व्रत कथा पढ़ी जाती है। कथा कहती है, कि एक बार देवर्षि नारद ने पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए देखा कि नश्वर मनुष्य विभिन्न प्रकार के संकटों में फंसे हुए हैं और उन्हें संकट से निकालने वाला कोई नहीं है। मनुष्यों का ऐसा भाग्य देखकर वे दुखी हुए और कैलाश गए तथा महादेव से मनुष्यों के संकटों को नष्ट करने के लिए कहा। शिव ने उत्तर दिया कि मनुष्य अपने जीवन में किए गए गलत कार्यों और पापों के कारण जीवन में संकटों का सामना करते हैं। और वे पाप ही संकट का रूप लेकर उनके सामने आते हैं। इस स्पष्टीकरण से आश्चर्यचकित नारद ने शंभु से ऐसा उपाय पूछा जिससे लोग स्वयं को ऐसे संकट से बचा सकें। मुस्कुराते हुए महेश्वर ने पास में ही विचरण कर रही नारायणी की ओर इशारा करते हुए कहा कि नारायण की प्रिय कमल नेत्रों वाली नारायणी ही सबका कारण है। जैसे भगवान विष्णु पृथ्वी का संरक्षण करते हैं, वैसे ही वे ही मनुष्यों को आसन्न संकट से बचा सकती हैं। तब नारद नारायणी के पास गए और उन्हें प्रणाम करते हुए उनसे मनुष्यों के सभी संकटों को समाप्त करने की विनती की। उसकी बात सुनकर नारायणी मुस्कुराई और तथास्तु कहकर अंतर्धान हो गई।

वह विदर्भ राज्य में प्रकट हुई, वहां एक बहुत ही धर्मपरायण राजा रहता था जो अत्यंत धर्मपरायण था और अपनी प्रजा और गायों की अत्यंत उत्साह से रक्षा करता था। उसकी पत्नी रानी भी असंख्य खूबियों वाली एक अत्यंत सुंदर महिला थी, लेकिन उसका एकमात्र बुरा गुण उसका अभिमान था। उसका अभिमान नष्ट करने के इरादे से देवी नारायणी ने महामाया का रूप धरा और एक मायाजाल फैलाया। माया के प्रभाव से महल की रानी एक बहिष्कृत समाज की महिला की सबसे अच्छी दोस्त बन गई। वह महिला गुप्त रूप से रानी के साथ मिलकर मादक शराब, जंगली मांस और अन्य वस्तुओं की तस्करी करती थी, जिन्हें धर्मपरायण लोगों द्वारा खाया नहीं जा सकता था। इसके लिए रानी उसे रेशमी वस्त्र और सोने के आभूषण देती थी। एक दिन रानी ने अपनी दोस्त से गोमांस मांगा, गोमांस सबसे अधिक निषिद्ध भोजन है। रानी की वफादार दोस्त ने उसे सावधान किया और कहा कि वह रानी के लिए वर्जित है। अब तक वह जो और भी निरामिष चीजें खाती थी उसे भी उनको नहीं खाना चाहिए पर उनको खाने से पाप नहीं लगता है, लेकिन गोमांस सबसे अधिक पाप है और यदि धर्मपरायण राजा को यह बात पता चल गई, तो वह धर्म की रक्षा के लिए आपका वध भी कर सकते हैं। माया के प्रभाव में आकर रानी ने चेतावनी की परवाह न करते हुए दोस्त को वचन दिया कि यदि वह मुझे वह लाकर देगी तो अत्यंत मूल्यवान रत्न उसे मिलेंगे। दोस्त ने रानी की बात मान ली और उसे गोमांस से भरा बर्तन भेंट किया। रानी ने प्रसन्न होकर दोस्त को उपहार दिए और गोमांस को अपने पलंग के नीचे छिपा दिया। बाद में जब वह स्नान करने चली गई, तो एक सेवक उसके कक्ष में आया और उसे गोमांस का बर्तन मिला, वह भयभीत होकर राजा को बताने के लिए भागा। जब राजा ने इसके बारे में सुना, तो वह अत्यंत क्रोधित हुआ और रानी के कक्ष की ओर दौड़ा। तब तक रानी वापस आ चुकी थी और जब उसने बाहर का शोर सुना, तो वह समझ गई कि वह पकड़ी गई है और उसने डर के मारे अपने कक्ष के दरवाजे बंद कर दिए। जब राजा पहुंचे तो उन्होंने दरवाजे पर जोर से दस्तक दी और रानी को तुरंत दरवाजा खोलने का आदेश दिया और धमकी दी कि अगर अंदर गोमांस मिला तो वह उसे जान से मार देंगे।
कांपते हुए रानी ने जवाब दिया कि उसने कपड़े नहीं उतारे हैं और कपड़े पहनने के बाद दरवाजा खोलेगी, उसने राजा से इंतजार करने का अनुरोध किया और राजा ने प्रतीक्षा की। डर से व्याकुल होकर उसने गोमांस को छिपाने के लिए चारों ओर देखा लेकिन कोई रास्ता नहीं मिला। अफसोस औऱ अपने भाग्य को कोसते हुए उसने नारायणी की शरण ली और पूरे दिल से भक्ति के साथ प्रार्थना की । उनकी स्तुति करके उन्हें इस खतरे से बचाने का अनुरोध किया। तब देवी हरवल्लभी देवी नारायणी देवी लक्ष्मी उनकी भक्ति से प्रसन्न हुईं, माता बिपदतारिणी के रूप में रानी के सामने प्रकट हुईं और उन्हें अभय प्रदान किया और उन्हें खतरे से बचाने का वादा किया। साथ ही उन्होंने कहा , हर साल आषाढ़ माह के गुप्त नवरात्रि के दौरान मंगलवार या शनिवार को 13 आम के पत्तों और नारियल के साथ एक जल भरा घड़ा स्थापित करें और 13 पूड़ियों का भोग लगाकर उसकी पूजा करें। हाथ में 13 गांठ और 13 दूर्वा से सुसजिजत धागा पहने और अपने परिवार के लोगों को भी पहनाएं। यह धागा सालभर तक पहनें। हर साल पूजा के बाद इस दिन इस धागे को बदलें।
तो कैसी लगी आपको यह पर्व कथा।

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