मंगलवार, 28 मार्च 2017

एथनिक स्टाइल में आपका घर-डा. अनुजा भट्ट

 
एथेनिक स्टाइलमें आपका घर विलक्षण और चमकदार आभा लिए दिखाई देगा। इस स्टाइल में घुमावदार फर्नीचर को शामिल करें। बाजार में इस तरह के फर्नीचर के कई डिजाइन मौजद हैं। एथेनिक स्टाइल में कई संस्कृतियों का समावेश है।

एथेनिक प्रिंट चूज करने के लिए आप ईस्ट से लेकर वेस्ट तक के पैटर्न्स ट्राय कर सकती हैं एथेनिक स्टाइलमें कमरे; एकांत का पर्याय लगते हैं। जहां अपने लिए दो पल गुजारे जा सकें। चमकीले रंगों का प्रयोग इसकी खासियत है। इस तरह के;स्टाइल में; रत्नों का भी प्रयोग किया जाता है। यहां पर कुछ ऐसीबातें बताई जा रही हैं जिनका; प्रयोग करके आप अपने घर को एथेनिकस्टाइल में बदल सकते हैं

एथेनिक स्टाइल फर्नीचर- 

कर्व स्टाइल इसकी विशेषता है। अपने ड्राइंगरूम के लिए जोसोफा लें वह बिना हत्थे वाला होना चाहिए।; रंगों में वाइन रेडकलर का प्रयोग करें  किचन में गहरे रंग की लकड़ी का प्रयोगकरे। खासकर केबिनेट बनवाने; के लिए।; गाढ़े रंगों को महत्वदें। फेब्रिक, वॉल हैंगिग, परदे सभी में यही पैटर्न चलेगा। कसीदाकारीइस थीम की विशेषचा होती है। कुशन कवर, बेड कवर और टेबल कवर के रुप मेंइसका प्रयोग करें। ये सभी चीजें कमरे को एथेनिक लुक देतीहैंबेड की ऊंचाई कम होनीचाहिए। मच्छरदानी लगाने वाले खूबसूरत; सेटेंड भी एथेनिक लुक देतेहैं। कमरे के दोनो तरफ टेबल लगी हो। बाथ रुम में रॉट आयरन या ब्रासवेयर का टॉवल रेल्स लगाएं। कपड़े टांगने के लिए जो हुक लगाएं वह हीएथेनिक स्टाइल के होने चाहिए।

एथेनिक स्टाइल का फर्श-

 टेरोकोटा स्टाइल और स्टोन का प्रयोग करें। यह आपके घर कोभव्यता प्रदान करेंगे और आपका घर एथेनिक लुक में नजर आने लगेगा।;हर कमरे में रग्स का प्रयोग करें। बेडरूम में मोसका फ्लोरिंग करें।फर्श पर बिछाने के लिए कारपेट की जगह ब्राइट कलर के रग्स का इस्तेमालकरें। यह आपके कमरे को एथेनिक लुक देगा।एथेनिक स्टाइल के ही फेब्रिक का प्रयोग करें। जो रंग सबसे ज्यादा चलते हैं वह हैं चमकदार गहरे और कसीदारी किए गए। यह अधिक्तर परदे, कुशन और बेडसीट में प्रयोग में लाए जाते हैं। मोरक्कन टच के लिए हैवी वैलवेट का प्रयोग करें। भारतीय शैली को दिखाने के लिए कसीदारी पर जोर दें। गोल्ड ,सिल्वर धागों से की गई कसीदाकारी भारतीय एथेनिक लुक को दर्शाती है।

कलर स्कीम- 

गोल्ड, टरमिनिक, रेड, ब्राउनकोबेल्ट; ब्लू, लाइम ग्रीन, हॉट पिंक, पिकॉक शेड्स। पिस्ता,वाइन, मरून, गोल्ड और आइवरी शेड्स।एक्सेसरीज में भी इन रंगों का प्रयोग करें।
 पर्दे- एथेनिक स्टाइल पर्दे में सीसे का प्रयोग अच्छालगता है। साडिय़ों का प्रयोग भी एथेनिक लुक. देता है। कुशन में बीड्सका प्रयोग करें। 

 वॉल पेंटिंग -

 एथेनिक स्टाइल की वाल पेटिंज का प्रयोग करें। यहां भी वहीं कलर का; प्रयोग करें इस तरह के कमरों में; रहने पर घनिष्ठता का अहसास होता है। नजदीकियां बढ़ती वॉल हैंगिग, कारपेट्स, लैंटर्स, वॉल स्कान्स का प्रयोग करें।

चमकदार रोशनी के प्रयोग से बचें।

शनिवार, 25 मार्च 2017

ममता की डोर थामें सजाएं बच्चों का कमरा

डा. अनुजा भट्ट
 हमेशा बदलावों और नए नए ट्रेंड पर जोर देता है। टेंड भी ऐसे होने चाहिए जिसेस्वीकार करने में ज्यादा दिक्कतों का सामना न करना पड़े । माता-पिताके अलावा डिजाइनरों ने भी यह मान लिया है कि बच्चों के कमरे का अर्थ कार्टून वाले पर्दे या बेबी पोस्टर से सजे कमरे से नहीं है। अब यहकमरा खास कमरा है। बाजार में किड्सफर्नीचर अलावा बैड, पर्दे,कुशन सभी कुछ बच्चों को ध्यान में रखकर बनाए जा रहे है। कमरे को सजानेके लिए एक्सेसरीज हैं, जिसमें पपेट के अलावा छोटी छोटी घंटियों की  मांग ज्यादा है।;इंटीरियरडिजाइनर मेहर दिवानिया कहती हैं, कि बच्चों के लिए अब पिंक और ब्लूबोरिंग हो गए हैं बंक बेड्स और क्यूट एक्सेसरीज भी अब फैशन में नहींहैं। लेकिन 0 से 6 साल के बच्चों का कमरा सजाने के लिए आपके पास बहुतसारे विकल्प हैं इसीलिए बच्चों का कमरा सजना सबसे ज्यादा आसान है। इसउम्र में बच्चों की अभिरुचियां स्पष्ट नहीं होती। वाल माउंटेन गेम्स,सॉउ्ट बोड्र्स, स्लाइड्स के अलावा बंक बेड्स, ट्रंडल बेड्स भी कमरे कीजरूरत हो सकते हैं। लेकिन सबसे पहले यह गौर करना है कि उपयुक्तफर्नीचर और स्टोरेज कैसे हासिल किया जाए।इतनी कम उम्रके बच्चे ऐसी जगह तलाश करते हैं जो परीकथा जैसी हो। इसीलिए सुंदर औरव्यवहारिक फर्नीचर खरीदें। सपाइडरमैन, क्रिकेट बॉबी डॉल जैसी चीजेंवॉलपेपर के रूप में लगाएं।; वालपेपर का प्रयोग थीम के साथ कियाजा सकता है।मार्केट में बेबी बायकी अपेक्षाकृत बेबी गर्ल के लिए ज्यादा च्वाइस है। उनके कमरे ज्यादाइनोवेटिव है। थीम के तौर पर कभी उनका कमरा गुडिय़ों से सजा होता है तोकभी पूरा का पूरा कमरा किसी खास रंग से। वैसे बेबी गर्ल को पिंक कलरज्यादा पसंद है और इसके लिए बैड कवर से लेकर, तौलिया, लैंप शेड सभीपिंकी पिंकी नजर आते हैं यहां तक कि उनकी गुडिय़ा के कपड़े,जूते, हेयर बैंड, फ्लावर पोट भी गुलाबी।अगर आप किसी दुविधामें हैं कि कैसे मैं उसके कमरे को सजाऊं तो अपनी बच्ची के मन पसंद रंगऔर उनकी पसंद के कपड़ों पर गौर कीजिए। बाजार में उनके लिए जो परिधानबन रहे है उनकी डिजाइन पर गौर करे आपको वहीं से कोई आइडिया क्लिक करजाएगा, क्योंकि ट्रेंड यहीं से शुरू होता है। आपको जानकर आश्चर्य होगाजब प्यारी प्यारी बच्चियां खूब घेरदार फ्राक पहनकर नाचती है तो वहअपनी खुशी प्रकट करती है इसीलिए उनके कमरे में झालर का प्रयोग करनाचाहिए यह झालरचद्दरों से लेकर पर्दो और बैडकवर तक में दिखाई देसकती है। इसी तरह उनको चौखनी प्रिंट वाले या फिर सीधी धारियों वालेफेब्रिक पसंद आते हैं। इसकी वजह है स्कूल की ड्रेस।क्या आपने अपनीनन्हीं बिटिया की ड्राइंगबुक देखी है वह किसी एक रंग का प्रयोग नहींकरती बल्कि उसे गाढ़े रंग पसंद आते है एकदम चटक। सफेद को तो वह रंगमानती ही नहीं। वह तरह तरह के गोले बनाती है और उनमें रंग भरती है।इसीलिए अगर आप पोलका डाट प्रिंट वाले पिलो उसके लिए चुनेंगी तो उसेपसंद आएंगे। अपनी बेटी की जो तस्वीरे आपको पसंद हैं और जिन्हें देखकरउसका बचपन याद आता है तो उसे फोटो फ्रेम में बंद न करें अब यह फैशनपुराना पड़ गया है। आप चाहें तो उन फोटो को तौलिए, चादर, टी शर्ट याफिरकाकरी में संजो सकती हैं यह ट्रेंड एकदम नया है। अगर आप काबच्चा आड़ी तिरछी रेखाएं खींच रहा है तो खींचने दीजिए और उसे ्िकसीपेंटिंग थीम में बदल दीजिए। किड्स पेंटिंग इन दिनों एकदम नए टेंड केतौर परउभर रही है। गुडिय़ों की जगह कठपुतलियों ने ले ली है।आर्ट क्राफ्ट काप्रयोग इंटीरियर के साथ किया जा रहाहै।पर अगर बच्चोंकमरे को पेंट करने की बात करें तो बच्चों को काला, स्टील और ग्रे कलरपसंद है लेकिन इसके बाद वह लाल कलर पर ही फोकस करते हैं।उनकेऔर पसंदीदा कलर हैं- इंडिगो ब्लू, यलो, आरेंज, ब्राइट पिंक औररस्ट। आजकल कई तरह केप्रिंट वाले वालपेपर बाजार में मौजूद है। फ्लोरल प्रिंट के अलावाएनिमल प्रिंट पर ज्यादा जोर है। वाल पेपर के साथ साथ बार्डर भी मौजूदहै। पर्दे ,बार्डर और वाल पेपर के संयोजन से बहुत बदलाव लाया जा सकताहै।इसके अलावा वास्तुशास्त्र और फैंगशुई जैसी तमाम देशी विदेशी पद्धितियों पर भी लोगों की नजर है । माना जाता है कि ये पद्धतियां सकारात्मक ऊर्जा पैदा करती है।अपने बच्चों के कमरे में कभी भी झाडफ़ानूस न लगाएं। बड़े हो जाने के बाद
फैंसियर,इनडायरेक्ट लाइट लगा सकते हैं। अगर आप अपनी बच्ची का कमरासजाने जा रही है तो मल्टीपरपज फर्नीचर की तैयारी करें जो बाद में भी काम आ सके।

रविवार, 19 फ़रवरी 2017

युवा भी हो रहे हैं हाइपरटेंशन के शिकार- डा. अनुजा भट्ट



य‌‌दि आप 20 साल से ऊपर के हैं, और आप का वजन ज्याद‌ है, आप परेशान रहते हैं, चिडचिड़ा स्वभाव हो गया है और जीवनशैली शारीरिक गतिविधियों से खाली है तो इस बात का जोखिम है कि आप को हाइपरटेंशन हो सकता है. शोर्धकत्ताओं ने पता लगाया है कि उच्च रक्त चाप का संबंधकेवल उम्र दराज लोगों से नहीं है, बल्कि युवा पीढ़ी विशेषकर तरूण भी इसका तेजी से शिकार बन रहे है.10 साल तक निरंतर हुए एक अध्ययन से पता चला है कि तरूणों में चिंताजनक स्तर तक रक्तचाप की समस्या बढ़ी है. पुराने वक्त में अब जीवन की गतिआज से कहीं कम थी तब इस समस्या का कहीं आता पाता नहीं था. इंसान कीबढ़ती तरक्की ने यह समस्या भी बढ़ाई है. विशेषज्ञों के अनुसार समस्यामानसिक व पर्यावरणीय कारणों और नये जमाने के जीने के तौर तरीकों सेबढ़ी है. यह भी पाया गया है की हाइपरटशेंन से और भी कई बीमारियां होतीहैं जैसे ह्रदय रोग जिनमें शामिल हैं इस्केमिया हार्ट डिसीज, पेरिफेरलवैस्कुलर डिसीज, ए.एम.आई आघात एवं मोतियाबिंद.भारत में समस्या गंभीर है. स्कूली बच्चों में ग्लूकोज स्तर का तीनवर्षों तक अध्ययन किया गया. इन बच्चों की उम्र 13 से 18 साल के बीच थीऔर ये सभी दिल्ली के अच्छे खाते पीते परिवारों के थे. परिणाम यह निकलाकी तीन में से एक बच्चा हाइपरटेंसिव होने की ओर बढ़ रहा था.दिल्ली हार्ट एंड लंग इंस्टीटयूट के प्रो.डा. के के सेठी का कहना है,आज की पीढ़ी काम के तनाव, खानपान व नींद लेने की अनियमित आदतों,शारीरिक और मनोरंजक गतिविधियों की कमी का शिकार है और वंशानुगत तौर परभारतीयों को ह्रदय रोगों का अधिक खतरा रहता है.1990में ह्रदय रोगों से भारत में 23 लाख मौतें हुई. अनुमान है कि साल2020 में ह्रदय आघात से होने वाली 57 प्रतिशत मौतों और ह्रदय धमनी केरोगों से होने वाली 24 प्रतिशत मौतों के लिए हाइपरटेंशन सीधे तौर परजिम्मेदार हैं. इन अध्ययनों से प्राप्त आंकड़ों से मालूम चलता है किशहरों में 25 प्रतिशत और गांवों में 10 प्रतिशत लोग हाइपरटेंशन सेग्रस्त हैं. गांवों में करीब 3 करोड़ 15 लाख और शहरों में 3 करोड़ 40लाख हाइपरटेंसिव लोग मौजूद हैं.भारतीय संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संघ के दिशानिर्देश प्रोसेस्डखाद्य पदार्थ, अचार, परांठे, चिप्स, पापड़, चटनी से परहेज करने कोकहते हैं. इनके अनुसार घी का प्रयोग कम करना चाहिए और योग-ध्यान कोअपनाना चाहिए.डा. सेठी के मुताबिक, आजकल बच्चे चीज टपकाते जंक फूड बहुत खाते हैं जबकि इनमें मौजूद चीजें बड़ी मारक होती हैं. यह समस्या इस लिए भी बढ़जाती है कि हाइपरटेंशन कोई लक्षण प्रकट नहीं करती. इस लिए समय से इसकापता लगा कर उपचार करना संभव नहीं हो पाता.यह भी सलाह दी जाती है कि ऊपर बताए गए खाद्य पदार्थों के परहेज केसाथ-साथ साबुत अनाज और फोर्टिफाइड सीरियल जैसे ओट्स खाने चाहिए औरजीवन शैली में बदलाव करके हाइपरटेंशन जैसी बीमारी को दूर रखा जा सकताहै.हाइपरटेंशन से ग्रस्त लोगों को अपनी बीमारी का पता नहीं चलता. उनकीसामाजिक व पेशेवर जिंदगी अप्रभावित रहती है, पर तब तक, जब तक की वेअपनी छाती में बेहद पीड़ा महसूस नहीं करते या फिर गिर नहीं पड़ते.हालांकि डॉक्टर कहते हैं कि हाइपरटेंशन के कोई खास लक्षण नहीं होतेकिंतु कुछ सामान्य लक्षण जैसे-सिरदर्द, सर व आंखों में भारीपन, आलस्य,चिड़चिड़ापन, सामान्य कमजोरी, चक्कर आना, स्पंदन, नकसरी, पेशाब मेंखून आना छाती में दर्द. लेकिन चूंकि इन लक्षणों को किसी और मर्ज कालक्षण भी समझा जा सकता है इस लिए हाई बीपी पता करने का सबसे सरलमाध्यम है नियमित जांच. जीवन शैली में परिवर्तन करने के साथ नियमितजांच से ही आप दवाओं की भारी खुराक से बच सकते हैं. यदि यह बीमारीबिना इलाज के रह गई तो यह आप के दिमाग, दिल व गुर्दों को भी क्षतिपहुंचा सकती है.यह बहुत गंभीर स्थिति है. बच्चों के रक्तचाप में बढ़ोत्तरी अशुभ संकेतहै. इसका संबंध बच्चों में बढ़ती मोटापे की समस्या से है. तो यदि अगलीबार आपके बच्चे के सिर में दर्द हो या दम फूलने लगे, धड़कनें बढ़नेलगें तो इस स्थिति को नजर अंदाज न करें, ऐसे में एक गोली दे देना हीकाफी नहीं है, बल्कि उसे डॉक्टर के पास ले जाएं और उसके रक्त चाप कीजांच कराएं.

फिट रहने के उपाय- 
  • भोजन पकाने के तरीके बदलें. नमक खाना खाते वक्तमिलाएं.डब्बा बंद उत्पाद प्रयोग करते समय खारे पानी को फेंक दें और ताजीपानी से धोएं।
  • उबला मांस, प्रोसेस्ड मांस व मछली को पहले कुछ देर पानी में रखें और फिर पानी फेंक दें. इन उत्पादों का फालतू सोडियम निकलजाएगा
  • .इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार एक सामान्य व्यक्ति कोएक दिन में 2 से 4 ग्राम ही नमक खान चाहिए, इससे ज्यादा नहीं.
  • हाइपरटेंशन के मरीज के लिए तो यह 2 ग्राम से अधिक होना ही नहीं चाहिए.कुछ मात्रा में वजन घटा कर भी बीपी कम किया जा सकता है. इस लिए हर रोज सुबह शाम सैर करें या कोई अन्य व्यायाम करें.शरीर में पानी की क⧭मी न होने दें. पर्याप्त पानी पीएं. इसके साथ100 प्रतिशत शुध्द फलों का जूस पीना भी अच्छा विकल्प है.
  • हमेशा शांत रहें और जीवन के तनाव से निजात पाने के उपाय करें।


रविवार, 12 फ़रवरी 2017

घर का आंगन दिखे सबसे सुंदर- डॉ. अनुजा भट्ट


 घर के आंगन में बैठते समयहमें अहसास होता है कि यह भी घर का एक खास हिस्सा है फिर क्यों हम इसकी साजसज्जा पर ध्यान नहीं देते। आस पास लगे पौधे, फूल इसकी सजावट को और ज्यादा बढ़ाते हैं। फिर अगर इसका फर्श भी आकर्षक हो तो कहना ही क्या? जब हम फर्श के डिजाइन देखते हैं तो हमेशा दुविधा में रहते हैं कि कौन सा डिजाइन चुनें। या  हमें लगता हैं कि यह हमारे बजट में भी है या नहीं तीसरी बात हमको नए डिजाइन के बारे में जानकारी भी नहीं होती। फिर जब हमने घर नया बनवाया है तो फिर उसके  सबसे महतवपूर्ण हिस्से की अनदेखी क्यों करें। अधिकांश घरों में तो यह प्रवेश द्रार ही होता है। पर यह जरूरी नहीं, पिछवाड़े भी घर का आंगन होता है।
 आज के दौर में घर के बाहरी हिस्से के फर्श  के लिए भी कई तरह के विकल्प हैं। कंकरीट फ्लोर, स्टोन फ्लोर, सीमेंट की टाइल्स, ईंट फ्लोर, स्लेेट फ्लोर आदि। फर्श के ये नए नमूने आज के मार्डन घरों में  देखे जा सकते हैं। ये ऐसे उहाहरण है जो घर के आंगन में प्रयोग किए जाते हैं।  लेकिन हमें यह निश्चित करना  पड़ेगा कि हम  किस तरह का फर्श चुनें। पहला यह जानने का कोशिश करें कि कौन सा फर्श ज्यादा समय तक टिका रहेगा। क्योंकि इस जगह पर बारिश- धूप का असर सबसे ज्यादा होता है। और इसके खराब होने का सबसे ज्यादा अंदेशा भी होता है।  यहां पर ऐसे फर्श की जरूरत है जिस पर मौसम का असर न पड़े और  जिसमेंं फिसलन न हो। अमूमन  बारीश के समय  फिसलने का डर बना रहता है। यह ध्यान देना जरूरी है कि आंगन   कितनी जगह में है? फर्श बनवाने  के खर्च  के लिए यह सबसे पहले जानना जरूरी है। इसका साइज जानने के बाद ही आप  प्लान बनाएं।  ईंट से बना फर्श देखने में सुंदर लगता  है बशर्ते वह बहुत सुंदरता और सलीके से लगाई गई हों। यह गर्मी- बारिश और फिसलन से दूर करता है। आप अपनी कल्पनाशक्ति से ईंट से बहुत  बेहतरीन डिजाइन बना सकते हैं। आजकल कई रंगों की ईंटे आ रही है जो देखने में बहुत सुंदर लगती हैं। पत्थर भी आउटडोर प्लोरिंग के लिए अच्छा विकल्प हैं। आप अपने मन पसंद पत्थर को चुन कर भी अपनी सृजनात्मकता का परिचय दे सकते हैं।  पत्थर में भी कई रंग हैं जैसे नीला पत्थर ,लाल पत्थर, इसके अलावा स्लेट।

स्लेट फर्श ज्यादा समय तक चलता है और इसमें दरारे नहीं आ पाती। इन सभी विकल्पों मे स्टोन फर्श ही सबसे अच्छा है। पेबली फ्लोर टाइल्स भी एक अच्छा विकल्प हैं यह कई रंगों और साइज में आसानी से मिल जाते हैं। जो कंपनियां टाइल्स बेचती हैं उनके पास कई तरह के डिजाइन रहते हैं। उनको देखकर भी मनपसंद चुन सकते हैं। पेबली फ्लोर की कीमत बाजर में सबसे कम है। कंकरीट फ्लोर भी ज्यादा लोकप्रिय हैं। यहां पर भी कई तरह के रंग आपको मिल सकते हैं। आंगन भी आपके घर के अन्य कमरों का तरह ही है इसीलिए इसकी अनदेखी न करें।

फिर से हाजिर हैं आपके लिए नई पाेस्ट के साथ

 मित्राें, नमस्कार
 आज बहुत  दिनाें के बाद आपसे फिर से रूबरू हाे रहे हैं।  इस बीच हमारा ध्यान पूरी तरह  वागीशा क्लब काे मजबूत बनाने में रहा। हमने मैं अपराजिता नाम से मासिक पत्रिका निकाली जिसे पाठकाें ने बहुत पसंद किया। यह पत्रिका ई मैग्जीन के रूप में आप मैजिस्टर और राक स्टेंड में ङी पढ़ सकते हैं।  डेस्क टाप के  लिए मैजिस्टर और माेबाइल के लिए राक स्टैंड में यह सुविधा है। हा़र्ड कापी के  लिए  सब्सिक्रप्शन लेना हाेगा।  आपके पते पर मैग्जीन भेज दी जाएगी। दिल्ली एन,सीआर में रहने वाले मात्र 100 रूपये का पेटीएम करके मैग्जीन के 3 अंक मंगवा सकते हैं।

शनिवार, 2 जनवरी 2016

किसी भी दवा से ज्यादा कारगर है - एक्ससाइज

एक्सरसाइज आपके मूड को खुश रखती है। आपको शेप में रखती है । इसके लिए फिटनेस प्रोग्रााम का चयन कीजिए। प्रोग्राम ऐसा चुनें जो आपकी पर्सनेलिटी और लाइफस्टाइल से मेल खाता हो। आप एक्ससाइज के जरिए क्या पाना चाहती हैं इसको एकदम क् िलयर कर लें। क्या आप अपनी बॉडी को टोनअप करना चाहती हैं या फिर कुछ वजन भी कम करना है। इन सबके लिए अलग अलग एक् सरसाइज हैं जैसे- कार्डियोवसकुलर, स्ट्रेंथ और    फ्लेसिबल ट्रेंिंनंग।    क्या है फंडा-   कार्डियोवसकुलर एक्ससराइज में कैलोरी बर्न होती हैं इसके लिए तेज चाल से चलना, स्विमिंग और साइक्लिंग की जा सकती है।  स्ट्रेंथ ट्रेनिंग में वेट को कंट्रोल करने की एक्ससाइज की जाती है ताकि आगे चलकर हड्डियों की समस्या न आए। आपकी    बॉडी मजबूत रहे और ठीक से काम कर सके।     फ्लेसिबल ट्रेंिंनंग में यह बताया जाता है कि आपका खड़े होने बैठने का तरीका कैसा है उसे कैसे सुधारा जाए।    इसमें आपको  मांसपेशियों की एक्ससाइज के बारे में बताया जाता है ताकि आपकी बॉडी फ्  लेक्सेबल बनी रहे। योगा, पिलाटे, स्ट्रेचिंग, ताई ची इसी तरह की     एक्सरसाइज हैं।रिलेक्स होने के लिए फुट मसाज बहुत काम आती है इससे आप खुश  महसूस करते हैं।  प्राणायाम आपके दिल के लिए अच्छा है।   सप्ताह में १ दिन तेज चाल से चलें    यह भी आपको ताजगी  देगा। सही खाने-पीने की चीजों का चुनाव करें- ऐसा खाना खाएं जो  स्वाद के साथ आपकी सेहत का भी ख्याल रखें। आपकी डाइट में संतुलन होना  चाहिए। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फेट और पानी इनका तालमेल जरूरी है।  याद रखें    यदि आपने सेहत पर ध्यान नहीं दिया तो आपके शरीर की  ताकत तो कम होगी और आपके पचाने की शक्ति भी कम हो जाएगी।    स्किन की चमक के लिए खूब पानी पिएं। कम से कम ८-१० गिलास पानी   फल खाएं-    पानी वाले फल जैसे तरबूज, खरबूज, खीरानारियल    को    डाइट में शामिल करें।    अपने चेहरे को धूलऔर सूरज की तेज किरणों से बचाएं।  अपनी स्किन के बारे में जानें और उसी के हिसाब से क्रीम का  चयन करें। माश्चराइजर का प्रयोग करें।

अगर है डायबिटीज तो लीजिए ये डाइट- डॉ. शिखा शर्मा

संतुलित खान-पान का तरीका अपनाने से हम अपनी सेहत को सुधार सकते हैं और आने वाली बीमारियों से खुद को बचा सकते हैं। बैलेंस्ड डायट न सिर्फ बीमारियों से बचाती है , बल्कि बीमार होने के बाद रिकवरी भी जल्दी होती सकती है। न्यूट्रीहेल्थ की डॉ. शिखा शर्मा कहती हैं, सही खानपान , व्यायाम और तनाव मुक्त रहकर हम बीमारी को आने से रोक सकते हैं। इस लेख में वह बता रही हैं डायबिटीज के रोगियों के लिए कैसा होना चाहिए उनका खान-पान। शुगर के मरीजों के लिए जरूरी है कि वे बैलेंस्ड डायट लें। ज्यादा न खाएं , लेकिन तीनों वक्त खाना खाएं और बीच में दो बार स्नैक्स भी लें। उन्हें प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का अच्छा कॉम्बिनेशन लेना चाहिए। मसलन , नाश्ते में दूधवाला दलिया लें या फिर ब्रेड के साथ अंडा लें। इसी तरह खाने में सब्जी के साथ दाल भी लें। इससे शुगर का लेवल सही रहता है। असल में , कार्बोहाइड्रेट से शुगर जल्दी बनती है , जबकि प्रोटीन से धीरे-धीरे शुगर रिलीज़ होती है , जिससे ज्यादा देर तक पेट भरा हुआ लगता है और ज्यादा खाने से बच जाते हैं। कुल खाने की फीसदी कैलरी कार्बोहाइड्रेट से , 15-20 फीसदी प्रोटीन से और 15-20 फीसदी फैट से मिलनी चाहिए। ज्यादा तला-भुना न खाएं। लो ग्लाइसिमिक इंडेक्स वाली चीजें यानी जो शरीर में जाकर धीरे-धीरे ग्लूकोज़ में बदलती हैं , खानी चाहिए। इनमें हरी सब्जियां , सोया , मूंग दाल , काला चना , राजमा , ब्राउन राइस , अंडे का सफेद हिस्सा आदि शामिल हैं। खाने में करीब 20 फीसदी फाइबर जरूर होना चाहिए। गेहूं से चोकर न निकालें। लोबिया , राजमा , स्प्राउट्स आदि खाएं क्योंकि इनसे प्रोटीन और फाइबर दोनों मिलते हैं। स्प्राउट्स में ऐंटि-ऑक्सिडेंट भी काफी होते हैं। दिन भर में 4-5 बार फल और सब्जियां खाएं लेकिन एक ही बार में सब कुछ खाने की बजाय बार-बार थोड़ा-थोड़ा करके खाएं। फलों में चेरी , स्ट्रॉबेरी , संतरा , पपीता , मौसमी आदि और सब्जियों में करेला, घीया , तोरी , सीताफल , खीरा , टमाटर आदि खाएं। रोजाना एक मु_ी ड्राइ-फ्रूट्स खाएं यानी 10-12 बादाम या 5-7 बादाम और 3-4 अखरोट खा सकते हैं। घीया , करेला , खीरा , टमाटर , अलोवेरा और आंवला का जूस खास फायदेमंद है। लो फैट दही और स्किम्ड/डबल टोंड दूध लेना चाहिए। ग्रीन टी पीना अच्छा है। चाय के साथ हाई फाइबर बिस्किट या फीके बिस्किट ले सकते हैं। बीपी नहीं है तो नमकीन बिस्किट भी खा सकते हैं। जौ (बारले) , काला चना , मूंग दाल और जामुन खासतौर पर फायदेमंद हैं। इनका ग्लाइसिमिक इंडेक्स भी कम है और ये पित्त के इंबैलेंस को कम करने के साथ-साथ अगर अंदर सूजन हो गई है तो उसे भी कम करते हैं। काला नमक डालकर छाछ पिएं। नारियल पानी पिएं। घर में बने सूप पिएं। नीम-करेला पाउडर ले सकते हैं। हालांकि इसका कोई फौरी फायदा नहीं होता कि कोई उलटा-सीधा खाने के बाद सोचे कि दो चम्मच नीम-करेला पाउडर खा लेंगे तो ठीक हो जाएगा। यह गलत है। लेकिन लंबे वक्त में यह जरूर फायदा पहुंचाता है।परहेज करें चीनी , शक्कर , गुड़ , गन्ना , शहद , चॉकलेट , पेस्ट्री , केक , आइसक्रीम आदि मीठी चीजें न खाएं। हाई ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाली चीजों से बचें क्योंकि ये जल्दी ग्लूकोज में बदल जाती हैं। इससे शरीर में शुगर एकदम से बढ़ जाता है। ऐसे में इंसुलिन को शुगर कंट्रोल करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। इनमें प्रमुख हैं मैदा , सूजी , सफेद चावल , वाइट ब्रेड , नूडल्स , पिज़्ज़ा , बिस्किट , तरबूज , अंगूर , सिंघाड़ा , चीकू , केला, आम , लीची आदि। पूरी , पराठें , पकौड़े आदि न खाएं। इनसे वजन के साथ-साथ कॉलेस्ट्रॉल भी बढ़ता है। जूस से बचना चाहिए क्योंकि इनमें शुगर की मात्रा ज्यादा होती है। पैक्ड जूस बिल्कुल न लें। सीधे फल खाना ज्यादा फायदेमंद है। सब्जियों में आलू , अरबी , कटहल , जिमिकंद , शकरकंद , चुकंदर न खाएं। इनमें स्टार्च और कार्बोहाइड्रेट काफी ज्यादा होता है , जो शुगर बढ़ा सकते हैं। वैसे , इन्हें उबाल कर कभी-कभी खाया जा सकता है लेकिन फ्राई करके कभी न खाएं। फलों में आम , चीकू , अंगूर , केला , पाइन ऐपल , शरीफा आदि से परहेज करें क्योंकि इनमें शुगर काफी ज्यादा होती है। मैदा और मक्के का आटा न खाएं। इनका ग्लाइसिमिक इंडेक्स ज्यादा होता है और ये रिफाइन भी होते हैं। वाइट राइस की बजाय ब्राउन राइस खाएं। चावलों का मांड निकालकर खाना सही नहीं है क्योंकि इससे सारे विटामिन और मिनरल निकल जाते हैं। ऐनिमल फैट (मक्खन , पनीर , मीट आदि) कम कर देना चाहिए। शराब न पीएं। इससे हाइपोग्लाइसीमिया (शुगर लेवल का एकदम नीचे गिर जाना) हो सकता है। ज्यादा शराब पीने से यूरिक एसिड और ट्राइग्लाइसराइड बढ़ता है और शुगर को कंट्रोल करना मुश्किल होता है।

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