#मैंअपराजिताकहानीप्रतियाेगिता
जूगुनू को टिमटिमाते हुए देखकर कई विचार उमड़ने लगे ।मन ही मन सोचा कि मैंने अपने जीवन को कितना सार्थक अर्थ दिया है।पहले रिया के पिताजी को कम उम्र में ही हृदय रोग हो गया,इस कारण,उनकी सेवा-सुश्रुषा में अपने लिए कभी समय ही नहीं निकाल पाई, फिर 4 बच्चों की परवरिश करना आसान थोड़ी है,कभी किसी की पढ़ाई का खर्चा आ जाता, किसी को नए कपड़ें चाहिए होते...तो किसी की नई-नई फरमाइशें ,सब को खुश रखना बहुत बडी़ जिम्मेदारी थी।सिलाई-कढाई में इतनी आमदनी भी नहीं होती कि सबकी फरमाइशे पूरी कर सकूँ,जरूरतें पूरी हो जाती,वहीं बहुत है।
खैर अब सब जिम्मेदारी पूरी हो चुकी है,सब अपनी राहें तय कर चुके है।
आज सुबह-सुबह ही वो अपने पति की तस्वीर के आगें खड़ी हो गई,और एकटक निहारते हुए सोचने लगी ,कि उनके पति हमेंशा कहा करते थे,"तुम बहुत अच्छी कविता, कहानी,और नजम लिखती हो,हम तो तुम्हारें लेखन के दीवाने है।"
उन बातों को सोचते हुए ही उनके होंठों पर मुस्कान आ गई।
आज कई दिनों बाद वो मुस्कुराई है.उन्हें लगा कि मेरे बच्चों ने अपनी रूचि,स्वभाव व आदतों को हमेशा सर्वोपरि रखा....और अपने सपने पूरे किए ,भले ही दुनिया ने उनकी प्रतिभा को शुरू-शुरू में नकारा,कभी उन पर हँसे,कभी पीठ पीछे उनकी बुराईयाँ की ....,पर उन्होंने अपनी राहें कभी नहीं बदली..।आज मुझे खुशी है कि सबने अपनी मंजिलें पा ली है।
पर मैंने अपने शौक को हमेशा दबायें रखा.इतना समय हो गया, कुछ भी नहीं लिख पाई । अब मुझे भी अपने शौक व रूचि को आगे बढा़ना है।अपने लेखन को आगे बढा़ने का प्रयास करना है,इससे ही मुझे सच्ची खुशी मिलेगी.
. जीवन में अपनी रूचि को सबके सामने लाना ही ,उनका लक्ष्य बन गया। उनके मन में उम्मीद की नई लहरें उठने लगी,और अपनी पुरानी डायरी खोलकर उसमें नये रंग भरना शुरू कर दिया:-
उम्मीद
" उम्मीद वक़्त का बहुत बड़ा सहारा है "
"है उम्मीद तो हर लहर किनारा है "।।
जूगुनू को टिमटिमाते हुए देखकर कई विचार उमड़ने लगे ।मन ही मन सोचा कि मैंने अपने जीवन को कितना सार्थक अर्थ दिया है।पहले रिया के पिताजी को कम उम्र में ही हृदय रोग हो गया,इस कारण,उनकी सेवा-सुश्रुषा में अपने लिए कभी समय ही नहीं निकाल पाई, फिर 4 बच्चों की परवरिश करना आसान थोड़ी है,कभी किसी की पढ़ाई का खर्चा आ जाता, किसी को नए कपड़ें चाहिए होते...तो किसी की नई-नई फरमाइशें ,सब को खुश रखना बहुत बडी़ जिम्मेदारी थी।सिलाई-कढाई में इतनी आमदनी भी नहीं होती कि सबकी फरमाइशे पूरी कर सकूँ,जरूरतें पूरी हो जाती,वहीं बहुत है।
खैर अब सब जिम्मेदारी पूरी हो चुकी है,सब अपनी राहें तय कर चुके है।
आज सुबह-सुबह ही वो अपने पति की तस्वीर के आगें खड़ी हो गई,और एकटक निहारते हुए सोचने लगी ,कि उनके पति हमेंशा कहा करते थे,"तुम बहुत अच्छी कविता, कहानी,और नजम लिखती हो,हम तो तुम्हारें लेखन के दीवाने है।"
उन बातों को सोचते हुए ही उनके होंठों पर मुस्कान आ गई।
आज कई दिनों बाद वो मुस्कुराई है.उन्हें लगा कि मेरे बच्चों ने अपनी रूचि,स्वभाव व आदतों को हमेशा सर्वोपरि रखा....और अपने सपने पूरे किए ,भले ही दुनिया ने उनकी प्रतिभा को शुरू-शुरू में नकारा,कभी उन पर हँसे,कभी पीठ पीछे उनकी बुराईयाँ की ....,पर उन्होंने अपनी राहें कभी नहीं बदली..।आज मुझे खुशी है कि सबने अपनी मंजिलें पा ली है।
पर मैंने अपने शौक को हमेशा दबायें रखा.इतना समय हो गया, कुछ भी नहीं लिख पाई । अब मुझे भी अपने शौक व रूचि को आगे बढा़ना है।अपने लेखन को आगे बढा़ने का प्रयास करना है,इससे ही मुझे सच्ची खुशी मिलेगी.
. जीवन में अपनी रूचि को सबके सामने लाना ही ,उनका लक्ष्य बन गया। उनके मन में उम्मीद की नई लहरें उठने लगी,और अपनी पुरानी डायरी खोलकर उसमें नये रंग भरना शुरू कर दिया:-
उम्मीद
" उम्मीद वक़्त का बहुत बड़ा सहारा है "
"है उम्मीद तो हर लहर किनारा है "।।
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