शनिवार, 14 जुलाई 2012

गोलियां या इंजेक्शन!




आजकल लोग वजन घटाने के लिए वेट लूज इन्जेक्शंस, कैप्सूल्स, ड्रग्स आदि का भी इस्तेमाल करने लगे हैं। ये दवाइयां अपना असर जल्दी दिखाती हैं, क्योंकि इन दवाओं के प्रयोग से शरीर में पानी की कमी हो जाती है और आंतों में वसा नहीं जमती यानी आपको उतनी ऊर्जा नहीं मिलती जो कि आमतौर पर किसी चीज को खाने से मिलती है। इसके कारण आपका वजन कम होने लगता है।
साइड इफेक्टः गौर करने वाली बात है कि वजन कम करने वाली जो दवाइयां विदेशों में प्रतिबंधित हैं, वही हमारे देश में खुलेआम बेची जा रही हैं। आपको शायद मालूम न हो कि मोटापा कम करने वाली दवाओं के सेवन से लीवर को नुकसान होता है और गुर्दों में पथरी की शिकायत होने की आशंका भी बढ़ जाती है। डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, अवसाद, तनाव, अनिद्रा, शारीरिक कमजोरी जैसी शिकायतें दिखने लगती हैं। इसलिए वजन कम करने के लिए दवाओं का प्रयोग सोच-विचार कर ही करें।
वर्कआउट या योगासन
स्कल्प जिम ऐंड एरोबिक्स की फिटनेस एक्सपर्ट डॉ. याश्मीन मनक कहती हैं, अगर आपका बीएमआई 30 से ज्यादा है, तो आपको नियमित एक्सरसाइज करनी चाहिए। इससे आप फैट को बर्न कर सकती हैं। मगर याद रखिए सिर्फ जिम ज्वाइन कर लेना ही काफी नहीं है, बल्कि एक-एक स्टेप को सही तरीके से करना भी जरूरी होता है। साथ ही डाइट का भी ध्यान रखें। रोजाना कम-से-कम 30 मिनट व्यायाम करें, तो आप वजन को धीरे-धीरे कम कर सकती हैं। वेट ट्रेनिंग, वॉटर ऐरोबिक्स और डांस अच्छी एक्सरसाइज हैं। ये न सिर्फ बॉडी को फिट रखते हैं, बल्कि कार्डियो वेस्कुलर सिस्टम के लिए भी आदर्श हैं। 
वजन को संतुलित रखने के लिए ऐरोबिक्स एक्सरसाइज, जैसे-जॉगिंग, साइकिलिंग, वेट प्रोग्राम और तैराकी परफेक्ट है। इनसे शारीरिक सक्रियता बढ़ती है। संभव हो, तो लंबी सैर पर जाएं। आउटडोर एक्सरसाइज में वॉलीबॉल, बैडमिंटन जैसा अपनी पसंद का गेम भी ट्राई कर सकती हैं। याद रखिए कोई भी शारीरिक गतिविधि आपके शरीर से न सिर्फ कैलोरी कम करती है, बल्कि आपके दिल व फेफड़ों की सेहत भी सुधारती है। इसलिए रोजाना ऐसे व्यायाम करें, जिससे आपको पसीना निकले। जैसे तेज चलना, जॉगिंग, रस्सी कूदना, तैरना, साइकिल चलाना आदि। अगर आपने पहले कभी एक्सरसाइज नहीं किया है, तो पहले हल्के-फुल्के एक्सरसाइज करना शुरू करें। शुरुआती दौर में थोड़ी देर एक्सरसाइज करें, फिर बाद में धीरे-धीरे समय बढ़ाती जाएं। एक्सरसाइज शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही मानसिक तौर पर भी व्यक्ति चुस्त और दुरुस्त रहता है। 
साइड इफेक्टः यह सच है कि लोगों की शारीरिक गतिविधियां पहले की अपेक्षा कम हो गई हैं। ऐसे में अगर एक्सरसाइज या अन्य कोई शारीरिक एक्टिविटी नहीं करेंगी, तो बीमारियों से खुद को बचा पाना मुश्किल ही होगा। रोजाना एक्सरसाइज कर पाना संभव न हो, तो हफ्ते में तीन दिन एक्सरसाइज जरूर करें। लेकिन अचानक हाई इम्पैक्ट एक्सरसाइज शुरू न करें। इससे ज्वाइंट्स पेन या अन्य तरह की इंजरी होने की आशंका रहती है। इसलिए सही पोश्चर के साथ एक्सरसाइज की शुरुआत करें। किसी ट्रेनर की देखरेख में वेट ट्रेनिंग लें। सीखने के बाद उसे आप घर में भी कर सकती हैं। कोई स्वास्थ्य समस्या है, तो वेट लॉस ट्रेनिंग लेने से पहले अपने डॉक्टर से अवश्य सलाह लें।
योग आंतरिक स्वास्थ को हेल्दी बनाता है
पॉवर योगा, सूर्य नमस्कार, प्राणायाम से भले ही वजन कम न हो, पर यदि आप इसे नियमितरूप से करती हैं, तो बेशक आप अंदर से गुड फील करेंगी। यदि आप नियमित सूर्य नमस्कार के सारे स्टेप कर रही हैं, तो इसका कुछ फर्क पड़ सकता है, मगर मोटापे से पूरी तरह निजात नहीं दिलाएगा। अगर आप कपालभाति, प्राणायाम आदि के साथ संतुलित डाइट फॉलो करती हैं, तो कुछ हद तक वजन को नियंत्रण में रख सकती हैं। कोई भी आसन करने से पहले योग्य शिक्षक से पूरी जानकारी अवश्य लें।

राइट डाइट, फिट ऐंड फाइन
डाइटिशियन डॉ. सोनिया नारंग कहती हैं, महिलाओं का सबसे ज्यादा जोर डाइटिंग पर ही होता है। बिना सोचें-समझे ही वे डाइटिंग शुरू कर देती हैं। यहां आपको बता दूं कि डाइटिंग करने के बजाय सही डाइट लेकर आप वजन कंट्रोल में रख सकती हैं। डाइटिंग से फैट्स कम तो होते हैं, पर मसल्स व टिश्यूज पर इसका बुरा असर पड़ता है। इससे शरीर में कमजोरी आती है। अगर आप एक्सरसाइज नहीं कर पा रही हैं, तो हेल्दी खाने के जरिए अपनी डाइट में से रोजाना कुछ कैलोरी कम कर वजन को घटा सकती हैं। जैसे शुरुआत के पहले सप्ताह में लिक्विड आहार की मात्रा बढ़ाएं। इसमें पानी और वेजिटेबल जूस शामिल कर सकती हैं। अगर लो ब्लड प्रेशर, किडनी आदि की समस्या नहीं हो, तो दिन में 10 से 12 बारह गिलास से ज्यादा पानी ले सकती हैं।

सोने से 3-4 घंटे पहले ही खाना लें। खाना खाकर तुरंत सोने से मोटापा बढ़ता है और रात का खाना बिलकुल ही लाइट रखें। खाने से फैट्स (तेल आदि) को पूरी तरह से न हटाएं, क्योंकि बॉडी में एनर्जी लेवल को बनाए रखने के लिए फैट भी जरूरी है। यह टिश्यू रिपेयर और विटामिन्स को बॉडी के सभी हिस्सों तक पहुंचाने के लिए जरूरी है। डाइट प्लान में कम फैट वाले आहार शामिल करें, जिसमें प्रोटीन व फाइबर की मात्रा ज्यादा हो। बटर या मायोनिज की जगह पुदीना और आंवले की चटनी लें। मौसमी सब्जियों जैसे टमाटर, आंवला, अदरक, पालक आदि का जूस लें। सफेद तिल, नट्स, अलसी आदि का भी सेवन करें, मगर इनकी मात्रा ज्यादा न रखें। नारियल पानी, नींबू पानी, सब्जियों का सूप, काबुली या काले चने का सूप, छाछ, रूहअफजा, बिना चीनी का आईस टी, नींबू-पोदीना पानी, मूंग की धुली दाल का सूप, दाल सूप, बथुए का रायता, शरीफा, सूजी का दलिया, वैजिटेबल दलिया दही के साथ लें। 
साइड इफेक्ट  डाइटिंग से वजन कम हो या न हो, लेकिन बाद में उसके साइड इफेक्ट्स जरूर भुगतने पड़ते हैं। कब्ज, गैस बनाना, हारमोनल प्रॉब्लम्स के साथ आंखों के नीचे काले घेरे, स्किन का ढीला होना, मेमोरी कम होना जैसी समस्याएं होती हैं। किसी भी तरह का एक्सरसाइज शुरू करने के पहले या भोजन में किसी प्रकार की तबदीली करने के पहले अपने डॉक्टर और डाइटिशियन से सलाह जरूर कर लें।

गुरुवार, 12 जुलाई 2012



 मित्रों,
   जिंदगी में कब क्या हो जाए किसी को नहीं पता होता। ऐसा ही दिन था सोमवार।  सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। दोपहर का वक्त था। यही 1 बजे का समय होगा। मेरे पति ऑफिस जा चुके थे। सोचा दोपहर का खाना खा लिया जाए और उसके बाद अपराजिता के नए अंक यानी जीवनशैली की तैयारी में जुटा जाए। मेटर आ चुका था और संपादन करना बाकी था। छिटपुट अनुवाद का काम बचा था।
हम खाना खाने बैठे ही थे कि  मैंने देखा बाबा यानी मेरे ससुर जी ठीक से खाना नहीं खा रहे हैं। मैंने पूछा क्या बात है? सब्जी क्यों नहीं खा रहे हैं? बोले मेरा खाना खाने  का मन नहीं कर रहा। लग रहा है गला घुट रहा है। मैं थोड़ा आराम करने के बाद खाना खा लूंगा। तुम लोग खाओ। वह जाकर लेट गए। वह हमेशा बिस्तर पर लेटते हैं पर उस दिन वह जमीन पर चटाई बिछाकर लेट गए। अचानक उनकी तबियत बिगडऩे लगी।
 मैंने कई डॉक्टरों को फोन लगाया पर किसी का फोन नहीं उठा। मुझे भी घबराहट होने लगी पर मैंने जाहिर नहीं की। अपने पति से अपने जीजाजी का नंबर मांगा। क्योंकि मेरे मोबाइल पर  नंबर सेव होने में दिक्कत आ रही थी। उन्होंने मुझे नंबर दिया हॉलचाल पूछा। मैंने बताया बाबा की तबियत ठीक नहीं है।  तभी मेरी दोस्त घर आई। मैंने उसे साथ लिया और अपने सोसायटी में डॉक्टर खोजने लगे। कोई भी डॉक्टर  उपलब्ध नहीं।  मैंने सोचा घर से बाहर तो निकलना ही होगा। अपनी बेटी को लाने की जिम्मेदारी किसी और को सौंपकर मैं दौड़ते हुए घर पहुंची। तेज दौडऩे ने सांस फूलने लगी। तो देखा गैस वाला खड़ा है । उसे देखकर गुस्सा आया  अब यह खुले पैसे मांगेगा और मुझको उलझाएगा। इसी बीच मेरे पति का फोन आया कि वह वापस  आ गए हैं और  स्थानीय अस्पताल  यथार्थ में हैं। हमें अंदेशा था शायद रक्तचाप बढ़ा हुआ  है। मेरे बाबा की तकलीफ बढ़ती जा रही थी। गैस वाला जिसे देख मैं झुंझला रही थी उसने ही रिक्शेवाले को भेजा। रिक्शा आया और मैं बाबा को लेकर अस्पताल के लिए निकल पड़ी। बाबा की परेशानी बढ़ती जा रही थी उनकी शर्ट पसीने से पूरी तरह भीग चुकी थी। वह कराह रहे थे और लगातार अपनी मां को याद कर रहे थे। बार बार हाथ जोड़ रहे थे। मैंने उनको पूरी कोशिश के साथ पकड़ लिया था। कितना दूर है बेटा बार-बार वह पूछते। रास्ते में अलग जाम। उनको भयंकर पीड़ा मे देखकर और कुछ न कर पाने की विवशता मुझे असहाय बना रही थी।  किसी तरह अस्पताल पहुंचे। उस दिन न जाने क्यों हमारे घर से  मात्र 1-2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यथार्थ बहुत दूर लगा। मेरे पति बाहर ही खड़े थे। डॉक्टर का बंदोबस्त उन्होंने कर रखा था। उनकी हालत देखकर डॉक्टर ने ईसीजी करवाया। रिपोर्ट देखकर  डॉक्टर नेतुरंत कैलाश या फोर्टिस जाने की सलाद दी और हिदायत दी जितना जल्दी हो सके इनको बड़े अस्पताल ले जाएं इनकी हालत बहुत नाजुक है।
 बाबा लगातार दर्द झेल रहे थे। मेरे पति से भी उनकी हालत देखी नहीं जा रही थी। बस हम जल्दी से जल्दी अस्पताल पहुंचना चाहते थे। कैलाश पहुंच गए। पति उनकी फाइल बनवावे लगे और मैं बाबा के साथ इमरजैंसी वार्ड में।  तुरंत ऑक्सीजन दी जाने लगी और उनका सीसीयू में ले जाया गया। प्राथमिक इलाज शुरू हो गया।  तभी डॉक्टर ने मुझे बुलाया और पूछा क्या इनके साथ हैं। कौन हैं आपके? मैंने बताया मेरे ससुर जी। कोई और भी है आपके साथ में मैंने कहा, हां मेरे पति आए हैं। क्या हुआ है इन्हें।
 डॉक्टरने कहा थोड़ी देर होती तो इनको बचा पाना संभव नहीं था। इनको हार्ट अटैक पड़ा है। क्या? मेरे मुंह से निकला। पर निर्विकार सा चेहरा बनाए डाक्टर ने कहा कि अभी और इसी वक्त इनका आपरेशन करना होगा। जिसमें 2.5 से लेकर 3 लाख का खर्च आएगा आप इतना पैसा 1 घंटे में जमा कर दीजिए।  तभी हम आपरेशन करेंगे। मेरे पति अवाक से डाक्टर का मुंह देखने लगे एक तरफ जिंदगी और मौत से जूझते पिता और दूसरी तरफ डॉक्टर का यह रवैया? इतनी बड़ी रकम वह कहां से लाएंगे।
 मेरे पास तो पैसा नहीं है? मेरे पति बोले।
 डॉक्टर ने उसी निर्विकार भाव से कहा तो पैसों की व्यवस्था तो आपको करनी पड़ेगी। आप अपने रिश्तेदारों से, दोस्तों से पैसा मांगें, फोन करें, इंतजाम कीजिए। 1 घंटे के अंदर। अच्छा आधा पैस अभी दे दीजिए। फिर 1 तो घंटे के बाद या ऐसा कीजिए 1 -1घंटे के बाद पैसा जमा करते जाइए जैसे जैसे पैसा आते जाए। सुबह तक हर हाल में पैसा जमा हो जाना चाहिए। चलिए मैं आपकी इतनी मदद कर सकती हूं कि आप लिखकर दे दीजिए कि मैं इस पैसे का  सुबह 8 बजे तक  जमा कर दूंगा। आप साइन कर दीजिए हम इलााज शुरू कर देते हैं।
 डॉक्टरों का यह रूप देखकर मन में अजीब सा होने लगा। पहली बार लगा कि इनको जान से ज्यादा पैसा चाहिए। अस्पताल नहीं यह दुकान है। सभी  डॉक्टरों का एक स्वर एक लय। जैसे इसकी तैयारी कराई गई हो। प्रशिक्षण दिया गया हो। खैर बाबा का ऑपरेशन हुआ। वह जिंदगी से युद्ध करते हुए विजयी हुए। और हम सब अपने बाबा को वापस पाकर बेहद खुश।  बाबा ने जिस तरह यद दर्द सहा मैं उसकी गवाह हूं। और यह दृश्य मैं जिंदगी में कभी भूल नहीं पाऊंगी। अपनी  मां के लिए दर्द हर उम्र में व्यक्ति महसूस करता है और मां से ज्यादा वह किसी के निकट नहीं होता इस सच्चाई से भी मैं रुबरु हुई। अपनी मां को याद करते हुए वह अपने दर्द को  बरर्दाश्त कर पाएं।  मेरे पति ने भी उसी दिन महसूस किया कि कोई शक्ति होती है जिसकी वजह से अनहोनी टल सकती है। यह आभासी शक्ति है।
 अपराजिता के कुछ अंक आप नहीं पढ़ पाएं आप सभी मित्रों और पाठकों को असुविधा हुई जिसका हमें खेद  है। शनिवार से फिर से आप पढ़ेंगे अपनी प्रिय पत्रिका अपराजिता।  विमर्श के अंक के साथ फिर उसी ताजगी के  साथ हम होंगे साथ- साथ। अनुजा





रविवार, 8 जुलाई 2012

जन समुदाय में राजनैतिक चेतना का स्वरूप / अशोक गुप्ता




जन समुदाय में राजनैतिक चेतना की ज़रूरत पर बात, करना बार बार जाने सुने और कहे गये को दोहराने जैसा ही होगा. जिस देश में लोकतंत्र हो, यानि, जिसमें राजनैतिक सत्ता की स्थापना जन समुदाय ही करता हो, उसमें नागरिकों का राजनैतिक चेतना से संपन्न होना तो अनिवार्य है. ऐसे में इसकी ज़रूरत पर बात करना स्वतः सिद्ध को सिद्ध करने जैसा निरर्थक है. लेकिन छाप तिलक से लैस होना, मंदिर मस्जिद गुरद्वारे या चर्च जाना भर सही अर्थ में ईश्वर के प्रति आस्थावान होना नहीं कहा जा सकता. हम जानते ही हैं कि आदि काल से अब तक यह प्रसंग विचार के केंद्र में है कि आस्तिक होना, ईश्वर के सानिध्य में होना क्या है, और इसके विवेक की फिर फिर व्याख्या का क्रम जारी है. ऐसे में इस प्रश्न का भी फिर फिर संधान ज़रूरी है कि जन समुदाय में सार्थक राजनैतिक चेतना होने के लक्षण क्या हैं और उस चेतना का स्वरूप क्या होना चाहिए.
लोकतंत्र में समूचे जन समुदाय की तीन परतें हैं. एक तो वह, जो राजनैतिक व्यवस्था की परिधि में भीतर उतर कर भागीदारी करती है. विभिन्न राजनैतिक दलों का समुदाय इसी श्रेणी में आता है. एक परत वह है जिसे शासकीय नौकरशाह कहा जाता है. यह वर्ग सैद्धांतिक रूप से संविधान द्वारा संचालित होता है और व्यावहारिक रूप से इसकी लगाम राजनीतिक व्यवस्था की परिधि के भीतर होती है. ऐसे में यह स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि यह दोनों परतें कमोबेश सत्ता नियंत्रित हैं. इस वर्ग में राजनैतिक चेतना का होना वैकल्पिक नहीं है बल्कि एक अनिवार्यता है और इस की राजनैतिक चेतना सत्ता पर काबिज होने या बने रहने के मंसूबे से गढ़ी जाती है. इसके लिये चेतना का अर्थ जन हित हो यह अनिवार्य नहीं है. वस्तुतः है भी नहीं, यह हम इन साठ वर्षों में देख चुके हैं.  
जन समुदाय की तीसरी पर्त में जनहैं. जिनका हित देखना ,जिनके नागरिक अधिकारों की रक्षा करना  यह दायित्व उपरोक्त दोनों घटकों के हाथ में है. एक घटक सत्ता है दूसरा प्रशासन. इस, जन कहे जाने वाले घटक के हाथ में मतपत्रके अलावा और कुछ नहीं है. वह जनादेश देता है, उसके परिणाम स्वरूप अपनी उमीद बांधता है, और रोता झींकता और किंचित भविष्य के सपने देखता टाइम पास करता जाता है. ऐसे में, इस वर्ग की राजनैतिक चेतना का मतलब क्या है... ?
मतलब है. पहला तो यह कि वह वर्ग अपने हित को अपनी दृष्टि से, अपने विवेक से देख समझ सके. उसे अपने संवैधानिक और प्रशासन प्रदत्त अधिकारों की जानकारी हो. और उसमें यह समझ हो कि राजनैतिक परिधि के भीतर विभिन्न राजनैतिक दलों के प्रत्याशियों की रणनीति क्या है. उसे यह भान हो कि इनकी घोषित और अन्तर्निहित चालों का समीकरण क्या है, और यह पता हो कि इन दर्जनों राजनैतिक दलों के भीतर जुड़ाव और विखंडन की क्या गहमा गहमी चल रही हो. यह सब पता चलना इस वर्ग के लिये आसान नहीं है, लेकिन मीडिया इसे आसान बनाता है. प्रिंट मीडिया यानि मुख्यतः अखबार और इलेक्ट्रौनिक मीडिया यानि मुख्यतः टेलीवीज़न इस जानकारी के वाहक हैं. यह, जन कहे जाने वाला वर्ग स्वतंत्र है कि वह मीडिया के विभिन्न वाहकों की चारित्रिकता को परखे और उस पर विवेक पूर्वक विश्वास-अविश्वास करे. यह सारा क्रिया कलाप जन से निभे और उसे अपनी ताकत के इस्तेमाल के एकमात्र दिन यानि चुनाव के दिन तक अपनी भूमिका के प्रति स्पष्ट दिखे, यही उसकी राजनैतिक चेतना का अर्थ है.
अब देखिये, क्या जन के अतिरिक्त, उपरोक्त बताये गये दोनो घटक, इस बात में अपना हित समझेंगे कि नागरिकों की मानसिकता में स्वतंत्र विवेक और चयन की समझ का विकास हो..? कतई नहीं. सारे राजनैतिक दलों का तो यही मंसूबा होगा कि जन मानस के सोच के ऊपर उनके तिलस्म का जादू रहे, जनता अपने अनुभवों और अपनी स्मृतियों के संकेत से बाहर आकर, बस उनके मसूबों का मोहरा बन जाए. ऐसा करनें में, बिना जन समुदाय के विवेक को कुंद  किये, वह  कैसे सफल हो सकते है ? लेकिन वह सफल हो तो रहे हैं.
कैसे...?
ऐसे, कि वह जन समुदाय की राजनैतिक चेतना का स्वरूप खुद तय कर रहे हैं. उन्होंने जन समुदाय के बीच यह छद्म उपजा दिया है कि राजनैतिक चेतना का अर्थ है किसी न किसी राजनैतिक दल का पक्षधर हो जाना. इस तरीके से जन समूह का सोच, राजनैतिक लोगों की रचित परिधि की यथास्थिति बाहर जाएगा ही नहीं. जन समुदाय का स्वतंत्र विवेक और विश्लेषण तंत्र काम करना बंद कर देगा और जन समुदाय को इस बात का भ्रामक गर्व भी रहेगा कि वह राजनैतिक चेतना से संपन्न नागरिक है. उस दशा में जन की सक्रियता अपने वांछित राजनैतिक दल की प्रस्तुत अच्छाइयों को खूब याद रक्खेगी और उसका गायन करेगी, लेकिन उस दल की काली करतूतों पर पर्दा डालने में पीछे नहीं रहेगी  . इस तरह सत्ता, राजनैतिक दलों की ही तरह जन समुदाय को भी बांटने में सफल रहेगी.
यहाँ संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि जब तक समूचा जन समुदाय देश के बंटवारे की चूक को, 1975   के आपातकाल को, 1984 के प्रायोजित दंगों को, गुजरात के मोदी रचित नर संहार को, बावरी मस्जिद गिराए जाने को, सिंगूर नंदीग्राम कांड को और किसी भी दौर में हुए भ्रष्टाचार को एक नज़र से देख कर इनके प्रति अपना विरोध जाहिर करना नहीं सीखेगी, तब तक उसकी यह तथाकथित राजनैतिक चेतना, निरर्थक ही होगी. अभी तो नरेंद्र मोदी के हत्या कांड को उचित ठहराने वाला जन समुदाय भी है, और चौरासी के प्रायोजित दंगों को भी बस यही माना जाता रहेगा कि जब कोई बड़ा पेड़ उखाड़ता है तो धरती हिलती ही है... और तो और, एक दल के अत्याचार के खुलासे से दूसरे दल की पक्षधर जनता खुश ही होती है कि चलो उनके दल के बचाव के लिये कोई मुद्दा हाथ आया. लेकिन यह तो राजनैतिक चेतना का प्रतिफल नहीं हुआ.
तो, जन समुदाय की राजनैतिक चेतना केवल तब अपनी सही भूमिका पाएगी जब वह अपने हितों और अपने अधिकारों के पक्ष में जन विवेक से पैदा होगी. उस से राजनैतिक दलों की करतूतों पर भी अंकुश लगेगा और नौकरशाही को भी जन पक्षधर होने में मदद मिलेगी.
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                                            Mobile 09871187875 / email : ashok267@gmail.com                                                   

सदन में शहीदे आजम- असगर वजाहत



 हमारे लोकतंत्र पर चारों तरफ से हमले हो रहे हैं। लेकिन हमारे प्रतिनिधि इन हमलों को नाकाम कर देते हैं। हो सकता है कि हमारे प्रतिनिधि अपनी सज्जनता और भोलेपन के कारण पहले हमलों को न समझ पाते हों लेकिन जब समझ जाते हैं तो जान पर खेल कर लोकतंत्र को बचा लेते हैं। दु:ख और चिंता की बात यह है कि उनके जान पर खेलकर लोकतंत्र बचाने के प्रयासों की सराहना उनको खुद ही करनी पड़ती है। जबकियह काम जनता का है लेकिन जनता आजकल क्रिकेट मैच, भोंडे टेलीविजन कार्यक्रम, शेयर मार्केट का उतार चढ़ाव, सोने का बाजार, प्रापर्टी की कीमती हेरफेर, बिना किए करोड़पति हो जाने के सपने ही देखती है। खैर हमारे जन प्रतिनिधि किसी बात का बुरा नहीं मानते। वे मानते हैं कि जनता को न बदला जा सकता है न वे किसी दूसरे देश में जाकर जनप्रतिनिधि बन सकते हैं।
 हमारे लोकतंत्र पर ताजा हमला एक बदबू ने कर दिया है। हमारे कर्मठ, प्रतिभावान, समर्पित प्रतिनिधि चाहते हैं कि सदन की कार्यवाही साल में कम से कम दो सौ दिन तो चले पर व्यवधान डालने वाले इस कार्यवाही को समेट कर सौ से भी कम आकड़ें पर खड़ा कर देते हैं। इन दिनों सदन की कार्यवाही बहुत सुंदरता से चल रही थी कि अचानक सदन पर बदबू ने हमला कर दिया। यदि हमला करने वाला कोई ओर होता तो हमारे प्रतिनिधि सीना तानकर खड़े हो जाते। चूंकि हमलावर अदृश्य था। इसीलिए हमारे प्रतिनिधि विवश हो गए। पर यह बहस  चलने लगी कि यह दुर्गंध कैसी है। कुछ ने कहा कि यह गैस की बदबू है। इस पर  पूछा गया कि किस कंपनी की गैस की बदबू है। थोड़ा  खुलकर कंपनी का नाम बताया जाए। बदबू से कंपनी का नाम बता देना सरल था लेकिन सदन खामोश रहा। बहस यह होने लगी कि दुर्गंध कहां से आ रही है। एक सदस्य ने कहा कि वह जब से जनप्रतिनिधि चुनकर आया है तब से उसे यह दुर्गंध आ रही है। इस पर पूछा गया कि इससे पहले दुर्गंध की शिकायत क्यों नहीं की ? प्रतिनिधि ने बताया कि वह तो दो साल पहले ही चुनकर आया है। उसे लगा था कि शायद जिसे वह दुर्गंध समझ रहा है वह दुर्गंध नहीं सुगंध है जिसे सदन में बड़े प्रयासों से फैलाया गया है। नए सदस्य के इस वक्तव्य पर कुछ दूसरे सदस्य  नाराज हो गए और उन्होंने नए सदस्य पर जातिवादी होने का आरोप लगाया। अब बहस जातीय आधार पर बंट गई और जाति- विशेष की तरफ इशारे होने लगे। बहस को लाइन में लाते हुए एक अनुभवी सदस्य ने कहा कि पिछले पच्चीस साल से वह यह दुर्गंध महसूस कर रहा है। बात पीछे खिसकते खिसकते यहां तक पहुंची कि अंग्रेज जब हमारे देस को आजाद करके गए थे तब से यह दुर्गंध सदन में है। यह अंग्रेजों द्रारा छोड़ी गई दुर्गंध है। इस मत का पूरे सदन ने समर्थन किया और कहा गया कि विदेश मंत्रालय इस पर सख्त कार्यवाही करे और ब्रितानी सरकार से कड़े शब्दों में पूछा जाए कि यह मामला क्या है। कुछ सदस्य बदबू के ब्रितानी षड्यंत्र होने वाले बिंदु से इतना उत्तेजित हो गए कि उन्होंने कहा कि अंग्रेज तो जो भी छोड़ गए सब से बदबू  आती है। रेल की पटरियां गंधाती है, गेट वे ऑफ इंडिया से लेकर इंडिया गेट तक बदबू ही बदबू है। नौकर-शाही से दुर्गंध आती है। आई.पी. सी से सड़ी गंद आती है। शिक्षा- व्यवस्था की हालत तो गंदे नाले जैसी है। सदन के जिम्मेदार सदस्यों ने जब बहस को यह मोड़ लेता देखा तो बोले यह सब छोडि़ए, यहां इस सदन में इस गंध के लिए जो जिम्मेदार है उससे जवाब तलब किया जाना चाहिए। इस पर मेजे बजने लगीं।
 सदन के कुछ प्रभावशाली यह बहस होने से पहले सदन की कैण्टीन में सस्ते दरों मे मिलने वाली बिरयानी खाने चले गए थे। वे वापस आए तो  उन्होंने यह बहस होते देखी। वे बहुत नाराज हो गए। एक सीनियर सदस्य ने कहा- आप लोगों को शर्म नहीं आती?
 आप इसे बदबू कह रहे हैं?
फिर यह क्या है?    
 यह तो लोकतंत्र की सुगंध है।
 ये कैसे?
 अरे आप को शर्म नहीं आ रही? यह तो डूब मरने की जगह है। आपको मालूम है कि हमने लोकतंत्र कितने बलिदान देकर हासिल किया है? कितने शहीदों का खून बहा है। कितने घर उजड़े हैं। कितनों ने काला पानी काटा है। कितने फांसी के फंदे पर झूले हैं। कितनी बहनों का सुहाग उजड़ा है। कितनी माओं की गोदें सूनी हुई हैं। तब हमें लोकतंत्र मिला है।  आप लोगों की इन ओछी हरकतों से आज स्वर्ग में राष्ट्र्पिता पर क्या गुजर रही होगा। सुभाषचंद्र बोस कितना दु:खी होंगे और शहीदे आजम का कलेजा टुकड़े- टुकड़े हो गया होगा . . . . अगर उनके सामने .. .. ..अगर उनके सामने
 अचानक सभी सदस्यों की आंखें एक तरफ को उठ गईं। धीरे धीरे  नपे तुले कदमों से एक नवयुवक सदन में दाखिल हो  रहा था। उसका तेजवान लंबोत्तर चेहरा था। बड़ी बड़ी संवेदना और विचार में डूबी आंखों से वह सबको देख रहा था। उसने फ्लैट हैट लगाई हुई थी। चेहरे पर शानदार मूछें फब रही थी। नौजवान धीरे धीरे आगे बढ़ता रहा। उसने अपने हाथ में कुछ लिया हुआ था। नौजवान के रोबदाब के आगे सबकी घिग्गी बंध गयी थी। बड़ी हिम्मत करके एक सीनियर सदस्य ने पूछा- आप कौन हैं?
  नौजवान ने जोर का ठहाका लगाया। उसकी आवाज देर तक सदन में गूंजती रही। कुछ क्षण बाद वह बोला- क्य यह बताने की जरूरत है कि मैं कौन हूं।
 एक सदस्य ने पूछा- चलिए यही बता दीजिए कि आप किस चुनाव क्षेत्र से चुनाव जीतकर आए हैं.?
 अब की नौजवान ने फिर जोर का ठहाका लगाय। लेकिन यह डरावना ठहाक था। चुने हुए प्रतिनिधि कांप गए। सदन की दीवारें  थर्रा गईं। नौजवान ने आग उगलती आंखों से आंखें मिलाने की हिम्मत किसी में न थी। कुछ ठहरकर एक सदस्य ने पूछा- आप का धर्म? आपकी जाति। नौजवान ने नफरत से का- मेरा कोई धर्म नहीं है। मेरी कोई जाति नहीं है।
 तीसरे प्रतिनिधि ने कहा- तब तो श्रीमान जी आज की तारीख में आपको किसी चुनाव क्षेत्र से हजार वोट भी न मिलेंगे।
 मैं यहां  वोट लेने नहीं आया हूं। वह आत्मविश्वास के साथ बोला।
 फिर श्रीमान जी यह तो लोकतंत्र का मंदिर है .. . यहां ..?
 एक सीनियर सदस्य बात काटकर बोला- मैं इन्हें पहचान गया हूं यह शहीदेआजम हैं।
 अरे बाप रे बाप। पूरे सदन में यह वाक्य गूंज गया। सभी सदस्य हैरान परेशान हो गए।
 ये आपके हाथ में क्या है शहीदेआजम?
 ये बम है।
 बम?
 हां बम?
 इसे यहां क्यों लाए हैं?
 इसे यहां फेंकने लाया हूं।
 यहां फेंकने?
क्यों शहीदेआजम?
 यहां बदबू आती हैं ना?
 हां आती है।
 बदबू का यही इलाज है।
 लेकिन ये बम
 सदन एक जोरदार धमाके की आवाज से थर्रा गया। चारों तरफ धुआं ही धुआं हो गया। जन प्रतिनिधि मेजों से नीचे छिप गए। जब धुआं छटा तो उनमें से कुछ ने मेज के नीचे से सिर निकाले।
 एक बोला क्या चले गए शहीदेआजम?
 तुम देखो।
 नहीं तुम देखो।
 चले तो गए हैं पर जाने कब चले आएं।
 हां यार ये तो है।
 तो मेज के नीचे ही रहें।
 सदन की कार्यवाही?
 चलती ही रहेगी क्योंकि सभी मेजों के नीचे हैं।
www.aparajita.org

शनिवार, 7 जुलाई 2012

यात्रा पर कैसे करें बच्चों को कंट्रोल- वागीशा कंटेट कंपनी



 यात्रा के दौरान बच्चे हमेशा कुछ रोमांचक करने के मूड में होते हैं और इससे हमेशा डर बना रहता है कि कहीं उनको चोट न लग जाएं । यह ध्यान रखना माता-पिता के लिए बहुत चुनोतीपूर्ण होता है। हर माता -पिता अपने बच्चों के साथ यात्रा करने में इसीलिए डरते हैं। पर यदि वह  यात्रा के दौरान कुछ गेम्स या खिलौने रख लें तो आपकी यह सिरदर्दी कुछ हद तक कम हो सकती है। आजकल कई तरह के गेम्स और खिलौने हैं जो बच्चों के मानसिक विकास में भी कारगर सिद्ध हो रहे हैं। ट्रेवल किड्स के नाम से बाजार में उपलब्ध ये खिलौने विशेषज्ञों द्रारा बनाए जाते हैं।  इस तरह के खिलौनों को बनाने के लिए  खुद बच्चों और उनके माता-पिता और शिक्षा विद् की भी राय ली जाती है।  यात्रा का समय एक ऐसा समय है जब आपके पास कोई काम नहीं होता है। आप सारा समय अपने परिवार के साथ बातचीत में लगा देते हैं।
 यह खिलौने कई तरह के होते हैं जिसमें इलेक्ट्रानिक और मैजिक सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं।  यह खिलौने बच्चों के भीतर की कार्यक्षमता को बढ़ाते हैं उनके भीतर के फाइन मोटर स्किल को विकसित करते हैं। उनके भीतर कई तरह की जिझासा जगाते हैं। कल्पनाशक्ति का विस्तार करते हैं, सीखने की प्रवृत्ति को विकसित करते हैं। इससे आपके ग्रहण करने की क्षमता का विकास होता है। छोटे छोटे गुत्थी सुलझाने वाले खिलौने दिमाग को तेज करते हैं।  मनोरंजन के ये नए खिलौने बच्चों के विकास  में सहायक हो सकते हैं । ट्रेवल किडी नाम से बिकने वाले यह खिलाने आप किसी भी किड्स स्टोर से खरीद सकते हैं। फन टाइम में यह खिलौने फन जोन का काम करेंगे।  चाहें तो आप भी शामिल हो सकते हैं।  
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