मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

एक कमरे के कई नाम




पर्सनल स्पेस के लिए विकल्प की तलाश जारी है। बाजार में आज ऐसे कई विकल्प मौजूद हैं जो आपके घर की सुंदरता का ख्याल रखते हुए तैयार किए जा रहे हैं और इसमें इंटीरियर डिजाइनर की भूमिका महत्वपूर्ण है। रूम पार्टिशन के लिए रूम स्क्रीन या फिर रुम डिवाइडर जैसे शब्द भी लोकप्रिय हैं।
 डा. अनुजा भट्ट
एक बट्टा दो या दो बट्टे चार छोटी छोटी बातों से बंट गया संसार। गाने की यह लाइन नव दंपत्ति के लिए फिट बैठती हैं जहां छोटी छोटी बातों से काम बन और बिगड़ सकता है। यह छोटी छोटी बातें जहां घर गृहस्थी को जमाने के लिए जरूरी हैं वहीं घर की साजसज्जा के जरिए आपकी सूझबूझ का भी परिचय देती हैं। गाने की यह लाइन आज के होम इंटीरियर पर फिट बैठती है। खासकर तब पर्सनल स्पेस महत्व रखने लगा है। इस पर्सनल स्पेस की घर से लेकर आफिस तक में मांग उठने लगी हैं ताकि हर कोई अपना काम स्वतंत्रता के साथ कर सके। घर में  पति-पत्नी से लेकर बच्चों तक को पर्सनल स्पेस की जरूरत होती है और आफिस में कर्मचारियों को। इसके अलावा क्रिएटिव फील्ड से जुड़े लोगों को भी ऐसे ही स्पेस की दरकार होती है।
महानगरों में फ्लैट संस्कृति हैं जिसमें 1 कमरे से लेकर 3 कमरों तक के घर होते हैं। अब यह फ्लैट संस्कृति छोटे शहरों में भी बड़ी तेजी के साथ देखी जा रही हैं। ऐसी स्थिति में पर्सनल स्पेस के लिए विकल्प की तलाश हो रही है। बाजार में आज ऐसे कई विकल्प मौजूद हैं जो आपके घर की सुंदरता का ख्याल रखते हुए तैयार किए जा रहे हैं और इसमें इंटीरियर डिजाइनर की भूमिका महत्वपूर्ण है। रूम पार्टिशन के लिए अलग अलग नाम का प्रयोग होता है जैसे रूम पार्टिशन, रूम स्क्रीन या फिर रुम डिवाइडर।
 नए चलन में रूम डिवाइडर के रूप में ग्लास का प्रयोग बढ़ रहा है। आर्ट एंड ग्लास के लोकेश पाठक कहते हैं कि आज ग्लास कई तरह के हैं। ग्लास में प्रिंटिंग से लेकर पेंटिंग तक बाजार में कई तरह से दिखाई दे रही है। अब यह सिर्फ घर की दीवारों में ही नहीं सजी है बल्कि घर के दरवाजे और खिडक़ी से लेकर रूम डिवाइडर के रूप में भी खरीदी जा रही है। इस बात को कहने से गुरेज नहीं कि कला का विस्तार हुआ है और उसको पेष करने के तरीके भी बदल रहे हैं।
 आज ग्लास कई रूप और आकार में हैं । कहीं ग्लास में लाइटिंग इफेक्ट का प्रयोग किया गया है तो कहीं पर एक्वेरियम का प्रयोग भी रूम डिवाइडर के रूप में हो रहा है। ग्लास पेंटिंग का प्रयोग भी यहां देखा जा रहा है जिसमें एयर ब्रशिंग आर्ट, स्ट्रेक ग्लास आर्ट, क्लिन फार्म आर्ट, डीप इचिंग और सर्फेस इचिंग का प्रयोग देखने लायक है।  वाल हैंगिग के जरिए भी कमरे को डिवाइड किया जा सकता है यह प्रयोग ड्राइंग  रूम और डाइनिंग रूम में किया जा सकता है।  वाल हैंगिंग के लिए लकड़ी से लेकर ग्लास, प्लास्टिक, मैटल और क्रिस्टल का प्रयोग किया जा सकता है। डिजाइन में ज्यामैट्रिकल शेप की मांग ज्यादा है। जिसमें ट्राइएंगल, रेक्टेंगल, ओवल, स्ववायर  और सर्किल षेप ज्यादा दिखाई दे रहे हैं। लाइट के साथ इसका इफेक्ट जादुई  प्रभाव छोड़ता है। स्टेंज और पैनल का भी प्रयोग किया जा रहा है। यह लकड़ी और मार्बल से बनाए जा रहे हैं।  इनको फोल्ड करके भी रखा जा सकता है।  इसमें अधिक्तर मुगल आर्ट का प्रयोग किया जाता है जिसमें महीन नक्काशी देखते ही बनती है। हाथी, घोडे, राजा की सवारी, पषु पक्षी इस तरह की कला की खासियत हैं।
 फेब्रिक का प्रयोग भी कमरों की सज्जा के लिए लिए किया जाता है। पर्दे का प्रयोग यू ंतो बहुत पुराना है पर अब नए स्टाइल के साथ दिखाई दे रहा है। यहां पर्दे लकड़ी के फ्रेम में लगाए जा रहे हैं और इन पर्दों पर खूबसूरत पेंिटंग की गई हैं। यहां पेंटिंग के कई स्टाइल हैं जो देश विदेश की कला को सामने ला रहे हैं। एक तरह से आधुनिक और परंपरागत कला का इसे मेल कहा जा सकता है। यह पर्दे फेब्रिक के ही नहीं हैं। नए चलन में लैदर से बने पर्दों की डिमांड ज्यादा है। इस समय होम फर्निशिंग के लिए लैदर की डिमांड अंन्तरराष्ट्रीय बाजार में ज्यादा है। होम डिवाइडर के रूप में यह खासे लोकप्रिय हैं।लैदर एल.टी.एच.आर कंपनी की निवेदिता गुप्ता कहती हैं कि लैदर का प्रयोग गारमेंट से लेकर फर्नीचर हर जगह हो रहा है। ् आजकल लैदर में भी आपको कई तरह के रंग मिल जाएंगे। लैदर से बने पर्दे और कारपेट की मांग इस समय सबसे ज्यादा है। डेकोरेशन पीस के रूप में भी यह सराहे जा रहे हैं।
 फाउंटेन का प्रयोग भी डिवाइडर के रूप में हो रहा है लाइटिंग के साथ यह बहुत सुंदर लगता है।  मार्बल से बनी आकृतियां इसके लिए बेहतर विकल्प है। मार्बल के बने शिव लिंग का सा आभास देती आकृतियां कुछ क्षण ठहरने को विवश करती हैं।
 फर्नीचर का प्रयोग भी डिवाइडर के रूप में हो रहा है। पहिए लगी लंबी बुक सेल्फ से भी यह काम किया जा सकता है और जब फिर से बड़े कमरे की जरूरत हो तो इसे हटाया जा सकता है। लंबी सी दिखने वाली समान ऊंचाई की यह बुक सेल्फ कई भागों में डिवाइड हो सकती है और इसे कहीं भी रखा जा सकता है। डिवाइडर का प्रयोग कमरे में चेंज लुक के लिए भी किया जा रहा है। ताकि एक ही घर हमें बार बार नया लगे।  बांस से बने पर्दे का प्रयोग जहां खिड़कियों में किया जा रहा है वहीं इसका प्रयोग रूम डिवाइडर के रूप में भी हो रहा है। पर यहां बास से बनी जालियां है और डिजाइन में गोल गोल लच्छों का प्रयोग है। बहुत सारे मैटेरियर, कलर, स्टाइल और साइज में इसे बनाया जा सकता है। और इनको लगाने का तरीका भी अलग अलग हो सकता है। कहीं यह घर की छत से जुड़े होते हैं जब वाल हैंगिग के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। कहीं यह आधी ऊँचाई तक होते हैं। लकड़ी, फेब्रिक, बांस, राट्स, लेदर, ग्लास, मेटल, विनायल क्रिस्टल, बीड््स और प्लास्टिक से बने यह रूम डिवाइडर समय की जरूरत को बहुत खूबसूरती के साथ पेश कर रहे हैं। आज घर हो या आफिस हर जगह कला के रंग सजे हैं। कला के कद्रदान बढ़ते जा रहे हैं और इसी के साथ उसको पेश करने का तरीका भी बदल रहा है। कला के कद्रदान अब एक खास वर्ग तक सीमित नहीं हैं। अब हर घर कलात्मक रंग में रंगा दिखना चाहता है। बाजार में आज ऐसी कई  कंपनियां आ गई हैं  जो हर वर्ग का ख्याल रखते हुए अपने उत्पाद बाजार में पेश कर रही हैं।


बुधवार, 21 दिसंबर 2011



 नया वर्ष है, नव उल्लास है, नव गति है, नव जीवन है।
 ऐसे सुखद क्षणों में अभिनंदन है, सतत नमन है।
 रंगों की फुहार है, रंग सतरंगी हैं ।
  ऐसे में एक खड़ी नवेली लडक़ी सी, कब तक रोकेगी खुद को?
 जल्दी ही बस आने को है।
 अपराजिता
 आने को है ।
 सपने है उसके अपने
 उम्मीदों के पंख लिए वह बस उडऩे वाली है।
 पास खड़ी है सुनने को  एक प्यारा बोल,
 झिडक़ी पर भी मुस्कान लिए, वह फिर बैठगी सपनों की उड़ान लिए।
 इस उम्मीद में फिर आएगी तो चुग्गा  ही वह खाएगी ।
और आपकी बन जाएगी अपराजिता।
 तो मित्रों,
 नई नवेली लडक़ी सी अपराजिता आने को है
 प्यारा से एक बोल बोलकर अपना थोड़ा प्यार उड़ेल दो।
डां अनुजा भट्ट, सीईओ

वागीशा कंटेंट प्रोवाइडर कंपनी 42 डी, एक्सप्रेस व्यू अपार्टमेंट
सुपर एमआईजी
 सेक्टर 93 नोएडा
0120-9910032353
0120-2426678

सभी मित्रों को यह बताते हुए मुझे खुशी हो रही है कि वागीशा कंटेंट प्रोवाइजर कंपनी बहुत जल्दी ही अपराजिता के रूप में एक नई  महिला पत्रिका को आपके लिए पेश करने जा रही है।  मुझे उम्मीद है कि यह महिलाओं  के संपूर्ण आयामों का प्रतिनिधित्व करेगी।
इस पत्रिका में महिला सरोकारों से लेकर महिला अधिकारों की तो बात होगी ही साथ ही महिला स्वास्थ्य पर भी चर्चा की जाएगी। महिलाओं के लिए करियर पर भी विशेष जानकारी होगी।   बच्चों के विकास, सेक्स शिक्षा, फैशन, मार्केट ट्रेंड, इंटीरियर, कहानी, कविता, यात्रा- वृतांत जैसी   जैसी कई  रोचक सामग्री आप पढ़ सकेंगे।
 पत्रिका के लिए लेख आमंत्रित हैं
डां अनुजा भट्ट, सीईओ

वागीशा कंटेंट प्रोवाइडर कंपनी 42 डी, एक्सप्रेस व्यू अपार्टमेंट
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मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

नए जमाने के नए कालीन






 डॉ. अनुजा भट्ट
भारत में कालीन बनने की परंपरा मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में शुरू हो गई थी।  ये कालीन कई तरह से बनाए जाते थे।  इसकी एक झलक मदीना में पैगंबर हजऱत मोहम्मद के मक़बरे को सजाने के लिए बुने गए कालीन से मिलती है। गुजरात के बड़ौदा में बने इस कालीन की ख़ासियत यह है कि इसे लगभग बीस लाख मोतियों, हीरा, नीलम , माणिक्य
पन्ना जैसे क़ीमती पत्थरों से सजाया गया है। बसरा मोती नाम से जाने जाने वाले छोटे प्राकृतिक मोतियों को ईरान की खाड़ी से निकाला गया था। इसीलिए इसे पर्ल कार्पेट का नाम दिया गया ।  इस कालीन को सजाने के लिए सोने का भी प्रयोग किया गया है। 1860 के दशक में तैयार किया गया यह कालीन लाल और नीले रंगों से तैयार किया गया है जिसमें घुमावदार बेलबूटे तैयार किए गए हैं। इसे वड़ोदरा के महाराजा ने मदीना में पैगम्बर मोहम्मद के मक़बरे को सजाने के लिए तैयार करवाया था लेकिन कहा जाता है कि महाराजा की मृत्यु हो जाने के कारण यह कभी मदीना पहुँच ही नहीं सका और भारत में ही रह गया।  यह कालीन हमारी सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है।
भदोही के कालीन को मिला पेटेंट
उत्तर प्रदेश में भदोही के कालीन को पेटेंट मिल गया है। उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के विश्व प्रसिद्ध कालीन को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) के तहत पंजीकृत होने के बाद पेटेंट मिल गया है।  भदोही की कालीन का इतिहास 250 साल पुराना है। 18वीं सदी में भदोही जिले के माधोसिंह इलाके में आए ईरान के कालीन बुनकरों ने स्थानीय लोगों को कालीन बुनाई का फन सिखाया था।  मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में कालीन बुनाई की कला का भारत में आगमन हुआ था।
कहां कहां बनते हैं कालीन
भारत में जम्मू-कश्मीर का नाम कालीन निर्माण में सबसे ऊपर है। इसके साथ राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात में भी उम्दा किस्म व डिजाइन के कालीन तैयार हो रहे हैं।  कालीन की कई किस्में हैं। हाथ से बने ऊनी कालीन, सिल्क से बने कालीन, सिंथेटिक कालीन, हाथ से बनी ऊनी दरियां- इन सबकी बाजार में भारी मांग है।  इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ कारपेट टेक्नोलॉजी ने हाल में एक डिजाइन स्टूडियो का गठन किया है, जिसकी मदद से कारपेट के बुनने, उसके कलर कंबीनेशन के लिए सीएडी सिस्टम भी लगाए गए हैं, ताकि उच्च कोटि का कारपेट तैयार किया जा सके। प्रमुख संस्थान हैं इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ कारपेट टेक्नोलॉजी, चौरी रोड, भदोही, उत्तर प्रदेश,इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ कारपेट  टेक्नोलॉजी,जिमखाना क्लब, पानीपत, हरियाणा,इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ कारपेट टेक्नोलॉजी, जम्मू एंड कश्मीर,श्री जेजे इंस्टीटय़ूट ऑफ अप्लाइड आर्ट, मुंबई, मुंबई विश्वविद्यालय,कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, उत्तर प्रदेश,जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जामिया नगर, नई दिल्ली।
 
  कालीन आपके घर के लिए
बाजार में आजकल डिजाइनर कालीन की धूम है। परंपरागत वूलन  कालीन के बजाय नए-नए डिजाइनों के सिल्क, सिंथेटिक व मखमली कालीन बाजार में छाए हुए हैं।
सिल्क कालीन वजन में हल्के हैं, और इनके डिजाइन में खास वेराइटी भी है। इन दिनों इनमें जियोमेट्रिकल डिजाइन की सबसे ज्यादा डिमांड है।  इन्हें बेड की साइड में या सोफे के सेंटर में आमतौर पर इस्तेमाल किया जाता है।  इनकी कीमत 6 हजार  से लेकर 18 हजार रुपये  है। ईरान का मखमली कालीन और सिंथेटिक कालीन भी  पसंद किया जा रहा है
 इनकी कम से कम कीमत 12 हजार है। इसके अलावा, सिंथेटिक कालीन की भी लोगों के बीच अच्छी डिमांड है। ये कीमत में तो कम होते ही हैं, साथ ही घर में भी आसानी से धुल जाते हैं।ये 8 हजार से 18 हजार रुपये तक की कीमत के होते हैं, जो अन्य उम्दा कालीनों के मुकाबले काफी कम है। बच्चों के कमरों के लिए विभिन्न कार्टून कैरक्टर्र्स और खिलौनों के प्रिंट वाले कालीन इन दिनों खूब बिक रहे हैं। रूम के फर्नीचर और कर्टेन से मैच करते ये कालीन आपको कई तरह के शेप में मिल जाएंगे। ये साइज के मुताबिक लगभग चार हजार रुपये की प्राइस रेंज से मिलना शुरू होते हैं। इन डिजाइंस के कालीन ज्यादातर बेल्जियम और जर्मनी के होते हैं। ये ज्यादातर ब्राइट कलर्स में होते हैं। ऐसे में इसकी कीमत ज्यादा होना स्वाभाविक है।  बाजार में इन दिनों वूलन कालीन की मांग कम है। कुछ साल पहले तक वूलन कार्पेट ही ट्रेंड में थे। इसका मुख्य कारण गर्मी का लगातार बढ़ते जाना है।
   कालीन नई रंगत के
 लेदर से तैयार कालीन की भी एक खास वर्ग में अच्छी डिमांड है ये  मशीन से बनते हैं और इनमें सिंथेटिक मटीरियल का प्रयोग होता है। ये दिखने में भी बेहद अट्रैक्टिव होते हैं।
भारतीय मार्केट में छाए कालीनों में कोरिन्थिया बाथ रग, मिलेफ्लेयर मैट, मून गेज, फ्लम बॉर्डर, माउस रग और सेवीलेड प्लेड कालीनों का भी अच्छा-खासा मार्केट है। कोरिन्थिया बाथ रग का डिजाइन डायमंड पैटर्न पर आधारित होता है। मिलफ्लोर मैट का डिजाइन पूरी तरह बॉटेनिकल थीम पर आधारित होता है। यह कालीन पूरी तरह कॉटन से बना होता है। मूून गेज कालीन नायलॉन से बना होता है। इसमें हाथ से कढ़ाई की जाती  है।

कला में बदलाव में जरूरत- सुनील सेठी अध्यक्ष,  फैशन डिजाइन कांसिल आफ इंडियाकला के लिए जरूरी है कि कला का विकास हो। प्रस्तुतिकरण में भी बदलाव हो और वह हमेशा नएपन को लिए हुए लोगों को दिखाई दे। इसी सोच को आगे बढ़ाने का काम किया सुनील सेठी ने।  सुनील फैशन डिजाइन कांसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष हैं। वह मेनका गांधी के एनजीओ पीएफए पीपुल फार एनिमल से भी जुड़े हुए हैं और उस संगठन को अनुदान देते हैं।  इस तरह देखें तो भारत भर के 31 पशु अस्पताल के लिए वह सेवा कर रहे हंै।  सरसरी नजर से देखें तो फैशन डिजाइनिंग और पशु प्रेम का मेल नहीं पर बहुआयामी सोच के सुनील के दिमाग में इस तरह के  कई विचार कौंधते है जिनको यकायक सुनकर आप चौंक जाएंगे। ऐसे ही उनके दिमाग में यह विचार आया कि क्यों न देश के नामी पेंटरों और डिजाइनरों की कृतियों को एक नए फार्म में पेश किया जाए।  उनको देखने परखने का नजरिया बदला जाए और लोगों के ज्यादा करीब लाया जाए। पेंटिंग का महत्व तो सिर्फ कला प्रेमी ही जानते हैं। यह सोचते समय फ्लोरिंग के लिए पेंटिंग और ड्रेस डिजाइन उनको जम गए।पहले यह सारी डिजाइन और पेंटिंग को ज्योमैट्रिकल ग्राफ में  उतारा गया और फिर बुनकरों को डिजाइन के साथ दे दिया गया।  जो पेंटिंग अभी तक घर की दीवारों का हिस्सा होती थी अब फ्लोर के कालीन में भी दिखाई देने लगी।  लगभग 40 मशहूर पेंटरों और फैशन डिजाइनरों ने इसमें हिस्सा लिया। रजा, रोहित बल , मनजीतबाबा ने अपनी कला और कल्पना को कालीन के रूप में देखा।  इन कालीनों की कीमत 35 हजार से लेकर 5 लाख थी। प्रतिकृति और प्रामाणिकता को देखा जाए तो आकार आकृतियां और संरचनाएं कालीनों की  मूलकृति से काफी हद तक मिलती हैं किंतु कुछ कृतियों के रंग बदल भी दिए गए। कालीनों का आकार बहत्तर गुणा बहत्तर इंच और अड़तालीस गुणा अड़तालीस  इंच था।कहां से खरीदेंसाउथ दिल्ली ,क्नॉट प्लेस ,जनपथ , करोलबाग , कमला नगर , लाजपत नगर।

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

कर्टन कॉन्सेप्ट

यह सच है कि घर को आकर्षक बनाने में परदों का कोई सानी नहीं है। मगर घर की खूबसूरती में चार- चांद लगाने वाले इन परदों को यदि सही ढंग से इस्तेमाल न किया जाए, तो घर बोझिल भी दिखने लगता है। इसलिए जरूरी है कि परदे का चुनाव करते समय खास ध्यान रखा जाए-

-परदे रोज-रोज बदलने वाली चीज नहीं है, इसलिए परदों का चयन करते समय घर की दीवारों के रंग के साथ-साथ कपड़े की क्वॉलिटी पर भी ध्यान देना चाहिए।

-कपड़ों का चयन करते समय यह जरूर देख लें कि इन्हें कहां लगाना है। मसलन बच्चों के रूम में या मास्टर बेडरूम या लाउंज में।

-विंडो ड्रेसिंग करते समय सबसे पहले यह ध्यान रखें कि दीवारों, फर्नीचर, कारपेट और परदों के रंगों के बीच सही तालमेल हो। आप चाहें तो फर्नीचर या दीवारों के रंग से मैच करते हुए परदे लगा सकती हैं या फिर इनके रंग से मेल खाते कंट्रास्ट रंगों के परदे भी लगा सकती हैं।

जैसे-गुलाबी के साथ हल्का बैंगनी या नीला रंग बहुत जंचता है। अगर फैशन की बात करें, तो इन दिनों क्रीम और बादामी कलर ज्यादा ट्रेंड में हैं।

इनके साथ गहरे रंग का इस्तेमाल कर कमरे को सुंदर बना सकती हैं।
-आप चाहें तो दिन के वक्त खिड़कियों के परदों के किनारे को समेट कर उसे किसी आकर्षक डोरी या बैंड से बांध सकती हैं। इससे घर में अच्छी रोशनी भी आती है और परदे देखने में भी बहुत अच्छे लगते हैं।

-इसके अलावा अपने घर में गहरे रंग के शीयर कर्टन या रोमन ब्लाइंड का इस्तेमाल कर सकती हैं। इससे कमरे में हमेशा हल्की-हल्की रोशनी आती रहती है।

-बच्चों के कमरे में गहरे रंग के परदे का इस्तेमाल करें। बच्चों के कमरे के लिए पर्पल और मजैंटा रंग फैशन में हैं।

-कमरा बड़ा हो, तो ही फ्लोरल प्रिंट वाले परदे का इस्तेमाल करें, क्योंकि फ्लोरल प्रिंट वाले परदे एरिया को छोटा दिखाते हैं। कमरा यदि छोटा या मध्यम आकार का हो, तो हल्के रंग के प्लेन परदे ही अच्छे लगते हैं।

-फैब्रिक का चुनाव करते समय यह जानना भी जरूरी होता है कि आपके कमरे के हिसाब से कौन-सा कपड़ा सबसे सही रहेगा। अगर ज्यादा समय तक धूप आती है या अंधेरा ज्यादा रहता है, तो उसी के अनुसार कपड़े का चुनाव करें। परदों के लिए आजकल सिल्क, कॉटन, लिनेन आदि फैब्रिक चलन में हैं। नेट फैशन से आउट हो चुका है। किंरकल्ड फैब्रिक से बचें। इसके खिंच कर लंबा होने या सिकुड़ने की आशंका होती है।

-साल में कम से कम दो बार परदों की ड्राई क्लीनिंग जरूर करवाएं। धूप से परदों के रंग खराब हो जाते हैं, इसलिए उन्हें धूप से बचाने के लिए उनमें सफेद कपड़े की लाइनिंग जरूर लगवाएं।

-उमस भरी गरमी से राहत देने के लिए सफेद, गुलाबी, हल्का नीला, हल्का हरा, पीला आदि रंग के परदे अपने घर में लगवाएं। ठंडक का एहसास होगा।

-गरमियों में परदे के लिए नैचुरल फैब्रिक का इस्तेमाल बेहतर होता है। मसलन कॉटन, लिनेन, निटेड सिल्क टेक्सचर के परदे आप लगवा सकती हैं।

-घर को डिजाइनर परदों में हल्के और गहरे रंगों के तालमेल से भी सजाया जा सकता है।

बारि‍श में कर्टन कॉन्सेप्ट

मानसून में कर्टन की फैब्रिक्स की लेयर्स नहीं होनी चाहिए। इससे ह्यूमिडिटी बढ़ती है। गर्मी में आम तौर पर धूप से बचने के लिए डबल कर्टन कॉन्सेप्ट पर फोकस रहता है, पर अब सही समय है इन्हें कम करने का। मौसम का पूरा मजा लेने और घर में ह्यूमिडिटी को कम करने के लिए परदों में हलके फैब्रिक्स का इस्तेमाल बेहतर है। इसके लिए रेग्युलर बेसिस पर शिफॉन, नेट और स्पेशल ओकेजंस पर टस्सर सिल्क फैब्रिक में कर्टन चुन सकते हैं।

special post

कुमाऊंनी भाषा के कबीर रहीम की जोड़ी डा. अनुजा भट्ट

   हल्द्वानी जो मेरे बाबुल का घर है जिसकी खिड़की पर खड़े होकर मैंने जिंदगी को सामने से गुजरते देखा है, जिसकी दीवारों पर मैंने भी कभी एबीसी़डी ...