बुधवार, 18 अप्रैल 2018

कविताएं/ चुका नहीं है आदमी ,शायद - चर्चित कवि सुबोध श्रीवास्तव


चुका नहीं है आदमी...

बस,

थोड़ा थका हुआ है

अभी

चुका नहीं है

आदमी!

इत्मिनान रहे

वो उठेगा

कुछ देर बाद ही

नई ऊर्जा के साथ,

बुनेगा नए सिरे से

सपनों को,

गति देगा

निर्जीव से पड़े हल को

फिर, जल्दी ही

खेतों से फूटेंगे

किल्ले

और/चल निकलेगी

ज़िन्दगी

दूने उत्साह से|

हां, सचमुच

जीवन के लिए

जितना ज़रूरी है

पृथ्वी/जल/नभ

अग्नि और वायु

उतनी ही ज़रूरी है

गतिमयता,

जड़ता-

बिलकुल गैरज़रूरी है

सृष्टि के लिए..!

शायद

------

सच में

दूर कहां जा पाता है

किसी से

एकाएक हाथ छुड़ाके

नज़रों से ओझल हो जाने वाला..!

याद है मुझे

आंगन में-


खुशी से चहचहाती

गौरैया

नन्हें बच्चों के संग

सब कुछ भूल जाती थी

शायद!

बच्चों ने जीभर कर

दाना चुगा उससे,

नीले आकाश में

पीगें भरना भी सीखा

फिर, एक रोज

न जाने क्यों

देर शाम तक

नहीं लौटे वे।

गौरैया-

अब कहीं नहीं जाती

और

आंगन को भरोसा है कि

बच्चे
फिर आएंगे/लौटकर

चहकेंगे चिड़िया के संग!

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