मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

मैडम कल मेरी शादी है -वंशु विनेश


सिया एक आठ साल की छोटी बच्ची जो अपने गाँव के स्कूल में तीसरी कक्षा में पढ़ती है।आम बच्चों की तरह वो भी रोज स्कूल जाती,खेलती- कूदती।पढ़ने में तेज,अपनी मासूम बातों और हरकतों से सब टीचर्स की लाड़ली थी।एक दिन वो स्कूल नही आई,अगले दिन हाथो में मेहँदी लगी,पाँवों में छम-छम पायल बजाती स्कूल में दाखिल होती है,तभी गीता मैडम उसे रोकती है और कहती है-
"सिया तुम सब बच्चों को कितनी बार मना किया है, कि स्कूल में कोई भी गहना पहन कर नही आना,क्या तुम्हे याद नही याद है??

"मैडम मैने माँ को बोला भी जब वो उतारने लगी,तो दादी ने डांटा और बोला पहनना जरूरी है,नही तो अपशकुन होता है।"सिया बोली।

"क्यों ऐसा क्या है इस पायल में?"
गीता मैडम में आश्चर्य से पूछा।
"वो ये मेरी सास ने पहनाई है,कल मेरा रोका था ना!!"
एक आठ साल की बच्ची के मुँह से ऐसे भारी भरकम शब्द सुन कर गीता का सर चकरा गया... उसने प्यार से  सिया से पूछा-"बेटा आपको पता है,रोका क्या होता है?"
सिया ने बोला-"नही"

"अच्छा कोई बात नही जाओ अपनी क्लास में" सिया को क्लास में भेज कर गीता सोच में पड़ जाती है और मन ही मन कुछ सोच कर क्लास में चली जाती है।
स्कूल खत्म होने के बाद वह घर जाती है पर उसका मन नही लगता...अगले दिन वह स्कूल की प्रिंसिपल को सारी बात बता कर सिया के घर जाने की परमिशन माँगती है।

सिया के घर गीता उसकी माँ से मिलती है और कल के बारे में पूछती है तो सिया की माँ बताती है कि आने वाली अक्षय तृतीया को सिया की शादी है।
"क्या!!! आप पागल तो नही हो गयी,आप बाल विवाह करवाना चाहते है??आपको पता नही ये कानूनन अपराध है।"

"ए मास्टरनी थारो ज्ञान थारे खने राख...मने समझावण री जरूरत कोनी...दो आखर के पढ़ ल्या पोथी का,खुद ने खुदा समझण लाग गी के... तने के बेरो "धरम परनावन"को कितो महत्तम है,,इच्छा हुवे तो चाय पाणी पी,,नही तो जै रामजी की...."

"पर माताजी" गीता ने कुछ बोलना चाहा,

"पर-वर की कोनी चाल अठे सूं और सुण आखा तीज रो ब्याव है म्हारी पोती रो जीमण ने जरूर आ जाये।"

गीता भारी मन से चल दी और स्कूल आकर प्रिंसिपल मैडम को सब कुछ बता दिया...फिर उसने सिया और कुछ दूसरे बच्चों को लेकर एक नाटक तैयार किया....और सरपंच से बात करके उसका आयोजन चौपाल में करवाया। जिसे लगभग गाँव के हर सदस्य ने देखा।उस नाटक के माध्यम से गीता ने गाँव वालों को बाल विवाह से होने वाले दुष्परिणामों से अवगत करवाया।

नाटक खत्म होने के बाद गीता ने गाँव वालों को समझाया,,"कल मै सिया की दादी से मिली उन्होंने बोला म्हे म्हारी सिया ने धरम परणावा मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,,"धरम परणावा" अर्थात किसी भी लड़की का मासिक धर्म शुरू होने से पहले उसकी शादी करने को आप लोग बहुत अच्छा मानते हो....पर यह तो एक प्राकृतिक क्रिया है,जो हर लड़की में होती है.... इसे धर्म से जोड़कर पाप के भागी मत बनिये,, याद कीजिये कुछ दिनों पहले हरी काका की बेटी कच्ची उम्र में माँ बनने वाली थी और स्वास्थ्य बिगड़ने से मर गयी.....क्या आप चाहते है ये सिया,मीरा,खुशबु,सोनू,किरण और बाकी सब बच्चियाँ भी हरी काका की बेटी की तरह??......"

"समझाना मेरा काम था...बाकी आपकी मर्जी हम चाहते तो कानून की मदद लेकर भी ये काम कर सकते थे,पर कानून की मदद से एक बार सिया को बचा लेती तो दूसरी सिया की छिप कर शादी करवा दी जाती...मै इस जहरीले पेड़ का केवल तना ही नही काटना चाहती....मै चाहती हूँ इस बुराई को जड़ से समाप्त कर सकूँ....आगे आप लोगों की मरजी।"

गीता मैडम ने अपनी बात समाप्त की पूरी चौपाल में एक दम चुप्पी छा गयी....इस चुप्पी को तोड़ा सिया की दादी की तालियों की गड़गड़ाहट ने....

" रे मास्टरनी तू तो म्हारी आँख्यां खोल दी अब म्हारी सिया ही नही गाँव री कोई भी छोटी छोरी ब्याव कोणी करे बे सब भी थारे तांई पढ़ लिख कर मास्टरनी बणसी।"

कोई टिप्पणी नहीं:

Special Post

विदा - कविता- डा. अनुजा भट्ट

विदा मैं , मैं नहीं एक शब्द है हुंकार है प्रतिकार है मैं का मैं में विलय है इस समय खेल पर कोई बात नहीं फिर भी... सच में मुझे क्रि...