सोमवार, 9 अप्रैल 2018

जीने दो -पार्ट 2 श्रेया श्रीवास्तव

आज कोमल की तेरहवीं है। घर में भीड़ भाड़ का माहौल है। दूर दूर से संबंधी आये हैं। मित्र और पड़ोसी भी हैं।
जो सास ससुर रात दिन गाली गलौज करते थे कोमल का जीना दूभर कर दिये थे आज कोमल की तारीफ़ों के पुल बाँध रहे थे और ननद देवर देवरानी भी उनकी हाँ में हाँ मिला रहे थे जो हमेशा कोमल का मज़ाक बनाते थे।

वो पति जिसकी कोमल ने जीवन भर तन मन से सेवा की वट सावित्री करवाचौथ जैसे उपवास किये और बदले में अपमान के सिवाय कुछ न पाया था आज इठलाता हुआ घूम घूम कर सबको बता रहा था कि उसने भोज के लिये सबसे मँहगा हलवाई लगाया है पंडित जी को जी भर कर दान दूँगा।सबको बता रहा था कि कोमल की बीमारी पर उसने कितना पैसा लगाया था।

कोमल के पड़ोसी फुसफुसा रहे थे कि जब तक जिंदा थी आदमी ने पूछा नहीं जब तक जिंदा थी, छोटी छोटी चीज़ो के लिये तरसाता था आज नाटक कर रहा है।कोमल के बेटा बेटी भी पति की तरह यदा कदा उसका अपमान कर देते थे।अगर समझाने से न मानते तो झिड़कना पड़ता । कोमल ने इन लोगो को पैदा करने में और परवरिश में जो तकलीफ़ें सही थीं वो भूल चुके थे याद थी तो माँ की कड़वी बातें।कोमल एक पढी लिखी संभ्रांत परिवार की लड़की थी पर शादी के बाद उसे सब से अवहेलना और अपमान ही मिला था। कोमल इतनी आहत हो चुकी थी कि उसने मेडिकल काॅलेज जाकर जीते जी अपना देहदान कर दिया।कोमल ने तय कर लिया था कि जिस पति ने जीते जी उसे कभी इंसान तक नहीं समझा मरने के बाद भी उसे उसके कंधे नहीं चाहिये। कोमल के मरने की ख़बर मिलते ही मेडिकल काॅलेज के लोग आकर कोमल का शव छात्रों के परीक्षण के लिये ले गये।आज उसी कोमल की तेरहवीं धूम धाम से मनाई जा रही थी।

इस कहानी के द्वारा मैं आप सब ये विनम्र निवेदन करना चाहती हूँ कि आप के माँ बाप बीवी पति भाई बहन कोई भी संबंधी हों जब तक वो जीवित हैं उनकी परवाह करिये।अगर आदर नहीं दे सकते तो कम से कम ऐसा अपमान भी न करें कि फिर कोई कोमल जीतेजी अपनी मौत का इंतज़ाम करते करते चैन की साँस भी न ले सके।जीते जी जो पेट भर खाने को तरसती रही आज उसकी याद मे पकवान बनवाकर भोज करा के उसको देवी बता कर कैसे श्रद्धाँजलि दी जा ही थी मैं नहीं मानती कि इस तरह से कैसे देवता खुश होते हैं।इसलियें विनती है खुद भी चैन से रहें और दूसरों को भी जीने दें।

इस कहानी का पहला पाठ यहां पढ़ें...
https://mainaparajita.blogspot.in/2018/03/1.html

कोई टिप्पणी नहीं:

special post

कुमाऊंनी भाषा के कबीर रहीम की जोड़ी डा. अनुजा भट्ट

   हल्द्वानी जो मेरे बाबुल का घर है जिसकी खिड़की पर खड़े होकर मैंने जिंदगी को सामने से गुजरते देखा है, जिसकी दीवारों पर मैंने भी कभी एबीसी़डी ...