माेहिनीअट्टम जैसे पारंपरिक और शास्त्रीय नृत्य की वजह से से पूरी दुनिया में लाेकप्रिय सुनंदा नायर से आप सभी परिचित हैं। पिछले सप्ताह मैंने उनका एक साक्षात्कार लिया। पेश है उसी के अंश--
सुनंदा जी बताएं नृत्य में सबसे खास क्या है.
नृत्य में सबसे खास है भावभंगिमा, ताल और संयाेजन। यह तब ज्यादा अच्छे से हाे पाता है जब आपगीत के बाेल काे समझते हैं।
आपने बहुत साे नृत्य सीखे हैं। मैं यह जानना चाहती हूं कि आपने शुरूआत कैसे की.
मैं एक मलयाली परिवार में पैदा हुई और छह साल की उम्र में मैंने पंडित दीपक मजूमदार से भरतनाट्यम की शिक्षा लेनी शुरू की। फिर कुछ साल बाद केरल के पारंपरिक नृत्य थियेटर में कथकली सीखने लगी। पं. मजूमदार से मैं भरतनाट्यम सीखती थी। उन्हीं की प्रेरणा से मैं मोहिनीअट्टम से जुड़ी। पं. मजूमदार जुहू (मुंबई) स्थित नालंदा नृत्य कला महाविद्यालय में नृत्य गुरू विदुषी कनक रैले जी से मोहिनीअट्टम सीखते थे। एक दिन उन्होंने मुझसे कहा कि तुम केरल की होकर भी अपनी शुद्ध नृत्य-कला क्यों नहीं सीखती? मैं समझ गई कि उनका इशारा मोहिनीअट्टम की तरफ था। मैं मोहिनीअट्टम सीखना चाहती थी लेकिन मन में यह आशंका भी थी कि कनक रैले जी मुझे शिष्या के रूप में स्वीकार करेंगी या नहीं। मैंने गुरूजी से पूछा-क्या वे मुझे सिखाएंगी? वे मुझे कनक रैले जी से मिलाने ले गए और सच कहूं तो उस दिन से मेरा जीवन बदल गया। मैंने भरतनाट्यम और कथकली सीखा जरूर था लेकिन उस वक्त तक नृत्य मेरी रुचि मात्र ही थी। कनक रैले जी की शिष्या बनना मेरे लिए एक बड़ा गौरव था। लेकिन तब भी मैं दो-तीन महीने इसी दुविधा में घिरी रही कि नृत्य मेरी रुचि मात्र है या मैं इसमें अपना भविष्य तलाश सकती हूं। आखिर मैंने तय किया, अब मोहिनीअट्टम ही मेरी जिंदगी है।...फिर मैं इसकी गहन लयात्मकता, सुकोमलता में डूबती चली गई।
माेहनी अट्टम में क्या खास है.
मोहिनीअट्टम एक मादक नृत्य है। इसमें सिर्फ नायक-नायिका के विरह व्यथा की ही नहीं बल्कि उनके बेहद अंतरंग क्षणों की भी अभिव्यक्ति होती है। प्रस्तुति के दौरान मोहिनीअट्टम का वैशिष्ट्य साफ झलकता है। इसकी नृत्य-प्रस्तुति एक वृत्त के भीतर होती है। यह वृत्त बड़ी खूबसूरती के साथ नृत्यांगना के हर मूवमेंट के बीच एक सुंदर समन्वय स्थापित करता है।
नृत्य के लिए केरल खास क्याें है.
केरल में एक प्राचीन मंदिर है उसकी विशेषता नृत्य है। सदियों तक केरल के मंदिरों में देवदासियां इसे प्रस्तुत करती थीं। बाद में कई दशकों तक यह नृत्य उपेक्षित रहा। अब नई पीढ़ी केरल की पारंपरिक विरासत पर फिर से अपना ध्यान केंद्रित कर रही है। वैसे केरल के सामाजिक जीवन में नृत्य का बड़ा स्थान है। मैं साेचती हूं कि कृष्ण की बाललीला, रामायण की कथा जैसे लोकप्रिय प्रसंगों पर मोहिनीअट्टम की नृत्य-संरचना तैयार की जाए तो यह आम लोगों के बीच ही नहीं, बच्चों के बीच भी लोकप्रिय हो सकता है। तभी यह जनमानस तक पहुंचेगा।
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