बच्चियाें के साथ क्रूरता की सारी हदें पार हाेती जा रही हैं और हम सिर्फ तमाशा देख रहे हैं। सचमुच एक तमाशा ही तो बन गए हैं हम। हम यानी बच्चियां, हम यानी लड़कियां हम यानी महिलाएं हम यानी मादा हम यानी स्त्री लिंग..
स्कूल से लेकर कालेज, आफिस से लेकर बाजार, बस स्टेंड, आटाे स्टेंड, रेस्तरां, पब, हाेटल हर जगह हम पर हमले हाे रहे हैं। हम इंसान न हाेकर हवस मिटाने का एक साधन बन गए हैं। 6 माह की बच्ची भी इससे अछूती नहीं है। अपराध करने वालों की उम्र 10 साल से लेकर 80 साल तक है। माेबाइल पर अश्लील फिल्म देखकर 10 साल के 3 बच्चाें ने 8 साल की लड़की के साथ घिनाैनी हरकत की। यह खबर अभी हाल की ही है। आखिर उन बच्चाें काे इतनी हिम्मत किसने दी। किसने दिए अवसर की वह माेबाइल पर फिल्म देखें।
बच्चे जानते हैं कुछ नहीं हाेने वाला। वह सजा से भी नहीं डरते। उनकाे अपने माता- पिता की इज्जत से भी लेना देना नहीं क्याेंकि वह इज्जत शब्द के मायने ही नहीं जानते। उनकाे इस तरह ज्ञान देने वाले माता-पिता हाेते ताे वह शायद न एेसी फिल्म देखने का साहस कर पाते और न एेसा घिनाैना काम।
हमारी बच्चियां दिनाेदिन घर में कैद हाेती जा रही हैं। हम उनकाे खेलने से भी वंचित करने लगे हैं। शायद एेसा समय न आ जाए कि हम उनकाे स्कूल भेजने से भी डरने लगे। लेकिन यह रास्ता नहीं है, समाधान नहीं है। आखिर हम अपनी बच्चियाें काे उनकी मंजिल पाने में बाधा कैसे दे सकते हैं। वह भी एेसे समय में जब खेल से लेकर पढ़ाई हर जगह वह इस तमाम विषमताआेंके बावजूद अपनी शाेहरत कमा रही हैं।
डीपीएस की उस छाेटी सी बच्ची के हाथ में जब एक छाेटी सी गुड़िया और एक कैप वाला गुड़्डा दिया गया ताे उसने कहा। कैप वाला गुड्डा नहीं हाे सकता वह ताे डर्टी अंकल है। वह डर्टी अंकल लाइफ गार्ड था। इस घटना ने डीपीएस ग्रेटर नाेएडा काे पूरी दुनिया के सामने रख दिया है। लेकिन न यह स्कूल बंद हाेगा और न हीं कुछ और हाेगा। स्कूल बंद हाे जाने से वहां पढ़ रहे और बच्चाें का क्या हाेगा.. वह कहां जाएंगे। स्कूल बंद करना समाधान नहीं है। साेचना यह है कि इस तरह की घिनाैनी हरकताें पर लगाम कैसे लगाई जाए। इस तरह के अपराधी काे कड़ी से कड़ी सजा जल्द से जल्द मिले। मैं ताे चाहती हूं कि जाे भी इस तरह के कृत्य करें उसे नपुंसक बना दिया जाए।
स्कूल से लेकर कालेज, आफिस से लेकर बाजार, बस स्टेंड, आटाे स्टेंड, रेस्तरां, पब, हाेटल हर जगह हम पर हमले हाे रहे हैं। हम इंसान न हाेकर हवस मिटाने का एक साधन बन गए हैं। 6 माह की बच्ची भी इससे अछूती नहीं है। अपराध करने वालों की उम्र 10 साल से लेकर 80 साल तक है। माेबाइल पर अश्लील फिल्म देखकर 10 साल के 3 बच्चाें ने 8 साल की लड़की के साथ घिनाैनी हरकत की। यह खबर अभी हाल की ही है। आखिर उन बच्चाें काे इतनी हिम्मत किसने दी। किसने दिए अवसर की वह माेबाइल पर फिल्म देखें।
बच्चे जानते हैं कुछ नहीं हाेने वाला। वह सजा से भी नहीं डरते। उनकाे अपने माता- पिता की इज्जत से भी लेना देना नहीं क्याेंकि वह इज्जत शब्द के मायने ही नहीं जानते। उनकाे इस तरह ज्ञान देने वाले माता-पिता हाेते ताे वह शायद न एेसी फिल्म देखने का साहस कर पाते और न एेसा घिनाैना काम।
हमारी बच्चियां दिनाेदिन घर में कैद हाेती जा रही हैं। हम उनकाे खेलने से भी वंचित करने लगे हैं। शायद एेसा समय न आ जाए कि हम उनकाे स्कूल भेजने से भी डरने लगे। लेकिन यह रास्ता नहीं है, समाधान नहीं है। आखिर हम अपनी बच्चियाें काे उनकी मंजिल पाने में बाधा कैसे दे सकते हैं। वह भी एेसे समय में जब खेल से लेकर पढ़ाई हर जगह वह इस तमाम विषमताआेंके बावजूद अपनी शाेहरत कमा रही हैं।
डीपीएस की उस छाेटी सी बच्ची के हाथ में जब एक छाेटी सी गुड़िया और एक कैप वाला गुड़्डा दिया गया ताे उसने कहा। कैप वाला गुड्डा नहीं हाे सकता वह ताे डर्टी अंकल है। वह डर्टी अंकल लाइफ गार्ड था। इस घटना ने डीपीएस ग्रेटर नाेएडा काे पूरी दुनिया के सामने रख दिया है। लेकिन न यह स्कूल बंद हाेगा और न हीं कुछ और हाेगा। स्कूल बंद हाे जाने से वहां पढ़ रहे और बच्चाें का क्या हाेगा.. वह कहां जाएंगे। स्कूल बंद करना समाधान नहीं है। साेचना यह है कि इस तरह की घिनाैनी हरकताें पर लगाम कैसे लगाई जाए। इस तरह के अपराधी काे कड़ी से कड़ी सजा जल्द से जल्द मिले। मैं ताे चाहती हूं कि जाे भी इस तरह के कृत्य करें उसे नपुंसक बना दिया जाए।
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