शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

बेटे की चाहत- कमलेश आहूजा

माँ का नाम आते ही मन श्रद्धा और प्रेम से भर जाता है .वैसे तो माता पिता दोनों ही बच्चों के लिए अहम होते है ,किंतु कहीं ना कहीं माँ बच्चों के दिल के ज़्यादा क़रीब होती है ..,उनका दुःख दर्द बिना कहे ही भाँप लेती है.
मीना के बड़े बेटे रोहित की १२वी बोर्ड की परीक्षाएँ शुरू होने वाली थी ..रोहित पढ़ने में बहुत होशियार था ......हमेशा कक्षा में अव्वल आता था.इस बार तो उसने पूरे वर्ष बहुत मेहनत की थी ...वह इंजीनियर बनना चाहता था,ओर इसके लिए उसके पास मात्र एक ही विकल्प था कि १२वी बोर्ड की परीक्षा में उसके अच्छे अंक आएँ....क्योंकि उस समय प्रवेश परीक्षाओं का प्रावधान नहीं था .
सब कुछ ठीक चल रहा था ...परीक्षा शुरू होने में शेष दो दिन रह गए थे ...मीना बेटे के साथ बैठी थी,क्योंकि मीना ने भी रसायनशास्त्र में एम.एस सी. की थी तो बेटे को जहाँ कही दिक़्क़त होती ...वह मदद करती .अचानक पति के ऑफ़िस से फ़ोन आया कि उनकी तबियत बिगड़ गयी थी और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया है .मीना को तो मानो काटो तो ख़ून नहीं ,ऐसी हालत हो गयी बेचारी की.बेटा भी घबरा गया और रोने लगा .बेटे को रोते देखकर ....मीना ने अपने आपको सम्भाला ओर रोहित को ढाँढस बँधाने लगी..."बेटा सब ठीक हो जाएगा.मैं हूँ ना,तुम केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो".रोहित की पूरी परीक्षा के दौरान मीना के पति के दो मेजर ऑपरेशन हुए ,उसका एक पांव घर में व एक अस्पताल में रहता ....पर उसने अपने आत्मविश्वास को कम नहीं होने दिया.....बड़े धैर्य के साथ दोनों बच्चों को अकेले सम्भाला.सदैव चेहरे पर मुस्कान लिए रहती ओर रोहित को भी प्रोत्साहित करती रहती.....परीक्षाएँ समाप्त हो गयी......मीना के पति भी सकुशल अस्पताल से घर आ गए .कुछ ही दिन में रोहित का रिज़ल्ट आ गया .....उसने अपने विद्यालय में सर्वाधिक अंक प्राप्त करके प्रथम स्थान पाया साथ ही राज्य स्तर पर भी मेरिट में स्थान पाया...मीना और उसके पति तो ख़ुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे .... सब लोग बधाई दे रहे थे ......और सारा श्रेय रोहित को दे रहे थे।
रोहित के विद्यालय मे ऐसे बच्चों को सम्मानित करने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन रखा गया ,जिन्होंने १२वी बोर्ड की परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करके विद्यालय का नाम रोशन किया था.अविभावको को भी बुलाया गया था .
मीना रोहित के साथ सबसे आगे की पंक्ति में बैठी थी. कार्यक्रम शुरू हुआ ....... कुछ औपचारिकतायों के बाद स्टेज पर रोहित को बुलाया गया .......प्रिन्सिपल व मुख्यअतिथि ने रोहित की पीठ थपथपाई ओर हाथ में माइक थमाते हुआ कहा ...."बेटा अपनी सफलता का श्रेय आप किसको देना चाहोगे..?" रोहित ने माइक हाथ में लिया.पहले थोड़ा नर्वस हो गया पर जल्दी ही उसने अपने को संभाल लिया और बोला- " मेरी सफलता के पीछे मेरी माँ का समर्पण है ....सब के लिए ये सामान्य सी बात हो, किंतु माँ के लिए वो समय किसी चुनौती से कम नहीं था .एक तरफ़ पापा का ऑपरेशन करवाना तो दूसरी ओर मेरी परीक्षा सुचारू रूप से सम्पन्न करवाना ....उस कठिन समय में भी उन्होंने अपना मनोबल बनाए रखा और मेरा भी उत्साह बनाए रखा.......जिसके पास ऐसी ममतामयी,धैर्यशाली माँ हो वो जीवन की हर कठिन से कठिन परीक्षा में सफल हो सकता है.मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ कि वो हर जन्म में मुझे ऐसी ही माँ दे........!! ".रोहित की आँखों में आँसू आ गए.वहाँ उपस्थित सभी अभिभावक भी रोहित की बातें सुनकर भावुक हो गए.
 कहानी से सीख-कठिन समय में यदि माता पिता अपना धैर्य बनाये रखते हैं और बच्चों को भी प्रोत्साहित करते रहते हैं, तो वह बच्चों के लिए प्रेरणा बन जाते हैं. यही प्रेरणा उन्हें सफलता की ओर ले जाती है। और भविष्य के निर्माण में उनकी सहायक बनती है.यही इस कहानी का भाव है।

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