गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

शीर्षक - मनाऊं कैसे (कहानी ) -अनामिका शर्मा



सुनो उठो, अरे अब उठ भी जाओ, दो बार तो चाय गर्म कर दी। कहते हुए निशी जाने लगी तो अंकित ने निशी का हाथ पकड़कर उसे अपनी तरफ खींच लिया। ओह अंकित छोड़ो भी देर हो रही है और अपना हाथ छुड़ा कर निशी बाहर आ गई। रसोई मे पहुंच कर जल्दी से उसने सब्जी का छौंक लगाया और आटा लगाने लगी।तभी अंकित ने आकर उसे फिर से बाँहों मे भरने की कोशिश की कि तभी निशी की सासु जी खांसते हुए रसोई में आ गई और अंकित एक कप चाय और बनाने का कह कर तैयार होने चला गया ।


अंकित एक मल्टी नेशनल बैंक में मैनेजर था और निशी से उसकी अरेंज मैरिज हुई थी। लेकिन दोनो ही एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे। शादी के बाद दोनो हनीमून मनाने शिमला गये थे। वहां के सर्द मौसम में अंकित ने अपने प्यार की गर्माहट से निशी के दिल में जगह बना ली और अंकित निशी की मासूमियत का कायल हो गया। दोनो एक दूसरे को इस कदर चाहने लगे जैसे दो जिस्म एक जान हो। शादी के दो साल तो आँखो आँखो में ही कट गये। फिर उनकी दुनिया में आई नन्ही परी मीना। अब निशी की जिम्मेदारी बढ गई। घर के काम, सास-ससुर की सेवा और मीना की देखभाल।


"अरे निशी! गाजर धोकर ले आओ तो छील कर हलवे की तैयारी कर लेते है।" सासु जी की आवाज सुनकर निशी को याद आया कि आज तो उसकी ननंद अपने परिवार के साथ आने वाली है। वह जल्दी से गाजर धोने लगी, लेकिन आज उसका मन काम में नहीं लग रहा था। वह बार-बार अंकित के ख्यालों में गुम हो रही थी, उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचना, और अपनी बाहो में भरने का प्रयास करना यही सब बाते निशी को मन ही मन गुदगुदा रही थी। वह सोचने लगी कितना वक्त हो गया है अंकित के साथ चैन से दो पल बिताये हुए। दिन भर का काम, मीना की पढ़ाई और मेहमानों की आवभगत में ही उसका पूरा दिन निकल जाता है।सासु जी आए दिन किसी न किसी को न्यौता दे आती है खाने का। और कुछ नही तो कभी बड़ी, पापड़ आदि बनवाने लगती है तो पूरा दिन काम और मेहमाननवाजी से वह इतना थक जाती है कि रात को बिस्तर पर लेटते ही उसे ऐसी बेसुध नींद आती है कि फिर वह सीधा सुबह घड़ी के अलार्म से ही खुलती है।


"लो अब तक गाजर पूरी छील भी नही पाई कब हलवा बनेगा और कब बाकी खाने की तैयारी करोगी ?" चलो सब्जी मुझे दो मै काट कर तैयारी कर देती हूँ और आटा गूंथ लेती हूँ ।"कहते हुए सासु जी आटा छानने लगी। निशी ने आँखो ही आँखो में सासु जी को धन्यवाद कहा तो सासु जी भी मुस्कुरा उठी।


हलवा बनाते बनाते निशी फिर ख्यालो में गुम हो गई। उसे याद आया आज अंकित निशी से बिना कुछ कहे ही ऑफिस चला गया था और जब निशी टिफिन तैयार करने के बाद कमरे में गई थी और अंकित को गले लगाना चाहा तो अंकित ने" देर हो रही है "कहते हुए उसे दूर कर दिया और बाहर निकलते हुए धड़ाम से दरवाजा बन्द कर दिया था। वह सब समझ रही थी। अंकित नाराज हो रहा था उससे। उसे तो याद ही नही कितने समय पहले वे एक-दूसरे के करीब आए थे? पर वह करे भी क्या? सुबह जब तक अंकित उठ कर तैयार होता है उस पूरा समय निशी किचन में फंसी रहती है और जब रात को अंकित घर आता है तब भी निशी खाने की तैयारी में लगी रहती है। वह कोशिश करती है की रात को जल्दी खाना बनाकर फ्री हो जाए और वह करती भी है, तो भी वह और अंकित सोने के वक्त से पहले कमरे में नही जा सकते। ऐसा कोई नियम नही है पर हाँ एक झिझक है जो शादी के सात साल बाद भी उसी तरह बरकरार है जो शादी के शुरूआती दिनों में थी कि जब तक सासु जी नही कहती वह सोने नही जाती। कुछ न कुछ काम निपटाने में लगी रहती। यह झिझक शायद हर जॉइंट फैमिली में होती है पर पता नही क्यो पति देव इसे समझते ही नही और रूठ कर बैठ जाते है ।"रूठे रूठे पिया .....",


"मनाउ कैसे? .. " निशी ने पलट कर देखा उसकी ननंद थी जिसने उसकी गाने की अधूरी लाईन को पूरा किया था। वह शर्म से लाल हो गई और ननंद के पैर छूने को झुकी तो उसकी ननंद ने उसे अपने गले लगा लिया जैसा कि वह हमेशा करती थी। " निशी क्या बात है, क्यो नाराज कर लिया अपने पिया को? " "अरे गरिमा दीदी, वह तो मै बस ऐसे ही गुनगुना रही थी "निशी शर्माते हुए बोली ।


"अगर ऐसे ही गुनगुना रही थी तब तो ठीक है लेकिन सच मे नाराज कर दिया है अपने पिया को तो मै बहुत ही रोमांटिक तरीके बता सकती हूँ रूठे हुए पिया को मनाने का "दीदी ने हंसते हुए कहा तो निशी की आँखे नम हो गई। निशी का अपनी ननंद से सहेली जैसा रिश्ता था वह उम्र में उससे बड़ी जरूर थी पर वह अपने मन की हर बात अपनी ननंद से शेयर कर लेती थी और उसकी गरिमा दीदी बिल्कुल सहेली की भांति ही उसकी हर समस्या का फटाफट निपटारा कर देती थी और उस पर बड़ा स्नेह भी लुटाती थी। गरिमा दीदी की स्नेह भरी बातों से उसका दर्द आँखो में छलक आया। और उसने गरिमा दीदी को अंकित की नाराजगी की बात बताई।


"अच्छा तो यह बात है। इसमे घबराने की कोई बात नही है निशी सभी के साथ ऐसा होता है। शादी के शुरूआती दिनों में इतनी जिम्मेदारी नही होती है और सब कुछ नया नया होता है तो उसकी अनुभूति भी अलग ही होती है लेकिन कुछ वक्त गुजर जाने के बाद और बच्चे हो जाने से जिम्मेदारी बढ जाती है और फिर शुरू होती है प्यार की असली परीक्षा। इतनी जिम्मेदारी के बीच और कम समय दे पाने से समस्या तो आती ही है अब यह हमारे हाथ में है की इसे उदास होकर झेला जाये या फिर जरा सी कोशिश से इस रिश्ते मे नयापन बरकरार रखा जाये ।"


"आप सही कह रही है दीदी, यह तो कई बार मुझे सरप्राइज देते है और मेरी मदद करने की कोशिश भी करते है ताकि मै थोड़ा सुकून पा जाऊ लेकिन मैने तो कभी इन्हे ऐसा कुछ फील नही करवाया। कभी-कभी हम सिर्फ सामने वाले में ही कमी ढूंढते रहते है खुद की गलती हमे नजर नही आती। आपका बहुत शुक्रिया दीदी। बस अब अच्छे अच्छे टिप्स बता दो ना दीदी प्लीज! " निशी ने गरिमा का हाथ पकड़ते हुए कहा। तो गरिमा दीदी निशी के बचपने पर मुस्करा उठी और कहने लगी, "मुझसे ज्यादा तुम समझती हो अपने पति को जरा मन को टटोलने की कोशिश करो, सारे टिप्स वही मिल जाएंगे अब उठो और अच्छे से तैयार होकर आओ जैसे नई नई शादी के बाद अंकित को रिझाने के लिए तैयार होती थी। माँ बाउजी कुछ नही सोचेंगे वह भी समझते है क्योंकि वह भी इस दौर से गुज़र चुके है।"


निशी तैयार होने कमरे मे चली गई और बड़ी बेसब्री से अंकित का इंतजार करने लगी उसे अपने रूठे पिया को मनाना जो था ।

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