बुधवार, 11 अप्रैल 2018

मास्टरपीस पुनीता- डा. अनुजा भट्ट

 
ताे जैसा कि मैंने कल बताया कि हमारे जीजाजी  और हम सब सहेलियां उसे  मास्टरपीस कहती थीं। परेशान हाेकर जीजाजी ने उसके हाथाें में पैसा देना बंद कर दिया। वह बहुत बेचैन रहने लगी। एक दिन मुझे कहीजाना था ताे मैंने साेचा इसे भी साथ ले लूं। मैं यह जानती थी  कि हमारी इस मास्टरपीस का आबजर्वेशन बहुत मार्के का है। और मुझे उस मीटिंग में एेसे ही जने की जरूरत थी। वह तैयार हाे गई। मैंने कहा, इतना सुंदर सूट है, दुप्पटा ताे ले ले। कहने लगी, पता नहीं, कहा रखा है। फिर बाेली, वैसे भी काैन आजकल दुप्पटा पहन रहा है। मैंने उसे टाेकते हुए कहा, दुप्पटा ही तेरी इस ड्रेस की शान है। कहने लगी,  नहीं मिल रहा ना। पहले की बात हाेती ताे मैं कल ही खरीद लेती एक सूट। तेरे साथ बिजनेस मीटिंग में जा रही हूं... मैंने तेज सास छाेड़ते हुए कहा उफ्फ... ये ना...
 रास्ते भर उससे बात करते हुए लगा कि वह बहुत परेशान है। कहने लगी अब बता ना डुग्गी एेसे कहीं हाेता है।   तभी मैंने कहा सब कुछ बेच दे। वैसे भी वक्त पर तुझकाे कुछ मिलता नहीं है। मेरा ध्यान बार- बार उसकी सूट पर था। लेकिन वह ताे मेरी बात पर सीरियस हाे गई। पर कैसे बेचूं डुग्गी।  मैंने भी कहा सेल में बेच दे। तुझे ताे कीमत पता ही है उसी हिसाब से बेच दे।  पर क्या क्या बेचेगी तू। पता नहीं क्या क्या खरीद लेती है।  सब बेच दूंगी। वह बुदबुदाई।
1-2 दिन बाद जीजा जी का फाेन आया। कहने लगे डुग्गी इसकाे क्या हाे गया।  सारी अलमारी से कपड़े निकाल लिए हैं। खाने पीने की काेई व्यवस्था नहीं है। कुछ बता भी नहीं रही। मैंने कहा आप सब .यहां आ जाएं। हमारे साथ डिनर कर लें या बाहर से मंगा लें। धन्यवाद, तुम्हारे साथ डिनर फिर कभी.. बाहर से ही आर्डर करता हूं। खैर हमारी इस मास्टर पीस ने अपनी साड़ियाें काे बाहर निकाला उनकाे प्रेस करवाया और फिर अखबार के जरिए सारी साेसायटी में पम्पलेट डलवा दिये।  मुझे भी संडे काे आने का बुलावा आया। मैं हैरान थी उसके पास कलेक्शन बुहत शानदार था।  ब्रिकी बहुत अच्छी हुई। लाेग उससे जानने के बेताब थे कि वह इतना सुंदर कलेक्शन कहां से लाई। वह और भी चीजें खरीदना चाहते थे। तय हुआ हर महीने वह सेल लगाएगी। साड़ी सूट चप्पल जूते आर्टीफिशियल गहने सब कुछ उसके पास था। मेरे साथ मेरी कुछ और सहेलियां भी गई थी  जाे हमारे उस मास्टरपीस काे देखना चाहती थी। पर वह भी वहां जाकर खरीददार बन गई। आज मेरी वही दाेस्त मास्टरपीस नाम से ही प्रदर्शनी लगाती है। देश विदेश घूमती है। लेकिन अब उसने अपना नियम बना लिया है वह खादी ही पहनती है और खरीदती है। कहती है इस से मुझे कंफ्यूजन नहीं हाेता आज क्या पहनूं। उसके पास खादी के खूबसूरत कुर्ते हैं। साड़ी पहनना उसने छाेड़ दिया। खरीदती वह आज भी है ।  उसका घर अब एक कलात्मक घर में तब्दील हाे गया है।


 मैं हमेशा कहती हूं हर महिला एक हीरा है और यह हमारे वागीशा क्लब की टैग लाइन भी है।  

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