शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

कांथा से सजिए और सजाइए- डॉ अनुजा भट्ट

 


कांथा कढ़ाई का प्राचीन शिल्प बंगाल के गांवों से होता हुआ अब पूरी दुनिया में अपनी जगह बना रहा है। कांथा की कढ़ाई की कहानी आजकल के फैशन ट्रैंड में खूब सुनी जा रही है।   फैशन के मुरीद इसके बारे में जानना चाहते हैं, क्योंकि आज का दौर वोकल फॉर लोकल का है। पुराने समय में कांथा बनाना न केवल एक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति थी, बल्कि इसमें प्राकृतिक, धार्मिक और सामाजिक प्रतीकों का भी प्रयोग सहजता से किया जाता था। चाहे शादी ब्याह हो या जन्म का मौका या फिर सुनी सुनाई पौराणिक कहानियां । सब को किसी न किसी रूप में अभिव्यक्ति मिलती रही।कमल, मछलियां, पक्षी, सूरज,चांद तारे, फल फूल, राधा कृष्ण,ज्यामितिक आकृतियां प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत थीं। मूल रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले रंग नीले, हरे, पीले, लाल और काले थे।"

यह देखना अपने आप में बहुत अच्छा है। हथकरघा शिल्प के पुनरुद्धार से वैश्विक मंच पर भारतीय शिल्प कौशल को न केवल  प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलेगा बल्कि इसके साथ ही ग्रामीण गांवों में लाखों कारीगरों और बुनकरों को मदद भी मिल सकेगी।

बंगाल एक ऐसा क्षेत्र है जो अपने सदियों पुराने शिल्प के लिए जाना जाता है जिसमें कांथा भी शामिल है।

 यह कढ़ाई का एक रूप है। वैदिक साहित्य में भी इसका उल्लेख है। आधुनिक समय के उभरते फैशन में यह मजबूती के साथ टिका हुआ है और फूल की तरह खिल रहा है।

 तो फिर यह कांथा कढ़ाई क्या है और इसने इतनी लोकप्रियता कैसे हासिल की?

कांथा के जन्म की कहानी सदियो पुरानी है। इसको बनाने के पीछे मकसद कोई कलात्मक चीज बनाना नहीं था बल्कि यह आम आदमी की जरूरत था। बंगाल के अलावा राजस्थान और बांग्लादेश में भी यह बनाया जाता रहा है। पहले जब यह बनाया जाता था तो कांथा कढ़ाई का प्रयोग बार्डर बनाने के लिए किया जाता था। बार्डर यानी सीमाएं। इसके लिए धागे की मोटी सिलाई की जाती थी जिसमें एक टांके और दूसरे टांके के बीच में थोड़ा अंतराल होता था। फिर साड़ी में जो छपाई होती थी उसी के ऊपर इसी तरह से मोटी सिलाई की जाती थी। जिससे डिजाइन उभर जाता था। तब इसका इस्तेमाल दरी, बिछावन और रजाई के रूप में होता था। इसे रिसाइक्लिंग भी कह सकते हैं। इसके लिए इस्तेमाल की गई साड़ियों और धोती का प्रयोग होता था। आज भी गांव में इसे इसी तरह से बनाया जाता है।

धीरे-धीरे यह एक शिल्प के रूप में विकसित हुआ क्योंकि उन्होंने अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं बनाना और टांके के साथ छोटे-छोटे सजावटी काम करना  भी शुरू कर दिया था।   उनके इस काम से प्रभावित होकर कई डिजाइनरों ने उनके साथ काम करने का नन बनाया और इस तरह सादा कांथा डिजाइनर कांथा में बदल गया। आज कांथा की बेडशीट बेडकवर साड़ियां,ब्लाउज जैकेट, पर्दे ,पर्स, स्कार्फ शॉल मफलर, कुर्ते लंहगा, स्कर्ट के अलावा सजावट की कई चीजें जैसे टेबल क्लाथ टेबल कवर, रनर, कुशन कवर, दिवान सेट बन रही हैं। रंगों, शैलियों, बनावट और पैटर्न के संयोजन पर लगातार काम हो रहा है।

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