शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

फैशन की दुनिया में भी सजा देवी देवता का दरबार

 


 


अनुजा भट्ट

अमूमन अध्यात्म और फैशन को एक दूसरे का विरोधी माना जाता है पर फैशन भी अध्यात्म से ही प्रेरणा लेता है। इसलिए दुनियाभर में भारत की कला अपना एक विशेष स्थान रखती है। फैशन और अध्यात्म कैसे एक साथ जुड़ जाता है यह देखना बहुत दिलचस्प है।

 आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति शहर के पास स्थित तिरूमाला और श्रीकालहस्ती नामक  मंदिर हैं। आप में से बहुत सारे लोगों ने इस मंदिर के दर्शन किए होंगे। यहां का प्रसाद चखा होगा। ये मंदिर स्वर्णामुखी नदी के तट पर बसा है। स्वर्णामुखी नदी पेन्नार नदी की ही शाखा है। दक्षिण भारत के तीर्थस्थानों में इस स्थान का विशेष महत्व है। लगभग 2000 वर्ष पुराना यह मंदिर दक्षिण कैलाश या दक्षिण काशी के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के पार्श्व में तिरुमलय की पहाड़ी दिखाई देती हैं । इस मंदिर के तीन विशाल गोपुरम हैं जो स्थापत्य की दृष्टि से अनुपम हैं। मंदिर में सौ स्तंभों वाला मंडप है, जो अपने आप में अनोखा है। यहां भगवान कालहस्तीश्वर के संग देवी ज्ञानप्रसूनअंबा भी स्थापित हैं। मंदिर का अंदरूनी भाग ५वीं शताब्दी का बना है और बाहरी भाग बाद में १२वीं शताब्दी में बनाया गया है। यह मंदिर राहुकाल पूजा के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।

 

 इस स्थान का नाम  जीव जन्तु और पशु के नाम से  है - श्री यानी मकड़ी, काल यानी सर्प तथा हस्ती यानी हाथी के नाम पर किया गया है। ये तीनों ही शिव के  भक्त थे और उनकी  आराधना करके मुक्त हुए थे। इसलिए इस जगह का नाम श्री कालाहस्ती है। एक जनुश्रुति के अनुसार इस तपस्या में मकड़ी ने शिवलिंग पर जाल बनाया, सांप ने लिंग से लिपटकर आराधना की और हाथी ने शिवलिंग को जल से अभिषेक करवाया था। यहाँ पर इन तीनों की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। श्रीकालहस्ती का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। स्कंद पुराण के अनुसार एक बार इस स्थान को देखने अर्जुन भी आए थे और उन्होंने यहां तपस्या भी की। इस स्थान पर भारद्वाज मुनि के आगमन का भी संकेत मिलता है।  कणप्पा नामक एक स्त्री ने यहाँ आराधना की थी।

 फैशन की दुनिया में भारत में कलमकारी को लेकर जिन जो स्थानो की बात होती है उसमें से एक स्थान यह भी है और दूसरा स्थान है मछली पट्टनम। मछली पट्टनम पर चर्चा बाद में करूंगी। कलमकारी की पहचान इन्हीं दो स्थानों से है। श्रीकालहस्ती कलमकारी का भी तीर्थ है। यहां के हस्तशिल्प में मंदिर की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। देवी देवता के चित्र कपड़े पर उकेरे जाते हैं। इन देवीदेवता में शिव के साथ और भी कई देवी देवता को शिल्प कार अपनी कला में व्यक्त करता है। शिव पार्वती के साथ राधा कृष्ण हैं तो बुद्ध भी है। जिस तरह गणपति कलाकार को आकृष्ट करते हैं वैसे ही गौतम बुद्ध की ध्यानमयी आंखें भी। दुर्गा के नेत्र अलग अलग तरह से अभिव्यक्त  पाते हैं।

नए जमाने की भारतीय महिलाएं, परंपरा और फैशन और आधुनिकता को एक साथ स्वीकार करती है। इसके लिए वह प्रयोगधर्मी कलाकार के महत्व देती है। कलाकार भी अपने शिल्प में अपनी लोककथाओं, पौराणिक पात्रों मिथकों को जोड़ते हैं क्योंकि यह हमारे अवचेतन में हमेशा रहते हैं। इसके जरिए डिजाइनर दुनिया के और तमाम डिजाइनरों  पर हमेशा के लिए अपनी छाप छोड़ने में भी सफल हो जाते हैं।  संस्कृति और कला को वह अपनी फैशनेबल शैलियों के एक साथ फ्रेम करते हैं। यही कारण है कि फैशन की दुनिया में भारतीय कला  अपनी लुभावनी सुंदरता और बहुमुखी प्रतिभा के लिए बहुत सराही जाती है।

 कृष्ण रास-लीला, पार्वती, विष्णु, श्री जगन्नाथ जैसे भारतीय देवी-देवताओं के सुंदर रूपांकनों को चित्रित करने के  महाभारत और रामायण से कथा को दृश्य रूप में चित्रित किए जाते हैं।  क्या हम सोच सकते हैं कि एक ब्लाउज भर से ही साड़ी की पूरी अवधारणा को बदला जा सकता है?  सोचिए क्या हाल के दिनों में ऐसा कोई दिन हुआ है कि आपने बुद्ध  का चेहरा,  देवी देवता के चेहरे, गणपति, शिव पार्वती कृष्ण राधा, लक्ष्मी विष्णु, जैसे कई चेहरों को ब्लाउज, कुर्ते , पैंट, पर्दे, साड़ी, बेडशीट या होम डेकोर पर नहीं देखा है? हथकरघा हो, कांजीवरम, कॉटन या जॉर्जेट साड़ी, कलमकारी डिजाइन  सभी के साथ अच्छी तरह से मेल खाते है।  क्रॉप टॉप, जैकेट, पैंट, कुर्ता और  मैक्सी ड्रेस सभी में यह डिजाइन अपना असर छोड़ते हैं।

 मेरी इन सब बातों से आपको भी यह दिलचस्पी पैदा हुई होगी कि आखिर क्या है कलमकारी। कलमकारी शब्द एक फ़ारसी शब्द से लिया गया है जहाँ 'कलाम' का अर्थ है कलम और 'कारी' का अर्थ शिल्प कौशल है। कलमकारी कला एक प्रकार का हाथ से पेंट या ब्लॉक-मुद्रित सूती कपड़ा है, जिसका उत्पादन ईरान और भारत में किया जाता है।  कई सालों से आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में कई परिवारों द्वारा इस कला का अभ्यास किया जाता रहा है। यह प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके इमली की कलम से सूती या रेशमी कपड़े पर हाथ से पेंट करने की एक प्राचीन शैली है। इस कला में डाईंग, ब्लीचिंग, हैंड पेंटिंग, ब्लॉक प्रिंटिंग, स्टार्चिंग, सफाई आदि  23 कठिन चरण शामिल हैं।

मंदिरों में इसकी उत्पत्ति के कारण यह शैली एक मजबूत धार्मिक संबंध भी रखती है। इस तरह हम देखते हैं कला का विस्तार और कलाकार के लिए यह धार्मिक स्थल भी प्रेरणा स्रोत हैं। यह हर इंसान पर निर्भर करता है कि ईश्वर को वह किस नजरिए से देखता है। मेरा मानना है ईश्वर हर कण कण में हैं।


कोई टिप्पणी नहीं:

special post

कुमाऊंनी भाषा के कबीर रहीम की जोड़ी डा. अनुजा भट्ट

   हल्द्वानी जो मेरे बाबुल का घर है जिसकी खिड़की पर खड़े होकर मैंने जिंदगी को सामने से गुजरते देखा है, जिसकी दीवारों पर मैंने भी कभी एबीसी़डी ...