आनंद और उदासी भरे चक्र


लॉकडाउन से जब सब घर के अंदर है और बाहर आवाजाही के रास्ते बंद तो ऐसे में बारिश और बारिश के बाद मिट्टी की खुशबू जैसे मन भर को तृप्त कर देती है। अभी 1 या 2 रोज पहले झमाझम बारिश हुई तो जैसे पेड़ पौधें सब नृत्य करने लगे। प्रकृति का इतना सुंदर और मनोरम रूप मैंने कई साल बाद देखा। सूर्यास्त के दृश्य ने कई मानवीय और मानवेतर कथाओं के मानस से जैसे मेरे पोर पोर को भिगो दिया। एकतरफ प्रकृति का इतना सुंदर दृश्य और दूसरी तरफ गमलों में चहकते फूल जैसे गले मिलने के आतुर हो। वाह कितना सुंदर सामिप्य। और दूसरी तरफ सामिप्य की प्यास में नन्हें पौधें की अकुलाहट. जैसे वह भी हाथ बढ़ाकर कह रहे हो मुझे भी ले लो अपने साथ अपने साहचर्य में .... पर आनंद और उदासी भरे चक्र में बारिश की बूंदों के साथ लहरों की कीर्तन सुनने का अभ्यास भी तो नहीं। तभी एक गमले का टुकड़ा जैसे मेरे हाथ में आकर कुछकहना चाहता हो मेरी तंद्रा तोड़ना चाहता हो जो मिट्टी को हाथ में लेकर कई न जाने किस लोक में चली गई हो।

अरे अब न तो बारिश है और रात में आसमान में तारे में टिमटिमा रहे हैं। दूर पहाड़ों में घरों की रोशनी टिमटिमाते तारे जैसी लग रही है। फिर मेरी हथेली में जो यह मिट्टी है वह कैसे गीली है। और यह गमले का नन्हा सा टुकड़ा क्यों चाहता है कि मैं आज उसके बारे में भी बात करूं।

मिथक कहते हैं कि भगवान ब्रहमा ही पहले कुम्हार थे जिन्होंने भगवान विष्णु का चक्र बनाने के लिए मिट्टी का प्रयोग किया था। आगे चलकर यह कला का आधार बन गया। सेरामिक्स जी हां इसका वास्तविक नाम प्राचीन ग्रीक भाषा में केरामिकोस है। केरामिकोस शब्द केरामोस से आया है जिसका अर्थ है कुम्हार की मिट्टी। यह कला सर्वप्रथम चीनी लोगों ने सीखी। उसके बाद क्रेतान, ग्रीक, रोमन,पर्शियन, मयान जैसे देशों से विकसित होती हुई भारत में पहुंची। तब से मिट्टी के बर्तनों के साथ ही साथ मूर्तियों के कई और डिजाइन भी बनाए गए। हर कोई चाहता है कि उसके घर में समृद्धि आए और शांति रहे। इसके लिए वह भारतीय पद्धति के साथ ही साथ चीनी, बौद्ध, जापानी कई तरह की कला पद्धतियों का सहारा लेते हैं। मिट्टी से कलाकृतियों का निर्माण सिर्फ भारत में ही नहीं होता बल्कि हर देश में यह कला अपनी जीवनशैली के अनुरूप विकसित होती है। कला के साथ साथ वहां की पौराणिक मान्यताएं उजागर होती हैं। यह प्रतीकों के रूप में संवारे जाते हैं। वास्तु शास्त्र, फैंग्शुई के साथ कला अपना विस्तार कर रही है और मिट्टी की सौंधी सुगंध को पूरे परिवेश में रचाबसा रही है।

हर कलाकृति सिर्फ कलाकार की भावनाओं को ही संप्रेषित नहीं करती बल्कि वह कला के कद्रदान के मन के पट भी खोलती है।

गमले का यह टुकड़ा और भी बहुत कुछ कहता है जैसे कोई कहानी कहता है।

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