बुजुर्गों के अनुभव में भी हैं आपकी समस्याओं के हल

 हर घर में बुजुर्ग हाेते हैं। हमारी तरह उनकी भी कई समस्याएं हैं इसलिए उनकी बात काे गौर से सुनें। हो सकता है उनकी सुनाई गई कहानी से आपको अपने जीवन की किसी परेशानी को हल करने का सही जबाव मिल जाए। कहते हैं न बुजुर्गों का अनुभव ज्ञान का खजाना होता है।
 उर्मिल सत्यभूषण, जिन्हाेंने कभी खुद काे बुजुर्ग नहीं माना
 और  अंति समय तक साहित्य की सेवा की.
उनके गुस्से और विरोध को सहने की क्षमता रखें। कभी भी असहमति में बोले गए आपके स्वर इतने तल्ख न हों कि उनके दिल को ठेस पहुंच जाए। बढ़ती जीवन प्रत्याशा की वजह से दुनियाभर में बुजुर्गों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। बुढ़ापा आने पर हर व्यक्ति में शारीरिक, सामाजिक, बीमारी संबंधी और मनोवैज्ञानिक रूप से कई बदलाव आते हैं, जबकि उनकी जरूरतों, उनकी स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताएं उतनी तेजी से नहीं बदल पाती। हमारी व्यवस्था जीवनपर्यंत चलती रहती है और कभी-कभी इसमें बदलती जीवनचर्या के हिसाब से बदलाव भी लाया जा सकता है। वर्तमान स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर हमारे लक्ष्य अब काफी बदल चुके हैं। संयुक्त परिवार की जगह स्वतंत्र रहन-सहन की व्यवस्था ने ले ली है। इस रहन-सहन की नई व्यवस्था को लाने में जहां एक तरफ हमारे बुजुर्गों की बढ़ी हुई जीवन प्रत्याशा, आजाद ख्याल और स्वाभिमान का योगदान है, वही दूसरी तरफ युवा पीढ़ी का स्वतंत्र और बेरोकटोक जीवन जीने की चाहत भी है। हालांकि बढ़ती उम्र के साथ कई नई तरह की बीमारियां, अव्यवस्था और अक्षमता भी सामने आती हैं,जिनसे अकेले निपटना मुश्किल होता है।
    पिछले कुछ दशकों के दौरान भारतीय बुजुर्गों के असामयिक निधन की बड़ी वजह संक्रामक बीमारियां नहीं बल्कि असंक्रामक बीमारियां और उसके प्रभाव ज्यादा देखे गए। बढ़ती जीवन प्रत्याशा और खराब स्वास्थ्य सुविधाओं की वजह से ही जवानी से बुढ़ापे की ओर कदम रख रहे लोगों और उनकी देखभाल करने वालों के लिए समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। अलग-अलग बीमारियों से जूझ रहे बुजुर्गों को उनकी जरूरत के हिसाब से खास स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराना पूरी दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। इतिहास में पहली बार दुनिया के ज्यादातर शख्स आज 60 साल से ज्यादा उम्र तक जीने की उम्मीद रख सकते हैं। ऐसे में बुजुर्गों की बढ़ती आबादी को सुविधाएं मुहैया कराना विश्व के नीति निर्माताओं के सामने बड़ी चुनौती है।
 साल 1901 में भारत के बुजुर्गों की तादाद सिर्फ 12 मिलियन थी जो कि 1951 में बढ़कर 19 मिलियन हो गईए 2001 आते-आते ये संख्या 77 मिलियन और 2011 में 104 मिलियन पहुंच गई। उम्मीद है कि 2021 तक ये संख्या 137 मिलियन तक पहुंच जाएगी। दुनिया के दूसरे सबसे ज्यादा बुजुर्गों वाले हमारे देश को इनकी संख्या दोगुनी होने में मात्र 25 साल लगे।


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