सियूँण, कंडली नामक पाैधा उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रो में पाया जाता है! इस पौधे को जहाँ कुमाऊ मंडल में सियूँण के नाम से जाना जाता है वही गढ़वाल में इस कंडली कहते है! इस पौधे पर हाथ लगते ही एक करंट सा लगता जैसे बिच्छू ने काटा हो ! तभी हिंदी में इसे बिच्छू घास के नाम से भी जाना जाता है!
रूरल इंडिया क्राफ्ट संस्था और उत्तरकाशी जिले के भीमतल्ला में जय नंदा उत्थान समिति हस्तशिल्प उत्पाद बनाने का काम करती हैं। चमोली जिले के मंगरौली गांव में इन संस्थाओं ने बिच्छू घास के रेशे से हाफ जैकेट, शॉल, बैग, स्टॉल बनाए हैं। उद्योग विभाग के निदेशक सुधीर चंद्र नौटियाल कहते हैं, नेचुरल फाइबर को बढ़ावा देने के लिए सरकार व विभाग हर संभव प्रयास कर रहा है।
जंगलों में उगने वाली बिच्छू घास यानी हिमालयन नेटल (स्थानीय भाषा में कंडाली) से उत्तराखंड में जैकेट, शॉल, स्टॉल, स्कॉर्फ व बैग तैयार किए जाने की खबरे आ रही हैं। चमोली व उत्तरकाशी जिले में कई समूह बिच्छू घास के तने से रेशा (फाइबर) निकाल कर विभिन्न प्रकार के उत्पाद बना रहे हैं। अमेरिका, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, रूस आदि देशों को निर्यात के लिए नमूने भेजे गए हैं। इसके साथ ही जयपुर, अहमदाबाद, कोलकाता आदि राज्यों से इसकी भारी मांग आ रही है।
ऐसे तैयार होता है कपड़ा
उत्तराखंड के सभी जिलों में बिच्छू घास प्राकृतिक रूप से उगती है। तने को सूखाने के बाद मशीन में प्रोसेसिंग की जाती है। इसके बाद धागा बनता है। 3 से 5 किलो बिच्छू घास से एक किलो धागा निकलता है। इसमें प्रति मीटर 600 से 700 रुपये की लागत आती है। रेशा मुलायम होने से कपड़ा तैयार करने में काफी मेहनत करनी पड़ती है। बिच्छू घास के रेशे से बनी जैकेट की कीमत 1,700 से 1,800 रुपये तक है।
नहीं मिल रहा पर्याप्त कच्चा माल
रूरल इंडिया क्राफ्ट संस्था के बचन सिंह रावत कहते हैं, बिच्छू घास की प्रदेश में व्यावसायिक खेती नहीं होती है। ऐसे में कच्चा माल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। जबकि इन उत्पादों की भारी मांग है। मंगरौली गांव में कंडाली के रेशे से उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। देश के कई राज्यों के कारोबारियों ने ऑर्डर देने के लिए संपर्क किया है। उद्योग विभाग की ओर से जैकेट को निर्यात करने के लिए उसके नमूने विदेश भेजे गए हैं। उनका कहना है कि सरकार प्रदेश में नेचुरल फाइबर को बढ़ावा देती है, तो इससे लोगों को रोजगार मिलने की ज्यादा संभावना है। देहरादून के शेरपुर में 120 महिलाओं को संस्था की ओर से इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
पराबैंगनी किरणों से बचाता है यह जैकेट
बिच्छू घास से तैयार रेशा पराबैंगनी किरणों से बचाता है। इसके रेशे से बनी जैकेट को गर्मी व सर्दी दोनों ही मौसम में पहना जा सकता है। साथ ही यह देखने में दूसरे जैकेट से आकर्षक लगता है।
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