शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

तारीख में औरतें एक जरूरी किताब है डॉ. अनुजा भट्ट


 

तारीख में औरतें

अशोक पांडे

 स्त्रियों की कहानियां कहने के लिए अशोक पांडे एक बड़ा कैनवास रचते हैं। एक ऐसा कैनवास जिसमें कई रंग है और रंगों में घुली हुई है महक। यह सारी कहानियां जिस कोमलता, संजीदगी, अपनेपन की हकदार हैं इनको शब्दों में वैसे ही उतारा गया है। पढ़ते हुए कई बार आंखें नम हो जाती है और इन किरदारों के बीच हर आम स्त्री की झलक दिखाई देने लगती है। एक आम स्त्री के नाते मैं भी इसे महसूस करती हूं। विश्व भर की नायिकाएं जिंदगी में जिस मुश्किल दौर से गुजरती हैं, वह चौंकाने वाला है। लेकिन इन कहानियाें का निष्कर्ष यह है कि आखिरकार आदमियों के दबदबे वाली इस दुनिया में वह अपनी मजबूती से अपना हक पा लेती हैं। हालांकि इसके लिए उनको बहुत कुछ खोना पड़ता है। जिस दिन वह इस सच्चाई से रूबरू हाे जाती है कि जिंदगी न मिलेगी दोबारा, इसलिए इसे अपनी खुशी और अपने आसमान के लिए जी लेना एक अच्छी बात है उस दिन से ही उसके सही सफर की शुरूआत हो जाती है। इतिहास के पन्नों में उसका नाम दर्ज हो जाता है। वह यादगार तारीख बन जाती है। बात बात पर उसकाे उसकी औकात और  ठेंगा दिखाने वाले पुरुष को पता ही नहीं चलता कि उसने ऐसा करके क्या खोया है। 

 उसके अहसानाें काे अपने अहसासों में बदलती, संवेदना के हर तंतु को संवारती, संभालती वह बिखरते हुए भी संवरती जाती है। स्त्री की यही ताकत है जो उसे असीम शक्ति देती है। जिसके साथ चमकीले सपनाें का आसमान लेकर आई थी  उसी से दुःख, पीड़ा, अपमान सहती एक दिन पाती है वह ताे कब की जिंदगी के पन्ने में  हाशिए से भी बाहर है जिसकी उसे खबर नहीं। तब दो ही स्थितियां बनती है या तो वह बिखर जाती है या उसके भीतर की सजग स्त्री जाग जाती है। सवाल पूछने वाली स्त्री, विराेध करने वाली स्त्री किसी को पसंद नहीं आती। लेकिन एक दिन वही सवाल पूछने वाली स्त्री समाज की केंद्रबिंदु बन जाती है।

      अपनी चोटी में बीज टांगकर वह पूरी दुनिया को खेती के गुर सिखा देती है तो कहीं वह चित्रकार बनती है कहीं फोटोग्राफर । कहीं दौड़ती स्त्री है तो कहीं गजल और कविता कहती स्त्री। कहीं अभिनेत्री है तो कहीं गायिका  कहीं अपने बच्चे की मेधा  को पहचान कर उसे वैज्ञानिक बनाने की साध है तो कहीं सुर की मखमली आवाज।

 स्त्री के हर रूप की झलक यहां है। एक मजबूत स्त्री की, एक संवेदनशील स्त्री की।

 मेरी रंगीन पेंसिलों में

 सिर्फ हरी वाली हो गई है छोटी

दिखाती हुई

किस रंग की कमी है मेरे भीतर

माची तवारा की ये पंक्तियां जैसे भीतर तक असर कर गई है।

    

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