लघुकथाएं- पवित्रा अग्रवाल



समर्थ

विपिन के लौटते ही माँ ने रवि से कहा --"रवि तू तो कह रहा था कि तेरा दोस्त विपिन बहुत पैसे वाले घर का लड़का है,उसने कितनी घिसी हुई जीन्स पहन रखी थी,उसमें छेद भी हो रहा था ।''
"हाँ माँ यह सच है वाकई वह बहुत पैसे वाले घर का लड़का है।उसके घर में दो एयर कंडीशन्ड कारें हैं,घर में ए.सी. लगे हैं।इस सब के बावजूद उसे रहीसी दिखाने का शौक नहीं है ,वह बहुत सिम्पिल लड़का है, घमंड तो उस में नाम मात्र को नहीं है।''
"तू भी कुछ सीख उस से ,तेरे तो कितने नखरे हैं।तेरी स्कूल यूनिर्फोम की पेंट कुछ ऊँची हो गई थी मैं ने इतनी मेहनत करके उसे खोल कर लम्बा किया फिर भी तूने उसे नहीं पहना और मुझे दूसरे खर्चो में कटौती कर के नई पेन्ट खरीदनी पड़ी ।''
"अरे माँ वह पैसे वाले घर का लड़का है,उसकी घिसी जीन्स को फैशन या उसकी सादगी कहा जाएगा और हम पहन लें तो उसे हमारी आर्थिक कमजोरी समझा जाएगा।''
'पर बेटा लोग कुछ भी सोचें .हम को अपनी हैसियत और जरुरत के हिसाब से खर्च करना चाहिये '



धमकी 


अस्पताल में कुछ लोगों द्वारा डाक्टर को पीटते देख कर मरीजों के रिश्तेदार परेशान हो गए---
एक व्यक्ति चिल्लाया --"अरे आप डाक्टर को क्यों मार रहे हैं ?'
"मारें नहीं तो क्या करें ..इनकी आरती उतारें ? जाने कहाँ कहाँ से आकर डाक्टर बन गए हैं ,इन्हों ने हमारे इकलौते बेटे की जान ले ली ।'
दूसरे व्यक्ति ने तर्क दिया --"अस्पताल में आने वाला हर मरीज ठीक हो कर ही तो घर नहीं जाता ?'
एक अन्य ने हॉ में हाँ मिलाई --"बिल्कुल,.. कुछ ठीक हो जाते हैं तो कुछ की मौत भी हो जाती है ।'
"आप का बेटा तो चला गया... आप इस तरह मार-पीट करेंगे तो दूसरे बहुत से मरीज बेमौत मारे जाएगे ।'
"वो कैसे ?'
"आप मारपीट और तोड़-फोड़ करेंगे तो सब डाक्टर्स हड़ताल पर चले जाएगे फिर दूसरे मरीजों का क्या होगा ?'
"आप लोग कौन हैं ?'
"हम यहाँ पर भर्ती मरीजों के रिश्तेदार हैं ..दूर हटिए हम आप को डाक्टर से मार-पीट नहीं करने देंगे.. ।'
"हाँ भैया यदि आपका बेटा डाक्टर की गल्ती से मरा है तो आप कम्पलेन्ट कीजिए।पर....
अपने को अकेला पड़ते देख कर वह झुंझला कर बोला ---- "आप मुझे जानते नहीं ,मैं एसे चुप नहीं बैठूँगा, अभी भैया जी को ले कर आता हूँ ।'
साभार लघुकथाब्लागस्पाॅटडाॅटकाॅम

23 साल बाद हुई मुलाकात-- डा. अनुजा भट्ट

शनिवार का दिन था. हम भाेर में ही उठ गए थे. सुबह सात बस से देहरादून जाना था। मेरे साथ मेरी बेटी और मेरे पति भी थे। रास्ते में कहीं कहीं बारिश हाे रही थी । बस ट्रेन या फिर बालकनी में खड़े हाेकर बारिश काे देखना बहुत प्रीतिकर हाेता है। एेसा लगता है बारिश में ही प्रकृति अपना श्रृंगार करती है। फूल ज्यादा स्थायी भाव से मुस्कुराते हैं। प्रकृति के नयनाभिराम रंग सम्माेहित करते हैं। सम्माेहन, प्यार, स्नेह और आत्मीयता जैसे शब्दाें के अर्थ भले ही अलग अलग हाे पर भाव एक ही है वह है अनुभूति.. जाे हम हर पल महसूस करते है। रास्ते में  मेरी बेटी माेबाइल के लिए जिद करती रही और  मैं समझाती रही  देखाे और महसूस कराे प्रकृति के रंगाें काे.देखाे हरा रंग ही कितनी विविधता के साथ है  माैजूद है। फूलाें की खुश्बू काे महसूस कराे।  पेड़ाें की आकृतियां देखाें उनका नर्तन देखाे और सुनाे कल कल बहती नदी का गान। पर्वताें के बीच नदी का अहसास , पहाड़ाें की बीच पानी की झलझल, चमकती रेत, कभी धूप कभी बारिश के बीच एक सधी हुई रेखा के साथ खड़े पेड़ ताे कहीं हवा में झूमते पेड़ कहीं गीत कहीं संगीत ताे कहीं अपनी गति लय और ताल से ंमंत्रमुग्ध करती प्रकृति।
कहीं कहीं रास्ता बहुत खराब था। बस उछल रही थी। टेड़े मेड़े रास्ते , खराब सड़क और बारिश के कारण एक डर भी था। लेकिन पूरे रास्ते भर मैंने एक चीज गाैर की की वह थी साफ सफाई। दिल्ली से लेकर देहरादून के रास्ते में मुझे गंदगी के ढेर नहीं दिखाई दिए। स्टेशन भी साफ सुथरे। सभी तरह की सुविधाआें से लबरेज।  बस अपनी धीमी गति से चल रही थी । पहाड़ाें में बस वैसे भी धीमी गति से ही चलती है। रास्ते में बस एक जगह थाेड़ी देर के लिए रुकी। अधिकांश लाेग अपने साथ ही भाेजन लेकर आए थे। उस रेस्तरां में काेई भी पहाड़ी खाना नहीं था। दक्षिण भारतीय खाना था।
 भारत की यही विविधता है कि जहां हम पारंपरिक भाेजन की तलाश करते हैं वहां हमें दक्षिण भारत, पंजाब या फिर चाइनीज खाना मिलता है। इसकी वजह यह भी है कि यह एक तरह से फास्ट फूड की तरह हाेता है। सवारी के पास इतना समय नहीं हाेता..
हम 3 बजे के आसपास देहरादून पहुंच गए। स्टेशन से पहले ही हम ग्राफिक ईरा यूनिवर्सटी के चाैक पर उतर गए। रास्ते में एक बच्ची ने हमें रास्ता बताने में मदद की। वह बेडमिंटन के टूर्नामेंट की तैयारी के लिए जा रही थी। हम लाेग शिल्पम विला खाेज रहे थे।  आसपास बहुत सारे हास्टिल थे। जाहिर है  बाहर गेट पर बच्चाें का जमावड़ा भी था। पूरी गली में बच्चे ही थे। कहीं चावमीन खाते हुए ताे कहीं यूं ही... तभी मेरी नजर  गेट पर लिखे शिल्पम विला पर पड़ी। बाहर खूबसूरत फूलाें लगे गमलाें ने बता दिया आप सही जगह पहुंचे है।
कालबेल बजायी ताे मैडम ही बाहर आईं। जी हां हमारी वार्डन उमा तिवारी पालनी मैडम। जी हां वह यहीं नाम लिखती हैं। इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह कितनी सशक्त महिला हैं। वह हमारे लिए चाय नाश्ते का प्रबंध करने लगी। लेकिन मेरी निगाहें ताे अपने अंकल काे देखने के लिए बेताब थी। हास्टिल में सब उनकाे सर कहते थे लेकिन मेरे लिए उनके लिए अंकल संबाेधन ही निकला.. मैंंने उनकाे हमेशा काम करते हुए ही देखा। वह पेड़पाैधाें में रचबस जाते है। एक एक पत्ते काे साफ करना, पौधाें की कटाई छटाई से लेकर उनका पालन पाेषण तक. नामचीन वैज्ञानिक डा. एल. एम. एस पालनी काे मैंने बहुत सहज और सरलता के साथ जीवन जीते देखा है। ईमानदारी की मिसाल नहीं। छाेटे और बड़े का काेई भेद नहीं। अपनी भाषा के प्रति दीवानगी। हिंदी और कुमाऊनी दाेनाें में सिद्धहस्त. बाेलने  में ही नहीं लिखने में भी,, संगीत प्रेमी... हमारी ह़ॉस्टिल पार्टी हमारे साथ डांस करते। दिसंबर में हास्टिल खाली हाे जाता ।रह जाते हम शाेध छात्राएं। तब हम सब कैंप फायर करते. उस कैंपफायर में पहाड़ी गीत सुनाते  अंकल।  जगजीत सिंह की गजलें गाती मैडम..     मैं यूं ही उनकी फैन नहीं हूं.. बहुत खास है यह परिवार मेरे लिए..
चाय नाश्ता करने के दाैरान मैडम ने बताया कैसे अचानक उनकाे स्ट्राेक पड़ा और उनके शरीर का एक हिस्से काे पक्षाधात हाे गया। दिमाग का 70 प्रतिशत हिस्सा  निष्क्रिय है। कुछ याद है कुछ भूल गए हैं। कभी सहज हैं कभी आक्रामक.. वह आपकाे स्वीकार भी सकते हैं और दुत्कार भी सकते हैं। मैडम ने यह बातें शायद इसलिए कहीं हाेगी कि अगर उन्हाेंने नजर अंदाज कर दिया ताे मुझे बुरा न लग जाए..
उनके कमरे से 60 के दशक के पुराने गानाें की आवाज आ रही है.. बहुत धीरे धीरे पर बहुत सुरीली..  प्रकृति के बीच उस खूबसूरत शिल्पम विला  में एक याेगी बिस्तर  में सिमटे हुए से लेटे हैं।  मैं मेरी बेटी और पति धीमें से जाते हैं। मैं  23 साल बाद उनके ठीक सामने खड़ी हूं वह  मुझे देख रहे हैं एकटक.  मैडम कहती हैं, पहचाना. उनकी आंखाें में चश्मा लगाया जाता है। वह कहते हैं यह ताे हमारी. फिर दुहराते हैं यह ताे हमारी. तीसरी बार कहते हैं यह ताे हमारी अनुजा है...
 भाव विह्वल हाे जाती हूं मैं और भावविभाेर भी।
जल्दी ठीक हाे जाइए अंकल अभी आपसे बहुत सारी बाते करनी हैं.. बहुत सारी..

हेयर कलर करवाती हैं क्या....


युवाओं में बालों को रंगने का चलन तेजी से बढ़ा है, लेकिन कई बार आपका यह शौक चिंता का विषय भी बन सकता है। अमेरिका और यूरोप में बालों में कलर कराने वाले लोगों में कैंसर के लक्षण पाए गए, जिससे यह साफ हुआ कि बालों को रंगना कैंसर का कारण भी बन सकता है। हेयर डाई को कई रसायनों से मिलाकर तैयार किया जाता है, इन रसायनों के संपर्क में आने से कैंसर का खतरा बढ़ता है। एक अध्‍ययन से यह भी सामने आया कि जिन महिलाओं ने 1980 से पहले हेयर डाई का इस्‍तेमाल शुरू किया, उन्‍हें हेयर डाई न लगाने वाली महिलाओं के मुकाबले 30 फीसदी कैंसर होने का खतरा ज्‍यादा था।

कलर करने के लिए आपको यह पता होना चाहिए कि बालों में कैसा कलर करें, मसलन कौन सा रंग आप पर सूट करेगा या कौन सा रंग आपके बालों के लिए सही रहेगा आदि। इस लेख के जरिए हम आपको दे रहे हैं कुछ ऐसी जानकारी जिससे आप बालों में कलरिंग के नुकसान के बारे में जान सकते हैं।
बालों में कलरिंग के नुकसान
हेयर डाई से ल्‍युकेमिया या लिम्‍फोमा होने का खतरा बढ़ता है। साथ ही इसे मूत्राशय कैंसर के खतरे से जोड़ कर भी देखा गया है।
डॉक्‍टरों के मुताबिक गर्भवती महिलाओं का बिना चिकित्‍सीय सलाह के हेयर डाई का इस्‍तेमाल नहीं करना चाहिए। हेयर कलर आपकी सेहत के साथ ही नवजात को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
परमानेंट हेयर कलर कराने के बाद कई बार लोगों में त्‍वचा संबंधी परेशानियों को देखा गया है। इसलिए आप स्‍थायी हेयर कलर की बजाय टेम्‍परेरी कलर कराएं तो बेहतर होगा।
बालों को कलर कराते समय यह सुनिश्‍चित कर लें कि कौन सा कलर आपके बालों के लिए सही रहेगा, इस मामले में जरा सी लापरवाही आपके अच्छे बालों को नुकसान पहुंचा सकती है।
बालों को कलर करवाने से पहले आपको एलर्जी का भी ध्यान रखना चाहिए, कई बार कुछ कलर या डाई बालों को नुकसान पहुंचा सकती है। ऐसे में यदि आपको अमोनियायुक्‍त डाई सूट न करें तो आप प्रोटीन युक्‍त डाई का प्रयोग भी कर सकते हैं। इसके लिए आप हेयर एक्सपर्ट या ब्यूटी पार्लर में जाकर परामर्श भी ले सकते हैं।
हेयर कलर कराने वालों को कुछ समय बाद त्वचा संबंधी दिक्कतों जैसे बालों की कोमलता में कमी, बाल जल्दी सफेद होना आदि का भी साममा करना पड़ता है। हेयर कलर में मिला अधिक अमोनिया बालों के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इससे आपके सिर से सारे बाल भी गायब हो सकते हैं।
बालों को घर पर कलर करने के दौरान ब्रश और हाथों में दस्तानों का प्रयोग जरूर करें और अपनी आखों का खासतौर पर ध्यान रखें। यह आपकी आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए पहली बार किसी अनुभवी या
प्रोफेशनल व्यक्ति से कलर करवाना चाहिए।
बालों को कलर करने से पहले उन्हें धोकर सुखा लें और बालों को कंघी के एक सिरे से उठाते हुए कलर करें। इससे आपके बालों के टूटने का खतरा कम रहेगा।
यदि आपकी दिनचर्या व्यस्त हैं तो आपको हल्‍का हेयर कलर इस्तेमाल करना चाहिए। इससे आपके बालों को ज्‍यादा नुकसान नहीं होगा।
साभार- आेनली माई हेल्थ डॉटकाम

मिलिए अपनी सेहत के रखवाले से- रेनु दत्त

आंवले के नियमित उपयोग से कई शारीरिक समस्याएं ठीक की जा सकती है। आंवले को कच्चा, सुखाकर या जूस निकाल कर इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें किसी तरह के केमिकल नहीं मिले होते है इसलिए स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। बात करते हैं इसके गुणों के बारे में।
तनाव या नींद नहीं आने की समस्या में इसका सेवन लाभदायक होता है।
आँखों की ज्योति के लिए और चश्मा हटाने में बहुत लाभदायक है।
हमारे शरीर में बहुत सारे हानिकारक तत्व इक्ट्ठे हो जाते हैंं और इसके सेवन से उन्हें बड़ी आसानी से बाहर किया जा सकता है।
लीवर और ब्लैडर को सही तरीके से काम करने में मदद करता है इसके लिए आप रोजाना सुबह खाली पेट आंवले के रस का उपयोग करें।
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इसके सेवन से मेटाबोलिज्म में सुधार आता है और मोटापे को भी कंट्रोल करने में मदद मिलती है।
इसका सेवन रोगप्रतिरोधक क्षमता को ब-सजय़ा देता है जिससे रोगों से बचाव की क्षमता में वृद्धि होती है।
इसका सेवन बालों के लिए वरदान हो सकता है।
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चुकंदर के सेहत के लाभ
चुकंदर के रूप में प्रकृति ने हमारे शरीर की जरुरत के अनुसार हर तरह के गुणों से भरपूर फल हमें दिया है। इसकी सबसे खास बात है कि इस फल को एनीमिया में सबसे अधिक गुणकारी माना जाता हैै।
इसके अंदर प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है इसलिए यह उर्जा का बेहतरीन स्त्रोत है। कार्बोहाइड्रेट हमारे शरीर के ऊर्जा के स्तर में इजाफा करता है जिसकी वजह से हमे थकान की समस्या नहीं होती है।
सफेद चुकंदर का इस्तेमाल फोड़े और जलन जैसी समस्या में भी किया जा सकता है। इसके बेतरीन स्वास्थ्य लाभ के लिए सफेद चुकंदर को पानी में उबालकर और छानकर अलग कर लें और उसका इस्तेमाल फोड़े और मुहांसे के लिए कर सकते हैं।
खसरा और बुखार की वजह से हो सकता है आपकी त्वचा खराब हो गयी हो तो चुकंदर के इस्तेमाल से आप उसे भी ठीक कर सकते है।
इस से हमारे पाचनतंत्र को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाले कारकां को उतेजना मिलती है जिसकी वजह से पाचनतंत्र भी बेहतर हो जाता है।
इसमें आयरन की भी प्रचुर मात्रा होती है इसको खाने से हमारे खून के अंदर पाए जाने वाली लाल रक्त
कोशिकाएं एक्टिव रहती हैं। एनिमिया होने पर डाक्टर भी इसका सेवन करने की सलाह देते हैं। रक्त की व्याधिओं के लिए यह सबसे उत्तम फल है। जिस से शरीर में नया खून बनने की क्रिया को बल मिलता है।
इसके सेवन से शरीर पर आई विभिन्न चोट और घाव भरने में भी मदद मिलती है और हमारी चोट जल्दी ठीक हो जाती है।
कब्ज जैसे रोगों में भी यह लाभदायक है।
रक्तचाप को नियमित करने में भी यह सहायक होता है।
चुकंदर का सेवन बवासीर में भी उतम होता है।
यह न केवल आपकी आंतरिक शक्ति को ब-सजय़ाता है साथ ही मांसपेशियों को भी मजबूत बनाता है। के लिए भी सही होता है।
इसमें प्रचुर मात्र में पोटेशियम, मैग्नेशियम, आयरन, विटामिन बी6 सी, फोलिक एसिड भी होता है । इसके अलावा इसमें प्रचुर मात्रा में शक्तिदायक एंटीआक्सीडेंट होते हैं जो आपके शरीर को विभिन्न रोगों से लड़ने में आपकी मदद करते है।
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फूल गोभी और पत्ता गोभी से बनाएं लजीज पकवान -नीरा कुमार

पत्ता गोभी, फूल गोभी और ब्रोकली बहुत पौष्टिक होते हैं। लेकिन आप ज्यादातर इनकी सब्जी ही बनाती होंगी। अगर आप चाहें तो इनसे कई तरह के स्वादिष्ट-चटपटे व्यंजन भी बना सकती हैं। इसीलिए इस बार हम आपके लिए लेकर आए हैं, पत्ता गोभी, फूल गोभी और ब्रोकली से बने कुछ डिफरेंट डिशेज की रेसिपी।
चटपटी पत्ता गोभी 
 सामग्रीबारीक कटी पत्ता गोभी: 3 कप
हरे मटर के दाने: 1 कप
बारीक कटा गाजर: 1/2 कप
काली मिर्च: 15 नग
चीनी: 1/2 टी स्पून
मस्टर्ड ऑयल: 2 टेबल स्पून
हल्दी पावडर: 1/2 टी स्पून
बारीक कटा अदरक-हरी मिर्च: 2 टी स्पून
मेथी दाना: 1 टी स्पून
नींबू का रस: 1 टी स्पून
नमक: स्वादानुसार
कटा हरा धनिया: 1 टेबल स्पून
विधिएक कड़ाही में तेल गर्म करें।
उसमें मेथीदाने का तड़का लगाएं, फिर कुटी काली मिर्च, अदरक, हरी मिर्च, हल्दी पावडर, मटर और गाजर डालकर तीन मिनट तक ढंक कर मंदी आंच पर पकाएं।
मटर और गाजर गलने पर कटी पत्ता गोभी डाल कर मिलाएं। अब नमक और चीनी डालें।
पांच मिनट तक मंदी आंच पर ढंक कर पकाएं। ध्यान रहे पत्ता गोभी थोड़ी क्रिस्पी रहनी चाहिए।
अच्छी तरह भूनने के बाद नीबू का रस डाल कर गैस बंद कर दें।
सर्विंग डिश में सब्जी पलटें और ऊपर से कटा हरा धनिया बुरक कर सर्व करें।
फूल गोभी कोरमा
 सामग्रीकद्दूकस की हुई फूल गोभी: 3 कप
बारीक कटी अदरक-हरी मिर्च: 2 टी स्पून
मेथी दाना: 1/2 टी स्पून
हल्दी पावडर: 1/4 टी स्पून
लाल मिर्च पावडर: 1/2 टी स्पून
धनिया पावडर: 1 टी स्पून
गर्म मसाला: 1/2 टी स्पून
दरदरी कुटी सौंफ: 1/2 टी स्पून
रिफाइंड ऑयल: 1 टेबल स्पून
नमक: स्वादानुसार
थोड़ा सा कटा हरा धनिया: सजाने के लिए
विधिकड़ाही में तेल गर्म करके मेथी दाने का तड़का लगाएं, फिर अदरक हरी मिर्च, फूल गोभी डालकर कुछ देर पकाएं।
हल्दी पावडर, धनिया पावडर, मिर्च पावडर और नमक डालकर एकसार करें।
गोभी गलने पर गर्म मसाला, दरदरी सौंफ और हरा धनिया डालकर अच्छी तरह मिक्स करें।
नान या परांठे के साथ फूल गोभी कोरमा सर्व करें।
नीरा कुमार जानी मानी कुकरी एक्सपर्ट हैं।

चाय के साथ फैशन की जुगलबंदी- डा. अनुजा भट्ट

लोककलाओं का विशेष महत्व हैं। इस दौर में फैशन और फिल्म से जुड़े हर व्यक्ति की निगाहें लोककला को लेकर बेहद संजीदा है। और जब बात अपने देश की हो तो यह तो वैसे भी अपनी विविध संस्कृतियों के लिए जाना जाता है। अलग अलग पहनावा, आभूषण, खान पान, संगीत, भाषा का अद्भुत समागम हमें सबसे जोड़कर रखता है। समय समय पर बनने वाली क्षेत्रीय फिल्में, रंगमंच, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सिनेमा इसे फैशन के साथ जोड़कर पूरी दुनिया के लिए सहज सुलभ बना देते हैं। सिने तारिक प्रियंका चोपड़ा जब असम घूमने गई तो उन्होंने वहीं का परंपरागत परिधान मेखला-चादर पहना और वहीं के पारंपरिक आभूषण भी पहने। उनकी यह तस्वीर सोशल मीडिया पर छाई रही। यह देखकर यह जानना मुझे दिलचस्प लगा कि आखिरकार असम का फैशन ट्रेंड क्या है। किस तरह के परिधानों की मांग है और आभूषणों की क्या- क्या खास विशेषताएं हैं। वैसे तो असम अपनी संस्कृति , पारंपरिक नृत्य बिहू और अनेक कलाओं के लिए प्रसिद्ध है, परंतु इसकी अनोखी वस्त्र कला लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। असम का रेशमी कपड़ा तो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है जिसे मूंगा सिल्क के नाम से जाना जाता है।

जब से साड़ी पहनने के तोर तरीके में बदलाव आया है तब से यह युवाओं के आकर्षण का केंद्र भी बन गया है। आज साड़ी कई तरह के पहनी जा रही है। भारत में तो वैसे भी साड़ी कई तरह से पहनी जाती रही हैं पर अब इसे पहनने का अंदाज परंपरा से एकदम जुदा है। कहीं यह लैगिंग के साथ ते कहीं सलवार और जींस के साथ पहली जा रही रही है। साड़ी का हर अंदाज बहुत खूबसूरत है। यह एक ऐसा भारतीय वस्त्र है, जिसे हर कद-काठी की महिला बड़ी ही सहजता से पहन सकती है और ख़ूबसूरत लग सकती है।

असम की साड़ी पहनने का भी अंदाज अपने आप में अलग है। इसमें पल्लू अलग से होता है जिसे चादर कहते हैं। मेखला को साया यानी पेटीकोट के साथ पहना जाता है और साड़ी की ही तरह प्लेट्स यानी चुन्नटें डाली जाती हैं। पर इसके पल्लू को इसके साथ जेड़ना पड़ता है। आइए जानते हैं इस २-पीस साड़ी के विषय में कुछ विशेष तथ्य।

इस पारंपरिक साड़ी को विशेषकर रेशमी धागों से बुना जाता है, हालांकि कभी कभी हमे यह साड़ी कपास के धागों से बुनी हुई भी मिल सकती है, तो कभी कभी इसे कृत्रिम रेशों से भी बुना जाता है। इस साड़ी पर बनी हुई विशेष आकृतियाँ (डिज़ाइन्स) को केवल पारंपरिक तरीक़ों से ही बुना जाता है, तो कभी कभी मेखला और चादर के छोर पर सिला जाता है। इस पूरी साड़ी के तीन अलग अलग हिस्से होते हैं, ऊपरी हिस्से के पहनावे को चादर और निचले हिस्से के पहनावे को मेखला कहते हैं। “मेखला” को कमर के चारों ओर लपेटा जाता है। “चादर” की लंबाई पारंपरिक रोज़मर्रा में पहने जाने वाली साड़ी की तुलना में कम ही होती है। चादर साड़ी के पल्लू की तरह ही होती है, जिसे मेखला के अगल-बगल में लपेटा जाता है। इस २-पीस साड़ी को एक ब्लाउज़ के साथ पहना जाता है। एक विशेष तथ्य यह भी है, कि मेखला को कमर पर लपेटते वक़्त उसे बहुत से चुन्नटों(प्लीट्स) में सहेजा जाता है और कमर में खोंस लिया जाता है। परंतु, पारंपरिक साड़ी पहनने के तरीक़े के विपरीत, जिसमें चुन्नटों को बाएँ ओर सहेजा जाता है, मेखला की चुन्नटों को दायीं ओर सहेजा जाता है।

फैशन डिजाइनर नंदिनी बरूआ कहती हैं कि वैसे तो यह पारंपरिक २-पीस साड़ी आज भी आसाम के हर छोर में पहनी जाती है पर जब से यह फैशन वीक जैसे कार्यक्रमों का हिस्सा बनी इसकी मांग बढ़ गई है। अब इसमें विभन्न तरह के रंगों और रेशों का प्रयोग किया जा रहा है। सूती और सिल्क के कपड़े के अलावा अब और भी तरह के कपड़ों का प्रयोग हम कर रहे हैं। स्थानीय रेशमी धागों के अलावा बनारसी रेशम, कांजीवरम और शिफॉन के रेशों का भी प्रयोग भी आज कल होने लगा है। जोर्जेट,क्रेप, शिफॉन से बनी २- पीस साड़ियों के अत्यधिक चलन की वजह यह है कि यह पहनने में हल्के होते हैं साथ ही इनकी कीमत भी कम होती है।

सिर्फ साड़ी ही नहीं अब बुनकरों द्रारा तैयार किए गए परंपरागत कपड़ों से आधुनिक परिधान भी बनाए जा रहे हैं जिसमें स्कर्ट से लेकर गाउन, जैकेट, सलवार सूट, फ्राक शामिल है। अंतर इतना है कि इसके मोटिफ एकदम पारंपरिक है। यही इसकी अलग पहचान है।

परिधान हों और उसके साथ आभूषण न हों तो सारी सजधज का मजा किरकिरा हो जाता है इसलिए यदि आप असम के फैशन को अपना रहे हैं तो साथ में वहीं के परंपरागत लेकिन आधुनिक आभूषण पहनें।

असम में स्वर्ण आभूषणों की एक मनमोहक परंपरा रही है। असमी आभूषणों में वहां की प्रकृति, प्राणी और वन्य जीवन के अलावा सांगीतिक वाद्यों से भी प्रेरणा ग्रहण की जाती है। गमखारु एक प्रकार की चूडियां होती हैं जिनपर स्वर्ण का पॉलिश होता है और खूबसूरत फूलों के डिजाईन होते हैं। मोताबिरी एक ड्रम के आकार का नेकलेस होता है जिसे पहले पुरुषों द्वारा पहना जाता था लेकिन अब इसे स्त्रियां भी पहनती है। असम के उत्कृष्ट स्वर्ण आभूषणों की कारीगरी मुख्य रूप से जोरहाट जिले के करोंगा क्षेत्र में होती है, जहां प्राचीन खानदानों के कुशल कलाकार के वंशजों की दुकानें है. यह जानना रोचक है कि असम के आभूषण पूरी तरह हस्तनिर्मित होते हैं, भले ही वे स्वर्ण के हों या अन्य धातुओं के. यहाँ के पारंपरिक आभूषणों में डुगडुगी, बेना, जेठीपोटई, जापी, खिलिखा, धुल, और लोकापारो उल्लेखनीय हैं. ये आभूषण प्रायः 24 कैरट स्वर्ण से बनाए जाते है।
कंठहार – गले में पहनने वाले हार की विस्तृत श्रृंखला यहां मिलेगी जिसके अगल अलग नाम है। हर नाम की अपनी एक खास विशेषता है। हार को मोती की माला में पिरोया जाता है। यह महीन मोती काला, लाल, हरा, नीला,सफेद जैसे कई रंगां मे उपलब्ध है। बेना, बीरी मोणी, सत्सोरी, मुकुट मोणी, गजरा, सिलिखा मोणी, पोआलमोणी, और मगरदाना जैसे नाम कंठहार के लिए ही है।

अंगूठी-इसी तरह अंगूठी के भी कई नाम हैं। जैसे- होरिन्सकुआ, सेनपाता, जेठीनेजिया, बखारपाता, आदि।

कंगन- गमखारुस, मगरमुरिआ खारु, संचारुआ खारु, बाला, और गोटा खारु. शादी ब्याह में पहने जाने वाले खास वैवाहिक आभूषणों के नाम हैं

ठुरिया, मुठी-खारु, डूग-डोगी, लोका-पारो, करूमोणी, जोनबीरी, ढोलबीरी, गाम-खारु, करू, बाना, और गल-पाता।

असम का एक सबसे प्रचलित और उल्लेखनीय आभूषण है, कोपो फूल (कर्णफूल). इसकी बनावट ऑर्किड से मिलती-जुलती है, जबकि इसका बाहरी भाग दो संयुक्त छोटी जूतियों के आकार का होता है, जिसकी बनावट फूलों जैसी होती है। गामखारु, गोलपोटा और थुरिया सबसे मंहगे आभूषण माने जाते हैं।

संक्षेप में कहें तो असम के फैशन में अभी भी वहां की लोककला के गूंज सुनाई देती है। ढोलक और वीणा के स्वर के साथ तालमेल बिठाती आभूषण की खनक भी सुनाई देती है। कृषि के औजारों को आभूषण के डिजाइन में ढालना और संगीत से सुर में बांध देना यही है असम का फैशन...
मेरा यह लेख आज के जनसत्ता में प्रकाशित है
लिंक
http://epaper.jansatta.com/1827968/लखनऊ/23-September-2018#page/16/1


जीवन में लाएगा बदलाव यह दाे अक्षर का शब्द- दर्शना बांठिया

कहते है क्षमा मांगने वाले से बड़ा क्षमा करने वाला होता है।
क्षमा वाणी के दिन हम सब से क्षमा मांगते है ,पर वास्तव में क्षमा क्या है ......इससे ही व्यक्ति अनजान रहता है ।
क्षमा मेरे नजरिए से क्या है :-
क्या है क्षमा......?
किसी दूसरे की गलतियों की लगी धूल को अपने दिल की परत से साफ कर देना...।
या किसी पराये द्वारा भी की गयी भूल को हंस कर टाल देना और उसे भी अपना बना लेना
क्या है क्षमा .......?
अपने मन में किसी कारण वश भरे हुए गुबार को निकाल कर हल्के और आनंदित हो जाना।
या अपने अंदर पैदा हुयी अंहकार की आग को,विनम्रता रुपी जल से धो डालना।।
क्या है क्षमा........?
किसी बड़े द्वारा दिये हुये अपमान के घूंट को ये सोचकर जी जाना कि वो आपसे बडे़ है ,और किसी छोटे द्वारा की गयी उद्दण्डता को नजरअंदाज कर अपने बड़प्पन को साबित करना।।

कहने को तो सिर्फ दो अक्षर का ये शब्द है ,पर अगर इसे गहराई से समझ लिया जाये और जीवन में उतारने का प्रयास कर लिया जाये तो इंसान अपने मनोवैज्ञानिक स्तर को बहुत ऊपर उठा सकता है ,न जाने कितने अपराध होने से पहले ही रूक सकते है,न जाने कितने टूटे रिश्तें फिर से जुड़ सकते है।।
तो आइए इस बार हम सभी से हृदय से वास्तविक क्षमा याचना करते है।

स्मृति शेष- विष्णु खरे की दो कविताएं

हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि और हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष विष्णु खरे अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका निधन साहित्य जगत में एक अपूरणीय क्षति है। अपने विशद अध्ययन और विपुल साहित्य से हिंदी जगत को अनमोल संपदा देने वाले खरे की ये हैं 2 प्रमुुख कविताएं...

कहो तो डरो...
कहो तो डरो कि हाय यह क्यों कह दिया
न कहो तो डरो कि पूछेंगे चुप क्यों हो

सुनो तो डरो कि अपना कान क्यों दिया
न सुनो तो डरो कि सुनना लाजिमी तो नहीं था

देखो तो डरो कि एक दिन तुम पर भी यह न हो
न देखो तो डरो कि गवाही में बयान क्या दोगे

सोचो तो डरो कि वह चेहरे पर न झलक आया हो
न सोचो तो डरो कि सोचने को कुछ दे न दें

पढ़ो तो डरो कि पीछे से झाँकने वाला कौन है
न पढ़ो तो डरो कि तलाशेंगे क्या पढ़ते हो

लिखो तो डरो कि उसके कई मतलब लग सकते हैं
न लिखो तो डरो कि नई इबारत सिखाई जाएगी

डरो तो डरो कि कहेंगे डर किस बात का है
न डरो तो डरो कि हुक़्म होगा कि डर

अक्स.....

आईने में देखते हुए
इस तरह इतनी देर तक देखना
कि शीशा चकनाचूर हो जाये-
फिर भी इतना मुश्किल नहीं

वह शीशे में
यूँ और इतना देखना चाहता है
कि बिल्लौर में तिड़कन तक न आये
सिर्फ़ जो दिख रहा है वह पुर्जा-पुर्जा हो जाए
और जो देख रहा है वह भी
फिर भी एक अक्स बचा रहे
जिसका वह है उसे जाने कैसे देखता हुआ
अमर उजाला से साभार.

सुंदरता के राज दादी मां के पास - अनामिका अनूप तिवारी

खूबसूरत स्वस्थ त्वचा की चाह किसे नहीं होती, चाहे स्त्री हो पुरुष खूबसूरत दिखने की चाह सबके अंदर होती है, महिलाएं हज़ारों रूपये ब्यूटी पार्लर और महंगे ब्यूटी प्रॉडक्ट्स में खर्च कर देती है लेकिन फिर भी संतुष्ट नहीं होती, लेकिन कुछ घरेलू उपायों से आप की त्वचा मुलायम, चमकदार और स्वस्थ हो सकती है।
"उबटन" सौंदर्य निखारने की सबसे प्राचीनतम विधि हैं, जिसे घरेलु स्त्रियों से लेकर रानी महारानियाँ भी अपनी सौंदर्य को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करती थी।
"उबटन" का नाम सुनते ही दादी नानी के बनाये उबटन की याद आ जाती है, पहले शादी ब्याह में एक दो महीने पहले ही होने वाली दुल्हन को उबटन लगाया जाता था जिससे की विवाह वाले दिन दुल्हन चाँद का प्रतिरूप लगे।
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पीली सरसों या तिल का उबटन-सरसो का उबटन बहुत प्राचीन समय से चली आ रही है।

पीली सरसों या तिल को हलके आंच पर भून कर दूध के साथ पीस कर बारीक पेस्ट बना ले।

इस पेस्ट को चेहरे, हाथ एवं पैरों में लगायें सूखने पर हलके हाथों से छुड़ाये।
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सरसो या तिल का उबटन- शुष्क त्वचा पर चमत्कारिक रूप से असर करता है, चेहरे की नमी बनाए रखता है और त्वचा को चमकदार और मुलायम बनाये रखता है।
फूलों का उबटन- फूलों का उबटन प्राचीन समय में रानी महारानियोँ के लिए विशेष रूप से तैयार किये जाते थे।

इस उबटन को बनाने के लिए, गुलाब, गेंदे, लैवेंडर और पारिजात के फूलों को सुखा कर पाउडर बना लेते है।

इस मिश्रण को गुलाब जल, कच्चा दूध या दही के साथ पेस्ट बना कर चेहरे पर लगाये सूखने पर चेहरें को ठंडे पानी से धो ले।

फूलों का उबटन विशेषतः मिश्रित त्वचा के लिए ज्यादा लाभकारी है। ये खुशबुदार उबटन चेहरे पर निखार के साथ कसाव भी लाती है, चेहरे के दाग धब्बों को भी दूर करने में सहायक है।
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दही बेसन का उबटन- दही बेसन का उबटन भी दादी नानी के ज़माने से चली आ रही है।

दही, बेसन और हल्दी का गाढ़ा लेप बनाये उसमे 2/3 बुँदे तिल का तेल मिलाये और इस लेप को चेहरे और हाथ, पैरों पर लगाये सूखने पर उँगलियों की सहायता से मसल कर छुड़ा ले जिस से की त्वचा पूरी तरह से साफ़ हो जायें इसके बाद गुनगुने पानी से अच्छे से धो ले।

ये उबटन चेहरे को साफ, मुलायम और चमकदार बनाती है, चेहरे के दाग धब्बो को पूरी तरह से साफ़ कर त्वचा पर निखार लाती है।
संतरे और नींबू के छिलके का उबटन-यह उबटन हर प्रकार की त्वचा के लिए लाभकारी है।

ये उबटन चेहरे की झाई की समस्या, दाग, झुर्रियां और चेहरे पर आयी कालिमा को दूर करता है।

इसको बनाने के लिए संतरे और नींबू के छिलकों को धूप में सुखा ले, अच्छे से सुख जाने पर महीन पाउडर बना ले।

हर रोज़ इस मिश्रण को कच्चे दूध या गुलाब जल में पेस्ट बना कर चेहरे पर लगाये सूखने पर हलके गुनगुने पानी से चेहरे को धो ले।

इस उबटन को आप नियमित रूप से लगा सकती है, अगर त्वचा पर मुहांसे की समस्या है तो इस में नीम की पत्तियों को सुखा कर पावडर बनाये और फिर संतरे ,नींबू के मिश्रण में मिला कर लगाये।

उबटन स्नान करने से 1 घंटा पहले लगाये या फिर रात में सोने से पहले भी लगा सकते है।

उबटन का इस्तेमाल नियमित रूप से करने से त्वचा में निखार तो आता है त्वचा संबंधी समस्याओं से भी मुक्ति मिलती है।

साबुन की जगह उबटन को दे और बनाये खुद को खूबसूरत और स्वस्थ त्वचा की मालकिन।
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काैन से तेल में खाना पकाती हैं आप- प्रीति बिष्ट

हम भारतीय जिस तरह के भोजन का सेवन करते है उसे बिना तेल के बनाना संभव नहीं है। अक्सर बिना तेल के भोजन का सेवन हम तभी करते है जब हमारा स्वास्थ्य ठीक न हो या शुगर जैसी स्वास्थ्य समस्या में किया जाने वाला कोई परहेज़ न हो। सरल भाषा में तेल न सिर्फ हमारे भोजन को बल्कि हमारे स्वास्थ्य पर भी सीधा असर डालता है। इसलिए सही तेल का चुनाव करना बेहद जरूरी है। आइए जानते हैंः

खाना बनाने की पद्धति चाहे जैसी हो हम उसमें कभी थोड़ा तो कभी ढेर सारा तेल इस्तेमाल अवश्य करते हैं। तेल भोजन के स्वाद को तो बढ़ाता है, साथ ही यह हमारे स्वास्थ्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आपको यकीन नहीं होगा मगर यह सच है कि डायटीशियन भी डायटिंग करने वालों को तेल का सेवन एकदम बंद करने की सलाह कभी नहीं देते है। हालांकि उन्हें तेल का सेवन बहुत कम मात्रा में करना होता है।
तेल न सिर्फ शरीर को एनर्जी प्रदान करता है बल्कि ये फैट में अवशोषित होने वाले विटमिन्स जैसे - के, ए, डी, ई के अवशोषण में सहायक होता है। ये प्रोटीन और कार्बोहाइडेट के मैटाबोलिज़्म को भी तेज़ कर इनके पाचन में मदद करता है।
अति है खराब: ़
चाहे कोई चीज आपके लिए कितनी ही अच्छी क्यों न हो मगर अति किसी भी चीज़ की अच्छी नहीं होती है। तेल का अधिक मात्रा में सेवन करने से एलडीएल यानी खराब कोलेस्टाॅल का स्तर  बढ़ाता है जोकि हृदय संबंधी समस्याओं को जन्म देता है। इसलिए तेल का संतुलित मात्रा में सेवन करे।
सही का चुनाव:
आप जिस तरह से खाना बनाना चाहते है तेल का चुनाव उसी के अनुसार करें।
तलने के लिए - जिस तेल को आप तेज आंच पर भी पका सकते है उसका प्रयोग हमेशा तलने के लिए करना चाहिए। रिफाइंड आॅयल जैसे सूरजमुखी आदि का प्रयोग करें।
हल्का फ्राई और खाना बनाने के लिए - आॅलिव आॅयल, मूंगफली या राई का तेल प्रयोग कर सकते है।
आवश्यक फैटी एसिड:
तेल में मोनोसैच्युरेटिड फैट्स या पाॅलीअनसैच्युरेटिड फैट्स होते है। मोनोसैच्युरेटिड फैट्स शरीर में एलडीएल यानी खराब कोलेस्टाॅल को कम करता है और एचडीएल यानी अच्छे कोलेस्टाॅल को बढ़ाता है। आॅलिव आॅयल, सरसों, मूंगफली का तेल आदि इसी श्रेणी में आते है। इसके अलावा पाॅलीअनसैच्युरेटिड फैट्स एलडीएल के स्तर को तो कम करता ही है मगर यदि इसका सेवन अधिक किया जाएं तो ये एचडीएल को भी कम करने लगता है। इसमें सोयाबीन, बिनौला, तिल का  तेल आदि आते है।
यदि आप चाहते है कि आप संतुलित तेल का चुनाव करें तो आपको दोनों प्रकार के तेलों का चुनाव करना होगा। हर सप्ताह बदल-बदल कर इनका प्रयोग करें। पर ध्यान रहें कि इन दोनों  तेलों को एक साथ न मिलाएं।
महत्वपूर्ण तथ्य:
तेज आंच पर तेल को न जलाएं। यदि आप इस तलने के लिए प्रयोग किए गए तेल का दुबारा प्रयोग करना चाहते हे तो इसे छान लें और इसे ठंडा करने बाद ही स्टोर करें। अगर आप तेल को छानकर साफ नहीं करते है तो इसमें बचे खाने के अवशेष से रैनसिडिटी हो सकती है। ऐसे तेल का प्रयोग करने से कैंसर जैसी समस्या के होने की आशंकाएं बढ़ सकती है।
तेल की उम्र बढ़ाने के लिए उसे एक विशेष प्रक्रिया से तैयार किया जाता है। जिसमें तेल में हाइड्रोजन को मिलाया जाता है। इसे हाइड्रोजैनेटिड या पार्शली हाइड्रोजैनेटिड आॅयल कहा जाता है। इसका प्रयोग करने से एलडीएल का स्तर बढ़ता है और हार्ट अटैक आने की आशंकाएं बहुत बढ़ जाती ह। इसलिए फूड लेबल देखकर ही इनका चुनाव करें।
रिफाइंड आॅयल का अर्थ है तेल को ऐसी प्रक्रिया से निकालना जिससे तेल का स्वाद, रंग साफ हो जाएं। और जब इसकी अशुद्धियां दूर की जाती है तब इसे फिल्टर किया जाता है। जब इसे दो बार फिल्टर किय जाता है तब इसे डबल फिटर्ड आॅयल कहा जाता है। मगर इस पूरी प्रक्रिया में तेल के मिनरल, बीटाकैरोटिन और विटमिन ई भी नष्ट हो जाते है। अनरिफाइंड आॅयल प्राकृतिक होते है और इनमें उन बीज का स्वाद भी रहता है जिनसे इन्हें बनाया गया है। मगर कई बार इनका प्रभाव इतना अधिक होता है कि सब्जी या भोजन में तेल के स्वाद आने लगता है।
आप कौन से तेल का चुनाव करेंगे ये अब आप पर है।

चाट के शाही अंदाज- नीरा कुमार

चाट के नाम पर मुँह में पानी आना जैसे मुहावराें का सही अर्थ पता चलता है ताे इसकी लाेकप्रियता का अंदाज इस बात से लग जाता है कि गली का नाम ही पड़ जाता है चाट वाली गली। साइनबाेर्ड पर अक्सर आपने देखा- पढा हाेगी चाट वाली गली के सामने। आज में आपकाे एेसी ही कुछ खास चाट की विधि बता रही हूं जाे आपका स्वाद और सेहत दाेनाें बदल देंगे।
मैक्सिकन कार्न चाट

सामग्री :
उबले कार्न 1 कप
बारीक कटी लाल पत्तागोभी 2 बड़े चम्मच
बारीक कटी हरी बंदगोभी 2 बड़े चम्मच
बारीक कटी प्याज 1 बड़ा चम्मच
बारीक कटी हरी शिमलामिर्च 1 बड़ा चम्मच
बारीक कटा टमाटर 1 बड़ा चम्मच
टोमैटो कैचप 1 बड़ा चम्मच, नमक
चाट मसाला और जीरा पाउडर स्वादानुसार
थोड़ी सी सेकी हुई पापड़ी या खाखरा

विधि :
उबले कार्न में उपरोक्त लिखी सभी सामग्री मिलाएं और ऊपर से सेकी हुई पापड़ी या खाखरा छोटे टुकड़ों में तोड़ कर डालें।
बढिय़ा मैक्सिकन चाट तैयार है।


मटर की चाट

सामग्री : सफेद मटरा 250 ग्राम
खाने वाला सोडा 1/4 छोटा चम्मच
हल्दी पाउडर 1/4 छोटा चम्मच
दालचीनी 1 इंच टुकड़ा
साबुत बड़ी इलायची 1 नग
लौंग 4 नग
बारीक कतरा प्याज ½ कप
बीजरहित क्यूब में कटा टमाटर ½ कप
बारीक कतरा अदरक
हरीमिर्च 1 बड़ा चम्मच
इमली का गाढ़ा पल्प 2 बड़े चम्मच
बारीक कतरा हरा धनिया 2 बड़े चम्मच
चाट मसाला
नमक
जीरा पाउडर
लालमिर्च पाउडर स्वादानुसार
हरी चटनी
मीठी चटनी आवश्यकतानुसार
विधि :
मटरा को साफ करके पानी से धोएं और चार कप पानी व खाने वाले सोडे के साथ रात भर भिगो दें।
सबेरे पानी से अच्छी तरह धोएं।
मटरा में दो कप पानी, लौंग, इलायची, दालचीनी, हल्दी पाउडर और थोड़ा सा नमक डालकर प्रेशरकुकर में गलने तक पकाएं।
इस मटर में से दालचीनी, लौंग और बड़ी इलायची निकाल लें।
बाकी सभी सामग्री मिलाएं और सर्विंग प्लेट में मटरा रखें, ऊपर से खट्टी मीठी चटनी डालकर सर्व करें।
नीरा कुमार एक जानी मानी कुकरी विशेषज्ञ हैं। कुकरी से जुड़े सवाल आप हमारे मैं अपराजिता के पेज पर पूछ सकते हैं। आपके सवालाें का स्वागत हैं।
mainaparajita@gmail.com

मनाेविज्ञान से मनाेरंजन तक शबाना की चर्चा हर तरफ

जन्मदिन मुबारक हाे

शबाना आजमी हिंदी सिनेमा की ऐसी मंझी हुई अदाकारा हैं जो खुद को हर अभिनय के अनुरूप उसी साँचे ढल जातीं हैं। उन्होंने हिंदी फिल्मों में तरह तरह के रोल अदा किये हैं। वह आज भी फिल्मों में सक्रिय हैं। एक अभिनेत्री होने के साथ-साथ शबाना आजमी सामाजिक कार्यों में भी समान रूप से जुडी रहतीं हैं। शबाना आजमी हिंदी सिनेमा के मशहूर लेखक,संगीतकार जावेद अख्तर की पत्नी हैं।


उनके पिता मशहूर शायर, कविकार थे। उनकी माँ का नाम शौकत आजमी था, जोकि इंडियन थिएटर की आर्टिस्ट थीं। मां से विरासत में मिली अभिनय-प्रतिभा को सकारात्मक मोड़ देकर शबाना ने हिन्दी फिल्मों में अपने सफर की शुरूआत की।

पढ़ाई
शबाना ने अपनी शुरुआती पढ़ाई क़्वीन मैरी स्कूल मुंबई से की है। उन्होंने मनोविज्ञान (Psychology) में स्नातक किया है. उन्होंने स्नातक की डिग्री मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से ली है. शबाना आजमी ने एक्टिंग का कोर्स फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टिटीयूट ऑफ इंडिया (Film and Television Institute of India), पुणे से किया है।

शादी
शबाना आजमी की शादी हिंदी सिनेमा के मशहूर संगीतकार जावेद अख्तर से हुई है। जावेद अख्तर पहले से शादी-शुदा थे, लेकिन शबाना के प्यार में उन्होंने अपनी पहली पत्नी हनी ईरानी को तलाक देकर अभिनेत्री शबाना से निकाह कर लिया। और उनकी यह जोड़ी आज भी लोग के लिए मिसाल है।

करियर
शबाना आजमी ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत वर्ष 1973 में श्याम बेनेगल की फिल्म 'अंकुर' से की थी। इस फिल्म की सफलता ने शबाना आजमी को बॉलिवुड में जगह दिलाने में अहम भूमिका निभाई। अपनी पहली ही फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल हुआ।

फिल्म अकुंर के बाद 1983 से 1985 तक लगातार तीन सालों तक उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया. अर्थ, खंडहर और पार जैसी फिल्मों के लिए उनके अभिनय को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया।

उस दौर में शबाना ने खुद को ग्लैमरस अभिनेत्रियों की भीड़ से स्वयं को अलग साबित किया। अर्थ, निशांत, अंकुर, स्पर्श, मंडी, मासूम, पेस्टॅन जी में शबाना आजमी ने अपने अभिनय की अमिट छाप दर्शकों पर छोड़ी। अमर अकबर एंथोनी, परवरिश, मैं आजाद हूं जैसी व्यावसायिक फिल्मों में अपने अभिनय के रंग भरकर शबाना आजमी ने सुधी दर्शकों के साथ-साथ आम दर्शकों के बीच भी अपनी पहुंच बनाए रखी।

प्रयोगात्मक सिनेमा के भरण-पोषण में उनका योगदान उल्लेखनीय है। फायर जैसी विवादास्पद फिल्म में शबाना ने बेधड़क होकर अपनी अभिनय प्रतिभा का प्रमाण दिया वहीं, बाल फिल्म मकड़ी में वे चुड़ैल की भूमिका निभाती हुई नजर आई। यदि मासूम में मातृत्व की कोमल भावनाओं को जीवंत किया तो वहीं, गॉड मदर में प्रभावशाली महिला डॉन की भूमिका भी निभाकर लोगो को हैरत मे डाल दिया। भारतीय सिनेमा जगत की सक्षम अभिनेत्रियों की सूची में शबाना आजमी का नाम सबसे ऊपर आता है।

प्रसिद्ध फ़िल्में
अंकुर, अमर अकबर अन्थोनी , निशांत, शतरंज के खिलाडी, खेल खिलाडी का,हिरा और पत्थर , परवरिश, किसा कुर्सी का, कर्म, आधा दिन आधी रात, स्वामी ,देवता ,जालिम ,अतिथि ,स्वर्ग-नरक, थोड़ी बेवफाई स्पर्श अमरदीप ,बगुला-भगत, अर्थ, एक ही भूल हम पांच, अपने पराये ,मासूम,लोग क्या कहेंगे, दूसरी दुल्हन गंगवा,कल्पवृक्ष, पार, कामयाब ,द ब्यूटीफुल नाइट, मैं आजाद हूँ, इतिहास,मटरू की बिजली का मंडोला।
 फिल्मी बीट से साभार

आपके बच्चे क्या आपके दाेस्त नहीं बन सकते- डॉ. अनुजा भट्ट

फाेटाे क्रेडिट-रचना चतुर्वेदी 
हर माता पिता अपने बच्चों के लिए जरूरत से ज्यादा करते हैं। वह यह सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि उनके बच्चे को कोई असुविधा न हो। वह सिर्फ अपने बच्चों से यही चाहते हैं कि उनका बच्चा उन्हें आदर सम्मान दें। लेकिन यह भी तभी संभव है जबकि आपकी अपने बच्चे के साथ गहरी आत्मीयता हो और इस आत्मीयता के लिए जरूरी है आप दोनों के बीच बेहतर संवाद और एक दूसरे के प्रति अटूट विश्वास।

परफेक्ट पेरेंटिग जैसी कोई चीज नहीं होती है। इसलिए पेरेंटिग के कोई सेट रूल नहीं होते। पेरेंट होना एक फुल टाइम जॉब है और बहुत मुश्किल भी। इस सफर में पेरेंटस और बच्चों दोनों के लिए सीखने का ही दौर चलता है। इसलिए आप अपनी और अपने बच्चे की जरूरत के अनुसार ही रूल सेट कीजिए और उसका पालन करिए और बच्चे से करवाइए भी।

 अपने बच्चे को अपना दोस्त बनाएं। ऐसी एक चीज ढ़ूढ़ने की कोशिश करें जहां पर आपके और बच्चे की पसंद एक हो।

 यदि आपका बच्चा जिद्दी हो तो उसके साथ नरम व्यवहार रखें क्योंकि उसके ऊपर किसी भी तरह की जोर जबरदस्ती नहीं चल सकती। इसके अलावा यह देखें कि समस्या कहां है । उसी के अनुसार कोई युक्ति निकालें कि कैसे आप उसे अपनी बात समझा सकते हैं।

 अपने बच्चे की पसंद नापंसद को ध्यान में रखकर ही कोई भी योजना बनाएं न कि अपनी पसंद उसके ऊपर थोपें।
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 बच्चे को अपने ऊपर हावी न होने दें। कई पेरेंटस यह शिकायत करते हैं कि वह बच्चों को हैंडल नहीं कर पाते और दबाव में आकर झुक जाते हैं। जब बात योजना को क्रियान्वित करने की हो तो अपने इरादे मजबूत रखें। यदि आपको लगता है कि बच्चा किसी भी चीज को पाने की जिद कर रहा है और वह चीज जरूरी नहीं है तो तुरंत मना कर दें।

 बच्चे के अंदर सहनशक्ति लाने की कोशिश करें। यदि आपका बच्चा रोये तो रोने दें। यह उसकी ही भलाई के लिए है। हो सकता है ऐसे में बच्चा आपके बारे में नेगिटिव सोचे लेकिन परेशान न हों यह भी एक नेचुरल प्रोसेस है और बहुत जल्दी खत्म भी हो जाता है। आप इस दीवार को अपने प्यार और बात से आसानी से तोड़ सकते हैं।

 अपने बचपन के साथ अपने बच्चे के बचपन की तुलना मत कीजिए। न ही उसके भाई, बहन या उसके दोस्तों से उसकी तुलना कीजिए। आप यह कभी भी न सोचें कि जैसा आपने अपने बचपन में किया था वैसा ही आपका बच्चा भी करेगा।

 खुद खुशमिजाज बनिए। बच्चों के साथ हंसी मजाक कीजिए। घर का मौहाल खुशनुमा बनायें। इससे आपका बच्चा भी जिंदगी को अलग नजरिए से देखेगा और खुश रहेगा।
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आपके अंदर सहनशक्ति होनी चाहिए। हमेशा कोशिश कीजिए कि आप बच्चे की बात पूरी तरह एकाग्रचित होकर सुनें। बात करने की पहल खुद करें और बातचीत का मौहाल बनाएं। बच्चे को खुद से निर्णय लेने की आजादी देनी चाहिए। ऐसे बात करें कि जैसे कि आप किसी बड़े से बात कर रहे हैं। इस तरह से बच्चा अपनी बातें आपके साथ शेयर कर पाऐगा। उसकी बातों को जज करने की कोशिश न करें क्योंकि ऐसा करने से आप दोनों के संबधों में दूरी आ सकती है।

 अपने बच्चे को एक अलग शख्सियत की तरह देखें। अपनी भावनाएं व्यक्त करने का हर बच्चे का अपना अलग तरीका होता है । लेकिन साथ ही एक बैलेंस बना कर चलें।  यदि कहीं कोई समस्या है तो उसका समाधान तुरंत ढ़ूंढ़े। उसे टालें नहीं। नहीं तो समस्या तो गंभीर होगी ही साथ ही बच्चा भी सही बात नहीं समझ पायेगा।

 अपने बच्चे को यकीन दिलाएं कि उसका परिवार हर हाल में उसके साथ है। जहां जरूरत हो वहां बच्चे को समझाएं । हर बार यह मत सोचें कि बच्चा आपके हाव भाव से आपकी बात समझ जाऐगा। उससे मधुर भाषा में बात करें।

 अपनी गलतियों को स्वीकार करें और उनको सुधारने के लिए प्रयासरत रहें। इस तरह से आप अपने बच्चे के सामने एक उदाहरण बन सकते हैं

 अपने बच्चे को अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करें। पेड़ तभी हरा भरा होगा यदि उसकी जड़ मजबूत होगी। आपका बच्चा तभी अच्छे से बढ़ेगा जब आप उसके अंदर सही संस्कार डालेंगें। वह शारीरिक, मानसिक रूप से स्वस्थ हो। वह आर्थिक रूप से भी मजबूत बने। खुद को सुरक्षित महसूस करें। आपको हर दिशा में उसका पथप्रदर्शन करना होगा।
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बच्चे के प्रति रक्षात्मक रूप से बिहेव न करें। अपने बच्चे के लिए कभी झूठ न बोलें। इससे बच्चे पर नकारात्मक असर पड़ता है। उसने जो भी गलत या सही काम किया हो उसे उस काम की जिम्मेदारी लेनी आनी चाहिए।

 आपके बच्चे का न कहना भी उतना ही जरूरी है जितना कि हां कहना। इससे बच्चा कभी भी किसी काम को प्रेशर के चलते नहीं लेगा।

 बच्चों को सिखाएं गलतियों को स्वीकार करना और आत्मशक्ति को बढाना ताकि कोई भी अपनी इच्छाएं या निर्णय उन पर थोप न सके।

आपके बच्चे का भविष्य आपकी पेरेंटिग के तरीकों पर बहुत हद तक निर्भर करता है। आपको इसके लिए बहुत मेहनत करनी होगी। आपके पास सहनशक्ति और तेजी दोनों ही होनी चाहिए। आप अपने बच्चे की नजर में परफेक्ट हों यह जरूरी नहीं है पर आप उसकी नजर में एक सही इंसान बनें यह ज्यादा जरूरी है।

आैजाराें से हाेती है विश्वकर्मा की पूजा

आज विश्‍वकर्मा पूजा (Vishwakarma Puja) है. विश्‍वकर्मा भगवान का जन्‍म भादो माह में हुआ था. हर साल 17 सितंबर को उनके जन्‍मदिवस को विश्‍वकर्मा जयंती (Vishwakarma Jayanti) के रूप में मनाया जाता है. विश्‍वकर्मा को देवताओं का शिल्‍पी कहा जाता है. मान्‍यता है कि उन्‍होंने देवताओं के लिए खूबसूरत शहरों, भव्‍य महलों और एक से बढ़कर एक हथियारों का निर्माण किया. अपनी शिल्‍प कला के लिए मशहूर भगवान विश्‍वकर्मा सभी देवताओं में आदरणीय हैं. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार विश्‍वकर्मा को सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का सातवां धर्म पुत्र माना जाता है.
विश्‍वकर्मा जयंती के दिन भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा और आरती का विधान है. इस दिन कारखानों, दफ्तरों, मशीनों, कलपुर्जों और औजारों की पूजा की जाती है. जो लोग इंजीनियरिंग, बढ़ई, वेल्डिंग जैसे कामों से जुड़े हुए हैं उनके लिए इस दिन का विशेष महत्‍व है. घर पर भी विश्‍वकर्मा की पूजा के साथ-साथ इस्‍तेमाल में आने वाले उपकरणों की पूजा की जाती है. मान्‍ययता है कि विश्‍वकर्मा की पूजा विधि-विधान से करने पर व्‍यापार में दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ोतरी होती है.
यहां पर हम आपको भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा की संपूर्ण विधि बता रहे हैं:

- सबसे पहले स्‍नान करने के बाद अपनी गाड़ी, मोटर या दुकान की मशीनों को साफ कर लें.
- उसके बाद स्‍नान करें.
- घर के मंदिर में बैठकर विष्‍णु जी का ध्‍यान करें और पुष्‍प चढाएं.
- एक कमंडल में पानी लेकर उसमें पुष्‍प डालें.
- अब भगवान विश्‍वकर्मा का ध्‍यान करें.
- अब जमीन पर आठ पंखुड़‍ियों वाला कमल बनाएं.
- अब उस स्‍थान पर सात प्रकार के अनाज रखें.
- अनाज पर तांबे या मिट्टी के बर्तन में रखे पानी का छिड़काव करें.
- अब चावल पात्र को समर्पित करते हुए वरुण देव का ध्‍यान करें.
- अब सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी और दक्षिणा को कलश में डालकर उसे कपड़े से ढक दें.
- अब भगवान विश्‍वकर्मा को फूल चढ़ाकर आशीर्वाद लें.
- अंत में भगवान विश्‍वकर्मा की आरती उतारें.
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विश्‍वकर्मा की आरतीॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥

आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥

ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥

रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥

जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥

ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥

श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥
एनडीटीवी इंडिया से साभार..

याेग करेगा आपकी हड्डियां मजबूत- याेग गुरू सुनील सिंह

हमारे शरीर काे हर उम्र में एक खास देखभाल की जरूरत हाेती है। आजकल बहुत सारे लाेग घुटनाें के दर्द के कारण परेशान हैं। अगर समय रहते हम  ध्यान दें ताे इस असाध्य दर्द से मुक्ति पा सकते हैं। याेग में इसका बहुत बेहतर उपाय बताया गया है। अमूमन 40 वर्ष पूरे होने के साथ साथ हमारे शरीर  की मांसपेशियां ढीली होने लगती हैं और साथ ही हड्डियां कमजोर। इस उम्र में ऑस्टियोपोरेसिस होने का खतरा बढ़ जाता है और हल्की सी चोट से भी हड्डी टूटने का डर बना रहता है।  मगर घबराने की जरूरत नहीं यदि आप इन योगासानों को अपनी दिनचर्या में अपना लेंगे तो यह आपकी हड्डियों को कमजोर नहीं होने देंगे।
चक्रासन
सबसे पहले पीठ के बल लेट जाएं और पैरों को घुटने से मोड़ें जिससे एड़ी हिप्स को छुए और पंजे जमीन पर हों। अब गहरी सांस लेते हुए कंधे, कमर और पैर को ऊपर की ओर उठाएं। इस प्रक्रिया के दौरान गहरी सांस लें और छोड़ें। फिर हिप्स से लेकर कंधे तक के भाग को जितना हो सके ऊपर उठाने का प्रयास करें। कुछ क्षण बाद नीचे आ जाएं और सांसे सामान्य कर लें।
वृक्षासन
पेड़ की तरह तनकर खड़े हो जाइए। शरीर का भार अपने पैरों पर डाल दीजिए और दाएं पैर को मोड़िये। दाएं पैर के तलवे को घुटनों के ऊपर ले जाकर बाएं पैर से लगाइये। दोनों हथेलियों को प्रार्थना मुद्रा में लाइये। अपने दाएं पैर के तलवे से बाएं पैर को दबाइये और बाएं पैर के तलवे को जमीन की ओर दबाइये। सांस लेते हुए अपने हाथों को सिर के ऊपर ले जाइये। सिर को सीधा रखिए और सामने की ओर देखिये। 20 मिनट तक इस स्थिति में रुके रहें।
पद्मासन
जमीन पर बैठ जाएं। दायां पैर मोड़ें और दाएं पैर को बाईं जांघ के ऊपर कूल्हों के पास रखें। ध्यान रहे दाईं एड़ी से पेट के निचले बाएं हिस्से पर दबाव पड़ना चाहिए। बायां पैर मोड़ें तथा बाएं पैर को दाईं जांघ के ऊपर रखें। यहां भी बाइंर् एड़ी से पेट के निचले दाएं हिस्से पर दबाव पड़ना चाहिए। हाथों को ज्ञानमुद्रा में घुटनों के ऊपर रखें। रीढ़ की हड्डी को बिलकुल सीधी रखें। धीरे-धीरे सांस लें और धीरे-धीरे सांस छोड़े। कम से कम 10 मिनट तक इस मुद्रा में रहें।
भुजंगासन
पहले पेट के बल सीधा लेट जाएं और दोनों हाथों को माथे के नीचे रखें। दोनों पैरों के पंजों को साथ रखें। अब माथे को सामने की ओर उठाएं और दोनों बाजुओं को कंधों के समानांतर रखें जिससे शरीर का भार बाजुओं पर पड़े। अब शरीर के ऊपरी हिस्से को बाजुओं के सहारे उठाएं। शरीर को स्ट्रेच करें और लंबी सांस लें। कुछ पल इसी अवस्था में रहने के बाद वापस पेट के बल लेट जाएं।
उत्कटासन
सबसे पहले पंजों के सहारे जमीन पर बैठ जाएं। हाथों को आगे की तरफ फैलाएं और उंगलियों को सीधा रखें। गला एकदम सीधा होना चाहिए। अब आप कुर्सी की पोजीशन में आ चुके हैं। 10 मिनट कतक इस मुद्रा में बने रहें।
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मिलिए इल्मा अफराेज से-शाकिर चाैधरी

कुंदरकी (मुरादाबाद) : इल्मा अफ़रोज़ से हमारी बातचीत के दौरान तेज़ आंधी आती है और एक लकड़ी का बोर्ड उड़कर उनके भाई अराफ़ात (24) के दाहिने हाथ पर गिर जाता है. इससे उनके हाथ से खून निकलने लगता है और हड्डी में गहरी चोट लगती है.

अचानक से इल्मा बेहद तनाव में आ जाती हैं. वहां मौजूद लोग उन्हें समझाते हैं कि घबराइए मत, हड्डी नहीं टूटी है. मगर वो बदहवास हैं और तेज़ आंधी-तूफ़ान के बीच ही मुरादाबाद (कुंदरकी में हड्डी का डॉक्टर नहीं है) जाने की ज़िद करती हैं. कमरे में दौड़कर जाती हैं. अपना पर्स लाती हैं. पैसे कम देखकर चाचा से मांगती हैं. तभी अराफ़ात अपनी उंगलियां चलाकर दिखाता है, जिससे यह पता चलता है कि हड्डी सलामत है.

इल्मा को सामान्य होने में वक़्त लगता है. उनकी आंखें लाल हो जाती हैं और आंसू बाहर आ जाते हैं.

इल्मा कहती हैं, अब इसके सिवा मेरा कौन है. आज पहली बार इसको चोट लगी है.

मुरादाबाद के कुंदरकी की इल्मा अफ़रोज़ हाल ही में आए यूपीएससी के परिणाम में 217 रैंक पाकर भारत की सिविल सर्विस का हक़दार बन चुकी हैं और उनका आईपीएस बनना तय है.

32 बीघा ज़मीन (5 एकड़) पर खुद खेती करने वाले इल्मा अफ़रोज़ के पिता अफ़रोज़ 14 साल पहले उनके परिवार को बेसहारा छोड़कर चले गए तो घर बड़ी बेटी होने के नाते इल्मा ने परिवार संभाल लिया.

इल्मा के घर में किचन एक तख्त के ऊपर चलता है. उसके ड्राइंग रूम की छत पर फूस का छप्पर है. उसका ड्रेसिंग टेबल उनकी अम्मी को दहेज़ में मिला था, जो गल चुका है.

इल्मा के घर के दो कमरों में कोई बेड नहीं है. चारपाई टूटी हुई है. कुर्सियां पड़ोस से मांगकर लाई गई है. इल्मा के पास बेहद सस्ता स्मार्ट फोन है, जिसकी स्क्रीन टूट चुकी है.

अब से पहले भले ही कोई इन्हें पूछने वाला न हो, मगर जबसे उनके आईपीएस बनने की आहट हुई है, अचानक से रिश्तेदारों की आमद बढ़ गई है, इसलिए कुछ दिन से घर में खाना अच्छा बन रहा है.

इल्मा की कहानी में इतना दर्द है कि आपका कलेजा बाहर उछाल मारने की यक़ीनन कोशिश करेगा. इल्मा पेरिस, लंदन, न्यूयॉर्क और जकार्ता तक में पढ़ाई कर चुकी हैं. इनकी पढ़ाई ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तक में हुई है. यूएन और क्लिंटन फॉउंडेशन के लिए भी काम किया है. बावजूद इसके इल्मा बिल्कुल साधारण कपड़े पहनती हैं और साधारण तरीक़े से ही रहती हैं.

अद्भुत प्रतिभा की मालकिन इल्मा हिम्मत न हारने की मिसाल हैं. अपने जीवन के संघर्षों को बताते हुए बिल्कुल हिचकती नहीं हैं.

वो कहती हैं, 9वीं में सबकुछ ठीक था. उसके बाद अब्बू नहीं रहे. मैं तब 14 साल की थी. भाई 12 का था. अब्बू मेरे बाल में कंघी करते थे. मैंने बाल ही कटवा दिए. उनकी जगह खेती संभाल ली. अब सवाल पढ़ाई का था. पहले 12वीं तक पढ़ाई स्कॉलरशिप के आधार पर हुई. फिर दिल्ली स्टीफ़न कॉलेज में दाख़िला मिल गया. वहां भी स्कॉलरशिप से पढ़ी. इसके बाद पेरिस, न्यूयॉर्क, ऑक्सफोर्ड सब जगह स्कॉलरशिप मिलती रही और मैं पढ़ती रही.

वो आगे कहती हैं कि, स्कॉलरशिप से मेरी पढ़ाई तो हो रही थी. लेकिन खुद का खर्च चलाना मुश्किल काम था. इसके लिए मैंने लोगों के घरों में काम किया. बर्तन साफ़ किए. झाड़ू-पोछा किया. बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया.

इल्मा कहती हैं कि, पिछले साल अपने भाई के कहने पर मैंने सिविल सर्विस का एक्ज़ाम दिया. पहले मैं आईएएस बनना चाहती थी, मगर मुझे लगा कि मेरे लिए आईपीएस होना ज़्यादा ज़रूरी है.

बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में हौसलों की मिसाल लिखने वाली इल्मा खेत में पानी चलाने, गेंहू काटने, जानवरों का चारा बनाने जैसे काम भी करती रही हैं.

इल्मा कहती हैं, लोग कहते थे लौंडिया है, क्या कर लेगी. अब कर दिया लौंडिया ने. मगर मेरी ज़िन्दगी में मुस्क़ान नाम की चीज़ अब आई है.

इल्मा के आईपीएस बनने के बाद स्थानीय लड़कियों में ज़बरदस्त क्रेज पैदा हो गया है. वो इल्मा से मिलने आती हैं. पिछले 3 दिन से उन्हें लगातार स्कूल कॉलेज में बोलने के लिए बुलाया जा रहा है.

इल्मा बताती हैं, डिबेट तो मेरी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा रही है. दिल्ली में डिबेट में प्राईज मनी के तौर पर जो पैसा मिलता था, उसी से मेरा ख़र्च चलता था. उस पैसे के लिए मुझे हर हाल में जीतना होता था. लेकिन अब बोलने के पैसे नहीं मिल रहे हैं, तसल्ली मिल रही है.

कुंदरकी के नबील अहमद (45) इल्मा की कामयाबी को चमत्कार मानते हैं. वो हमसे कहते हैं, अब तक कुंदरकी को विश्वास ही नहीं हो रहा है, यह कैसे हो गया. जिस दिन इल्मा नीली बत्ती में वर्दी पहने गांव में आएगी, उस दिन कुंदरकी झूम उठेगी. इस लड़की ने वाक़ई कमाल कर दिया है.

मगर इल्मा की मां सुहेला अफ़रोज़ अभी से झूम रही हैं. वो कहती हैं, मेरी बेटी ने बहुत तकलीफ़ झेली है, उसका रब खुश हो गया है ।
साकिर चाैधरी की फेसबुक बॉल से साभार

कहानी -भूख- चित्रा मुद् गल



आहट सुन लक्ष्मा ने सूप से गरदन ऊपर उठाई। सावित्री अक्का झोंपड़ी के किवाड़ों से लगी भीतर झांकती दिखी। सूप फटकारना छोड़कर वह उठ खड़ी हुई, ‘‘आ, अंदर कू आ, अक्का।'' उसने साग्रह सावित्री को भीतर बुलाया। फिर झोंपड़ी के एक कोने से टिकी झिरझिरी चटाई कनस्तर के करीब बिछाते हुए उस पर बैठने का आग्रह करती स्वयं सूप के निकट पसर गई।सावित्री ने सूप में पड़ी ज्वार को अँजुरी में भरकर गौर से देखा, ‘‘राशन से लिया?''
‘‘कारड किदर मेरा!''
‘‘नईं?'' सावित्री को विश्वास नहीं हुआ।
‘‘नईं।''
‘‘अब्बी बना ले।''
‘‘मुश्किल न पन।''
‘‘कइसा? अरे, टरमपरेरी बनता न। अपना मुकादम है न परमेश्वरन्, उसका पास जाना। कागद पर नाम-वाम लिख के देने को होता। पिच्छू झोंपड़ी तेरा किसका? गनेसी का न! उसको बोलना कि वो पन तेरे को कागद पे लिख के देने का कि तू उसका भड़ोतरी...ताबड़तोड़ बनेगा तेरा कारड।''
उसने पास ही चीकट गुदड़ी पर पड़े कुनमुनाए छोटू को हाथ लंबा कर थपकी देते हुए गहरा निःश्वास भरा-‘‘जाएगी।''
‘‘जाएगी नईं, कलीच जाना!'' सावित्री ने सयानों-सी ताकीद की। फिर सूप में पड़ी गुलाबी ज्वार की ओर संकेत कर बोली, ‘‘ये दो बीस किल्लो खरीदा न! कारड पे एक साठ मिलता।''
छोटू फिर कुनमुनाया। पर अबकी थपकियाने के बावजूद चौंककर रोने लगा। उसने गोद में लेकर स्तन उसके मुंह में दे दिया। कुछ क्षण चुकरने के बाद बच्चा स्तन छोड़ बिरझाया-सा चीखने लगा-‘‘क्या होना, आताच नई।'' उसने असहाय दृष्टि सावित्री पर डाली।

जानें क्या है.. पेंसिल वाला नेट आर्ट .. प्रिया कालरा, नेल आर्ट विशेषज्ञ


सोशल मीडिया के प्रभाव में ब्यूटी ट्रेंड्स तेजी से बदल रहे हैं। एक ट्रेंड के प्रति दीवानगी बढ़ती है तो दूसरा शुरू हो जाता है। दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ते ही और अनूठे ट्रेंड की खोज शुरू हो जाती है। इसी तरह से अब एक से बढ़कर एक ट्रेंड सोशल मीडिया वॉल को घेरे रहते हैं। इन दिनों नेल आर्ट में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। रेनबो व जेल नेल आर्ट को छोड़कर युवतियां पेंसिल कलर नेल आर्ट को लेकर क्रेज दिखा रही हैं। इस तरह का नेल आर्ट कलरफुल टच देता है। ऐसे में माना जा रहा है कि फेस्टिव सीजन में यह नेल आर्ट काफी पसंद किया जाएगा।
 है क्या पेंसिल कलर नेल आर्ट
यह नेल आर्ट इस तरह से किया जाता है कि नाखून हूबहू पेंसिल कलर की तरह नजर आते हैं। नाखूनों पर इसी आकार में जेैल¨लग की जाती है और पेंसिल कलर से अलग अलग रंगों से इन्हें बाकायदा नोक देकर सजाया जाता है। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि इस तरह के नेल आर्ट में कामकाज में असुविधा होती है लेकिन ट्रेंड परस्त लोग इसे खुशी खुशी अपना रहे हैं।
सोशल मीडिया से आया ट्रेंड इंस्टाग्राम पर आने वाला हर ट्रेंड कुछ ही पलों में लोगों को अपनी ओर आकर्षण में बांध लेता है। इस नेल आर्ट  ट्रेंड के साथ भी यही हुआ। रूस से आए इस ट्रेंड को लोगों ने हाथों हाथ लिया है। यहां पर भी इस तरह के नेल आर्ट की मांग बढ़ गई,  जिसके बाद नेल आर्ट आर्टिस्ट इसे सीख रहे हैं।
खूबसूरत नेल आ‌र्ट्स के साथ साथ अब अनूठे नेल आर्ट को भी उतनी ही तवज्जो मिल रही है। उनके मुताबिक अब युवतियां इस तरह के नेल आर्ट की मांग कर रही हैं। पेंसिल कलर नेल आर्ट हो या फिर ज्वेलरी नेल आर्ट। हर तरह के डिजाइंस इंस्टाग्राम व सोशल मीडिया से आ रहे हैं।
लोग इस तरह के डिजाइंस का डिमांड कर रहे हैं, क्योंकि युवा पूरी तरह से सोशल मीडिया के प्रभाव में जी रहे हैं और वहीं के डिजाइंस व ट्रेंड्स को पिक करते हैं। नेल आर्ट में भी लोग अनूठेपन की तलाश कर रहे हैं जिसको हम लोग पूरा करने की कोशिश भी कर रहे हैं।
मार्केट में सिंपल से लेकर, 4डी, 5डी हर तरह का नेल आर्ट है। इस साल ब्राइडल्स को नेल आर्ट अधिक पसंद रहा है। नेल एक्सटेंशन में एक्रेलिक जेल दो तरह से किए जाते हैं। इसे रेगुलर कराएं, ताकि नेचुरल नेल्स सही रहे। नेल एक्सटेंशन में एक्रेलिक की बजाए जेल को प्रेफर करें, क्योंकि इसे नेचुरल नेल्स को नुकसान नहीं होता।
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कसरत के पहले भी खाए और बाद में भी- चयनिका शर्मा

पानी ही है असली दवा
सिर्फ कसरत करना सेहत को दुरुस्त रखने के लिए पर्याप्त नहीं है। कसरत करने से पहले और बाद में शरीर को स्वस्थ रखने वाली चीजें खाना भी जरूरी है। डायटीशियन चयनिका शर्मा कहती हैं कि व्यायाम के बेहतर नतीजे पाने के लिए उससे पहले और बाद में लिए जाने वाले आहार की जानकारी होनी बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि शरीर को छरहरा और त्वचा को मुलायम रखने के लिए व्यायाम से पहले कार्बोहाइड्रेट लेना सबसे अच्छा है। जबकि व्यायाम के बाद ताजी सब्जियों का रस पीना लाभदायक हो सकता है।
व्यायाम से पहले खाएं कुछ ऐसा, जिससे बनी रहे ऊर्जा
साबुत अनाज कामप्लैक्स कार्वाेहाइड्रेट संतुलित मात्रा में खाएं इसकी जगह केला या मेवे भी ले सकते हैं।  व्यायाम से  पहले  भरपूर मात्रा में पानी पीना बहुत जरूरी है।
धावकों को व्यायाम के एक बार15 मिनट के अंदर हलकी लस्सी या छाछ लेनी चाहिए। 30 मिनट के बाद  नारीयल पानी पीने की सलाह दी जाती है। उसके बाद ताजा फल और सब्जियाें से बने जूस आपकी सेहत के लिए बहुत जरूरी है यह आपके शरीर से विषैले तत्वाें  काे बाहर निकालने में मदद करता है और आपकाे स्वस्थ रखता है।
 लेकिन याद रहे यह फल और सब्जियाें का चुनाव आप अपनी बॉडी टाइप काे देखकर ही करें। सभी काे यह फायदेमंद नहीं हाेता। बिना किसी की सलाह के जूस का सेवन आपके लिए नुकसानदायक हाे सकता है।
व्यायाम के बाद वो खाएं, जिनसे हो मांसपेशियों की मरम्मत
व्यायाम करने के 30 मिनट बाद ही खाने की तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए। ऐसी चीजें खानी चाहिए, जो आपकी मांसपेशियों की मरम्मत में मदद करें। अखरोट, फल, रसभरी और बादाम के साथ दही, जड़ वाली सब्जियां जैसे गाजर, चुकंदर, शकरकंद या उबले अंडे व्यायाम के बाद लिए जा सकते हैं। अगर आप वजन कम करने के लिए काेई याेजना बना रहे हैं ताे सबसे पहले डायटीशियन से राय अवश्य लें।
दौड़ने के बाद थोड़ा पानी या नारियल पानी और इसके बाद एक घंटे के भीतर प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट युक्त चीजें खानी चाहिए।
पूरे दिन भरपूर मात्रा में पानी और फल बहुत जरूरी है यह आपके मेटाबॉलिज्म काे सही रखते हैं साथ ही दूसरे दिन वर्कआउट के लिए भी तैयार करते हैं।

शुरू हाे गई गणेश उत्सव की तैयारी

 पेंटिंग- रिया राठाैड़
भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को शिवा कहते हैं. इस दिन किसी तीर्थ स्थान पर स्नान दान व्रत जप आदि सत्कर्म करना चाहिए, जो व्यक्ति ऐसा करता है उसको गणपति जी का सौ गुना अभीष्ट फल प्राप्त होता है ऐसा भविष्य पुराण में दिया गया है. इस दिन गणेश जी के साथ शिव जी और पार्वती जी का भी पूजन करना चाहिए. भारत में कुछ त्यौहार धार्मिक पहचान के साथ-साथ क्षेत्र विशेष की संस्कृति के परिचायक भी हैं. इन त्यौहारों में किसी न किसी रूप में प्रत्येक धर्म के लोग शामिल रहते हैं. जिस तरह पश्चिम बंगाल की दूर्गा पूजा आज पूरे देश में प्रचलित हो चुकी है उसी प्रकार महाराष्ट्र में धूमधाम से मनाई जाने वाली गणेश चतुर्थी का उत्सव भी पूरे देश में मनाया जाता है. गणेश चतुर्थी का यह उत्सव लगभग दस दिनों तक चलता है जिस कारण इसे गणेशोत्सव भी कहा जाता है.

भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश का इसी दिन जन्म हुआ था. भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को सोमवार के दिन मध्याह्न काल में, स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में हुआ था. इसलिए मध्याह्न काल में ही भगवान गणेश की पूजा की जाती है, इसे बेहद शुभ समय माना जाता है. भाद्रपद मास की गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी या सिद्धीविनायक चतुर्थी भी कहा जाता है. कुछ जगहों पर इसे पत्तर चौथ और कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन चंद्र दर्शन नहीं किया जाता. मान्यता है कि चंद्र दर्शन करने से इस दिन कलंक लगता है.

गणेश चतुर्थी मुहूर्त: गणेश जी का दिन बुधवार को माना गया है. इसलिए बुधवार के दिन घर में गणेश जी की प्रतिमा लाना अत्यंत शुभ माना गया है.





चतुर्थी तिथि प्रारम्भ: दिनांक 12 सितंबर दिन बुधवार को शाम 4:07 से चतुर्थी तिथि समाप्त: दिनांक 13 सितंबर दिन गुरूवार को दोपहर 2:51 बजे तक गणेश पूजन के लिए मुहूर्त: दिनांक 13 सितंबर दिन गुरूवार को सुबह 11:02 से 13:31तक गणेश जी की मूर्ति लाने का मुहूर्त: 1. दिनांक 12 सितम्बर दिन बुधवार को मध्याह्न 3:30 से सांयकाल 6:30 तक 2. दिनांक 13 सितम्बर दिन गुरुवार प्रातः 6:15- 8:05 तक तथा 10:50-11:30 तक

इस माह की चतुर्थी को गुड़, लवण (नमक) और घी का दान करना चाहिए. यह शुभ मान गया है और गुड़ के मालपुआ से ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. इस दिन जो स्त्री अपने सास और ससुर को गुड़ के पूए खिलाती है वह गणेश जी के अनुग्रह से सौभाग्यवती होती है. पति की कामना करने वाली कन्या इस दिन विशेष रूप से व्रत करे और गणेश जी का पूजन करे. ऐसा शिवा चतुर्थी का विधान है.

शास्त्रों में भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करने का विधान बताया गया है. जो व्यक्ति हर माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करता उसको विशेष लाभ और साथ ही धन लाभ भी होता है. जो हर चतुर्थी नहीं कर सकता वह इस दिन करे तो उसको उसी के बराबर फल की प्राप्ति होती. इस दिन आप शुद्ध जल में सुगन्धित द्रव्य या इत्र मिला करके श्रीगणेश का अभिषेक करें. साथ में गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी करें. बाद में लड्डुओं का भोग लगाएं.

शिव- पार्वती का मंगलगान है हरितालिका तीज

शिवपार्वती-पेंटिंग अंजलि लांबा
साल में चार बड़ी तीज आती हैं, जिनमें से हरियाली, कजली और हरतालिका तीज का काफी महत्व है। लेकिन इन तीनों में भी हरतालिका तीज को सबसे बड़ी माना जाता है। यह सभी तीज मुख्य रूप से सावन और भादो के महीने में आती हैं। इन दिन शादीशुदा महिलाएं अपने सुहाग के सौभाग्य और कुंवारी लड़कियां मनचाहे वर के लिए कठिन व्रत रखती हैं।
हरतालिका तीज का महत्वःपंडित हरदेव के मुताबिक हरतालिका तीज को सभी तीजों में सबसे महत्वपूर्ण और लाभदायक माना जाता है। यह तीज भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। हरतालिका तीज को बड़ी तीज व्रत भी कहा जाता है। इसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, राजस्थान और बिहार के क्षेत्रों में बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। यह व्रत एक सूर्योदय से लेकर दूसरे सूर्योदय तक चलता है और रात में महिलाएं जागकर गौरी माता के गीत गाती हैं।

तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा
तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विशेष महत्व है। वास्तव में यह दिन माता पार्वती को समर्पित है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने तृतीया तिथि को ही भगवान शिव को पुनः प्राप्त किया था। मां पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लेकर माता सती ने घोर तपस्या के बाद भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था। इसलिए शादीशुदा महिलाएं इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करके पति की लंबी उम्र और सौभाग्य का वरदान मांगती हैं और कुंवारी लड़कियां मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए ये व्रत रखती हैं।

कुल्थी परांठा-गायित्री वर्धन

उत्तराखंड में एक पहाड़ी दाल काफी इस्तेमाल की जाती है जिसका नाम है गैथ या कुल्थी. इस दाल के भरवां पराठे भी बनाए जाते हैं जो खाने में बड़े ही स्वादिष्ट और पौष्टिक भी होते हैं. इस दाल को लेकर एक गढ़वाली कहावत है : "पुटगी पीठ म लग जैली" याने इस दाल को खाने वाले का पेट पीठ में लग जाएगा ( चर्बी नहीं चढ़ेगी ) कुल्थी की दाल के और भी नाम हैं जैसे - कुरथी, कुलथी, खरथी, गैथ या गराहट. अंग्रेजी में इसे हॉर्स ग्राम कहते हैं और इसका वानस्पतिक नाम है Macrotyloma Uniflorum. ज्यादातर पथरीली जमीन पर पैदा होने के कारण कुल्थी के पौधे का एक नाम पत्थरचट्टा भी है. संस्कृत में इस दाल का नाम कुलत्थिक है. दाल के दाने देखने में गोल और चपटे हैं और हलके भूरे चितकबरे रंग में हैं. हाथ लगाने से दाने चिकने से महसूस होते हैं

परांठा बनाने की विधि : चार परांठे बनाने के लिए 250 ग्राम गैथ साफ़ कर के रात को भिगो दें. सुबह उसी पानी में उबाल लें. दाल को ठंडा होने के बाद छाननी में निकाल लें. पानी निथरने के बाद दाल को मसल लें. इसमें बारीक कटा प्याज, हरी मिर्च, हरा धनिया और थोडा सा अदरक कद्दूकस कर के मिला लें. नमक स्वाद अनुसार डाल कर अच्छी तरह से मिला लें. तैयार पीठी से भरवां परांठा बना लें और देसी घी से सेक लें. गरम परांठे को चटनी और घी या मक्खन के साथ सर्व करेंभिगोई दाल के बचे हुए पानी में निम्बू निचोड़ कर सूप बना लें. सूप टेस्टी भी होता है और फायदेमंद भी. इस दाल के साथ राजमा भी मिला कर बनाई जा सकती है.

कुल्थी के गुण : इस दाल में खनिजों के अलावा प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट प्रचुर मात्रा में होता है. इस दाल को पथरी- तोड़ माना जाता है. दाल का पानी लगातार सेवन करने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी घुल कर निकलने लग जाती है. इस का एक सरल सा उपाय है की 15-20 ग्राम दाल को एक पाव पानी में रात को भिगो दिया जाए और सुबह खाली पेट पानी पी लिया जाए. उसी दाल में फिर पानी डाल दिया जाए और दोपहर को और फिर रात को पी लिया जाए. ये दाल इसी तरह दो दिन इस्तेमाल की जा सकती है. अन्यथा भी यह किसी और दाल की तरह पकाई जा सकती है. चूँकि ये गलने में समय लेती है इसलिए रात को भिगो कर रख देना अच्छा रहेगा. कुल्थी की दाल का पानी पीलिया के रोगी के लिए भी अच्छा माना गया है. ये दाल उत्तराखंड के अलावा दक्षिण भारत और आस पास के देशों में भी पाई जाती है
साभार-हर्षवर्धन जाेग

मैं अपराजिता-कुकरी

बच्चाें के दाेस्ताें पर भी रखें नजर- डॉ. अनुजा भट्ट


कई बार बच्चा मारपीटकर घर आता है
, तो उस पर भी अभिभावक गुस्सा करते हैं। 
हर पैरेंट्स चाहते हैं कि उनके बच्चे को अच्छी परवरिश मिले, वह कामयाब हों, लेकिन आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में ये सब किसी चुनौती से कम नहीं है।  अगर उनके व्यवहार मं कुछ गलत दिखाई दे रहा है ताे सावधान हाे जाएं। बच्चे घर से ही नहीं बाहर से भी बहुत कुछ सीखते हैं। यह अच्छा कम हाेता है बुरा ज्यादा हाेता है। देखने में आता है कि पैरेंट्स काम में बिजी रहते हैं, इस वजह से वह बच्चे को समय नहीं दे पाते। ऐसे में बच्चा काफी कुछ गलत करने लगता है। इससे मां-बाप बाद में परेशान होते हैं। बच्चे को सुधारने के लिए गुस्सा भी करते हैं, लेकिन ये सही नहीं है। गुस्से से आपका बच्चा सुधरने की जगह औऱ बिगड़ भी सकता है। आपके गुस्से का आपके बच्चे पर गलत असर भी पड़ सकता है। इसलिए अगर आप भी बच्चे पर गुस्सा करते हैं, तो इसे फौरन बंद कर दें। बच्चे को कई और तरीकों से भी समझाया जा सकता है।

इस तरह बच्चे को करें कंट्रोल

अगर बच्चा गलत व्यवहार कर रहा है, गलत बोल रहा है या गुस्सा कर रहा है, तो आप गुस्सा होने की जगह उससे प्यार से बात करें और उससे इन सबका कारण जानें। उसके परेशान होने का कारण जानने के बाद उस समस्या को दूर करने की कोशिश करें।
दिन भर की थकान के बाद पैरेंट्स खुद मानसिक रूप से इतने थक जाते हैं कि छोटी-छोटी बातों पर भी बच्चों पर गुस्सा करने लगते हैं। ये गलत है। आपको ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे जो देखते हैं, वहीं सीखते हैं। ऐसे में आपके गुस्से करने से बच्चे के दिमाग पर गलत असर पड़ेगा और वह भी गुस्सा करने लगेगा।
बच्चे को नजरअंदाज न करें, वह जो भी कहे उसकी हर बात सुनें ताकि वह आपसे हर बात शेयर करे और जिद न करे। बच्चे को ज्यादा से ज्यादा खेलकूद और बाहरी गतिविधियों में बिजी रखें। बच्चे को डांस व आर्ट क्लास में भेज सकते हैं। समय-समय पर उसे आउटडोर गेम्स खेलने के लिए बाहर भी भेज सकते हैं। इससे बच्चे की अतिरिक्त शारीरिक ऊर्जा व्यय होगी और आत्म अभिव्यक्ति व समाजिक व्यवहार की समझ भी आएगी।
गुस्से में बच्चों पर हाथ उठाने से भी बचें। बच्चे के साथ सहानुभूति रखिए। प्यार से बैठकर समझाइए। इसके अलावा हमेशा उसे डराना भी गलत है।
कई बार बच्चा मारपीटकर घर आता है, तो उस पर भी अभिभावक गुस्सा करते हैं। आप गुस्से की जगह बच्चे को बिठाकर समझाएं कि अगर मारपीट करोगे तो कोई भी आपसे दोस्ती व बात नहीं करेगा।
अक्सर ये भी देखने को मिलता है कि बच्चे के महंगी चीज मांगने पर पैरेंट्स गुस्सा हो जाते हैं और उसे डांट देते हैं। ये स्थिति भी ठीक नहीं है। आप बच्चे को पास में बैठाकर प्यार से बताएं कि आपके पास कितना पैसा है और उसे कहां खर्च करना है। इससे उसे आपकी इनकम का आइडिया रहेगा और बेकार की जिद नहीं करेगा।
इसके अलावा बच्चे के झूठ बोलने की स्थिति में भी उस पर गुस्सा न करें। उसे उदाहरण देकर झूठ बोलने के निगेटिव पक्ष बताएं। उसे सही-गलत के बारे में बताएं।

बुढ़ापे में बढ़ जाता है इन 5 बीमारियों का खतरा-साेनिया नारंग



हालांकि उम्र-संबंधी इन बदलाव और परेशानियों से बचना मुश्किल लग सकता है, लेकिन कुछ चीजों का ध्यान रखकर और कुछ स्टेप्स फॉलो कर उम्र संबंधी बीमारियों से दूरी बनाई जा सकती है. शारीरिक रूप से सक्रियता, स्वस्थ आहार और स्मार्ट जीवनशैली अपनाकर उम्र संबंधी स्वास्थ्य जोखिमों से बचा जा सकता है.

हम यहां ऐसी ही कुछ बीमारियों और उससे बचने के उपायों के बारे में बता रहे हैं, जिनका खतरा उम्र बढ़ने के साथ और बढ़ जाता है.
1. मोटापा
भारत में मोटापा स्वास्थ्य संबंधी एक गंभीर परेशानी है, जो लगातार बढ़ रही है. मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति मेटाबॉलिक सिंड्रोम, उच्च रक्तचाप, एथेरोस्क्लेरोसिस, हृदय रोग, डायबिटीज, उच्च रक्त कोलेस्ट्रॉल, कैंसर और नींद विकार जैसी समस्याओं से परेशान रहते हैं.
कैसे बचें?
एक स्वस्थ जीवनशैली हृदय रोगों के जोखिम को 80 प्रतिशत तक कम कर सकती है.
इसलिए, सुनिश्चित करें कि आप प्रतिदिन एक्सरसाइज करें, कम वसा वाले खाद्य पदार्थ खाएं और नमक का सेवन सीमित करें ताकि शरीर के वजन को संतुलित रखा जा सके. साथ ही जई, मसूर और फ्लैक्ससीड जैसे फाइबर समृद्ध खाद्य पदार्थों का सेवन पर्याप्त मात्रा में करें.
फलिया फाइबर के अच्छे स्रोत हैं
दिल को स्वस्थ रखने के लिये प्रतिदिन ड्राईफ्रूट्स जैसे (पांच बादाम, एक अखरोट और एक अंजीर) खाएं, वेजीटेबल जूस, जामुन और मछली को अपनी डाइट में शामिल करें.
अगर आपको एल्कोहल और स्मोकिंग की आदत है, तो पहले इसके सेवन में कटौती करें और धीरे-धीरे पूरी तरह से छोड़ने की कोशिश करें.
आपके शरीर में ऑक्सीजन को प्रभावी ढंग से पंप करने की आपके शरीर की क्षमता उम्र बढ़ने के साथ घट जाती है. इसलिए, नियमित रूप से एक्सरसाइज करना महत्वपूर्ण है. यह रक्तचाप, तनाव और वजन को मैनेज करने में मदद करता है.
2. गठिया
हमारे देश में बुजुर्गों की लगभग आधी आबादी इस बीमारी से प्रभावित है. इस बीमारी की वजह से जोड़ों और हड्डियों में दर्द रहता है. ऑस्टियोअर्थ्राइटिस गठिया का सबसे आम प्रकार है जो जोड़ों, आमतौर पर हाथ, घुटने, कूल्हों और रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है.
कैसे बचें?
सही तरह के इलाज और जीवनशैली में बदलाव करके इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है. गठिया को रोकने का सबसे अच्छा तरीका नियमित रूप से एक्सरसाइज करना है. संतुलित स्वास्थ्य के लिए वजन पर नजर रखना भी आवश्यक है.
फ्रेमिंगहम ऑस्टियोअर्थ्राइटिस अध्ययन के अनुसार, केवल 5 किलोग्राम वजन घटाने से घुटनों में ऑस्टियोअर्थ्राइटिस का खतरा 50 प्रतिशत तक कम हो सकता है.
3. ऑस्टियोपोरोसिस
ऑस्टियोपोरोसिस को 'साइलंट बीमारी' के तौर पर जाना जाता है. ऑस्टियोपोरोसिस 50 वर्ष और उससे ज्यादा उम्र के लगभग 4 करोड़ 40 लाख भारतीयों को प्रभावित करता है, जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं. ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित व्यक्तियों में गिरने पर हड्डी टूटने की संभावना ज्यादा होती है.
कैसे बचें?
हड्डियों के लिए विटामिन डी बेहद महत्वपूर्ण है
ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने के लिये कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा का सेवन करना होगा, उच्च अम्लीय कंटेंट वाले खाद्य पदार्थों के सेवन को सीमित करना होगा और वाष्पित पेय से बचना होगा क्योंकि वे रक्त प्रवाह में पेट से कैल्शियम के अवशोषण को कम करते हैं.
विटामिन डी, हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है, विटामिन डी प्राप्त करने के लिय सूर्य की रोशनी (धूप) एक बेहतरीन सोर्स है. सुनिश्चित करें कि आप कम वसा वाले डेयरी उत्पादों का पर्याप्त मात्रा में सेवन करें या इसकी जगह कोई सप्लीमेंट लें.
अपनी हड्डियों को स्वस्थ रखने के लिए वजन घटाने वाले एक्सरसाइज का अभ्यास करना शुरू करें.
4. कैंसर
उम्र बढ़ने के साथ-साथ कैंसर होने का खतरा बढ़ता है. 50 साल की उम्र के बाद ये खतरा और बढ़ जाता है. राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के अनुसार, कैंसर के नये मरीजों में एक-चौथाई हिस्सा ऐसे लोगों का हैं, जिनकी उम्र 65 से 70 वर्ष है.
कैसे बचें?
कैंसर से बचाव के लिए लाइफस्टाइल पर ध्यान दें
कैंसर से बचने के लिए, महिलाओं को नियमित रूप से स्त्री रोग संबंधी जांच करवानी चाहिए और प्रोस्टेट कैंसर को रोकने के लिए पुरुषों को डिजिटल रेक्टल जांच पर विचार करना चाहिए.
फेफड़ों के कैंसर को रोकने के लिए स्मोकिंग छोड़ना आवश्यक है. डाइट में, ऑर्गेनिक खाद्य पदार्थों को शामिल करें, फल और हरी सब्जियों को अपने दैनिक आहार का हिस्सा बनाएं, फाइबर युक्त भोजन की मात्रा बढ़ाएं, अधिक मछली खाएं, पर्याप्त विटामिन डी प्राप्त करें, अपने भोजन में हल्दी का इस्तेमाल करें, लाल मांस खाने से बचें, शराब के सेवन को सीमित करें और ट्रांस फैट से दूर रहें.
5. डायबिटीज
सैचुरेटेड फैट और कम शुगर से युक्त स्वस्थ डाइट अपनाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है.
देश में टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोगों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी गंभीर चिंता का विषय है. इस बीमारी से पीड़ित लोगों में युवा और बुजुर्ग दोनों समान रूप से शामिल हैं.
कैसे बचें?
सैचुरेटेड फैट और कम शुगर से युक्त स्वस्थ डाइट अपनाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है.
सप्ताह में कम से कम 5 दिन 30 मिनट के लिए कार्डियो अभ्यास करने की आदत बनाएं. टहलना, तैराकी और साइकलिंग जैसी एक्सरसाइज ग्लूकोज स्तर को नियंत्रित, वजन को संतुलित और शरीर को मजबूती देने में खासा मददगार हैं.
ऊपर दिये गये सभी तरीके उम्र बढ़ने के दौरान होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से बचने के लिए कारगर उपाय हैं. इन टिप्स को फॉलो कर आप स्वस्थ जीवन का सफर लंबे समय तक तय कर सकते हैं.
(सोनिया नारंग ओरिफ्लेम इंडिया में वेलनेस एक्सपर्ट हैं. )
 साभार.

कोरा कागज से कलाकार तक का सफर- शकीला शेख


शकीला शेख कोलकाता से 30 किलोमीटर दूरी पर 24 परगना जिले के सूरजपुर गांव में रहती हैं। वह अपना एक प्राइवेट स्टूडियो चलाती हैं जहां वे अपनी कलाकारी करती रहती हैं। अपने कॉलाज आर्ट के लिए दुनियाभर में प्रसिद्धि हासिल कर चुकीं शकीला एक गृहिणी भी हैं। उनकी कला को भारत के अलावा अमेरिका, यूरोप, नॉर्वे, फ्रांस में सराहा जा चुका है। एक सब्जी बेचने वाली मां की बेटी शकीला ने 1990 में अपना पहला एग्जिबिशन लगाया था जिसमें उन्हें 90,000 रुपये मिले थे।

शकीला का बचपन अभावों और मुश्किल हालात में बीता। अपने 6 भाई बहनों में वह सबसे छोटी थीं। जब वे महज एक साल की थीं तो उनके पिता उन्हें छोड़कर घर से चले गए। इसके बाद घर चलाने की जिम्मेदारी उनकी मां जेहरान बीबी पर आ गई। जेहरान हर रोज मोगराघाट से 40 किलोमीटर दूर तालताला मार्केट सब्जी बेचने जाती थीं। अपने बचपन को याद करते हुए शकीला ने #मैंअपराजिता को बताया कि वह काफी छोटी थीं इसलिए उनकी मां उन्हें काम नहीं करवाती थीं। हालांकि वह उन्हें घुमाने के लिए शहर जरूर ले जाती थीं।
वह बताती हैं, 'जब मेरी मां मुझे घुमाने ले जाती थीं तो सड़कों पर चल रहीं ट्रॉम और बस देखकर मुझे काफी खुशी होती थी। जब मेरी मां सब्जी बेच रही होतीं तो मैं उनके बगल में ही सो जाती।' कला के क्षेत्र में आने के बारे में वह कहती हैं कि यह शहर में ही रहने वाले बलदेव राज पनेसर की बदौलत संभव हो पाया जो कि एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी और एक कलाकार भी हैं। वे सब्जी लेने के लिए शकीला की मां की दुकान पर आया करते थे और खाली समय मिलने पर आसपास के बच्चों को खाने पीने की चीजें बांटा करते थे। सारे बच्चे उन्हें डिंबाबू कहकर बुलाते थे।

शकीला कहती हैं, 'बाबा मुझसे काफी प्रभावित हुए उन्होंने मेरा नाम स्कूल में लिखवाया। मैं तोलता में कक्षा 3 तक पढ़ी लेकिन इसके लिए मुझे काफी दूर का सफर करना पड़ता था। इतनी दूर का सफर करना उस वक्त किसी लड़की के लिए सुरक्षित नहीं था इसलिए बाबा ने मुझे गांव में ही पढ़ाने का फैसला किया।' हालांकि शकीला की मां हमेशा चिंता में रहती थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि उनकी बेटी के साथ कहीं कुछ गलत न हो जाए।

12 वर्ष की उम्र में उनकी शादी करवा दी गई। उनके पति का नाम अकबर शेख है। शकीला की हालत खराब हो चली थी इसलिए उन्होंने फिर से बाबा से संपर्क किया। उन्होंने शकीला को कागज के थैले बनाने का आइडिया दिया। शकीला बलदेव राज की कलाकारी से काफी प्रभावित थीं और ऐसे ही उन्होंने अपना पहला कोलाज बनाया, जिसमें सब्जियां और फलों का प्रतिरूपण था। इसे काफी सराहना मिली और फिर 1991 में उन्होंने अपना पहला कोलाज एग्जिबिशन लगाया।

शकीला को इससे 70,000 रुपये मिले जो कि उस वक्त के हिसाब से काफी बड़ी रकम थी। इससे शकीला के घर की हालत तो सुधरी ही साथ ही उन्होंने आर्ट पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया। उन्हें बीआर पनेसर से काफी मदद मिली। पनेसर ने शकीला को सेंटर ऑफ इंटरनेशनल मॉडर्न आर्ट से रूबरू करवाया। यह आर्ट गैलरी अब शकीला के काम को मैनेज करती है और उनकी कलाकृतियों को विदेशों में बेचने का काम भी करती है। शकीला को ललित कला अकादमी, पश्चिम बंगाल आर्ट अकादमी समेत कई सारे अवॉर्ड मिल चुके हैं।
mainaparajita@gmail.com

कहानी -लिहाफ- इस्मत जुगताई

जब मैं जाड़ों में लिहाफ ओढ़ती हूँ तो पास की दीवार पर उसकी परछाई हाथी की तरह झूमती हुई मालूम होती है। और एकदम से मेरा दिमाग बीती हुई दुनिया के पर्दों में दौडने-भागने लगता है। न जाने क्या कुछ याद आने लगता है।
माफ कीजियेगा, मैं आपको खुद अपने लिहाफ़ का रूमानअंगेज़ ज़िक्र बताने नहीं जा रही हूँ, न लिहाफ़ से किसी किस्म का रूमान जोड़ा ही जा सकता है। मेरे ख़याल में कम्बल कम आरामदेह सही, मगर उसकी परछाई इतनी भयानक नहीं होती जितनी, जब लिहाफ़ की परछाई दीवार पर डगमगा रही हो।
यह जब का जिक्र है, जब मैं छोटी-सी थी और दिन-भर भाइयों और उनके दोस्तों के साथ मार-कुटाई में गुज़ार दिया करती थी। कभी-कभी मुझे ख़याल आता कि मैं कमबख्त इतनी लड़ाका क्यों थी? उस उम्र में जबकि मेरी और बहनें आशिक जमा कर रही थीं, मैं अपने-पराये हर लड़के और लड़की से जूतम-पैजार में मशगूल थी।
यही वजह थी कि अम्माँ जब आगरा जाने लगीं तो हफ्ता-भर के लिए मुझे अपनी एक मुँहबोली बहन के पास छोड़ गईं। उनके यहाँ, अम्माँ खूब जानती थी कि चूहे का बच्चा भी नहीं और मैं किसी से भी लड़-भिड़ न सकूँगी। सज़ा तो खूब थी मेरी! हाँ, तो अम्माँ मुझे बेगम जान के पास छोड़ गईं।
वही बेगम जान जिनका लिहाफ़ अब तक मेरे ज़हन में गर्म लोहे के दाग की तरह महफूज है। ये वो बेगम जान थीं जिनके गरीब माँ-बाप ने नवाब साहब को इसलिए दामाद बना लिया कि वह पकी उम्र के थे मगर निहायत नेक। कभी कोई रण्डी या बाज़ारी औरत उनके यहाँ नज़र न आई। ख़ुद हाजी थे और बहुतों को हज करा चुके थे।
मगर उन्हें एक निहायत अजीबो-गरीब शौक था। लोगों को कबूतर पालने का जुनून होता है, बटेरें लड़ाते हैं, मुर्गबाज़ी करते हैं, इस किस्म के वाहियात खेलों से नवाब साहब को नफ़रत थी। उनके यहाँ तो बस तालिब इल्म रहते थे। नौजवान, गोरे-गोरे, पतली कमरों के लड़के, जिनका खर्च वे खुद बर्दाश्त करते थे।
मगर बेगम जान से शादी करके तो वे उन्हें कुल साज़ो-सामान के साथ ही घर में रखकर भूल गए। और वह बेचारी दुबली-पतली नाज़ुक-सी बेगम तन्हाई के गम में घुलने लगीं। न जाने उनकी ज़िन्दगी कहाँ से शुरू होती है? वहाँ से जब वह पैदा होने की गलती कर चुकी थीं, या वहाँ से जब एक नवाब की बेगम बनकर आयीं और छपरखट पर ज़िन्दगी गुजारने लगीं, या जब से नवाब साहब के यहाँ लड़कों का जोर बँधा। उनके लिए मुरग्गन हलवे और लज़ीज़ खाने जाने लगे और बेगम जान दीवानखाने की दरारों में से उनकी लचकती कमरोंवाले लड़कों की चुस्त पिण्डलियाँ और मोअत्तर बारीक शबनम के कुर्ते देख-देखकर अंगारों पर लोटने लगीं।
या जब से वह मन्नतों-मुरादों से हार गईं, चिल्ले बँधे और टोटके और रातों की वज़ीफाख्व़ानी भी चित हो गई। कहीं पत्थर में जोंक लगती है! नवाब साहब अपनी जगह से टस-से-मस न हुए। फिर बेगम जान का दिल टूट गया और वह इल्म की तरफ मोतवज्जो हुई। लेकिन यहाँ भी उन्हें कुछ न मिला। इश्किया नावेल और जज़्बाती अशआर पढ़कर और भी पस्ती छा गई। रात की नींद भी हाथ से गई और बेगम जान जी-जान छोड़कर बिल्कुल ही यासो-हसरत की पोट बन गईं।
चूल्हे में डाला था ऐसा कपड़ा-लत्ता। कपड़ा पहना जाता है किसी पर रोब गाँठने के लिए। अब न तो नवाब साहब को फुर्सत कि शबनमी कुर्तों को छोड़कर ज़रा इधर तवज्जो करें और न वे उन्हें कहीं आने-जाने देते। जब से बेगम जान ब्याहकर आई थीं, रिश्तेदार आकर महीनों रहते और चले जाते, मगर वह बेचारी कैद की कैद रहतीं।
उन रिश्तेदारों को देखकर और भी उनका खून जलता था कि सबके-सब मज़े से माल उड़ाने, उम्दा घी निगलने, जाड़े का साज़ो-सामान बनवाने आन मरते और वह बावजूद नई रूई के लिहाफ के, पड़ी सर्दी में अकड़ा करतीं। हर करवट पर लिहाफ़ नईं-नईं सूरतें बनाकर दीवार पर साया डालता। मगर कोई भी साया ऐसा न था जो उन्हें ज़िन्दा रखने लिए काफी हो। मगर क्यों जिये फिर कोई? ज़िन्दगी! बेगम जान की ज़िन्दगी जो थी! जीना बंदा था नसीबों में, वह फिर जीने लगीं और खूब जीं।
रब्बो ने उन्हें नीचे गिरते-गिरते सँभाल लिया। चटपट देखते-देखते उनका सूखा जिस्म भरना शुरू हुआ। गाल चमक उठे और हुस्न फूट निकला। एक अजीबो-गरीब तेल की मालिश से बेगम जान में ज़िन्दगी की झलक आई। माफ़ कीजिएगा, उस तेल का नुस्खा़ आपको बेहतरीन-से-बेहतरीन रिसाले में भी न मिलेगा।
जब मैंने बेगम जान को देखा तो वह चालीस-बयालीस की होंगी। ओफ्फोह! किस शान से वह मसनद पर नीमदराज़ थीं और रब्बो उनकी पीठ से लगी बैठी कमर दबा रही थी। एक ऊदे रंग का दुशाला उनके पैरों पर पड़ा था और वह महारानी की तरह शानदार मालूम हो रही थीं। मुझे उनकी शक्ल बेइन्तहा पसन्द थी। मेरा जी चाहता था, घण्टों बिल्कुल पास से उनकी सूरत देखा करूँ। उनकी रंगत बिल्कुल सफेद थी। नाम को सुर्खी का ज़िक्र नहीं। और बाल स्याह और तेल में डूबे रहते थे। मैंने आज तक उनकी माँग ही बिगड़ी न देखी। क्या मजाल जो एक बाल इधर-उधर हो जाए। उनकी आँखें काली थीं और अबरू पर के ज़ायद बाल अलहदा कर देने से कमानें-सीं खिंची होती थीं। आँखें ज़रा तनी हुई रहती थीं। भारी-भारी फूले हुए पपोटे, मोटी-मोटी पलकें। सबसे ज़ियाद जो उनके चेहरे पर हैरतअंगेज़ जाज़िबे-नज़र चीज़ थी, वह उनके होंठ थे। अमूमन वह सुर्खी से रंगे रहते थे। ऊपर के होंठ पर हल्की-हल्की मूँछें-सी थीं और कनपटियों पर लम्बे-लम्बे बाल। कभी-कभी उनका चेहरा देखते-देखते अजीब-सा लगने लगता था, कम उम्र लड़कों जैसा।

उनके जिस्म की जिल्द भी सफेद और चिकनी थी। मालूम होता था किसी ने कसकर टाँके लगा दिए हों। अमूमन वह अपनी पिण्डलियाँ खुजाने के लिए किसोलतीं तो मैं चुपके-चुपके उनकी चमक देखा करती। उनका कद बहुत लम्बा था और फिर गोश्त होने की वजह से वह बहुत ही लम्बी-चौड़ी मालूम होतीं थीं। लेकिन बहुत मुतनासिब और ढला हुआ जिस्म था। बड़े-बड़े चिकने और सफेद हाथ और सुडौल कमर तो रब्बो उनकी पीठ खुजाया करती थी। यानी घण्टों उनकी पीठ खुजाती, पीठ खुजाना भी ज़िन्दगी की ज़रूरियात में से था, बल्कि शायद ज़रूरियाते-ज़िन्दगी से भी ज्यादा।

रब्बो को घर का और कोई काम न था। बस वह सारे वक्त उनके छपरखट पर चढ़ी कभी पैर, कभी सिर और कभी जिस्म के और दूसरे हिस्से को दबाया करती थी। कभी तो मेरा दिल बोल उठता था, जब देखो रब्बो कुछ-न-कुछ दबा रही है या मालिश कर रही है।

कोई दूसरा होता तो न जाने क्या होता? मैं अपना कहती हूँ, कोई इतना करे तो मेरा जिस्म तो सड़-गल के खत्म हो जाय। और फिर यह रोज़-रोज़ की मालिश काफी नहीं थीं। जिस रोज़ बेगम जान नहातीं, या अल्लाह! बस दो घण्टा पहले से तेल और खुशबुदार उबटनों की मालिश शुरू हो जाती। और इतनी होती कि मेरा तो तख़य्युल से ही दिल लोट जाता। कमरे के दरवाज़े बन्द करके अँगीठियाँ सुलगती और चलता मालिश का दौर। अमूमन सिर्फ़ रब्बो ही रही। बाकी की नौकरानियाँ बड़बड़ातीं दरवाज़े पर से ही, जरूरियात की चीज़ें देती जातीं।

बात यह थी कि बेगम जान को खुजली का मर्ज़ था। बिचारी को ऐसी खुजली होती थी कि हज़ारों तेल और उबटने मले जाते थे, मगर खुजली थी कि कायम। डाक्टर,हकीम कहते, ''कुछ भी नहीं, जिस्म साफ़ चट पड़ा है। हाँ, कोई जिल्द के अन्दर बीमारी हो तो खैर।'' 'नहीं भी, ये डाक्टर तो मुये हैं पागल! कोई आपके दुश्मनों को मर्ज़ है? अल्लाह रखे, खून में गर्मी है! रब्बो मुस्कराकर कहती, महीन-महीन नज़रों से बेगम जान को घूरती! ओह यह रब्बो! जितनी यह बेगम जान गोरी थीं उतनी ही यह काली। जितनी बेगम जान सफेद थीं, उतनी ही यह सुर्ख। बस जैसे तपाया हुआ लोहा। हल्के-हल्के चेचक के दाग। गठा हुआ ठोस जिस्म। फुर्तीले छोटे-छोटे हाथ। कसी हुई छोटी-सी तोंद। बड़े-बड़े फूले हुए होंठ, जो हमेशा नमी में डूबे रहते और जिस्म में से अजीब घबरानेवाली बू के शरारे निकलते रहते थे। और ये नन्हें-नन्हें फूले हुए हाथ किस कदर फूर्तीले थे! अभी कमर पर, तो वह लीजिए फिसलकर गए कूल्हों पर! वहाँ से रपटे रानों पर और फिर दौड़े टखनों की तरफ! मैं तो जब कभी बेगम जान के पास बैठती, यही देखती कि अब उसके हाथ कहाँ हैं और क्या कर रहें हैं?

गर्मी-जाड़े बेगम जान हैदराबादी जाली कारगे के कुर्ते पहनतीं। गहरे रंग के पाजामे और सफेद झाग-से कुर्ते। और पंखा भी चलता हो, फिर भी वह हल्की दुलाई ज़रूर जिस्म पर ढके रहती थीं। उन्हें जाड़ा बहुत पसन्द था। जाड़े में मुझे उनके यहाँ अच्छा मालूम होता। वह हिलती-डुलती बहुत कम थीं। कालीन पर लेटी हैं, पीठ खुज रही हैं, खुश्क मेवे चबा रही हैं और बस! रब्बो से दूसरी सारी नौकरियाँ खार खाती थीं। चुड़ैल बेगम जान के साथ खाती, साथ उठती-बैठती और माशा अल्लाह! साथ ही सोती थी! रब्बो और बेगम जान आम जलसों और मजमूओं की दिलचस्प गुफ्तगू का मौजूँ थीं। जहाँ उन दोनों का ज़िक्र आया और कहकहे उठे। लोग न जाने क्या-क्या चुटकुले गरीब पर उड़ाते, मगर वह दुनिया में किसी से मिलती ही न थी। वहाँ तो बस वह थीं और उनकी खुजली!

मैंने कहा कि उस वक्त मैं काफ़ी छोटी थी और बेगम जान पर फिदा। वह भी मुझे बहुत प्यार करती थीं। इत्तेफाक से अम्माँ आगरे गईं। उन्हें मालूम था कि अकेले घर में भाइयों से मार-कुटाई होगी, मारी-मारी फिरूँगी, इसलिए वह हफ्ता-भर के लिए बेगम जान के पास छोड़ गईं। मैं भी खुश और बेगम जान भी खुश। आखिर को अम्माँ की भाभी बनी हुई थीं।

सवाल यह उठा कि मैं सोऊँ कहाँ? कुदरती तौर पर बेगम जान के कमरे में। लिहाज़ा मेरे लिए भी उनके छपरखट से लगाकर छोटी-सी पलँगड़ी डाल दी गई। दस-ग्यारह बजे तक तो बातें करते रहे। मैं और बेगम जान चांस खेलते रहे और फिर मैं सोने के लिए अपने पलंग पर चली गई। और जब मैं सोयी तो रब्बो वैसी ही बैठी उनकी पीठ खुजा रही थी। 'भंगन कहीं की!' मैंने सोचा। रात को मेरी एकदम से आँख खुली तो मुझे अजीब तरह का डर लगने लगा। कमरे में घुप अँधेरा। और उस अँधेरे में बेगम जान का लिहाफ ऐसे हिल रहा था, जैसे उसमें हाथी बन्द हो!
''बेगम जान!'' मैंने डरी हुई आवाज़ निकाली। हाथी हिलना बन्द हो गया। लिहाफ नीचे दब गया।
''क्या है? सो जाओ।''
बेगम जान ने कहीं से आवाज़ दी।
''डर लग रहा है।''
मैंने चूहे की-सी आवाज़ से कहा।
''सो जाओ। डर की क्या बात है? आयतलकुर्सी पढ़ लो।''
''अच्छा।''
मैंने जल्दी-जल्दी आयतलकुर्सी पढ़ी। मगर 'यालमू मा बीन' पर हर दफा आकर अटक गई। हालाँकि मुझे वक्त पूरी आयत याद है।


'तुम्हारे पास आ जाऊँ बेगम जान?''
''नहीं बेटी, सो रहो।'' ज़रा सख्ती से कहा।
और फिर दो आदमियों के घुसुर-फुसुर करने की आवाज़ सुनायी देने लगी। हाय रे! यह दूसरा कौन? मैं और भी डरी।
''बेगम जान, चोर-वोर तो नहीं?''
''सो जाओ बेटा, कैसा चोर?''
रब्बो की आवाज़ आई। मैं जल्दी से लिहाफ में मुँह डालकर सो गई।

सुबह मेरे जहन में रात के खौफनाक नज़्ज़ारे का खयाल भी न रहा। मैं हमेशा की वहमी हूँ। रात को डरना, उठ-उठकर भागना और बड़बड़ाना तो बचपन में रोज़ ही होता था। सब तो कहते थे, मुझ पर भूतों का साया हो गया है। लिहाज़ा मुझे खयाल भी न रहा। सुबह को लिहाफ बिल्कुल मासूम नज़र आ रहा था।
मगर दूसरी रात मेरी आँख खुली तो रब्बो और बेगम जान में कुछ झगड़ा बड़ी खामोशी से छपरखट पर ही तय हो रहा था। और मेरी खाक समझ में न आया कि क्या फैसला हुआ? रब्बो हिचकियाँ लेकर रोयी, फिर बिल्ली की तरह सपड़-सपड़ रकाबी चाटने-जैसी आवाज़ें आने लगीं, ऊँह! मैं तो घबराकर सो गई।

आज रब्बो अपने बेटे से मिलने गई हुई थी। वह बड़ा झगड़ालू था। बहुत कुछ बेगम जान ने किया, उसे दुकान करायी, गाँव में लगाया, मगर वह किसी तरह मानता ही नहीं था। नवाब साहब के यहाँ कुछ दिन रहा, खूब जोड़े-बागे भी बने, पर न जाने क्यों ऐसा भागा कि रब्बो से मिलने भी न आता। लिहाज़ा रब्बो ही अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ उससे मिलने गई थीं। बेगम जान न जाने देतीं, मगर रब्बो भी मजबूर हो गई। सारा दिन बेगम जान परेशान रहीं। उनका जोड़-जोड़ टूटता रहा। किसी का छूना भी उन्हें न भाता था। उन्होंने खाना भी न खाया और सारा दिन उदास पड़ी रहीं।
''मैं खुजा दूँ बेगम जान?''
मैंने बड़े शौक से ताश के पत्ते बाँटते हुए कहा। बेगम जान मुझे गौर से देखने लगीं।
''मैं खुजा दूँ? सच कहती हूँ!''
मैंने ताश रख दिए।
मैं थोड़ी देर तक खुजाती रही और बेगम जान चुपकी लेटी रहीं। दूसरे दिन रब्बो को आना था, मगर वह आज भी गायब थी। बेगम जान का मिज़ाज चिड़चिड़ा होता गया। चाय पी-पीकर उन्होंने सिर में दर्द कर लिया। मैं फिर खुजाने लगी उनकी पीठ-चिकनी मेज़ की तख्ती-जैसी पीठ। मैं हौले-हौले खुजाती रही। उनका काम करके कैसी खुशी होती थी!
''जरा ज़ोर से खुजाओ। बन्द खोल दो।'' बेगम जान बोलीं, ''इधर ऐ है, ज़रा शाने से नीचे हाँ वाह भइ वाह! हा!हा!'' वह सुरूर में ठण्डी-ठण्डी साँसें लेकर इत्मीनान ज़ाहिर करने लगीं।

''और इधर...'' हालाँकि बेगम जान का हाथ खूब जा सकता था, मगर वह मुझसे ही खुजवा रही थीं और मुझे उल्टा फख्र हो रहा था। ''यहाँ ओई! तुम तो गुदगुदी करती हो वाह!'' वह हँसी। मैं बातें भी कर रही थी और खुजा भी रही थी।
''तुम्हें कल बाज़ार भेजूँगी। क्या लोगी? वही सोती-जागती गुड़िया?''
''नहीं बेगम जान, मैं तो गुड़िया नहीं लेती। क्या बच्चा हूँ अब मैं?''
''बच्चा नहीं तो क्या बूढ़ी हो गई?'' वह हँसी ''गुड़िया नहीं तो बनवा लेना कपड़े, पहनना खुद। मैं दूँगी तुम्हें बहुत-से कपड़े। सुना?'' उन्होंने करवट ली।
''अच्छा।'' मैंने जवाब दिया।
''इधर...'' उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर जहाँ खुजली हो रही थी, रख दिया। जहाँ उन्हें खुजली मालूम होती, वहाँ मेरा हाथ रख देतीं। और मैं बेखयाली में, बबुए के ध्यान में डूबी मशीन की तरह खुजाती रही और वह मुतवातिर बातें करती रहीं।
''सुनो तो तुम्हारी फ्राकें कम हो गई हैं। कल दर्जी को दे दूँगी, कि नई-सी लाए। तुम्हारी अम्माँ कपड़ा दे गई हैं।''
''वह लाल कपड़े की नहीं बनवाऊँगी। चमारों-जैसा है!'' मैं बकवास कर रही थी और हाथ न जाने कहाँ-से-कहाँ पहुँचा। बातों-बातों में मुझे मालूम भी न हुआ।
बेगम जान तो चुप लेटी थीं। ''अरे!'' मैंने जल्दी से हाथ खींच लिया।

''ओई लड़की! देखकर नहीं खुजाती! मेरी पसलियाँ नोचे डालती है!''
बेगम जान शरारत से मुस्करायीं और मैं झेंप गई।
''इधर आकर मेरे पास लेट जा।''
''उन्होंने मुझे बाजू पर सिर रखकर लिटा लिया।
''अब है, कितनी सूख रही है। पसलियाँ निकल रही हैं।'' उन्होंने मेरी पसलियाँ गिनना शुरू कीं।
''ऊँ!'' मैं भुनभुनायी।
''ओइ! तो क्या मैं खा जाऊँगी? कैसा तंग स्वेटर बना है! गरम बनियान भी नहीं पहना तुमने!''
मैं कुलबुलाने लगी।
''कितनी पसलियाँ होती हैं?'' उन्होंने बात बदली।
''एक तरफ नौ और दूसरी तरफ दस।''
मैंने स्कूल में याद की हुई हाइजिन की मदद ली। वह भी ऊटपटाँग।
''हटाओ तो हाथ हाँ, एक दो तीन...''
मेरा दिल चाहा किसी तरह भागूँ और उन्होंने जोर से भींचा।
''ऊँ!'' मैं मचल गई।
बेगम जान जोर-जोर से हँसने लगीं।

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