शनिवार, 7 मई 2011

पेंटिंग बिछी कालीन में







डा. अनुजा भट्ट
कला के लिए जरूरी है कि कला का विकास हो। प्रस्तुतिकरण में भी बदलाव हो और वह हमेशा नएपन को लिए हुए लोगों को दिखाई दे। इसी सोच को आगे बढ़ाने का काम किया सुनील सेठी ने। सुनील फैशन डिजाइन कांसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष हैं। वह मेनका गांधी के एनजीओ पीएफए पीपुल फार एनिमल से भी जुड़े हुए हैं और उस संगठन को अनुदान देते हैं। इस तरह देखें तो भारत भर के 31 पशु अस्पताल के लिए वह सेवा कर रहे हंै। सरसरी नजर से देखें तो फैशन डिजाइनिंग और पशु प्रेम का मेल नहीं पर बहुआयामी सोच के सुनील के दिमाग में इस तरह के कई विचार कौंधते है जिनको यकायक सुनकर आप चौंक जाएंगे। ऐसे ही उनके दिमाग में यह विचार आया कि क्यों न देश के नामी पेंटरों और डिजाइनरों की कृतियों को एक नए फार्म में पेश किया जाए। उनको देखने परखने का नजरिया बदला जाए और लोगों के ज्यादा करीब लाया जाए। पेंटिंग का महत्व तो सिर्फ कला प्रेमी ही जानते हैं। यह सोचते समय फ्लोरिंग के लिए पेंटिंग और ड्रेस डिजाइन उनको जम गए।
पहले यह सारी डिजाइन और पेंटिंग को ज्योमैट्रिकल ग्राफ में उतारा गया और फिर बुनकरों को डिजाइन के साथ दे दिया गया। जो पेंटिंग अभी तक घर की दीवारों का हिस्सा होती थी अब फ्लोर के कालीन में भी दिखाई देने लगी। लगभग 40 मशहूर पेंटरों और फैशन डिजाइनरों ने इसमें हिस्सा लिया। इन कालीनों की कीमत 35 हजार से लेकर 5 लाख थी। प्रतिकृति और प्रामाणिकता को देखा जाए तो आकार आकृतियां और संरचनाएं अदिकांश कालीनों का मूलकृति से काफी हद तक मिलती हैं किंतु कुछ कृतियों के रंग बदल भी दिए गए। कालीनों का आकार बहत्तर गुणा बहत्तर इंच और अड़तालीस गुणा अड़तालीस इंच था। रजा की पेंटिंग के आधार पर बने कालीन में एक बड़ा वृत था और उसके चारों ओर चौकोर आकृतियां। योगेश महीड़ा के कृति से बने कालीन में गांव का दृश्य दिखाई दे रहा था। जिसमें कुछ झोपड़ी थी और कुछ पशु। रोहित बल की कृति पर आधारित कालीन में मुगलशैली की किसी रानी का चित्र था। मनजीत बाबा की कृति में कृष्ण बांसुरी बजा रहे हैं। इस तरह बड़े बड़े डिजाइनर भी अपना कला और कल्पना को कालीन में बुनते हुए देख्र रहे हैं। दिल्ली के मशहूर होटल में अभी हाल ही में में एक ऐसी प्रदर्शनी भी लगाई गई जिसमें पेंटर से लेकर फैशन डिजाइनरों तक की कृतियों को बुनकरों ने अपनी कला के रंग में ढाल दिया।
न्यूजीलैंड ऊन से बुने गए कालीनों में मकबूल फिदा हुसैन, सैयद हैदर रजा, रामकुमार, जहांगीर सबावाला, वैकुंठम, सेनका सेनानायके, मनीष पुष्कले, जयश्री बर्मन, परेश मैती, योगेश महीड़ा जैसे चित्रकार थे तो फैशन डिजाइनर रितु कुमार, मनीष अरोड़ा , जे.जे वाल्या जैसे डिजाइनरों की कृतियां भी थीं। पुरस्कृत बुनकरों ने इनको बुना था। रजा की पेटिंग पर बने कालीनों की कीमत 5 लाख रुपये थी तो योगेश महीड़ा की कृति पर बने कालीन की कीमत 35 हजार रुपये। रामकुमार की कृति पर बना कालीन 5 लाख का था। फैशन डिजाइनरों की कृतियों की कीमत कम थी। रोहित बल और रितु कुमार की कृति पर बने कालीन की कीमत 35 हजार रुपये थी। जैसे जैसे जागरूकता बड़ी है अब लोग ऐसी कलाकृतियों में भी निवेश करने लगे है।

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कुमाऊंनी भाषा के कबीर रहीम की जोड़ी डा. अनुजा भट्ट

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