गुरुवार, 25 नवंबर 2010

फूल जो हंसते है
  फूल जो खुशबू देते हैं
  जिनसे आप बात कर सकते है
 जिंदगी की खुशियों को याद रख सकते हैं
 फूल जो आपके मन के तार किसी से जोड़ देते हैं
 खुद आपके होंठ बन जाते हैं
 फिर हम शब्दहीन हो जाते हैं
 इसीलिए फूलों को कैद करके रखती हूं मैं
  अपने कैमरे में
 क्योंकि यह मेरे लिए प्यार की निशानी है
 फूल,काले अंगूर और मिठाई का डिब्बा
 मेरी जिंदगी की एक जीवंत कथा है



  

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

शालीन होते कालीन, ये फर्श का मामला है

 
अनुजा भट्ट
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पहले घरों में कारपेट बिछाना केवल अमीरों के लिए मुमकिन था। कारपेट महंगे होने की वजह से लोग इन्हें खरीदने से बचते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। बाजार में अब तरह-तरह की वैरायटी के कारपेट मिल जाएंगे, जो सस्ते होने के साथ सुन्दर भी हैं। बाजार में कैसे-कैसे कालीन इस समय उपलब्ध हैं, आइये देखते हैं एक नजर
घर में कालीन होना पहले सम्पन्नता की निशानी माना जाता था। ये कालीन उच्च वर्ग के लोगों के घरों में ही मिलते थे। महंगे होने की वजह से मध्य वर्ग के लोग इन्हें खरीद नहीं पाते थे। लेकिन पिछले कुछ समय से कालीन निर्माण के क्षेत्र में क्रांति सी आ गई है। इनका निर्माण अब देश में कई जगहों पर होने लगा है। पहले ये हाथ से बनाए जाते थे, अब इनका निर्माण मशीनों से होता है। यही वजह है कि अब ये कई तरह की वैरायटी में मिलने लगे हैं। कीमत कम होने की वजह से अब इनका प्रचलन मध्य वर्ग में भी खूब होने लगा है। एक से बढ़ कर एक कालीन बाजार में उपलब्ध हैं। अगर आप सस्ता कालीन चाहते हैं तो वह भी आपको अच्छी वैरायटी का मिल जाएगा।
कहां कहां बनते हैं कालीन
भारत में जम्मू-कश्मीर का नाम कालीन निर्माण के क्षेत्र में सबसे ऊपर है। इसके साथ राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात और हरियाणा में भी उम्दा किस्म व डिजाइन के कालीन तैयार हो रहे हैं। कालीन की कई किस्में हैं। हाथ से बने ऊनी कालीन, सिल्क से बने कालीन, सिंथेटिक कालीन, फर वाले कालीन, हाथ से बनी ऊनी दरियां- इन सबकी बाजार में भारी मांग है।  इंडियन इंस्टिट्य़ूट ऑफ कारपेट टेक्नोलॉजी ने हाल ही में एक डिजाइन स्टूडियो का गठन किया है, जिसकी मदद से कारपेट के बुनने, उसके कलर कॉम्बिनेशन के लिए सीएडी सिस्टम भी लगाए गए हैं, ताकि उच्च कोटि का कारपेट तैयार किया
जा सके।
कैसे-कैसे कालीन
बाजार में आजकल डिजाइनर कालीन की धूम है। परंपरागत वूलन कालीन की बजाय नए-नए डिजाइनों के सिल्क, सिंथेटिक व मखमली कालीन बाजार में छाए हुए हैं। सिल्क कालीन वजन में हल्के हैं और इनके डिजाइन में खास वैरायटी भी है। इन दिनों इनमें जियोमेट्रिकल डिजाइन की सबसे ज्यादा डिमांड है। इन्हें आमतौर पर बेड की साइड में या सोफे के सेंटर में इस्तेमाल किया जाता है।  इनकी कीमत 6 हजार से लेकर 18 हजार रुपये तक है। ईरान का मखमली कालीन और सिंथेटिक कालीन भी पसंद किया जा रहा है। इनकी कम से कम कीमत 12 हजार है। इसके अलावा, सिंथेटिक कालीन की भी लोगों के बीच अच्छी डिमांड है। ये कीमत में तो कम होते ही हैं, साथ ही घर में भी आसानी से धुल जाते हैं। ये 8 हजार से 18 हजार रुपये तक की कीमत के होते हैं। सेंट्रल टेबल के नीचे इस्तेमाल होने वाले ये कारपेट 800 से लेकर 1500 रुपये में भी मिल जाते हैं। बच्चों के कमरों के लिए विभिन्न काटरून कैरक्टर्स और खिलौनों के प्रिंट वाले कालीन इन दिनों खूब बिक रहे हैं। रूम के फर्नीचर और कर्टेन से मैच करते ये कालीन आपको कई तरह के शेप में मिल जाएंगे। ये साइज के मुताबिक लगभग चार हजार रुपये की प्राइज रेंज से मिलना शुरू होते हैं। इन डिजाइंस के कालीन ज्यादातर बेल्जियम और जर्मनी के होते हैं। ये ज्यादातर ब्राइट कलर्स में होते हैं। ऐसे में इसकी कीमत ज्यादा होना स्वाभाविक है। बाजार में इन दिनों वूलन कालीन की मांग कम है। कुछ साल पहले तक वूलन कारपेट ही ट्रैंड में थे। इसका मुख्य कारण गर्मी का लगातार बढ़ते जाना है।
पेंटिंग बनी कालीन
अभी हाल ही में एक ऐसी प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसमें पेंटर से लेकर फैशन डिजाइनरों तक की कृतियों को बुनकरों ने अपनी कला के रंग में ढाल दिया।  न्यूजीलैंड में ऊन से बुने गए कालीनों में मकबूल फिदा हुसैन, सैयद हैदर रजा, रामकुमार, जहांगीर सबावाला, वैकुंठम, सेनका सेनानायके, मनीष पुष्कले, जयश्री बर्मन, परेश मैती, योगेश महीड़ा जैसे चित्रकार थे तो फैशन डिजाइनर रितु कुमार, मनीष अरोड़ा, जेजे वलाया जैसे डिजाइनरों की कृतियां भी थीं। पुरस्कृत बुनकरों ने इनको बुना था। रजा की पेटिंग पर बने कालीनों की कीमत 5 लाख  रुपये थी तो योगेश महीड़ा  की कृति पर बने कालीन की कीमत 35 हजार रुपये। रामकुमार की कृति पर बना कालीन 5 लाख का था। फैशन डिजाइनरों की कृतियों की कीमत कम थी। रोहित बल और रितु कुमार की कृति पर बने कालीन की कीमत 35 हजार रुपये थी।
कालीन नई रंगत के
लेदर से तैयार कालीन की भी एक खास वर्ग में अच्छी डिमांड है। ये मशीन से बनते हैं और इनमें सिंथेटिक मटीरियल का प्रयोग होता है। ये दिखने में भी बेहद अट्रैक्टिव होते हैं। भारतीय मार्केट में छाए कालीनों में कोरिन्थिया बाथ रग, मिलेफ्लेयर मैट, मून गेज, फ्लम बॉर्डर, माउस रग और सेवीलेड प्लेड कालीनों का भी अच्छा-खासा मार्केट है। कोरिन्थिया बाथ रग का डिजाइन डायमंड पैटर्न पर आधारित होता है।
मिलफ्लोर मैट का डिजाइन पूरी तरह बॉटेनिकल थीम पर आधारित होता है। यह कालीन पूरी तरह कॉटन से बना होता है। मून गेज कालीन नायलॉन से बना होता है। इसमें हाथ से कढ़ाई की जाती  है।

special post

कुमाऊंनी भाषा के कबीर रहीम की जोड़ी डा. अनुजा भट्ट

   हल्द्वानी जो मेरे बाबुल का घर है जिसकी खिड़की पर खड़े होकर मैंने जिंदगी को सामने से गुजरते देखा है, जिसकी दीवारों पर मैंने भी कभी एबीसी़डी ...