सोमवार, 7 अगस्त 2017

बच्चों की पढ़ाई में संगीत नदारद क्यूं


 डा. अनुजा भट्ट
 क्या आप किसी आठवीं क्लास में पढऩे वाले विद्यार्थी से ये उम्मीद कर सकते हैं कि वह तबला वादन में अपनी प्रस्तुति से सबको चौंका दे। क्या छठी क्लास में पढऩे वाला बच्चा रवि वर्मा या अमृता शेरगिल की पेंटिंग में अंतर कर सकता है? क्या ये बच्चे कत्थक और भरतनाट्यम जैसे नृत्य के भेद को बता सकते हैं? इसकी वजह यह है कि बच्चे गणित ,विज्ञान, भूगोल  इतिहास, कंप्यूटर जैसे विषयों  में ही हर समय घिरे रहते हैं। स्कूली शिक्षा में फाइन आर्ट का विशेष महत्व नहीं है। शाीय गायिका शुभा मुद्लग इस विषय को बहुत गंभीरता से उठाती है कि आखिर क्यों कला के प्रति स्कूल बहुत गंभीरता से नहीं लेते और उसको पाठ्यक्रम में शामिल नहीं करते।  वह सिके प्रति गंभीर क्यों नहीं है?  यह विचार एकदम सरल है। बच्चों को नर्सरी क्लास से ही कला की शिक्षा दी जाए  अन्य विषयों की तरह कला का भी मूल्यांकन किया जाए।  इस विषय को जबरदस्ती उन पर थोपा न जाए बल्कि उनकी रुचि विषय पर केंद्रित किया जाए। यह  भी उतने ही महत्व से पढ़ाया जाए जितना गणित और विज्ञान विषय पढ़ाए जाते हैं।   कला के अंतर्गत संगीत, नृत्य, पेंटिंग, रंगमंच, वाद्य यंत्र शामिल हो।  इस अध्य्यन के बाद हमारे सामने अच्छे कलाकार होगें।
 अभी तक कला की शिक्षा लेने वाले बच्च व्यक्गित स्तर पर ही सीखते हैं । फिर चाहे वह  नृत्य हो संगीत हो या फिर वाद्य यंत्र।  उनसे पूछने पर वह अपने स्कूल टीचर का नाम नहीं लेते यह आश्चर्य की बात है कि उनके आर्ट टीचर के रीप में स्कूल के आर्ट टीतर का नाम नहीं है। अधिकांश माता- पिता को भी कला की  विधिवत शिक्षा के बारे में जानकारी नहीं है।  जबकि भारत में कला की परंपरागत शिक्षा का महत्व है लेकिन जबचक बच्चे खुद को एक कलाकार के रूप में नहीं देखना चाहेंगे तब तक वह गुरू परंपरा के बारे में जानने को क्यों उत्सुक होंगे? कला की कक्षा में बारी बारी से हर कला की हर विधा के शिक्षक को पढाने का अवसर मिले। फिर ताहे वह संगीत हो, कला हो रंगमंच हो या  कुछ और? शिक्षकों को प्रशिक्षण देते समय भी यह घ्यान में रखा जाए और कला शिक्षकों को भी प्रशिक्षण के लिए भेजा जबच्चों की पढ़ाई में संगीत नदारद क्यूं

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