रविवार, 10 अक्तूबर 2010

बीमारी की गिरफ्त में कारपोरेट सेक्टर


अनुजा भट्ट

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए युवा सबसे बड़ी ताकत हैं। किसी भी संगठन में काम करने के लिए जरूरी है कि वहां के कर्मचारी स्वस्थ हों। अगर उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता तो संगठन भी कमजोर होता है क्योंकि काम समय पर नहीं हो पाता। दिनचर्या के ठीक न होने से और खानपान के संतुलित न होने की वजह से कई सारी बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। पहले दिल की बीमारी 50 की उम्र के आसपास अपनी गिरफ्त में लेती थी, लेकिन अब 18 से लेकर 30 साल के युवा इसकी चपेट में हैं।
एसोचैम की रिपोर्ट कॉरपोरेट वर्कफोर्स-क्रॉनिक एंड लाइफस्टाइल डिसीजिज’, में कहा गया है कि आईटी, आईटी से जुड़े दूसरे सेवा क्षेत्रों, मीडिया, वित्तीय सेक्टर, बीपीओ और केपीओ में काम करने वाले दिल की बीमारियों, थकान और दूसरी क्रॉनिक बीमारियों मसलन, डायबिटीज, सांस और कैंसर के शिकार हो रहे हैं।
कार्यस्थल नीतियों में थोड़े से बदलाव - मसलन दफ्तर के अंदर या बाहर धूम्रपान पर रोक लगाकर, कैंटीन के मेन्यू में ज्यादा से ज्यादा फल और सब्जियों को शामिल करके, जिम खोलकर या कुछ अन्य तरीके से शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर कर्मचारियों की सेहत को काफी सुधारा जा सकता है। इससे आए दिन स्वास्थ्य कारणों से कर्मचारियों की गैरहाजिरी में भारी गिरावट आ सकती है।

तेजी से भागती-दौड़ती दुनिया में पेशेवर लोगों को अपनी आरामदायक जीवनशैली व खानपान की गलत आदतों के चलते अपनी सेहत पर बहुत से खतरे झेलने पड़ते हैं। मेदांता मेडिसिटी हॉस्पिटल में इलैक्ट्रोफिजियोलॉजी व पेसिंग प्रभाग के अध्यक्ष डॉ. बलबीर सिंह के अनुसार, चार कारक हैं जो हमारी सेहत पर असर डालते हैं आनुवांशिकता, स्वास्थ्य, काम काज का माहौल और जीवनशैली। जीवनशैली में शामिल हैं खानपान व व्यायाम का पैटर्न तथा तनाव से निपटने की व्यक्तिगत क्षमता।
युवाओं में कसरत की कमी व लापरवाही के साथ उनके रहन-सहन के अनियमित तरीके तथा काम व जीवन के बीच बिगड़ता संतुलन, उन्हें रोगी बनाने के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार हैं।
न्यूट्रीशियनिस्ट डॉ. शिखा शर्मा कहती हैं कि भारतीयों का भोजन पारंपरिक रूप से ही ऐसा होता है कि उसमें कैलोरीज की भरमार रहती है और उसके ऊपर से बर्गर, पिज्जा, पेस्ट्री, फ्रैंच फ्राई, सॉफ्ट ड्रिंक आदि जैसे फास्ट फूड मिल कर हमारी खुराक को और बिगाड़ रहे हैं, और फिर हम कसरत भी नहीं करते। धूम्रपान व मद्यपान की आदत को भी कई पेशेवरों ने अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया है। वे धीमे-धीमे निकोटीन व ऐल्कोहल के आदी होते चले जाते हैं और अपने जीवन को संकट में डाल लेते हैं। ये विषैले पदार्थ रक्त में घुल कर और कई तरह की विसंगतियां उत्पन्न करते हैं। यह देखा गया है कि ऐल्कोहल दिल के बाएं वेंट्रिकल को दबाता है। गौरतलब है कि बायां वेंट्रिकल ही खून को पम्प करता है। जब दिल का यह हिस्सा दबता है तो दो घटनाएं होती हैं: खून को कोशिकाओं तक पहुंचाने के लिए दिल को बहुत सख्ती से खून पम्प करना पड़ता है और कोशिकाओं व ऊतकों को अपने कार्य के लिए पर्याप्त रक्त नहीं मिल पाता। इसके अलावा, धूम्रपान से शरीर पर कई विपरीत असर पड़ते हैं, जैसे दिल की धड़कन बढ़ना, रक्तचाप में इजाफा और इससे दिल के रक्त आपूर्ति की भीतरी पंक्ति क्षतिग्रस्त हो जाती है जिसका परिणाम ऐंडोथीलियल डायसफंक्शन के रूप में होता है, जिससे व्यक्ति को कोरोनरी धमनी की बीमारी होने का जोखिम बढ़ जाता है।
युवाओं में कसरत की कमी, जीवनशैली की अनियमितता और काम-जीवन में बढ़ता असंतुलन उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है- डॉ. बलबीर सिंह, मेदांता हॉस्पिटल
भारतीय भोजन में कैलोरीज की भरमार होती है, उसके ऊपर फास्ट फूड की अधिकता हमारी खुराक को बिगाड़ रहे हैं- डॉ. शिखा शर्मा, न्यूट्रीशियनिस्ट
अपनी जीवनशैली को बनाएं हेल्दी

कार्डियोलॉजिस्ट और जस्ट फॉर हार्ट के फाउंडर-डायरेक्टर डॉ. रवींद्र जे कुलकर्णी के खास टिप्स-
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ताजा सब्जी, फल, मेवों का भरपूर सेवन करें।
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टोंड दूध, बिना चर्बी वाले मांस या अंडे की सफेदी करे खान-पान में शामिल करें।
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नमक, कैफीन (चाय, कॉफी)और एल्कोहल की मात्र की सीमित करें।
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रोजाना टहलने की दिनचर्या बनाएं। अपनी सामान्य चाल से रोजाना एक-दो किलोमीटर जरूर चलें।
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दफ्तर में काम करने के दौरान ब्रेक लें। हर दिन दो बार सुबह-शाम पांच मिनट के लिए शरीर को हिलाएं-डुलाएं।
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आपका ब्लड प्रेशर आदर्श यानी 115-75 होना चाहिए। अपने वजन पर ध्यान रखें।
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डिब्बाबंद और जंक फूड से परहेज करें।

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

सेहत तीस के बाद


 सेहत तीस के बाद
जीवन में 30वां बसंत आते ही किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन में एक स्थिरता और परिपक्वता आने लगती है। लेकिन यही वह उम्र भी है, जब कामकाज से लेकर घर-परिवार तक नई जिम्मेदारियां उठाने का समय शुरू हो जाता है। ऐसे में अपनी सेहत के बारे में नए सिरे से सोचने और उसे संवारने की जरूरत होती है।
30 की उम्र शुरू होते ही मांसपेशियों का द्रव्यमान कम होने लगता है। उसी तरह 40 की उम्र में हड्डियों का द्रव्यमान कम होने लगता है। मांसपेशियों में लचीलापन घटने लगता है। पहले की तुलना में हड्डियों के टूटने की आशंका  ज्यादा बढ़ जाती है। लेकिन व्यवस्थित दिनचर्या, व्यायाम और संतुलित खान-पान से आपको ज्यादा फिट, फुर्तीला और स्वस्थ रख सकता है।
सही खानपान- पूरे दिन में तीन से पांच बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में खाएं। आपका भोजन ऐसा होना चाहिए, जो आपको तीन-चार घंटे तक भूख न लगने दे। आप ब्राउन ब्रेड और सब्जी ले सकते हैं। ब्रेड से आपको जटिल कार्बोहाइड्रेट मिलता है, जो लंबे समय तक ऊर्जा देता रहता है। हर आहार में अलग-अलग समूह के तीन चीजें जरूर शामिल करें। मसलन  दाल, सब्जी रोटी या फल, दही और अंकुरित चना। 
सक्रिय रहें- सही खानपान से अपना वजह स्थिर रख सकते हैं। लेकिन अपने जोड़ों और मांसपेशियों को व्यायाम के जरिये लचीला और मजबूत बनाते  रहें। एक शारीरिक व्यायाम की बजाय अलग-अलग गतिविधि आजमाएं। व्यायाम से मांसपेशियों का द्रव्यमान घटने की रफ्तार कम तो होगी ही शरीर में कैलोरी संतुलन भी बना रहेगा।

तनाव रहित रहना सीखें-  ज्यादातर लोग मशीन की तरह काम करते हैं। वे ब्रेक नहीं लेते। ब्रेक लेना सीखें। इससे काम से जुड़ा तनाव खत्म हो जाएगा। लंबे असाइनमेंट के हर दिन मनपसंद संगीत सुनें। किताबें पढ़ें या अपनी मनपसंद गतिविधि में शामिल हों।
हेल्थ चेक-अप जरूरी - 30 की उम्र के बाद लिपिड प्रोफाइल या नियमित शुगर चेक-अप जरूरी है। इससे पता चलेगा कि आपके शरीर के अंदर क्या हो रहा है। किसी भी अस्वाभाविक परिवर्तन का पता चल सकेगा और उसका उपचार जल्द शुरू हो जाएगा।
लोचदार शरीर जरूरी - वजन घटाने या मांसपेशियां मजबूत करने वाले ज्यादातर लोग शरीर को लोचदार बनाना भूल जाते हैं। शरीर के सही वजन के साथ इसका लचीला होना भी जरूरी है। इसलिए ऐसे व्यायाम पर ध्यान दें, जिससे शरीर लचीला रहे। लचीला शरीर ज्यादा ऊर्जा भरा होता है। 30 की उम्र में आप इन चीजों पर ध्यान देकर खुद को लंबे समय तक स्वस्थ और सक्षम रख सकते हैं।





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कुमाऊंनी भाषा के कबीर रहीम की जोड़ी डा. अनुजा भट्ट

   हल्द्वानी जो मेरे बाबुल का घर है जिसकी खिड़की पर खड़े होकर मैंने जिंदगी को सामने से गुजरते देखा है, जिसकी दीवारों पर मैंने भी कभी एबीसी़डी ...