रविवार, 8 अप्रैल 2012

कला पर पड़ता समाज के मूवमेंट का असर


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 नए हस्ताक्षर- अपार कौर

कभी- कभी कुछ संयोग बड़े विरल होते हैं। मैंने मशहूर चित्रकार अपर्णा कौर का नंबर मांगा था। पर मुझे मिला अपार कौर का नंबर। दोनो चित्रकार है।  एक कला की दुनिया का चमकता सितारा दूसरा उभरता हुआ सितारा। जैसा कि अपार कहती हैंअक्सर लोग  मुझसे अपर्णा कौर करके बात करते हैं। मेरा साक्षात्कार भी इसी नाम से लिया जा चुका है। 250 रु. पारिश्रमिक भी आया और पाठकों के पत्र भी। पर मैं तो अपार कौर  हूं। किसी से पूछा तो पता चला यह एक मशहूर चित्रकार हैं।
 अच्छा हुआ मैं उनसे मिलने चली गई। अन्यथा मैं भी यह गलती कर सकती थी। फोनेटिक इन्टव्र्यू में अक्सर ऐसी चूकें हो जाती हैं।  पर इस बहाने मैं  ऐसी  महिला से मिली जिसने  नौकरी की क्योंकि यह उसकी जरूरत थी पर अपने पैशन को कम नहीं होने दिया। सेवानिवृत्ति के बाद उसने कला को  नए रंग दिए और आज एक उभरता हुआ नाम हैं। 
कला के बारे में अपार कौर के विचार
 नित नूतन प्रयोग की सबसे ज्यादा छूट तो कलाकार के पास ही होती है। कभी वह प्रकृति के रंगों से सम्मोहित होता है तो कभी यथार्थ के धरातल पर आ रहे बदलावों को देखकर उसका मन दु:खी होता है। सुख और दु:ख दोनों ही भाव कलाकार कला के माध्यम से व्यक्त करता है। कला में भी बदलाव आ रहे हैं। आज कला एक व्यवसाय के रूप में भी दिखाई दे रही है। जहां खरीददार के मन के मुताबिक कला का सृजन हो रहा है। पर यहां कला का विकास भी हो मुझे थोड़ा संदेह हाता है क्योंकि मेरा मानना है कि कलाकार अपनी रचना में  अपने मन के रंग भरता है। जैसा कलाकार का मन है या जैसी मन:स्थिति में वह रचनाकर्म कर रहा है उसका प्रभाव रचना पर पड़ता है। कभी-कभी खाली कैनवास में सिर्फ एक बिंदु बहुत कुछ कह जाता है। जरूरी नहीं कि जिस वजह से कलाकार को अपनी रचना प्रिय हो उसी तरह उसे खरीदने वाले भी महसूस करें। हर व्यक्ति अलग अलग तरीके से रचना को पसंद करता है कोई रंगों से प्रभावित होता है तो कोई रेखाओं से।
 जैसे जैसे समाज में चेंज आ रहे हैं, मूवमेंट बदल रहे हैं ठीक उसी के अनुरूप कला के तौर तरीकों में भी बदलाव आया है। पॉप, कान्टेंम्पेरी, डिजिटल और फोटो पेंटिंग का दौर है यह। समय के साथ सब बदल जाता है। एक्सप्रेशन, थॉट और लाइकिंग बदल जाती है। दीवारों पर सजने वाली पेंटिंग अब कार्डकुशन कवर, सूट, साड़ी और चादरों में दिखाई देती है। आज के नए कलाकार किसी खास फ्रेम या कास किस्म के आर्ट वर्क में भी खुद को बांधे नहीं रखना चाहते। जिससे उनकी पहचान हो। वह उन्मुक्त होकर काम करना चाहते हैं।  फ्यूजन के वह आग्रही है क्योंकि यहां भी नए प्रयोग की गुंजाइश है। विभिन्न कलाओं का समागम एक नई रचना को जन्म देता है। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि यग इस दौर के रंग हैं। हमेशा से ही हलके और चटख रंगों का प्रयोग होता रहा है। यह कलाकार पर निर्भर करता है कि वह किस थीम को चुने।
 अपने बारे में- कला के प्रति चाहत मुझे यहां तक ले आई। बचपन से ही कला के प्रति रुझान था। पर विधिवत शिक्षा नहीं ली। रिश्ते की मौसी शीला सबरवाल से प्रभावित हुई जो उच्चकोटि की चित्रकार हैं। वह ही मेरी पहली गुरू है। आज देश विदेश में प्रदर्शनी लगती हैं।  मैं अपने इस सफर से बहुत खुश हूं।
 दिल्ली की हूं, दिल्ली में ही पैदा हुई, यहीं पढ़ाई की। लेडीश्रीराम से बी.ए किया।
 पेशा और पैशन दोनो अलग अलग रहे। पेशे से इंडियन आयल कारपोरेशन में मैनेजर रही।
 रिटायरमेंट के बाद अपने शौक पूरे कर रही हूं। श्यामक डावर से डांस भी सीख रही हूं।
 निलादि पॉल, हुसैन, सतीश गुजराल की पेटिंग पसंद हैं। पर मंजीत सिंह की कला ने मुझे उनकी कला का फैन बना दिया।

शनिवार, 7 अप्रैल 2012

सेक्सी या ब्यूटीफुल क्या सुनना पसंद करेंगी?/ डॉ. अनुजा भट्ट


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 सेक्सी और ब्यूटीफुल ये दो अलग- अलग अभिव्यंजना वाले शब्द क्या आज के दौर में समानार्थी हो गए हैं? ऐसे और भी बहुत से शब्द हैं जिसे सुनकर अब शर्म से आंखें नहीं झुकती बल्कि ऐसे  शब्द आज के दौर में हमें व्यवहारिक होने और आधुनिक होने का अहसास कराते से प्रतीत हो रहे हैं।  लड़कियों को खुद को सैक्सी कहे जाने में कोई आपत्ति नहीं हैं। ऐसी बहुत सी गालियां भी हैं जो अब आम बोलचाल में चल पड़ी हैं। अंग्रेजी बोलचाल में ी को उद्बोधन करती ऐसी गालियों की भरमार है और हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं में भी  ऐसी गालियां आम हैं। आम होने की वजह यह है कि वह स्वीकार्य है। उनको बोलने वाला कौन है इसका उत्तर हम सभी जानते हैं? भाषा का संस्कार क्या ी के लिए ही है? बॉलीवुड अभिनेत्री नेहा कहती हैं कि किसी को सेक्सी पुकारे जाने में कोई भी गलत नहीं है।  बशर्ते इस संबोधन का इस्तेमाल वाजिब संदर्भ में किया गया हो। अगर मुझे कोई सेक्सी, कूल या हॉट कहता है तो इसमें क्या गलत है? अगर इस संबोधन का जुड़ाव मेरे किसी सिनेमाई किरदार से है तब मुझे यह बुरा नहीं लगता। नेहा की ही तरह विद्या बालन की राय मे भी सेक्सी शब्द को परिभाषित नहीं किया जा सकता। वह कहती हैं वास्तव में यह सौंदर्य का प्रतीक है।  आज के जमाने में जिस तरह लड़कियां अपनी जिंदगी, अपनी सेक्सुएलिटी को अपने तरीके से जी रही हैं, वह वाकई काबिलेगौर है। क्यों कोई लडक़ी इसके लिए सारी पील करे कि वह अपनी जिंदगी को उस ढंग से जी रही हैं, जैसा वह चाहती हैं। यही सही मायने में असल आजादी है।  पाकिस्तानी पोर्न फिल्म अभिनेत्री वीना मलिक कहती हैं, अगर किसी लडक़ी या महिला को सेक्सी कहता है, तो उसे पाजिटिव लेना चाहिए और उसे खुद पर बिलीव करना चाहिए कि वह हाट और सेक्सी है। बेहतर होगा कि लेजी इसे निगेटिव न ले। सच तो यह है कि सेक्सी बहुत ही ब्यूटीफुल शब्द है। मुझको अगर कोई सेक्सी कहता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है।
तो क्या यह माना जाए कि ब्यूटीफुल की जगह सेक्सी ने ले ली है
 राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा भी सेक्सी का अर्थ सुंदर और आकर्षक से मानती है।

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

गर्भवती महिला से बोलें संभलकर /वागीशा कटेंट कंपनी


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हम बहुत बार हंसी -मजाक में कुछ ही बोल देते हैं और हमारे दोस्त इसका बुरा भी नहीं मानते। लेकिन यदि आपकी दोस्त गर्भवती है तो उससे बात करते समय सावधान रहें। ऐसा न हो कि आपके द्रारा की गई मजाक उसके लिए असहनीय हो जाए। यहां हम ऐसी बातें बता रहे हैं जो अक्सर हम कहते हैं -
बयान  :  ऐसा लग रहा कि बस फटने ही वाली हो
मतलब : तुम बेहद मोटी लग रही हो
किसी भी गर्भवती महिला से ऐसा न कहें चाहे वह आपकी कितनी भी अंतरंग क्यों न हो। क्या आप किसी ऐसी मोटी महिला से यह कहने का साहस कर पाते हैं जो गर्भवती न हो।
 बयान : जुड़वां बच्चे ? आपके तो दोनों हाथ में लड्डू होंगे।
मतलब : आपके बच्चे आपका जीना हराम कर देंगे। जुड़वां बच्चे जब एक साथ चीखेंगे-चिल्लाएंगे या बीमार पड़ेंगे तब पता चलेगा।
लोग हमेशा जुड़वां बच्चों के पालन-पोषण से जुड़े नकारात्मक पक्षों की ओर इशारा करते हैं। पता नहीं क्यों? लकिन जुड़वां बच्चों के पालन पोषण से जुड़ी दोहरी खुशियों की कोई कीमत नहीं होती। इन दोहरी खुशियों की तुलना में पालन-पोषण की जुड़ी दिक्कतें कुछ भी नहीं हैं।
 बयान : जितना चाहे सो लो अब आगे मौका नहीं मिलेगा।
मतलब : झेलने के लिए तैयार हो जाओ।
मम्मियों को पता होता है आने वाले दिन कैसे होंगे। उन्हें यह याद दिलाकर बार-बार डराने की जरूरत नहीं है। अपनी संतान के लिए जागने में माताओं को दिक्कत हो सकती है लेकिन शायद ही उन्हें अपनी नींद गवंाने पर अफसोस होता हो। अगर आपके बच्चे नहीं है और या बड़े हो चुके हैं तो आपको किसी गर्भवती महिला को यह कहने को कोई हक नहीं होना चाहिए।

4.  बयान : जितने मजे करने हैं कर लो। बाद में मौका नहीं मिलने वाला।
मतलब : आपकी जिंदगी के अच्छे दिन खत्म हो गए। अब दिक्कतें उठाने को तैयार रहो।
बच्चे होने का मतलब यह नहीं है कि आपके एंजॉयमेंट के दिन खत्म हो गए। मैंने कई ऐसे पेरेंट्स देखें हैं जो बच्चे पालने के साथ-साथ फिल्म देखने, किताबें पढऩे, टीवी देखने या बाहर रेस्तरां में डिनर का आनंद लेने का समय निकाल लेते हैं। बस आपको बेहतर टाइम मैनेजमेंट का प्रैक्टिशनर होना पड़ता है और थोड़ा धैर्य से काम लेना होता  है। हां, जीवन में परिवर्तन होता है। आप पहले की तरह तुरत-फुरत तैयार होकर नहीं निकल सकते। आपका एक्सरसाइज शेड्यूल परिवर्तन मांग सकता है या फिर पहले की तरह रात को पति के साथ टहलने के लिए निकलने के लिए आपको प्लानिंग करना पड़े। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पहले की लाइफस्टाइल की खुशियां खत्म हो जाएंगी।
बयान : अब तो आपको बच्चे को अपना दूध पिलाना पड़ेगा।
मतलब : अगर आप बच्चे को स्तनपान नहीं कराते तो आप दुनिया की सबसे खराब मां हैं।
यह एक बेहद निजी सवाल है और आपको इस निजता का सम्मान करना चाहिए। ऐसे में आपके आसपास की हर महिला आपको सलाह देती नजर आएगी। लेकिन आपको इन पर ज्यादा ध्यान देने की जरू रत नहीं है। अपने बच्चे की जरूरत एक मां से अच्छी तरह से कोई नहीं समझ सकता। इसलिए इस बारे में सलाह पर गंभीरता से सोचने की कोई जरूरत नहीं् है।
5. बयान : पहले जैसी सूरत नहीं रहेगी।
मतलब : चेहरों पर झांइयों और दूसरी और शारीरिक परिवर्तन झेलने होंगे।

बच्चे के जन्म के बाद कुछ बदलाव स्वाभाविक हैं। जैसे झांइयां पडऩे, थोड़ी चर्बी जमना या पेट का बढऩा। लेकिन क्या मां बनने के आनंद की तुलना में इनकी क्या अहमियत है। इसलिए किसी महिला से यह कहना कि अब आपका शरीर पहले जैसा नहीं रह गया एक भारी भूल है। ऐसी महिलाओं से यह कहिये कि आप पहले जैसी ही खूबसूरत हैं।
6. बयान  : पक्का। तुम इतना खा लोगी?
मतलब : एक गर्भवती महिला हमेशा भूखी होती है। इसलिए किसी से यह कहना ठीक नहीं है कि इतना तो ख्रा ही लोगी। गर्भवती महिलाओं को 300 कैलोरी अतिरिक्त लेना पड़ता है। इसलिए गर्भवती महिलाएं ज्यादा खाएं तो आश्चर्य न जताएं।
7. दो जुड़वां लडक़े? एक लडक़ा और एक लडक़ी होती तो अच्छा होता?
मतलब : आप जुड़वां लडक़ा या लडक़ी पैदा करने में नाकाम रहे। अगर लडक़ा है तो यह कहने की कोशिश की जाती है तो एक लडक़ी पैदा करन की कोशिश करो ताकि फैमिली पूरी हो जाए। यानी मां-बाप एक लडक़ा और एक लडक़ी। लेकिन यह आपके हाथ में नहीं होता और लोग इस पर जबरदस्ती इस पर जोर डालते हैं।
8. बयान : क्या आपके यहां जुड़वां की परंपरा रही है।
मतलब : क्या आप फर्टिलिटी सेंटर के जरिये जुड़वां बच्चे पैदा कर  रहे हैं।
इस तरह के बयानों से लोग थाह पाने की जुगाड़ में लगे रहते हैं। उनका इशारा यह होता है कि शायद आप कृत्रिम गर्भाधान से जुड़वां बच्चे पाना चाहते हैं।
  
9. बयान : ओह दो बच्चे। मेरी तो छह महीने का बच्ची है। मैं तो हिल जाता हूं।
मतलब : आपको अपनी दिक्कतों से रूबरू कराना।
इस तरह का बयान आपका आत्मविश्वास की थाह लेने की एक कोशिश भर है। या फिर लोग यह भी देखना चाहते हैं कि मैंने तो कष्ट झेला अब आप भी झेलो। लेकिन वह नहीं जानते कि संतान पाने का सुख कुछ और ही होता।

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कुमाऊंनी भाषा के कबीर रहीम की जोड़ी डा. अनुजा भट्ट

   हल्द्वानी जो मेरे बाबुल का घर है जिसकी खिड़की पर खड़े होकर मैंने जिंदगी को सामने से गुजरते देखा है, जिसकी दीवारों पर मैंने भी कभी एबीसी़डी ...