कविता-दहलीज पर कदमों का क्रास-डॉ अनुजा भट्ट



दहलीज पर कदमाें का क्रास
एक पांव दहलीज के बाहर जा रहा है
सपनाें की उड़ान और कशमकश के बीच
आसमान में उड़ती पतंग काे देख रही 
हाथ में डोर लिए एक।
 युवा और किशाेराें के बीच स्वतंत्रता दिवस की परेड
खुद काे रील बनते देख बेबस है
उधर माझा और पतंग
चीन और भारत
उम्मीद और हादसा में बदल रहा है। 
 इस बीच यह कविता लिखी जा रही है।
 दूसरा  पांव दहलीज के भीतर आ रहा है
अपने भीतक दर्द और बेबसी के छींटे लिए 
 अपनी जिद और शर्ताें के बीच
समन्वयविहीन रिक्त स्थान की तलाश में
 वक्त कहता है 
 अब इस रिक्तता काे
 मन के कोने में
 मंदिर के दिये में
 ईश्वर को अर्पित पुष्प में
गरीब की झोली में
 आंखों में काजल की जगह बसा लाे।
दाेनाे पांव आपस में टकरा रहे हैं
दाेनाे पांव अपनी यात्रा में डगमग हैं
दाेनाें की साेच में जमीन आसमान का अंतर है
एक के लिए मुखर हाेना
 असंसदीय और अमानवीय भाषा है
दूसरे के लिए विश्वधरती पर सृजित 
एक नई स्त्री का आगमन है।
एक कदम और दूसरा कदम
कदमताल मिलाती पंद्रह अगस्त की उस झांकी से
 जा मिला है जहां यह दाेनाें की  निर्थक हैं।
रील में तो हैं रियल में नहीं।


घर के सजाने के मेरे 5 मंत्र – डॉ. अनुजा भट्ट

घर सजाने के 5 मेरे मंत्र

मैं चाहती हूं मेरा घर मुझे हमेशा जीवंतता का अहसास कराएं। मैं खुद को प्रकृति के नजदीक रखना पसंद करती हूं। बहुत बार ये कर पाती हूं और बहुत बार असफल भी हो जाती हूं। पौधें सूख जाते हैं तो अच्छा नहीं लगता। इस बार इतनी गर्मी पड़ी कि मेरे लगाए पौधें सूख गए। फिर मैंने कुछ और प्रयोग किए।

आज जब ट्रेंड सेटर्स कहते हैं कि घर के अंदरूनी हिस्सों में फूलों की सजावट की वापसी हो रही है, तब मुझे हंसी आती है। मैं मानती हूं कि फूलों की सजावट कभी खत्म नहीं हुई या इसका आकर्षण कभी खत्म नहीं हुआ। समय-समय पर, फूलों ने घर की जगहों को जीवंत करने और उनमें नई जान डालने का मार्ग प्रशस्त किया है। चाहे वह एकल फूलों के गुच्छे हों, या अलग अलग फूलों के गुच्छे आपके घर को ताज़गी और नए रूप से सजाने के लिए उनके साथ बहुत कुछ कर सकते हैं।

अगर आपके पास ताजे फूल नहीं हैं ते आप घर की सजावट के लिए फ्लोरल प्रिंट और पैटर्न का इस्तेमाल कर सकती हैं। विंटेज फ्लोरल का आकर्षण अभी भी एक क्लासिक है और उन लोगों के बीच पसंदीदा है जो मिनिमलिस्टिक सजावट पसंद करते हैं। नए जमाने के, समकालीन फ्लोरल डेकोर में प्रिंट, मिक्स-मैच पैटर्न, शामिल है। मैं आपको यहाँ अपने रूचि और व्यक्तिगत शैली के अनुसार फ्लोरल प्रिंट से सजाने के पाँच शानदार तरीके बता रही हूं, ताकि आप अपने इंटीरियर को नए फ्लोरल मोटिफ, असंख्य रंगों और लुभावने प्रकृति-प्रेरित पैटर्न से सजा सकें।

1. फ्लोरल वॉलपेपर और वॉल आर्ट- फ्लोरल प्रिंट से किसी भी दीवार को नया रूप दिया जा सकता है। अगर आप विंटेज लुक की तलाश में हैं, तो आप अपनी दीवार के फ्लोरल प्रिंट वॉलपेपर का विकल्प चुन सकते हैं। आपके बिस्तर की पिछली दीवार फ्लोरल वॉलपेपर या फ्लोरल वॉल आर्ट के लिए आदर्श है। और, लिविंग स्पेस के लिए, आप अपनी पसंद और मूड के अनुसार कोने की दीवार या बीच की दीवार चुन सकते हैं। हालाँकि, जब आप फ्लोरल वॉलपेपर या वॉल आर्ट के लिए जा रहे हों, तो आपके द्वारा चुने गए रंग और पैटर्न आपके घर की सजावट और व्यक्तिगत पसंद के अनुरूप होने चाहिए। इसलिए, अगर आप गहरे रंग पसंद करने वाले व्यक्ति हैं, तो आप गहरे रंगों में बोल्ड फ्लोरल प्रिंट चुन सकते हैं। लेकिन, अगर आप मिनिमलिज्म में ज़्यादा रुचि रखते हैं, तो पेस्टल शेड्स ज़्यादा उपयुक्त रहेंगे।

2. फ्लोरल फर्निशिंग- फ्लोरल डेकोरेशन आइडियाज़ में, सबसे आसान और सुपर-किफ़ायती तरीका है फर्निशिंग। अगर आप फ्लोरल बेडरूम डेकोर के लिए जा रहे हैं, तो हैंड ब्लॉक प्रिंटेड फ्लोरल बेडशीट क्लासिक हैं जिन्हें आप बिल्कुल भी मिस नहीं कर सकते। आप रजाई, दोहर और दूसरे फ्लोरल लिनेन के साथ फ्लोरल टच को बढ़ा सकते हैं। लिविंग रूम और दूसरी जगहों के लिए, आप फ्लोरल कुशन कवर, टेबल रनर और मैट के साथ प्रयोग कर सकते हैं और यहां तक ​​कि अपने सोफ़ा सिटिंग एरिया में फ्लोरल रग का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। याद रहे फ्लोरल प्रिंट के प्रकार और आकार का चयन करते समय अपनी व्यक्तिगत पसंद न भूलें।

3. फ्लोरल फिक्सचर- अगर आप फ्लोरल प्रिंट और पैटर्न के साथ अपने घर की सजावट चाहते हैं, तो अपने अपहोल्स्ट्री, पर्दों और ब्लाइंड्स में फूलों की खूबसूरती को शामिल करने के कुछ तरीके बताती हूं। समकालीन आधुनिक फ्लोरल प्रिंट और पैटर्न के साथ, फ्लोरल सोफा सेट, डाइनिंग टेबल चेयर और पर्दों में बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं। हालाँकि, यह फ्लोरल में एक स्थायी और दीर्घकालिक निवेश है, इसलिए आपको कुछ महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना चाहिए जैसे कि आप किस तरह के फ्लोरल प्रिंट का उपयोग करना चाहते हैं, कपड़े की स्थायित्व और अनुभव, रंग संयोजन आदि के बारे में गंभीरता से विचार करें।

4. फ्लोरल एक्सेसरीज़- छोटे-छोटे डेकोरेशन जिसमें फ्लोरल प्रिंट हो उनसे भी आप सजावट कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, दीवार पर कुछ फूलों की पेंटिंग लगाने से फूलों को महसूस कर सकते हैं, लेकिन यह नियम हर जगह फिट नहीं होता। फूलों की लाइटिंग एक और एक्सेसरी है जो आपके घर की सजावट में एक नाजुक स्पर्श जोड़ देगी और आपके स्थान को जीवंत बना देगी। फूलों की टेबल एक्सेसरीज, मेटल आर्ट आइटम, मिरर, आदि, आपके लिविंग स्पेस में विंटेज फ्लोरल या कंटेम्पररी फ्लोरल एलिगेंस की सही मात्रा जोड़ सकते हैं।

5. कुछ असली फूलों को शामिल करें। अब, फूलों के साथ काम करने का सबसे आसान और ताज़ा तरीका है प्राकृतिक तरीके से काम करना। मेरा कहना है कि आपको केवल फूलों के प्रिंट और पैटर्न की आवश्यकता क्यों है, जब आप उन्हें असली में पा सकते हैं। है न? अपने घर की सजावट में अधिक पौधे शामिल करें और देखें कि यह आपके माहौल को जीवंत बनाने में कितना कमाल करते हैं। यह न केवल आपके घर को ताज़गी प्रदान करते हैं बल्कि इनडोर पौधे हवा को शुद्ध करने, मूड को आराम देने और तनाव को दूर करने का काम भी कर सकते हैं। कुछ इनडोर पौधों के अलावा, आप अपनी बालकनी, बगीचे या छत के बगीचे में कई तरह के फूल खिलने वाले पौधे भी लगा सकती हैं। मेरा विश्वास करें, वे आपके घर की शैली और आपके माहौल को और भी बेहतर बना देंगें। जीवन में निरंतर प्रयोग करें। मेरी आपको सलाह है घर की सजावट में चाहे वह फ्लोरल हो या कुछ और भी, नई चीजों को आजमाने से न डरें। आपको मेरा ब्लाद कैसा लगा यह जरूर बताइएगा। हमारे प्रोडक्ट के लिए हमारे फेसबुक समूह से भी जुड़िए। वहां ढेरों विकल्प आपका इंतजार कर रहे हैं।

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नील छवि एक रिश्ता दर्द भरा- महाश्वेता देवी- समीक्षा डॉ अनुजा भट्ट

सुप्रसिद्ध लेखिका महाश्वेता देवी जी की पुण्य तिथि पर                                  जी पुण्यतिथि

महाश्वेता देवी का उपन्यास नील छवि आज के समाज की विसंगति को दर्शाता है । इस विसंगति की मुख्य वजह है ऐसी महत्वाकांक्षा जिसे बिना पैसे के हासिल किया जा सके और उसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहा जाए। ऐसी महत्वाकांक्षी लोग फिर न रिश्तों को देखते हैं और न ही व्यक्ति की संवेदना को। सिर्फ पैसों की खनक सुनाई देती है और जब यह पैसों की खनक न सुनाई दे तो सारे रिश्ते खतम हो जाते है। नील छवि में ऐसी दो विचारधाराएं हैं। एक के लिए रिश्तों का अर्थ है और वह उनको बनाए रखने के लिए कुछ भी कर सकता है और दूसरी विचारधारा में पैसे के लिए किसी से भी कभी भी रिश्ता जोड़ा या तोड़ा जा सकता है। महत्वाकांक्षा के लिए स्त्री किसी भी हद तक जाती है तो अपनी पहचान को बनाने के लिए जोखिम भरे काम को करने वाला पुरुष भी है। इन दोनों के बीच में संतान है जिसका किसी भी तरह का कोई भी संस्कार विकसित नहीं हो पाता और वह दिशाविहीन जीवन की ओर कदम बढ़ाते बढ़ाते लडख़ड़ाने लगती है और एक दिन गायब हो जाती है। तब जाकर स्त्री पुरूष यानी उसके माता पिता को अहसास होता है।
पुरूष स्वाबलंबी है पर महत्वाकांक्षी नहीं पर समाज के लोग उसे महच्वाकांक्षी बनाने पर तुले है और उसके बहाने कई तरह के व्यापार कर रहे हैं। लेकिन वह हमेशा हाशिए में खड़े लोगों की मदद करता है चाहे वह कोई भी क्यों न हों। उसका स्वभाव खोजी है और वह हर रोज कुछ नया खोजने के लिए कई तरह की सुरंगों से गुजरता है। पर जब खोजी पत्रकारिता के जरिए वह अपनी बेटी को ढूंढ रहा होता है जो ब्लू फिल्म बनाने वाले गिरोह में फंस गई है तब वह सवाल करता है कि हम सब अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए या अपने सपनों को पूरा करने की जिद में अपने बच्चों से कितने दूर हो गए है हमारे पास उनके लिए समय नहीं है और वह भटक रहे हैं। हम उनको पैसा दे रहे हैं उनके मंहगे शौक पूरे कर रहे हैं, उनको पूरी आजादी दे रहे हैं पर क्या परवरिश का यह तरीका ठीक है?
कहानी के ताने बाने इतने सघन है कि पढ़ते हुए लगता है जैसे आप कोई फिल्म देख रहे हैं। कहीं भी लोच नहीं एकदम कसी हुई कहानी।
यर्थाथवादी और भावुकतावादी दो व्यक्तित्व जब मिलते हैं तो किस तरह का जीवन होता है यह इस उपन्यास को पढक़र जाना जा सकता है जहां एक व्यक्ति रिश्तों को असहमति के बाद भी महसूस करता है और दूसरा व्यक्ति रिश्ते का अर्थ समझ ही नहीं पाता और जब समझ आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। संतान के लिए माता पिता दोनो के कर्तव्य हैं पर कानून संतान को मां के हवाले करता है और पिता संतान से दूर हो जाती है। रह जाती है सिर्फ मां । ऐसे में पिता अपनी भावनात्मक मजबूती को कैसे बनाए यह सवाल भी बड़ी शिद्दत के साथ उठाया गया है। क्या पिता का अपनी संतान पर कोई हक नहीं कि वह उसकी परवरिश के बारे में सोचे। इस उपन्यास में पिता अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करता है और अपनी जान को जोखिम में डालकर अपनी बेटी को उस गिरोह से निकाल लाता है। वह अपनी बेटी की सुरक्षा, उसकी भावनाओं के लिए इतना ज्यादा संवेदनशील है कि वह वहां से सारी सीडी भी लेकर आता है जिसमें उसकी बेटी है। वह अपनी पत्नी से किसी से भी इन बातों का जिक्र करने से मना करता है। घर के मान, बेटी की इज्जत की उसको परवाह है। वह उसे मुख्यधारा में लाने की कोशिश करता है उसका इलाज करवाता है। उससे मुक्त नहीं होना चाहता। वह अपनी बेटी से नाराज नहीं बल्कि उसे ग्लानि है कि उसके कदम अगर बहके तो उसके लिए यह समाज जिम्मेदार है जो भौतिकतावादी रहन सहन को महत्व देता है जहां भावनाओं का नहीं पैसे का असर है। इसकी वजह से उसकी पत्नी प्रभावित हुई और उसे लगा कि पैसा ही सबकुछ है। इसके लिए उसने अपने पति को छोड़ दिया। जिन लोगों का साथ उसने चुना उन्हीं लोगों ने उसकी बेटी को अपना निशाना बनाया। वह यह सब समझ नहीं पाई क्योंकि उसे बस पैसे कमाने थे। उसने बहुत पैसे कमाएं। बेटी को उसने बहुत सारे पैसे दिए पर समय नहीं। इच्छाएं उसके मन में भरी पर प्रेम नहीं। इसी प्रेम की तलाश में उसकी संतान भटक गई।
यह उपन्यास वस्तुतः हमारे आधुनिक नगरीय समाज की खोखली होती नैतिक मान्यताओं और बीभत्स स्थितियों का बड़ा ही मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है। ‘ड्रग्स’ और ‘ब्लू फ़िल्म’ किस तरह हमारे आधुनिक समाज की जड़ों को खोखला कर रहे हैं, इसका बेहद तीखा और यथार्थपरक चित्रण इस रचना में किया गया है। इसके अलावा पत्रकारिता, कला-जगत, और तथाकथित उच्चवर्गीय जीवन की विषमताओं और विडम्बनाओं का साक्षात्कार है ।
कथा में उत्तेजना, जिज्ञासा और आतंक का वातावरण अन्तिम पृष्ठ तक व्याप्त रहता है। एक अत्यन्त पठनीय, रोचक तथा विचारोत्तेजक कृति। आपको मौका लगे तो इस उपन्यास को जरूर पढ़ें।
नील छवि
महाश्वेता देवी राधाकृष्ण प्रकाशन

बारिश के माैसम में बात करेंगे फैशन की - डा. अनुजा भट्ट

पीच शेड पीच एक ऐसा कलर है जो डार्क और लाइट हर तरह के टोन के साथ मैच करता है

रिमझिम फुहार हाे और पार्टी करने का मन हाे  खाने पीने का सब बंदोबस्त हाे ताे बस एक सवाल परेशान कर देता है । आज पहने क्या। ताे दाेस्ताें जब माैसम में इतनी ताजगी हाे और हरियाली बिखरी हो तो ग्रीन कलर फ्रेशनेस का प्रतीक मान लेने में हर्ज ही क्या है। यह वैसे भी मॉनसून के लिए परफेक्ट माना जाता है। साथ ही हर तरह के कॉप्लेक्शन पर यह कलर सूट करता है। अगर आपको वॉर्म टोन वाले कलर्स ज्यादा पसंद हैं तो आप मस्टर्ड ग्रीन, खाकी और डार्क ग्रीन के शेड्स पहन सकती हैं और अगर कूल टोन वाले कलर्स पसंद हैं तो ब्राइट ग्रीन या पैरट ग्रीन कलर के ऑप्शन्स पर जाएं। वाइट या येलो जैसे ब्राइट कलर्स के साथ भी आप ग्रीन को मिलाकर पहन सकती हैं।
पीच शेड पीच एक ऐसा कलर है जो डार्क और लाइट हर तरह के टोन के साथ मैच करता है और मॉनसून के लिहाज से एक क्लासिक शेड है। वैसे तो इस कलर को हर तरह के स्टाइल वाले कपड़ों में पहन सकती हैं लेकिन चूंकि इन दिनों बेल स्लीव्स का फैशन जोरों पर है लिहाजा आप पीच कलर का बेल स्लीव टॉप या शॉर्ट ड्रेस ट्राई कर सकती हैं। साथ ही अपनी ही ड्रेस को हाइलाइट करने के लिए इसे अच्छी तरह से अक्सेसराइज करना न भूलें।
चॉकलेट ब्राउन की बात करूं तो एक वक्त था जब चॉकलेट ब्राउन को सिर्फ ट्रेंच कोट या बूट्स के कलर के तौर पर ही देखा जाता था लेकिन आज के समय में यह कलर यूथ को काफी पसंद आ रहा है। खासकर अगर आप मॉनसून के सीजन में किसी पार्टी में जा रही हैं तो चॉकलेट ब्राउन कलर की मैक्सी पार्टी ड्रेस आपके लिए क्लासी ऑप्शन है।
मॉनसून के दौरान मरून कलर की मैक्सी ड्रेस, जंपसूट, ऑफ शोल्डर टॉप, रफल्स टॉप, कोल्ड शोल्डर टॉप और ड्रेसेज के साथ शॉर्ट ड्रेसेज की भी मांग बढ़ गई है। चूंकि आजकल लोग फैशन में एक्सपेरिमेंट करना ज्यादा पसंद करते हैं लिहाजा आप भी चाहें तो अपने कंफर्ट के हिसाब से चेंज कर सकती हैं।
 तो आपकी क्या राय है।  इस तरह के ढ़ेर सारे आप्शंस के लिए आप हमारे फेसबुक ग्रुप में क्लिक कर सकते हैं।   
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साड़ी का भी ख्याल रखिए- डा. अनुजा भट्ट


बहुत बार हम मंहगी साड़ी खरीद लेते हैं पर उसके रखरखाव के बारे में नहीं जानते इस कारण साड़ी खराब भी हाे जाती है और उससे ज्यादा हमारी भावनाएं आहत हाेती है। साड़ी के साथ महिलाओं का गहरा लगाव हाेता है। इसलिए मैंने साेचा कि आपसे इस बारे में थाेड़ी बातचीत की जाए। हमारे पास ऐसे प्राेडक्ट है जाे आपकी उलझन सुलझा सकते हैं।
साड़ी की गुणवत्ता बनाए रखना उसकी लंबी इम्र सुनिश्चित करने और जटिल डिज़ाइन को संरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
1. साड़ी को हाथ से धोएं:साड़ियों को हल्के डिटर्जेंट और ठंडे पानी का उपयोग करके हाथ से धोना चाहिए। गर्म पानी या कठोर डिटर्जेंट का उपयोग करने से बचें क्योंकि वे कपड़े और डिज़ाइन को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

2. साड़ी को बहुत अधिक देर तक भिगोकर न रखें क्योंकि इससे उसका रंग उड़ सकता है और वह फीकी पड़ सकती है।

3. सीधी धूप से बचाएं: साड़ियों को छाया में सुखाना चाहिए और सीधी धूप से दूर रखना चाहिए क्योंकि धूप के संपर्क में आने से रंग फीका पड़ सकता है।

4. कम तापमान पर इस्त्री करें: साड़ी को कम तापमान पर इस्त्री करें ताकि कपड़े और डिज़ाइन को नुकसान न पहुंचे। डिज़ाइन पर सीधे इस्त्री करने से बचें क्योंकि इससे वे फट सकते हैं या छिल सकते हैं।

5. साड़ी को सही तरीके से स्टोर करें: साड़ी को ठंडी, सूखी जगह पर सीधी धूप से दूर रखें। साड़ी को प्लास्टिक की थैलियों में रखने से बचें क्योंकि वे कपड़े को सांस लेने नहीं देती हैं। इसके बजाय, साड़ी को सूती या मलमल के बैग में रखें।

6. साड़ी को सावधानी से संभालें: कलमकारी साड़ियों को सावधानी से संभालना चाहिए क्योंकि डिज़ाइन नाज़ुक होते हैं और आसानी से खराब हो सकते हैं। साड़ी पहनते समय उसे खींचने या खींचने से बचें।

हमारे पास आर्गनाइजर हैं आप खरीद सकते हैं। विवरण इस प्रकार है-
CM में आयाम: - लंबाई (45) x चौड़ाई (35) x ऊंचाई (18) CM | इंच में आयाम: लंबाई (17.71) x चौड़ाई (13.77) x ऊंचाई (7.08) इंच
पैकेज में शामिल: 4 बड़े साड़ी कवर; मटीरियल: कॉटन हवा पार होने योग्य फ़ैब्रिक.
क्लियर विजिबिलिटी और इंस्टेंट लुक के लिए पारदर्शी फ्रंट विंडो.
लंबे जीवन उच्च गुणवत्ता वाली साड़ी कवर बैग आपकी महंगी और पसंदीदा साड़ियों को व्यवस्थित करने में मदद करता है।
धूल, नमी और पतंगों से अपनी पसंदीदा सिल्क/कॉटन साड़ी को रोकें।
कॉटन साड़ी कवर: सोल साड़ी कवर / बैग उच्च गुणवत्ता वाले 250 GSM टिकाऊ कॉटन मटीरियल से बना है. यह कपड़े का है ताकि आप गंदे होने पर धोने के बाद इसका उपयोग कर सकें। कपास सामग्री प्लास्टिक और भंडारण उद्देश्य के लिए गैर बुना जैसी अन्य सामग्री पर अत्यधिक बेहतर है। मटीरियल सॉफ्ट है और यह आपकी कीमती साड़ी, ड्रेस, लहंगा और अन्य ऑउटफिट की सुरक्षा करता है।
क्लोज़र और स्टिचिंग: ये साड़ी कवर मेटल रनर के साथ ज़िप क्लोज़र के साथ आता है। बैग की सिलाई प्रशिक्षित महिलाओं के साथ की जाती है।
साइज़ और मात्रा: बैग 16 X 14 इंच का है और पैकेज में कुल 12 यूनिट कवर है।
देखभाल: साड़ी बैग धोने योग्य और पुन: प्रयोज्य हैं इसलिए नियमित भंडारण उपयोग के लिए आपको कुछ समय बाद कवर धोने की आवश्यकता होती है। हल्के डिटर्जेंट का उपयोग करें और गर्म पानी का उपयोग न करें। धोने के बाद कृपया बैग को आयरन करें ताकि यह फ्रेश लुक में आए।


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निर्मला सीतारमन को पंसद है बनारसी साड़ी

 

देश की पहली महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट के साथ ही अपने देश की संस्कृति और कला का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। कला कारीगरी और फैशन के रूझान पर भी उनकी नजर उतनी ही सक्रिय है जितनी बजट पर।  निर्मला सीतारमण का वित्त मंत्री के रूप में ये लगातार सातवां बजट रहा है. हर बार उनकी साड़ी आकर्षण का केंद्र बनती है। इस बार उन्होंने बनारसी सिल्क  की ऑफ व्हाइट कलर की साड़ी पहनी जिसके साथ डार्क पर्पल कलर का ब्लाउज पहना है. जिसपर गोल्डन जरी का काम  है।

 दरअसल सीतारमन काे काशी और कांची दोनों जगह बहुत पसंद है। कार्यक्रम में शिरकत करते समय अधिक्तर वह साड़ी में ही नजर आती हैं। साड़ी पहनने का तरीका उनका एक जैसा ही रहता है।   बेहतरीन डिजाइन के कारण  बनारसी साड़ी उनकी पसंदीदा साड़ी है। साथ ही गर्मियों में बहुत कंफर्टेबल रहती है. इसकी पहचान इसके मुलायम और चमकदार सिल्क धागों से होती है. साड़ी के पल्लु के किनारों को छुने से इसकी पहचान आसानी से की जा सकती है।
बनारसी सिल्क साड़ी में क्या है खास?
बनारसी सिल्क साड़ी अट्रैक्टिव लुक देती है. साथ ही ये साड़ी तपती गर्मी के दौरान आराम भी देती है. बनारसी सिल्क साड़ी उत्तर-प्रदेश के बनारस, चंदौली, आजमगढ़, जौनपुर, मिर्जापुर और संत रविदास नगर जिले में बनाई जाती हैं. इसे बनाने के लिए कच्चा माल बनारस से आता है. कई साड़ियों को बनाने के लिए शुद्ध सोने की जरी का उपयोग किया जाता है. जिसके कारण उसकी कीमत बहुत बढ़ जाती है. लेकिन आजकल बाजार में नकली चमकदार जरी का काम की हुई साड़ी भी मिल जाती है.
बनारसी साड़ियों की एक और खासियत है कि ये भारतीय संस्कृति की पहचान और शान का प्रतीक मानी जाती है. बनारसी सिल्क साड़ियों का निर्माण उच्च गुणवत्ता और मजबूत कपड़े से होता है. इसे कारीगरों द्वारा हाथ से बनाया जाता है. इसमें कई तरह के माेटिफ और पैटर्न हाेते हैं। बूटी, बूटा, बेल, जाल, जंगला और कोनिया शामिल हैं.
बनारसी सिल्क साड़ी के प्रकार
बनारसी सिल्क बहुत तरह की होती है. जिसमें कॉटन बनारसी साड़ी, बनारसी सिल्क साड़ी, तुस्सर बनारसी साड़ी, काटन बनारसी साड़ी और ऑरंगजा बनारसी साड़ी शामिल है. हर एक साड़ी भी अपनी विशेषता होती है. कृपया हमारे फेसबुक समूह से जुड़े। खरीददारी करें।
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कलमकारी साड़ी और आपका स्टाइल- डॉ अनुजा भट्ट


जब भी हम साड़ी या कोई ड्रेस पहनते हैं ताे सबसे पहले यह सवाल जरूर आता है कि इसके साथ क्या अच्छा लगेगा। खासकर अगर आप काेई कलात्मक साड़ी पहन रही हाें ताे। आज मैं आपकाे कलमकारी साड़ी के साथ आप पर कौन सा स्टाइल जचेंगा इस पर बात करूंगी। सच कहूं तो कलमकारी साड़ी को स्टाइल करना एक मज़ेदार और रचनात्मक प्रक्रिया हो सकती है, क्योंकि ये साड़ियाँ एक्सेसरीज़ के लिए बहुत सारे विकल्प प्रदान करती हैं ।


 आभूषण: कलमकारी साड़ियाँ अक्सर काफी रंगीन और इसके डिजाइन बहुत सघन हाेते हैं इसलिए हलके आभूषण पहनें । आप लुक को पूरा करने के लिए छोटे झुमके या स्टड, एक साधारण हार और एक कंगन या चूड़ी पहन सकती हैं। वैकल्पिक रूप से, आप अपने पहनावे में झुमके या पारंपरिक दक्षिण भारतीय आभूषण भी पहन सकते हैं।

फुटवियर: कलमकारी साड़ी के साथ आप कई तरह के फुटवियर पहन सकती हैं। आजकल डिजाइनर जूतियां बहुत पसंद की जा रही हैं। इसमें राजस्थानी से लेकर पंजाबी तक के कई डिजाइन मिल जाते हैं। इसे माेजरी भी कहते हैं। इसके अलावा स्लाइडर में भी ट्रेंड में है। ज्यादातर फ्लैट-हील, बैकलेस और ओपने टो होते हैं. इस तरह की चप्पल पहनने में बेहद हल्की और दिखने में काफी अट्रैक्टिव होती हैं. स्लाइडर कैजुअल और अट्रैक्टिव लूक देने में मदद करते हैं. हील्स साड़ी काे खास बना देती है। हाई-हील होने के कारण इस तरह के फुटवियर आपको लंबा दिखाने में मदद करते हैं. हालांकि हील्स पहनने में उतने आरामदायक नहीं होते पर पहने जाने पर ये आपके आउटफिट को काफी खूबसूरत बना सकते हैं.

 मेकअप- आप ब्लश, न्यूट्रल लिप कलर और हलका आई मेकअप कर सकती हैं। मेकअप से पहले अपने चेहरे पर मॉइश्चराइजर जरूर लगाएं। इससे आपके चेहरे पर मेकअप का पर्फेक्ट लुक आता है। मॉइश्चराइजर से आपकी त्वचा सॉफ्ट और चमकदार भी बनती है। मॉइश्चराइजर लगाने से पहले चेहरे को पहले अच्छे से साफ जरूर करें। इसके बाद ही मेकअप के आगे के स्टेप्स अपनाएं।
दूसरे स्टेप में सही बेस का प्रयोग करना जरूरी है। इसके लिए आप लाइट फाउन्डेशन, सीसी या बीबीसी क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं। आजकल मार्किट में इस तरह की कई क्रीम मौजूद है, जिसे लगाने पर एकदम नेचुरल लुक आता है। इसे अपने चेहरे पर ब्यूटी ब्लेंडर की मदद से लगा सकते हैं। ध्यान रहे कि अगर आप किसी गर्म या नमी वाली जगह पर रहती हैं तो हेवी फाउंडेशन का यूज करने से बचें। चेहरे पर हो रहे डार्क सर्कल्स, दाग-धब्बे या पिंपल्स को प्राइमर और कंसीलर लगाकर छुपाया जा सकता है। कंसीलर और प्राइमर को अपने स्किन के टोन से हल्का लाइटर लें। अगर आप किसी ऐसी जगह जा रहे हैं जहां आपको काफी लंबे समय तक रहना है तो इन दोनों का इस्तेमाल करना काफी अच्छा रहेगा।
लाइट मेकअप के लिए फेस टोन का कॉम्पैक्ट लगाना भी जरूरी है। इसके इस्तेमाल से आपका चेहरा नेचुरल लुक का लगता है। इसके अलावा अगर आप ब्लश लगाना पसंद करती हैं तो ज्यादा चमकदार या डार्क रंग का ब्लश का इस्तेमाल न करें। हल्के रंग के ब्लश से लाइट मेकअप लगता है। ध्यान रहे कि ब्लश को सिर्फ चेहरे के एक चीकबोन्स से दूसरे तरफ के चीकबोन्स तक लगाना है। इसके अलावा गर्दन, माथे और नाक के नथुने पर भी आप इसे हल्का सा लगा सकती हैं।
मेकअप में सबसे अहम स्टेप आई मेकअप माना जाता है। आईशैडो, आइ लाइनर और काजल लगाने से आंखों की सुंदरता और बढ़ती है। हालांकि, जब आप लाइट मेकअप कर रही हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि आईशैडो के कलर हल्के या न्यूड हो। आजकल बाजारों या ऑनलाइन में आपको आसानी से न्यूड कलर के शैड्स मिल सकते हैं. वहीं, आई लाइनर थोड़ा पतला लगाएं। इससे आपकी आंखे काफी आकर्षक लगेंगी। इसके बाद आंखों पर भी पतला काजल लगाएं. मस्कारा का इस्तेमाल न करें, इससे लाइट की बजाए हैवी लुक लगेगा।
लाइट मेकअप के दौरान डार्क कलर की लिपिस्टिक लगाने की बजाए लाइट शैड या न्यूड शैड की लिपिस्टिक का इस्तेमाल करें। इससे आपका चेहरा काफी अच्छा निखरेगा। अगर आप लिपिस्टिक लगाना पसंद नहीं करती हैं तो लिप ग्लॉस भी लगा सकती हैं, इससे आपके होंठ नेचुरल लगेंगे।
 हेयरस्टाइल: अपनी व्यक्तिगत पसंद और अवसर के आधार पर, आप अपने बालों को कई तरह से स्टाइल कर सकते हैं। एक साधारण लो बन या साइड ब्रेड आपके लुक में एक खूबसूरत टच जोड़ सकता है। आप अपने बालों को ढीले कर्ल या लहरों में भी खुला छोड़ सकती हैं ताकि अधिक कैज़ुअल लुक मिल सके।
ब्लाउज़: आप अपनी कलमकारी साड़ी के साथ जो ब्लाउज़ पहनती हैं, वह प्लेन और डिजाइनर दाेनाे हाे सकते हैं।

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बायस्कोप से लेकर जादोपटिया की कहानी तक - डा. अनुजा भट्ट

 


अपने बचपन की हल्की सी स्मृतियों में मुझे बायस्कोप की याद है। एक बड़ा सा डिब्बा नुमा यंत्र जो हाथ से चलता था और उसमें कई तरह के रंगीन कागज का प्रयोग होता था। ये रंगीन कागज चमकीले होते थे। उस यंत्र में एक गोलाकार छेद होता था। यह छेद उतना ही बड़ा होता था जिसमें आप अपना चेहरा टिका सकें। उस बक्से के अंदर चित्रों का एक रोल लगा होता था। बक्से के बाहर एक हैंडल होता था। यह हैंडल उसी तरह का था जैसा जूस वाले अंकल के जूसर का था। अंकल जिस तरह जूस निकालकर देते उसी तरह बायस्कोप वाले अंकल भी हमारे चेहरे को फंसाकर बाहर से उसी तरह घुमाते औऱ अंदर चित्र घूमने लगते। इस तरह से चित्र देखने का यह मेरा पहला अनुभव था। तब क्या पता था कि स्क्राल शब्द हमारी जिंदगी में इतना घुलमिल जाएगा कि हमारी उंगलियां सुबह से शाम स्क्राल ही करती रहेंगी।

 मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि किस तरह चीजें एक जगह से दूसरी जगह जाकर बदलती तो जरूर है पर स्थायी ढांचा एक ही होता है। जादोपटिया की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। मैं आपको जादोपटिया की कहानी सुनाऊं इससे पहले कुछ बातें करना भी जरूरी है। 'जादोपटिया' शब्द का अर्थ है जादूई चित्रकार। जादोपटिया कला को संथाल समाज का पुश्तैनी पेशा कहा जा सकता है। हरियाणा के सुरजकुंड मेले में जब झारखंड को थीम स्टेट बनाया गया था, वहां जादोपटिया को प्रदर्शित किया गया था। झारक्राफ्ट के माध्यम से इसे बेचा भी जा रहा है।

दरअसल, जादो संथाल में चित्रकार को कहा जाता है. इन्हें पुरोहित भी कहते हैं. ये कपड़े या कागज को जोड़कर एक पट्ट बनाते हैं फिर प्राकृतिक रंगों से उसमें चित्र उकेरते हैं. जादो द्वारा कपड़े या कागज के छोटे–छोटे टुकड़ों को जोड़कर तैयार पट्टों को जोड़ने के लिए बेल की गोंद का प्रयोग किया जाता है। प्राकृतिक रंगों की चमक बनाए रखने के लिए बबूल के गोंद भी मिलाया जाता है। चित्र को उकेरने के लिए लाल, पीला, हरा, काला, नीला आदि रंगों का प्रयोग किया जाता है। खास बात यह कि ये रंग प्राकृतिक होते हैं हरे रंग के लिए सेम के पत्ते, काले रंग के लिए कोयले की राख, पीले रंग के लिए हल्दी, सफेद रंग के लिए पिसा हुआ चावल आदि का प्रयोग किया जाता है. रंगों को भरने के लिए बकरी के बाल से बनी कूची या फिर चिडि़या के पंखों का प्रयोग करने की परंपरा है।  प्रकृति से प्राप्त जल-आधारित रंग जादोपटिया कारीगरों द्वारा अपने स्क्रॉल को चित्रित करने के लिए उपयोग किया जाने वाला माध्यम था। लाल रंग आमतौर पर धार्मिक और पौराणिक चित्रों में प्रयोग किया जाता है। सफेद रंग उपयोग करने के बजाय यह उसे "खाली" के रूप में छोड़ देते हैं।

  आज हम पट्टा पेंटिंग को जादोपतिया पेंटिंग की विविधता के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं। लंबी स्क्रॉल पेंटिंग को पट्टा पेंटिंग या पटचित्र के नाम से जाना जाता है। झारखंड से पैटकर पेंटिंग, पश्चिम बंगाल औऱ उड़ीसा से पट्टचित्र इसी तरह की पेंटिंग का विकास है। पश्चिम बंगाल में, पटचित्र-चित्रकारी समुदायों को पटुआ के नाम से जाना जाता है। इन्हें झारखंड में पाटीदार, पाटेकर या पैटकर के नाम से भी जानते हैं। पद्य, पटचित्र का स्रोत है। पद्य या पद दो पंक्तियों की छंदबद्ध कविता है। पैतकर पेंटिंग की कथात्मक स्क्रॉल शैली पांडुलिपि से ली गई है, जिसका उपयोग राजाओं द्वारा अन्य राजाओं को संदेश देने के लिए किया जाता था।

  चित्रों के जरिए इस कहानी में मिथक, साथ ही आदिवासी जीवन, अनुष्ठान की बातें बतायी जाती हैं। चित्रित विषय की प्रस्तुति कथा या गीत के रूप में लयबद्ध कर की जाती है । चित्रकारी के लिए बनाया जानेवाला यह पट्ट पांच से बीस फीट तक लंबा और डेढ़-दो फीट चौड़ा होता है। इसमें कई चित्रों का संयोजन होता है। चित्रों में बॉर्डर का भी प्रयोग होता है। चित्रकला का विषय सिद्धू-कान्हू, तिलका मांझी, बिरसा मुंडा जैसे शहीदों की शौर्य गाथा के अलावा रामायण, महाभारत, कृष्ण लीला भी होती है।

मृत्यु का शोक औऱ उम्मीद की कहानी है यह

जादोपतिया चित्रकार उन घरों में जाते थे जहाँ पहले किसी की मृत्यु हो गई थी। सभी लोग एक बैठक में जमा हे जाते हैं। गांव समुदाय और बिरादरी के लोग इसमें शामिल होते हैं।  सब लोगो के आसन ग्रहण करने के बाद जादोपतिया चित्रकार अपना आसन ग्रहण करते हैं। उसके बाद एक जादोपतिया चित्रों का एक रोल लेकर उसे घुमाता जाता है एक के बाद एक चित्र आता रहता है और दूसरा कथावाचक कहानी सुनाता है। यह कहानी, एक मृत व्यक्ति की है जिसकी आंखों में पुतली को नहीं चित्रित किया है।  कथावाचक परिवार को उसकी पीड़ा के बारे में बताया है और उसकी मुक्ति के लिए  पुतली (चक्षु दान) दान का अनुरोध करता है। कहानी सुनने के बाद सब उसे दान देते हैं और आत्मा की मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। इसके बाद जादोपतिया अपनी एड़ी पर बैठ जाता है और अपने स्क्रॉल खोलता है। वह बताता है कि  मृत व्यक्ति स्वर्ग में खुश है। यह जानकर परिवार संतुष्ट हो जाता है।  इस कथा का या इस तरह  की रीतिनीति का मूलतत्व यह है कि ऐसा करने से शोक मनाने वालों को उनके दुख से उबरने में मदद मिल सके। इस उपाय का जब अच्छा प्रभाव पड़ा तो इन चित्रकारों का नाम जादोपटिया पड़ गया। संथाल मृतक के जले हुए अवशेषों को पवित्र दामोदर नदी में बहाते हैं।  अस्थि चुनने के लिए संथाल जादोपटिया को दामोदर की यात्रा करने के लिए आमंत्रित करते हैं।

 

 

साड़ी और गाड़ी का मेल हो जाए तो बल्ले बल्ले- अनुजा भट्ट

    आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आटोमोबाइल फैशन ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। यह युवाओं की पसंद बनता जा रहा है। अब एक सवाल आपसे है दोस्तों। आप में से कौन कौन गाड़ी चलाना पसंद करता है। आपके पास कौन से मॉडल की गाड़ी है। मैं देख रही हूं कि भारत के बढ़ते कार बाजार में कार खरीदने वालों की संख्या में महिलाओं का हिस्सा तेजी से बढ़ रहा है। ऑटो बिक्री आंकड़ों में पिछले पांच सालों में महिलाओं की संख्या कार खरीदने के मामले में बढ़ी है। इन महिलाओं में 35 साल से कम उम्र की ज्यादातर महिलाएं शामिल हैं। साथ ही महिलाएं लग्जरी कार खरीदने में भी पीछे नहीं हैं। महंगी और लग्जीरियस कार खरीदने वाली महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है।

 महिलाएं ज्यादातर ऑटो गियर शिफ्ट और क्लच लेस मॉडल पसंद करती हैं. वहीं ऑटोमोबाइल कंपनियां भी महिलाओं को ध्यान में रखते हुए कार के मॉडल्स और डिजाइन में कुछ-कुछ बदलाव करने लगी हैं। जब आप  गाड़ी को लेकर इतनी जुनूनी है तो मैं आपको बता दूं कि आपकी चाहत का ख्याल मैंने भी रखा है। फैशन की दुनिया में आटोमोबाइल प्रिंट पसंद किए जा रहे हैं। फ्रेबिक से लेकर रेडीमेड गार्मेंट तक में इस तरह के प्रिंट की मांग है। होम डेकोर में भी इस तरह के प्रिंट का प्रयोग होता है। कार से लेकर मोटरसाइकिल, हवाई जहाज से लेकर आटोरिक्शा तक के प्रिंट मिल जाएगें। प्रिंट में सभी मॉडल की गाड़ियां मिल जाएंगी। बच्चे भी इस तरह की चीजें पसंद कर रहे हैं। फैशन हमारी जिंदगी को बहुत पास से देखता है। हमारी मानसिकता, हमारे सपने सब फैशन के कैमरे में क्लिक हो जाते हैं। अगर आप भी इस तरह का फैशन पसंद करती हैं तो यह खरीद सकती हैं।

आपको भी पसंद हैं ना तांत साड़ियां- डा. अनुजा भट्ट

यह मैं कोई अनोखी बात नहीं कह रही हूं कि भारत विविधता भरा देश है बोली भाषा खानपान सब कुछ अलग-अलग है। हम सब इस बात के जानते हैं। लेकिन हम महसूस तब करते हैं जब हम आपस में अलग अलग लोगों से मिलते हैं। चीजों के प्रति उनकी संवेदनशीलता को महसूस करते हैं। मसलन खानपान तो अलग है ही, खाने और पकाने का तरीका भी अलग अलग है। पहनने का तरीका भी अलग है। हम किसी भी चीज को किसी भी तरह पहन खा लेते हैं अगर हम उन सब तथ्य और सूचनाओं से अंजान हैं। कभी कभी बड़ी बेवकूफी भी कर जाते हैं जैसे किसी आध्यात्मिक मोटिफ न पहचान कर हम उसे अपनी डाइनिंग टेबल के कवर पर सजा देते हैं। जैसा कि आप जानते ही हैं कि मैं पिछले 4 सालें से फैशन और कला पर काम कर रही हूं और आनलाइन प्रोडक्ट खरीदती बेचती और बनवाती हूं। इस दौरान कला कलाकार क्राफ्ट से जुड़े लोगों से संपर्क हुआ और बहुत सारी जानकारियां हासिल हुई। सच कहूं तो बहुत आनंद आ रहा है। मैं सोचा कि क्यों न यह जानकारियां आपसे साझा करूं। आप इन सूचनाओं को और सटीक भी बना सकते हैं।

आज मैं बात कर रही हूं तांत साड़ी की। भारत के बंगाल राज्य में मुख्य रूप से  पहनी जाने वाली तांत साड़ियां आज पूरी दुनिया में पहनी जा रही हैं। मेरे विदेश में रह रहे मित्र अक्सर इस तरह की साड़ियां मुझसे मंगवाते रहते हैं। अगर अपने देश की बात करूं तो यह भारतीय उपमहाद्वीप में गर्म और आर्द्र जलवायु के लिए सबसे आरामदायक साड़ी मानी जाती है।

तांत शब्द का अर्थ बंगाल में हथकरघा है जो सूती साड़ियों और धोती आदि जैसे अन्य वस्त्र बुनता है। बंगाल के बुनाई के इतिहास 15 वीं शताब्दी से माना जा सकता है। पहली बार शांतिपुर में हथकरघा लगा  और वहाँ से यह अन्य स्थानों तक फैल गया। 16वीं-18वीं शताब्दी के दौरान मुगल शासन के दौरान भी बुनाई की कला फलती-फूलती रही। बुनाई की प्रक्रिया में कार्यरत लोगों ने इसके लिए प्रशिक्षण भी लिया। और मुगल दस्तकारों से जामदानी बुनाई सीखी। 

  बुनाई की यह प्रक्रिया ब्रिटिश शासन से लेकर बंगाल विभाजन तक जारी रही और बुनाई की प्रक्रिया में निरंतर सुधार होता रहा। बंगाल विभाजन के बाद, बांग्लादेश से हिंदू बुनकर भारत चले आए और बुनकरों को तांत साड़ी की पारंपरिक बुनाई शैली से परिचित कराया।

 

 इस समय यह साड़ियां सबसे ज्यादा भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के नदिया ज़िले में शांतिपुर  और फुलिया  और हुगली जिले में धानीखली बेगलपुर और अटपुर में बन रही हैं। साड़ियों के नाम भी इससे जुड़ गए हैं बुनाई की "फुलिया तंगेल" शैली शांतिपुर और फुलिया में आए प्रवासी तंगेल बुनकरों की देन है। इन साड़ियों में भारी बॉर्डर, फूलों के डिज़ाइन और कई पैस्ले और कलात्मक रूपांकनों की झलक मिलती है। इसका पल्लू और बार्डर ही इसकी विशेषता है। इसे फ्लोरल, पैस्ले और अन्य डिजाइन के साथ बुना जाता है।

बनती कैसे हैं साड़ियां-तांत साड़ी कपास से बनी होती है, जो अन्य साड़ियों की तुलना में बेहतरीन ड्रेप होती है। इस छह गज की साड़ी को बनने में 6-7 दिन लगते हैं। तांत साड़ी की कीमत अलग-अलग प्रकार की तांत साड़ियों और बुनाई प्रक्रिया में इस्तेमाल किए गए कपड़े और रूपांकनों के साथ भिन्न हो सकती है।

 तांत साड़ी की बुनाई की प्रक्रिया मिलों से कपास के धागों के बंडलों को साफ करने से शुरू होती है। फिर उन्हें धूप में सुखाया जाता है, ब्लीच किया जाता है, फिर से सुखाया जाता है और अंत में उन्हें उबलते रंगीन पानी में डुबोकर रंगा जाता है। एक बार डुबाने के बाद, उन्हें और मजबूत और महीन कपड़े में बदलने के लिए स्टार्च किया जाता है। कपड़े के धागों को बुनाई करघे में डालने के लिए बांस के ड्रम का भी इस्तेमाल किया जाता है।

 प्रत्येक तांत साड़ी के शरीर, पल्लू और बॉर्डर पर एक अनूठा पैटर्न होता है। ये पैटर्न एक कलाकार द्वारा बनाए जाते हैं, जो फिर नरम कार्डबोर्ड को छेदता है और उन पर डिज़ाइन को स्थानांतरित करता है। फिर कार्डबोर्ड को करघे से लटका दिया जाता है। एक बार यह सेट-अप हो जाने के बाद, बुनाई की प्रक्रिया शुरू होने के लिए तैयार हो जाती है। सबसे छोटी तांत साड़ियों को 10-12 घंटों में बुना जा सकता है। अधिक जटिल रूपांकनों वाली साड़ी को पूरा होने में संभवतः पाँच या छह दिन लग सकते हैं।

कैसे पहनें- बंगाली तांत साड़ी को स्टाइल करना आसान और अधिक सुविधाजनक है। कॉटन तांत साड़ी के साथ एक क्लासी ब्लाउज हमेशा सहजता से जंचता है। आप अपने लुक के ग्लैमर को बढ़ाने के लिए क्रॉप टॉप, बोट नेक ब्लाउज, हॉल्टर नेक या ट्यूब ब्लाउज भी ट्राई कर सकती हैं।

एक आकर्षक एक्सेसरी तांत साड़ी के लिए जरूरी है। ऑक्सीडाइज्ड ज्वेलरी हमेशा सबसे अच्छी लगती है, चाहे वह कैजुअल इवेंट हो या कोई बड़ा इवेंट। याद रखें, कम ही ज़्यादा है, इसलिए हमेशा किसी भी लुक को ग्रेस और ग्लोरी के साथ उभारने के लिए सिंपल ज्वेलरी ही चुनें। अपने एथनिक लुक को पूरा करने के लिए क्लच बैग जोड़ें।

 साड़ी का रखरखाव 

  •  तांत साड़ियां वजन में हल्की और कुछ हद तक पारदर्शी होती हैं, यही कारण है कि उन्हें धोने में उचित देखभाल की आवश्यकता होती है।
  • इन साड़ियों को धोने से पहले इन्हें ठंडे पानी में सेंधा नमक मिलाकर भिगो दें। यह तकनीक रंग को फीका होने से बचाती है।
  • तांत साड़ियों को धोने के लिए हल्के डिटर्जेंट का उपयोग करने का प्रयास करें ताकि कोई भी रसायन इन साड़ियों की बनावट को नुकसान न पहुंचा सके।
  • अपनी सूती तांत साड़ी की कुरकुरापन और कठोरता बनाए रखने के लिए धोते समय स्टार्च का उपयोग करने पर विचार करें।
  • एक बार धुल जाने के बाद साड़ी को छायादार जगह पर लटका दें और पूरी तरह सूखने दें।
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कापीराइट अनुजा भट्ट

 

आप फेब्रिक के बारे में जानना चाहते हैं ना-डा. अनुजा भट्ट

 


लिनन दुनिया के सबसे पुराने वस्त्रों में से एक है। माना जाता है कि इसका अस्तित्व बहुत पहले से है, इसकी जड़ें मिस्र में हैं। 6,000 से अधिक वर्षों से इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता रहा है।

जब भी आप कोई शर्ट खरीदते हैं, कुर्ता खरीदते है, साड़ी खरीदते हैं, पर्दे खरीदते हैं या फिर होम डेकोर का कोई सामान सबसे पहले आपकी नजर फेब्रिक पर पड़ती है। कॉटन और लिनन पर में क्या अंतर है यह बहुत बार खरीददार नहीं समझते। वह इन दोनों को एक ही तरह का समझते हैं।

  आप लिनन एक बहुत ही आम कपड़ा समझ सकता है, लेकिन बहुत कम लोग वास्तव में इसके बारे में ज्यादा जानते हैं।यह एक प्रीमियम-गुणवत्ता वाला प्राकृतिक कपड़ा है जो सन के पौधे के रेशों से प्राप्त होता है। 100% शुद्ध लिनन कपड़ा इतना कीमती है कि प्राचीन मिस्र के लोग इसका इस्तेमाल ममियों को लपेटने के लिए करते थे। यह दुनिया भर के लगभग हर देश में उगाया जाता है। हालाँकि, सबसे अच्छे सन के रेशे पश्चिमी यूरोप के क्षेत्र में उगाए जाते हैं। समृद्ध मिट्टी के घटकों और अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारणयूरोपीय लिनन को सभी लिनन किस्मों में सबसे अच्छा माना जाता है।

 चूंकि यह पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है, इसलिए यह किसी भी तरह से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है। लिनन फ्लैक्स किसी भी हानिकारक रसायन,  कीटनाशकों के उपयोग के बिना उगाया जाता है। इसके अलावा, लिनन की खेती में बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है। अपने दैनिक जीवन में लिनन के कपड़े को अपनाने का सबसे अच्छा हिस्सा यह है कि यह एक बायोडिग्रेडेबल कपड़ा है।

क्लासी और आलीशान होने के अलावा, प्राकृतिक लिनन कई अन्य खूबियों के लिए जाना जाता है। उदाहरण के लिए, लिनन हल्का, हवादार होता है, जो इसे गर्मियों के मौसम के लिए एक आरामदायक विकल्प बनाता है। इसलिए इसे एलर्जी, संक्रमण, चकत्ते आदि जैसी त्वचा संबंधी समस्याओं से पीड़ित लोगों के लिए आदर्श माना जाता है।

 इसमें बेहद मज़बूत धागे के रेशे होते हैं, जो इसे किसी दूसरे कपड़े की तरह मज़बूत बनावट और लंबे समय तक चलने वाला बनाते हैं। इसलिए अगर आप अपनी अलमारी में लंबे समय तक चलने वाला कपड़ा जोड़ना चाहते हैं, तो लिनन सबसे बढ़िया विकल्प है। ड्रेसिंग के अलावा, आप लिनन की चादरें भी खरीद सकते हैं।

 लिनन किसी भी अन्य कपड़े की तुलना में बहुत तेज़ी से सूखता है। इसलिए, इसे वैश्विक कपड़ा उद्योग में सबसे अधिक शोषक कपड़े की सामग्री के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा, लिनन कुछ ही समय में शरीर के पसीने को सोख लेता है। इस प्रकार, लिनन को गर्म मौसम के लिए एक आदर्श वस्त्र विकल्प माना जाता है।

लिनेन को कम रख-रखाव वाला कपड़ा माना जाता है, फिर भी इसे धोते और इस्त्री करते समय आपको कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए।

लिनेन को ठंडे पानी से हाथ से धोना बेहतर होता है। अगर आप मशीन में धोने जा रहे हैं, तो ठंडे या गुनगुने पानी और हल्के डिटर्जेंट के साथ कम सेटिंग चुनें।

कपड़ों को नियमित रूप से हवा में सूखने दें।

जब आपकी लिनेन शर्ट या पैंट हल्की नम हो तो उसे प्रेस करें। 

अपराजिता आर्गनाइजेशन से भी आप इस तरह के फ्रेबिक से बनें प्रोडक्ट खरीद सकते हैं। हमारे प्रोडक्ट देखने के लिए फेसबुक ग्रुप से भी जुड़ सकते हैं यह एक प्राइवेट ग्रुप है। 

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मेरी यादें- हरकाली देवी हरेला सावन और शिव परिवार- डा. अनुजा भट्ट

 

 जैसा की मैं हमेशा कहती हूं अच्छी यादों को संभालकर रखिए। वह आपको उर्जा देती हैं। परिवार समाज और देश से जोड़े रखती हैं। हम सभी के पास यादों का पिटारा होता है जो कभी हमें हमारे बचपन में ले जाता है कभी युवावस्था की याद दिलाता है। हर उम्र की अपनी एक याद होती है। हमारी तरह बुजुर्गों के पास भी उनकी यादों का पिटारा है जिसमें कई रोचक कहानियां और संस्मरण दर्ज हैं। सुनिए कभी...

मैं तो अपनी यादों में बार बार गोते लगाती हूं और मुझे आनंद आता है। इस बार बचपन की उन यादों में पापा और मैं बैठे हैं। अपने बगीचे से मिट्टी ले आए हैं और अब उस मिट्टी को पापा साफ कर रहे हैं। उसे चिकना कर रहे हैं। पास में लकड़ी की टहनियां हैं जिनको भी साफ कर एकसार कर लिया गया है। रूई भी रखी गई है। डिकारे बनने वाले हैं। जिसमें शिव परिवार बनेगा। 

कुमाऊँनी जीवन में भित्तिचित्रों के अतिरिक्त भी अपनी धार्मिक आस्था के आयामों को मिट्टी और रूई के सहारे कलात्मक रुप से निखारा जाता हैं। जिसके लिए अलग अलग नाम है। डिकारे भी ऐसा ही है। क्या है डिकारे... डिकारे शब्द का शाब्दिक अर्थ है - प्राकृतिक वस्तुओं का प्रयोग कर प्रतिमा गढ़ना। स्थानीय भाषा में अव्यवसायिक लोगों द्वारा बनायी गयी विभिन्न देवताओं की अनगढ़ परन्तु संतुलित एवं चारु प्रतिमाओं को डिकारे कहा जाता हैं। डिकारों को मिट्टी से जब बनाया जाता है तो इन्हें आग में पकाया नहीं जाता न ही सांचों का प्रयोग किया जाता है। मिट्टी के अतिरिक्त भी प्राकृतिक वस्तुओं जैसे केले के तने, भृंगराज आदि से जो भी आकृतियाँ बनाई जाती हैं, उन्हें भी डिकारे संबोधन ही दिया जाता है।

 पापा डिकारे बनाने में तल्लीन हैं। मिट्टी में रूई को भी मिलाया गया है।  सबसे पहले लकड़ी का एक तख्ता सा है जिसपर यह बनाए जाएंगे। पापा ने तीन हिस्सों में मिट्टी के गोले बना लिए हैं और अब आकृति बननी हैं। सभी भगवान बैठे हुए ही बनाए जाएंगें इसलिए ढांचा एक सा ही है। शिव की जटा और गणेश की सूंड बनाने में पापा को कमाल हासिल हैं। थोड़ी देर पहले जो मिट्टी थी वह अब ईश्वर का आकार ले चुकी है और अप उसमें रंग भरने की बारी है। मेरा कौतूहल मुझे छेड़छाड़ करने से रोक नहीं रहा है। पापा ने मुझे भी मिट्टी दे दी है। कोमल हाथ मिट्टी से खेल रहे हैं । सूखने  के लिए पापा ने अब उनको हल्की धूप में रख दिया है। अब  सूखने के बाद उस पर चावल का घोल डाला जाएगा। घोल मां मे तैयार कर दिया है। सूखने के बाद  यह हलके पीले रंग के हो गए हैं। डिकारे में शिव को नीलवर्ण और पार्वती को श्वेतवर्ण से रंगा गया है। रंग भरने में दीदी भी पापा की मदद कर रही है। देखते ही देखते शिव परिवार सजधज कर खड़ा हो गया है। पापा ने डिकारों में  जिस शिव परिवार को बनाया है  उसमें चन्द्रमा से शोभित जटाजूटधारी शिव, त्रिशूल एवं नागधारण किये अपनी अद्धार्ंगिनी गौरी के साथ हैं। गणेश भी हैं। चूहा मैंने बना ही लिया। पापा ने बताया पहले ये रंग किलमोड़े के फूल, अखरोट व पांगर के छिलकों से तथा विभिन्न वनस्पतियों के रस के सम्मिश्रण से तैयार किया जाता है।

 कला के प्रति मेरे पापा का भी रूझान रहा पर वह इसे प्रकट नहीं करते है। मां हो या मौसी दोनों के एपण पर ध्यान देते। जब वह पढ़ाई के लिए नैनीताल अपने भाई (बुआ के बेटे के यहां रहे) के यहां रहे तो डिगारे वही बनाते थे। ऐसा ताई जी ने मुझे बताया।

आज सरस्वती पूजा के लिए जब मूर्ति बनने के लिए देती हूं और उस पूरी प्रक्रिया को देखती हूं , अनायास पापा और मैं मिट्टी के साथ यादों के उसी फ्रेंम में दिखने लगते हैं।

कुमाऊं में हरेला से ही श्रावण या सावन माह तथा वर्षा ऋतु का आरंभ माना जाता है। इस दिन प्रकृति पूजन का विधान है। हरेला का अर्थ है "हरित दिवस", और इस क्षेत्र में कृषि -आधारित समुदाय इसे अत्यधिक शुभ मानते हैं, क्योंकि यह उनके खेतों में बुवाई चक्र की शुरुआत का प्रतीक है। हरेला पर्व से नौ दिन पहले ही घर में मिट्टी या फिर बांस की टोकरी में हरेला बोया जाता है। जिसे रिंगाल कहते हैं।

क्या होता है रिंगाल? ( रिंगाल बांस की प्रजाति का एक पौधा होता है, जिसे बौना बांस भी कहते हैं. यह बहुत बारीक होता है और इससे काम करना बहुत मुश्किल होता है. आजकल इससे बहुत सुंदर क्राफ्ट का सामान  बनाया जा रहा है।) फिर नौ दिनों तक इस पात्र को सींचा जाता है। दसवें दिन इस पात्रा में उगे पौधों को काट दिया जाता है।

पुराणों में कथा है कि शिव की अर्धांगिनी सती ने अपने आप से खिन्न होकर हरे अनाज वाले पौधों को अपना रुप देकर पुनः गौरा रुप में जन्म लिया। इस कारण ही सम्भवतः शिव विवाह के इस अवसर पर अन्न के हरे पौधों से शिव पार्वती का पूजन सम्पन्न किया जाता है।

हरेला की परम्परा के अनुसार अनाज ११ दिन पूर्व एपण से लिखी किंरगाल की टोकरी में बोया जाता है। हरेला बोने के लिए पाँच या सात प्रकार के बीज जिनमें कोहूँ, जौ, सरसों, मक्का, गहत, भट्ट तथा उड़द की दाल कौड़ी, झूमरा, धान,  मास आदि मोटा अनाज सम्मिलित हैं, लिये जाते हैं। यह अनाज पाँच या सात की विषम संख्या में ही प्रायः बोये जाते हैं। बीजों को बोने के लिए मंत्रोंच्चार के बीच शंखध्वनि की जाती है। इस अवसर पर हरकाली देवी की आराधना की जाती है।

संक्रान्ति के अवसर पर इन अन्न के पौधों को काटकर देवताओं के चरणों में अर्पित किया जाता है। हरेला पुरुष अपनी टोपियों में, कान में तथा महिलाएँ बालों में लगाती हैं। घर के प्रवेश द्वार में इन अन्न के पौधों को गोबर की सहायता से चिपका दिया जाता है।

  मान्यता है ये रस्म निभाने से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।  हरेला जितना बड़ा होगा,  किसान को उसकी फसल में उतना ही ज्यादा लाभ मिलेगा। 

 

जी रया ...

जागी रया ....

ये दिन ये बार भेटनै रया...

गंग कै बालू छन जाण क रया....

घ्वाड क सिंघउन जाण क रया....

दूब क जास झाड है जौ....

पाती जस फूल है जौ.....

हिमालय क ह्यूं छन जाण क रया ....

लाख दुति लाख हरेल है जन....

लाग हरयाव...लाग बग्वाव...

जी रे...जाग रे... बच रे..

दूब जौ पली जे..... फूल जौ खिल जे..

स्याव जस बुध्दि.....शेर जस तरान ह जौ..

सब बच रया......खुश रया...!

यै दिन यै मास भेंटन रैया....!

उत्तराखंडी लोक पर्व हरेला की आपको सपरिवार बधाई व शुभकामनाएं!

*शुभ हरेला*

13 का अंक और मां विपदतारिणी का संग..... क्या है यह रहस्य-डा. अनुजा भट्ट


मेरा संबंध मां दुर्गा से बहुत गहरा है। जहां से मैं हूं वह दुर्गा का मायका है। अब आप यह पता करें मां पार्वती मां दुर्गा का मायका कहां है। मेरे मायके में भी देवी की पूजा होती है पर बलि नहीं होती। इसलिए मेरा संस्कार शाकाहारी है। शादी के बाद मैं बंगाली परिवार की बड़ी बहू बन गई और तीज त्यौहार की पारंपरिक जिम्मेदारी भी मेरे हिस्से आ गई।
यहां परंपरा और रीति नीति के रंग बिलकुल अलग थे। इसलिए स्वाभाविक था कि बहुत ज्यादा असमंजस थी। मैं हर चीज को जानना चाहती थी, समझना चाहती थी पर कई सवाल मन में थे। अपनी सासु मां के कहने पर मैंने भी विपद तारणी का उपवास रखना शुरू किया पर मुझे उसकी कथा कहानी मालूम नहीं थी। मेरे पास उसकी कोई किताब भी नहीं थी। परिवार में पूछा तो पता चला यह पूजा सभी महिलाएं सामूहिक रूप से मंदिर में करती हैं जहां ठाकुर जी पूजा करवाते हैं। सभी अपनी पूजा की सभी सामग्री के साथ वहां जाती हैं और कथा सुनती हैं। विवाहित महिलाएं ही इसे करती हैं।
अपने मायके में भी मैंने सामूहिक पूजा होते देखा है। आठू सातू का उपवास मां करती है। वहां की कथा कहानी के बारे जानती हूं। उस कहानी में मां अपने मायके आती है। यह लगभग उसी तरह है जैसे दुर्गा पूजा में मां अपने परिवार के साथ अपने मायके आती है। लेकिन आज जिस पूजा के बारे में बात कर रही हूं उसे जानने समझने के लिए तब न मुझे बांग्ला समझ आती थी न बोलनी आती थी और न पढ़नी। इसलिए न मैं समझ पाई न पढ़ पाई। किताब भी नहीं मिल पाई। मैं बस जैसा बताया गया वैसे करती रही। हमारी सोसायटी के मंदिर में यह पूजा नहीं होती। इसका कारण यह है कि यहां बंगाली परिवार बहुत कम है जाे हैं भी वह काली बाड़ी चले जाते हैं।
मैं हर पर्व में मां दुर्गा को याद करती थी और पूजा के बाद क्षमा प्रार्थना कर लेती। इस पूजा में जो सबसे अलग बात है वह है 13 का विधान। हर चीज 13 ही चढ़ती है चाहे फल हो मिठाई हो या फिर दूर्वा। प्रसाद में जो भी भोग लगाया जाता है वह 13 के अंक में ही होता है। मेरे मन में यह सवाल आता था कि 13 ही क्यों . इस बारे में बहुत लोगों से जानने की कोशिश की पर उत्तर नहीं मिला।
फिर सोचा दुर्गा सप्तशती में भी 13 ही अध्याय हैं। हो सकता है कथा के अनुसार जब रानी ने मां के याद क्या होगा तो दुर्गा सप्तशती का पाठ किया हो। 13 नंबर के अमूमन अशुभ माना जाता है पर यहां 13 शुभ है। अयोध्या के राम मंदिर में मूर्ति की प्राण- प्रतिष्ठा 22-01-2024 को की गई है। अगर हम अंक ज्योतिष की बात मानें तो प्राण-प्रतिष्ठा के दिन के सभी अंकों का योग 13 है। 22 जनवरी, 2024 को श्री राम मूर्ति के अभिषेक से एक दिलचस्प संख्यात्मक योग प्राप्त हुआ 2 + 2 + 1 + 2 + 0 + 2 + 4 = 13 प्राप्त हुआ है।
अंकज्योतिष में 13 अंक के कई अर्थ हैं। कुछ लोगों द्वारा इसे 'पवित्र अंक' माना जाता है और अंकशास्त्र में इसे एक बहुत ही कर्म कारक अंक माना जाता है। यह संख्या 13 परमात्मा से जुड़ी मानी जाती है और कहा जाता है कि जो लोग इसे अपनाते हैं उनके लिए यह सौभाग्य और समृद्धि लाता है। कई लोगों का मानना है कि संख्या 13 में बदलाव लाने की क्षमता है जो सकारात्मक दृष्टिकोण की ओर ले जा सकती है।मृत्यु के बाद भी 13 दिन का विधान है जहां आत्मा पवित्र हाेकर अपने स्थान चली जाती है। शोक शांति में बदल जाता है।
कुछ संस्कृतियों में इसे 'एंजेल नंबर' के रूप में भी जाना जाता है, यह प्रेम और करुणा के साथ नेतृत्व करने का प्रतीक है। इसका अर्थ नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलना है। सकारात्मक बनाए रखना है।
माता विपद तारिणी देवी दुर्गा के 108 रूपों में से एक हैं। देवी चार भुजाओं वाली हैं, सिंह पर सवार हैं और शंख, चक्र, खड्ग और शूल धारण करती हैं। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष द्वितिया से दशमी के बीच मंगलवार और शनिवार को उनकी पूजा की जाती है। यह पूजा गुप्त नवरात्रि में हाेती है। पूर्वी भारत में पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, बिहार, झारखंड, त्रिपुरा और बांग्लादेश के हिंदू समुदायों में यह पूजा की जाती है। ठीक इसी समय उड़ीसा में रथ यात्रा भी हाेती है।
तैयारी-व्रत पर 13 विभिन्न प्रकार के फलों, फूलों और मिठाइयों के प्रसाद से पूजा की जाती है। उन्हें 13 पान, 13 सुपारी और 13 धागा भी चढ़ाया जाता है। धागे में 13 गांठ 13 दूर्वा के साथ लगाई जाती हैं। पूजा के बाद प्रसाद खाया जाता है उपवास की महिलाएं मीठा भोजन ही करती हैं।
कथा- पूजा के अंत में व्रत कथा पढ़ी जाती है। कथा कहती है, कि एक बार देवर्षि नारद ने पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए देखा कि नश्वर मनुष्य विभिन्न प्रकार के संकटों में फंसे हुए हैं और उन्हें संकट से निकालने वाला कोई नहीं है। मनुष्यों का ऐसा भाग्य देखकर वे दुखी हुए और कैलाश गए तथा महादेव से मनुष्यों के संकटों को नष्ट करने के लिए कहा। शिव ने उत्तर दिया कि मनुष्य अपने जीवन में किए गए गलत कार्यों और पापों के कारण जीवन में संकटों का सामना करते हैं। और वे पाप ही संकट का रूप लेकर उनके सामने आते हैं। इस स्पष्टीकरण से आश्चर्यचकित नारद ने शंभु से ऐसा उपाय पूछा जिससे लोग स्वयं को ऐसे संकट से बचा सकें। मुस्कुराते हुए महेश्वर ने पास में ही विचरण कर रही नारायणी की ओर इशारा करते हुए कहा कि नारायण की प्रिय कमल नेत्रों वाली नारायणी ही सबका कारण है। जैसे भगवान विष्णु पृथ्वी का संरक्षण करते हैं, वैसे ही वे ही मनुष्यों को आसन्न संकट से बचा सकती हैं। तब नारद नारायणी के पास गए और उन्हें प्रणाम करते हुए उनसे मनुष्यों के सभी संकटों को समाप्त करने की विनती की। उसकी बात सुनकर नारायणी मुस्कुराई और तथास्तु कहकर अंतर्धान हो गई।

वह विदर्भ राज्य में प्रकट हुई, वहां एक बहुत ही धर्मपरायण राजा रहता था जो अत्यंत धर्मपरायण था और अपनी प्रजा और गायों की अत्यंत उत्साह से रक्षा करता था। उसकी पत्नी रानी भी असंख्य खूबियों वाली एक अत्यंत सुंदर महिला थी, लेकिन उसका एकमात्र बुरा गुण उसका अभिमान था। उसका अभिमान नष्ट करने के इरादे से देवी नारायणी ने महामाया का रूप धरा और एक मायाजाल फैलाया। माया के प्रभाव से महल की रानी एक बहिष्कृत समाज की महिला की सबसे अच्छी दोस्त बन गई। वह महिला गुप्त रूप से रानी के साथ मिलकर मादक शराब, जंगली मांस और अन्य वस्तुओं की तस्करी करती थी, जिन्हें धर्मपरायण लोगों द्वारा खाया नहीं जा सकता था। इसके लिए रानी उसे रेशमी वस्त्र और सोने के आभूषण देती थी। एक दिन रानी ने अपनी दोस्त से गोमांस मांगा, गोमांस सबसे अधिक निषिद्ध भोजन है। रानी की वफादार दोस्त ने उसे सावधान किया और कहा कि वह रानी के लिए वर्जित है। अब तक वह जो और भी निरामिष चीजें खाती थी उसे भी उनको नहीं खाना चाहिए पर उनको खाने से पाप नहीं लगता है, लेकिन गोमांस सबसे अधिक पाप है और यदि धर्मपरायण राजा को यह बात पता चल गई, तो वह धर्म की रक्षा के लिए आपका वध भी कर सकते हैं। माया के प्रभाव में आकर रानी ने चेतावनी की परवाह न करते हुए दोस्त को वचन दिया कि यदि वह मुझे वह लाकर देगी तो अत्यंत मूल्यवान रत्न उसे मिलेंगे। दोस्त ने रानी की बात मान ली और उसे गोमांस से भरा बर्तन भेंट किया। रानी ने प्रसन्न होकर दोस्त को उपहार दिए और गोमांस को अपने पलंग के नीचे छिपा दिया। बाद में जब वह स्नान करने चली गई, तो एक सेवक उसके कक्ष में आया और उसे गोमांस का बर्तन मिला, वह भयभीत होकर राजा को बताने के लिए भागा। जब राजा ने इसके बारे में सुना, तो वह अत्यंत क्रोधित हुआ और रानी के कक्ष की ओर दौड़ा। तब तक रानी वापस आ चुकी थी और जब उसने बाहर का शोर सुना, तो वह समझ गई कि वह पकड़ी गई है और उसने डर के मारे अपने कक्ष के दरवाजे बंद कर दिए। जब राजा पहुंचे तो उन्होंने दरवाजे पर जोर से दस्तक दी और रानी को तुरंत दरवाजा खोलने का आदेश दिया और धमकी दी कि अगर अंदर गोमांस मिला तो वह उसे जान से मार देंगे।
कांपते हुए रानी ने जवाब दिया कि उसने कपड़े नहीं उतारे हैं और कपड़े पहनने के बाद दरवाजा खोलेगी, उसने राजा से इंतजार करने का अनुरोध किया और राजा ने प्रतीक्षा की। डर से व्याकुल होकर उसने गोमांस को छिपाने के लिए चारों ओर देखा लेकिन कोई रास्ता नहीं मिला। अफसोस औऱ अपने भाग्य को कोसते हुए उसने नारायणी की शरण ली और पूरे दिल से भक्ति के साथ प्रार्थना की । उनकी स्तुति करके उन्हें इस खतरे से बचाने का अनुरोध किया। तब देवी हरवल्लभी देवी नारायणी देवी लक्ष्मी उनकी भक्ति से प्रसन्न हुईं, माता बिपदतारिणी के रूप में रानी के सामने प्रकट हुईं और उन्हें अभय प्रदान किया और उन्हें खतरे से बचाने का वादा किया। साथ ही उन्होंने कहा , हर साल आषाढ़ माह के गुप्त नवरात्रि के दौरान मंगलवार या शनिवार को 13 आम के पत्तों और नारियल के साथ एक जल भरा घड़ा स्थापित करें और 13 पूड़ियों का भोग लगाकर उसकी पूजा करें। हाथ में 13 गांठ और 13 दूर्वा से सुसजिजत धागा पहने और अपने परिवार के लोगों को भी पहनाएं। यह धागा सालभर तक पहनें। हर साल पूजा के बाद इस दिन इस धागे को बदलें।
तो कैसी लगी आपको यह पर्व कथा।

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