विकास की चिंताओं के साथ महिला सशक्तिकरण भी जरूरी



सामाजिक सरोकार,मानवीय मुद्दों की जब जब बात होती है रुचिका का नाम अनायास ही जेहन में आ जाता है। खासकर जब मैं ऐसे युवाओं से मिलती हूं जिनमें समाज के लिए कुछ अभिनव करने की चाह होती है पर मैं उनकी व्यवहारिक तैयारी से संतुष्ट नहीं हो पाती। जब हम यह तय करते हैं कि हमें यह काम करना है तो उसके लिए हमें यह भी जानना जरूरी है कि उस काम को करते वक्त क्या क्या मुश्किलें आएंगी और हमको किस तरह से अपना धैर्य बनाकर रखना होगा। समाजसेवा में अपना करियर देखने वालों के लिए रूचिका से मिलना दिलचस्प होगा।
 रुचिका उन चंद लोगों में रही हैं, जिन्होंने बहुत पहले यह तय कर लिया था कि वह सामाजिक विकास के क्षेत्र में ही काम करेंगी। अपने स्कूल के दिनों में वह दक्षिण दिल्ली के स्लम एरिया में छोटे बच्चों को पढ़ाया करती थीं। घर में आर्यसमाज संस्कृति में मौजूद दान की परंपरा ने उन्हें शुरु से आकर्षित किया। इस संस्कृति ने उन्हें लोगों की जरुरतों के प्रति संवेदनशील बनाया। यही वजह है कि जब लेडी श्रीराम कॉलेज में वाणिज्य  (कॉमर्स) और मनोविज्ञान (साइकोलॉजी) के बीच चुनाव करने का मौका आया तो उन्होंने मनोविज्ञान को तरजीह दी। वह कहती हैं, मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने मनोविज्ञान का चुनाव किया क्योंकि इसने मुझे सामाजिक क्षेत्र से एक पेशेवर के तौर पर जोडऩे में मदद की।
   रुचिका बार बार अपने संकल्प को याद करती रही इससे उनका आत्मविश्वास भी बना रहा और वह खुद के इसके लिए तैयार भी करती रही। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइसेंज में पहले दिन को याद करती हुईं रुचिका बताती हैं कि उन्हें उस दिन मुंबई के स्लम एरिया धारावी ले जाया गया। मानसून की बारिश में मुझे धारावी इलाके में तैरते मानव मल-मूत्र के बीच चलना पड़ा। उस समय वास्तविकता का अहसास हुआ। मैंने खुद से पूछा कि क्या मैं इसके लिए तैयार हूं? हर तरह से। मेरा मन हमेशा की तरह मेरे साथ था और भीतर से आवाज आती हां तुमको यही करना है। फिर भी दिल और दिमाग दोनो को बराबर महत्व देते हुए मैंने सामाजिक विकास के क्षेत्र में जाने के अपने फैसले के बारे में पुनर्विचार करने के लिए एक सप्ताह की छुट्टी ली। जीत दिल की हुई और इस बीच मेरा  इरादा मजबूत ही हुआ। मैं लौटी और फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा।  

रुचिका सामाजिक परिवर्तन में अपनी छाप छोडऩे के इच्छुक सामाजिक उद्यमियों को उनकी ही तरह सोचने और विचार रखने वालों से लोगों से मिलवाती हैं। रुचिका का काम पूरी दुनिया से ऐसे लोगों को एक साथ लाकर उन्हें साझीदारी और सहभागिता को बढ़ावा देना है ताकि वे मिलकर सामाजिक बेहतरी के एक समान उद्देश्य को हासिल कर सकें। वह आपसी समन्वय और साझीदारी वाली इन गतिविधियों को आगे बढ़ाने में अहम रोल अदा करती हैं। वह फंड इकट्ठा करने के लिए अशोका नेटवर्क से जुड़े लोगों की मदद भी लेती हैं। यह इसलिए कि परिवर्तन से जुड़े अभियानों और विचारों को मूर्त रूप दिया जा सके।
 रुचिका वकील भी हैं। उनका कहना है, जब आप परिवर्तन के कारोबार से जुड़े हों कानून का ज्ञान आपके लिए जरूरी हो जाता है। वह वकीलों को इस बात के लिए सहमत करती हैं, वह सामाजिक परिवर्तन में रुचि लेने वाले सामाजिक उद्यमियों को अपनी सेवा निशुल्क मुहैया कराएं।
चेवनिंग स्कॉलरशिप पर वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिक्स में जेंडर एंड सोशल पॉलिसी के अध्ययन के लिए गईं। विकास कार्यों से जुड़े 13 साल के अपने अनुभव में रुचिका ने मानवाधिकार से लेकर महिलाओं और उनके कानूनी अधिकारों के अलावा ग्रामीण क्षेत्र में वित्तीय सशक्तिकरण से जुड़े कार्यक्रमों के तहत कई काम किए। वह वल्र्ड बैंक और जीटीजेड जैसे संगठनों से भी जुड़ी रहीं। उनके काम की प्रकृति उन्हें विभिन्न देशों में ले जाती है।
 अपनी बात को जारी रखते हुए वह कहती हैं, सामाजिक विकास के क्षेत्र ने उन्हें अपनी क्षमताओं को जानने और निखारने का पूरा मौका दिया। बदलाव में सक्रिय भूमिका निभाना ज्यादा अहम है। हालांकि मेरे काम का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा है परिवर्तनकामी लोगों की पहचान करना और उन्हें साथ जुड़ कर काम करने के लिए राजी करना।

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