क्याें पिछड़ गई भारतीय महिलाएं- रामचंद्र गुहा. प्रसिद्ध इतिहासकार

सरोजिनी नायडू 1925 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनी थीं। उनके नाम का प्रस्ताव महात्मा गांधी ने किया, जो ‘हिंदू-मुस्लिम एका की पक्षधर' होने के नाते नायडू के प्रशंसक थे। गांधी की नजर में सरोजिनी नायडू का चयन ‘हमारी भारतीय बहनों की प्रशंसा का सबसे माकूल तरीका था, जिसकी लंबे समय से दरकार थी।' 1925 में तो पश्चिम में भी किसी बड़े राजनीतिक दल के मुखिया पद पर महिला का आना असंभव सी बात थी। हाल ही में जब मैंने बेंगलुरु में आयोजित एक कार्यक्रम में इस सच को रेखांकित किया तो इसका जबर्दस्त स्वागत हुआ। इतना कि मुझे दर्शकों को रोकना पड़ा। क्योंकि 1925 से अब तक पश्चिम तो राजनीति के शीर्ष पर महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने में तेजी से आगे बढ़ा, लेकिन हमारी प्रगति कमजोर रही है। .


आज के नारीवादी मानकों से तो शायद गांधी भी हतप्रभ होते। उन्होंने तो अपनी पत्नी को हमेशा खुद से आगे देखा। उन्हें अपने समय के अन्य विश्व नेताओं की अपेक्षा ज्यादा महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में लाने का श्रेय है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भी सरोजिनी नायडू ही नहीं, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, राजकुमारी अमृतकौर और विजयलक्ष्मी पंडित भी पहले से थीं। इसके विपरीत उसी दौर के फ्रैंकलिन रूजवेल्ट और विंस्टन चर्चिल जैसे नेताओं की पार्टी में कोई वरिष्ठ महिला सहयोगी नहीं दिखती। चार्ल्स द गॉल, माओत्से तुंग या हो ची मिन्ह भी अपवाद नहीं हैं।.


अमेरिकी राज्यों में भी महिलाएं ठीक-ठाक संख्या में हैं, जहां विधायिका में उनकी 25 फीसदी भागीदारी है। अरिजोना और वरमांट जैसे राज्यों में तो यह प्रतिशत 40 तक पहुंच गया है, जबकि हमारी विधानसभाओं में यह अनुपात संसद से भी कम महज नौ फीसदी है।.

1925 में गांधी, राजनीति में महिला हिस्सेदारी के सवाल पर रूजवेल्ट और चर्चिल से भले आगे रहे हों, लेकिन उन देशों के स्त्रीवादी आंदोलनों ने पुरुष सत्ता को पीछे धकेलते हुए महिलाओं को अच्छी-खासी भागीदारी दिला दी, जबकि भारत पितृसत्ता की छाया से नहीं निकला। यही हमें आरक्षण के सवाल से टकराने को मजबूर करता है। .

भारत जैसे पिछड़े समाज वाले देश में हमें महिलाओं के लिए कानूनी तौर पर आरक्षण की सख्त जरूरत है। यहा पंचायत व नगर पालिका स्तर पर तो आरक्षण मौजूद है, विधानसभाओं और संसद के स्तर पर नदारद। जबकि यह कहीं ज्यादा जरूरी था, क्योंकि विधायकों-सांसदों के पास पंचायत सदस्यों की अपेक्षा कहीं ज्यादा फंड तो होता ही है, नीति-निर्धारण में भी इनकी प्रत्यक्ष भूमिका होती है। .

यूपीए सरकार के दौरान महिला आरक्षण विधेयक लाया जरूर गया, जिसमें लोकसभा व विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण की बात थी, लेकिन अफसोस कि कांग्रेस ने इसे पास कराने में अपनी पूरी ऊर्जा नहीं लगाई। उस वक्त तो लोकसभा में विपक्ष की नेता भी एक महिला सुषमा स्वराज थीं, लेकिन फिर भी यूपीए अध्यक्ष भाजपा को इस मुद्दे पर साथ लाने में कामयाब नहीं हुईं। विधेयक राज्यसभा में पारित हो गया, लेकिन लोकसभा में अटक गया। बाद में कांग्रेस ने भी इसे बीच राह छोड़ दिया। .

वर्ल्ड इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स रिसर्च का हालिया अध्ययन कहता है कि विधायिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ना भारतीय लोकतंत्र को मजबूती देगा। विधानसभाओं में विधायकों के कामकाज की लिंग आधारित पड़ताल का यह विश्लेषण बताता है कि महिला विधायकों की अपेक्षा पुरुषों पर आपराधिक आरोप होने की गुंजाइश तीन गुना ज्यादा है और पुरुषों की अपेक्षा महिला विधायकों की संपत्ति में भी दस प्रतिशत कम ही इजाफा हुआ है। सड़क निर्माण पर महिला और पुरुष, दोनों समान रूप से उत्साहित दिखे, लेकिन महिला विधायक के क्षेत्र में इसकी प्रगति खासी बेहतर दिखी। व्यापक तौर पर देखें, तो यह अध्ययन जमीनी हकीकत दिखाता है। .

विधानसभाओं और संसद में महिलाओं की ज्यादा भागीदारी के पीछे मूल रूप से नैतिकता और न्याय की भावना थी, लेकिन अब ऐसा लगता है कि इसके लिए पर्याप्त आर्थिक आधार भी मौजूद हैं। इस व्यापक अध्ययन के नतीजे देखकर किसी को भी महिला आरक्षण कानून बनवाने में यूपीए की विफलता पर अफसोस होगा। लेकिन अब चूंकि कांग्रेस और भाजपा, दोनों से ही इस मामले में कोई उम्मीद नहीं है, इसलिए सारी उम्मीदें उस सामाजिक दबाव पर ही निर्भर हैं कि वहां से दलों और नेताओं पर दबाव बढ़े, ताकि इस जरूरी कानून की राह फिर से खुल सके।.

जिस वक्त यह आलेख अंतिम रूप ले चुका था, ओडिशा विधानसभा ने विधायिका में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव पारित किया है, पर राज्य के अन्य दलों ने इसे बीजू जनता दल का पाखंड व अवसरवादिता बताते हुए निंदा की है। वे इसी आरोप में एक बार फिर दोषी साबित होंगे, अगर लोकसभा में भी वे ऐसे किसी विधेयक के पक्ष में और मजबूती से नहीं खड़े होंगे।. .

(दैनिक हिंदुस्तान से साभार)

स्वस्थ आँखें हजार नियामत- डॉ. दीपिका शर्मा

आज के इलेक्ट्रानिक युग में सबसे ज्यादा स्वास्थ्य आँखों का प्रभावित होता है। छोटे छोटे बच्चों की आँखों में चश्मा चढ़ा होता है। जिनको पढ़ाई तो करनी ही है साथ ही टीवी, वीडियो गेम, कंप्यूटर, मोबाइल के कारण आँखें ज्यादा खराब होती है। कंप्यूटर पर लगातार काम करने के कारण आँखों में जो समस्या उत्पन्न होती है उसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम सीवीएस कहते हैं। जिसके लक्षण हैं आँखों में दर्द, सिरदर्द, ड्राई आँख, थकी और लाल आँखें, धुंधला और दो दिखाई देना,गर्दन और पीठ में दर्द आदि।

इससे बचने के उपाय

  • आँखों को बीच बीच में झपकाएं इससे आप आँखों की ड्राई समस्या से बचेंगे. 
  • बीच बीच में खिड़की के बाहर किसी दूर चीज पर नजर टिकाएं. फिर थोड़ी देर के लिए आखें बंद करें, इससे आराम मिलेगा. 
  • 20-20 का रूल अपनाएं- हर बीस मिनट पर आँखों को बीस फिट दूर रखी चीज पर 20 सैकेंड तक टिकाएं. 
  • कंप्यूटर का मानीटर आपसे 20 या 26 इंच की दूरी पर रहे। जिसकी स्क्रीन का ट़ॉप आई लेवल पर रहे. 
  • जो लोग कंप्यूटर पर जॉब नहीं करते वह भी मोबाइल पर गेम खेलने में अपना समय खर्च करते हैं। जबकि समझदारी इसी में है कि इसमें अपना कम से कम समय बिताएं. 
  • इन सबके अलावा आँखों का व्यायाम अवश्य करें। जैसे गर्दन स्थिर रखकर आँखों को ऊपर नीचे दाएं बाएं घुमाना. 
  • क्लॉक वाइज और एंटी क्लॉक वाइज 10 बार घुमाना 
  • नाक के टिप को देखना, फिर सामने देखना. 
  • पामिंग अवश्य करें.किसी आँखों के डाक्टर स सीखकर अवश्य करें. 
  • पेंसिल की टिप के पास लाना और जब एक के दे दिखाई दें तो दूर ले जाना. 
  • आँखों में ठंडे पानी के छींटे अवश्य मारने चाहिए. आँखों के स्वास्थ्य के लिए हरी सब्जियां और पीले फल अवश्य खाने चाहिए. 
  • बादाम भिगोकर खाने और काली मिर्च से आँखों के बहुत फायदा होता है। 
  • सौंफ, नारियल का बुरादा और मिश्री मिलाकर रख लें और एक चम्मच हर रोज खाएं, आराम मिलेगा. 
  • सुबह नंगे पांव घास में चलना भी फायदेमंद है. 
उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखकर आप अपनी आँखों को स्वस्थ रख सकते हैं। ज्यादा समस्या होने पर आप आँखों के डाक्टर से परामर्श अवश्य लें।
डा. दीपिका शर्मा अपाेलाे  फेमिली क्लीनिक नौएडा, उत्तरप्रदेश, सेक्टर 110 में  फेमिली फिजिशियन हैं।
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